( इंटरनेट एक्सप्लोरर में न खुले तो मोजिला या गूगल क्रोम में खोलें । )
कई सारे फोन आ रहे हैं ओम जी को लेकर । चल मेरी सासू जी का फोन आया । ग्वालियर में कवि सम्मेलन में उनको मैंने ओम जी से मिलवाया था । वे ओम जी की विनम्रता अभी तक नहीं भूली हैं । बहुत दुखी थीं । कह रहीं थीं कि जिस दिन ओम जी का समाचार सुना उस दिन पूरा दिन मन खराब रहा । ईश्वर की सत्ता के आगे कौन क्या कर सकता है । शायद उसे ओम जी की जियादह ज़रूरत होगी । हम इंसानों के कर्म देख देख कर उसकी भी हंसी खो गई होगी और उसी कारण उसने ओम जी को बुला लिया कि वो भी हंस सके ।
स्व. ओम व्यास स्मृति तरही मुशायरा
आज हम आगे चलते हैं और आगे चलने से पहले बात करते हैं पिछले बार के कन्फ्यूजन की । कई लोगों ने प्रकाश सिंह जी को प्रकाश अर्श समझ लिया था । मेरे पास भी उनका कोई चित्र नहीं था सो कुछ नहीं लगा पाया । खैर बाद में पता लगा कि वे प्रकाश पाखी हैं । और अभिव्यक्ति के नाम से अपना ब्लाग चलाते हैं । ये है उनका चित्र ।
प्रकाश पाखी
आज तरही मुशायरे के तीसरे अंक में हम ले रहे हैं दो युवा शायरों को । युवा किस माने में । युवा इस माने में कि ये दोनों ही अभी तक कुंवारे हैं । मेरे विचार में युवा होने की सबसे ठीक परिभाषा यही है कि अगला कुंवारा हो । अब ये मत पूछियेगा कि श्री अटल बिहारी वाजपेयी भी इस हिसाब से युवा हुए कि नहीं । तो आज हम ले रहे हैं दो बेचलर शायरों को । अंकित को तो ये शिकायत हमेशा रहती है कि मैं उसकी शादी के पीछे पड़ा रहता हूं । बड़ा भाई हूं इतनी परवाह तो होगी ही । छोटा भाई सुंदर हो स्मार्ट हो, मुंबई जैसे शहर में रह रहा हो तिस पर शायर भी हो तो चिंता तो होगी ही ।प्रकाश की चिंता मुझे इसलिये नहीं है कि वो इतना संकोची है कि कुछ कहने में ही ढाई साल लगा देगा । खैर ये तो मजाक की बात । पिछली बार के दोनों ही शायर सुपरहिट हुए हैं । और आज फिर दो यूवा तुर्क अपनी ग़ज़लें लेकर महफिल में आ रहे हैं ।
पहले सुनते हैं इसी बहर पर गाई हुई ग़ज़ल गायकी के सम्राट श्री जगजीत सिंह साहब की गाई हुई और हिंदी तथा आम बोलचाल की भाषा को ग़ज़ल की भाषा बनाने में सबसे जियादह योगदान देने वाले देश के मशहूर शायर तथा मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी के अध्यक्ष श्री बशीर बद्र साहब की लिखी हुई ये ग़ज़ल । बद्र साहब इन दिनों अस्वस्थ हैं तथा स्मृति भ्रम का शिकार हो गये हैं । जिसे शायद अल्जाइमर भी कहते हैं । ईश्वर उनको स्वस्थ करे ।
सुनिये एल्बम विज़न्स से ली गई ये ग़ज़ल । ये एल्बम इसी प्रकार की दुर्लभ ग़ज़लों से भरा हुआ डबल कैसेट के सेट में आया था । जिसमें कैफ़ भोपाली साहब की मशहूर और मेरी सबसे पसंदीदा ग़ज़ल कौन आया है यहां भी शामिल थी ।
यदि प्लेयर न चले तो यहां जाकर सुनें
http://www.archive.org/details/SarJhukaogeToPathar
या यहां से डाउनलोड करें ।
http://www.divshare.com/download/7897590-55dअंकित सफर :
अभी तक इनको केवल चित्रों में ही देखा है और जो देखा है उससे ये पाया है कि ये बहुत मासूम सूरत के धनी हैं । फिलहाल मुम्बई में किसी बैंक में सेवारत हैं । पूना से इन्होंने एमबीए का कोर्स अभी पूरा किया है और तुरंत ही नौकरी में आ गये हैं । उत्तराखंड के रहने वाले हैं और अभी इनकी शादी नहीं हूई । इनके लिये कोई सुंदर सी ग़ज़ल की तलाश जारी है जो इनकी जीवन संगिनी बन सके ।
हौसले रखता जवां हूँ कोशिशों की धार से.
कुछ न कुछ मैं सीखता हूँ अपनी हर इक हार से.
इक नयी उम्मीद लेके आएगी कल की सहर,
रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से.
बात जिसने भी कही ये खूब ही उसने कही,
हो किसी को जीतना तो जीत लेना प्यार से.
