मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

वो कातिल अदायें लिये घूमते हैं, भला अपनी मंजिल कोई कैसे पाए । आज तरही मुशायरे का समापन श्री तिलकराज कपूर जी और निर्मला कपिला जी की रचनाओं के साथ ।

वैसे सोचा तो ये था कि इस बार के तरही को क्‍योंकि ये नये साल का है इसलिये जनवरी में ही समापन कर देंगें । लेकिन अपना सोचा कब होता है वो जब सोचे तब होता है । और बहुत प्रयास करने के बाद भी फरवरी में मुशायरा प्रवेश कर गया है । और आज इसका समापन होना है । समापन के लिये जो नाम बहुत पहले से तय कर रखे थे वे यही थे । तिलकराज कपूर जी और निर्मला कपिला दी । ये दोनों नाम इसलिये कि तिलकराज जी के शेरों में कुछ ऐसा होता है जो चौंका जाता है । और निर्मला दी के बारे में क्‍या कहूं, उनसे एक ही बात सीखी है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती है । क़रीब साल भर पहले उनकी ग़जलें बहुत बिखरी हुई होती थीं और साल भर के अंदर ही उनकी ग़ज़लों में रंग आ गया । उनके सीखने की जज्‍़बे को सलाम करता हूं ।

आज समापन हो रहा है नये साल के तरही मुशायरे का । मुशायरे को इस मायने में सफल कह सकते हैं कि कविता की त्रिमूर्ती परम श्रद्धेय महावीर दादा भाई, परम आदरणीय प्राण भाई साहब, परम आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी, जैसे गुणीजनों की रचनाएं हमें तरही के लिये मिलीं । और साथ ही ये भी कि इस बार ढेर सारे नये लोग भी पहली बार तरही में शामिल हुए । आज वैसे तो तरही का अधिकारिक रूप से समापन हो रहा है लेकिन एक शायर भभ्‍भड़ कवि 'भौंचक्‍के'  की रचना मुझे बहुत देर से मिली है सो हो सकता है कि समापन के बाद कभी उस रचना को भी लगा दिया जाये । हालंकि वो नियम विरुद्ध होगा इसी कारण उस रचना को फिलहाल लम्बित रखा हुआ है ।

TRK Small

तिलक राज कपूर 'राही' ग्‍वालियरी

नयी सोच लेकर, नया साल आये,
हर इक दिल मुहब्‍बत के नग़्मे सुनाये।

कोई काम ऐसा नहीं वो कराये
निगाहों में उसकी जो हमको गिराये।

दिलों में जगह कोई कैसे बनाये
कोई जानता हो तो हमको बताये।

हर इक साल दुनिया में दहशत बढ़ी है
न जाने नया साल क्‍या गुल खिलाये।

न लज्जित हो ममता का ऑंचल कहीं भी
कोई मॉं न बच्‍चे को भूखा सुलाये।

चलो इक अहद् हम करें आज खुद से
किसी की भी ऑंखों में ऑंसू न आये।

शहर में भटकता फिरा आस लेकर,
मेरा नाम लेकर कोई तो बुलाये।

वो कातिल अदायें लिये घूमते हैं
बचेगा वो कैसे, जो नज़रें मिलाये।

हमारा भी दिल है, दिलों सा ही नाज़ुक
खुदाया हमें क्‍यूँ कोई भी सताये।

जिसे दिल में आना हो, आये वो लेकिन
जो दिल में बसा है, कहॉं पर वो जाये।

जो लछमन ने खींची हो, रेखा तो सीता
धरम मानकर उसको हरदम निभाये।

जिधर देखिये कौरवों की सभा है
यहॉं द्रौपदी लाज कैसे बचाये।

सुदामा बनी, राह तकती हैं ऑंखें
कोई कृष्‍ण मेरे भी जीवन में आये।

अगर राह भटका मिले कोई ‘राही’
जिसे होश हो राह उसको दिखाये।

आनंद ही आनंद हो गया है समापन की इस अनोखी ग़ज़ल में । कोट करने में कुछ असमंजस हो रही है लेकिन फिर भी शहर में भटकता फिरा आस लेकर इस शेर ने मन में घर कर लिया । उस्‍तादों वाली बात है सारे शेरों में । समापन के लिये और क्‍या चाहिये था । वाह वाह वाह ।

