सुकवि रमेश हठीला स्मृति तरही मुशायरा
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में
कुछ पुराने पेड़ बाकी हैं अभी तक गाँव में
तरही मुशायरा इस बार भी कुछ लम्बा चलना है क्योंकि इस बार भी काफी ग़ज़लें मिली हैं । हां एक परेशानी जो ब्लागर में आ रही है वो ये कि ये बार बार नाट स्पैम बरने के बाद भी कुछ टिप्पणियों को स्पैम में डाल ही रहा है । इससे उबरने का कोई उपाय बताइये । इस बार तरही में भावनाप्रधान शेर अधिक मिले हैं । जिसके चलते तरही का एक मूड सेट हो गया है । गांव से भावनाओं का जुड़ा होना एक स्वाभविक सी प्रकिया है । कुछ ग़ज़लों में कुछ शेर तो चौंकाने की हद तक मिले हैं । आइये आज उन्हीं ग़ज़लों में से दो सुंदर ग़ज़लें सुनते हैं । देवी नागरानी जी और राणा प्रताप लेकर आ रहे हैं अपनी ग़ज़लें ।
राणा प्रताप सिंह
राणा प्रताप सिंह तरही मुशायरों का सुपरिचित नाम हैं । अलग प्रकार के शेर कहना राणा प्रताप की पहचान है । पिछले दिनों जिन शायरों में ग़ज़ल के प्रति समर्पण ने मुझे प्रभावित किया है राणा प्रताप भी उनमें से एक है । तकनीक और विचारों का संतुलन साधना राणा प्रताप को आता है । आइये सुने ये ग़ज़ल ।
खेलता अब्दुल भी होली है अभी तक गाँव में
मर्सिया जमुना भी गाती है अभी तक गाँव में
जिसके दोनों लाल अमरीका में जाके बस गए
वो ही पगली बूढी काकी है अभी तक गाँव में
बोलता रहता है जाने क्या क्या वो वर्दी पहन
सन इखत्तर का सिपाही है अभी तक गाँव में
नाम जिन पेड़ों पे हमने था उकेरा, उनमे से
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में
जो तरक्की का हवाला दे रहे हैं जान लें
भूख, ईमान आजमाती है अभी तक गाँव में
जो हठीले थे समय के साथ हठ करते रहे
उनके गीतों की निशानी है अभी तक गाँव में
आज फिर हठीला जी याद आ गये । याद आ गये 'इखत्तर' शब्द को सुनते ही । हम दोनों को ही रचनाओं में देशज, भदेस शब्दों का प्रयोग करना बहुत पसंद आता था । इखत्तर शब्द का प्रयोग हठीला जी सुनते तो लोट-पोट होकर दाद देते, जो उनकी आदत थी । मतला बहुत ही सुंदर बंधा है और वैसा ही गिरह का शेर भी है । लेकिन हां इखत्तर के सिपाही की तो बात ही अलग है । और सब कुछ तो सुंदर था ही लेकिन इखत्तर के प्रयोग ने सुंदरता को दोबाला कर दिया है । वाह वाह वाह ।
देवी नगरानी
देवी नागरानी जी जैसे रचनाकारों का हमारी तरही में आगमन होना इस बात की आश्वस्ति है कि हम सही दिशा में जा रहे हैं । देवी जी हर बार समय निकाल कर तरही का फेरा करने ज़ुरूर आती हैं । और हर बार अपनी एक सुंदर ग़ज़ल के रस में हमें रसाबोर कर जाती हैं । आइये सुनते हैं उनकी ये ख़ूबसूरत ग़ज़ल ।
जड़ पुरानी सभ्यता की है अभी तक गाँव में
इक पुराना पेड़ बाक़ी है अभी तक गाँव में
गुनगुनाती जीस्त बाक़ी है अभी तक गाँव में
खिलखिलाती, मुस्कराती है अभी तक गाँव में
वक़्त के चहरे पे जिसका अक्स उतर के आ गया
याद उसकी झिलमिलाती है अभी तक गाँव में
याद की परछाई बनके जो शजार साया बना
पट्टी उसकी तो हरी सी है अभी तक गाँव में
आपाधापी आजकल है शहर के हर मोड पर
कुछ सुकूँ औ सादगी भी है अभी तक गाँव में
साग रोटी, साथ में मिर्ची हरी का स्वाद वाह!