तू बहुत पीछे कहीं ना छूट जाये आदमी,
चाहता पाना है सब कुछ तू बड़ी रफ़्तार से.
या तो वादा ना करो या फिर निभाना भी उसे,
बस यही हूं चाहता मैं हिंद की सरकार से.
भीग सारे ही गए कागज़, ग़ज़ल ख़ुद भी "सफ़र",
याद के बादल उमड़ बरसे बहुत बौछार से.
वाह वाह वाह बहुत अच्छे शेर निकाले हैं अंकित ने । विशेषकर जो मिसरा ए तरह के साथ गिरह बांधी है वो तो जिस प्रकार से सकारात्मक सोच लिये हुए है वो आनंद देने वाली है । मिसरे पर सकारात्मक गिरह भी बांधी जा सकती है ये बताने के लिये आभार अंकित की इस ग़ज़ल का । शेर आदमी वाला भी बहुत अच्छा है । बहुत अच्छी ग़ज़ल, मुशायरे को और ऊंचाइयों पर ले जाने के लिये बधाई ।
प्रकाश अर्श :
प्रकाश के बारे में क्या कहूं । ये मेरे विचार में श्रद्धेय नीरज गोस्वामी जी का पाकेट संस्करण है । नीरज जी की विनम्रता, उनकी सौम्यता सब कुछ प्रकाश ने मानो नीरज जी से प्राप्त की है । बस एक ही चीज नहीं ले पाये नीरज जी की तरह खुलकर कहकहे लगाना और गर्मजोशी । उसमें इनका संकोची स्वभाव आड़े आ जाता है । खैर बहूरानी आयेगी तो उसकी जिम्मेदारी होगी संकोची प्राणी को सुधारने की । ग़ज़ल की परम्परा भी प्रकाश के पास नीरज जी से ही आ रही है । और इसका उदाहरण है ये ग़ज़ल । सुनिये और आनंद लीजिये ।
ज़िन्दगी भर पाला पोसा जिसको इतने प्यार से ..
कर दिया बूढा बता के बेदखल घर-बार से ...
रतजगों का, सुर्ख आंखों का सबब बतलायें क्या
रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से
इश्क के दरिया को सोचा पार कर लूं डूब के
डर गया ग़ालिब के कहने पर इसी मझधार से ..
मेरी धड़कन, मेरी साँसे, मेरी ये तश्नालबी
अब तलक भी दूर हैं बस इक निगाहे यार से ...
वो मेरे कहने पे देखो आगया था बाम पर
है खबर उसको भी मैं जिंदा हूँ बस दीदार से ...
मेरा कातिल कर रहा है मुन्सफी खुद कत्ल की
फैसला पढ़ लेना ये तुम भी किसी अखबार से ...
वो जवानी भूल बैठा चौकसी सीमा पे कर
और हम सोते रहे निर्भय किसी भी वार से ...
चीखती है अस्मतें और चुप है सारी गोलियां
जनपदों में दर्ज शिकवे है पड़े बेकार से ...
वाह वाह वाह क्या श्ोर निकाले हैं । विशेषकर कातिल वाला और गालिब साहब को समर्पित शेर तो बहुत उम्दा हैं । आज तो दोनों ही युवा तुर्कों ने आनंद ला दिया है । मुशायरा अपनी ऊंचाइयों पर हैं ।
कुछ जानकारी : नीरज जी के ब्लाग पर एक मिली जुली ग़ज़ल लगी है । कुछ शेर मैंने लिखे है कुछ नीरज जी ने लिखें हैं । हर नदी में हो रवानी भूल जा, बिन दुखों के जिंदगानी भूल जा । ये बहर हमारी तरही मुशायरे की बहर की छोटी बहन है । ये उससे एक साल छोटी है । इसका नाम है बहरे रमल मुसद्दस महजूफ । ये हमारी बहर की छोटी बहन क्यों हुई भला । दरअसल में इसमें एक रुक्न कम है इसलिये ये एक साल छोटी हुई । इस बहर का वज्न होता है फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलुन/या फाएलान 2122-2122-212या2121 । आपको कोई गीत या ग़ज़ल याद आती है इस पर । चलिये एक तो मैं ही बता देता हूं । गालिब साहब की लिखी वो ग़ज़ल जो गुलजार साहब के सीरियल गालिब में बहुत लोकप्रिय हुई थी । एक फकीर उसको गाता है और उसकी धुन तो जगजीत साहब ने क्या बनाई थी । गाया विनोद सहगल जी ने था । याद आया आपको चलिये मैं ही बता देता हूं । कोई दिन गर जिंदगानी और है । इस बहरों में दूसरी कुछ मुसद्दस बहरों की तरह मिसरे में एक मात्रा बढा़ने की छूट होती है ।और उस कारण फाएलुन 212 का फाएलान 2121 हो जाता है । हो चुकीं ग़ालिब बलाएं सब तमाम में आखिरी का रुक्न 2121 ही हो गया है । आपको कोई और गीत या ग़ज़ल याद आता है आता हो तो बतायें ।
