tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post4359798935014016587..comments2024-03-08T17:02:04.713+05:30Comments on सुबीर संवाद सेवा: करूं काम तो मन बहुत गीत गाए, गया वक्त जाकर न फिर लौट पाए । तरही मुशायरे के विशेष आमंत्रित खंड में आज दो अग्रजाओं लावण्य दीदी साहब और शार्दूला दीदी को सुनें ।पंकज सुबीरhttp://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comBlogger28125tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-26496103061787792032010-01-19T13:28:42.659+05:302010-01-19T13:28:42.659+05:30गुरु जी, शार्दूला दीदी को एक और कानूनी नोटिस भेजे ...गुरु जी, शार्दूला दीदी को एक और कानूनी नोटिस भेजे और ज़रुरत पड़े तो हम सब गवाहों के हस्ताक्षर भी ले ले.<br />@ शार्दूला दीदी, बहुत नाइंसाफी है दीदी जी, "ग़ज़ल बन गयी एक सहमी चिरैय्या......." और "समय एक माली................" दोनों ही शेर आपकी मौजूदगी को मुकम्मल कर रहे हैं, मगर सभी की विनती सुनिए और जल्द ही और शेरों से सभी को रूबरू करवाइए.<br />@ लावण्या दीदी जी, आपके गीत के बारे में कुछ कहने और लिखने की गुस्ताखी मैं नहीं कर सकता हूँ. बहुत बहुत अच्छा गीत है, हर बंद एक अलग एहसास के साथहै.Ankithttps://www.blogger.com/profile/08887831808377545412noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-63518816363294799082010-01-18T23:40:02.730+05:302010-01-18T23:40:02.730+05:30नमस्ते पंकज भाई ,
अभी अभी आपके ब्लॉग पर सार्दूला ...नमस्ते पंकज भाई , <br />अभी अभी आपके ब्लॉग पर सार्दूला जी के संग , मेरी आपके स्नेह से संवारी हुई गीत - ग़ज़ल पढी<br />और आदरणीय महावीर जी की सलाह को शिरोधार्य कर रही हूँ ...<br />आप भी पढ़ें और आशा है मेरा साथ देंगें ताकि , मेरे अनुज , <br />गुणी भाई के मार्गदर्शन से सीखती रहूँ ........<br />सीखने की कोइ उमर नहीं होती ..<br />ऐसा मैं , द्रढ़ता से मानती हूँ .....<br />मेरा लेखन -- सीधा ह्रदय से निकलता है<br /> ..जैसा भाव उमड़ता है ...वैसा ही ,<br /> बिना किसी छद्म या आडम्बर के , <br />सीधे ही , लिख देती हूँ <br />और आप के ममत्वपूर्ण संबोधन <br />" दादा भाई " और " दीदी साहब " <br />और साथ आपका अपना लेखन व आपकी <br />रचना धर्मिता से ये जान पायी हूँ कि, आप में ममता व स्नेह की छाँव के साथ साथ , <br />सामाजिक विद्रूपताओं तथा अन्याय के विरुध्ध ललकार फेंकने की हीम्मत और जज्बा भी खूब है .<br /> दूर से ही सही, यह सब नज़र आ रहा है -- <br /> अब आ. महावीर जी का लिखा भी पढ़ लीजिये <br />------------------------------------" आपको एक मशवरा देना चाहता हूँ. हो सके तो प्राण शर्मा जी या पंकज सुबीर जी से संपर्क करें जिससे ग़ज़ल के नियमों से अवगत हो सकें. आपके लिए यह मुश्किल नहीं होगा, मुझे इस बात का यक़ीन है. कुछ ही दिनों के बाद आपकी ग़ज़लों की डिमांड इतनी हो जायेगी कि आप ख़ुद ही विस्मित हो जायेंगी.<br />महावीर शर्मा <br />January 13, 2010 11:13 ऍम<br />-------------------------<br />तरही मुशायरे में , मेरी रचना को संवार कर प्रस्तुत करने के लिए आपका कोटिश: आभार ..................<br />घर<br /> पर सभी को मेरे स स्नेह नमस्कार <br />आपकी बड़ी बहन, <br />- लावण्या के स्नेहाशीषलावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-25801067478447393092010-01-17T20:41:14.716+05:302010-01-17T20:41:14.716+05:30शार्दूला जी जो को गौतम जी के ब्लॉग पर पढ़ा, उनकी आव...