मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

प्रकाश अर्श और कंचन चौहान की ग़ज़लें आज की तरही में- किस तरह की ये तरक़्क़ी देश में आई कि बस, खोजती आलू कुदाली, है अभी तक गाँव में।

सुकवि रमेश हठीला स्‍मृति तरही मुशायरा

16-20

इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में।
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में।

कल सोमवार को तरही का अंक नहीं लगाया था । असल में हुआ ये था कि आज के अंक में शामिल प्रकाश अर्श के लिये आज का दिन कुछ विशेष है । सो मैंने सोचा कि आज के ही दिन तरही का अंक लगना चाहिये । और फिर सोचा कि आज का ये दिन तो कंचन के लिये भी विशेष है सो क्‍यों न आज इन दोनों के लिये ही पोस्‍ट को समर्पित किया जाये ।

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आज का दिन इंटरनेट के लिये खास दिन है । आज एक रिश्‍ता बनने जा रहा है जो कि इंटरनेट की लडि़यों से लड़ी जोड़कर ही बन रहा है ।

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रंजना सिंह जी

संवेदना संसार के नाम से लोकप्रिय ब्‍लाग के बारे में आप सब जानते ही हैं और जानते ही होंगे रंजना सिंह जी को भी । प्रकाश अर्श को तो आप जानते ही हैं ये अर्श के नाम से अपना ब्‍लाग चलाते हैं । एक और हैं लखनऊ की कंचन चौहान जो कि हृदय गवाक्ष के नाम से अपना ब्‍लाग चलाती हैं ।  और एक हैं पटना निवासी सुश्री माला सिंह, ये रंजना जी की भतीजी हैं ये कोई ब्‍लाग तो नहीं चलाती हैं लेकिन जल्‍द ही इनका अपना ब्‍लाग होगा ऐसा विश्‍वास है । कंचन के भाई प्रकाश और रंजना जी की भतीजी माला, ये क्‍या चक्‍कर है अपनी तो समझ में नहीं आ रहा , आइये अपन तो सुनते हैं प्रकाश अर्श और कंचन चौहान को ।

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प्रकाश अर्श

तो जैसा कि मैंने बताया कि आज का दिन प्रकाश के लिये विशेष है । और इसी विशेष दिन की खुशी में ये जो चेहरा है ये इतना खिला खिला दिखाई दे रहा है । फुल कोलगेट स्‍माइल देता हुआ ये चेहरा अपनी कहानी आप ही कह रहा है । तो आइये आज के विशेष दिन सुनते हैं प्रकाश की ये सुंदर ग़ज़ल  ।

सुश्री माला सिंह को समर्पित प्रकाश अर्श की ये ग़ज़ल

चहचहाहट पंछियों की है अभी तक गाँव में
सुन के जिसको भोर होती है अभी तक गाँव में

शहर की रंगीनियों में जा के बेटा खो गया
माँ इधर ड्योढी पे बैठी है अभी तक गाँव में

लहलहाती फस्ल कट जाए तो फिर डोली उठे
बस यही उम्‍मीद जीती है अभी तक गाँव में

यूं गया वो, साथ अपने सब उजाले ले गया
फिर न कोई सुब्‍ह लौटी है अभी तक गाँव में
 

अपनी फितरत के मुताबिक़ धूप आवारा फिरे
छाँव बुनियादें बनाती है अभी तक गाँव में

ज्‍यों खड़े हों ख़ुद पिता यूं धैर्य, साहस, से खड़ा
इक पुराना पेड बाकी है अभी तक गाँव में

शह्र तेरा, ख़ाब तेरे, जश्न तेरा, तेरे ग़म
पास मेरे, मेरा माज़ी है अभी तक गाँव में

किस तरह की ये तरक़्क़ी देश में आई कि बस
एक पगडंडी ही जाती है अभी तक गाँव में

पाँव कीचड में सनें हैं और हल कन्धे पे है
गाँव की तस्वीर ऐसी है अभी तक गाँव में 

छोड कर आया हूँ जब से घर तो मैं बेचैन हूँ
तन यहाँ तो है मगर जी है अभी तक गाँव में
 

खूब शेर निकाले हैं प्रकाश ने । लहलहाती फस्‍ल कट जाये तो फिर डोली उठे, इस शेर को वही जाना सकता है जिसने गांव को क़रीब से देखा हो  । आज भी गांव में सब कुछ फस्‍ल पर निर्भर होता है । गिरह में बहुत सुंदर प्रयोग किया है । और छांव द्वारा बुनियादें बनाने का शेर भी बहुत सुंदर बन पडा है । पांव कीचड़ में सने हैं शेर में मिसरा सानी में गांव शब्‍द का दो बार प्रयोग सुंदरता बढ़ा रहा है । खूब ग़ज़ल । और आज के विशेष दिन की शुभकामनाएं ।

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कंचन चौहान

बहुत पहले नानी एक कहानी सुनाती थीं जिसमें भूसे में आग लगा कर जमालो बी दूर खड़ी होकर तमाशा देखती थीं । आज जो प्रकाश का विशेष दिन है उसमें कंचन की भूमिका भी जमालो बी की ही है । मजे की बात ये है कि जमालो बी से आज प्रकाश भी बहुत प्रसन्‍न है । उसे क्‍या मालूम कि....। खैर आइये सुनते हैं कंचन की ये ग़ज़ल ।

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कीमती रिश्तों की झाँकी है अभी तक गाँव में।
पैलगी, आशीष, यारी है अभी तक गाँव में।

ओस में भीगी हुई मेंड़ों पे ठिठुरे हाथ से,
खोजती आलू, कुदाली  है अभी तक गाँव में।

छोड़ अंग्रेजी कहीं ना बोलने हिंदी लगे,
इसलिये मुन्ने की दादी है अभी तक गाँव में।

जींस के कंफर्ट लेवल में कदम जाते बहक,
सध रही घूँघट पे गगरी, है अभी तक गाँव में।

शहर में बबुआ बिजी चौबीस घंटे और माँ,
होली दीवाली में खाली है अभी तक गाँव में।

हमको तो फुर्सत नही, मुन्नी से, शीला से मगर,
पचरा, चैती, फाग, कजरी है अभी तक गाँव में।

भात से निकला पसावन*, दूध सा रधिया को दे,
ऐंड़ दानी बन के फिरती है अभी तक गाँव में।

झट से इमली तोड़ चटनी पीसती, वो सिल पड़ी,
याद बूआ की दिलाती है, है अभी तक गाँव में।

फेरियों की, सेंदुरों की, दुलहनों- की याद ले,
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में।

