सुकवि रमेश हठीला स्मृति तरही मुशायरा
इक पुराना पेड़ बाक़ी है अभी तक गांव में
कुछ पुराने पेड़ बाकी़ हैं अभी तक गांव में
तरही में लोगों का आना जाना लाग रहता है । ठीक उसी प्रकार से जैसे जीवन में लोग आते हैं और जाते हैं ।कुछ लोग मिलते हैं कुछ बिछड़ते हैं । आज हम देखते हैं कि कई वो रचनाकार जो पिछले कई मुशायरों में सक्रियता से अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते थे वे अब नहीं आ रहे हैं । जो नहीं आ रहे हैं उनमें से कई ऐसे भी हैं जिनकी अनुपस्थिति हमें खलती है लेकिन क्या करें सबकी अपनी अपनी व्यस्ततताएं हैं । हां ये भी है कि हर मुशायरे में हमें कुछ नये लोग नये साथी मिल जाते हैं । यही सच्चाई है जिंदगी की । अपने सर्वकालिक पसंदीदा गीत की दो पंक्तियां उद्धृत करना चाहूंगा 'कुछ पाकर खोना है, कुछ खोकर पाना है, जीवन का मतलब तो आना और जाना है'' ।खैर चलिये आज दो महत्वपूर्ण शायरों श्री निर्मल सिद्धू और श्री उमाशंकर साहिल कानपुरी से उनकी ख़ूबसूरत ग़ज़लें सुनते हैं ।
निर्मल सिद्धू
निर्मल सिद्धू हमारे तरही मुशायरे के सबसे पुराने साथियों में ये हैं । हर तरही मुशायरे में अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज करवाते हैं । ऐसे समर्पित रचनाकारों के कारण ही ये तरही मुशायरा आज यहां तक पहुंचा है । आइये सुनते हैं उनकी ये ग़ज़ल ।
ये सुना है, इक दिवानी है अभी तक गांव में
जो मुझे ही याद करती है अभी तक गांव में
हम जहाँ मिलते रहे थे शाम के साये तले
वो सुहानी शाम ढलती है अभी तक गांव में
सात सागर पार करके दूर तो हम आ गये
पर हमारी जान अटकी है अभी तक गांव में
यूं बदल तो सब गया है अब वहाँ फिर भी मगर
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गांव में
चैन मिलता है वहाँ आराम मिलता है वहाँ
हर ख़ुशी की राह मिलती है अभी तक गांव में
ज़िन्दगी रफ़्तार से चलने लगी है हर तरफ़
फिर भी देखो आस बसती है अभी तक गांव में
बिन हठीला शायरी ग़मगीन है रहने लगी
याद उनकी सबको आती है अभी तक गांव में
वो बिचारा तो जहां की भीड़ में है खो गया
कोई निर्मल को बुलाती है अभी तक गांव में
मिसरा 'ये सुना है इक दीवानी है अभी तक गांव में' बहुत ही गहरे उतरता जाता है, समा जाता है मन के अंदर । सात सागर पार करके दूर तो हम आ गये, शेर बहुत सुंदर बन पड़ा है विशेष कर जान अटकी का प्रयोग बहुत खूब बना है । हम जहां मिलते रहे थे शाम के साये तले बहुत सुंदर रेखाचित्र है जिसे मंज़रकशी कहा जाता है । सुंदर बहुत ख़ूब ।
डॉ उमाशंकर साहिल कानपुरी
साहिल जी का नाम भी अब हमारे मुशायरों के लिये कोई नया नाम नहीं है । वे बराबर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं । पंतनगर से संबंध रखने वाले साहिल जी की ग़ज़लें हमें मुस्तफा माहिर के माध्यम से मिलती हैं सो इन सुंदर ग़ज़लों के लिये हमें माहिर का भी आभार व्यक्त करना चाहिये ।
इक पुराना पेड़ बाक़ी है अभी तक गाँव में
क्यूँ कि बूढा एक माली है अभी तक गाँव में
झुक पड़े सर आप ही का जब अदब से वो मिलें
प्यार और तहज़ीब बाक़ी है अभी तक गाँव में
शहर में हैं चाहतें, बस एक शब की रंगतें
प्रेम की पहचान साँची है अभी तक गाँव में
कल्पना है या हकीक़त गाँव में बिजली- सड़क
सोचती जनता बिचारी है अभी तक गाँव में
देश के मंदिर को खतरा है नहीं तैमूर से,
अन्ना जैसा गर पुजारी है अभी तक गाँव में
रहनुमाओं गाँव आकर पूछिए साहिल का हाल
ज़िन्दगी जिसने गुजारी है अभी तक गाँव में .