रविकांत ने अपने ब्लाग पर एक सुंदर गीत लगाया है जो कि लिखा गया तो छंद पर है जिस छंद पर शिव तांडव स्तोत्र की रचना हुई । शिव तांडव स्तोत्र को मैं विश्व की सबसे प्रभावशाली कविता मानता हूं । उसमें जो कुछ है वो किसी अन्य कविता में नहीं हैं । जटाटवी गलज्जले प्रवाह पावितस्थले । कभी मौका मिला तो सस्वर भी सुनाऊंगा । ये मुझे पूरी याद है । मेरे जैसे मंदिर नहीं जाने वाले को भी ये कविता केवल उसके प्रभावों के चलते याद है । हालंकि अब कुछ विस्मृत हो रही है । वैसे ये मुफाएलुन-मुफाएलुन-मुफाएलुन-मुफाएलुन है । अर्थात 1212-1212-1212-1212 ये बहरे हजज मुसमन मकबूज होती है जटाटवी 1212 गलज्जले 1212 प्रवाह पा 1212 वितस्थले 1212 इसकी बहरे हजज मुरब्बा मकबूज जियादह चलन में है । आपको कोई और गीत या ग़ज़ल या छंद याद आता है इस पर । आए तो बतायें ।
आज का सवाल : सावन चल रहा है और शिव की आराधना भी जोरों से हो रही है । कल तो हमारे यहां रात को खूब बरसात भी हुई दो घंटे तक । खैर तो इन दिनों शिव आराधना के लिये रामचरित मानस में से तुलसीकृत शिवाराधना बहुत गाई जाती है । नमामी शमीशान निर्वाण रूपं । क्या आप इसकी बहर बता सकते हैं । और इस बहर पर हिंदी फिल्म का बहुत लोकप्रिय गाना सुझा सकते हैं । मिले तो बतायें और अभी तो आनंद लें सावन की ऋतु में दो कुंवारों की ग़ज़लों का । और देखिये यादों के एल्बम में से एक पुराना बहुत पुराना चित्र जो है अपनी मनपसंदीदा और आलटाइम फेवरिट बुलेट के साथ ।
परम आदरणीय सुबीर साहब,
जवाब देंहटाएंआप वाक़ई नमन के क़ाबिल हैं ख़ासकर जिस ख़ूबसूरती से आपने प्रिय अर्श को तराशा है। उनके संदर्भ में बिल्कुल सही फ़रमाते हैं आप। हमें भी अर्श के उन्हीं दोनों शेरों ने अश अश कर उठने को मजबूर किया जिनका आप ज़िक्र कर रहे हैं। आपके हर तरही मुशायरे की तरह यह भी बहुत ही कामयाब कहा जाना चाहिए क्योंकी इस बेअदब ज़ुबानी के दौर में भी हमारी युवा पीढ़ी में अंकित और अर्श जैसे बहुत ही संजीदा और बेहतरीन नूर पैदा हो सकते हैं यह सुकून देने वाली बात है। वैसे तो हम यहाँ अर्ज़ ना करते मगर अपने आप को रोक नहीं पा रहे हैं यह कहते हुए के, कल ‘पंकज’ और ‘नीरज’ की जो जुगलबंदी, ब्लाग पर दर्ज हुई है-(भूल जा), वो अपने आप में एक अप्रतिम रचना साबित होगी। आप और नीरज जी को इस ग़ज़ल को हमारा सलाम क़ुबूल फ़रमाइएगा।
युवा तुर्कों से बहुत उम्मीद बंधती है...बहुत खूबसूरत ग़ज़लें कहीं हैं...मेरी दिली मुबारकबाद....
जवाब देंहटाएंहया
गुरुदेव नयी पौध की ताजगी देख कर दिल खुश हो गया, अंकित और अर्श दोनों ने ही कमाल किया है...इस उम्र में ये हाल है तो आगे चल कर क्या होगा...समझन मुश्किल नहीं...शायरी का भविष्य उज्जवल है...बशर्ते शादी के बाद ये लोग नून तेल लकडी के चक्कर में अपनी प्रतिभा खो न दें तो.
जवाब देंहटाएंअंकित और अर्श जी दोनों ने जो आपके दिए मिसरे पर गिरह लगाई है वो लाजवाब है...इनकी जितनी तारीफ करूँ कम है...न सिर्फ दिए मिसरे पर कमाल किया है बल्कि बहुत से बेहद खूबसूरत शेर भी पिरो दिए हैं अपनी ग़ज़ल में...वाह. चन्दन के साथ रहने से भले की हम चन्दन ना बन सकें लेकिन उसकी खुशबू तो अपने में बसा ही सकते हैं...आपके हुनर की खुशबू इन दोनों में भी अब आ रही है.
मेरे और अर्श जी में आपने जो समानताएं देखीं हैं उससे अब मुझे उनसे मिलने की इच्छा बहुत बढ़ गयी है...अंकित तो मेरे पडोसी हैं अभी जयपुर गए हैं उनको लौटने पर इस ग़ज़ल के लिए शानदार पार्टी देने वाला हूँ...