और ये शेर पूज्य श्री हठीला जी के लिये-
तुम गये ,तो ले गये, चौपाल, चौबारा मेरा,
पर कसकती गूँज फिरती, है अभी तक गाँव में।

* पसावन- चावल से निकला माँड़, जिसे हमारी तरफ पासावन कहते हैं और गरीब तबका चीनी मिला कर बच्चों को दूध कह कर दे देता है

हूं, छोड़ अंग्रेजी कहीं ना बोलने हिंदी लगे । कंचन ने एक शेर में वो बात कह दी है जिसे कई कई बार कई कहानीकारों ने आठ आठ दस दस पेज की कहानियों में कहा है ।   गहरे तक उतर गया शेर । और गिरह में मिसरा उला तो जैसे किसी फ्लैश बैक से घूम रहा है । ठिठुरते हाथों से मेड़ पर कुदाली से आलू खोजती भूख का बहुत मार्मिक चित्रण है । तुम गये तो ले गये चौपाल चौबारा मेरा, कंचन तुमने मेरे मन की बात कह दी है । हठीला जी अपने साथ मेरा चौपाल चौबारा सब तो ले गये । बहुत खूब ।

अंत में अंकित सफर की ओर से एक चुटकुला प्रकाश अर्श के लिये

भगवान : मांग ले बेटा कुछ भी मन्‍नत मांग ले ।

भक्‍त : प्रभु मुझे फिर से कुंवारा बना दो ।

भगवान : पुत्र, मैंने मन्‍नत का कहा था, जन्‍नत का नहीं ।

तो मिलते हैं अगले अंक में कुछ और रचनाकारों के साथ । दाद देते रहिये और आनंद लेते रहिये ।

39 टिप्‍पणियां:

  1. shahr kee ranginiyon men.......
    is sher men dyodhi ka istemal bahut achchha laga

    apni fitrat ke ......
    chhanv buniyaden banatin .....
    ek alag hi bat hai is sher men

    bahut khoobsoorat ash'aar hain arsh khoob kgush raho aur isi tarah khoob achchha likhte raho

    khoobsoorat matle se kanchan ne shuruaat ki hai ,,aage badhne men samay lagega :)

    os men bheegi ........
    bahut hee sateek chitran hai majbooriyon kaa

    bhaat se nikla pasawan .....
    bada maza aya ye shabd padh kar hamare ghar men bhi ye shabd bola jata hai

    bahut sundar kanchan !!
    snehaasheesh !!

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  2. गज़लें हैं की भावनाओं के समुन्दर!!
    दोनों बच्चों को बहुत बहुत बधाई इतने ज़बरदस्त लेखन पे!
    क्या सुबीर भैया! आप भी रहस्मयी बातें कर के ... छोड़ गए इस पोस्ट में :)
    =======
    अर्श का हर शेर वाह वाह कहने पे मजबूर कर रहा है! केवल बाव ही पुख्ता और उम्दा नहीं है, मिसरों का गठन और गुंथन भी लाजवाब है!
    लहलहाती फसल कट जाए... ये कितनी सच्ची बात है मैंने तब जाना जब एक ग्राम्य बाला के साथ ६ साल जीवन बिताया. इस शेर के लिए ढेर दाद कबूल करो अर्श!
    "यूँ गया वो साथ अपने...". बहुत नाज़ुक शेर!
    "ज्यूं खड़े हों ख़ुद पिता यूँ धैर्य साहस से खड़ा; इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में" इस अप्रतिम शेर को नमन ! इतना सूक्ष्म विचार और उसे इतनी सुन्दरता से कहना! ये सब के बस की बात नहीं!
    शहर तेरा, ख़ाब तेरे.... बहुत खूबसूरत! भंवर सा बनाते हुए शब्दों का सुन्दर नियोजन!
    एक पगडंडी ही ज़ाती.... वाह!
    पाँव कीचड़ ... बहुत सच्चा!
    अपनी फितरत के मुताबिक़.... बहुत बहायामी शेर है ये.

    शाबाश!
    ---------
    कंचन हमेशा कुछ अछूते बिम्ब ले के आती है. शब्द शब्द से जैसे भाव की चाशनी टपक रही होती है. बात भी साफ़ साफ़, जो मन में है वही. उसके लेखन में मुझे बनावट नहीं दिखती. इसलिए हमेशा मेरा मन उसे पढ़ने को लालायित रहता है. उर्मिला वाली उसकी बात मैं अब तक नहीं भूली हूँ.
    मलता सुन्दर! "रिश्तों की झांकी..." मिसरा उला तो लाजवाब!
    पैलगी पढ़ के आनंद आ गया!
    "ओस में भीगी हुई मुदर पे आलू ढूंढते हुए हाथ ..." अगर आज के नौजवानों को दीख रहे हैं तो मन आश्वस्त होता है...बहुत सार्थक और दमदार शेर है ये कंचन! आशीष!
    "छोड़ अंग्रेज़ी...." इस शेर में जो कटाक्ष है, जो विद्रोह है -- उसको नमन!
    " जींस के कम्फर्ट लेवल...." ये तो मुझे भी जो समझना चाहिए वो वाली बात लिख दी...मैं तो आज तक हैरान हो ज़ाती हूँ जब भारत में हर तरह की साड़ी बाँधे, चुनरी चढ़ाये लोगों को आराम से सारा काम करते देखती हूँ. बहुत पैना और सुन्दर शेर. कम्फर्ट लेवल का तीखा इस्तेमाल! शाबाश! जब युधिष्ठरी सबक याद हो जाएगा तो तुम्हें मेल लिखूंगी कंचन!
    "शहर में बबुआ बिज़ी..." वाले शेर के मिसरा सानी में 'भी' छूट गया है टाइप होने में क्या...? तुमने देसी शब्दों को खूब सही अपनाया है इस ग़ज़ल में कंचन!
    "हमको तो फ़ुर्सत नहीं है..." क्या आज तो कलम को कटारी बना के ही निकली हो कंचन तुम! वाह क्या लिखा है ! वैसे में तो बिलकुल गिल्टी नहीं हूँ इस अपराध की :) सो खुश हूँ :)
    "भात से निकला पसावन..." बहुत मार्मिक शेर. आशीष लो! ऐंड का मतलब नहीं समझी मैं. लिखना तुम !
    "झट से इमली तोड़... क्या बिम्ब है...तुमने तो खुश कर दिया!
    "फेरियों, ..." इतना सुन्दर चित्र की क्या कहों! आज कई बार तुम्हारी ग़ज़ल पढूंगी और खुश होउंगी :)
    " ले गए चौबारा...." क्या लिख दिया... इस पे निशब्द!
    तुमको आशीष दूँ या नमन करूँ मंचन, असमंजस में हूँ.
    ढेर सा प्यार संभालो! जीती रहो बच्चे!
    ----------
    सुबीर भैया आपके ये सारे बच्चे अब बहुत ही अच्छा लिखने लगे हैं सो आपको डबल मुबारकबाद!
    सादर शार्दुला

