सुकवि रमेश हठीला स्मृति तरही मुशायरा
एक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गांव में
कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गांव में
आज केवल और केवल एक ही बात करनी है वो ये कि
कृपया 4 मार्च तक अपनी रचनाएं भेज दें । अपना फोटो भेज दें । अपना परिचय भेज दें ।
जैसा कि आपको बताया जा चुका है कि होली का तरही अंक इस बार पीडीएफ की शक्ल में जारी होने जा रहा है । इस अंक में रचनाएं यदि आप 4 मार्च तक भेज देंगे तो उसे पीडीएफ में शामिल किया जायेगा । साथ में आपका परिचय और एक ताजातरीन फोटो भी अवश्य भेजें । फोटो मोबाइल का न होकर यदि कैमरे का हो तो बहुत अच्छा होगा परिचय अवश्य भेजें
होली का मिसरा-ए-तरह
''कोई जूते लगाता है, कोई चप्पल जमाता है''
बहर : बहरे हजज 1222'1222'1222'1222 रदीफ - है, काफिया – आ
ये तो कहने की ज़रूरत नहीं है कि आपको ग़ज़ल नहीं बल्कि हज़ल कहनी है, गीत, यदि हो तो हास्य का हो। हास्य रस में सराबोर हज़ल, गीत । हास्य जो होली के आनंद को और बढ़ा जाये
तो आइये आज सुकवि रमेश हठीला स्मृति मुशायरे का आज समापन करते हैं श्री अश्विनी रमेश, सुश्री रजनी मल्होत्रा नैय्यर, श्री अशोक अकेला और श्री पी.सी.गोदियाल "परचेत" की रचनाओं के साथ ।
कृपया 4 मार्च तक अपनी रचनाएं भेज दें । अपना फोटो भेज दें । अपना परिचय भेज दें ।
अश्विनी रमेश
अश्विनी जी पिछले कुछ समय से मुशायरों के नियमित श्रोता के रूप में उपस्थित हो रहे हैं । और अपनी रचनाएं भी लेकर आते रहे हैं । आज भी वे एक सुंदर सी ग़जल लेकर आये हैं तो आइये सुनते हैं उनसे ये ग़ज़ल ।
ये हवा जो ठंडी ठंडी है अभी तक गांव में
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गांव में
आज भी कुछ पेड़ बाक़ी गांव में हैं, इसलिये
मोर कोयल और गिलहरी है अभी तक गांव में
जिन्दगी तो इन दरख्तों ने तुम्हें दी इस कदर
आब अनुकम्पा से इनकी है अभी तक गांव में
जिसके साये में छुपे तुम धूप जलती से बचे
छांव पीपल पात वाली है अभी तक गांव में
क्यों बज़ुर्गों से हमें कुछ सीखना आता कहीं
उनकी तो हर एक थाती है अभी तक गांव में
लोग जो हैं पेड़ जैसी जिन्दगी जीते सदा
उनकी पूजा रोज होती है अभी तक गांव में
यह गज़ल मेरी अकीदत है हठीला जी तुम्हें
ख़ुश्बू सी फैली तुम्हारी है अभी तक गांव में
जानवर, पक्षी, मकौड़े सब पलें पेड़ों से ही
पेड़ मुनसर आदमी भी है अभी तक गांव में !!
