शनिवार, 18 जुलाई 2009

रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से - स्‍व. ओम व्‍यास स्‍मृति तरही मुशायरे में आज सुनिये वीनस केसरी और रविकांत पांडे को ।

( सूचना यदि ब्‍लाग इंटरनेट एक्‍सप्‍लोरर में न खुले तो मोजिला फायर फाक्‍स या गूगल क्रोम में खोलें )

कभी कभी बहुत मन व्‍यथित होता है और ये व्‍यथा होती है मोबाइल में फीड किये हुए नंबरों के कारण । दो साल पहले अग्रज कवि श्री मोहन राय का असमायिक निधन हो गया । उनका नंबर वो नंबर था जिससे अमूमन दिन में एक या दो बार फोन आता ही था । उनके जाने के बाद जब एक दिन जब मोबाइल की फोन बुक तलाश कर रहा था तो उनका नंबर सामने आया । बहुत कोशिश की किन्‍तु वो नंबर डिलिट नहीं कर पाया । नंबर जिससे अब कभी फोन नहीं आयेगा । ऐसा ही इन दिनों एक नंबर के साथ हो रहा है । वो नंबर है स्‍व. ओम दादा का नंबर । उनकी व्‍यस्‍तता के चलते उनसे काफी काफी दिनों में बात होती थी लेकिन जब भी होती थी तो लम्‍बी होती थी । आवश्‍यक सूचनाएं वे मुझे एसएमएस करके दे दिया करते थे । अब वो नंबर भी ऐसा हो गया है जिससे कभी फोन नहीं आयेगा । फिर भी उस नंबर को हटाने की हिम्‍मत न आज हो रही है न कल ही हो पायेगी । इंसान कितना कुछ छोड़ जाता है अपने पीछे ।

मुशायरा आज जब ये पोस्‍ट लिख रहा हूं तो आंखें उनींदी हैं । रात तीन बजे मुशायरे से घर लौटा हूं । और सुबह अपनी आदत के अनुसार पांच बजे उठ गया । सो नींद में हूं अभी भी । ऑफिस सात बजे पहुंचना होता है सो चाहे रात को चार बजे तक जागो सुब्‍ह तो पांच बजे उठना ही है । अंजुमन सूफियाना उर्दू अदब की ओर से ये कार्यक्रम आयोजित होता है । बहुत मुहब्‍बतों वाले लोग हैं । विशेषकर हिंदी और हिंदू कवियों तथा शायरों को तो पलकों पर बिठा कर रखते हैं । पहली बार एक ऐसी जगह मुहब्‍बतों की ग़ज़ल 'ये घटाएं तेरी जुल्‍फ से हैं उठीं' पढ़ी जहां श्रोताओं में मेरे हार्डवेयर के आठ दस स्‍टूडेंट्स भी थे । क्‍लास में सख्‍त और अनुशासन प्रिय अपने टीचर को मुहब्‍बतों की ग़ज़ल तरन्‍नुम में पढ़ते देख क्‍या सोचा होगा ये तो वे ही जानें । मुशायरा कामयाब रहा । हमेशा की तरह दूसरा दौर पूरी तरह से विशुद्ध शायरी का रहा । श्री रमेश हठीला मंच लूट कर अपने घर ले गये । जो मैंने कहा कि पूरी तरह से मुस्लिम इलाके में होने वाले इस आयोजन में जिस प्रकार हठीला जी को, मुझे हाथों हाथ लिया जाता है वो अभिभूत कर देता है । कार्यक्रम के संचालक मेरे मित्र डा मोहम्‍मद आजम ने पहले तो हमारे इस तरही मुशायरे का जिक्र किया और फिर इसी मिसरे पर लिखी अपनी ग़ज़ल प्रस्‍तुत की जिसे अगले अंक में आप देख पायेंगें । मेरे जिस शेर ने सबसे जियादह दाद पाई वो था ' अजब जादू है अपने मुल्‍क के थानों में यारों, यहां गूंगा भी आ जाये तो वो भी बोलता है'  मजे की बात ये है कि कार्यक्रम स्‍थल पर तैनात पुलिसकर्मियों ने तीन बार ये शेर सुना मुकर्रर कर करके ।  और इसी ग़ज़ल के इस शेर ने ' भिगाती है मुझे शब भर तेरी यादों की बारिश, न जाने कौन माज़ी के दरीचे खोलता है' को भी खूब पसंद किया गया । 