पेट भरती खुशबू उसकी है अभी तक गाँव में
खोए मानवता ने सारे अर्थ आके शहर में
कुछ बची इंसानियत भी है अभी तक गाँव में
साग रोटी, साथ में मिर्ची हरी का स्वाद और उसके बाद होने वाली वाह का आनंद ही अलग है । वक्त के चेहरे पर उतरे हुए अक्स की झिलमिलाती यादों का तो कहना ही क्या है । मतले में पुरानी सभ्यता की जड़ों को प्रतीक के रूप में लेकर बड़ी बात कह दी है । और कुछ वैसा ही सुंदर प्रयोग किया गया है खिलखिलाती मुस्कुराती में । वाह वाह वाह ।
तो आज के दोनों रचनाकारों की ख़ूबसूरत ग़ज़लों का आनंद लीजिये । और देते रहिये दाद । अलगे अंक में मिलते हैं कुछ और रचनाकारों से ।
एक बार फिर से बहुत बढ़िया ग़ज़लें सुनने को मिल रही हैं इस तरही में.. राणा जी ने इतनी खूबसूरत गिरह बाँधी है की क्या कहने. बहुत ही खूबसूरत मतला. वाह. "जो तरक्की का हवाला दे रहे हैं.." बहुत खूब. इस खूबसूरत गज़ल के लिए राणा जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंदेवी जी की गज़ल भी बहुत ही खूबसूरत मतले से शुरू हुई है. बहुत ही प्यारे मिसरे कहे हैं.. "कुछ सुकूँ और सादगी भी है अभी तक गाँव में.." लाजवाब. बहुत बहुत बधाई देवी जी को.
गजलों का उम्दा सीरियल चल रहा है इस तरही में
जवाब देंहटाएंराणा जी के शेर में बहुत से रंग हैं गिरह लाजवाब है.
"कुछ सुकूँ और सादगी भी है अभी तक गाँव में..." आदरणीया देवी जी ने ख़ूबसूरत यादों को, सभ्यता के पाठ को भरपूर संजोया है.
साग रोटी सुनकर दादी की याद आ गयी.
ये तरही तो नए नए रंग लेकर आ रही है। क्या खूबसूरत ग़ज़लें कही हैं दोनों रचनाकारों ने। राणा प्रताप जी और देवी नागरानी जी इन शानदार ग़ज़लों के लिए दिली दाद कुबूल कीजिए।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा - देवी नागरानी जी को तो पहले भी पढ़ा है , राणा प्रताप जी को आज पढ़ा और बहुत अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंइस बार के शायर तरही की तेज उछल वाली पिच पर धुआंधार बल्लेबाज़ी करते दिखाई दे रहे हैं...हर शायर चौके छाकों की बरसात करता लग रहा है...काश हमारे क्रिकेट के खिलाडी सीखें के मुश्किल पिचों पर कैसे बल्लेबाजी की जाती है...ये बात तो तय थी कि इस बार तरही के मिसरे पर पुरानी यादों को फिर से दोहराया जाएगा लेकिन उसे इस कदर खूबसूरत अंदाज़ में दोहराया जायेगा इसकी कल्पना भी नहीं की थी...वाह...
जवाब देंहटाएंभाई राणा प्रताप जी की ग़ज़ल की जितनी तारीफ़ करूँ कम ही रहेगी...इस युवा शायर ने वास्तव में चौकाने वाले शेर दिए हैं...वो चाहे "खेलता अब्दुल भी होली..." वाला हो, तरही पर गिरह बाँधने वाला हो (अब तक की सर्व श्रेष्ठ गिरह लगी ये मुझे) या फिर सन इखत्तर वाला शेर हो...सभी के सभी लाजवाब हैं...शायरी का मुस्तकबिल ऐसे नौजवानों के होते हुए हमेशा बुलद ही रहेगा...