शार्दूला जी जो को गौतम जी के ब्लॉग पर पढ़ा, उनकी आवाज़ बहुत मधुर है और वो बहुत स्नेहिल है उनके ये तीनों ही शेर बहुत पसंद आये<br />काश कि पंकज जी थोडा और धमका पाते तो कुछ और शेर पढने मिल जाते<br /> लावण्या जी की कलम की तारीफ सूरज को रोशनी दिखाने जैसा है<br />उनको पढना हमारी किस्मत है<br />पंकज जी का शुक्रिया जिन्होंने इतने अच्छे अग्रजों को पढने का अवसर दियाश्रद्धा जैनhttps://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-91683983427652557412010-01-17T20:21:26.666+05:302010-01-17T20:21:26.666+05:30वरिष्ठ जनों की रचनाओं पर क्या कहूं? अतिसुन्दर.वरिष्ठ जनों की रचनाओं पर क्या कहूं? अतिसुन्दर.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-76145798109568130862010-01-17T14:06:59.733+05:302010-01-17T14:06:59.733+05:30सोन चिरैया ये शब्द अपनी दादी माँ से सूना करता था क...सोन चिरैया ये शब्द अपनी दादी माँ से सूना करता था कुछ कहानियो में. सोते वख्त वो सुनाया करती थी..<br />और आज श्रदुला दी की ग़ज़ल में इतनी खुबसूरत से लगाया है सहमी चिरैया <br />के रूप में के अब कहने को कुछ नहीं रह गया .. सिर्फ तिन शे'र में ही <br />मैं तो ठिठक गया कुछ और शे'र कहे होते तो फिर क्या होता सारे लोग ऐसे ही अपने शब्दों <br />की कमजोरी पर कमोबेश गिरेबान झाँक रहे हैं...<br />और लावण्या दी की संवेदनशीलता के बाते में क्या कही जाए जब भी उनकी <br />पोस्ट पढता हूँ वो कमाल के होते हैं... और इस बारी भी वही बात हुई है <br />दोनों अग्रजाओं को सादर प्रणाम ... तरही तो अपने शबाब पर है <br />क्या खूब जमी है इस बारी ... <br /><br />श्रदुला दी की आवाज़ में तमाशा ... गौतम जी की उफ्फ्फ्फ़ वाली बात है <br /><br />अर्श"अर्श"https://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-82783176371272787382010-01-17T12:24:47.478+05:302010-01-17T12:24:47.478+05:30इस साल के शुरू से थोड़ी मसरूफ़ियत थी, जो अब जा के क...इस साल के शुरू से थोड़ी मसरूफ़ियत थी, जो अब जा के कम हुई है. सुबीर भैया का ब्लॉग पढती रही हूँ और ख़त में लिखती रही हूँ उन्हें. इस बार तरही में खुद हिस्सा नहीं लिया तो दर्शक दीर्घा से दिल खोल के सीख रही थी. पर कल १० मिनट को आनलाईन आयी और पाया कि किसी कमेन्ट में लिखीं हुईं impromptu सी पंक्तियाँ सुबीर भैया ने पोस्ट कर दीं हैं तो देख के सिर पकड़ लिया :) :). डिनर था घर पे कल और ऊपर से सिंगापुर और सीहोर बीच "बंगाल की खाड़ी" है सो भैया बच गए :):) खैर छोड़िये . . . <br /> ==========<br />अब तक जो तरही में पढ़ा उसमें से जो कुछ मन में घर कर गया, वह लिख रही हूँ इक्कठा आज. कमेन्ट लंबा होगा...सो माफी... :(<br />पहले आज़म साहब की शुरुआत थी ... एक शेर जो कहता था कि फ़रिश्ते जहाँ मुश्किल से चलते हैं वहाँ दौड़ा करते हैं वे... वाह!<br />फ़िर पंकज जी ने कहा कि अगर टूटते हैं तो सपनों को टूटने दीजिये, दुबारा नए सजाईये ..., वाह!<br />पाखी जी ने दो बहुत ही प्यारी बातें कहीं... मेरे हौसलों में कमी बस न आए और रिआया ही पत्थर कोई अब उठाये ... याद रह गए ये मिसरे!<br />इसके बाद वाली पोस्ट पे भैया को एक लंबा सा ख़त भेजा था मैंने. पर ख्यालात अंग्रेज़ी में उमड़े क्योंकि लंच में पढ़ा था आफिस में, सो पोस्ट नही किया उसे कमेन्ट में. दिलो-दिमाग पे छाजाने वाले वे ग़ज़ल और गीत थे आदरणीय प्राण जी और गुरुजी राकेश खंडेलवाल जी के. <br />प्राण साहब के लेखन में जो सादगी है वह तभी आ सकती है जब हम इस भावना से ऊपर उठ जायें कि भाई हमें ये दिखाना है कि हमारे विचार कितने ऊँचें और कितने चमकृत करने वाले है. वरना उनके stature और अनुभव वाले लेखक के लिए चौंकाने वाला कुछ भी लिखना बहुत आसान है. ये लिखते लिखते ...