पेड़ों को समर्पित एक मुसलसल ग़जल । वृक्षों के उपकार को बहुत सुंदर तरीके से अभिव्यक्त किया गया है शेरों में । पेड़ों जैसी जिंदगी के बहाने बहुत ही अच्छे तरीके से दूसरों के लिये जीने की कला पर प्रकाश डाला है एक बहुत पुराना गीत 'मधुबन खुश्बू देता है' याद आ गया । सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।
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रजनी मल्होत्रा नैय्यर
रजनी जी ब्लाग जगत का एक सुप्रसिद्ध नाम हैं । तरही मुशायरे में वे पहली बार आ रही हैं । किन्तु शिवना प्रकाशन से उनकी एक कविताओं की पुस्तक स्वप्न मरते नहीं प्रकाशित होकर पिछले साल आई है । भाव प्रवणता के साथ कविताएं लिखती हैं । आइये सुनते हैं उनकी ये सुंदर ग़ज़ल ।
सभ्यता की वो निशानी है अभी तक गाँव में
इक पुराना पेड़ बाक़ी है अभी तक गाँव में
शहर में फैले हुए हैं कांटे नफरत के मगर
प्रेम की बगिया महकती है अभी तक गाँव में
चैट और ईमेल पर होती है शहरी गुफ़्तगू
ख़त किताबत, चिट्ठी पत्री है अभी तक गाँव में
दौड़ अंधी शहर में पेड़ों को हर दिन काटती
पेड़ों की पर पूजा होती है अभी तक गाँव में
एक पगली सी नदी बारिश में आती थी उफन
वैसे ही सबको डराती है अभी तक गाँव में
शहर में चाइनीज़, थाई नौजवानों की पसंद
ख़ुश्बू पकवानों की आती है अभी तक गाँव में
दिन के चढ़ने तक हैं सोते मगरिबी तहजीब में
तड़के तड़के की प्रभाती अभी तक गाँव में
चैट और ईमेल से चिट्ठी पत्री की तुलना करने वाला शेर बहुत ही सुंदर बन पड़ा है । और पगली सी नदी जो डराती थी बरसात के दिनों में उसकी तो बात ही क्या है । गांव का वो मंज़र याद आ गया जब रात तेज़ बरसात होने पर नानाजी चिंता में करवट बदलते रहते थे । बहुत सुंदर वाह वाह वाह ।
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पी.सी.गोदियाल "परचेत"
परचेत जी भी कुछ दिनों पहले ही ब्लाग परिवार से जुड़े हैं और सक्रिय रूप से अपनी भागीदारी दर्ज करवाते रहे हैं । हालांकि उनका बहुत परिचय नहीं मिल पाया लेकिन ठीक है आने वाले होली के मुशायरे में सबसे परिचय हो जायेगा । तो आइये सुनते हैं उनकी ये सुंदर ग़ज़ल ।
याद मेरे बचपने की, है अभी तक गांव में
एक परछ़ांई सरीखी है अभी तक गांव में
हो गये सब लुप्त अंधड़, बारिश ओ तूफान में
एक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गांव में
जिसके नीचे बैठ के बपचन के खेले खेल थे
नीम की छाया घनेरी है अभी तक गांव में
नन्हे मुन्ने बंद करते सुन के जिसको शोर सब
गीत कोयल ऐसा गाती है अभी तक गांव में
वो महक फूलों की, अमराई की खुशबू फागुनी
ले बयार आती है, चलती है अभी तक गांव में
कोयल की आवाज़ सुन कर नन्हे मुन्नों का चुप हो जाना एक शब्द चित्र है । जो स्मृतियों के गलियारे में ले जाता है । स्वर के माधुर्य का शेर है । हो गये सब लुप्त अंधड़ में के माध्यम से लेखक ने सभ्यता और संस्कृति के खंडहर होते मानदंडों को बखूबी व्यक्त किया है । बहुत सुंदर वाह वाह वाह ।
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अशोक"अकेला"
अकेला जी ने मतले ही मतले लिख कर नया प्रयोग करने की कोशिश की है उनके ही शब्दों में :-
आप के कहे मुताबिक एक प्रयास किया है ,कुछ लिखने का
सिर्फ अपने अहसासों को महसूस करके ,बस यही मैं कर सकता हूँ|
गजल या गजल की बंदिशों से एक दम नासमझ .....
अगर आप इस को सजा-संवार कर मुझे वापस भेजे तो मैं इसमें
कुछ और सीखने की कोशिश करूँगा | इससे पहले एक प्रयास
दिवाली पर भी कर चूका हूँ , मेरा अपने बारे में किसी किस्म का
कोई दावा नही....