शहर में हैं चाहतें बस एक शब की रंगतें, प्रेम की पहचान को नये सिरे से परिभाषित करता है ये शेर । कल्पना है या हक़ीक़त गांव में बिजली में गांव की वस्तुस्थिति का खूब चित्रण किया है । झुक पड़े सर आप ही का जब अदब से वो मिलें में गांव की आत्मा को स्पर्श किया है जहां प्रेम और तहज़ीब अब तक मिलती है । बहुत सुंदर बहुत सुंदर ।
तो आनंद लीजिये इस दोनों सुंदर ग़ज़लों का और दाद देते रहिये । ब्लागर की मेहरबानी के चलते कई सारी टिप्पणियां स्पैम में जा रही हैं और वहां जाकर बार बार नाट स्पैम करना पड़ता है । कल रात सुकवि जनार्दन शर्मा सम्मान डॉ आज़म को और सुकवि रमेश हठीला सम्मान शशिकांत यादव को प्रदान किया गया । कार्यक्रम बहुत अच्छा हुआ । विस्तृत रपट जल्द ही ।
वाह! क्या कहने.
जवाब देंहटाएंनिर्मल जी की गज़ल के तो मतले ने ही मोह लिया. और फिर "पर हमारी जान अटकी है अभी तक गाँव में.." कमाल का शेर और मिसरा. गिरह भी जोरदार बाँधी है. निर्मल जी को इस खूबसूरत के लिए हार्दिक बधाई.
उमाशंकर जी ने भी बहुत सुंदर मतला कहा है.. और फिर इतने सारे खूबसूर शेर. "प्यार और तहजीब बाकी है अभी तक गाँव में.." आहा! "प्रेम की पहचान साँची है अभी तक गाँव में.." क्या बात है. "बिजली सड़क वाला शेर भी बहुत प्यारा हकीकत से जुडा शेर.. उमाशंकर जी को बहुत बहुत बधाई..
हम जहॉं मिलते का दृश्य-संयोजन, सात सागर पार करके में अनिवासी भारतीयों का दर्द, चैन मिलता है वहॉं की भावना, वो बेचारा तो... की तड़प। वाह सिद्धू साहब वाह। और ये मत्ले की दिवानी और मक्ते की कोई वाली दोनों एक ही हैं या ....।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल। डॉ साहिल जैसे सरोकार जब तक साहित्य में जिंदा हैं तब तक नये-नये अण्णा भी पैदा होते रहेंगे। भाई खूबसूरत कटाक्ष किया है शहरी संस्कृति की अस्थिरता पर ग्रामीण संस्कृति की स्थिरता के माध्यम से। बिजली सड़क की हालत तमाम दावों के बावजू़द देश के अधिकॉंश हिस्सों में जो है वो छुपी नहीं है।
दोनों खूबसूरत ग़ज़लों पर बधाई।
दोनों ही ग़ज़लें शानदार हैं, किस शे’र की तारीफ़ करुँ और किस को छोड़ूँ। राजीव जी और तिलक राज जी से पूरी तरह सहमत हूँ। बहुत बहुत बधाई निर्मल जी और उमाशंकर जी को।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर , दोनों ही गजले लाजबाब है !
