ऊं एं सरस्वत्यै नम:
या कुन्देन्दु- तुषारहार- धवला या शुभ्र- वस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमन्डितकरा या श्वेतपद्मासना |
या ब्रह्माच्युत- शंकर- प्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा |
शुद्धां ब्रह्मविचारसारपरमा- माद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् |
हस्ते स्पाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् |
हम सब जो जहां कहीं भी हैं वे सब मां सरस्वती के साधक हैं आराधक हैं । हम सब पर मां सरस्वती की विशेष कृपा हुई है जो हम विशिष्ट हुए हैं । हमारे पास शबद की शक्ति है । ये शक्ति केवल और केवल कृपा से ही मिलती है । धन, बल ये सब कमाये जा सकते हैं लेकिन शब्द की शक्ति, केवल अनुकंपा से ही मिलती है । मां शारदा की अनुकंपा से । और जिस पर उसकी कृपा हो जाती है उसे फिर और क्या चाहिये । आज वसंत पंचमी है । मां सरस्वती का प्राकट्य दिवस । आज शब्द साधक मां सरस्वती का पूजन अर्चन करते हैं । पूजन शब्दों से अर्चन विचारों से । आज हम सब शब्द साधकों का सबसे बड़ा त्यौहार होता है । आज हमारे लिये सबसे बड़े उत्सव का दिवस है । आइये आज हम सब मां सरस्वती से प्रार्थना करें कि उसने जो शब्दों की शक्ति हमारे हाथों में दी है वो हम सब के पास यूं ही बनी रहे । विश्व में जो बाज़ार और विचार का युद्ध चल रहा है उसमें अंतत: विचार की विजय हो, शब्द की विजय हो । आइये आज हम इस ग़ज़ल गांव की सबसे कम उम्र की शब्द साधिका को अवसर देते हैं मां सरस्वती के पूजन का । आप सब मां से प्रार्थना करें कि उसका आशीष इस नन्हीं साधिका अनन्या को मिले ।
सुकवि रमेश हठीला स्मृति तरही मुशायरा
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में।
कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गाँव में।
अनन्या 'हिमांशी'
अनन्या सचमुच चौंका रही है । इसलिये कि इसकी ग़ज़लों में भाव बहुत मुखर होकर उभरते हैं । वो केवल लिखने के लिये नहीं लिख रही है । वो इसलिये लिख रही है कि शब्द उसे बेचैन कर रहे हैं । जब शब्दों की बेचैनी से रचना पैदा होती है तो वो अपना समग्र प्रभाव छोड़ती है । अनन्या की ग़ज़लें आने समय की सुखद आहटें हैं । आहटें इस बात की, कि आने वाला समय भी शब्द की ही सत्ता का होगा । निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है । क्योंकि हिमांशी जैसी मां शारदा की साधिकाएं नई पीढ़ी से सामने आ रही हैं । आइये सुनते हैं अनन्या से उसकी ये सुंदर ग़ज़ल ।
( इस ग़ज़ल को इस छुटकी ने खुद ही तकतीई किया है आप भी जांचे इसके काम को )
पनघटों पर भीड़ लगती है अभी तक गाँव मे,
हाथ में गोरी के मटकी है अभी तक गाँव में।
ईंट से इक घर बनाती, ब्याह गुड़िया का करे,
चुलबुली बच्ची फुदकती है अभी तक गाँव में।
भाग आये सब नगर पर गाँव कब वीरान है,
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में।
टोटियों में बूँद पानी की इधर दिखती नहीं,
पर नहर इठला के बहती है अभी तक गाँव में।
बटलियों के भात की खुशबू वही है आज भी,
चूल्हे की रोटी महकती है अभी तक गाँव में।
मंद सी आवाज़ में नानी कहानी बाँचती,
और मंगल गीत गाती है, अभी तक गाँव में।
हैं कृषक फाँसी लगाते कर्ज के बोझे तले,
हलकू, होरी की कहानी है अभी तक गाँव में
