मंगलवार, 26 जनवरी 2010

कोई जा के रूठे हुए को मनाए, उमीदों के दीपक सहर ने जलाए । तरही मुशायरे के सप्‍ताह के प्रथम खंड में आज सुनिये अर्चना तिवारी जी और सुलभ सतरंगी को ।

गणतंत्र दिवस की सभी को शुभकामनाएं और बरसों पहले किसी कार्यक्रम के लिये लिखी हुई ये कविता आज भारत के संविधान को समर्पित

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आज़ाद जहां तन है और मन स्‍वतंत्र है

ये जन का है ये मन का है ये गण का तंत्र है

जनता का है जनता के ही द्वारा रचा गया

जनता के लिये संविधान ये लिखा गया

सबसे बड़े गणतंत्र का है संविधान ये

मानों स्‍वयं विधाता के हाथों दिया गया

ये कोटि-कोटि जनता के प्राणों का मंत्र है

आज़ाद जहां तन है और मन स्‍वतंत्र है

ये जन का है ये मन का है ये गण का तंत्र है

सोने के अक्षरों से लिखा संविधान है

जिससे जुड़ी हुई हमारी आन बान है

हम क्‍यों न करें गर्व फिर ऐसी किताब पर

जिसमें लिखा है देश ये सबसे महान है

अनेकता में एकता रखने का मंत्र है

आज़ाद जहां तन है और मन स्‍वतंत्र है

ये जन का है ये मन का है ये गण का तंत्र है

तरही मुशायरा अब धीरे धीरे अपने समापन की ओर आ रहा है । कोशिश तो यही है कि जनवरी में ही इसका समापन हो जाये लेकिन अंकगणित ये कह रहा है कि शायद ऐसा नहीं हो पायेगा । चलिये कोई बात नहीं और दो पोस्‍ट फरवरी में सही । अभी भी कुछ नाम शेष हैं । और बहुत महत्‍वपूण नाम शेष हैं । वैसे इस बार का तरही मुशायरा बहुत ही शानदार रहा है । काफी अच्‍छी और शानदार ग़ज़लें सुनने को मिली हैं । और जो बची हैं वे भी जानदार और शानदार हैं । कुछ बिग बी टाइप के नाम तो मैंने धमाकेदार समापन के लिये भी बचा रखे हैं ताकि जितना अच्‍छी शुरूआत हुई थी उतना ही अच्‍छा समापन भी हो । हां ये सच है कि मुशायरे की व्‍यस्‍तता के चक्‍कर में ग़ज़ल के सफ़र की 15 तरीख को लगने वाली पोस्‍ट नहीं लग पाई है । आशा है 30 तारीख की पोस्‍ट मिस नहीं होगी ।

आज तरही में दो रचनाकार हैं । अर्चना तिवारी जी और सुलभ सतरंगी । अर्चना जी का चित्र नहीं मिल पाया तो उनकी प्रोफाइल में जो पेंटिंग लगी मिली उसे ही उनके प्रतिनिधि के रूप में लगा रहा हूं ।

 

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अर्चना तिवारी

मैं एक शिक्षिका हूँ,मैंने इतिहास एवं समाजशास्त्र से एम.ए.करने के उपरांत बी.एड. किया और लखनऊ के विद्यालय में अध्यापन कार्य कर रही हूँ| शिक्षा पर सभी का अधिकार है इसलिए मैं उन बच्चों को पढ़ाती हूँ जो निर्धन हैं शुल्क नहीं दे सकते... पेड़-पौधों से मेरा विशेष लगाव है,जब उनको नष्ट होते देखती हूँ तो बहुत दुःख होता है और क्रोध भी आता है, इसके लिए मैं अगर कुछ कर सकी तो अपने को धन्य समझूंगी...बचपन से मैंने सुना है, देखा है की कलम में बड़ी शक्ति होती है, वह धाराओं का रुख मोड़ सकती है...तो मैं भी कलम के साधन से शब्दों के रास्ते आशाओं की मंजिल पाने की कोशिश कर रही हूँ