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  3. वाह वाह वाह वाह. क्या खूब ग़ज़लें कही हैं अर्श और कंचन ने.... निशब्द कर दिया है. कई बार पढ़ चूका हूँ.
    प्रकाश अर्श:
    मतला! आहा.. "माँ इधर ड्योढ़ी पे बैठी है..","लहलहाती फसल कट जाए..","पास मेरे मेरा माजी है..","एक पगडण्डी ही जाती है..","पाँव कीचड़ से सने हैं.." लाजवाब.
    कंचन:
    क्या मतला है. और फिर "खोजती आलू कुदाली है..","साध रही घूंघट पे गगरी है","शह्र में बबुआ बीजी चौबीस घंटे और माँ..","भात से निकला पसावन.","चटनी पीसती वो सिल.." कमाल के शेर और फिर गिरह क्या खूब लगाई है. क्या कहने..
    इतने खूबसूरत शेर वही कह सकता है जिसने गाँव को करीब से जाना है.
    प्रकाश अर्श और कंचन को हार्दिक बधाई.

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  4. Are aaj to bahut saari baaten hain.

    pahle khub ras le lun, har ik sher ka.

    Hatheela Smriti Ye tarahi to bahut khaas ho gaya hai. Aadarniya Ranjana jee ko dekhte hee main chaunk pada, jarur kuchh khaas baat ho sakti hai.

    खैर पहले कुछ शेर जो अंदर तक उतर गये ...

    माँ इधर ड्योढी पे बैठी है...
    छाँव बुनियादें बनाती है...

    मतला और गिरह मे स्थिर बात, गज़ल सचमुच खास है.

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  5. फस्ल कट जाए तो फिर डोली उठे...
    किस तरह की ये तरक़्क़ी देश में आई कि बस...

    तन यहाँ तो है मगर जी है अभी तक गाँव में... ये तो भी सालता रहता है.

    अर्श भाई को डबल डबल बधाई !!

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  6. वाह कंचन दी वाह
    क्या ग़ज़ल उतरी है यहाँ...!

    सुदंर मतले से शुरु
    दुःख और बदलाव का जो चित्रण किया है सब शेर वजनी है

    जवाब देंहटाएं
  7. छोड़ अंग्रेजी कहीं ना बोलने हिंदी लगे,
    कंफर्ट लेवल में कदम बहकने की जो बात है और उधर होली दीवाली में खालीपन जब कोई अपना ससमय न लौटे.

    भात से निकला पसावन, दूध सा रधिया को दे,
    क्या दर्द मे भी मुस्कान है.

    दादी की याद आ गई, जो चूल्हे पर भात पसाती थी.
    झट से इमली तोड़ चटनी पीसती, वो सिल पड़ी,
    ये भी मेरी बूआ करती हैं
    गिरह यादगार है.

    जाने वाले गये और ले गये, चौपाल, चौबारा साथ मे.

    बहुत खूब!

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह रे अंकित...खुद जिस जन्नत को छोड़ने के प्रयास में छटपटा रहे हो उसी जन्नत को छोड़ कर जाने वाले पर व्यंग बाण चला रहे हो...इसे कहते हैं अंगूर खट्टे हैं...अर्श आप अंकित के चुटकुले को नज़र अंदाज़ कर देना, वो चुटकुला नहीं किसी असफल इंसान की भड़ांस है...:-))

    मुझे ब्लॉग जगत के इस अति संवेदन शील युवा शायर के शादी में बंधने का जब समाचार मिला मैं तब से आनंदित हो रहा हूँ...कंचन ने ये बहुत नेक काम किया है...इसके लिए उसकी जितनी प्रशंशा की जाय कम है...जियो कंचन जियो...ब्लॉग जगत में ऐसा चमत्कार सिर्फ और सिर्फ तुम ही कर सकती हो...तुम्हारे बाकी के कुंवारे भाई भी अब आस लगाये तुम्हारी और टकटकी बांधे बड़ी हसरत से देख रहे हैं...मानो कह रहे हों "हमारा भी उद्धार कर दो न बहना..."

    अब बात ग़ज़लों की : अर्श की शैली, जब से उसे पढना शुरू किया है, मुझे हमेशा सबसे अलग और दिलकश लगी है. उसके शेरों में ताजगी का अहसास हुआ है. इस तरही में उसने ढेरों शेर ऐसे कह डाले हैं जिस से मेरी बात की सच्चाई सामने आती है. "माँ इधर ड्योढ़ी पे बैठी...",लहलहाती फ़स्ल...", तरही वाला मिसरा..." एक पगडण्डी ही जाती..."आदि शेर इस ग़ज़ल को बार बार अप्धने को मजबूर करते हैं...वाह...अर्श वाह...जियो...बहुत बहुत बधाई अर्श, इस ग़ज़ल के लिए और उस ग़ज़ल के लिए भी जिसे तुम आने वाले समय में गुनगुनाने जा रहे हो...

    चुलबुली, नटखट अपने भाइयों की दुलारी ये प्यारी सी लड़की कंचन जब कलम हाथ में लेकर शेर कहना शुरू करती है तो बड़े बड़े उस्तादों को मुंह छुपा कर इधर उधर दुबक जाने में ही अपनी भलाई नज़र आती है...माँ सरस्वती की लाडली इस बिटिया को लिखना शायद घुट्टी में ही मिला है...क्या कमाल के शेर कहें हैं...पढ़ कर मुंह खुला का खुला रह जाता है...देशज शब्दों की भरमार से पूरा गाँव समेट दिया है इस तरही में कंचन ने..."पैलगी , आशीष, यारी...", पचरा, चैती, फाग...",भात से निकला पसावन..." फेरियों की सेंदुरों की..." आहा हा...गाँव की सौंधी मिटटी की खुशबू लिए ये शेर लाजवाब है...शाबाश कंचन तुम जो करती हो सबसे हट के करती हो...और क्या खूब करती हो...तुम्हारे भाई सोच रहे होंगे...इस बहन से कहीं भी पार पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है...पूरी पक्की असली डान है डान...खुश रहो.

