शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

होली का तरही मुशायरा:- आज के मुशायरे में न केवल जूते पड़ रहे हैं बल्कि मारे भी जा रहे हैं । क्‍योंकि आज हैं सुलभ सतरंगी, अर्चना तिवारी और पारुल ।

नोट : होरी में अब केवल दो दिन ही बाकी हैं सो सभीको अगाह किया जाता है कि भजिये, गुझिये, आदि हर वो चीज जो दिखने में हरी हो उसे संभल कर खाएं क्‍योंकि उसमें भंग होने की प्रबल संभावना है ।

अब माटसाब भी का करें जब पूरे कुंए में ही भंगवा घुरी हो । पर आज तो हम मुकाबला टाइप का कुछ लाये हैं । मुकाबला टाइप का बोले तो आज एक तो पुरुष हैं ( कन्‍फर्म नहीं है ) और दो सन्‍नारियां हैं । कन्‍फर्म नहीं है कहने से हमार मतबल ये है कि आजकल अपने ब्‍लाग जगत में कोनो बात को कन्‍फर्म नहीं कह सकते । पता चलता है कि जिनको आप महिला समझ कर कई दिन से ब्‍लाग पर टिपिया रहे थे वे तो पुरूष निकले । सो हम ने भी एही वास्‍ते कह दिया कि हम लिखते तो भले ही हैं कि पुरुष हैं लेकिन हमको भी कोनो बिसबास नहीं होता है कि हम सही ही कह रहे हैं । आज सुलभ सतरंगी हैं अर्चना तिवारी हैं और पारुल हैं । हम पहिले ही घोषणा करे रहे कि जो भी आपन फोटो ग़ज़ल के साथ नहीं भेजेगा तो फिर हम सुतंत्र होंगें कि हम उका नाम के सामने चाहे जो फोटो लगा दें । तो आज पहिली बार हमको मौका मिला है कि हम आपन मन की कर लें । काहे । काहे कि पारुल जी भहुत रिक्‍भेस्‍ट के बाद भी फुटवा नाही भेजीं । हम भहुत रिक्‍भेस्‍ट करे । पर सायद वे नरभस हो रही थीं फोटो भेजने में सो हम ने उनके लिये फोटो ढुंढ लिया है । मत नरभसाइये, इसमें नरभस होने का कोनो बात नहीं है ।

sulabh parul archna copy

क्रम से अर्चना तिवारी, सुलभ सतरंगी और पारुल

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पारुल

( जज साहब जो टेबुल पर चिमनी और झाड़ू सजा कर बैठे हैं उनकी टेबुल पर भी एक खास फोटो है ये सीहोर की वो शख्‍सियत है जिसको देश के सारे अखबारों ने मुख पृष्‍ठ पर छापा था ) 

जो फूल गूलर का हो रहे थे ,लो आके टपके गली हमारी
उतारो जूतों से आरती सब  ,सनम हैं आए गली हमारी
मिलाके शोख़ी अदा से उनको, दो बूंद हमने जो भंग दे दी
कभी वो खटिया कभी वो मचिया, रहे पकड़ते गली हमारी

चढ़ा है फागुन का रंग ऐसा, लगे उसे हर गली हमारी
गवां के रतियाँ बनाके बतियाँ,दीवाना झाके गली हमारी
क्या ख़ूब सूरत क्या ख़ूब सीरत खुदाया क्या ख़ूब हड़बड़ी भी
पहन के कुर्ता मियाँ जनाना ,रहे टहलते गली हमारी

समझ के "पुखराज" बढ़ गए वो ,वहाँ थीं अम्मा खड़ी हमारी
पड़े हैं फटके वो या इलाही ,कभी न फटके गली हमारी

