कवि अटल बिहारी वाजपेयी की कविता की पंक्तियां हैं ।
एक बरस बीत गया, एक बरस बीत गया, झुलसाता जेठ मास, शरद चांदनी उदास, सिसकी भरते सावन का अंर्तघट रीत गया, एक बरस बीत गया, एक बरस बीत गया ।
और सचमुच ही एक बरस बीत गया । हठीला जी को गये हुए एक बरस बीत गया । एक ऐसी शख़्सीयत जो जब तक जिंदा रहे तो पुरी तरह से जिंदा रहे । कहीं कोई मृत्यु का भय नहीं रहा । और जब मौत ने दबोचना शुरू किया तो छोड़ कर चले गये शहर को । दूर दकन में हैदराबाद, वहीं अपनी बीमारी का पूरा समय काटा और वहीं देह त्याग दी । इस प्रकार की खुद्दारी की यारों के कंधे पर चढ़ कर शहरे ख़मोशां तक जाने का एहसान भी नहीं लिया । जीवन भर जिस शहर को नहीं छोड़ा, उसको छोड़ा तो ऐसे छोड़ा कि फिर मुट्ठी भर राख बन कर ही लौटे उस शहर में । शायद वे भी नहीं चाहते थे कि उनका शहर उनके फक्कड़ और अलमस्त रूप की जगह बीमार और अशक्त रूप को याद रखे । और सच भी यही है कि अब शहर को उनका वही रूप याद है । दूर दकन के शहर हैदराबाद में जाकर देह त्याग की और वहीं उस नश्वर देह का संस्कार हो गया । जोश मलीहाबादी की पंक्तियां शायद उनके लिये ही बनीं थीं ।
हश्र तक रहने न देना तुम दकन की खाक में
दफ़्न करना अपने शाइर को वतन की खाक में
सुकवि स्व. रमेश हठीला स्मृति तरही मुशायरा
इक पुराना पेड़ बाक़ी है अभी तक गांव में
कुछ पुराने पेड़ बाक़ी हैं अभी तक गांव में
हठीला जी के बारे में बहुत कुछ है यूं तो लिखने को लेकिन बस वही है कि कहां से शुरू किया जाये । उनके कई नाम थे । नाम जो लोग उनको देते थे मगर ठलुआ कवि सीहोर की जनता द्वारा दिया गया उनका सबसे लोकप्रिय नाम था । ये नाम उनके अति लोकप्रिय कुंडली स्तंभ 'ठलुआई' के चलते उनको मिला था । स्तंभ की लोकप्रियता का अंदाज़ा इससे ही लगाया जा सकता है कि जिस पेपर में उनका स्तंभ छपता था उस पेपर को पढ़ने की शुरूआत ही पाठक उस स्तंभ के साथ करते थे । सीहोर के कलेक्टर, एसपी, विधायक हर कोई को प्रतीक्षा रहती थी की आज की ठलुआई किस पर आने वाली है । ठलुआई भी इतनी मसालेदार कि जिस पर लिख दी जाती थी वो पूरे दिन शहर में कूदता फिरता था और ठलुआ कवि को गालियां बकता फिरता था । मगर फिर भी बात वही होती थी कि उनकी प्रतिबद्धता समाज के प्रति थी सो वे समाज को ही याद रखते थे । ठलुआई लिखने का उनका तरीका ये था कि वे एक दिन पहले का समाचार पत्र उठा कर उसे देखते थे कि आज का कौन सा समाचार प्रमुख था और बस उसे ही काव्य कुंडली में ढाल देते थे । दस साल तक रोज़ बिना नागा वे कुंडली लिखते रहे । यहां तक कि बीच में अस्पताल में भर्ती रहे, हार्ट सर्जरी हुई तो वहां से भी वे मोबाइल के माध्यम से कुंडली भेजते रहे ।
कविता उनके अंदर थी, श्री बालकवि बैरागी के अनन्य भक्त थे वे । बैरागी दादा का लिखा हुआ तू चंदा मैं चांदनी वे बार बार सुनते और आनंद लेते । मूलत- राजस्थान के थे और उनके अंदर राजस्थान हमेशा धड़कता था । पेशे से दाल बाफले बनाने का काम । और वो भी ख़ालिस राजस्थानी टच के दाल बाफले । इतनी प्रसिद्धि कि दिल्ली मुम्बई तक भी दाल बाफले बनाने जाते थे । दाल बाफले बनाने के साथ कविता कब उनके अंदर आ गई उनको भी नहीं पता चला । होली और बसंत पंचमी जैसे त्यौहारों को लेकर विशेष रूप से उत्साहित रहते थे । होली पर समाचार पत्र का विशेषांक निकालना, टेपा समारोह का आयोजन करना जैसे उनके प्रिय शगल थे । उनके लिये वे विशेष रूप से उत्साहित रहते थे । आप लोगों ने भी देखा होगा कि पिछले एक साल से मेरे सारे कार्यक्रम मानो ठप्प से पड़े हैं । उसके पीछे भी वही कारण है कि कार्यक्रम तो वही करवाते थे ।