स्‍व. ओम व्‍यास स्‍मृति तरही मुशायरा :  मुशायरे का पिछला अंक जबरदस्‍त गया है और आज अगले अंक पर जाने से पहले एक नज्‍म सुनें इसी बहर पर । ये नज्‍म टी वी सीरियल कहकशां में श्री जगजीत सिंह साहब ने गाई थी । श्री जलाल आगा सा‍हब ने वो सीरियल बनाया था । अगर आपके पास कहकशां के दोनों कैसेट नहीं हैं तो आपके खजाने में दुर्लभ हीरे नहीं है । सुनिये श्री जोश मलीहाबादी साहब की ये नज्‍म जिसको जब भी सुनता हूं रोता हूं खूब रोता हूं । नज्‍म के बारे में और जानना हो या नज्‍म को पढ़ना हो  तो यहां जाएं ।

चलिये सुनिये अब ये नज्‍म

 

नज्‍म को यहां से भी सुन सकते हैं

http://www.archive.org/details/Alvida_616

वीनस केसरी :  वीनस इलाहाबाद के हैं । इलाहाबाद जो कभी भारत की राजधानी तो नहीं था लेकिन उससे कम भी नहीं था । साहित्यिक रूप से भी बहुत समृद्ध था कभी । वीनस उसी इलाहाबाद के हैं और वहीं रह कर अपनी एक दुकान चलाते हैं पुस्‍तकों की । बहुत अच्‍छी ग़ज़ले लिखते हैं । और कभी कभी अपने ब्‍लाग पर कोई ऐसी पोस्‍ट लगा देते हैं जो किसी को समझ में नहीं आती ।

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क्या मिला है क्या मिलेगा अश्क के व्यापार से
हर घडी जी लो मुहब्बत से,खुशी से,प्यार से

सरहदों से बाँट कर जब ख्वाहिशों के दिन ढले
रात भर आवाज देता है कोई उस पार से

प्यार इक टुकडा, खुशी की कतरनें ले आना तुम
मोल दे कर गर खरीदा जा सके बाज़ार से

आपकी सोहबत ने हमको क्या हसीँ तोहफे दिए
ख्वाहिशें लाचार सी औ ख्वाब कुछ बेजार से

जीतने के सब तरीके सीख कर मैं जब लड़ा
जिन्दगी ने फिर सबक सिखला दिया है हार से

हम किताबे जिन्दगी के उस वरक को क्या पढ़े
जो शुरू हो प्यार से औ ख़त्म हो तकरार से

इक सफ़र पूरा किया है उम्र छोटी है तो क्या
रात काटी मर्सियों से दिन विसाले खार से

वाह वाह वाह क्‍या बात है । अच्‍छे और उस्‍तादाना अंदाज़ के शेर निकाले हैं वीनस बधाई हो । विशेषकर ये शेर तो बहुत बढि़या है जीतने के सब तरीके सीख कर मैं जब लड़ा, जिन्दगी ने फिर सबक सिखला दिया है हार से । इस बार का तरही मुशायरा रंग में है ।

रविकांत पांडेय : रविकांत के बारे में एक महत्‍वपूर्ण बात ये है कि ये भूत देख चुके हैं । खुद तो डरे सो डरे कहानी सुना कर हमें अब भी डरा रहे हैं । आप भी चाहें तो भूत की कहानी यहां ताऊ के ब्‍लाग पर देख सकते हैं । अभी ताजे ताजे शादी शुदा हुए हैं । और शादी तथा शोध एक साथ ही कर रहे हैं । ग़ज़लें अच्‍छी लिखते हैं और इससे पता चलता है कि ग़ज़ल की प्रेरणा ( बहूरानी) बहुत अच्‍छी हैं । सुनिये ग़ज़ल ।

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मुग्ध होना बाद में उसकी मधुर झंकार से
दर्द पहले पूछना वीणा के घायल तार से

देखकर हैरान हूं मैं इस नगर की रीतियां
पांव छू आशीष लेता चोर थानेदार से

उफ़ किये बिन सह गये जो पत्थरों की चोट को
सूरमा वो चित हुये नज़रों के हल्के वार से