Nirmla Kapila ji

निर्मला कपिला दी

वो सहमे हुए यूँ मेरे पास आये
न जाने नया साल क्या गुल खिलाये

करीब आये भी वो मगर खोये-खोये
यही इक अदा दिल हमारा दुखाये

गरूरे जबां का जरा देख जलवा
कि जैसे कोई तीर दिल में चुभाये

चले बाग़ में हाथ थामे हुए हम
हमारी खुशी देख गुल मुस्कराए

भुलाए सभी हादसे ज़िन्दगी के
मगर याद उसकी भुलाई न जाए

चले जा रहे हैं बिना राह जाने
भला अपनी मंजिल कोई कैसे पाए

घर आओ अगर तुम दिए मैं जलाऊँ
नया साल तुम बिन न मुझको लुभाए

गये वो कहाँ छोड़ कर मेरी दुनिया
कोई तो कहीं से उन्हें ढूँढ लाये

बसी है मेरे दिल में तस्वीर उसकी
मिटाने पे भी वो मिटायी न जाए

गरूरे ज़बां का ज़रा देख जलवा कि जैसे कोई तीर दिल में चुभाये । इस शेर पर कोई क्‍या कहे । कितना सुगठित शिल्‍प और कितना मुकम्‍मल बयान । दी की ग़ज़ल समापन के लिये रखने का क्‍या कारण था ये अब आपको समझ में आ गया होगा । कितनी नफ़ासत से शेर निकाले हैं दी ने । ग़ज़ल में दो ही सबसे आवश्‍यक बातें होती हैं एक तो नफ़ासत और दूसरी सम्‍पूर्णता । मतलब बात कहने का विशिष्‍ट लहजा हो और बात पूरी कही जाये । दी की ग़ज़लों में ये रंग तो आना ही है । क्‍यों‍ न हो आखिर बहुत ही गुणी उस्‍ताद श्रद्धेय प्राण साहब की शागिर्दी में हैं । आनंद आनंद आनंद । वाह ।

चलिये अब मुझे आज्ञा दीजिये और हां होली के लिये अब मिसरा देने का भी समय है जो ठीक अगली पोस्‍ट में दे दिया जायेगा । होली का मुशायरा ठीक 15 फरवरी से प्रारंभ हो जायेगा । यदि भभ्‍भड़ कवि 'भौंचक्‍के' की रचना लगी तो उसके साथ ही होली का मिसरा प्रदान किया जायेगा, आप भी सलाह दें कि अब उनकी रचना लगाई जाये या नहीं । हां अब अगली पोस्‍ट के साथ ग़ज़ल के सफर पर मुलाकात होगी ।

29 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल भभ्भड़ कवि की रचना लगायें. कोई प्रतियोगिता तो है नहीं..जितनी अच्छी रचनायें पढ़ी जा सकें, सीखने ही मिलेगा.

    आज की दोनों रचनायें गज़ब की हैं, आनन्द आ गया समापन किश्त का.

    इस बेहतरीन आयोजन के लिए आपका बहुत बहुत आभार!!

    जवाब देंहटाएं
  2. नेकी और पूछ पूछ -
    भभड जी की कविता फ़ौरन लगाएं - कवि मन और वाणी का सदा स्वागत है :)
    आज की भाई तिलक राज व निर्मला जी की उत्कृष्ट रचनाओं से समापन शानदार रहा - वाकई नफासत और गहरी और पूरी बात
    से भरी पूरी रचनाएं मन में उतर गयीं - बधाई आपको व सभी सहभागी रचनाकारों को -
    फरवरी माह आरम्भ हो चुका है ...
    अब आगे के प्रवास के लिए ,
    शुभकामना
    स स्नेह,
    - लावण्या

    जवाब देंहटाएं
  3. pankaj ji ,namaskar aur bahut bahut shukriya in behtareen ghazlon ke liye
    nirmala ji to shayeri ki duniya ka jana mana naam hain hi jo
    unki ghazal men bhi dikhayi de raha hai
    raahi sahab ne kamaal kar diya koi sher fasahat aur balaghat se achhoota nahin bahut khoobsoorat shayeri ,
    na lajjit ho ...........
    chalo ik ahad..........
    jidhar dekhiye ............
    matle se maqte tak aik saman sa bandh gaya hai jiske sahar se insan bahar aa hi nahin sakta .
    ye shayeri ki duniya ke azeem log hain inhen mubarakbad dena chhote munh badi baat lagti hai ,isliye main in logon se aashirvad mangne ki jasarat karna chahti hoon.