'बटली' उफ क्या याद आई । इस बार का तरही मुशायरे अपने देशज शब्दों के प्रयोग के कारण अनूठा होता जा रहा है । इस बार भी छुटकी ने ये जो बटली शब्द का प्रयोग किया है ये अनोखा है । जिसने बटली का भात खाया है उसके लिये तो ये आनंद का शेर है । और रोंगटे खडे कर देने वाला शेर है वो जिसमें नानी मंद मंद आवाज में अब तक मंगल गीत गा रही है । एकाकीपन को केवल मंद सी आवाज के प्रयोग से छुटकी ने जबरदस्त आकार दिया है । नई पीढ़ी यदि हलकू और होरी के नाम जानती है तो हमें निश्चिंत होना चाहिये कि अंधेरा उतना घना नहीं है जितना हम सोच रहे हैं । मतला खूब कहा है और गिरह भी अलग तरीके से बांधी है । और हां ये ईंट का घर तो बचपन में मैंने भी बनाया है और उसमें खूब साज सजावट की है, याद आ गई उस घरौंदे की, पलकें नम हो गईं । खूब कहा है छुटकी खूब कहा है । वाह वाह वाह ।
और अंत में एक विशेष घोषणा । आज वसंत पंचमी के शुभ दिवस पर स्व. रमेश हठीला जी की स्मृति में 'सुकवि रमेश हठीला स्मृति सम्मान ' शिवना प्रकाशन द्वारा स्थापित किया जा रहा है । यह सम्मान हर वर्ष इसी ब्लाग पर पिछले वर्ष भर में आयोजित विभिन्न तरही मुशायरों में प्रकाशित ग़ज़लों तथा शायर की रचनाधर्मिता के आधार पर दिया जायेगा । हर वर्ष सम्मानित किये जाने वाले रचनाकार के नाम की घोषणा वसंत पंचमी पर की जायेगी । और फिर वर्ष भर में सुविधा के अनुसार ये सम्मान प्रदान किया जायेगा ।
तो आज आनंद लीजिये हिमांशी की शानदार ग़ज़ल का और दाद देते रहिये । मां सरस्वती की पूजा में आज कम से एक शेर ज़रूर कहें । कुछ न कुछ ज़रूर लिखिये आज । कोई कविता, कहानी, ग़ज़ल, लेख कुछ भी । आज के दिन कुछ लिखना अपने तरीके से मां सरस्वती की पूजन है । सो अपने हिस्से की पूजन अवश्य करें ।
माँ सरस्वती को नमन. हम सब पर माँ सरस्वती का आशीर्वाद बना रहे..
जवाब देंहटाएंअनन्या की गज़ल बेहतरीन है. इतनी कम उम्र में भावों की परिपक्वता दर्शाती है की अनन्या बहुत अच्छी शायरा के रूम में उभर कर सामने आने वाली है. मुझे तो गिरह वाला शेर बेहद बेहद पसंद आया. मतला बहुत खूबसूरत.."टोंटियों में बूँद पानी की इधर दिखती नहीं" में बहुत खूबी से "इधर" का प्रयोग किया है. बहुत ही प्यारे शेर कहे हैं.. आनंद आ गया. अनन्या को बहुत बहुत बधाई.
हम सभी पर माँ सरसवती का आशीर्वाद यूँ ही बना रहे.........और इस गुड़िया ने वाकई बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है अपनी लेखनी में शब्दों के हर तार को ........बधाई
जवाब देंहटाएंपर्व-त्योहार-उत्सव मुताबिक जिस तरह से ये "सुबीर सवाद सेवा" सज उठता है, मन देखते ही बस उसी दिन-विशेष मे ढल जाता है| वसंत की ये सज्जा खूब फब रही है....
जवाब देंहटाएंअनन्या की तरही फोन पर सुनते ही मैं ऐसा घबरा उठा था कि इस बार अपनी तरही भेजने का साहस ही नहीं कर पाया| अभी पिछली कानपुर यात्रा के दौरान इस माँ शारदा की इस नई साधिका से खूब बातें हुई थी.... और मन ने कहा था उसी वक्त जो आपने लिखा है इस छुटकी के लिए |
गिरह बहुत ही अनूठा बांधा है...एकदम अलग सा| मतले से लेकर सारे शेर, विश्वास ही नहीं होता एक बारगी कि इस छुटकी अनन्या ने कहा है| बहुत नाम रौशन करेगी.... खूब सारा स्न्हे और आशीर्वाद!
माँ शारदा का आशीष बना रहे..
जवाब देंहटाएंकृपाकांक्षी लगातार शब्द-धनी होते जाते हैं. भावों और तमाम भावनाओं को शब्दों का जामा देना कोई वरदान है या कुछ और यह हम सभी सोचते रहें. परन्तु माँ सरस्वती के आंचल की छाँव और ओट कितना उत्फुल्ल रखती है, कितना ऊर्जस्वी रखती है, दृष्टि को कैसे-कैसे स्वर देती है, यह बेटी अनन्या हिमांशी के कहे से संवर्धित हुआ दीखता है.