आसमां में तय नहीं होते हैं रिश्ते आजकल
थोक में इनको खरीदो चौक से,
बाज़ार से

मैं अनाहत नाद सा सुनता हूं उसको मौन हो
रात भर आवाज देता है कोई उस पार से

जो सहारा तू न दे तो दुख के इस तूफ़ान में
कौन उबारे जिंदगी की नाव को मंझधार से

भक्त को रोका गया जब जन्म के आधार पर
लौटता था देवता भी मंदिरों के द्वार से

वाह वाह क्‍या शेर निकाले हैं । मैं अनाहत नाद सा सुनता हूं उसको मौन हो, रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से । ये सचमुच ही मौन रहकर सुना जाने वाला शेर है । पूरी ग़ज़ल के कई शेर वाह वाह करना मांग रहे हैं लेकिन वो करना आपकी जिम्‍मेदारी है । तीसरे नंबर का उफ़ किये बिन वाला शेर रवि ने बहुरानी को समर्पित किया है ।

संयुक्‍त अक्षर :  रविकांत के ब्‍लाग पर लगी पिछली ग़ज़ल को लेकर वीनस ने कुछ शंका व्‍यक्‍त की थी कि

रवि भाई मक्ता पढने में कुछ अटक रहा है ।

मैंने रवि को कहा था कि शंका का समाधान किया जाये । मकता कुछ यूं है , दर्द से बेहाल जनता द्वार पर कब से खड़ी, किन्‍तु फुरसत है कहां राजा को नाच और गान से

इस पर रवि ने अपना जो उत्‍तर भेजा है वो ये है ।  गुरू जी,  मेरे ख्याल से इसे ऐसे समझाया जा सकता है।
किन्‍तु फुरसत(२१२२) है कहां रा(२१२२) जा को नाच और(२१२२) गान से (२१२)
अब यहां नाच+और =नाचौर हो रहा है जिसका वज्न २२ है। गज़लों में और का वज्न २१ भी होता है ता २ भी मान्य है। यह जो दो शब्दों को जोड़ने की प्रक्रिया है इसे गालिब का निम्न उदाहरण और स्पष्ट करता है-
रमल मुसममन मशकूल 1121 2122 1121 2122  ये न थी हमारी क़िसमत कि विसाले यार होता
अगर और जीते रहते यही इनतिज़ार होता (इसमें अगर+और = अगरौर हुआ है)
दूसरा उदाहरण  रमल मुसममन मख़बून महज़ूफ़ 2122 1122 1122 22 बसकि दुशवार है हर काम का आसां होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इनसां होना, वाए दीवानगी-ए शौक़ कि हर दम मुझ को
आप जाना उधर और आप ही हैरां होना (इस शेर में उधर+और+आप = उधरौराप हुआ है)

अच्‍छा उत्‍तर है रवि, बस ये संशोधन कि वो संयुक्‍त शब्‍द नाच तथा उर ( और का लघु रूप ) का संयुक्‍त है जिसका उच्‍चारण है नाचुर 22, नाचौर में तो 221 हो जायेगा । उदाहरण बहुत अच्‍छे दिये हैं रवि ।

 

14 टिप्‍पणियां:

  1. गुरु देव को सादर प्रणाम,
    उनीदी आँखें कितनी बारीक बातें लिखती है ये पोस्ट पढ़ के पता चल रहा है गुरु देव को शंका किसी भी सतह से नहीं ....

    वाकई गुरुदेव कुछ न. ऐसे होते है जिसे आप चाह के भी नहीं डेलीट कर सकते है ... क्युनके आपकी उंगलिया ऐसा कर ही नहीं सकती है ....
    कुछ एक न . मेरे पास भी है गुरु देव इसलिए इस दर्द को मैं बखूबी समझ सकता हूँ ...
    एक शे'र है के ....
    चाहे जीतनी भी तरास दूँ इन उन्गलिओं को ...
    ये आदतन उनका नाम लिखना नहीं छोडेंगी...