    जवाब देंहटाएं
  4. कभी-कभी सत्‍य प्रत्‍यक्ष में खड़ा मुस्‍कुरा रहा हो और विश्‍वास न हो यही स्थिति है निर्मला जी ग़ज़ल में। पंकज भाई ने कहा कि एक साल पहले उनकी ग़ज़लें बिखरी हुई होती थीं, विश्‍वास नहीं होता लेकिन ग़ज़ल प्रत्‍यक्ष खड़ी मुस्‍कुरा रही है जिसमें हर शेर एहसास की खुश्‍बू और रंग खुलकर लिये है। नीरज भाई के ब्‍लॉग पर वसीम बरेलवी साहब का एक कथन पढ़ा था कि कभी-कभी एहसास को लफ्ज़ नहीं मिलते। निर्मला जी की ग़ज़ल में हर शेर के एहसास ने सटीक लफ़्ज पाये हैं।
    बहुत-बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. और, हॉं। भभ्‍भड़ कवि 'भौंचक्‍के' का तो विशेष सम्‍मान के साथ स्‍वागत होना चाहिये।

    जवाब देंहटाएं
  6. आज की तरही के समापन किश्त में जो ख़ुशी मुझे मिली है. मै बता नहीं सकता. आदरणीय तिलक राज कपूर जी और आदरणीय निर्मला जी के अशआर ने अपनी उत्कृष्ट भूमिका साबित की है. निर्मला जी एक सक्रिय ब्लोगर हैं, और सभी नए रचनाकारों को प्रोत्साहित करने में दिल खोल के अपना समय देती हैं. आज ब्लॉगजगत में अपने एक ख़ास ब्लॉग परिवार में निर्मला आंटी अपनी आत्मीयता और निरंतर स्नेह बांटने के लिए मशहूर हैं.


    आज मैं सभी साथियों को यह बताना चाहूँगा की, श्री तिलक राज जी वह शख्स है जिन्होंने मुझे हाल ही में मशविरा दिया था जब सुलभ आप में कहन है शब्द है अहसास हैं तो शिल्प की कमी क्यों. उनके व्यक्तिगत इमेल का ही असर था की मैं फ़ौरन गुरु सुबीर जी के ब्लॉग से जुड़ गया. अब तरही और सफ़र में तो आपलोग मेरी दस्तक देख ही रहे हैं. वो कहते हैं न, "बिन गुरु होंई न ज्ञान "

    तो एक बार श्री तिलक राज उर्फ़ राही ग्वालियरी जी को उनकी बेहतरीन शायरी के लिए और श्री सुबीर सर को दिलचस्प संचालन के लिए तालियाँ तालियाँ तालियाँ


    वरिष्ट कवियों को देर करने का अधिकार है सो गुरुदेव भभ्‍भड़ कवि 'भौंचक्‍के" जी को ससम्मान अगले कड़ी में बुलाया जाये.

    जवाब देंहटाएं
  7. कोई काम ऐसा नहीं वो कराये
    निगाहों में उसकी जो हमको गिराये।
    इस प्रण के साथ समापन, इससे अच्छा कुछ हो ही नहीं सकता। इससे ज़्यादा कहना भी क्या।
    अभिनंदन, अभिवादन।

    जवाब देंहटाएं
  8. आज तिलक जी की ग़ज़ल पढ़ कर मुझे अपने आपसे रश्क होने लगा है...उन्होंने मुझे उनसे राबता बनाये रखने के काबिल समझा...ये खुशनसीबी सबको अता नहीं होती...तिलक जी की को जितना पढ़ा है सुना है जाना है उस से पता चलता है वो कितने सच्चे और सहज इंसान हैं क्यूँ की कोई सच्चा और सहज इंसान ही अच्छे शेर कह सकता है...बड़ी ही सहजता से वो गहरी बात कर जाते हैं...उनकी ये पूरी ग़ज़ल इस बात की ताकीद कर रही है...एक आध शेर के तारीफ़ की बात हो तो गिनाऊं भी, पूरी की पूरी ग़ज़ल यहाँ फिर से कोट करना अकलमंदी नहीं होगी...ऐसे शायर जो बात बात में ऐसी बात कर जाते हैं जो दिल में घर कर जाती है, ही हर दिल अज़ीज़ शायर कहलाते हैं...ऐसे शायर लोगों के दिलों में बसते हैं...आभार आपका उन्हें यहाँ तरही में पढवाने का.