ग़ज़ल के शिल्प को समझना और अपनी भावनाओं को पिरोना.. उफ़्फ़ !
कहना न होगा, अनन्या की कोशिश आश्वस्त कर रही है.
ईंटों को आड़े-तिरछे सजा घर बनाना, कमरों को फूलों से सजाना.. आह.. क्या याद दिलाया है तूने बेटा !
और, ’उधर’ नहर इठला के बहे न बहे, मगर इसमें कोई शक नहीं कि ’इधर’ की टोंटियों की धार से अधिक भरोसेमंद है.
बटलोही या बटली में रंधे चावल कितने फरहरे और मीठे हुआ करते थे, यह वे ही जानते हैं जिन्हों ने उन चावलों से रंधे भात का स्वाद लिया है. बेटा जी का इस पर सोच लेना बहुत भावुक कर गया है. बहुत अच्छे अनन्या !
आखिरी शे’र में होरी और हलकू का बिम्ब एक ओर तो रोमांचित करता है तो दूसरी ओर झुंझलाने का कारण बनता है.. हाँ, ये वो सहर नहीं..
जिस शे’र में गिरह लगी है उसपर तो अच्छे-अच्छे सर पटकें. बहुत खूब कहा है और दिल से कहा है.
आपकी जगह बन गयी है अनन्या. बस उस जगह को बनाये रखें, बेटा. ह्रुदय से शुभकामनाएँ...
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)--
आज की तरही ग़ज़ल पर कुछ कह पाने की स्तिथि में नहीं हूँ...हाथ उठा कर इस प्यारी सी गुडिया के लिए दुआ मांग रहा हूँ...बस.
जवाब देंहटाएंनमन नमन नमन...लगता है माँ शारदा ने पास बैठ कर स्वयं ये ग़ज़ल इस गुडिया से लिखवाई है...
नीरज
बेहतरीन गज़ल,वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये !
जवाब देंहटाएंआज आपके ब्लॉग पर बसंत की छटा देख कर "मलिका पुखराज" और उनकी बेटी "ताहिरा सईद" का गाया अमर बसंत गीत " लो फिर बसंत आयी..." कानों में गूंजने लगा है...
जवाब देंहटाएंhttp://www.youtube.com/watch?gl=IN&v=jq3bb33sElU
MERI PAHLI TIPPANI FIR GAYI SPAM MEN...YE MERE SAATH HI KYA HO RAHA HAI GURUDEV?????
जवाब देंहटाएंसबसे पहले माँ सरस्वती को नमन फिर इस शानदार साज सज्जा के लिए आपको नमन।
जवाब देंहटाएंतदोपरांत इस शानदार ग़ज़ल के लिए छुटकी को बहुत बहुत बधाई और ढेर सारी जलन कि ये शे’र मुझको क्यूँ नहीं सूझे।
क्या गिरह बाँधी है। वाह वाह...
हलकू, होरी के लिए अलग से बधाई।
और इतनी कम उम्र में ऐसे शानदार शे’र कहने के लिए (बधाई / 0 = अनंत बधाई)।
बसंत पंचमी की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएं'अभी तक गॉंव में' एक ऐसा रदीफ़ है जिसकी आत्मा तक पहुँचे बिना कठिन होगा एक शेर भी कहना। 'अभी तक' समय-सापेक्ष है, तुलना करता है एक काल की दूसरे काल से और 'गॉंव में' ग्रामीण परिवेश के साथ-साथ स्थापित मूल्यों परंपराओं की बात करता है। गॉंव के संदर्भ में ऐसा कुछ तलाशना और उसे शेर में बावज़्न बॉंधना, दुष्कर नहीं तो सरल भी नहीं है। इस रदीफ़ में तुलना गॉंव-गॉंव से हटती है तो स्वाभाविक है कि दूसरा तत्व आता है शह्र का बदलाव जिसकी तुलना में दिखता है कि गॉंव में तो अभी भी ऐसा होता है। इसे बॉंधने में ऊहापोह की जो स्थिति बनती है उसमें से आज के सरोकारों को पिरो ले जाना तो और भी कठिन है।
जवाब देंहटाएंइस सब को अनन्या की ग़ज़ल के साथ देखता हूँ तो विश्वास नहीं होता कि इस उम्र में अहसास इस स्तर पर आकर भी बोल सकता है। अनन्या के लिये एक विशेष पुरस्कार मेरी ओर से; प्रयास रहेगा शीघ्र ही स्वयं सीहोर आकर पंकज भाई के हाथ सौंपने का (मेरा शीघ्र भी कभी-कभी एक माह से लंबा खिंच जाता है)
वाह आज तो बसंत पंचमी की मोहक छटा है ब्लॉग पर ...