जवाब देंहटाएंNirmal siddhu ji aur sahil kanpuri ji ki umda gajal prastutikaran ke liye aapko dhanayavad.
जवाब देंहटाएंनिर्मल जी का लिखा कम पढने को मिलता है लेकिन जब मिलता है आनंद से भर जाता है.गाँव की पुरानी खुशनुमा यादों को बहुत शिद्दत से निर्मल जी ने अपनी ग़ज़ल के शेरों में ढाला है...बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है..ढेरों दाद कबूल हो...उमा जी को पहली बार पढने का मौका मिला है और उनकी शैली ने बहुत प्रभावित किया है. उमा जी ने अपनी ग़ज़ल में गाँव के आज के हालात की बेहतरीन तस्वीर पेश की है...उन्हें ढेरों बधाई...दोनों ग़ज़लों के किसी एक आध शेर को अलग से कोट करना बाकी शेरों के साथ नाइंसाफी होगी...तरही में निहायत खूबसूरत ग़ज़लें आ रही है और इस से दिलचस्पी बढती जा रही है...
जवाब देंहटाएंनीरज
आज के दोनों शायर अपने-अपने ढंग से गाँव की दुनिया देख रहे हैं. हम पाठकों को और क्या चाहिये !
जवाब देंहटाएंनिर्मल सिद्धुजी के मतले ने भावुक कर दिया. वाह !! सही ढंग से बात कही गयी है .. ’ये सुना है.. ’ की ओट से ! बहुत ही सुन्दर !!
हम जहाँ मिलते रहे.. इस शे’र पर भी ढेरों दाद..
निर्मल जी के अश’आर, जिस टीस की अपेक्षा है, बखूबी बयान कर रहे हैं.. मतला और मक्ता की अंतर्धारा कमोबेश एक है सो वृत पूर्ण हुआ का भान हो रहा है !! ..बहुत-बहुत बधाई.
डा. उमाशंकर साहिल कानपुरी जी को मैं पहली दफ़े पढ़/सुन रहा हूँ और आपकी कहन से इत्तफ़ाक रखता हूँ.
लेकिन मतले में माली का होना.. मैं कुछ संयत नहीं हो पा रहा हूँ. गाँव के अश्वथ क्या किसी माली के होने से होते हैं क्या? ऐसा अक्सर होता नहीं है.
शहर में हैं चाहते, बस एक शब.. यह शे’र बहुत ही अनुकूल है. बहुत अच्छे !
दोनों शायरों को मेरी हर्दिक बधाई.
-- सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)--
MERI TIPPANI GAYI SPAM MEN...:-(
जवाब देंहटाएंगुरूवर,
जवाब देंहटाएंतरही अपने तीसरे पायदान पर बहुत ही अच्छी बुलंदी को हांसिल कर रही है।
सिद्धू जी की गज़ल अपने खूबसूरत अश’आरों के साथ दिअल लुभा लेती है।
बड़ा अच्छा लगा ये शे’र आपका :-
जिन्दगी रफ्तार से चलने लगी है हर तरफ
फिर भी देखो आस बसती है अभी तक गाँव में
सिद्धूजी दाद कुबूल हो।
साहिल जी ने अपना मुरीद बना लिया इस शे’र के साथ :-
झुक पड़े सर आप ही का जब अदब से वो मिलें
प्यार और तहजीब बाकी है अभी तक गाँव में
वाह!!!! वाह!!!! वाह!!!!
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
जिन्दगी रफ़्तार से चलने लगी है हर तरफ
जवाब देंहटाएंफ़िर भी देखो आस बसती है अभी तक गाँव में
--निर्मल सिद्धू
रहनुमाओं गाँव आकर पूछिए साहिल का हाल
जिन्दगी जिसने गुजारी है अभी तक गाँव में
--डा० उमाशंकर साहिल कानपुरी
यों तो दोनों शायरों की ग़ज़लें बहुत अच्छी हैं ,लेकिन उपरोक्त शेर तो बहुत असरदार हैं !