    निर्मला जी की कोशिशों की दिली दाद देना चाहता हूँ...हम दोनों ने लगभग एक साथ ही ग़ज़ल लिखना शुरू किया था...हम दोनों का स्तर लगभग था भी एक जैसा...हम दोनों ही प्राण साहब की शरण में इस्लाह के लिए जाते हैं...उनके "गरूरे जबां का ज़रा देख जलवा...." शेर पढ़ कर मुझे लगा की मैं अभी भी वहीँ का वहीँ हूँ जहाँ था लेकिन वो मुझसे कोसों आगे निकल चुकी हैं...मैं उनकी इस कामयाबी से बेहद खुश हूँ और दुआ करता हूँ की ग़ज़ल के इस सफ़र में वो अपना एक अलग बुलंद मुकाम कायम करें.

    इस तरही ने जहाँ नए पुराने शायरों को एक मंच पर इकठ्ठा किया वहीँ कई खूबसूरत लाजवाब शेर पढने का मौका भी दिया. मेरे इस कथन की जो मैंने शुरू में कहा था " ये तरही मुशायरा इस बार कमाल का होगा " की पुष्ठी भी हो गयी.

    अंत में आपकी बेजोड़ मेहनत और अनुकरणीय ज़ज्बे को सलाम करता हूँ.

    नीरज

    पुनश्च:

    विश्व विख्यात परम आदरणीय प्रातः स्मरणीय श्री श्री 1008 श्री " भभ्भड़ कवि 'भौंचक्के' " की रचना को पढने का सुअवसर अगर आप अपने पाठकों को नहीं देंगे तो ये उनके प्रति अन्याय होगा. उन्होंने पिछले चौंतीस सालों से दुनिया को भौंचक्का करने का जो पावन कार्य आरम्भ किया था उसे वो आज तक निभा रहे हैं...उन्हें पढ़कर पहले हम ही भौंचक्के हुआ करते थे बाद में हमारे पुत्र उनके लेखन से भौंचक्के हुए और अब मिष्टी उनके शब्द जाल में फंस भौंचक्की हुई घूम रही है...ऐसे वानर श्रेष्ठ अरेरेरे...मानव श्रेष्ठ कविराज की रचना को जल्द प्रकाश में लाईये गुरुदेव. विलम्ब प्राण हरने वाला लग रहा है.

    जवाब देंहटाएं
  9. पंकज जी, आदाब
    मोहतरम कपूर (राही) साहब,
    सलाम कुबूल कीजियेगा

    'न लज्जित हो ममता का आंचल कहीं भी'
    इसी एक मिसरे पर कई ग़ज़लें क़ुरबान
    मतले से मक़ते तक, जो रंग सजाये हैं,
    उनकी दाद के लिये मुनासिब लफ्ज़ नहीं है मेरे पास..

    मोहतरमा निर्मला कपिला जी,
    आपकी क़लम ने जो जादू बिखेरा है, उससे उबर पाना आसान नहीं है

    ग़रूरे-ज़बां का ज़रा देख जलवा....कि जैसे कोई तीर दिल में चुभाए
    बहुत ऊंचा पैग़ाम है...
    चले बाग़ में हाथ थामे हुए हम...हमारी खुशी देख गुल मुस्कुराए
    वाह, एकता का कितना बेहतर तसव्वुर है, वो भी इतने नाज़ुक अलफाज़ में
    पंकज जी,
    इस बहुत खूबसूरत महफिल को सजाने,
    और पेश करने के लिये आपको बधाई
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

    जवाब देंहटाएं
  10. सुबीर जी मैं इस काबिल नही हूँ जितनी सब ने तारीफ की है सही बात है जब मैं ब्लागवुड मे आयी थी4 तब तक मुझे गीत गज़ल कविता मे अन्तर भी नही पता था ये शौक आपके परिवार ने या कहूँ अर्श ने मुझ मे डाला हओ तो गलत नही होगा। उसके बाद प्राण भाई साहिब मिले तो गज़ल का सफर आरंभ हुया लेकिन आपने तो इन मुशायरों के दुआरा मुझ मे गज़ल सीखने की ललक भर दी श्री तिलक राज कपूर जी जैसे बेहतरीन गज़ल कार के साथ मुझे अपनी गज़ल कहने का अवसर मिला गर्व महसूस कर रही हूँ । आशा है अब आपके और प्राण भाई साहिब जी के मार्गद्र्शन मे जरूर कुछ सीखूँगी। िआदरनीय तिलक राज जी के ये शेर
    कोई काम ऐसा नही वो कराये
    निगाहों मे उसकी जो हम्को गिराये