    नीरज

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  9. क्या खूबसूरत ग़ज़ल सुनाई है आज तो..
    "लैपटॉप में ताकती नज़रों में समां चाहे जो भी हो,
    पर आँखों का समंदर अभी तक है गाँव में"

    आभार

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  10. गज़लों के बारे मे तो कहना ही क्या दोनो की बेजोड हैं …………बाकी जो अधूरा छोडा था सुबीर जी ने वो समझ आ रहा था और कमेंट मे नीरज जी ने बता ही दिया …………अर्श जी को हार्दिक बधाई और शुभकामना……जोडी सलामत रहे ……………जानकर अत्यधिक प्रसन्नता हुयी। बस छुपाकर रखा और किसी भी ब्लोगर को नही बताया कम से कम जिन्हे दोस्त मानते हैं उन्हे भी नही तो थोडा दुख भी हुआ मगर कोई गिला शिकवा नही बस खुशी ही खुशी।जीवन खुशियों से भरपूर हो यही कामना करतीहूँ।

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  11. गज़लों के बारे मे तो कहना ही क्या दोनो की बेजोड हैं …………बाकी जो अधूरा छोडा था सुबीर जी ने वो समझ आ रहा था और कमेंट मे नीरज जी ने बता ही दिया …………अर्श जी को हार्दिक बधाई और शुभकामना……जोडी सलामत रहे ……………जानकर अत्यधिक प्रसन्नता हुयी। बस छुपाकर रखा और किसी भी ब्लोगर को नही बताया कम से कम जिन्हे दोस्त मानते हैं उन्हे भी नही तो थोडा दुख भी हुआ मगर कोई गिला शिकवा नही बस खुशी ही खुशी।जीवन खुशियों से भरपूर हो यही कामना करतीहूँ।

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  12. # छोड़ कर आया हु जब से घर तो मैं बैचैन हूँ
    # तन यहाँ तो है मगर जी हैं अभी तक गाँव मैं


    वाह वाह क्या कहा है प्रकाश जी, ऐसा लगा मेरे दिल की बात आपने कह दी हो बहुत खूब .

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  13. ओस में भीगी हुई मेड़ो पे ठिठुरे हाथ से

    खोजती आलू कुदाली हैं अभी ताज गाँव मैं

    वाह वाह बहुत खूब दिल को छु गया शेर कंचन जी
    ...

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  14. अर्श भाई सबसे पहले तो आपको बहुत बहुत बधाई| वेलकम टू दी क्लब|
    गज़ल कि किस् तरह से तारीफ़ करू कहते नहीं बन रहा है....ड्योढ़ी पर बैठी माँ...फसल काटने के बाद डोली कि आस लगाए हुए बैठा लड़की का बाप...धूप का आवारा फिरना और छाँव का बुनियादें बनाना...गिरह को घर के आधार स्तंभ , पिता से जोडना और गाँव तक जाने वाली पगडण्डी...सब मिलाकर एक लाजवाब, अद्भुत और बेमिसाल गज़ल की बुनियाद रखते हैं...आप ऐसे ही लिखते रहे...जन्नत मन्नत कि चिंता छोडकर....क्योंकि अगला नंबर उन्ही का है....

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  15. कंचन दीदी आपको भी इस सत्प्रयास(अर्श भाई को गिरफ्तार करवाने) के लिए ढेर सारी बधाई....

    आपकी ग़ज़लों के बिम्ब मुझे हमेशा ही अभिभूत करते रहे हैं| आज भी
    पैलगी आशीष यारी....
    खोजती आलू कुदाली...
    शह्र में बबुवा....
    पचरा चैती फाग कजरी.....
    गिरह का शेर ....ज़हन में उसी बरगद के पेड़ कि याद दिलाता है जहाँ महिलायें वट सावित्री के समय जाती है|
    हठीला जी को समर्पित शेर वही समझ सकता है जिसने उनके साथ चौपाल लगाईं हो| सच्ची श्रद्धाजलि| ढेर सारी बधाइयां|

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  16. सर्वप्रथम तो आसन्न समारोह हेतु हार्दिक बधाइयाँ.
    जिन सौभाग्या को प्रकाश अर्श की संवेदनाओंपगी ग़ज़ल समर्पित है वो तो अवश्य ही प्रमुग्ध हों, मग़र उत्फुल्ल तो हमसभी हुए हैं, हर तरह से.. . !
    इस शुभ-सूचना के अवगुंठित स्वरूप को साझा करने के लिये पंकजभाईजी को सादर धन्यवाद. स्नेहिल अभिभावकों का दायित्त्व वाकई अद्भुत होता है.

    प्रकाश अर्श के ग़ज़ल का प्रत्येक शे’र गठा हुआ और बावज़्न है. एक तरह से इस गज़ल में सम्बन्धित हर पहलू को बाँधने की कोशिश हुई है. यह सदा से एक शायर के लिये कसौटी हुआ करता है.
    मतले ने तो एकदम से गाँव में ही पहुँचा दिया. बेखौफ़ चहचहाती हुई चिड़ियाँ के मनोरम कलरव को सोच कर ही मन झूम गया.. . वाह !
    आगे के अश’आर सीधे-सीधे झकझोर जाते हैं.
    चाहे शहर की रंगीनियाँ हों.. या अपनी फितरत के मुताबिक.. या फिर, शह्र तेरा, ख़ाब तेरे, जश्न तेरा..
    इन सारी भावनाओं के बावज़ूद शायर गाँव की वर्तमान दशा और सचाई से आँख नहीं हटाता. बहुत खूब !
    जिन शे’रों ने निश्शब्द कर दिया है वो हैं
    लहलहती फस्ल कट जाए तो.. और किस तरह की ये तरक्क़ी देश में .. .
    भाई, वाह ! इस मुकम्मल ग़ज़ल के लिये बहुत-बहुत बधाई.

    ****

    कंचन चौहान का नाम मेरे लिये नया नहीं रह गया है.
    जहाँ अर्श के शे’र शायर की स्व-प्रकृति के अनुरूप ड्यौढ़ी और आस-पास की बातें करते हैं, वहीं कंचन घर-परिवार, संबन्ध, व्यवहार, संस्कार, रसोई से अपने बिम्ब उठाती है.
    ईश्वर कितने संयमित ढंग से सारा कुछ नियत करता है ! दिल को छू गयी यह बात !