दीदी नागरानी जी की कलम का तो मैं दीवाना हूँ...ऐसे ऐसे महीन शेर बुनती हैं के क्या कहूँ? जैसी वो खुद हैं वैसे ही उनके शेर होते हैं...खूबसूरत , नफासत से भरपूर...साग रोटी के साथ मिर्ची के अचार ने मुंह में पानी ला दिया...जिसने उनकी मेहमान नवाजी को देखा चखा है उसे ये कहने में कोई हिचक नहीं है कि एक बेहतरीन मेहमान नवाज़ ही ऐसे शेर कह सकता है...
इन ग़ज़लों को बार बार पढ़ रहा हूँ और बार बार आनंद ले रहा हूँ...यहाँ पर लिए जा रहे आनंद पर सरकार टैक्स नहीं लगा रही याने ये तरही सरकार की तरफ से एंटर टेनमेंट टैक्स फ्री है....:-) और क्या चाहिए?
नीरज
इस बार के शायर तरही की तेज उछल वाली पिच पर धुआंधार बल्लेबाज़ी करते दिखाई दे रहे हैं...हर शायर चौके छाकों की बरसात करता लग रहा है...काश हमारे क्रिकेट के खिलाडी सीखें के मुश्किल पिचों पर कैसे बल्लेबाजी की जाती है...ये बात तो तय थी कि इस बार तरही के मिसरे पर पुरानी यादों को फिर से दोहराया जाएगा लेकिन उसे इस कदर खूबसूरत अंदाज़ में दोहराया जायेगा इसकी कल्पना भी नहीं की थी...वाह...
जवाब देंहटाएंभाई राणा प्रताप जी की ग़ज़ल की जितनी तारीफ़ करूँ कम ही रहेगी...इस युवा शायर ने वास्तव में चौकाने वाले शेर दिए हैं...वो चाहे "खेलता अब्दुल भी होली..." वाला हो, तरही पर गिरह बाँधने वाला हो (अब तक की सर्व श्रेष्ठ गिरह लगी ये मुझे) या फिर सन इखत्तर वाला शेर हो...सभी के सभी लाजवाब हैं...शायरी का मुस्तकबिल ऐसे नौजवानों के होते हुए हमेशा बुलद ही रहेगा...
दीदी नागरानी जी की कलम का तो मैं दीवाना हूँ...ऐसे ऐसे महीन शेर बुनती हैं के क्या कहूँ? जैसी वो खुद हैं वैसे ही उनके शेर होते हैं...खूबसूरत , नफासत से भरपूर...साग रोटी के साथ मिर्ची के अचार ने मुंह में पानी ला दिया...जिसने उनकी मेहमान नवाजी को देखा चखा है उसे ये कहने में कोई हिचक नहीं है कि एक बेहतरीन मेहमान नवाज़ ही ऐसे शेर कह सकता है...
इन ग़ज़लों को बार बार पढ़ रहा हूँ और बार बार आनंद ले रहा हूँ...यहाँ पर लिए जा रहे आनंद पर सरकार टैक्स नहीं लगा रही याने ये तरही सरकार की तरफ से एंटर टेनमेंट टैक्स फ्री है....:-) और क्या चाहिए?
नीरज
गयी भैंस पानी में...याने मेरी टिप्पणी स्पैम में...:-(
जवाब देंहटाएंनीरज
राणा जी के शेर एक नए अंदाज़ के साथ होते हैं, जो बरबस अपनी ओर खींचते हैं.
जवाब देंहटाएंमतले को ही लें, क्या खूब उल और सानी को बाँधा है.