तो आज उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर उनको मेरा नमन और पूरे ब्लाग जगत की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि । आज उनको श्रद्धांजलि देकर हम इस मुशायरे को विधिवत रूप से शुरू कर रहे हैं । अगले अंक से ग़ज़लें आनी शुरू हो जाएंगीं । और हां इस मुशायरे की एक और खास बात है जो कार्यक्रम के बीच में कहीं घोषित की जाएगी । हालांकि घोषित तो अभी की जानी थी लेकिन अब वो बाद में घोषित होगी । हां एक कार्यक्रम जो सीहोर में पहले से होता आ रहा है 19 जनवरी को सीहोर में 33 सालों से एक कार्यक्रम होता आ रहा है उसीमें श्री हठीला जी को भी श्रद्धांजलि दी जायेगी और उसमें ही प्रथम सुकवि रमेश हठीला सम्मान प्रदान किया जायेगा । सम्मान हेतु डॉ पुष्पा दुबे की अध्यक्षता में एक समिति बना दी गई है ।
पुण्य स्मरण संध्या का आयोजन इस वर्ष भी 19 जनवरी को रात्रि साढ़े आठ बजे ब्ल्यू बर्ड स्कूल के सभागार में आयोजित किया जा रहा है । इस वर्ष कार्यक्रम का स्वरूप और अधिक विस्तृत करते हुए इसमें सुकवि रमेश हठीला के पुण्य स्मरण का भी समावेश किया जा रहा है । साथ ही कार्यक्रम में गीतकार स्व. मोहन राय तथा वरिष्ठ शायर स्व. कैलाश गुरूस्वामी को भी काव्यांजलि प्रदान की जाएगी । इस वर्ष की यह पुण्य स्मरण संध्या सीहोर के इन चारों साहित्यकारों को समर्पित रहेगी । विगत 33 वर्षों से लगातार आयोजित कि ये जा रहे इस काव्यांजलि समारोह में इस वर्ष दो सम्मान प्रदान किये जाएंगे, तैंतीसवा पंडित जनार्दन सम्मान पूर्व की तरह प्रदान किया जायेगा साथ में प्रथम सुकवि रमेश हठीला सम्मान, स्व. रमेश हठीला की स्मृति में प्रदान किया जायेगा । सम्मानों हेतु नाम चयन करने के लिये एक समिति का गठन प्रोफेसर डॉ. पुष्पा दुबे की अध्यक्षता में किया गया है, चयन समिति शीघ्र ही दोनों सम्मानों के लिये नाम की घोषणा करेगी ।
और अंत में ये गीत श्री हठीला जी के लिये
हठीला जी को नमन !
जवाब देंहटाएंविन्रम श्रद्धांजलि!
हठीला जी को सादर नमन !!!
जवाब देंहटाएंएक साल बीत गया....सचमुच| कभी मिल नहीं पाया उनसे, लेकिन मोबाइल पर उनकी बुलंद आवाज और ठिठोली कभी नहीं भुला सकता |
जवाब देंहटाएंसुकवि को मेरी विनम्र श्रद्धांजली...!
विनम्र श्रद्धांजली!
जवाब देंहटाएं. ऐसे विलक्षण प्रतिभा वाले इंसान से न मिल पाने का ग़म हमेशा सालता रहेगा...वो जहाँ भी होंगे अपनी महफ़िल जमा कर लोगों को दाल बाफले खिलाते हुए ठलुआई कर रहे होंगे...ऐसे लोग कभी मरते हैं क्या? कभी नहीं सिर्फ स्थूल रूप छोड़ सूक्ष्म रूप में विचरते रहते हैं...लोगों के दिलों में ज़हनों में...मेरी तरफ से उन्हें विनम्र श्रधांजलि...
जवाब देंहटाएंतरही का बेताबी से इंतज़ार है...कब शुरू करेंगे...???
नीरज
हठीला जी को श्रधान्जली.कभी उनसे मिला नहीं लेकिन जितना जाना है उससे यही कहूँगा की उन जैसे स्वाभिमानी और जिंदादिल इंसान कम ही होते हैं..
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जवाब देंहटाएंनमन है गुरु साहब को .... :(
जवाब देंहटाएंमैं जब जब आप से उनके बारे में सुनती हूँ, तो अचानक बड़े भईया उनकी जगह खड़े हो जाते हैं और आँखें भीग जाती हैं......
जवाब देंहटाएंनित्यलीलालीन हो गये किन्तु ऐसों को अपने बीच से जाना नहीं कहते. आपकी निरंतर उपस्थिति प्रत्येक क्षण बनी रहती है. कैसे विलग समझें आपको या स्वयं को विलग समझें आपसे.
जवाब देंहटाएंआद. पंकज भाईजी से जुड़ाव के बाद आपकी जानकारी हुई. फिर तो आपके सम्बन्ध में नेट के माध्यम से जानकारी प्राप्त करता गया और अगाध श्रद्धा से भरता गया.
प्रस्तुत मुशायरे का आपकी स्मृति में आयोजित होना कृतज्ञ सहयोगियों और वियोगी सहकर्मियों की विनम्र श्रद्धांजलि है.