नीरज
गुरूदेव,ये पोस्ट तो सहेज कर रखे जाने योग्य है। अंकित और अर्श जी की गज़लें और आपका विश्लेषण बहर के बारे में, सब कुछ तो लाजवाब है। खासकर दोनों ने सुंदर गिरह बांधी है। और नीरज जी के साथ आपका जो मणिकांचनयोग है उसके बारे में कुछ भी कहूं तो कम होगा। ये अपने आप में एक मिशाल है।
जवाब देंहटाएंआज के सवाल का जवाब-
नमामी शमीशान निर्वाण रूपं- ये है बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम(122 122 122 122) उदाहरण-१. कहां मेरा घर उनके आने के काबिल
बुलाऊं अगर हो बुलाने के काबिल
२.नहीं चाहिये दिल दुखाना किसी का
हिंदी छंदों की दृष्टि से ये भुजंगप्रयात छंद है(चार यगण)
अरे मैं भूल ही गया ये उदाहरण देना-
जवाब देंहटाएं122 122 122 122
ये दौरे मसर्रत ये तेवर तुम्हारे
उभरने से पहले न डूबें सितारे
सफ़ीने वहां डूबकर ही रहे हैं
जहां हैसले नाखुदाओं ने हारे
भंवर से लड़ो तुंद लहरों से उलझो
कहां तक चलोगे किनारे-किनारे
अजब चीज है ये मुहब्बत की बाजी
जो हारे वो जीते जो जीते वो हारे
रविकांत आपने छंद तो पकड़ लिया और बहर भी निकाल ही ली । किन्तु मैंने हिंदी का कोई लोकप्रिय गीत जो बहुत लोकप्रिय गीत हो वो देने को कहा है आपने जो ग़ज़लें दी हैं वो लोकप्रिय नहीं है इसलिये लोग समझ नहीं पायेंगें । कुछ ढ़ढिये न लता मंगेशकर जी और मधुबाला जी का काम्बिनेशन । या याद न आये तो सुनील दत्त जी की फिल्म में लता जी का वो गीत याद करें । क्या कहा फिल्म का नाम ... शायद प्रेमचंद जी की किसी पुस्तक का नाम है ।
जवाब देंहटाएंबशीर जी की तबीयत खराब चल रही है ये जान कर अचानक अच्छा नही लगा। ये गज़ल और खासकर इसका मतला मुझे बेहद पसंद है..शायद जिंदगी का बहुत बड़ा फलसफा कहता है ये।
जवाब देंहटाएंअंकित जी और प्रकाश दोनो ने ही बेहतरीन शेर निकाले है। अंकित जी का तो हर शेर खुद में सवासेर है..! बधाई बधाई
और अर्श अच्छा सीख रहा है। धीरे धीरे मगर स्थिर प्रगति हैं उसमें। और एक बात का ज़िक्र कर दूँ। कि ये जो बात बार बार कही जाती है कि ये बहुत गंभीर है, इसमें मुझे थोड़ा संशय है। हाँ ये हो सकता है कि यदि आपकी भी कोई बड़ी बहन होगी तो आप को भी पता होगा कि ये लड़के माँ और बड़ी बहनो से अधिक खुलते हैं। पिता और अग्रज के सामने अच्छे बच्चे बन जाते हैं। शायद इसी मनोविज्ञान के अंतर्गत मुझ से तो हमेशा ये जिद करता रहता है, बच्चों की तरह आप लोगो के सामने चुप। तो बता दूँ इसके भोले चेहरे पर मत जाइये। मुझ से इस बच्चे की शेतानियाँ :):) आजकल मैं भी लगी हुई हूँ एख सुघड़ बहू ढूँढ़ने में इसके लिये। आशीष..!
शिवतांडव लगभग ५ साल तक मेरी रोज की पूजा का हिस्सा हुआ करता था। कुछ भावनात्मक कारणों से अब नही गाती। मगर जब गाती थी तब भी रविकांत जी की ही तरह जयशंकर प्रसाद जी की कविता याद आती थी। सबसे पहले इसे टी०वी० सीरियल रामायण में सुना था और तभी से पसंद आने लगा था। फिर घर में पंडित जी एक कोई विशेष पूजा करते थे तो उन्होने बताया कि रावण की लय वीर रस में थी और घरों में वो जो करते हैं वो थोड़ी कोमल लय होती है, ये बात अच्छी लगी और इसे मैं रोज अपनी आराधना में गाने लगी।
ये रामायण में उद्धृत नमामीशमीशान निर्वाणरूपं से बी मैं भावनात्मक रूप से ही जुड़ी हूँ और ये तो अभी भी मेरी रोज की पूजा का हिस्सा है। अगर मन से गा दूँ तो अब भी आँसू निकल आते हैं। गुरू और शिष्य के अद्भुत प्रेम का उदाहरण है ये भी।
आज की तरही में प्रैक्टिकल क्लास भी हो गई। इसी बहाने मैने पिछली सारे नोट्स दुहराये। मगर बहर का नाम नही समझ नही आया ये पता है कि ये सालिम बहर है ४ रुक्न होने के कारण मुसमन और फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन इस पर एक फिल्मी कव्वाली है
ये माना मेरी जाँ, मुहब्बत सज़ा है,
मजा इसमें इतना मगर किसलिये है।
इस बार तो कमाल की ग़ज़लें लिखी हैं दोनो युवा तुर्कों ने............. दिल में आशा जैसे कूट कूट कर भारी हुई है ........ आज के युवा पॉज़िटिव सोच के होंगे तो देश का भविष्य भी उन्नत होगा ....... और उमीद की शुरुआत इन ग़ज़लों को पढ़ कर मिल रही है........कुछ न कुछ मैं सीखता हूँ अपनी हर इक हार से....... लाजवाब है......और अर्श जी की तारीफ़ तो हमेशा बहूत से ब्लॉग्स पर सुनता रहता हूँ...... अगली बार देहली जाने पर उनसे मिलना ही पढ़ेगा...... उनके भी सारे शेर लाजवाब बन पढ़े हैं.......... बाकी जो कुछ कसर बाकी रह जाती है वो आप पूरी कर देते हैं............ ये मुशायरा लाजवाब तरीके से आगे बढ़ रहा है.........