इक पुराना पेड़ बाकी, है अभी तक गांव में
झूले पे गोरी हुमकती, है अभी तक गांव में
रास्तों पे धूल उडती, है अभी तक गांव में
प्यार से मिटटी भी मिलती, है अभी तक गांव में
मसलों पे चौपाल होती, है अभी तक गांव में
बैठ कर जो सबकी सुनती, है अभी तक गांव में
टन टना टन घंटी बजती, है अभी तक गांव में
पेड़ नीचे क्लास लगती, है अभी तक गांव में
एक पगडंडी बुलाती, है अभी तक गांव में
देख मुझको मुस्कुराती, है अभी तक गांव में
बालपन की याद बाकी, है अभी तक गांव में
वो शरारत मीठी मीठी, है अभी तक गांव में
ताल में मछली भी रहती, है अभी तक गांव में
उस किनारे धूप पड़ती, है अभी तक गांव में
क्या "अकेला" चीज बाकी, है अभी तक गांव में
राह संग चलने को कहती, है अभी तक गांव में
श्री हठीला की कहानी है अभी तक गांव में
याद उनकी ही हठीली है अभी तक गांव में
गांव के इस्कूल को बहुत सुंदर तरीके से चित्रित किया है टन टना टन में । पेड़ के नीचे लगत इस्कूल का पूरा मंज़र सामने आ गया है । चौपाल पे लगती पंचयात और उसकी निष्पक्षता को बखूबी दर्शाया है मसलों वाले शेर पे । मतले में ही मिट्टी के प्यार से मिलने की बात बहुत छूने वाली है । बहुत सुंदर वाह वाह वाह ।
तो लेते रहिये आनंद चारों रचनाओं का और देते रहिये दाद । और हां खास बात ये कि
कृपया 4 मार्च तक अपनी रचनाएं भेज दें । अपना फोटो भेज दें । अपना परिचय भेज दें ।जैसा कि आपको बताया जा चुका है कि होली का तरही अंक इस बार पीडीएफ की शक्ल में जारी होने जा रहा है । इस अंक में रचनाएं यदि आप 4 मार्च तक भेज देंगे तो उसे पीडीएफ में शामिल किया जायेगा । साथ में आपका परिचय और एक ताजातरीन फोटो भी अवश्य भेजें । फोटो मोबाइल का न होकर यदि कैमरे का हो तो बहुत अच्छा होगा परिचय अवश्य भेजें
होली का मिसरा-ए-तरह
''कोई जूते लगाता है, कोई चप्पल जमाता है''
बहर : बहरे हजज 1222'1222'1222'1222 रदीफ - है, काफिया – आ
ये तो कहने की ज़रूरत नहीं है कि आपको ग़ज़ल नहीं बल्कि हज़ल कहनी है, गीत, यदि हो तो हास्य का हो। हास्य रस में सराबोर हज़ल, गीत । हास्य जो होली के आनंद को और बढ़ा जाये
सर जी, सर्वप्रथम तो इस शानदार ढंग की प्रस्तुति के लिए अपाका आभार व्यक्त करना चाहूंगा और आज वाह-वाह-वाह भी सिर्फ आपके लिए ही करना चाहूँगा, बहुत कुछ सीखा इस दरमियाँ आपसे !
जवाब देंहटाएंरमेश जी ने जिस तरह आब और अनुकम्पा को पिरोया वो लाजवाब रहा। छॉंव पीपल पात वाली, और फिर मक्ता, लाजवाब। रजनी जी खतो किताबत और चिट्ठी पत्री में जो आनंद था वह वास्तव में ईमेल चैट में नहीं मिलता। प्रतीक्षा निष्प्राण हो गयी है ई-मेल से। इसमें कोई शक नहीं कि गॉंव के खुल वातावरण की आक्सीजन सुब्ह-सुब्ह आज भी उठा देती है। शह्र में सूर्योदय अवश्य होता है लेकिन आक्सीजन लेवल में अंतर आने में बहुत समय लगता है। गोंदियाल जी ने केवल 5 शेर के माध्यम से बहुत कुछ कह दिया।
जवाब देंहटाएंअशोक अकेला जी ने मत्लों की लाईन लगा दी। न जाने कितने पगों की प्रतीक्षा में पगडंडी आज भी मुस्कुरा रही है, बहुत कोमल भाव हैं।
खूबसूरत ग़ज़ल।
इस बार (Bar नहीं) की एक विशेषता रही कि निरंतर गुणवत्ता बनी रही, नये-नये दृश्य आये, काफि़ये आये, शबद आये, भाव आये और न जाने क्या-क्या, जो कसर रह गयी थी वह भी पूरी हो गयी, नये-नये चेहरे भी आये। कुल मिलाकर एक आनंदोत्सव की स्थिति रही। जहॉं गीत को माध्यम चुना गया वहॉं भी छंदाभिव्यक्ति में आनंद वही रहा जो एक शेर में होता है।
सर्वप्रथम बधाई आदरणीय पंकज भाईजी आपको, पेज पर की नयी व्यवस्था और नये गेट-अप के लिये. अब प्रतिक्रियाओं को अपलोड करना कई तरह से आसान हो जायेगा.
जवाब देंहटाएंआज की ग़ज़लों में टटकेपन की खुश्बू है. अश्विनी रमेशजी का संयत ढंग से ग़ज़ल कहना दिल को एकदम से भा गया है.