परवीन शाकिर याद आ गईं ... "अब इतनी सादगी लायें कहाँ से..."<br />प्राण शर्मा जी के "पतंग उड़ाना सुहाता है मुझको , ज़रूरी नहीं कि उसे भी सुहाए" वाला बिम्ब और दीये सी खूबियों से खुद को महल सा सजाने वाला बिम्ब अभी तक मन में है.<br />गुरुजी के गीत के लिए मैं कुछ भी नहीं कहूंगी. बस नमन! . . . और नमन! अपने आप से कहूंगी ... सीख कुछ तो मन! एक कतरा भी समझ तो कल्याण हो जायेगा!<br />....पर बिना ये लिखे आगे नहीं बढ़ पा रही... कि सीख शार्दुला कैसे एक मिसरे को बदला जाता है ये कह कि "ये अंदेशा पल भी पालें न मन में कि ..." <br />निर्मल सिद्दू साहब का "नया भी पुराने के अन्दर से आए... " याद रह गया अब तक!<br />शाहिद मिर्ज़ा साहब का दिलों से दिलों तक की खिडकी, उफ्फ ... और ये मुहबब्त x ४ , by God! <br />फ़िर दिगंबर नसावा जी की ग़ज़ल ठेठ उस दिन जिस दिन माँ के हाथ की खिचड़ी याद कर के , सुबह-सुबह सुबीर भैया का "सावन " का गीत सुन के और प्यारेलाल का surprise ब्लॉग पोस्ट पढ़ के मन इतना रुआंसा हो रहा था. तुरंत पंकज भैया को लिखा कि आज कुछ न लिख पाउंगी !!<br />दिगंबर जी की गज़ल का कोई भी शेर छूटे तो कोई और लिखूँ... हर शेर उम्दा, हर शेर धुआँसा-धुआँसा, याद से लिपटा!! टू मच! <br />आपको सलाम दिगंबर जी ! जानलेवा लिखा है आपने!<br /> ऎसी ग़ज़ल भेजने वालों को सुबीर भैया आप सख्त हिदायत दे दीजिये की वे भारत का टिकट लगा के भेजां करें ग़ज़ल... मैं सिंगापुर मैं हूँ ..उनको यूं.एस. और कनाडा वालों से सस्ता रहेगा मेरा टिकट :) <br />रविजी का "क़यामत सी गुज़री वो जब मुस्कुराए... " :). और ये चकला, बेलन वाला .. कैसे सोचा होगा, सोचती रह गयी... और फ़िर नदी तीर कान्हा और कोई तो बुलाये दोनों में कितनी कसक! वाह!<br />फ़िर अपना कमेट में हाथों- हाथ लिखी पंक्तियाँ देखीं as a post, ... सिर का पकड़ना तब जा के ख़त्म हुआ जब लावण्या दीदी की कविता पढ़ी! वाह क्या बात है! सच में मन उंडेल के रख दिया है दीदी ने ! समय की नदी में कहीं खो गए हैं... जो दामन छुडा करके गुम हो गायें हैं ..बहुत हृदय विदारक!!<br /> ए मालिक रहम के जो कतरें मिलें तो... बहुत ही मन से लिखा हुआ... मन को छूता हुआ गीत! बहुत आभार आपका लावण्या दीदी!<br />----<br />अब "तमाशा" के बारे में. सुनने वालों को पता ही चल गया होगा की पूरी कहानी रोते-रोते पढ़ी गयी है. सुबीर भैया को धन्यवाद स्त्री मन के गुस्से और hurt को इतनी खूबसूरती से पहचानने और लिखने के लिए.<br />----<br />अब आप पूरा कमेन्ट पढ़ के भी मुझे मारने सिंगापुर नहीं पहुंचे हैं तो बंगाल की खाड़ी को फ़िर से धन्यवाद :) :)... सादर शार्दुलाShardulahttps://www.blogger.com/profile/14922626343510385773noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-91645111519740596002010-01-17T11:17:50.886+05:302010-01-17T11:17:50.886+05:30शार्दुला जी को तो गौतम जी के ब्लॉग पर पढ़ा था तो ल...शार्दुला जी को तो गौतम जी के ब्लॉग पर पढ़ा था तो लगा था की दुबारा कब और कैसे पढ़ुंगा ........... और आज इतनी जल्दी दुबारा मौका मिल गया ............ वो भी इस मुशायरे में .......... ग़ज़ल बन गयी एक सहमी सी चिड़िया ........ इस कमाल की लेखनी से इतना कम (बस ३ ही शेर) पढ़ने को मिला है की प्यास नही बुझी ....... <br />और लावण्य दी के बारे में कुछ भी कहने की न मेरी हैसियत है न मेरी ज़ुबान खुलेगी ....... बस ऐसा लग रहा है जैसे आनंद के सागर में गोते लगा रहा हूँ ........ साहित्य की गगरी छलक रही है और में प्यासा बस पिए जा रहा हूँ ... न गगरी में जल ख़त्म हो रहा है न मेरी प्यास ...........<br /><br />गगरी से जल ज्यों छलकता ही जाए <br />न जाए मुशायरा ये क्या गुल खिलाए ....दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-63341578309498783162010-01-17T09:18:10.084+05:302010-01-17T09:18:10.084+05:30मन भावन शब्दावली में दिल से निकली हुई दुआएं और शु...मन भावन शब्दावली में दिल से निकली हुई दुआएं और शुभकामनाएं आने वाले सभी हादसों की रहे रोकने में समक्ष होंगी . लावण्या और शार्दूला जी की पुर असर रचनायें पद कर मन आनंदित हो गयाDevi Nangranihttps://www.blogger.com/profile/08993140785099856697noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-7896791487981217472010-01-17T05:43:58.655+05:302010-01-17T05:43:58.655+05:30गजल बन गई एक सहमी चिरैया
उडाऊ उड़े ना, बुलाऊँ न आए...गजल बन गई एक सहमी चिरैया<br />उडाऊ उड़े ना, बुलाऊँ न आए <br /><br />शार्दुला दीदी जी की इस शेर की जीतनी भी तारीफ की जाए कम है.<br /><br />लावण्य दीदी ने तो पूरी नज्म ही लिख दी.<br /><br />..अच्छे पोस्ट के लिए आभार.देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-28992412847803011642010-01-16T23:55:57.637+05:302010-01-16T23:55:57.637+05:30दोनो रचनाकारों को नमन। बहुत अच्छी रचनायें।दोनो रचनाकारों को नमन। बहुत अच्छी रचनायें।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-49919487707445355852010-01-16T23:15:18.240+05:302010-01-16T23:15:18.240+05:30आज का मुशायरा नए अंदाज़ में है. शार्दूला जी, सहमी च...आज का मुशायरा नए अंदाज़ में है. शार्दूला जी, सहमी चिरैया अकेली ही पूरी रचना पर छा गई. पढ़कर आनंद आ गया.<br />लावण्या जी के शुभकामना सन्देश ने तो आज की पोस्ट में सोने में सुहागा का काम कर दिया. बहुत सुन्दर!<br />लावण्या जी ने गीत में ऐसे सुन्दर भावों और शब्दों को सजाया है कि पढ़ते ही बार बार पढ़ने से भी दिल नहीं भरता. आपकी अनुमति के ही ब्लॉग के नियम की अवहेलना करके पूरे गीत को टाइप करके सहेजने का लोभ संवरण नहीं कर सका. सुबीर जी और लावण्या जी इस धृष्टता के लिए क्षमा करना. गीत के आनंद के साथ साथ बीच बीच में ग़ज़ल का भी आनंद आ रहा है. सुबीर जी की प्रस्तुति के लिएआभार.महावीरhttps://www.blogger.com/profile/00859697755955147456noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-76985566518333978562010-01-16T18:30:54.676+05:302010-01-16T18:30:54.676+05:30इस बार तो हिट पे हिट सिरीज़ चल रही है, हम जैसे लोग...इस बार तो हिट पे हिट सिरीज़ चल रही है, हम जैसे लोगो को अंत मे लगा कर क्या इस बार ट्रैजिक एण्ड कराने का विचार है गुरुवर...!!<br /><br />शार्दूला दी के तीन तो यूँ भी हम जैसों के तीन सौ पर भारी पड़ते हैं।<br /><br />और लावण्या दी की कविता में संवेदनशीलता तो हमेशा ही रहती थी, इसबार हर बार से अधिक लयबद्धता भी थी।<br /><br />दोनो ममत्व भरे व्यक्तित्व को एक साथ पढ़ना बहुत अच्छा लगा गुरुवर....!!कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-59018659397998116282010-01-16T17:34:22.328+05:302010-01-16T17:34:22.328+05:30LAVANYA SHAH AUR SHARDULA DONO KEE