गए साल ने क्‍या क्‍या मंज़र दिखाए
न जाने नया साल क्या गुल खिलाए

है अपनों ने भी बेरुखी इस कदर की
के जैसे हवा तीर खंजर चुभाए

बुझे दीप ना जाने कितने घरों के
हैं आतंकियों ने वो तूफां उठाए

फिज़ाएं गमकती थीं ख़ुश्‍बू से जिनकी
हजारों सितम उन ही कलियों पे ढाए

खजाने भरे रहनुमाओं के लेकिन
रिआया के घर में हैं फाकों के साए

चलें आंधियां अब न जुल्‍मो सितम की
नया साल दुनिया में सुख चैन लाए

वो सूरज नया देखो मशरिक़ से निकला
उमीदों के दीपक सहर ने जलाए

अच्‍छे शेर बनाये हैं । कुछ शेर तो बहुत ही अच्‍छे बन पड़े हैं । हालंकि अभी बहुत मेहनत और लगन की ज़ुरूरत है फिर भी यदि भाव अच्‍छे आ रहे हों तो व्‍याकरण तो आ ही जाती है । सूरज और रहनुमाओं के प्रयोग अच्‍छे हैं ।

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सुलभ 'सतरंगी'

पेशे से सूचना प्रोधोगिकी विशेषज्ञ निजी क्षेत्र दिल्ली में कार्यरत हैं.  उभरते ग़ज़लकार हैं, ग़ज़ल की बारीकियां सीख रहे हैं. कवितायें, क्षणिकाएं और  हास्य व्यंग्य लेखक के रूप में ज्यादा सराहे गए. सक्रिय ब्लोगर हैं. हिंदी ऊर्दू साहित्य विकास के प्रति समर्पण का भाव है. शैक्षणिक एवं सामजिक गतिविधियों में हाथ बंटाना अच्छा लगता है.

ये दिल जब भी टूटे न आवाज़ आए
यूं ही दिल ये रस्‍मे मुहब्‍बत निभाए

वो भी साथ बैठे हंसे और हंसाए 
कोई जा के रूठे हुए को मनाए

मेरी दास्‍ताने वफा बस यही है
युगों से खड़ा हूं मैं पलकें बिछाए
 

न पूछो कभी ज़ात उसकी जो तुमको
कहीं तपते सेहरा में पानी पिलाए

खलल नींद में कब है बहरों की पड़ता
कोई चीख के शोर कितना मचाए

मेरे सपनों की राह में मुश्किलें हैं
न जाने नया साल क्या गुल खिलाए

अच्‍छे शेर बने हैं । अलग तरीके से बात को कहने का प्रयास किया है । भावों के अनगढ़ शिल्‍प को अब एक कुशल छैनी और दक्ष हथौड़ी की आवश्‍यकता है । ताकि हर शिल्‍प सुंदर और साकार नज़र आये । पहली दस्‍तक अच्‍छी है ।

स्‍वागत करें इनका और प्रतीक्षा करें अगले अंक की जिसमें होंगें पाठशाला के खिलाड़ी अपने कौशल का प्रदर्शन करने के लिये । अभी भी पाठशाला के कुछ खिलाड़ी बाकी हैं । तो इंतजार करें अगले अंक का तथा आज के शायरों को दाद देते रहें ।

23 टिप्‍पणियां:

  1. पंकज जी, आदाब
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
    अर्चना तिवारी जी बधाई, सभी शेर अच्छे हुए हैं
    विशेषकर-
    है अपनों ने....फिज़ाएं......खज़ाने.....प्रभाव छोड़ते हैं..

    वाह सुलभ सतरंगी जी, शानदार
    मेरी दास्ताने-वफा... लाजवाब
    न पूछो कहीं.....हासिले-ग़ज़ल शेर
    मुबारकबाद कबूल करें..
    एक बार फिर सभी को
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  2. क्या खूब गज़लें आ रही हैं इस मुशायरे में कि कहने को शब्द नहीं बचते...वाह से आगे क्या कहें दोनों को ही!!


    गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ.


    गणतंत्र दिवस की कविता शानदार है!

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  3. सर्वप्रथम गणतंत्र दिवस की सभी साथियों और वरिष्ठजनों को शुभकामनाएँ.

    गुरुदेव की कविता ने आज तरही का एक और रूप दिखाया है.

    आज़ाद जहां तन है और मन स्‍वतंत्र है
    ये जन का है ये मन का है ये गण का तंत्र है

    बहुत बहुत सुन्दर कविता है...


    अर्चना जी को तरही में पहली बार सुना. शेर अच्छे लगे.

    मैं अपनी ग़ज़ल के बारे में क्या कहूँ... नया हूँ शिल्प का ज्ञान नहीं है. आज गुरूजी ने मेरे शेरों को जिस खूबी से संवारा है. गुरूजी को सैकड़ो प्रणाम!