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अर्चना तिवारी

लो आया फागुन, मचा के धम धम, धमाल करने गली हमारी
उतारो जूतों से आरती सब, सजन हैं आए गली हमारी
न छेड़ना फिर कभी ओ छोरे मिलेगी गाली, पड़ेंगे जूते
करेगी स्वागत लगा के कीचड़, बदन को तेरे गली हमारी
बही है रंगों की धार ऐसी, धरा से अम्बर सरार सर सर
हरे, बसंती, गुलाबी, नीले गुलाल रंग से गली हमारी
नशा चढ़ा है रंगों का ऐसा जो भंग से भी नहीं चढ़ेगा
ये मस्त, पागल, दिवाने, सनकी न जाएँ बच के गली हमारी
सभी के चेहरे पे कीच-गोबर, रंगों से टोली सजी हुई थी
चखा दिया जब मज़ा सभी को, न फिर वो लौटे गली हमारी
मजीरा बाजे, मृदंग बाजे, ढमाक ढम ढम ढमाक ढम ढम
रंगे पुते से तमाम चेहरे झमक के नाचे गली हमारी


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सुलभ सतरंगी

मझीरे ढोलक रहे थे बजते हुए तमाशे तेरी गली में
है अपनी इज्ज़त उतर गई हम हैं हाथ जोड़े तेरी गली में

बला के सपने थे देखे हमने के रंग गालों पर तेरे मल दें
ये ही थी चाहत की होली खेलूं जो रंग बरसे तेरी गली में

यूं नाम लेकर तुझे पुकारा जो तेरे घर में रखे कदम थे
निकल गए दिल के सारे अरमान भांग पीके तेरी गली में

पता था क्या ये यूं हाल होगा बनेगा कीमा मेरे ही दिल का
उतर गया है बुखार सारा पड़े वो जूते तेरी गली में

खमोश रहता था जो  हमेशा मेरे ही आगे मेरे ही डर से
उसीने गोबर भरे तगारे हैं मुझ पे  फेंके तेरी गली में

है हड्डी हड्डी दरद में डूबी बचाई जां तो है जैसे तैसे
किसे सुनाएँ ये दर्द-ए-आशिक चले हैं दुचके तेरी गली में

रहेगी हमको ये याद बरसो तेरी गली में  जो खेली होली 
उतर गया है बुखार सारा पड़े वो जूते तेरी गली में

तीनों ने बहूत ही अच्‍छा टाइप का कुछ लिखा है पारुल जी ने गंवा के रतियां बना  के बतियां में अमीर खुसरों साहब की उस दुर्लभ रचना की याद दिला दी है । अर्चना जी ने ढमाक ढम ढम, सरार सर सर, धमाल धम धम जैसी ध्‍वनियों का जबरदसत प्रयोग किया है । सुलभ सतरंगी हड्डी हड्डी का शेर बहुत अच्‍छा निकाला है । चले हैं दुचके तेरी गली में ।

सूचना - कल हमने पुरुषोत्‍तम का लड़का के समझाय दिया था कि सूर्पनखा का रोल करने वाले कलाकार का न छ़ेड़े, काहे कि वो कलाकार भले ही सुर्पनखा बना है पर वो नारी नहीं है नर है । एतना बताने के बाद भी पुरुषोत्‍तम का लड़का आज फिर सूर्पनखा के छेड़ा है । सूर्पनखा मंच के पीछे बैठी रो रही है कि हम नहीं आयेंगें नाक कान कटवाने, गांव वाले रामलीला करवाना चाहते हैं तो पुरुषोत्‍तम का लरिका के संभालें ।

सूचना - भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के द्वारा लिखी गई ग़ज़ल को मुशायरे के संचालकों ने खारिज कर दिया है । उस पूरी ग़ज़ल में 75 जगह पर बीप बीप ( ####) करना पड़ रही थी । भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के बहुत गुस्‍सा में ग़ज़ल लेकर चले गये हैं ।

सूचना - कल मुशायरे का समपान होगा पंच परमेश्‍वर की रचनाओं के साथ पांच महारथियों की ग़ज़लों का आनंद लें कल । और फिर होगा होली पर उपाधियों का वितरण ।

सूचना – ( ##########################) और चाही कि इतना बस है ।

27 टिप्‍पणियां:

  1. चक्कर में है डालता, ब्लॉगिंग का संसार,
    कोई नहीं है जानता, नर है कि यह नार.