    हर साल दुनिया मे दहशत बढी है
    न जाने नया साल क्या गुल खिलाये

    न लज्जित हो ममता का आँचल कहींभी
    कोई माँ न बच्चे को भूखा सुलाये
    जो ल़क्षमन ने--------
    मुझे तो लगता है सभी ही लिख दूँगी मुझे सभी शेर बहुत अच्छे लगे---- काश कि कभी उन जैसा लिख पाऊँ। बधाई उन्हें। आपको तो आशीर्वाद ही दूँगी जो अपनी दी को प्रेरना देते रहते हैं बहुत बहुत आशीर्वाद्

    जवाब देंहटाएं
  11. तिलक जी की ग़ज़ल का हर शेर उम्दा है आखिर किस किस की तारीफ करूं मगर जो शेर मेरी जबान से उतर ही नहीं रहा है वो है...........
    "शहर में भटकता फिरा आस लेकर..........", वाह वाह क्या कहने
    हर शेर एक नयी ताज़गी के साथ है, बहुत बहुत बधाई आपको.
    निर्मला जी की ग़ज़ल का ये शेर बेहतरीन बना है,
    "ग़रूरे-ज़बां का ज़रा देख जलवा..."
    गुरु जी एक सफल आयोजन के लिए आपको बहुत बहुत बधाई.
    अरे हाँ...............भभ्भड़ कवि 'भौंचक्के" जी को अगर नहीं सुना तो फिर क्या सुना, मैं तो उनसे हाल फिलहाल में मिल के आया हूँ, अब आगे क्या कहूं, लफ्ज़ ढूँढने पड़ते है उनके बारे में कुछ कहने के लिए इसलिए उनकी रचना से वंचित ना करें.

    जवाब देंहटाएं
  12. जिसे दिल में आना हो आये वो लेकिन,
    जो दिल में बसा है कहाँ पर वो जाये


    वाह भई क्या बात है....!!

    और

    भुलाए कई हादसे जिंदगी के,
    मगर याद उसकी भुलाई ना जाये


    और आखीरी तीनो शेर निर्मला माँ के

    बड़े अपने से लगे

    जवाब देंहटाएं
  13. गुरुदेव .......... ऐसे ही एक कवि को हमने पिछली बार पढ़ा था ....... पूरा मुशायरा लूट कर ले गया था वो ...... इस बार ही ऐसा होगा तो आनंद आ जाएगा ....... बहुत कुछ सीखने को भी मिलेगा .......

    तिलक राज जी ने और निर्मला जी ने बहुत ही कमाल के शेर बनाए हैं ....... उनकी परिपक्वता ..... जीवन का गहरा अनुभव शेरों में भी नज़र आता है ............. चाहे तिलक राज जी का शेर .... शहर में भटकता फिरा, या लक्ष्मण, ड्रॉपदी, सुदामा वाले शेर ..... या निर्मला जी के शेर .... भुलाए सभी हादसे, या फिर चले जा रहे हैं या फिर ...... अब कौन कौन से शेर का ज़िक्र करूँ .......... पूरा मुशायरा ही अर्श की उचाईयों को छू रहा है .........

    जवाब देंहटाएं
  14. TARAHEE MUSHAIRA KAA JIS
    KHOOBSOORTEE SE PRARAMBH
    HUAA THA USKAA SMAAPAN BHEE
    USEE KHOOBSOORTEE SE HUA HAI.
    MAINE SAAREE KEE SAAREE GAZALEN
    PADHEE HAIN .MAIN DAAVE KE
    SAATH KAH SAKTAA HOON KI TARAHEE
    MISRE PAR KAHNE WAALE SABHEE SHAAYAR
    EK SE BADH KAR EK HAI.KOEE KISEE
    SE KAM NAHIN NIKLA HAI.ISKA
    ANDAAZA MUSHAIRA KE SAMAAPAN PAR
    NIRMLA KAPILA AUR TILAK RAJ KEE
    UMDAA GAZALON SE LAGAAYAA JAA
    SAKTAA HAI.MUSHAIRA KEE APAAR
    SAFALTAA MEIN SHRI PANKAJ SUBEER
    KAA ATHAK PARISHRAM KAHUN TO KOEE
    ATISHYOKTI NAHIN HOGEE.SABKO MERAA
    PREM BHARAA NAMASKAAR.YUN HEE
    BADHIYAA LIKHTE RAHEN AUR SABKE
    DILON KO LUBHAATE-RIJHAATE RAHEN.