    दोनों गुरु भाईयो ने क्या खूब ग़ज़ल कही है ..मुशायरा अपनी जवानी के तरफ है ...खूब उचाईयों में जा रही है आगे के अंकों का इंतज़ार रहेगा ...
    वीनस के बारे में यही कहूँगा के जिस मिसरे से उन्होंने गिरह लगाई है ...उसे पढ़के तो ऐसा ही लगा है के कोई उस्ताद शाईर ही ऐसा कर सकता है और आपने भी सही कहा है गुरु देव के आज का उनका अंदाज उस्तादाना है ...
    क्या मिला है क्या मिलेगा .... ये शे'र तो प्यार और मोहबात की जड़ी लगा रहा है ....
    और इस शे'र पे ज़रा गौर करी जाए की ,.. प्यार एक टुकडा ख़ुशी की कतरने .... उफ्फ्फ्फ्फ़ कहर बरपा रहा है, ऐसा लग रहा है के ये शे'र वीनस ने मेरे लिए लिख दी हो बहोत मजा आये इस शे'र पे .... हर शे'र पे दिल झूम रहा है .... बहोत बहोत बधाई गुरु भाई को ...
    और जहां तक हमारे शोधक भाई का सवाल है तो क्या कहने हर चीज में ये शोध करते है और यहाँ भी उन्होंने अपने एक शोध को जन्म देकर नायाब ग़ज़ल को ढाला है ....
    शोध से जीस बारीक बात को उन्होंने लिखी है मतले में दर्द पहले पूछना विना के घायल तार से .... क्या बारीक बात कही है इन्होने ....और बस इसके निचे का दूसरा शे'र सच कहा है इन्होने आजकल यही रित है जमाने में .... और आदरणीय भाभी जी को जो शे'र समर्पित किया है उसके क्या कहने ... कातिलाना है हुजूर रवि जी... मगर रिश्ते तो तय आसमान में ही होते है मैं तो यही कहूँगा ... क्युनके आप शिमला से ले आयी रिश्ता और वो तो स्वर्ग है धरती पे मगर मेरा तो यही मानना है के रिश्ते आसमान में ही तय होते है क्यूँ आपको मुझे देख नहीं लगता... हा हा हा ये तो रही मजाक की बात ...और जिस काबलियत से आपने गिरह बाँधी है उसके लिए करोडो दिल से वाह वाह और तालियाँ....
    आपने सच्ची में भूत देखी है मैंने तौ जी के पास से कल गया था आपको पढ़ने ... अगर एक शोधकर्ता ऐसा कह रहा है तो फिर माननी पड़ेगी बात को ... आप दोनों गुरु भाईयौं को बहोत बहोत बधाई ....और गुरु जी को सादर प्रणाम मुशयारा अपने शबाब पे है ....


    अर्श

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  2. इस बार का तरही मुशायरा तो वाकई धूम मचा रहा है...एक-से-एक शेर निकल कर आ रहे हैं\ पहले दिग्म्बर और प्रकाश जी ने फिर अर्श और अंकित ने और अब वीनस और रवि ने....आय-हाय...
    गुरूदेव मेरी ग़ज़ल मत लगाइये इस मुशायरे में...हमें तो शर्म सी आ रही है इन उस्तादी ग़ज़लों के समक्ष...
    वीनस के गिरह ने मन मोह लिया है। और जीतने के सब तरीके कहने वाले शेर का अंदाज तो यकीनन किसी उस्ताद का है। ..औए आखिरी शेर अलग से खड़ा होकर दाद माँग रहा है।
    @वीनस, तुम्हें दिल से बधाई एक शानदार बेमिसाल ग़ज़ल के लिये!
    रवि से अभी कुछ देर पहले ही बात हो रही थी मोबाइल...पर, जिनती अच्छी रचनायें होती है इनकी उतने ही विनम्र और मृदुल स्वभाव के मालिक।
    इस बार के गिरह तो एक-पे-एक आ रहे हैं। रवि का गिरह भी बेमिसाल है। और नवेली दुल्हन को समर्पित शेर के तो क्या कहने...
    दूसरी तरफ़ कमाल का काफ़िया थानेदार के उपयोग ने अचंभित किया...
    @रवि, लाजवाब है। यूं ही लिखते रहो, हमें जलाते रहो!!!!