    मतले की मैं जितनी बातें करूँ, जितनी तारीफ़ करूँ, कम है. कई-कई दफ़े पढ़ गया हूँ और हरबार कंचन की सोच पर मुग्ध होता हूँ. वाह.. वाह !!
    आगे के सभी अश’आर मूक इशारा मात्र नहीं करते बल्कि उनकी आवाज़ सीधे कानों में पहुँचती है. देखिये न क्या कहा है -
    जींस के कम्फ़र्ट लेवेल में कदम जाते बहक
    सध रही घूँघट पे गगरी, है अभी तक गाँव में

    वाह ! कितना कुछ कितने महीन ढंग से कही गई है !! वाह-वाह !!!
    या फिर, भात से निकला पसावन..
    भात ! कितना आत्मीय लगता है यह शब्द ही ! कूकर के इस ’जुग’ में भात के पसावन को तो आज की पीढ़ी भूल ही गई है. पसावन में नमक डाल कर रस ले ले कर हम माँड़-भात खाया करते थे. अभी हाल तक !
    आज कंचन के कारण अहसास हुआ, वो रसभरा घोर संतुष्टिकारक समय कितना चुपके से अतीत बन चुका है.
    या, बुआजी की याद दिलाती वो सिल-बट्टी ! बहुत ही सधी हुई निग़ाह पाया है कंचन, तुमने. शुभ-शुभ !
    और, मैं गिरह के शे’र की चर्चा न करूँ यह मेरी भावनात्मक कृतघ्नता होगी. हृदय की गहराइयों में बसा ’घर-परिवार’ ही इस तरह के शे’र निकलवा सकता है. कंचन बहुत-बहुत बधाई !

    पूज्य हठीलाजी की स्मृति को मान देता शे’र
    तुम गये तो ले गये चौपाल चौबारा मेरा
    पर कसकती गूँज फिरती है अभी तक गाँव में

    भावुक हृदय के विछोही उद्गार की तरह हूक भरता विवश दीख रहा है.

    आज के दोनों हस्ताक्षरों को मेरा हार्दिक धन्यवाद और मेरी ढेर सारी शुभकामनाएँ.

    सादर
    --सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)--

    जवाब देंहटाएं
  17. गुरूवर,

    दोनों ही गजलें खूबसूरत और उअन पर इतनी अच्छी टिप्पणियाँ की लगे कि अभी गज़ल पढें या टिप्पणी।

    दिल खोल के मिली हुई सराहना ही यह बताती है कि तरही की ऊँचाईयाँ जो, सर जी(नीरज जी) ने कही थी पिछले अंक के सन्दर्भ में।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  18. भाग्‍यशाली हो अर्श, हमारे लिये तो कोई माला लिये खड़ी थी यहॉं स्‍वयं 'माला' तत्‍पर है, अब तो तुम माला का माल बनकर मालामाल हो गये समझो। फरवरी आ गया है फ़स्‍ल कटी ही जानो। भाई अपनी उम्र में रहो, ये 'यूँ गया वो....' जैसे गहरे उतरते शेर हमारी उम्र के लिये छोड़ दो। 'छॉंव बुनियादें.. जैसी गहरी सोच; क्‍या बात है; ओर फिर 'शह्र तेरा....' की बेफि़क्री तो किसी मुशायरे में पढ़कर देखना, मुशायरा थम जायेगा। 'किस तरह की यह तरक्‍की...' अच्‍छा सरोकार है। और भाई 'पॉंव कीचड़ से सने..' की बात तो यह है कि:
    पॉंव कीचड़ से नहीं भरता अगर वो पेट को तेरे निवाला मिल न पाता।

    'कीमती रिश्‍तों की ...' और 'ओस में भीगी...' ये दो शेर पढ़कर ही मंत्रमुग्‍ध हूँ, और फिर ऐसे ग्रामीण संदर्भ कि एक-एक दृश्‍य सजीव हो उठे।
    बधाईयॉं ही बधाईयॉं। पंकज भाई की छाती चौड़ी हो गयी गुरुकुल से निकले ऐसे अश'आर से।

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  19. प्रकाश अर्श की गज़लों के शुरुआती तीन शेर और मक्ते का शेर गाँव की माटी की छुअन से सराबोर खूबसूरत बन पड़े है !

    कंचन चौहान का पहला , दूसरा , और तीसरा शेर भी गाँव की माटी की दिली छुअन से सराबोर है ! मुझे लगता है तीसरे शेर में शायद 'हिन्दी' और "अंग्रेज़ी " शब्दों का क्रम या तो गलती से उलट हो गया है, या फ़िर दूसरा अर्थ लिया जाये तो अंग्रेज़ी सीखने की आधुनिकता की दौड़ से भी जोड़ा जा सकता है !

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  20. अर्श को कल रात ही फोन पर चेतावनी दी थी कि अभी भी मौका है बच्चे...एकबार बंध गया तो फिर गया काम से| माना नहीं और अब तो अंगूठी भी पहना दी|

    खैर, ग़ज़लें तो दोनों ही पहले से सुन रखी थी| आज बस बधाइयाँ ही बधाइयाँ| अभी अभी रंजना दी से भी बात हुयी...एक शरमीले शायर की सासू माँ बनने पर
    फूले न समा रही हैं|

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  21. गौतम...गलत बात...आप गुरूजी बैंगन खाएं...बच्चों को उपदेश सुनाएँ....अंकित की बात तो समझ में आती है लेकिन तुम तो ऐसे न थे रे...

    नीरज

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  22. नीरज जी, आप की टिपण्णी में इस जन्नत के छूटने का ग़म बहुत गहरे से दिख रहा है. :) :) और वैसे अंगूर तो चखने के बाद ही खट्टे लगते हैं मतलब शादी के बाद. :) :) आप से मुलाकात किये बहुत वक़्त बीत गया, कब आऊं मिलने..............

    अर्श भाई, ढेरों बधाइयाँ.

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  23. अर्श भाई, आजकल एक से बढ़कर एक ग़ज़ल कह रहे हैं, जिनमे एक तो अप्रैल में मुकम्मल होने वाली है. :)
    उफ्फ्फ ©, बहुत खूब शेर निकालें हैं, आपकी आवाज़ में इसे पहले तो सुन ही चुका हूँ, आज फिर से इन शेरों से गुज़र के दोबारा जी रहा हूँ.
    "शहर की रंगीनियों में जा के बेटा..........", "लहलहाती फस्ल कट जाए तो फिर डोली उठे...........", "अपनी फितरत के मुताबिक़ धूप आवारा फिरे.........", "पाँव कीचड में सनें हैं और हल कन्धे पे है...........". मज़ा आ गया. बधाइयाँ जी बधाइयाँ.