जिसके साये में छुपे तुम.. इस शे’र से अपनापन झांकता हुआ है.
लोग जो हैं पेड़ जैसी..
इस शे’र के माध्यम से अश्विनी रमेशजी, आपने वो कुछ कहा है कि मन श्रद्धा से अभिभूत हो गया है. मुझे एकदम से अपने गाँववाले सुघर बाबा, नरमदेसर बाबा आदि पूर्वजों की ’उपस्थिति’ याद आगयी. ये ’देवपुरूष’ आज भी हमारे बीच अश्वत्थ प्रारूप में विद्यमान हैं. गाँव भर के लोग हर छोटी-बड़ी बातों, आयोजनों, समारोहों और विशेषदिवस पर आशीर्वाद लेने ’आपके’ पास पहुँचते हैं, उन्हें सूचित करके ही कोई शुभारंभ होता है. प्रकृति के साथ यह अन्योन्याश्रय संबन्ध, अपने बीच यह संस्कार हम भारतीयों की अनूठी विशेषता है. मैं इस शे’र को इस मुशायरे का बानग़ी शे’र कह सकता हूँ. हृदय से नमन कह रहा हूँ. स्वीकार कर अनुगृहित करें, अश्विनीभाईजी.
रजनीजी ने ग़ज़ल के माध्यम से आज के शहरी वातवरण के सामने गाँव के सुरम्य माहौल को रख दिया है. बहुत सुन्दर और विशेष अंदाज़ की कहन के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ.
परचेतजी के सभी अश’आर पसंद आये. बधाई
’प्यार से मिट्टी का मिलना’ इस जुमले पर अकेला जी को सादर बधाइयाँ. टन-टना-टन घण्टी का बजना और विद्यालय की यादें.. वाह !! ’टन-टन-टन घण्टी बाजे, सब लड़क्ले इस्कूल से भागे..’ बहुत दिल से कहा है आपने अकेलाजी.
सादर
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ पंकज जी आज नेट ही देर से चला|
जवाब देंहटाएंसबसे पहले पंकज जी को सादर नमस्कार,जिन्होंने मेरी रचना को यहाँ सम्मान दिया , तिलक जी, सौरभ जी को भी हार्दिक आभार जो गजल के भाव को सराहा इन्होने .......
बाकी रचनाकारों की रचनाएँ भी बहुत अच्छी लगी |
जवाब देंहटाएंसभी रचनायें पसंद आई...बहुत बढ़िया रहा मुशायरा.
जवाब देंहटाएंपंकज भाई जी , नमस्कार!
जवाब देंहटाएंवाह,वाह,वाह ,मान सम्मान इस सबके असली हक़दार आप !
इसे आप ने अपना बड़ा जान कर मुझे समर्पित किया |
मैं तो सीखने वाली लाइन में हूँ ....
आप सब का दिल से आभार !
सब खुश और स्वस्थ रहें !
अश्विनी रमेश जी को
जवाब देंहटाएंख़ास तौर पर ...ये हवा जो ठण्डी-ठण्डी... मतले
तथा
पेड़ जैसी ज़िन्दगी...शे’र
और सारी ग़ज़ल के लिए बधाई...
******
रजनी मल्होत्रा जी के शे’र... चैट और ई-मेल... के लिए विशेष रूप से बधाई.
पागल नदी के उफ़न आने वाले ..ख़ौफ़ का भी जवाब नहीं.
********
‘परचेत’जी की ग़ज़ल भी सुंदर बन पड़ी है. बधाई.
**************
अशोक अकेला जी ने तो मतलों की झड़ी... ख़ूबसूरत लड़ी ही पेश कर दी.
उन्हें भी बधाई.
इस पूरे तरही मुशायरों में बत्तीस शायरों कवियों का भाग लेना इसकी कामयाबी का परचम लहराने के लिए काफी है. इतने अधिक उत्साह से इसमें सबने शिरकत की है के ये एक यादगार तरही मुशायरे का दर्ज़ा पा चुका है. पाठकों ने मुक्त ह्रदय से इसमें आई रचनाओं को सराहा है. पंकज जी, आप निश्चित तौर पर ढेरों बधाइयों के हकदार हैं.