जवाब देंहटाएंअनन्या ने जिस तरीके से ये ग़ज़ल कही है वो बस आप जैसे उस्ताद और कड़ी लगन का ही नतीजा हो सकता है ... इस ग़ज़ल का हर शेर सकारात्मक भाव लिए है ... गाँव की एक ऐसी छवि उभार रहा है जो दिल में बसी रहती है ... मलता बहुत ही लाजवाब ... फिर इंट से इक घर बनाती ... या फिर ... भाग आये सब नगर .. या फिर .... तोंतोयों में बूँद पानी ... हर शेर बुला रहा गाँव की सीमाओं में ... और आखरी शेर में तो आज का सच कह दिया ... स्तब्ध कर दिया इन संवेदनाओं ने ....
आज की पीड़ी आने वाला कल का भविष्य है और लगता है की भविष्य सजग है ... जागृत है समाज के प्रति .... बहुत बहुत शुभकामनाएं है चुटकी अनन्या को (वैसे चुटकी नज़र नहीं आती किसी भी शेर से ...)
बहुत सुन्दर,सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंऋतुराज वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
गुरूवर,
जवाब देंहटाएंअनन्या ने बहुत खूबसूरत गज़ल कही है।
टोंटियों में बूँद पाबी की इधर दिखती नही
पर नहर इठला के बहती है अभी तक गाँव में
वाह...वाह
बटलियों के भात कि खुश्बू वही है आज भी
चूल्हे की रोटी महकती है अभी तक गाँव में
बहुत खूब......
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
माँ सरस्वती की कृपा है हम सभी पर. प्रणाम! सब पर कृपा बनी रहे इसी प्रार्थना के साथ आचार्य सुबीर जी को विशेष प्रणाम कि जाने अनजाने बातों बातों में बहुत कुछ महत्वपूर्ण सीखा देते हैं.
जवाब देंहटाएंअनन्या के लिए क्या कहूँ - अनन्या तुम्हे भी आज हाथ जोड़ प्रणाम कर रहा हूँ और सुन्दर सृजन के लिए बधाई दे रहा हूँ.
--
पलाश आम और सरसों के इन फूलों ने अलग ही खुबसूरत मंज़र ग़ढा है इस ब्लोग का ...
जवाब देंहटाएंमाँ शारदे को प्रणाम !
अनन्या की ग़ज़लें अब ऐसा लगता है चौंकाने से कहीं आगे निकल चुकी हैं! इसकी सोंच की उडान किसी भी संवेदनशील और तज़र्बेकार गज़ल्गो से कम नहीं ! इसकी सोच मे एक पुख़्तगी है, एहसास हैं, मह्सुसियत है, जो ग़ज़ल साधक के लिये ज़रूरी हो जाता है ! और यही वजह है की अनन्या लगातार बेह्तरी के रास्ते पे तेजी से बढ्ती जा रही है ! ईंट से इक घर वाला शे'र जहां इसके बचपने के तज़ुर्बे को दर्शा रहा है वही गिरह ये कह रहा है की सोच की पुख़्तगी से कैसे ग़ज़ल कही जाए ! बहुत खुश रहो अनन्या !
अर्श
माँ शारदा को प्रणाम !!
जवाब देंहटाएंऔर
अनन्या ’हिमाँशी को इतनी सुंदर रचना के लिये बहुत बहुत बधाई तथा अनंत शुभकामनाएं
बहुत खूबसूरत गज़ल कही... वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंअनन्या वाकई इस गज़ल से तुमने अपने नाम के अर्थ को सार्थक कर डाला !
जवाब देंहटाएंगुरुदेव,
जवाब देंहटाएंआपने ब्लॉग के बैक कलर को इतनी बारीकी से चुना है कि मन झूम झूम गया
अनन्या की ग़ज़ल के लिए क्या कहूँ
हर एक शेर लाजवाब
किस किस शेर को कोट किया जाये और कितनी बात की जाये इस ग़ज़ल पर
आज गुरुकुल में सभी से बात हो गई और सब के पास् एक ही जुमला
आज की पोस्ट पढ़ी ली क्या ?