    जवाब देंहटाएं
  15. पहले तो सुबीर भैया आपकी साहित्य के प्रति निष्ठा और कर्मठता को प्रणाम.
    फ़िर इन दोनों खूबसूरत शेर कहने वालों को सलाम...
    क्या दुआ है खुदा से, बस उनकी किताब में नाम साफ़ रहे और क्या चाहिए ... वाह ! " कोई काम ऐसा न ..." बहुत खूब 'राही' साहब !
    "दिलों में जगह कोई ... " ये million dollar question है ... वाह!
    " जो दिल में बसा है..." बहुत ही उम्दा सोच!
    ---
    आदरणीया निर्मला जी की ग़ज़ल के लिए क्या कहूँ ... मेरा हृदय गीत की तरफ झुका रहता है जाने-अनजाने ... इसलिए जब कोई ग़ज़ल गीत की तरह एक कहानी कहते हुए चलती है तो मेरा मन खिल सा जाता है... एक कहानी कह रही है यह खूबसूरत ग़ज़ल , इसलिए एक भी शेर अलग से चुनने को मन तैयार नहीं...फ़िर भी "गुरुरे जुबां ..." वाह! वाह!
    और "चले बाग में..." , 'घर आओ अगर तुम... " वाह!
    ----
    मुझे समाप्ति पे क्या चाहिए आपको लिख भेजा है पहले ही श्री भ.भ.भ. :) :)

    जवाब देंहटाएं
  16. आदरणीय तिलक राज कपूर साहब,ने मुशायरे में चार चाँद लगा दिए है..न लज्जित हो ..वाला शेर गजब ढा रहा है.
    पर सभी शेर एक से बढ़कर एक है..
    मुझे तो सारे शानदार लगे-

    चलो इक अहद हम आज करें खुद से
    किसी की भी आँखों में आंसू न आये

    वो कातिल अदाए लिए घूमते है
    बचेगा वो कैसे जो नजरे मिलाए
    आपकी शायरी को सलाम

    आदरणीय निर्मला दी,
    आप तो वैसी ही सब छोटे भाइयों की मनोबल वर्धक जड़ी बूटी है...तो आज तो गजल मयी संजीवनी देकर आह्लादित कर दिया है.
    गरूरे जबां..तो सबको बहुत पसंद आया है..पर मुझे
    चले बाग़ में हाथ थामे हुए हम
    हमारी ख़ुशी देख गुल मुस्कराए

    बहुत पसंद आया..
    भुलाए हादसे...वाला शेर तो बहुत गहरा असर करता है.

    और
    गए वो कहाँ छोड़ कर मेरी दुनिया
    कोई तो कंही से उन्हें ढूंढ लाए
    बेहतरीन है...
    तरही मुशायरे का जादू बहुत दिनों तक असर करेगा...
    गुरुदेव,
    आपकी मेहनत और लगन से ही यह इतना शानदार बन पाया है..

    और परम आदरणीय भभ्भड़ कवि'भौंचक्के' तो बहुत प्रसिद्ध शायर है...उनकी गजल के बिना तो मुशायरा अधूरा ही रह जाएगा...तो उनकी रचना का इन्तजार है...

    जवाब देंहटाएं
  17. आनंदम...आनंदम...आनंदम....
    आपका कोटिशः आभार जो इन अनुपम रचनाओं के रसास्वादन का सुअवसर आपने दिया...
    अब इन शीर्ष के रचनाकारों की क्या कहूँ...इनके लिखे दूसरों को भी रास्ता दिखाते हैं...