RACHNAAYEN PADH...LAVANYA SHAH AUR SHARDULA DONO KEE<br />RACHNAAYEN PADH GYAA HOON.KHOOB <br />LIKHA HAI DONO NE ! SHARDULAJEE KE<br />" CHIRAIYA" WAALE SHER MEIN TAAJGEE<br />HAI.LAVANYA JEE KE GEET KEE KAEE PANKTIYON MEIN GAZAL KAA ANOOTHAPAN<br />HAI.DONO KO BAHUT-BAHUT BADHAAEE<br />AUR SHUBH KAMNApran sharmahttps://www.blogger.com/profile/14595198332257086105noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-29116404872203029012010-01-16T16:01:24.122+05:302010-01-16T16:01:24.122+05:30बहुत खूबसूरत हैं दोनों ग़ज़लें...उनके हर शे'र ...बहुत खूबसूरत हैं दोनों ग़ज़लें...उनके हर शे'र उमदा हैं कि क्या कहने...बस बार-बार पढ़ने का मन हो रहा है...आभारअर्चना तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04130609634674211033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-75699501713476676622010-01-16T15:52:49.448+05:302010-01-16T15:52:49.448+05:30सुबीर साहब
कल ही तो गौतम जी के ब्लॉग पर शार्दूला ...सुबीर साहब <br />कल ही तो गौतम जी के ब्लॉग पर शार्दूला जी को पढ़ा था....क्या ज़बरदस्त पोस्ट थी गौतम जी की कलम से..,......खुमार उतरा भी नहीं था की आपने एक और तोहफा दे दिया......एक ही कमी रही की एक मतला और महज दो शेर यह अलग बात थी ये तीनों शेर पूरी ग़ज़ल से कम नहीं थी.........लावण्या जी ने भी क्या कहर ढाया है..........! सुबीर साब आपको बहुत बहुत साधुवाद......उत्कृष्ट सृजन कार्य के लिए.Pawan Kumarhttps://www.blogger.com/profile/08513723264371221324noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-40440124407933577222010-01-16T15:12:52.825+05:302010-01-16T15:12:52.825+05:30दोनों अग्रजाओं को नमन है। ताज को लेकर रचे गये लावण...दोनों अग्रजाओं को नमन है। ताज को लेकर रचे गये लावण्या दी के बन ने अजब ढ़ंग से छुआ है...पूरा गीत ही बहुत खूबसूरत बना है।<br /><br />और शार्दुला दी..तुस्सी ग्रेट हो दी। <br /><br />कहानी अभी हटाइयेगा नहीं गुरुदेव साइड-बार से...गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-134501944846393712010-01-16T14:40:40.094+05:302010-01-16T14:40:40.094+05:30पंकज जी, आदाब
शार्दुला जी के मतले और दो शेर कम नही...पंकज जी, आदाब<br />शार्दुला जी के मतले और दो शेर कम नहीं, बल्कि कई ग़ज़लों पर भारी हैं<br />ग़ज़ल बन गई एक सहमी चिरैया<br />उड़ाऊं उड़े ना, बुलाऊं न आए<br />वाह.! क्या खूबसूरत भाव पेश किये हैं, <br /> और <br />लावण्य जी का गीत, खासकर ये पंक्ति-<br />चिता पर शहीदों की आंसू बहे हैं....<br />भाव विभोर कर गईं<br /><br />आज की रचनाओं ने <br />आपके आयोजन की गरिमा को <br />शिखर पर पहुंचा दिया है<br />शाहिद मिर्ज़ा शाहिदशाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद''https://www.blogger.com/profile/09169582610976061788noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-64629462566013829602010-01-16T11:46:54.146+05:302010-01-16T11:46:54.146+05:30Wah.....Mazaa aa gaya aaj to..Wah.....Mazaa aa gaya aaj to..योगेन्द्र मौदगिलhttps://www.blogger.com/profile/14778289379036332242noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-44896642353426902562010-01-16T11:06:34.467+05:302010-01-16T11:06:34.467+05:30कहानी हृदयविदारक है... आवाज़ में जादू है... दंग रह...