वाह! बहुत ही खूबसूरत ग़ज़लें पढने को मिली,
जवाब देंहटाएंनिर्मल जी का ये शेर "पर हमारी जान अटकी है.........." तो अपने घर-शहर से दूर बसे लोगों पे बिलकुल खरा उतरता है.
और "बिन हठीला शायरी..........." वाला शेर भी बहुत पसंद आया, सच्ची श्रधांजलि देता हुआ.
उमाशंकर जी ने तो मतला ही बिलकुल हट के सोचा है, "क्यूंकि इक बुढ़ा माली है अभी तक.........." इसलिए पेड़ भी बाकी है, बहुत ही logical है
और उनका ये शेर "प्यार और तहजीब बाकी" भी दिल में खास जगह बनाता है.
मुशायरे की अगली कड़ी के इन्तिज़ार में......
निर्मल जी का ये शे'र हम जहाँ मिलते रहे थे शाम के साये तले... वाला शे'र पढने पर एक अलग ही आनन्द देता है...
जवाब देंहटाएंसाहिल साब का शे'र की झुक पडे सर आप ही का जब अदब से मिलें.. कमाल का बना है... एक तह्ज़ीब जो अभी तक है वही है इस शे"र में गाँव के लिये.. गाँव में..
बहुत बधाई
दोनों ही ग़ज़लें अच्छी लगीं.मुशायरा रंग जमा चुका है.अब एक से बढ़ कर एक फनकार अपने जलवे बिखेरेंगे. हम तो दिल थाम के बैठे हैं......
जवाब देंहटाएंHai Abi Tak Gaav mein. Iski ab tak kee buni hui har tasveeer tazgee liye hue yaadon ki vadiyon mein le jaane mein saksham hai. Nirmal ji evam umashanker ji
जवाब देंहटाएंaap donon ke rcahnatamak oorja ko mera naman
दोनों ही गज़लें बहुत ही उम्दा...
जवाब देंहटाएंहम जहाँ मिलते रहे थे--- वाह बहुत सुन्दर शेर
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी रफ्तार से--- सही बात है पूरी गज़ल दिल को छूती हुयी\ निर्मल सिधू जी को सुन्दर गज़ल के लिये बधाई
श्री उमा शंकर जी ने---
चाहतें है----
रहनुमक़ओ आकर पूछिये----
लाजवाब शेर कहे हैं उनको भी सुन्दर गज़ल के लिये बधाई।
निर्मल जी की गज़ल से गाँव की खुशबू और उसकी मिट्टी से दूर होने की टीस नज़र आ रही है ...
जवाब देंहटाएंसात सागर पार करके दूर तो हम आ गए ... ये शेर दिल के इतने करीब बैठ गया है की अगले शेर तक जाने ही नहीं दे रहा ... बहुत ही सम्वेदन शील शेर कहे हैं सब ...
और उमाशंकर जी ने तो मतले में ही बहुत गहरी बात कह दी ... हकीकत से जुड़े हैं सब शेर उनके ... शहर में हैं चाहतें ... या फिर ... झुक पड़े सर आप ही ... गाँव की असल पहचान से जुड़े हुवे शेर हैं ...
गुरुदेव इतने संवेदनशील शेरों को एक साथ निकलवाने का भागीरथ प्रयास बस आपके मिसरे से ही संभव हुवा है ...
लो जी टिपण्णी फिर गायब हो गयी ...
जवाब देंहटाएंनिर्मल जी की गज़ल से गाँव की खुशबू और उसकी मिट्टी से दूर होने की टीस नज़र आ रही है ...
सात सागर पार करके दूर तो हम आ गए ... ये शेर दिल के इतने करीब बैठ गया है की अगले शेर तक जाने ही नहीं दे रहा ... बहुत ही सम्वेदन शील शेर कहे हैं सब ...