जवाब देंहटाएंअंतिम कड़ी में अपेक्षाकृत नए रचना कारों को पढने का मौका मिला जो इस तरही के आनंद को दूना कर गया. अनजान रचना कार के लिए कोई पूर्वाग्रह नहीं होता हम उसे पहली बार पढ़ रहे होते हैं तो उत्सुकता अपने चरम पर होती है. बहुत ख़ुशी हुई देख कर के नए रचनाकारों ने निराश नहीं किया बल्कि अपनी रचना से चकित कर दिया.
रमेश भाई ने जिस तरह मोर कोयल और गिलहरी, छाँव पीपल पात वाली, बुजुर्गों की थाती, जैसे शब्दों से अपनी इस अनूठी ग़ज़ल में समान बाँध दिया है. पेड़ को केंद्र में रख कर कही ये ग़ज़ल इस मुशायरे में सबसे अलग रही. रमेश जी दाद कबूल करें.
रजनी जी ने अपनी ग़ज़ल में नए प्रयोग किये हैं, चैट और इ-मेल , चाइनीज़ थाई, जैसे नए शब्दों के प्रयोग से इसे नवयुवकों के पास ला दिया है. एक पगली सी नदी और दिन के चढ़ने तक जैसे शेर इस ग़ज़ल को बार बार पढने को मजबूर करते हैं...बधाई बधाई बधाई रजनी जी.
गोदियाल जी ने अपनी संक्षिप्त ग़ज़ल से गहरा असर छोड़ा है. गिरह भी क्या खूब बंधी है...वाह...नन्हे मुन्ने वाला शेर तो बेजोड़ है...दाद कबूल करें.
ग़ज़ल और उसकी बंदिशों से अपने आपको नासमझ कहने वाले समझदार अशोक जी ने तो अद्भुत ग़ज़ल कह डाली है. नासमझी में ये हाल है तो अशोक जी तो समझदार होने पर क्या गुल खिलाएंगे ?:-) टन टना टन घंटी से अपना स्कूल याद आ गया...आज के युवाओं ने शायद इस घंटी का लुत्फ़ न उठाया हो लेकिन स्कूल के समय हमारी नज़र उस से हटती ही नहीं थी...घंटी बजे और हम भागें...वाह..अशोक जी वाह...
तरही इतनी जल्दी समाप्त हो गयी...लेकिन इस बार कुछ ऐसे अशार छोड़ गयी जो भुलाये न भूल पायेंगे...
नीरज
चारों ही रचनाकारों ने शानदार अश’आरों की झड़ी लगाई है। अश्विनी जी, रजनी जी, परचेत जी एवं अशोक जी को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंमुशायरा एक बार फिर बड़े शानदार ढंग से अपने अंजाम तक पहुँचा। इसके आयोजन और मंच संचालन के लिए जो भी कहा जाय कम होगा। शानदार, जानदार, ईमानदार....
गज़लों-फन के पारखी सभी सुधिजनो ,खासतौर पर तिलकराज कपूर जी, भाई सौरभ पाण्डेय जी ,द्विजेंद्र द्विज जी और नीरज गोस्वामी जी ,ने जो मेरी गज़ल पर हिरदयोद्गार प्रकट किए हैं, उसके आभार हेतु मेरे पास शब्द नहीं है !
जवाब देंहटाएंवाह. मुशायरे का समापन भी लाजवाब हुआ है. क्या खूब ग़ज़लें कहीं हैं. अश्विनी जी, रजनी जी, परचेत जी एवं अशोक जी को बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंजिस खूब्सूएरी से आगाज़ हुवा था वैसा ही लाजवाब समापन है इस मुशायरे का जिसने संवेदनाओं की आंधी बहा दी थी ...
जवाब देंहटाएंअश्विन जी ने गाँव की हर निशानी को अपने शेर में उतारा है ... चाहे गाँव की सभ्यता गिलहरी (जो अब गाँवों में ही दिखती है) कोयल ... पेड को देवता समझने की परंपरा ... बहुत ही लाजवाब शेर बुने हैं सभी ...
रजनी जी के शेर नया अंदाज़ लिए हैं ... चैट, इ मेल ... चाइनीज ओर थाई जैसे नए शब्दों का प्रयोग गज़ल में नया निखार ला रहा है ... खूबसूरती रचे गाहे हैं सभी शेर ...बधाई रजनी जी को ...