कहानी हृदयविदारक है... आवाज़ में जादू है... दंग रह गया मैं...Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-1241043631273539232010-01-16T10:49:12.559+05:302010-01-16T10:49:12.559+05:30गुरूजी, आपकी प्रस्तुति लाजवाब है.गुरूजी, आपकी प्रस्तुति लाजवाब है.Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-77896549731646847342010-01-16T10:48:18.571+05:302010-01-16T10:48:18.571+05:30लावण्या दीदी के सन्देश ने शुभकामनाओ की तिजोरी खोल ...लावण्या दीदी के सन्देश ने शुभकामनाओ की तिजोरी खोल के रख दी... गीत में दर्द हैं श्रंद्धांजलि है... प्रार्थना है...ऐ मालिक.....Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-2373747990467284302010-01-16T10:48:04.950+05:302010-01-16T10:48:04.950+05:30कल ही गौतम भाई के ब्लॉग पर शार्दूला दी की रचनाओं क...कल ही गौतम भाई के ब्लॉग पर शार्दूला दी की रचनाओं का रसास्वादन किया था. आज पुनः: उनको सुनकर मन बहुत खुश हुआ. कितने सलीके से संवेदनशील बिम्बों का प्रयोग करती हैं... और हम बच्चे की तरह पढ़ते हैं....Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-39502481987357932572010-01-16T10:26:32.598+05:302010-01-16T10:26:32.598+05:30lavany ji kee rachana dil chho gai, schmuch jyoti ...lavany ji kee rachana dil chho gai, schmuch jyoti kalash chhalak uthe. shardula ji ke sher bhi sundar n pde hai.girish pankajhttps://www.blogger.com/profile/16180473746296374936noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-60512289818434644112010-01-16T10:13:36.586+05:302010-01-16T10:13:36.586+05:30गुरूजी, शार्दूला दी और लावण्या दी को पढ़कर आनंदित ह...गुरूजी, शार्दूला दी और लावण्या दी को पढ़कर आनंदित हूं और बार-बार पढ़ रहा हूं। ऐसे खो गया हूं जैसे किसी ने एक साथ ही "स्तंभन, मोहन, मारण, बाजीकरण, विद्वेष और उच्चाटन" इन समस्त तंत्र शक्तियों का प्रयोग कर दिया हो मुझ पर!<br />"गज़ल बन गई इक सहमी चिरैया" अद्भुत प्रयोग है इतना अद्भुत कि प्रशंसा करने में अपने शब्दकोष की दरिद्रता का प्रत्यक्ष भान होता है। आपकी आपत्ति को पूरा समर्थन।<br />आगे चलूं तो लावण्या दी का "पुकारो पुकारो और रहम के कतरे वाली बात पर एक बार फ़िर से निःशब्द हो गया हूं। बहुत सुंदर!रविकांत पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/14687072907399296450noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-52475169743079745102010-01-16T09:52:55.975+05:302010-01-16T09:52:55.975+05:30शार्दूला जी और लावण्या दी को एक साथ प्रस्तुत कर आप...शार्दूला जी और लावण्या दी को एक साथ प्रस्तुत कर आपने अचंभित कर दिया है...दोनों के काव्य के बारे में कहना मेरे बस में नहीं है...जो काव्य दिल को छुए उसे शब्द नहीं दिए जा सकते...शार्दूला जी से शिकायत है इतनी खूबसूरत ग़ज़ल कहते कहते पता नहीं अचानक रुक क्यूँ गयीं? ग़ज़ल को सहमी चिड़िया का संबोधन विलक्षण है...लावण्या जी की कलम से निकला हर शब्द सीधा दिल में उतरता है...इस अद्भुत भावपूर्ण गीत के लिए उन्हें प्रणाम...आपके हम सभी आभारी हैं जिनकी बदौलत साहित्य का ये अनमोल खज़ाना हमें बिना कुछ किये लूटने को मिल रहा है...<br /><br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.com