और उमाशंकर जी ने तो मतले में ही बहुत गहरी बात कह दी ... हकीकत से जुड़े हैं सब शेर उनके ... शहर में हैं चाहतें ... या फिर ... झुक पड़े सर आप ही ... गाँव की असल पहचान से जुड़े हुवे शेर हैं ...
गुरुदेव इतने संवेदनशील शेरों को एक साथ निकलवाने का भागीरथ प्रयास बस आपके मिसरे से ही संभव हुवा है ...
सिद्दू साहब के ये दो मिसरे बहुत सुन्दर हैं :
जवाब देंहटाएंये सुना है इक दीवानी है अभी तक गाँव में --- बहुत ही हौन्टिंग सा चित्र बन जाता है नज़रों के सामने!
हम जहाँ मिलते रहे थे शाम के साए तले --- ये भी बेहद खूबसूरत इमेज लिए हुए है.
साहिल जी ने कुछ ख़ूबसूरत शेर कहे हैं:
झुक पड़े सर आप ही का जब अदब से वो मिलें --- वाह!
प्यार और तहज़ीब बाकी है अभी तक गाँव में
शहर में हैं चाहतें बस एक शब की रंगतें
प्यार की पहचान साँची है अभी तक गाँव में -- साँची शब्द का सुन्दर प्रयोग और इतनी सामयिक और अहम् बात कहना, दोनों बहुत ही खूबसूरत!
कल्पना है या हकीक़त गाँव में बिजली सड़क---बहुत ही पैना मिसरा जिसका समर्थन करता है ग़ज़ल का सशक्त और बेहतरीन मक्ता :
रहनुमाओं गाँव आकर पूछिए साहिल का हाल
ज़िंदगी जिसने गुजारी है अभी तक गाँव में!-- वाह!
दोनों शायर बधाई स्वीकारें!
सादर, शार्दुला
दोनों शायरों को अच्छे शेर कहने के लिए खूब बधाइयाँ.
जवाब देंहटाएंनिर्मल सिद्धू जी के ये शेर ख़ास तौर पे पसंद आये;
"सात सागर पार करके दूर तो हम आ गये................" वाह वा
"यूं बदल तो सब गया है अब वहाँ फिर भी मगर......", उम्दा गिरह लगाई है
"बिन हठीला शायरी ग़मगीन है रहने लगी.............", हठीला जी को समर्पित ये शेर अपनी खुश्बू हर तरफ बिखरा रहा है.
डॉ उमाशंकर साहिल जी के ये शेर ख़ास तौर पे पसंद आये,
"शहर में हैं चाहतें, बस एक शब की रंगतें ................", वाह वा डाक साब, मज़ा आ गया
"रहनुमाओं गाँव आकर पूछिए साहिल का हाल.......", अच्छा शेर बना है.
अब पंतनगर आके आपकी सुरीली आवाज़ में ये ग़ज़ल आपसे सुनी जाएगी.
पंकज जी ,,नेट की समस्या ने अभी तक ग़ज़लें पढ़ने से महरूम रखा था ,,पर अब नहीं ...
जवाब देंहटाएंहम जहाँ मिलते रहे थे .....
निर्मल जी बहुत सुंदर शेर
झुक पड़े सर आप ही का जब अदब से वो मिलें ---
प्यार और तहज़ीब बाकी है अभी तक गाँव में
क्या बात है !!
सिद्धू जी का मतला बढ़िया लगा और उमाशंकर कानपुरी जी से तो कानपुर का ही रिश्ता जुड़ गया, अब उनके बारे में कुछ कहूँगी तो लोग कहेंगे कि यूँ ही कह रही हूँ.....:) :)वैसे ग़ज़ल अच्छी कही...
जवाब देंहटाएंसिद्धू जी का मतला बढ़िया लगा और उमाशंकर कानपुरी जी से तो कानपुर का ही रिश्ता जुड़ गया, अब उनके बारे में कुछ कहूँगी तो लोग कहेंगे कि यूँ ही कह रही हूँ.....:) :P वैसे ग़ज़ल अच्छी कही...
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