जवाब देंहटाएंसुबीर जी आपके बोये बीज अब देखिये किस तरह अपकी फुल्वारी को महका रहे हैं अँकित भी बहुत अच्छा लिखते है और अर्श के बारे मे कंचन जी ने बिलकुल सही कहा है इसकी चुप्पी अपके प्रति सम्मान है इसकी शायरी ही बहुत कुछ ब्यां करती है अब आप भी इसे कहिये कि जो उस पार से आवाज़ देता है उसे सुन ले ैसकी ये गज़ल मैने नहीं पढी थी इस लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद नीरज जी की गज़लें तो हर हाल मे लाजवाब हैं आपकी ये पोस्ट सहेज ली है बहुत बहुत धन्यवाद््लाजवाब हैं
जवाब देंहटाएंसचमुच इन्हें पढ़ यही लगता है की अभी ये ऐसा लिख रहे हैं तो आगे क्या कमाल करेंगे....ईश्वर इनके जोरे कलम को हमेशा बुलंद रखें...लाजवाब लिखा है इन्होने...हर शेर पढ़ मुंह से अपने आप वाह !! निकलता जा रहा था और कई कई बार पढ़ उस रस में डूबे रहने को मन बाध्य कर रहा था...
जवाब देंहटाएंआपलोगों की जुगलबंदी देखी.......कमाल का तालमेल है आप दोनों में...यदि बताया न जाता तो किसी हालत में पता न चलता की यह दो लोगों का संयुक्त प्रयास है...
तरही मुशायरे का स्तर इतना ऊंचा है की क्या कहूँ.....इसे ऐसे ही जारी रखें.
अंकित और अर्श को पढ़वा कर आपने तो आज का दिन बनवा दिया. बेहतरीन गज़ल कही है दोनों ने. बहुत आभार आपका.
जवाब देंहटाएंअरे वाह, मजा आ गया।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आदरणीय गुरु देव सादर प्रणाम,
जवाब देंहटाएंब्यास जी के चले जाने से मन वाकई आहात और ब्यथित है मगर तरही को उनके नाम करके जो समर्पण आपने दिखया है उसे सर माथे पे ....
मेरे हमनाम गुरु भाई का नाम पाखी है ... ये जानकार सुखद अनुभूति हो रही है ,.. बहोत ही प्यारा नाम है ... बहोत ही खुबसूरत...
सर झुकवोगे तो पत्थर देवता हो जायेगा...
जगजीत सिंह जी के मखमली आवाज़ में क्या खूब लग रही है ... वाह शाम की पूरी मजा ले रहा हूँ....
और मासूम से अंकित के क्या कहने क्या खूब शे'र कहे है उसने..
ग़ज़ल का मतला तो बेहद खुबसूरत है और मिसरे पे जो गिरह बाँधी है वो अपने आप में कबीले तारीफ़ है दिल से लाखो बधाईयाँ और दुयाएँ इस मासूम गज़लकार के लिए .....
आप अंकित के साथ मेरे लिए भी थोडी सी चिंता करलो गुरु देव हा हा हा हा ... क्या पता ढाई साल में बहोत देर हो जाये.... हा हा हा
वाकई जो जानकारियाँ आपने दी है वो अपने साथ आत्मसात करने के लिए जरुरी है हम जैसे सिखने वालों के लिए ....
नमामी शमीशान निर्वाण रूपं ..
१२२ , १२२ , १२२, १२२
१. अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो ,
हमें साथ लेलो जहां जा रहे हो..
२. एक और सोंग है बारिश का चांदनी फिल्म का ... अभी एकाएक यद् नहीं आरहा है ...
और गुरु देव आपके अंदाज बुल्लेट पे उफ्फ्फ्फ़ कातिलाना है क्या स्टाइल है और आश्चर्य की और बातें है मगर वो आखिर में इस तरह हो जाती है रूठने के बाद मुझे भी पता चल रहा है ....