और फिर तारीफों के पुल ...
शाईरी का यह तेवर इस उम्र में ...
उफ्फ्फ्फ्फ़
मा सरस्वती के चरणो मे शत शत नमन । अनन्या ने तो सच मे हैरान कर दिया। सच मे उसकी कलम मे माँ शारदे का आशीर्वाद है। हर इक शेर किसी उस्ताद शायर की कलम से निकला लगता है। ये भी समझ नही आ रहा कि किस किस शेर की तारीफ करूँ? अनन्या पूरी गज़ल के लिये बधाई और शुभकामनायें। और बसन्त पंचमी पर इस नई पुरुस्कार योजना के लिये मेरे भाई को धन्यवाद और शुभकामनायें। शिवना प्रकाशन इसी तरह तरक्की की राह पर आगे बढे।
जवाब देंहटाएंअनन्या को बहुत- बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंनानी हल्कू व होरी को बहुत ही
अर्थपूर्ण तरीके से शे’रों में ढाला है।
बधाई!
Maa sharda ko mera pranam.... maa saraswati hamari lekhani par apni kripa banaye rakhen .....
जवाब देंहटाएंGhar me kuch pariwarik samasyaon ke karan mujhe yah padhne me der ho gayi.
Guru ji ko mera vishesh prnam.Guru ji ke aashirvad ke hi karan mai apne gajal likhne ke prayas me safal ho payi hun.BUA SE SEEKHKAR MAINE LIKHNAE KI SHURUAT KI AUR GURU JI SE SEEKHKAR MAINE APNI RACHANAON KO AUR ACCHHA KARNE KA PRAYAS KIYA. Aaj mai jo kuch bhi likhti hun wo sab bua ke margdarshan aur guru ji ke aashirvad ke bina sambhav nahi tha.
Mere sabhi agrajon ko bhi mera naman. Aap sabhi ke utsahvardhan se mujhe jitni prasannta hoti hai utna hi manobal bhi badhta hai aur mujhme aur acchha likhne ki lalak jag uthti hai. Aasha hai ki aap sabhi ka aashirvad aur sneh hamesha isi tarah bna rahe.
इस छोटी सी बच्ची ने तो कमाल कर डाला!! इतनी खूबसूरती से गांव की तस्वीर उकेर दी!! बहुत खूब. बधाई.
जवाब देंहटाएंवाह अनन्या !वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही अच्छी है पर आखिर के तीन अशआर खास पसंद आए..
जवाब देंहटाएंसुबीर भैया पहले तो आपको आशीष और हार्दिक धन्यवाद कि हर पर्व को अपनी सम्पूर्ण छटा के साथ आप हम तक ले के आते हैं.
जवाब देंहटाएं---
अनन्या, तुम्हारी ग़ज़ल बहुत खूबसूरत है. ढेर आशीष लो !
ईंट से इक घर...बहुत खूबसूरत शेर.
भाग आए सब .... में गाँव का उलाहना और स्वाभिमान दोनों को बड़ी खूबसूरती से पिरोया है.
टोंटियों में बूँद... नहर का यूँ बहना.... बहुत अच्छे!
बतलियों में भात.... बहुत बहुत खूबसूरत शेर है! शाबाश!
मंद सी आवाज़.... यहाँ मंद लिख के तुमने जाने कितनो की यादों को छुया है बच्चे! बहुत अच्छे! हमारे यहाँ गीत गाते समय दादी-नानी मुँह पे साड़ी रख लेती थीं.
और इन सब खूबसूरत बिम्बों के बावजूद तुम्हारे पाँव यथार्थ की ज़मीन पे हैं...ये कर्जे वाले मकते से स्पष्ट है. यूँ ही नई बुलंदियों को छूटी रहो!
आशीष तुम्हें और तुम्हारी बुआ को भी!...स्नेह... शार्दुला
सोचना पड़ता है..... ये ब्लॉग है या इल्म का खजाना.......दृश्य और कथ्य की ऐसी जादूगरी.......आला फनकारों का मेला.....टिप्पणियाँ तक ऐसी जिन्हें सहेज कर रखने का मन करे.........धन्य हैं इस बज़्म में आने वाला हर शख्श.....रही बात अनन्या के ग़ज़ल की तो उसने हम जैसे शागिर्दों को गिरह बांधना सिखा दिया......लासानी.......पूरी ग़ज़ल में जैसे गाँव धड़क रहा है....बहुत बहुत बधाई अनन्या .....इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए......