खेलता अब्दुल भी होली है अभी तक गाँव में
मर्सिया जमुना भी गाती है अभी तक गाँव में
वाह वा, राणा जी. ढेरों बधाइयाँ
"बोलता रहता है जाने क्या क्या वो वर्दी पहन...........", अच्छा शेर बना है.
गिरह भी बहुत खूब लगाई है
हठीला जी को समर्पित शेर के बारे में कुछ कहते नहीं बन रहा..........लाजवाब हूँ.
जो हठीले थे समय के साथ हठ करते रहे
उनके गीतों की निशानी है अभी तक गाँव में
वाह वा
इस उम्दा ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल करें.
आदरणीय देवी नगरानी जी ने मतले में बहुत सुन्दर गिरह बाँधी है. वाह वा
"वक़्त के चहरे पे जिसका अक्स उतर के आ गया............" वाह वा, अद्भुत
"साग रोटी, साथ में मिर्ची हरी का स्वाद वाह! ................", इस शेर ने गाँव की याद दिला दी है. वाकई आखिरी में आये 'वाह' ने ग़ज़ब ढा दिया है.
ढेरों बधाइयाँ आदरणीय देवी नगरानी जी को.
@ नीरज जी, देखिये क्या खूब करिश्मा है. पानी में एक भैंस (टिप्पणी) गई थी और अब जब बाहर निकली तो दो भैंसें पानी से बाहर निकली हैं.
स्पैम में सिर्फ़ स्पैमर्स की टिप्पणी जा रही हैं, हम जैसे शरीफ़ों की नहीं। मज़ाक नहीं, पूरी गंभीरता से, जो बहुत ज्यादह टिप्पणी देते हैं उन्हें गूगल स्पैमर मानता है।
जवाब देंहटाएंगंगा-जमुनी तहज़ीब के साथ राणा प्रताप की शुरुआत बहुत दमदार रही। गिरह का भाव भी उतना ही दमदार। हर शेर दमदार और उतनी ही दमदार श्रद्धॉंजलि।
ग़ज़ल पर आपका दोबाला का प्रयोग बहुत खूबसूरत बन पड़ा है।
देवी नागरानी जी ग़ज़ल में पेड़ के प्रतीकात्मक रूप की छटा देखते ही बनती है।
जो हठीले थे समय के साथ हठ करते रहे
जवाब देंहटाएंउनके गीतों की निशानी है अभी तक गाँव में
साग रोटी, साथ में मिर्ची मिर्ची हरी का स्वाद वाह ----------------------शानदार !
दोनों गज़लें बहुत खूबसूरत हैं!
जवाब देंहटाएंराणा साहब का "बोलता रहता है जाने क्या क्या वो वर्दी पहन..." बहुत ही खूबसूरत शेर है, संजीदा और असरदार! एक ऐसे चरित्र को दर्शाता जो देखा तो हम सबने होगा पर शायद अपने लेखन में उतरना भूल गए हम. ये इतना गहरा शेर है कि इसके आगे जा के ग़ज़ल पढ़ने में मुश्किल हो रही है...ये ही चित्र मानस में घूम रहा है. राणा साहब को इस शेर पे नमन!
फ़िर नाम उकेरने वाला गिरह का शेर भी बहुत खूबसूरत है. इस तरह शेर के दोनों मिसरों में संयोग देख मन खुश हो गया! मतला और मक्ता दोनों भी उम्दा, कुल मिला के अतिउत्तम!
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देवी जी की "जड़ पुरानी सभ्यता की है अभी तक गाँव में ... " पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. बहुत ही सुन्दरता से इसे पुराने पेड़ के प्रतीक में पिरोया है.
"साग रोटी....." वाला शेर भी कितना खूबसूरत है! मिर्च और वाह ! से इस शेर में जो सादगी और सहज प्रवाह आया है वह बहुत प्यारा लगा और खुशबु से पेट भरने वाली बात भी कितनी सुघड़ और सौंधी है. साधुवाद स्वीकारें!