    -आज तो जितना मजा हज़लों में आया, उत्ता ही मजा मास्साब की कमेंटरी का रहा....हा हा!! सही है यह होली मुशायरे का आनन्द!! हम तो हरी मिठाई ही खोज रहे हैं..मगर हाय रे नसीबा...कनाडा आकर फूट ही गया!!

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  2. मजेदार पोस्ट.
    मजीरा बाजे, मृदंग बाजे, ढमाक ढम ढम ढमाक ढम ढम
    रंगे पुते से तमाम चेहरे झमक के नाचे गली हमारी
    ..वाह! वाह! क्या बात है!

    रोज कहता हूँ न जाऊंगा घर उनके
    रोज उस कूचे में इक काम निकल आता है.

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  3. अब का कहें...बोलती ही बंद हुई गयी है हमार तो...सच्ची...कईसी कईसी हज़ल्वा लिखें हैं ये तीनो की का बताएं...पारुल्वा जहाँ " चढ़ा है फागुन का रंग..." सुना के मस्ता रही हैं वहीँ अर्चना जी धम धम सर सर ढम ढम की आवाजों से सबको नचा रहीं हैं और ये सुलभ्वा...इसकी का बात करें...बचपन से ये ऐईसा ही रहा... नटखट...इसकी हड्डी हड्डी अभी तो दरद में डूबी हुई है पर जैसी ही दरद थोडा कम हुआ ये फिर उछल कूद मचाएगा...
    ये तरही तो गुरुदेव ब्लॉग्गिंग के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय समझिये...
    नीरज

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  4. पंकज जी ,इसी बहाने जाना हज़ल होती क्या है और फोटो तो बहुत शानदार है :)

    आभार

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  5. in teeno ne itanee bhaMg pilaa dee ki javaab nahee soojh rahaa abhee jaraa नशा उतरे तो आती हूँ --- इनकी खबर लेने। होली की सब को शुभकामनायें

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  6. पहली बात तो यह कि मुशायरे के संचालकों को सिंगापुर टूर पर भेज दें आज ही जिससे भौंचक्‍क भाई की रचना का पुर्नपरीक्षण एक उच्‍चस्‍तरीय समिति से कराया जा सके। परीक्षण उपरॉंत निर्णय लिया जायेगा कि बीप डालने की जरूरत भी है कि नहीं, छापना तो है ही आखिर होली है। अगर ना छापने की जिद है तो ऐसा करते हैं कि संचालक मंडल की बात भी रह जाये और परिणाम सुखद् हो। इसका हल ये है कि भौंचक्‍क भाई पूरी तरह भॉंग में टुन्‍न होकर अपनी हज़ल सुनायेंगे, वो भी झॉंझ-मजीरे ढोलक-हारमोनियम गिटार-सितार के साथ । आज ही मेल द्वारा समस्‍त ब्‍लॉगिया भाईओं, बहनों, माताओं, चाचाओं, ताउओं का मत प्राप्‍त किया जाय इस विचार पर (बच्‍चों को छोड़ दिया है, वो बेचारे होली की गंभीरता नहीं समझते)।
    अब बात करें आज के हज़लकारों की।

    पारूल जी ये हड़बड़ी वड़बड़ी कुछ नहीं ये हस्रत थी पडोंसन को गले लगाने की, आप ग़ल़तफहमी में ना रहें, एक बार फिर चैक करें, ये कुर्ता पडोसन का ही था।
    अर्चना जी आपने ये क्‍या धमाल मचा रखा है कि गली की रास्‍तों पर फौज लगा दी है, माना कि बच्‍चे लोग मस्‍त हैं, पागल हैं, दीवाने हैं, सनकी हैं; लेकिन उन्‍हें आपकी गली तक पहुँचनें तो दें।