जहां तक श्रधेय नीरज की बात है तो उस्ताद गज़लकार है गुरु देव मेरी तुलना उनसे बिलकुल ना की जाये वो कहाँ और मैं कहाँ ... ऐसा पाप ना करे गुरु देव .... वो तो आदरणीय हैं मेरे लिए, अगर मैं एक प्रतिशत भी नीरज जी की तरह ग़ज़ल कह पाऊं तो मेरे जीवन सार्थक जो जायेगा.. ... और ये उपमा के पाकेट संस्करण है नया है मेरे लिए सुनना हा हा हा ..
बहन कंचन ने जो बात कही है कुछ तो ठीक है मगर कुछ... गुरु देव अगर बड़ी बहन कुछ चीज देने में ना कहेगी तो कोई भी बच्चा जिद तो करेगा ही ,... अब उस दिन ही जब आप उनसे मिठाई मांगे उनके हासिल मुशायरा शे'र पे तो मैंने बस इतना ही कहा के मुझे मिठाई तो चाहिए मगर काजू की बर्फी चाहिए मुझे मिठाई में .. उन्होंने आपको तो दी मगर मुझे नहीं दी ... तो इसमें तो गुरु देव कोई भी संकोची प्राणी जिद करेगा ही .... आप खुद उनसे पूछे की उन्होंने आपके सामने मुझे मिठाई कुन नहीं दी.... हा हा हा ...
आप सभी ने मेरी ग़ज़ल को पसंद किया और सराहा उसके लिए दिल से आभार इसी तरह से सभी का प्यार और आर्शीवाद बना रहे ता-उम्र ही उम्मीद और गुजारिश करूँगा....
आप सभी का
अर्श
गुरूजी, उस समय दरअसल याद नहीं आ रहा था तो गाने का उदाहरण ये रहा-
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो जिस बहर पर आपने नीरज के साथ युगलबंदी की है-
२१२२ २१२२ २१२
दिल के अरमां आंसूओं में बह गये
हम वफ़ा करके भी तन्हा रह गये
अब आते है दूसरी बहर पर-
१२२ १२२ १२२ १२२
१.अगर तेरी जलवा नुमाई न होती
खुदा की कसम ये खुदाई न होती
२. वो जब याद आये बहुत याद आये
गमे जिंदगी के अंधेरे में हमने
चरागे मुहब्बत जलाये बुझाये
३. इशारों इशारों में दिल लेने वाले
बता ये हुनर तुमने सीखा कहां से
लता जी के स्वर में एक और-
जवाब देंहटाएंयूं ही दिल ने चाहा थ रोना-रुलाना
तेरी याद तो बन गई इक बहाना
अंकित सफ़र और अर्श भाई दोनों ने जो लिखा है पढ़ कर आनंद आगया.हर मिसरे को पढ़ कर बार बार पढने को जी चाहा है.और अंदाज तो गजब ढा रहा है.
जवाब देंहटाएंबात jisne भी कही ये khoob ही उसने कही.
हो किसी को jeetna तो jeet लेना प्यार से
अंकित भाई क्या khoob कहा है और कितने sarl shbdon में कहा है.
और अर्श भाई apki gajal से मन के taar बज रहे है.
मुझे तो सारे sher pasand है....
पर सबसे achchha तो ये लगा
ishk के dariya को सोचा paar कर loon ddob के
दर गया galib के kahne पर इसी majhdhaar से
gurudev
आपकी kripa से कितनी sundar rachnaaon से roobaroo हो रहे है.
indic transliteration काम नहीं कर रहा है isliye thodi सी roman हिंदी aarahi है.
अंकित और अर्श दोनों ने कमाल के शेर कहे है...अंकित का मतला और "भीग सारे गये..." वाला मुझे बेहतरीन लगा।
जवाब देंहटाएंऔर अर्श का तो हर शेर उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ मेरा कातिल वाला, ग़ालिब वाला, बाम वाला- सब के सब दिलक्श। अहा!
बुलेट वाली तस्वीर तो हाय रेsssss....हम भे बुलेट फैन हैं गुरूदेव..
शिव तांदव स्त्रोत एक बचपन से रोज पाठ करता आ रहा हूँ...अब तो कंठाग्र है। आप यकीन नहीं करेंगे, मेरी बहन की बेटी जो महज सात साल की मेरे संग सुर में सुर मिला कर इस जटाटवीगलजल को गाती है।
रवि भाई ने नमामी शमीशान ने कुछ अच्छे उदाहरण निकाले। एक-दो जो मुझे याद आ रहे हैं
१. ये दिल और उनकी निगाहों के साये
२. मेरा प्यार वो है कि मरकर भी तुझको जुदा अपनी बाँहों से होने न देगा
३. ये महलों ये तख्तों ये ताजों की दुनिया
ये इसां के दुश्मन समाजों की दुनिया...
DEKH AUR PADHKAR ACHCHHA LAGTA HAI
जवाब देंहटाएंKI NAYE-NAYE GAZALKAAR SAAMNE AA
RAHE HAIN AUR ACHCHHEE GAZALEN KAH
RAHE HAIN.JANAAB ANKIT AUR JANAAB
ARSH KEE GAZALEN KHOOB HAIN.UNMEIN
" FRESHNESS " HAI.