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सुबीर भैया, एक तो शायद आपने पोस्ट करते समय देवी जी के मकते में 'सारे' दो बार टाइप कर दिया है गलती से. और एक बात पूछना चाहती थी... चूंकि उर्दू में क़ और क में फ़र्क है क्या इसलिए ही इस ग़ज़ल में 'की / क़ी' रदीफ़ का हिस्सा नहीं बना? क्या हम हिन्दी में लिखी ग़ज़ल में नुक्ते और बिना नुक्ते के वर्ण को अलग मानते हैं?
सादर शार्दुला
Pankaj ji Namskaar.......dono hi gazalen wakai behad achhi lagin......aabhar
जवाब देंहटाएंबहुत ही कमाल ... इस बार सच में संवेदनाओं की नदी बह रही है ... एक से बढ़ के एक ... दानादन गोलियाँ चल रही होँ जैसे ...
जवाब देंहटाएंराणा प्रताप जी तो चौंका रहे हैं इन कमाल के शेरों में .. मतला ही इतना कमाल है की वाह वाह अपने आप ही दिल से निकलती है ... और ये शेर जिसके दोनों लाल ... बस रुला जाता है हम परदेसियों को खास कर ... फिर ये शेर ... बोलता रहता है जाने क्या ... बहुत ही संजीदा शेर है ... सीधे दिल में उतर जाता है ...
देवी जी के तो सारे शेर गाँव की मिट्टी से जुड़े हुवे नज़र आते हैं ... जड़ पुरानी सभ्यता की ... शुरुआत ही कितनी हकीकत लिए है ... और ये शेर ... आपाधापी आजकल है शहर के हर मोड पर ... एक और सच छुपाये है आज कल का ... और आकरी का शेर भी ... सक्स्च कहूँ तो हर शेर सार्थक है ,,, गाँव की मिट्टी लिए है ...
इस तरही का मज़ा आने लगा है ...
बहुत ही कमाल ... इस बार सच में संवेदनाओं की नदी बह रही है ... एक से बढ़ के एक ... दानादन गोलियाँ चल रही होँ जैसे ...
जवाब देंहटाएंराणा प्रताप जी तो चौंका रहे हैं इन कमाल के शेरों में .. मतला ही इतना कमाल है की वाह वाह अपने आप ही दिल से निकलती है ... और ये शेर जिसके दोनों लाल ... बस रुला जाता है हम परदेसियों को खास कर ... फिर ये शेर ... बोलता रहता है जाने क्या ... बहुत ही संजीदा शेर है ... सीधे दिल में उतर जाता है ...
देवी जी के तो सारे शेर गाँव की मिट्टी से जुड़े हुवे नज़र आते हैं ... जड़ पुरानी सभ्यता की ... शुरुआत ही कितनी हकीकत लिए है ... और ये शेर ... आपाधापी आजकल है शहर के हर मोड पर ... एक और सच छुपाये है आज कल का ... और आकरी का शेर भी ... सक्स्च कहूँ तो हर शेर सार्थक है ,,, गाँव की मिट्टी लिए है ...
इस तरही का मज़ा आने लगा है ...
आज की दोनों ग़ज़लें अपने आप में मुकम्मल और मुसलसल हैं.राणा प्रताप जी ने जो गिरह बांधी है उसमे तखय्युल की परवाज देखते ही बनती है.बहुत खूब. राणा जी का मक्ता भी बहुत सुन्दर बन पड़ा है .बधाई.
जवाब देंहटाएंआ.नागरानी जी ने तो जैसे अपने मतले में ही गाँव की समूची तस्वीर पेश कर दी है. उनके बाकी शेर भी यादगार हैं. ढेरों मुबारकबाद.