    जवाब देंहटाएं
  18. तरही में मैं पहली बार शामिल हुई इस बात की मुझे तो ख़ुशी है ही साथ में इतने महान-महान लोगों की ग़ज़लें पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ सो अलग...अभी मैं ग़ज़ल की दुनिया में बहुत छोटी हूँ अभी मुझे सीखना है सो मेरे लिए किसी को दाद देना भी सूरज को दिया दिखाने जैसा है...इसलिए अभी सारी ग़ज़लों को पढ़ रही हूँ, गुन रही हूँ ...आप लोग मेरी अवस्था को समझ ही रहे होंगे...आभार

    जवाब देंहटाएं
  19. भाषाई शाखों पर थे हर प्राँत के परिंदे
    उड़कर जहाँ भी पहुंचे, पहुंची वहां की खुशबू

    दीपक जले है हरसूं भाषा के आज देवी
    लोबान सी है आती कुछ कुछ वहां की खुशबू
    देवी नागरानी

    जवाब देंहटाएं
  20. आज बहुत ही खूबसूरती से तरही मुशायरे का समापन हुआ है. तिलक राज जी की ग़ज़ल के सभी अशाअर क़ाबिले-तारीफ़ हैं.
    तिलक राज जी, आपका मक़ता बहुत पसंद आया. एक ख़ूबसूरत ग़ज़ल इनायत करने के लिए दाद और शुक्रिया क़ुबूल कीजिये.

    निर्मला जी की ग़ज़ल में तो उस्तादों का सा कमाल देखा जा सकता है. एक ऎसी ग़ज़ल जो बार बार पढ़कर भी दिल नहीं भर पायेगा.
    बहुत ही प्यारी ग़ज़ल है. मिसरों में शब्द और भाव नगीनों की तरह जड़े हुए हैं.
    घर आओ अगर तुम दिए मैं जलाऊँ
    नया साल तुम बिन न मुझको लुभाए.
    'घर आओ' में 'अलिफ़ वस्ल' (लयात्मक संधि) का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है.

    भभ्भड़ कवि "भौंचक्के" की रचना लगा दी जाये तो एक और अच्छी रचना पढ़ने का सुअवसर मिलेगा.

    सुबीर जी, आप जिस ख़ूबी से तरही के मुशायरों का संचालन कर रहे हैं, इसके लिए हिन्दी ब्लॉग जगत हमेशा आपके आभारी रहेंगे. मेरी ओर से हार्दिक बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  21. भभ्भड कवि जी से अवश्य कुछ सीखने को मिलेगा.. उनकी कविता की प्रतीक्षा रहेगी..
    दोनों ही ग़ज़ल के शेर एक से बढ़ कर एक हैं.. बहुत सुखद रहा पढना...
    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  22. गुरु जी प्रणाम

    आज की पोस्ट कुछ विशेष है मेरे लिए
    तरही मुशायरे का समापन बहुत बेहतरीन हुआ

    तिलक जी का लिखा हर शेर पसंद आया मकता बहुत जानदार लिखा गया है कई बार दोहराता रहा

    निर्मला जी का लिखा शेर गरूरे जबां......
    दिल में घर कर गया और मतला भी बहुत पसंद आया

    भौचक्के जी को कई बार पढ़ने का सौभाग्य मिला और हर बार दिल गार्डन गार्डन हो गया आगे भी "आपको" (इस आपको के कई अर्थ निकाले जा सकते है) पढ़ने का अवसर मिले तो बल्ले बल्ले है जी

    आपका वीनस केशरी

    जवाब देंहटाएं
  23. मुशायरे के सफलतापूर्वक समापन पर सबों को तहे दिल से मुबारकबाद देता हूँ। भभड कवि की कविता अवश्य लगायें कुछ नया और अच्छा ही पढ़ने को मिलेगा। आज के कवियों को पढ़ कर आनन्द आ गया।समझ में नहीं आता कि किस शेर को छोड़ा जाये किसकी तारीफ़ की जाये।कपूर साहब और निर्मला जी को बहुत बहुत बधाई हो।

    जवाब देंहटाएं
  24. गुरुदेव को प्रणाम......निर्मला दी के शेर बहुत बहुत अच्छे लगे ........और राही जी के बारे में क्या कहना ?....

    तरही का इससे अच्छा समापन और क्या होगा.