    सुलभ भाई, ये तुम्‍हें क्‍या हो गया है? माइकल जैक्‍सन रोग लग गया है क्‍या? एकदम से दुबला गये हो। तय करना मुश्किल हो गया है रेल्‍वे रिज़र्वेशन फार्म में तुम्‍हारे लिये मेल लिखें, फीमेल लिखें कि ईमेल लिखें, समझ नहीं आ रहा। अब भई जो खामोश रहता था वो ऐसी हालत देख कर निडर हो गया है तो गोबर भरे तगारे ना फेंकेगा तो क्‍या करेगा। चलो भाई आज ही डॉ़ #### से मिलो, ताकत और जवानी की दवा लो, और जल्‍दी ही मूल स्‍वरूप में वापिस आओ।

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  7. होलियाना प्रस्तुतियां तो सभी कमाल की ओ धमाल की हैं। और क्या लिखूं ?
    जिस इज्जतदार तरीके से आपने अपने और अपने बेहद अंतरवस्त्रीय लोगों के फोटो छापे हैं उसमें अपने छपे की खूब संभावनाए देख कर डर रहा हूं
    बहरहाल ईद और होली की ढेरों शुभकामनाएं

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  8. भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के का पचास पैसे वाला पोस्‍ट कार्ड मिला है जिसमें उन्‍होंने तिलक राज जी की टीप से सहमति जताते हुए उनकी ग़ज़ल को प्रकाशन करने के लिये एक आन लाइन पोल करवाये जाने की मांग की है । तथा नहीं किये जाने पर उन्‍होंने अदालत में जाने की चेतावनी दी है ।

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  9. पंकज जी, आदाब
    खूब आनन्द आ रहा है...
    तीनों हज़लें मज़ेदार...और फोटो पर की गई कलाकारी ने तो लोटपोट कर दिया..
    इसे जारी रखिये न...
    सभी को होली की शुभकामनाएं.

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  10. जबरदस्त..तीनों शायरों ने लाजवाब लिखा है। सुलभ के उस नये रंग-रूप पे लट्टु होने को जी मचल रहा है लेकिन कमबख्त ने पहले से भैया बना कर सब गुड़ गोबर कर रखा है।

    इन तमाम सूचनाओं को एकत्रित करके अलग से एक पोस्ट बनाना पड़ेगा गुरुदेव...

    और कवि भौंचक्के अगर नहीं आये अपने पचहतरों शेर लेकर तो हंगामा खड़ा कर देंगे हम...कहे देते हैं अभी से। फिर बाद में न कहना कि पूर्व-एतावनी नहीं दी थी...

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  11. मुशायरा संचालक मंडल सबसे अनुरोध करता है कि भभ्‍भड़ कवि जैसे छिछोरे और फूहड़ शायर का बढ़ावा न दें । शायद आप जानते नहीं हैं कि इस छिछोरे शायर ने कितने वाहियात शेर लिखें हैं । हर शेर में तीन तीन जगह पर ### लगाना पड़ रहा है ।

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  12. सभी को होली की रंग भरी शुभकामनाएँ !

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  13. अब भाई तीन जगह ### लगे कि पूरी हजल ही ### में हो। यह ब्‍लॉगिया अधिकार तो छीना नहीं जा सकता। मेल से पोल करायें या आनलाईन ये आपकी मर्जी लेकिन इस होली में जरा हम भी देख लें ### ### ### ### ### की बे-हद हद।

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  14. हर शेर में सिर्फ तीन जगह ### लगाना पड रहा है...बस...अरे वो भभ्‍भड़ कवि हो ही नहीं सकते आप किसी शिष्ट कवि को भभ्‍भड़ कवि कह कर हमारे सामने ला हमें बेवकूफ बना रहे हैं...शिष्ट कवियों का इस तरही हज़ल में क्या काम??...भभ्‍भड़ कवि तो वो महान कवि है जिनके हर शेर में कम से कम तीन सौ बार ### लगाना पड़ता है...उनकी तो बात ही निराली है...उनसे कहें की वो अपने दीवानों को उन्हें आन लाइन सुनावने की व्यवस्था करें...उन्हें बिना सुने अब ससुरे इस कान की खुजली मिटने वाली नहीं...