    - सुलभ

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  4. पंकज जी सब से पहले तो आप बधाई स्वीकार करें आप साहित्य के क्षेत्र मे एक इतिहास रचने जा रहे हैं आने वाले कल मे शायद ही कोई गज़लकार होगा जिस की जुबां और कलम से आपका नाम नहीम लिया जायेगा। अर्चना जी ने कमाल की गज़ल कही है
    फिज़ायें गमकती थी खुश्बू से जिन की
    हजारों सितम उन ही कलियों पे ढाये
    खज़ाने भरे------
    वो सूरज नया------
    सब से अधिक पसंद आये ये शेर अर्चना जी को बहुत बहुत बधाई
    सुलभ सतरंगी जी को तो उन की सतरंगी रचनाओं के साथ खूब पढा है और वही इन्द्र धनुश उन्हों ने अपनी इस गज़ल पर लहरा दिया
    न पूछो कभी जात उसकी जो तुमको
    कहीं तपते सेहरा मे पानी पिलाए
    वाह
    मेरी दास्ताने वफा बस यही है
    युगों से खडा हूँ मैं पलकें बिछाए। सुलभी जी को भी बहुत बहुत बधाई।
    आप सब को गनतंत्र दिवस की शुभकामनायें\ हाँ एक बात की और बधाई कि दीपक मशाल की पुस्तक की छपवाई बहुत सुन्दर लगी। कल उसकी समीक्षा लगाऊँगी। यूँ समीक्षा कभी की नहीं मगर इस पुस्तक को देख कर अपनी अनुभूतियां कहने से रुक न सकी।

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  5. आहा सुलभ सतरंगी की ग़ज़ल के शेर का जादू
    मेरी दास्ताने ........
    न पूछो कभी जात ....... क्या कहने

    अर्चना जी की भी ग़ज़ल पसंद आई बहुत अच्चा लगा पढ़ कर
    शुक्रिया
    ३० तारीख की पोस्ट का बेसब्री से इंतज़ार है

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  6. सर्वप्रथम आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ...आपने मेरी ग़ज़ल को सराहा उसके लिए बहुत-बहुत शुक्रिया... तरही में अपनी ग़ज़ल को देख कर मुझे कितनी प्रसन्नता हो रही है जिसे मैं बयां नहीं कर पा रही हूँ ...इस सब का श्रेय गुरु जी सुबीर को जाता है मुझे तो ग़ज़ल के व्याकरण का ज्ञान नहीं है..मैंने कुछ ग़ज़लें अपने ब्लॉग पर लिखीं...टिप्पणियों में लोगों ने त्रुटियाँ भी निकाली, कुछ लोगों ने ग़ज़ल सीखने की नेक सलाह भी दी. गुरु जी को भी मैंने कहा मेरी ग़ज़लों में त्रुटियाँ हैं मैं ग़ज़ल कैसे भेजूं ... परन्तु गुरु जी ने कहा त्रुटियाँ तो सभी से होती हैं कोई बात नहीं आप ग़ज़ल भेजें मैं उसमें सुधार कर लूँगा...उन्ही की प्रेरणा से मैंने अपनी इस ग़ज़ल को तरही में भेजा...गुरु जी ने मेरी ग़ज़ल को संवार कर आपके सम्मुख प्रस्तुत किया है...शत-शत धन्यवाद गुरु जी..आपकी ग़ज़ल की अगली कक्षा का बेसब्री से इन्तजार है...

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  7. वाह ........ गुरुदेव ....... आज के दिवस अनुसार आपकी रचना ने भी मन मोह लिया .... सभी को गणतंत्र दिवस की बधाई ...... मुशायरा जैसे जैसे आगे बढ़ रहा है ..... परिपक्व होता जा रहा है ....
    अर्चना जी ने बहुत नये भाव पिरोए हैं इस ग़ज़ल में ...... वो सूरज नया देखो ..... आशा के नये संदेश देता है ........
    सुलभ जी ने भी नये अंदाज के शेर लिखे हैं ........ उनका ये शेर ..... न पूछो कभी जात उनकी ...... तो बहुत ही गहरा और उद्देश्पूर्ण संदेश लिए है ......
    अब तक के मुशायरे में कोई किसी से कम नही .......