    जवाब देंहटाएं
  25. सुबीर जी आपके परिवार ने मुझे एक और बेटी दी है कंचन पगली पहले मुझे दी लिख रही थी मैने कहा कि दी कैसे हुयी? ये आज कल के बच्चे भी क्या कहूँ हम से कोई रिश्ता पूछे बाप दादाओं का कि दादा के चाचा की लडकी का पोता कौन है लेकिन ये अर्श की बहन मुझे दी कैसे कह सकती है । इसे पूछिये जरा हा हा हा । पर अब समझ गयी है| कंचन बहुत बहुत प्यार और आशीर्वाद

    जवाब देंहटाएं
  26. लाजवाब समापन गुरुदेव.....अरे नहीं, समापन कहां अभी तो हमें श्रीमन भौंचक्के जी की तरही भी पढ़नी है। ये भौंचक्के जी वही हैं ना जो पिछली दफ़ा अज्ञात नाम से आये थे? :-)

    तिलक साब की लेखनी तो खैर कयामत बरपाती ही है है हमेशा, किंतु निर्मला जी की इस ग़ज़ल ने जितनी प्रसन्नता दी है कि क्या कहूँ। मैम की लगन और सीखने की उत्कंठा ने कई-कई बार हैरान किया है। सलाम है उनको। उनका "गरूरे जबां का ज़रा देख जलवा" वाला मिस्रा एकदम से हमें कह दे रहा है कि एक और उस्ताद शायर आ गया है।

    जवाब देंहटाएं
  27. पता नै गुरु देव तरही की समापन की बात पर ऐसा लग रहा है जैसे कुछ छुटता जा रहा हिया .. दिल चाहता है ख़त्म ना होता तो अच्छा होता... पर समय को कौन रोक सका है तो फिर मैं क्या कर सकता हूँ ... :) :)
    मगर समापन की इस संध्या पर इन दो अजीम शईरों ने कमाल के शे'र कहे हैं... उस्तादाना शायरी का मुजायरा है दोनों ही दिग्गज शईरों की शयीरी में हकीकत बयान हो रही है है..
    जनाब राही साहिब की शायरी का मजा हम पहले भी तरही में लेते रहे हैं ... हर शे'र मुकम्मल है ...
    न लज्जित / और मैं भटकूँ/ दोनों ही शे'र जबान से छुट नहीं रहे हैं ...

    और माँ के बारे में क्या कहूँ बहुत कुछ तो आपने खुद ही कहा है ग़ज़ल लेखन और इसे सिखने इ ललक इस उम्र में ... उफ्फ्फ्फ़ वाली बात हो जाती है ..जिस करतब्य निष्ठां से वो लिखती हैं और इस पर काम करती है वो हम जैसे युआवों के लिए रश्क की बात हो जाती है .. इस उम्र में वो इतनी उर्जावान है यह सोच स्तब्ध रह जाता हूँ .. पूरी ग़ज़ल ही मुकम्मल है
    मतला ही जिस नाज़ुकी से कही है इन्होने वही भारी है हम पर तो .. और दुसरे शे'र पर पहुँचते ही मुझे अपनी ग़ज़ल के तरफ देखने तक का मन नहीं कर रहा , आय हाय वाली बात है इसमें तो .. और तीसरा शे'र सबके जबान पर चल रहा है ...सच कहूँ तो पूरी ग़ज़ल कमाल की कही है इन्होने... सलाम इनके इस ऊर्जा को और लेखनी को ... तरही के समापन पर आज सभी बढ़ाई और आपके इस निष्ठां को सलाम गुरु वर आप जिस निष्ठा से इसे चलाये वो सच में अद्भूत है...
    मगर इस भभ्भड़ कवी जी को सुनाने की दिली खाईश है गुरु वर जरुर उन्हें सुनाया जाये... और हाँ अगर आप उनसे मिलें तो पूछे के क्या उन्हें दिल्ली की पानी पूरी पसंद है क्या ..?


    अर्श

    जवाब देंहटाएं
  28. तिलकजी और निर्मलाजी की गज़लों में कोई अकेला शेर ढूँढ़ना असम्भव है और पूरी की पूरी गज़लें उधृत करना उचित नहीं. दोनों ही शानदार.
    इससे पहले भी सभी रचनाकारों की अदायगी बेहतरीन रही. आपको इतने सुन्दर और सफ़ल आयोजन के लिये बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  29. तरही मुशायरे का जितना सुंदर आगाज़ हुआ था समापन भी उतना ही मनभावन है। तिलकराज जी और निर्मला जी दोनों की उस्तादाना शायरी गजब ढा रही है। राही साब के "ममता के आंचल और शहर में भटकने वाले शेर" खूब पसंद आये।
    निर्मला जी के सभी शेर विशेष हैं, खासकर "घर आओ अगर तुम दिये मैं जलाऊं" का क्या कहना!

    जवाब देंहटाएं

परिवार