    कंचन दीदी, ने आखिरकार अर्श भाई की लगाम कसवा ही दी. :) और उस पे गुरुदेव का इस वाकया को अधूरा छोड़ देना..........."उसे क्‍या मालूम कि....।"
    गाँव के माहोल पे ग़ज़ल लिखनी हो, और कंचन दीदी................ Lethal combo उधारी से एक और उफ्फ्फ ©
    "ओस में भीगी हुई मेंड़ों पे ठिठुरे हाथ से,.....................", "छोड़ अंग्रेजी कहीं ना बोलने हिंदी लगे,.", "जींस के कंफर्ट लेवल में कदम जाते बहक,..............", "शहर में बबुआ बिजी चौबीस घंटे और माँ,...............", "हमको तो फुर्सत नही, मुन्नी से, शीला से मगर,...................", "भात से निकला पसावन*, दूध सा रधिया को दे,........", और तिस पे जबरदस्त गिरह.
    हठीला जी को समर्पित शेर के बारे में क्या कहूं, बहुत कुछ समेटे हुए है. वाह वा

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  24. भाईयों एवं दीदियों, सादर प्रणाम छोटे भाइयों को स्नेह, छोटी बहन लगता तो नही कोई है इस गुरुकुल में, अगर हो तो वो भी रख ले प्रेम

    सारी जी, जरा देर हो गई, इधर आने में.. उ का है ना कि हम पटना गये थे ना, भाई का इंगेजमेंटवा था। और ई भासा में जो थोड़ा बहुत गलती से मिस्टेक हो जा रहा है, उसे क्षमा कीजियेगा कि उ वाला कहनिया सुने हैं ना कि राबड़ी देबी को क्लिंटन के हियाँ अंग्रेजी पढ़ने को भेजा गया तो जब एक हफ्ता बाद लालू जी अपनी पत्नी को फोन लगाये तो उधर से आवाज आई " हाँ जी लालूजी कहिये... हम क्लिंटन बतिया रहे हैं, अमरीका से, ....राबड़ी भाभी ठीकै हैं औ हम उनको अंग्रेजी नही सिखा पाये लेकिन ऊ हमें बिहारी जरूर सिखा दी हैं...."

    तो उहै कुछ हो गया है अभी....., टेंसन ना लीजियेगा, थोड़े दिन में अपने आपै बुखार उतर जायेगा....!!

    तो क्या है ना कि अर्स की इंगेजमेंट में हमारी तो चाँदी ही चाँदी थी...लीजिये आपो लोग ना..कहने लगे कि "पहले सोना थी अब भाई के मैरिज तय होते ही चाँदी हो गयी, ये परमोसन है कि डिमोसन..??"

    आपौ लोग ना किसी भी चीज का भावना नही देखते सीधे लिटरली मीनिंगियै निकालने लगते हैं। हमारा मतलब है कि एक तो हम दूल्हे की बहन थे, दूसरी तरफ दूल्हे की ममिया सास भी बहन बानये पड़ी थीं तो गेस्ट, होस्ट सब ना हम अपुनै थे....!!

    औ गुरू जी भी हमारे देखिये ना क्या क्या प्रस्न कर देते हैं, हम से पूछ रहे थे कि " इंगेजमेंट के अकेजन पर दलाल भी जाते हैं का।" तो हम कहे "अरे गुरू जी इतना बड़ा गुरुकुल चला रहे हैं औ इहौ नही जानते कि दलाली का रकम तब्बै ना मिलता है, जब सब कुछ सेटिल हो जाये। तो हम एतना दिन से जो मेहनत कीये थे उसका मेहनताना लेने ना जाते का....??"

    तो भईया ई है कि कस्टमर बहुत अच्छे मिले हमें दूनो तरफ से कउनो कमी नही था...! दूनो तरफ से मार पइसा लुटाया जा रहा था औ हम बटोरे पड़े थे।

    लेकिन बस ईहै नही समझ में आया कि हम अऊर सब जितना डीलिंग फीलिंग किये ऊसमें सबमें तो दुलहनिया सरमाती थी, ई वाली डीलिंग में पता नही काहें दुलहवा सरमा रहा था। हम कई बार कहबो किये " भक् बुरबक..! दुलहिनया तो कनखिये से देखे जा रही है औ तुम पता नही कहाँ देख रहे हो, उधर जिधर सब लईका लोग बईठे हैं।" मगर मनबै नही किया... बकिर ई है ना कि जौन गाना गाया है ना दुलहवा "होंठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो" ऊ तो एकदम्मै फीट था सिचुएसन पर...!! जब दुलहवा कहा कि "जग ने छीना मुझसे, मुझे जो भी लगा प्यारा।" तो दुलहनिया धीमे से जो मुस्की मारी है मनै मन, कहि के कि "हमै कोई छीन के दिखाये तब ना जाने...." और फिर जब कहा है सायर ने कि " तुम हार के दिल अपना, मेरी जीत अमर कर दो" अरे तो पूछिये ना कि का सीन था....! हम तो एक दम इमोसनलै हो गये।

    खैर जनहित में ई सब फंक्सन अकेजन का फोटू हमारे फेसबुक प्रोफाईल पर जारी किया जायेगा जिससे सब लोग इस सुभ अवसर की फोटू का आनंद ले सकें....!!

    आपै सभी की
    बहिन
    कंचन

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  25. भाईयों एवं दीदियों, सादर प्रणाम छोटे भाइयों को स्नेह, छोटी बहन लगता तो नही कोई है इस गुरुकुल में, अगर हो तो वो भी रख ले प्रेम

    सारी जी, जरा देर हो गई, इधर आने में.. उ का है ना कि हम पटना गये थे ना, भाई का इंगेजमेंटवा था। और ई भासा में जो थोड़ा बहुत गलती से मिस्टेक हो जा रहा है, उसे क्षमा कीजियेगा कि उ वाला कहनिया सुने हैं ना कि राबड़ी देबी को क्लिंटन के हियाँ अंग्रेजी पढ़ने को भेजा गया तो जब एक हफ्ता बाद लालू जी अपनी पत्नी को फोन लगाये तो उधर से आवाज आई " हाँ जी लालूजी कहिये... हम क्लिंटन बतिया रहे हैं, अमरीका से, ....राबड़ी भाभी ठीकै हैं औ हम उनको अंग्रेजी नही सिखा पाये लेकिन ऊ हमें बिहारी जरूर सिखा दी हैं...."

    तो उहै कुछ हो गया है अभी....., टेंसन ना लीजियेगा, थोड़े दिन में अपने आपै बुखार उतर जायेगा....!!