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  8. प्रणाम गुरु देव,
    आज़ाद जहां तन है और मन स्वतंत्र है
    ये जन का है ये मन का है ये गण का तंत्र है ...
    इस कविता ने मन मोह लिए जिस सरलता से आपने कही है आगे कुछ नहीं कहूँगा मेरे पास शब्द नहीं है प्रभु...
    तरही का शबाब देखने लायक है ... आज के इन दोनों नए गज़लकारों ने भाव को बेहतरी से रखा है ... दोनों ने ही अछि शायरी की है...
    अर्चना जी का यह शे'र फिजायें गमकती थी... बेहद पसंद आया ...
    और सुलभ ने भी अछे शे'र कहे हैं ... मतले ने ही लूट पाट शुरू कर दिया हिया ...
    कोई जाके रूठे हुए को मनाये , नजाकत है इसमें ...मगर जिस शे;र ने झकझोरा है वो है ना पूछो कभी ज़ात...
    दोनों नए गज़लकारों को बधाई
    और पुरे देश को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं और बधाई ...


    अर्श

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  9. गुरु जी आपकी रचना पर कुछ कहने लायक तो हम नहीं...बस ये कि जो कहा उसमे भाव प्रवणता प्रवाहित थी।

    अर्चना जी हमारे लखनऊ की हैं य जानना भी अच्छा लगा।

    और उनके शेरों में

    कि जैसे हवा तीर खंजर चुभाये,
    और
    फज़ाये गमकती थीं खुशबू से जिनकी
    ने मुझा पर विशेष प्रभाव छोड़ा।

    और सुलभ जी के बारे में अगर मैं ये कहूँ कि उनके सारे ही शेरों ने मुझे प्रभावित किया तो यह झूठ नही होगा....!

    दोनो को मेरी शुभकामनाएं

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  10. आज की तीनों रचनायें, गुरूदेव की कविता एवं अर्चना जी और सुलभ जी की गज़लें सुंदर बन पड़ी हैं। गणतंत्र की क्या रूपरेखा खिंची है गुरूदेव!! मन पुलकित हो उठता है। अद्भुत उपहार है अवसर विशेष पर।
    अर्चना जी के फ़िजाओं, रहनुमा और सूरज वाले शेर विशेष पसंद आये।
    सुलभ जी का हुस्ने मतला और सहरा वाले शेर अच्छे लगे।

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  11. गुरुदेव,
    गणतंत्र दिवस को समर्पित रचना बहुत अच्छी लगी..
    तरही मुशायरा वाकई श्रेष्ठतर होता जा रहा है...अर्चना जी के पर्यावरण से लगाव से प्रभावित हुआ हूँ..ऐसा भावुक ह्रदय ही काव्य रच सकता है..''खजाने भरे रहनुमाओं के लेकिन...'' ''वो सूरज देखो मशरिक से निकला''गजब के लगे...
    सुलभ जी की गजल के क्या कहने...''मेरी दास्ताने वफ़ा बस यही है..'' याद रखने और सुनाने लायक है...आनंद आगया..

    जवाब देंहटाएं
  12. .
    .
    .
    न पूछो कभी जात उसकी जो तुमको
    कहीं तपते सेहरा मे पानी पिलाए

    मेरी दास्ताने वफा बस यही है
    युगों से खडा हूँ मैं पलकें बिछाए।


    बहुत ही उम्दा और वजनी शेर कहें हैं सुलभ 'सतरंगी' जी ने!

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  13. गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें....

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  14. गुरु जी प्रणाम

    इस बार के तरही मुशायरे में सपताह की पहली पोस्ट का विशेष इंतज़ार रहता था नए लोगो को पढ़ना मुझे हमेशा से अच्छा लगता है और जब बात तरही में शिरकत की हो तो फिर बात ही क्या
    इस मामले में इस बार का तरही मुशायरा एकदम कमाल धमाल है क्योकी ७ नए रचनाकारों की गजल प्रकाशित हो चुकी है और शायद अभी भी कुछ नाम शेष हैं

    गुरु जी आपकी कविता ने तो चौका दिया

    अर्चना जी के आख़री शेर ने बहुत प्रभावित किया

    सुलभ जी का शेर ना पूछो जात............. बहुत खूबसूरत बन पडा है

    साबित हो रहा है की आने वाले तरही मुशायरों में कितने गुल खिलने वाले है
    --
    आपका वीनस केसरी

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  15. pankaj ji ,gantantra divas ki bahut bahut badhai aur shubhkamnayen sweekar karen ,aapki is sundar rachna ne man ko aik bal pradan kiya hai ,garv hai hamen apne desh aur uske sanvidhan par ,badhai ho.
    archana ji ki ghazal bahut achchhi hai khas taur se 'wo sooraj..........
    khayalon men ummeed jagata hai unhen masbat banata hai.
    sulabh ji ,ki ghazal ka behtareen sher hai" na poochho.............
    bahut khoob
    waqai ghar baithe aur wo bhi apni marzi ke waqt par mushaira sunne ka
    anubhav pahli bar ho raha hai ,dhanyavad.
    anubhav pahli bar ho raha hai

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  16. सुलभ जी का ये शेर,"ना पूछो ...तपते सेहरा में.."- बहुत ही प्यारी बात! अच्छे भाव हैं पूरी ग़ज़ल में!
    अर्चना जी की ग़ज़ल में एक cascading सा विचारों का progression मिला , from negativeity to positivity ...
    दोनों को मुबारकबाद ...