राणा की शायरी राणा की तरह ही होती है ! जहाँ मह्सूसियत की बारीक़ बातों को अम्ल मे लाकर शायरी
जवाब देंहटाएंकी जाए तो फिर इसमे कोई सन्देह नहीं की वो अन्य से हट कर ना हो और यही ख़ास है की राणा की शायरी राणा को अन्य से अलग करती है ! सीहोर मे जब पहली दफ़ा सुना तभी से शे'रों पर चौंकता हूँ! अब भी याद है वो चीटीयों वाला शे'र ... यहाँ भी वर्दी ने जैसे स्तब्ध कर दिया ... और मतले ने तो जैसे जान ही निकाल ली इस तरही की ! और हठीला जी के हठ को सलाम,,, बहुत बधाई राणा !
देवी दीदी जी को बहुत पहले से पढते आ रहा हूँ , इनकी शायरी में तज़ुर्बेकारी की जो बातें होती हैं वो बहुत आसान नहीं है शे'रों मे ढालना... वक़्त के चेहरे पे जिसका.. क्या कमाल का शे'र बुना है दीदी जी ने !
बहुत बधाई..
अर्श
गुरूवर,
जवाब देंहटाएंसिर्फ गुनगुनाना और सीखना है इन गज़लों से और कुछ नही न तो कोई पसंद बतानी है और न ही कोई तारीफ करना है।
यह सब हुनरमंद लोगों का काम है, अपने लिए तो बस.......आनन्द ही सबकुछ है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
जो तरक्की का हवाला दे रहें हैं जान लें
जवाब देंहटाएंभूख .ईमान आजमाती है अभी तक गाँव में
--राणा प्रताप सिंह
आपाधापी आजकल है शहर के हर मोड़ पर
कुछ सुकूं औ सादगी भी है अभी तक गाँव में
खोए मानवता ने सारे अर्थ आके शहर में
कुछ बची इंसानियत भी है अभी तक गाँव में
--देवी नागरानी
यों तो दोनों शायरों की ग़ज़लें अच्छी हैं ,पर खासतौर पर उपरोक्त शेर असरदार हैं !
मेरा बस चले तो ये मुशायरा राणा के नाम...
जवाब देंहटाएंउसके इस एक शेर "बोलता रहता है जाने क्या क्या वो वर्दी पहन, सन इखत्तर का सिपाही..." के एवज में
जीयो राणा....जीयो !!!
वाह!! वाह!!
अभी बस इतना ही...इस शेर के बाद और कुछ नहीं
स्मृतियों में वही कुछ अंकित रहता है जो चित्त का अन्योन्याश्रय हिस्सा होता है. जो हृदय की धड़कन का कारण होता है.
जवाब देंहटाएंअपनी ज़िन्दग़ी से जिये हुए क्षणों की रवानी बिसरा दे, राणाभाई वो नहीं. गाँव और उसकी दुनिया.. जो बीत गयी सो बात गयी.. हो ही नहीं सकतीं. कहना न होगा, राणा अपनी साँसो और रगों में गाँव को जीते हैं. और, ऐसा ही शायर टूट कहता है --
नाम जिन पेड़ों पे हमने था उकेरा, उनमें से
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में... .. आह्हाह.. !!
बोलता रहता है जाने क्या क्या वो वर्दी पहन
सन इखत्तर का सिपाही है अभी तक गाँव में ... सलाम ! राणा भाई निश्शब्द कर दिया आपने.
आपने इस शे’र में उन पागलों की बात की है जिनके दम पर हम सयाने लोग अपने सयानापन पर इतराते हैं. भाई, पुनः सलाम करता हूँ इस बेज्जोड़ शे’र पर.
जो तरक्की का हवाला दे रहे हैं जान लें
भूख, ईमान आज़माती है अभी तक गाँव में .. इस हक़ीक़तबयानी पर ढेरम्ढेर दाद कुबूल कीजिये.
एक बात साझा करूँ, राणाभाई की चुप्पी आश्वस्त करती है. चुप्पी के उपरांत जो कुछ निस्सृत होता है वह मुग्धकारी हुआ करता है.
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देवी नागरानीजी को पढ़ने का अवसर मिला है और मैं हरबार संतुष्ट हुआ हूँ.