    तो क्या है ना कि अर्स की इंगेजमेंट में हमारी तो चाँदी ही चाँदी थी...लीजिये आपो लोग ना..कहने लगे कि "पहले सोना थी अब भाई के मैरिज तय होते ही चाँदी हो गयी, ये परमोसन है कि डिमोसन..??"

    आपौ लोग ना किसी भी चीज का भावना नही देखते सीधे लिटरली मीनिंगियै निकालने लगते हैं। हमारा मतलब है कि एक तो हम दूल्हे की बहन थे, दूसरी तरफ दूल्हे की ममिया सास भी बहन बानये पड़ी थीं तो गेस्ट, होस्ट सब ना हम अपुनै थे....!!

    औ गुरू जी भी हमारे देखिये ना क्या क्या प्रस्न कर देते हैं, हम से पूछ रहे थे कि " इंगेजमेंट के अकेजन पर दलाल भी जाते हैं का।" तो हम कहे "अरे गुरू जी इतना बड़ा गुरुकुल चला रहे हैं औ इहौ नही जानते कि दलाली का रकम तब्बै ना मिलता है, जब सब कुछ सेटिल हो जाये। तो हम एतना दिन से जो मेहनत कीये थे उसका मेहनताना लेने ना जाते का....??"

    तो भईया ई है कि कस्टमर बहुत अच्छे मिले हमें दूनो तरफ से कउनो कमी नही था...! दूनो तरफ से मार पइसा लुटाया जा रहा था औ हम बटोरे पड़े थे।

    लेकिन बस ईहै नही समझ में आया कि हम अऊर सब जितना डीलिंग फीलिंग किये ऊसमें सबमें तो दुलहनिया सरमाती थी, ई वाली डीलिंग में पता नही काहें दुलहवा सरमा रहा था। हम कई बार कहबो किये " भक् बुरबक..! दुलहिनया तो कनखिये से देखे जा रही है औ तुम पता नही कहाँ देख रहे हो, उधर जिधर सब लईका लोग बईठे हैं।" मगर मनबै नही किया... बकिर ई है ना कि जौन गाना गाया है ना दुलहवा "होंठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो" ऊ तो एकदम्मै फीट था सिचुएसन पर...!! जब दुलहवा कहा कि "जग ने छीना मुझसे, मुझे जो भी लगा प्यारा।" तो दुलहनिया धीमे से जो मुस्की मारी है मनै मन, कहि के कि "हमै कोई छीन के दिखाये तब ना जाने...." और फिर जब कहा है सायर ने कि " तुम हार के दिल अपना, मेरी जीत अमर कर दो" अरे तो पूछिये ना कि का सीन था....! हम तो एक दम इमोसनलै हो गये।

    खैर जनहित में ई सब फंक्सन अकेजन का फोटू हमारे फेसबुक प्रोफाईल पर जारी किया जायेगा जिससे सब लोग इस सुभ अवसर की फोटू का आनंद ले सकें....!!

    आपै सभी की
    बहिन
    कंचन

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  26. अरे वीनस कहाँ हो, देखो अंकित क्या सब कह रहा है.
    और असल रंग तो अब जमा है कंचन दी ने सारे पत्ते खोल दिए, तरही खुशबू दूर तक फ़ैल गयी है.
    अर्श भाई (दुलहवा सुन कर कैसा लगा? हो हो )

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  27. कंचन...कमाल किये हो तुम बिटिया...ऐसी बिहारी तो बिहार वाले भी न बोलते होंगे...तुमने तो दिल जो है न एक दम ही खुस कर दिया...जियो...इब तनिक ई अंकित्वा ई वीनस्वा पे तो भी ध्यान धरो बिटिया...देखो कैसे टुकुर टुकर निहार रहे हैं तोरी ओर...:-))
    नीरज

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  28. @नीरज भाई
    आप इतने बड़े कब से हो गये कि कंचन बिटिया कहने लगे। अरे भाई ये रिश्‍ते-विश्‍ते के काम तो मौसी, चाची, बुआ कराती हैं, बिटिया लो कब से रिश्‍ते कराने लगीं।

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  29. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  30. prakashji bahut khoobsoorat ghazal ke liye aur sagaaee ke liye bahut-bahut badhaaee.
    .
    kanchan ji kee ghazal kee bhaashaa men jo gaanv jhalakaa hai,bahut
    khoob. badhaaee, badhaaee, badhaaee.

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  31. वाह वाह वाह वाह ... मैं तो जान कर देरी से आया क्योंकि मुझे लग गया था कोई तो राज है जिसे गुरुदेव खोलेंगे चाहे देरी से ही सही ...
    बहुत बहुत बधाई प्रकाश जी को, गुरुदेव आपको और गुरुकुल के सभी साथियों को ... आज मुझे पिछले साल के वेलेंटाइन से एक दिन पहले वाली शाम याद अ रही है ... इस बार प्रकाश जी की खरीदारी जोरों शोरों से चल रही होगी ...
    शायद ये शेर ... लहलहाती फसल कट जाए तो फिर डोली उठे ... कुछ सोच के ही लिखा होगा अर्श जी ने ...
    ये तो अलग ... पर बाकी शेरो का कमाल तो देखने वाला है ... संजीदगी और गहरी संवेदना लिए हैं शेर ... चाहे शहर की रंगीनियों ... यूं गया वो साथ अपने ... किस तरह की ये तरक्की ... या फिर चोद कर आया हूँ जब से ... घर से दूर रहने वालों के लिए तो ये शेर संजीवनी बन के आते हैं ... गिरह वाला शेर सीधे दिल में उतर जाता है ...
    अब कंचन के बारे में क्या कहूँ ... लगता है जैसे लाडो हो पर इतने बड़े बड़े काम (रिश्ता करवाना) आसानी से कर लेती है ... और इतनी परिपक्वता इसके शेरो में भी नज़र आती है ...
    मतले का शेर ही इतना धमाकेदार है की क्या कहूँ ... हर शेर वाह वाह करवा लेता है अपने आप ही ... चाहे छोड़ अंग्रेजी कहीं ना बोलने हिंदी लगे ... या फिर जींस के कम्फर्ट लेवल ... हमको तो फुर्सत नहीं मुन्नी से शीला से मगर ...
    गिरह वाला शेर भी कमाल का बाँधा है ... और हठीला जी को समर्पित शेर तो जैसे उनकी गूँज की ही याद करा है ...

    अंत में गुरूजी आपकी चेतावनी चुटकले के रूप में शायद समझ नहीं पाए प्रकाश जी ... बाद में बहुत याद करेंगे जब मेरिज सर्टिफिकेट में एक्सपाइरी डेट नज़र नहीं आयगी ...