EK SALAAH DENAA CHAHUNGAA.BURA
NAHIN MAANEN AAP.ZARAA BHASHA PAR
BHEE DHYAAN DEN.GAZAL SAAF-SUTHREE
BHASHA KEE BHEE MAANG KARTEE HAI.
MISAAL KE TAUR PAR JANAAB ANKIT KE
DO MISRE HAIN---
BAS YAHEE HOON CHAAHTA
MAIN HIND KEE SARKAAR SE
----------
CHAHTAA PAANAA HAI SAB KUCHH
TOO BADEE RAFTAAR SE
AGAR YE DONO MISRE YUN KAHE
JAATE TO UNMEIN AUR NIKHAAR AATAA--
BAS YEHEE MAIN CHAAHTA HOON
HIND KEE SARKAAR SE
--------------
CHAAHTA HAI PAANAA SAB KUCHH
TOO BADEE RAFTAAR SE
MAIN SHREE SUBEER JEE KO BADHAAEE DETA HOON KI VE NAYE-NAYE
GAZALKAARON KO APNE BLOG PAR APNA-
APNA JOHAR DIKHAANE KAA SUNEHRA
AVSAR DETE HAIN.KHOOB,BAHUT KHOOB.
MAIN HIND KEE SARKAR SE
------------
CHAAHTA PAANAA HAI SAB KUCHH
TOO BADEE RAFTAAR SE
AGAR
अंकित, प्रकाश, सुन्दर ग़ज़लें--
जवाब देंहटाएंअंकित --''एक नई उम्मीद ले के और ''भीग सारे ही गए बहुत खूब.
प्रकाश --''जिंदगी भर पला पोसा और ''वो जवानी भूल बैठा बहुत भाये.
दोनों रचनाएँ अपने -आप में उत्तम हैं पर कुछ शेर भीतर कहीं कुछ हलचल मचा जाते हैं.
दोनों को बधाई!
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंपोस्ट कल ही पढ़ ली ठ कमेन्ट आज कर रहा हूँ
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा..... इस गजल को सुना कर आपने मुझ पर अहसान किया ये मेरी आल टाइम फेवरेट है
और तो कई उदहरण दिए जा चुके हैं मगर आपने और नीरज जी ने जो जुगलबंदी की है उस बहर का उदाहरण अब तक शायद किसी ने नहीं दिया है
२१२२, २१२२, २१२
इस बहर की एक गजल जो मुझे बहुत पसंद है
दिल के अरमाँ, आसुओ में, बह गए
हम वफ़ा कर, के भी तनहा, रह गए
शायद उनका, आख़री हो, ये सितम
हर सितम ये, सोच कर हम, सह गए
शिव तांडव और नमामी शमीशान के विषय में कोई जानकारी नहीं है, न मैं मंदिर जाता हूँ न ही पूजा पाठ से कोई लगाव है (आप मुझे थोडा बहुत नास्तिक भी कह सकते है)
बुलेट तो शानदार लोगों की शानदार सवारी है आज भी जिधर से गुजर जाये लोग पलट कर देखते है
वीनस केसरी
@अर्श
जवाब देंहटाएंआपकी इस गजल के हर शेर ने एक अलग अहसाह को जन्म दिया
ज़िंदगी भर पाला पोसा जिसको इतने प्यार से
कर दिया बूढा बता के बेदखल घर बार से ॥
(इस शेर ने एक बूढी औरत की याद दिलाई जिसके तीन बेटों ने उसको घर से निकाल दिया था )
रतजगों का सुर्ख आंखों का सबब बतलायें क्या
रात भर आवाज देता है कोई उस पार से ॥
(जब मैहर माँ दर्शन करने जाता हूँ तो रात भर जाग कर आँखे सुर्ख हो जाती है और माँ पहाडी के उस पार से बुलाती रहती हैं वो सफ़र याद आया इस शेर से)
इश्क के दरिया को सोचा पार कर लूँ डूब के
डर गया ग़ालिब के कहने भर इसी मझधार से ॥
(कितनी बार लड़कियों से दोस्ती हुई और हर बार मैं इस दोस्ती को आगे बढ़ने से डर कर भगोड़ा बना :) इस शेर ने अहसास करवाया )
मेरी धड़कन, मेरी साँसे, मेरी ये तश्नालाबी
अब तलक भी दूर है बस एक निगाहे यार से ॥
(मेरा अब तक का पूरा जीवन ही इस शेर का तलबगार है )
वो मेरे कहने पे देखो आगया था बाम पर
है ख़बर उसको भी मैं जिन्दा हूँ दीदार से ॥
{काश मेरे साथ भी ऐसा होता :)}
वो जवानी भूल बैठा चौकसी सीमा पे कर
और हम सोते रहे निर्भय किसी भी वार से ॥
(इस शेर को पढ़ते ही तुंरत गौतम साहब की याद आई )
चीखती है अस्मतें और चुप है सारी गोलियां
जनपदों में दर्ज शिकवे रहते है बेकार से ॥
(सरकार का निकम्मापन और हो रहे अत्याचार की सजग दास्ताँ )
अर्श कातिल कर रहा है मुन्सफी ख़ुद कत्ल का
फैसला पढ़ लेना ये तुम भी किसी अखबार से ॥
(देश दुनिया में इसके सिवा क्या हो रहा है )
वीनस केसरी
@अंकित भाई
जवाब देंहटाएंआपके मतले में मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया है वास्तव में बात यह है की मैंने जो गजल भेजी है मुशायरे के लिए, वो बहुत निगेटिव है मैं वैसा लिखता नहीं मगर जाने किस रौ में लिख कर भेजी है आज जब आपकी गजल पढ़ रहा हूँ तो अपने ऊपर ग्लानि हो रही है
या तो वादा न करो.......