मतले में जड़ और सभ्यता की मिलान की बात करना दूब को अपनी ऊंगलियों से जकड़े अशोकवाटिका की उस बैदेही का चित्र उभार रहा है, जिसने अपने चरित्र और संस्कार की गहराई का मौन किन्तु दृढ़वत् संदेश बखूबी रावण को दिया था. इस ऊँचाई पर कहना सबके बस की बात नहीं है.
आपके अन्य अश’आर भी भरपूर ध्यान खींचते हैं.
मेरी सादर बधाइयाँ.
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)--
ख़ूबसूरत ग़ज़लों का ख़ज़ाना एक बार फिर "सुबीर संवाद सेवा" पर खुल गया है
जवाब देंहटाएंजो तरक़्क़ी का हवाला दे .....
जिस के दोनों लाल ....
ख़ूबसूरत शायरी है राणा ,,क्या बात है !!!
देवी नागरानी जी के बारे में कुछ कहना सूरज को दिया दिखाना है ,इसलिये मैं क्या कहूं
बधाई दोनों रचनाकारों और पंकज को भी
waah! ek baar fir mehfil main naya rang lekar aaye hain do unda shaayar.
जवाब देंहटाएंdonon ghazal se ye sher bahut hi pasand aaye!
नाम जिन पेड़ों पे हमने था उकेरा, उनमें से
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में
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खोए मानवता ने सारे अर्थ आके शहर में
कुछ बची इंसानियत भी है अभी तक गाँव में
राणा जी ने बहुत अच्छे दिल को छूने वाले शेर कहे हैं\ खेलता अब्दुल---- शहरों मे जहाँ बच्चों का बचपन एक दम खो सा गया है वहीं गावों मे अभी भी कुछ बचपन का स्वाद बाकी है\ बहुत अच्छा शेर है
जवाब देंहटाएंजिसके दोनो लाल ---- सच मे जब से बच्चों को विदेश का आकर्षण लुभाने लगा है गाँ बूढे माँ बाप के साथ सूने से हो गये हैं। प्रताप जी को इस गज़ल के लिये बधाई।
और बहिन नागरानी जी का कमाल तखर बार देखा है--
वक्त के चेहरे पे----- इस शेर ने गाँव की कितनी यादें ताज़ा कर दी
साग मक्की की रोटी---- मैने तो आज साग ही बनाया है वो भी गाँव से ही आया है। कितना कुछ अभी तक गाँवों मे ऐसा है जो अभी भी गाँव जाने का मन रहता है। इस शानदार मुशायरे के लिये सब को बधाई शुभकामनायें।
बोलता रहता है जाने क्या क्या वो वर्दी पहन,
जवाब देंहटाएंसन ईखत्तर का सिपाही है अभी तक गाँव में... राणा जी के शानदार ग़ज़ल का यह शेर एकबारगी कर देता है... वाह!
गुनगुनाती जीस्त बाकी है अभी तक गाँव में
खिलखिलाती, मुस्कुराती है अभी तक गाँव में
बहुत सुन्दर....
राणा जी और देवी नागरानी की गज़लें... वाह ! वाह!
आनंद आ गया....
सादर आभार.
जो हठीले थे समय के साथ हठ करते रहे
जवाब देंहटाएंउनके गीतों की निशानी है अभी तक गाँव में
आपाधापी आजकल है शहर के हर मोड पर
कुछ सुकूँ औ सादगी भी है अभी तक गाँव में
जिंदाबाद जिंदाबाद
राणा तुम्हारा मतला और अंतिम शेर जो है, उस पर क्या कहूँ और क्या ना कहूँ... समझ के परे है। उम्दा बहुत उम्दा.... और इखत्तर वाले शेर से तुम्हारे अंदर छिपा सैनिक झाँक ही जा रहा है, शायद तुम्हारे ना चाहते हुए भी.....
जवाब देंहटाएंनागरानी जी जैसी श्रेष्ठ ग़ज़लकारा के लिये मैं कुछ कहूँ, ये तो छोटे मुँह बड़ी बात हो जायेगी ना.....