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  32. प्रकाश भाई शायद हमारे गृह नगर,मुजफ्फरपुर से ही आते हैं.इसलिय हमारा उनसे 'जवारी' का रिश्ता बनता है.सो सगाई तो चुपके से कर लिए पर उम्मीद है कि शादी में हमारे हक़ की अनदेखी नहीं करेंगे. बधाई उनको दिल के तहखानों से है...

    अब ग़ज़ल की बात तो पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब है.हर शेर शेरियत से सराबोर.सबसे ज्यादा पसंद आया ये शेर 'लहहाती फसल कट जाए...' एक बार पुनः एक पुरअसर ग़ज़ल और सगाई के लिए ढेरों मुबारकबाद...



    कंचन जी की ग़ज़ल भाषा के अभिनव प्रयोगों की दृष्टि से विशिष्ट है.ख़ास तौर पर गिरह
    बांधने का अंदाज़ बहुत पसंद आया. हार्दिक बधाई ...

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  33. अब कंचन बिहार आ भर के ऐसे बतिया गयी, त हम ई बोली न बोलें,सोभा नहीं देगा ,नहीं..?

    नीम का लकड़ी, चन्दन साथे रगड़ा गया और चन्दन जैसा गमक गया...नहीं त हमरी कहाँ औकात कि ई बिलौग पर आकर टंके..मंजे हुए शायरों की रिश्तेदार क्या बने, भाग खुल गए हमारे..

    अब अलग से ग़ज़ल की क्या तारीफ़ करें..इनकी लेखनी और व्यक्तित्व ने हमें प्रतिबद्ध कर दिया कि इनको रिश्तेदार बना के ही छोड़ें...भगवान् की अपरंपार कृपा जिन्होंने सिरे से सिरा जोड़ सब गूंथ गांथ दिया ..हर्षातिरेक में हिरदय की जो स्थिति है अभी,कि जैसे कोई मताल (पी के टुन्न) चलना तो संतुलित सीधे सीधे ही चाहता है,पर उसका एक कदम सही नहीं धराता..कोसिस करते हैं एकाध दिन में मनोभावों को टूटे फूटे सब्दों में सही,ढाल अपने ब्लॉग पर चिपकाएँ..

    सुबीर भाई, एक करेक्शन,...माला जी मेरी भगिनी हैं,भतीजी नहीं..

    भाई अर्श की मैं "माँ-मी" सास हुई..(कंचन की दीदी ही रहूंगी..)..भारी परमोसन हुआ मेरा..दीदी से माँ बनी..अब पूर्ण हो गयी..

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  34. सबसे पहले तो प्रकाश अर्श जी को जीवन की ग़ज़ल तकरीबन मुकम्मल करने के लिए बहुत बहुत बधाई। सुबीर जी और आपके साथ पिछली मुलाकात जो दिल्ली में हुई थी उसमें ये बात हुई थी कि शादी के बाद अश’आरों में एक खास तरह की धार आ जाती है। प्रकाश जी तो शादी के पहले ही इतना धारदार लिखते हैं अब तो लगता है कि पत्थर को भी काटकर रख देंगे। लहलहाती फस्ल.. वाह क्या शे’र निकाल कर लाए हैं। ज्यों खड़े हों खुद पिता...दिल जीत लिया इस शे’र ने। हर शे’र गजब का है इस शानदार ग़ज़ल के लिए भी बहुत बहुत बधाई।

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  35. कंजन जी ने क्या शानदार ग़ज़ल कही है। छोड़ अंग्रेजी.....क्या शेर कहा है। वाकई इतने सीधे सादे ढंग से इतना शानदार शेर कहना काबिले दाद है। हठीला जी को समर्पित शे’र को नमन। इस शानदार ग़ज़ल के लिए कंचन जी को बहुत बहुत बधाई।

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  36. पहले तो सुबीर जी की एक भी बात समझ नहीं आई फिर एक डेढ़ बल्ब जला मस्तिष्क में.गजल की समझ तो नहीं है किन्तु दोनों गजलें अच्छी लगीं. कंचन तो सदा ही गजब का लिखती हैं.
    घुघूतीबासूती

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  37. जिस खबर को सुनने के लिये मेरे कान तरस गये थे वो खबर आई भी तो मेरे कानों तक इतनी देर बाद पहुँची? अर्श से नाराज हो जाती लेकिन उसने अपने आप मुझे खबर सुना कर मेरी नाराजगी दूर कर दी। कुछ दिन नेट पर नही आयी इस लिये चूक गयी। ये लडका भी नाराज होने का कोई अवसर ही नही देता ।ऊपर से इतनी सुन्दर गजल वाह अर्श को और उसके गुरूदेव को बहुत बहुत बधाई। इस गज़ल का हर शेर उमदा है लेकिन कुछ तो ऐसे शेर हैं कि मै सौ जन्म तक भी सोच नही सकती-----
    यूँ गया वो साथ अपने सब उजाले ले गया---- इस शेर को जाने कितनी बार पढा----
    लहलहाती फसल कट जाये---- लगता है रंजना जी ने फसल कटवा कर माला जी की डोली उठवाने का मन बना लिया है। रंजना जी को भी बहुत बहुत बधाई
    शह तेरा ख्वाब तेरे---- वाह वाह । और किस किस शेर की दाद दूँ सभी दिल को छूते हुये शेर हैं\ अर्श को इस गज़ल के लिये बहुत बहुत बधाई और इस जोडी को दिल से आशीर्वाद। भगवान इनको सब खुशिओयाँ दे।
    कंचन को भी भाई की सगाई पर बहुत बहुत बधाई। दोनो भाई बहिन गज़ल उस्ताद हैं मेरी दाद के शब्द भी छोटे पड जाते हैं।
    ओस से भीगी----
    छोड अंग्रेजी कहीं--- सही बात है
    हमको तो फुर्सत नही---- वाह वाह बहुत खूब
    हर शेर लाजवाब। कंचन को बहुत बहुत बधाई।
    सब से अधिक बधाई मेरे छोटे भाई को जो इस मुशायरे और गुरूकुल के माध्यम से तालीम के साथ साथ खुशियाँ भी बाँत रहे हैं। अर्श को एक बार फिर से आशीर्वाद, शुभकामनायें।

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  38. आप सभी के स्नेह, प्रेम और आशिर्वाद के आगे नत्मस्तक हूँ! इन्हे बनाए रखें !


    सादर
    अर्श

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