इस शेर की तो जितनी दाद दी जाये कम है ..सुभानाल्लाह
वीनस केसरी
नीरज जी के कथन से साहमात हूँ.
जवाब देंहटाएंअंकित और अर्श दोनों ने ही कमाल किया है...इस उम्र में ये हाल है तो आगे चल कर क्या होगा...समझन मुश्किल नहीं...शायरी का भविष्य उज्जवल है...बशर्ते शादी के बाद ये लोग नून तेल लकडी के चक्कर में अपनी प्रतिभा खो न दें तो.
बंद कर दें वार करना अब ज़ुबाँ की धार से
दोस्ती की आओ सीखें हम अदा गुल-ख़ार से
अपनी मर्ज़ी से कहाँ कोई है टूटा आज तक
होता है लाचार आदम बेबसी की मार से
बोझ उठाकर झुक गया है अब वो बूढ़ा पेड़ भी
रखते हैं उम्मीद कितनी बूढ़े़ उस आधार से
नज़रे-आतिश बस्तियों में कोहरा है छा गया
सॉफ कुछ शायद दिखेगा धुंध के उस पार से
मन की भाषा बोलके-सुनके बिताई उम्र यूँ
याद अमल का पाठ कर लें आओ गीता-सार से
क्या है लेना क्या है देना दर्द से किसको भला
कर लिया ग़म से निबह भी दर्द के इसरार से
बेख़बर खुद से सभी हैं, कौन किसकी ले खबर
सुर्ख़ियों की शोखियां झाँकें हैं हर अख़बार से
देवी नागरानी
प्रणाम गुरु जी,
जवाब देंहटाएंगुरु जी अब तो अर्श जी ने भी शादी की अर्जी दे दी है.......चलिए अब आपका ध्यान मुझसे थोडा तो हटेगा.
अर्श जी की ग़ज़ल के क्या कहने, शुरुआत से ही यानी मतले से समां बाँध दिया है. और शेर तो लाजवाब बन पड़े हैं. मेरी तरफ से लाखों बधाइयाँ अर्श जी को.
आपके द्वारा की गयी हौसलाफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया, ये जो लफ्जों को पिरो पाया हूँ ये आपके दिए हुए मिसरे का जादू है, जिससे शेर खुदबखुद बनते चले गए.
प्राण जी को बातों को मैंने गाँठ बांध के रख लिया है और आगे से पूरी कोशिश करूँगा की कहन में गलती ना के बराबर हो.
सभी की शुभकामनाओं और आर्शीवाद के लिए धन्यवाद.
बहुतही देरीसे लिख रहा हूं, लेकिन इतनी सारी टिप्पणियां पढके रहा नही गया...
जवाब देंहटाएंमैं मराठी हूं और बहरोंके बारेमें पढनेको बहुत मजा आ रहा है ।
ऐसा लगता है कि बहर की संकल्पना संस्कृत-वृत्त के समकक्ष है ।
यह 'नमामी शमीशान...' तो बहुतही परिचित 'भुजंगप्रयात-वृत्त' है !
शंकराचार्यजी की एक रचना जो 'पांडुरंगाष्टक' के नामसे मुझे याद आती है ।
-- "परब्रह्मलिंगं भजे पांडुरंगं ।"
और एक गजल भी याद आई -
तेरी बेरुखी और तेरी मेहेरबानी
येही मौत है और येही जिंदगानी
..
(कवि का नाम पता नही । :( )
और जो सबसे पहले याद आया वो कुछ ऐसा था-
बळें आगळा राम कोदंडधारी ।
महाकाळ विक्राळ तोही थरारी ॥
पुढें मानवा किंकरा कोण केवा ।
प्रभाते मनीं राम चिंतीत जावा ॥
--
शार्दूल व्यास
Being Very Formal
जवाब देंहटाएंह्दय की अंतरतम गहराइयों से उद्गार व्यक्त कर रहां हूं कि
करेजा जूडा गईल...........
और हां एक चीज और कि जैसा कहा गया है कि सूद मूल से जियादा प्यारा होता है उसी तर्जूमे पर जिस इन्टेंसिटी के शानदार कमेंट गिरे है वो बेहद बेशकीमती है...............किसिम-किसिम के...............अच्छा लगा यहां टहलकर...........साधुवाद
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