आपके प्रति सहभाव को हम सभी महसूस कर रहे हैं.
सादर
-- सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र) --
गुरुसाब से जब भी और जो भी मुलाकात हुई तो वो यादगार बन गई.
जवाब देंहटाएंपहली बार तो तब हुई जब मैं पहली दफा सिहोर पहुंचा, और उसी दिन आप लोगों ने शाम को सुनियोजित रूप से काव्य-गोष्ठी रखवा रखी थी. उस दिन आप सभी से मिलने के साथ-साथ गुरुसाब की काव्य रचनाएँ भी सुनने को मिली, उफ्फ्फ..क्या अंदाज़ था. प्रेम की कविता, शेर तो अपने अलग ही रस में डूबे होते थे. हर बात दिल को छु देने वाली, हर अंदाज़ एक आत्मीय एहसास लिए हुए और मैं अपना वो जन्मदिन तो भूल ही नहीं सकता, जो गुरुसाब के घर पे मनाया था. आपके बनाए दाल-बाफले भी खाने का सौभाग्य मिला.
आज ज़ेहन में कई तस्वीरें घूम रही हैं, मन फ्लेश-बेक में डुबकियाँ लगा रहा है. आज आप हम सबके के बीच, सिर्फ एक शारीरिक रूप में न होकर कई रूपों में हैं. आपका नाम जैसे ही मन में कौंध रहा है तो कई बातें, यादें ताज़ा हो जा रही हैं.
गुरुसाब, आपको श्रद्धांजलि स्वरुप ये शेर समर्पित है,
"कई मुश्किलों में भी ज़िन्दगी तेरे ज़िक्र से है महक रही,
तेरी चाहतों की ये खुशबुएँ मैं जहाँ रहूँ मेरे संग हों."
विनम्र श्रद्धांजलि..
जवाब देंहटाएंस्व. हटीला जी की स्मृति को पुणय नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंबिलकुल एक बरस बीत गया. हठीला जी के यादें और रचनाएं शेष रहेंगी.
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजलि !!!
स्व. रमेश हठीला जी को श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंलोहड़ी पर्व की बधाई और शुभकामनाएँ!
स्व. हठीला जी को आपने जिस अपनत्व से याद किया है वह भाव विह्वल करने वाला है. उस पुण्यात्मा को मेरे श्रद्धा सुमन.
जवाब देंहटाएंहठीला जी को नमन और विनम्र श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंज़ौक इस बह्र-ए-फ़ना में कश्ति-ए-उम्रे रवॉं
जवाब देंहटाएंजिस जगह भी जा लगे वो ही किनारा हो गया।
यही सत्य है इस जगत के भ्रम का जिसे ब्रह्म-स्वप्न भी कहा जाता है। उर्जावान सूक्ष्म स्थूल देह के भ्रमजाल से मुक्त हो अपने प्रियतम की बॉंहों में है।
विनम्र श्रद्धॉंजलि इस पुण्य-स्मरण के अवसर पर।
वक़्त को मात करके जीवंत यादों में स्मरण्णीय हठीला जी को मेरा शत शत नमन
जवाब देंहटाएंगुरूवर,
जवाब देंहटाएंहठीला जी से मेरा संबंध इतना ही रहा है कि जब हिन्द-युग्म ने मुझे अप्रैल २०१० के लिए यूनीकवि का सम्मान दिया तो एक प्रशस्ति पत्र के रूप् में जो कि शिवना प्रकाशन के सौजन्य से था और आज मेरी बैठक की शोभा बढ़ा रहा है। वह प्रशस्ति पत्र प्रदाता के रूप में हठीला जी आज भी विद्यमान है।
नीरज जी ने बिल्कुल सही कहा है कि ऐसे व्यक्तित्व हमेशा हमारे जेहन में ही मौजूद रहते है कहीं जाते नही।
मेरी ओर से विनम्र श्रृद्धाँजलि।
काश कि कभी मिलने का सौभाग्य मिला होता।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
हठीला जी को जितना जाना है गुरुदेव आपके माध्यम से ही जाना है...इस तरह का जिंदादिल व्यक्तित्व हर किसी को नहीं मिलता है और ऐसे लोग कभी मरते भी नहीं है....हमेशा अपने चाहने वालों में जीवित रहते हैं...नमन है उनको|
जवाब देंहटाएंमुशायरे के बीच में घोषित होने वाली खास बात क्या है....बेसब्री से प्रतीक्षा है..
इतना कुछ जाना है हठीला जी के बारे में आपके माध्यम से की लगता नहीं है की उनसे मिला नहीं हूँ ... हालांकि ये बात हमेशा सालती रहेगी की सीसी शक्सियत से क्यों मिउलना नहीं हुवा ... मरी विनम्र श्रधांजलि है हठीला जी को ...
जवाब देंहटाएंतरही का बेसब्री से इन्तेज़ार है ... आप घुश्नाएं रोक के धडकन बढ़ा रहे हैं दिल की ...
विनम्र श्रद्धाँजली।
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