गौदियाल साहब तो एक जाना माना नाम हैं ब्लॉग जगत में ... इस पाठशाला में पहली बार नको देख के बहुत अच्छा लग रहा है ... गिरह वाला शेर तो वैसे अंधड तूफ़ान की तरह है ... जिसके नीचे बैठ के खेले थे ... बीते दिनों की यादें ताज़ा कर रहा है ... वो महक फूलों की ... सच में उसी खुशबू की याद करा देती है .... जिंदाबाद गौदियाल साहब ...
ओर अशोक जी तो अज़ीज़ है हमारे ... यादों का खजाना लिए उनका ब्लॉग भी महकता रहता है जैसे ये गज़ल महक रही है ...हर शेर गाँव की यादों से जुड़ा है ... झूलों पे गौरी ... रास्ते की धूल ... चौपाल ... पगडण्डी ओर मीठी मीठी शरारत ... क्या नहीं है इस गज़ल में ... सभी शेर लाजवाब हैं अशोक जी ...
इस मुशायरे की सभी को बधाई ओर गुरुदेव आपने जो अथक प्रयास किया है इसके सफल संचालन का ... सच में ये आपकी मेहनत का ही नतीजा है ... एक यादगार मुशायरे के लिए सभी को बधाई ....
एक शानदार और जानदार तरही मुशायरा का समापन.
जवाब देंहटाएंअश्विन जी, रजनी जी, गोदियाल जी और अशोक जी आप सभी ने अपने अंदाज में गाँव के दर्शन कराये और बहुत कुछ नया अनोखा भी.
बहुत बहुत बधाई!
होली में मिलना तय है, बाकायदा डाक तार विभाग से भी घर पर नोटिस पहुँच चूका है.
जब हमारे घर कोंई मेहमान आता है और कुछ दिन रह कर चला जाता है तो अपने घर में ही कुछ खालीपन महसूस होता है ...
जवाब देंहटाएंतरही मुशायरा जब तक चला धुआँधार चला और आज अचानक ही पढ़ा कि इस तरही मुशायरा की यह अंतिम पोस्ट है और अब हमेशा कि तरह फिर से कुछ दिन खालीपन से गुजरना होगा, मगर यह खाली पं ही आने वाली खुशियों का कारण बनता है और इस बार तो होली के लिए गुरुदेव ने इतनी बार ताकीद कर डी है कि अच्छी तरह रट गया है कि ४ तारीख तक .....
आज की चारों ग़ज़लें ने गाँव के मंज़र को खूब अच्छे से प्रस्तुत किया, ये शेर खास पसंद आये
अश्विनी रमेश
आज भी कुछ पेड़ बाक़ी गांव में हैं, इसलिये
मोर कोयल और गिलहरी है अभी तक गांव में
जिन्दगी तो इन दरख्तों ने तुम्हें दी इस कदर
आब अनुकम्पा से इनकी है अभी तक गांव में
जिसके साये में छुपे तुम धूप जलती से बचे
छांव पीपल पात वाली है अभी तक गांव में
रजनी मल्होत्रा नैय्यर
चैट और ईमेल पर होती है शहरी गुफ़्तगू
ख़त किताबत, चिट्ठी पत्री है अभी तक गाँव में
दौड़ अंधी शहर में पेड़ों को हर दिन काटती
पेड़ों की पर पूजा होती है अभी तक गाँव में
एक पगली सी नदी बारिश में आती थी उफन
वैसे ही सबको डराती है अभी तक गाँव में
पी.सी.गोदियाल "परचेत"
जिसके नीचे बैठ के बपचन के खेले खेल थे
नीम की छाया घनेरी है अभी तक गांव में
नन्हे मुन्ने बंद करते सुन के जिसको शोर सब
गीत कोयल ऐसा गाती है अभी तक गांव में
अशोक"अकेला"
एक पगडंडी बुलाती, है अभी तक गांव में
देख मुझको मुस्कुराती, है अभी तक गांव में
बालपन की याद बाकी, है अभी तक गांव में
वो शरारत मीठी मीठी, है अभी तक गांव में
राजीव भरोल ,दिगम्बर नासवा ,सुलभ जायसवाल और वीनस केशरी हौसला अफजाई के लिए आप सब का तह दिल से आभार !
जवाब देंहटाएंतरही का समापन हो गया है,लेकिन गुरुदेव के सद्प्रयासों से खालीपन महसूस नहीं हो रहा है. होली के तरही मुशायरे की भूमिका जो बाँधी जा चुकी है. आज के चारों कलाम दर्जेदार हैं.पढ़ कर मज़ा आया.
जवाब देंहटाएं