जवाब देंहटाएंअनन्या सचमुच चौंका रही है, अपनी कहन से, अपने शब्दों के चयन से. नई पीढ़ी की इस साधिका से बहुत उम्मीदें हैं.
जवाब देंहटाएंमतला बहुत खूब बना है,
"ईंट से इक घर बनाती.........", बहुत खूब
"टोटियों में बूँद पानी की इधर.................", लाजवाब
"बटलियों के भात की खुशबू वही है आज भी.................", अद्भुत शेर बुना है, सुन्दर कहन ने चार चाँद लगा दिए हैं.
"मंद सी आवाज़ में नानी कहानी बाँचती,.................." वाह वा
"हैं कृषक फाँसी लगाते कर्ज के बोझे तले,......................", सामाजिक विषयों की अच्छी पकड़ दिखा रहा है ये शेर.
अनन्या को बहुत बहुत बधाई. इतनी धांसूं ग़ज़ल कहके इन्होने अपनी बुआ की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. :)
वाह बसंत आया और हमारा घर पीतवर्णी हो गया...... आयो झूम के बसंत झूमो संग संग में.....
जवाब देंहटाएंसबसे सही बात तो अंकित ने कही कि अनन्या ने तो बुआ की मुश्किलें बढ़ा दीं। मैं खुद यही सोच रही थी कि तुम पाँच कम थे क्या, जो ये भी आस्तीन का साँप निकल आया। जहाँ पाँचों भाई एक से एक दिग्गज ग़ज़लें लिख रहे हैं, वहीं उनकी इकलौती बहन लाख कोंचने पर भी अजगर जैसी पड़ी रहती है। तरही की बेला आती है, तो गुरु जी के डर से कुछ भी अगड़म बगड़म जोड़ जाड़ के लिख दिया जाता है और ये महारानी ऐसी कि मैं एक दिन मिसरा बताती हूँ और दूसरे दिन ग़ज़ल तैयार .......और इस बार तो बाक़ायदा गुरू जी की प्रारंभिक कक्षाओं के लिंक पढ़ के खुद ही कैलकुलेशन कर के ग़ज़ल आई।
अरे मैने कहा काहें मेरा बेड़ा गर्क करने पर तुली हो बिटिया और वही हुआ हर तरफ से उलाहनाएं ......
ग़ज़ल पढ़ कर वाक़ई मैं भी हैरान ही थी. जैसा कि अर्श ने कहा कि ईंट से इक घर बनाना इसके बचपन को दर्शा रहा है तो बता दूँ कि सन ९७ में जन्में हाईटेक बच्चों को शहरों के छोटे छोटे घरों में जो खुद में ही गुड़िया के घर लगते हैं, इतनी जगह नही मिलती कि गुड़िया का घर बनायें। हमने तो फिर भी बनाये थे। इस लड़की ने तो कभी नही बनाया। दूसरी बात कि मैं ये भी नही जानती, कि इन्होने बटलियों का भात कब खाया ? और हलकू, होरी की कहानी वाले शेर पर तो मैं खुद दंग रह गई। असल में मैने खुद एक शेर हलकू पर लिखा था, लेकिन इसका शेर पढ़ने के बाद उसे खारिज़ कर दिया।
वैसे बच्ची ने एक शेर बाद में हठीला जी के लिये भी भेजा था, जो अजगर बुआ रोज मेल करने को सोचती रही और इनकी ग़ज़ल लग गई वो शेर टिप्पणी में तो लिख ही दू जो कुछ यूँ था
देह उसकी मौत की आग़ोश कब का सो चुकी,
आतमा पर गुनगुनाती है, अभी तक गाँव में।
और शार्दूला दी अच्छा किया यहीं आशीर्वाद दे दिया भतीजी की बुआ को, वर्ना बुआ तो ऐसा मौका देने से रहीं थी.....
खैर ये तो सबसे बड़ा योगदान गुरू जी का है, जहाँ एक छोटी सी बच्ची भी, अपने बिखरे भावों को समेट सँवार ले रही है और माँ शारदे के पूजन के लिये इस कन्या को चुनना मेरे लिये तो सच में बहुत ही हर्ष की बात है......
माँ शारदे हमारे परिवार में रचना के बहाव के साथ साथ सद्बुद्धि और सुमति बनाये रखें यही मेरी उनसे प्रार्थना है......
waah waah! ananya ne to kamaal ki ghazal kahi hai!
जवाब देंहटाएंek ek sher dil ko choone wala hai.