    जवाब देंहटाएं
  17. प्रणाम गुरु जी,
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं, "आज़ाद जहाँ तन है...............", बहुत ही सुन्दर कविता है.
    @ अर्चना जी, बहुत अच्छा लिखा है, जो शेर दिल छु गया वो है "वो सूरज नया देखो........."
    @ सुलभ सतरंगी जी,
    जो शेर मुझे बेहद पसंद आया वो है, "खलल नीद में कब है.............."
    अगले अंक में आने वाले पाठशाला के शायरों का बेसब्री से इंतज़ार है.

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  18. गुरुदेव को गणतंत्र-दिवस की विलंब से ही सही, हार्दिक शुभकामनायें। कविता बहुत खास है सर...बहुत ही खास। सहेजे जाने लायक। कापी की सुविधा तो है नहीं सो जोर से पढ़कर मोबाइल में रिकार्ड कर के रख लिया है।

    अर्चना जी का पहला तरही-प्रयास काबिले तारीफ़ है। सुलभ तो अपना छोटा भाई है और कमाल के शब्द-विन्यास हैं उसकी पोटली में।

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  19. गुरुदेव बहुत अच्छा लगता है नयी पौध को तैयार होते देख कर...उर्दू शायरी का भविष्य उज्जवल है...गौतम जी, अर्श जी, रवि जी, कंचन जी, अंकित जी,( जी हटा दूं क्या ? ये दूरियां बढ़ा रहा है... ) याने गौतम, अर्श, रवि, कंचन, अंकित आदि कक्षा के होनहार ग़ज़लकारों के बाद अर्चना और सुलभ को कक्षा में देख दिल बाग़ बाग़ हो गया...
    अर्चना का ये शेर :-
    खजाने भरे रहनुमाओं के लेकिन
    रिआया के घर में हैं फाकों के साये
    और सुलभ का ये कहना:-
    न पूछो कभी जात उसकी जो तुमको
    कहीं तपते सहरा में पानी पिलाए
    बता रहा है की इनके कदम सही दिशा में हैं और ये दोनों शायरी में ऊंचा मुकाम हासिल करेंगे.
    आपकी गणतंत्र दिवस पर लिखी कविता बेजोड़ है.
    आपका ब्लॉग मुझे अमूल के विज्ञापन बोर्ड की याद दिलाता है जो ताज़े हालत को मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत करता है...आपकी साज सज्जा भी ऐसी ही समयानुकूल होती है...जय हो.
    नीरज

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  20. सुबीर जी, ब्लाग के अलावा यदि संभव हो तो किसी तरही संकलन के प्रकाशन की भी योजना बनाएं....

    बहरहाल इस बार भी मजा आ गया. रचनाकार द्वय अर्चना-सुलभ को बहुत-बहुत बधाई..

    जवाब देंहटाएं
  21. सुबीर जी, ब्लाग के अलावा यदि संभव हो तो किसी तरही संकलन के प्रकाशन की भी योजना बनाएं....

    बहरहाल इस बार भी मजा आ गया. रचनाकार द्वय अर्चना-सुलभ को बहुत-बहुत बधाई..

    जवाब देंहटाएं
  22. गुरुदेव को प्रणाम !! आपकी कविता ने मन मोह लिया...अर्चना जी अपने नए तेवरों से बहुत प्रभावित करती हैं......सुलभ सतरंगी जी के कुछ शेर बहुत अच्छे बन पड़े हैं.....

    जवाब देंहटाएं
  23. सु श्री अर्चना तिवारी जी और भाई श्री सुलभ सतरंगी जी के प्रयास देर से पढ़ पायी हूँ पर बहोत पसंद आये .
    दोनों ही को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ..
    आपकी कविता भी अनोखी लगी -- भारतीय संविधान का चित्र उस पर यह स्वाभिमान जगाती हुई कविता ,वाह
    हमारे गुणी अनुज का यह रंग - तिरंगा - बन यहां , देश गौरव स दमक रहा है
    स्नेह सहीत,
    लावण्या

    जवाब देंहटाएं

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