    अगर असली खालिस लम्पट भभ्‍भड़ कवि को हम जैसे रसिकों से दूर रखा गया तो हम संचालक मंडल के सदस्यों के सर से ईंट बजा देंगे...ईंट से ईंट बजाने का समय अब निकल गया है...ऐ संचालक मंडल के टुन्न सदस्यों आप हमारे सब्र का इम्तिहान ना लो क्यूँ की हम आज तक किसी इम्तिहान में पास नहीं हुए हैं ये बताये देते हैं...हाँ...
    नीरज

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  15. तीनो ने समा बाँध दिया .... एक से बढ़ कर एक ....
    हँसी के मारे पेट में दर्द होने लगा है अब तो ... भई कोई तो आए इनकी बोलती बंद करवाने वाले ... हा .. हा.. हा.....

    और हां भभाड़ कवि को लेकर आओ .... हमारी माँग पूरी करो ... नही तो हड़ताल पर बैठ जाएँगे हम भी .... तोड़ फोड़ करेंगे ... नीरज जी के साथ मिल कर ईंट से ईंट बजाएँगे ......

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  16. मैं तो अभी से अनशन पर बैठ रही हूँ जब तक भौँचक जी हमे आ कर अपनी हज़ल का घूँट नही पिलाते मै यहाँ से उठने वाली नही । अब इन तीनो की बात करें तो पारुल को तो मै बहुत ही शर्मीली और साऊ लडकी समझती थी मग इसने तो सब के छक्के छुडा दिये हैं
    मिला के शोखी-------
    चढा के फाल्गुन----- वाह वाह पारुल अच्छी तरह उतारी है आरती।
    और ये अर्चना जी तो खुद ही नशा चढाये फिर रही हैं
    नशा चढा है---- देख लें
    सभी के चेहरे----- वाह क्या होली खेली ये सारे बच्चो याद रखेंगे
    अब ये सुलभ की बच्ची इसने तो कमाल कर दिय--- अरे नही ये तो शायद लडका है लगता है खूब मुरम्मत हुयी है तभी तो इतने दुबले पतले हो गये---
    यूँ नाम ले कर ----- वाह पूरे मजनू????????
    है हड्डी हड्डी दर्द----
    और खामोश रहता---- उस दिन जरूर छक कर भाँघ पी होगी । चलो हमे तो बहुत आनन्द आया तुम्हारी हालत देख कर।
    ये सब सुबीर की करतूत है पकडो सभी उसे ।
    बहुत अच्छा लगा ये मुशायरा । इसी लिये तो इतना सुन्दर तोहफा मिला सुबीर को ग्यानपीठ पुरुस्कार।
    अब सभी देख लो आप ग्यान पीठ पुरुस्कार ले कर बाकी सब को जूते मरवा रहे हैं अरे कँजूस भाई जलेबियाँ ही खिला देते? सब को होली की सपरिवार शुभकामनायें।

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  17. बधाई बधाई गुरुदेव ..... बहुत बहुत बधाई आपको ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार के लिए .... हमारी भी छाती चौड़ी हो गयी अपने मित्रों के बीच .... आशा है आप ऐसे ही साहित्य जगत में छाते रहें .... दिन दूनी रात चोगनी तरक्की करें .. माँ सरस्वती का वरदान आप पर हमेशा ब्ना रहे ............

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  18. HOLI KI HARDIK SHUBHKAMNAYEIN TEENO KO HI...........TEENO KI HI RACHNAYEIN SHANDAAR THI,MAZAA AA GAYA.

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  19. मेरा एक सुझाव है। ऐन होली के दिन भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के की हज़ल की पोस्‍ट लगाकर ऑन-लाइन पोल करा लिया जाये कि इसे छापा जाये कि नहीं। अगर छापने की सहमति नहीं मिलती है तो नहीं छापेंगे। और अगर अनुमति मिल गयी तो....।

    बात समझ में आई ना।

    संचालक मंडल से अनुरोध है कि तत्‍काल यह सुझाव व्‍यक्तिगत ई-मेल ये प्रसारित किया जाये सभी सदस्‍यों में।

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  20. आज ...
    तूं ही तूं सतरंगी रे ... भई कमाल ! और अर्चनाजी ... पारुलजी ...क्या कहने !
    सुबीरजी , आपके यहाँ तो एक से बढ़कर एक छंटे हुए नमूने ...मेरा मतलब हीरे मौजूद हैं .
    पाखीजी - सिद्धूजी से हुई शानदार शुरूआत ...
    फिर गौतमजी रविजी वीनसजी उसके बाद गिरीशजी जोगेश्वरजी आज़मजी
    और बड़ी दीदी निर्मला कपिला जी शार्दूला दी कंचनजी
    और कुंवारों टाबरियो अर्शजी
    एक से एक हज़लें मिल रही हैं .
    आदरणीय तिलकराज कपूरजी नीरज गोस्वामीजी उड़नतश्तरी समीरजी का बड़ी उत्सुकता से इंतज़ार है .
    और ये कौन है ...भें च् च म्म्मतलब भौंचक्‍के भभ्‍भड़ कवि ?
    अब होलिका को खाक करने और प्रहलाद को बचाने के लिए #### #### #### भी तो आवश्यक बताया जाता है ...
    ...तो कोई महापुरुष ### भी तो ज़रूरी है !
    वैसे मैं आश्वस्त हूँ , आप जैसे विद्वान गुणी के परिवार में , जहा मातृ -शक्ति भी निरंतर विद्यमान रहती है --
    शालीनता का उल्लंघन हो ही नहीं सकता .
    होली पर सबको अंतर्मन की गहराई के साथ शिवाकांक्षाएँ - मंगलकामनाएँ ...

    राजेन्द्र स्वर्णकार

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  21. पारुल जी वाह नया रंग दिखाने के लिए शुक्रिया.
    ई तो ख़ास है... समझ के पुखराज बढ़ गए वो....वहां थी अम्म्मा (बाप रे जान बचाओ...)

    अर्चना मौसी से जो उम्मीद लगाये थे उससे दूना मिला है.
    मजीरा बाजे, मृदंग बाजे, ढमाक ढम ढम ढमाक ढम
    सो बहु ढूंडने का अधिकार उनको दे दिया है. बैंड बाजा आपका ही चलेगा, हमर बिहआ में.

    खूब मजा आ रहल बा.

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  22. (\./)
    / ' )"^-----;";
    \,,/"( , , )\\
    ....../\ /\

    हम सब को बेवकूफ बनाया जा रहा है.
    अभी तक जितना भांग खिलाया गया सब नकली रहीश.

    असली भांग के गोटिया तो भभ्भर कवि अपनी झोली में छिपाकर रखीश है.

    सबके बराबर बराबर बाँट न त... हम सभनी के कुरता फार देम....(#@!~~~#)

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  23. बचवा सतरंगी उ बात त ठीक बा कि तोहार दुल्हनिया त हम हेर देब...लेकिन हम बड़े फेरे म पड़ल बाड़ी... गुरु जी के कहे अनुसार कुछु कन्फर्मे ना बा कि तोहका दुलहिन हेरी कि दूल्हा...ई ससुर भंगिया के पियल्बे मा तो कौनू गड़बड़ी होई गइल त का होई बतावा..

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  24. सतरंगी बचवा तू दिना रतिया चस्मवा का टपले रहै ल...जनात ब कि उड़नतस्तरी चच्चा के नकल करत बाड़े...

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  25. भैया ये फोटो में नीली साड़ी वालीं .... कौन हैं ?
    @ पारुल जी :) ... कभी वो खटिया, कभी वो मचिया ... :)
    गवां के रतियां, बना के बतियां ... वाह!
    पड़े हैं फटके वो ल इलाही... :) ..बहुत अच्छे !!
    @ अर्चना जी, धरा से अम्बर सर्र्रार सर सर... !
    मंजीरा बाजे, मृदंग बाजे... वाह!
    @ सुलभा जी, बनेगा कीमा मेरे ही दिल का...
    है हड्डी-हड्डी दरद में डूबी... हमारी संवेदनाएं...:) ... बहुत अच्छे!
    ====
    भभ्भ समेत आप सब होली की भ्भ्भुत सुभकामनायें..

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