    ..और गुरूदेव आपके समर्पण के बारे में क्या कहूँ! डाक्टर आजम साब की तरही का इंतजार रहेगा।

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  3. गुरुदेव
    आपने आज फिर स्व ओमजी के बारें में ऐसा लिख दिया कि आँखें भीगने को आई...मेरे मोबाइल में भी चंद नंबर ऐसे है कि डीलिट नहीं कर पाया हूँ.और जब जोश मलीहाबादी की गजल सुन कर आँखों से पानी बह निकला तो इसको कमजोरी तो नहीं कहेंगे?

    वीनस भाई
    आपकी गजल की खूबसूरती को तो अर्श भाई ने और गुरुदेव ने पहले से पूरे नंबर दे दिए है
    जीतने के सब तरीके सीख के जब मैं लड़ा
    जिन्दगी ने फिर सबक सिखला दिया है हार से
    बहुत प्रेरणादायक लगा...!
    और गुरुदेव मुझे लगता है आपसे सीखना तो दूर की बात है पहले तो मुझे आपके शिष्यों से सीखना है...वीनस भाई ने वाकई जो गिरह लगाईं है वह तो एक उस्ताद शाईर ही लगा सकता है..

    और रवि भाई,

    मैं अनाहत नाद सा सुनता हूँ उसको मौन हो
    रात भर आवाज देता है कोई उस पार से

    इस शेर पर हजारों दाद..

    गुरदेव
    रवि भाई...के मकते के बहाने संयुक्ताक्षरों के बारे में जानकारी पाकर बहुत अच्छा लगा ..
    संयुक्ताक्षरों के वज्न से मैं तो चकरा जाता हूँ.पता ही नहीं लगता कि इन्हें क्या वज्न देना चाहिए..
    पर आज कुछ कोन्सेप्ट क्लियर हुए...
    आभार....

    आगे के शायरों का इंतजार है..

    प्रकाश पाखी

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  4. ..और गुरूदेव, हो सके तो इस मुशायरे की रिकार्डिंग लगाइये ना। हम आपकी ग़ज़ल सुनना चाहते हैं। न जाने कौन माज़ी एक दरीचे खोलता है...अहा!

    और एक जमाने से "कहकशां" के दोनो वौल्युम पर अपनी भी मिल्कियत है गुरूदेव। सोचता हूँ, उन्हें सीडी में कैसे कन्वर्ट कराऊँ!

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  5. हमें एक और मौका मिला जवां शायरों के कलाम पर तालियाँ बजाने का...इस के लिए गुरुदेव आपका शुक्रिया...वीनस और रवि दोनों ने बेहतरीन ग़ज़ल कही है...उम्र का सोच की परिपक्वता से कोई लेना देना नहीं होता...छोटी उम्र में समझदारी से बात करने का हुनर हर किसी को मयस्सर नहीं होता...ये हुनर मैंने इन तमाम युवा शायरों में देखा है...यूँ मैंने बुजुर्गों को बेवकूफी की बातें करते देखा है...
    वीनस जी की पूरी ग़ज़ल दमदार है , उनका ये शेर मुझे बहुत पसंद आया:

    सरहदों से बाँट कर जब ख्वाईशों के दिन ढले
    रात भर आवाज देता है कोई उस पार से

    रवि जी का मतला सुभान अल्लाह है...और उनका ये शेर बहुत गज़ब का है:

    देख कर हैरान हूँ मैं इस नगर की रीतियाँ
    पाँव छू आशीष लेता चोर थानेदार से

    इश्वर इनदोनों में लिखने का येही ज़ज्बा हमेशा कायम रक्खे ये ही कामना करता हूँ...

    आप रात तीन बजे मुशायरे से लौट कर भी पोस्ट लिख रहे हैं इस के लिए क्या कहूँ...???काश ऐसा मैं भी कभी कर पाऊं. मुझे आप उन मुश्यरों की सी.डी. भेजिए न ताकि हम भी लुत्फ़ ले सकें...आपने जो शेर सुनाये उनके लिए लगातार तालियाँ बजा रहा हूँ.....

    नीरज

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  6. वीनस भाई और रवि भाई की उम्दा गज़लोँ को पढवाने का शुक्रिया !
    आपका मुशायरा सफल रहा होगा
    और काम के प्रति
    लगन, कितनी गहरी है
    ये आपकी पोस्ट से पता चल रहा है पँकज भाई ~~
    और जो गीत लगाये हैँ
    उन्हेँ अब सुनने जा रही हूँ ...
    स स्नेह, सादर,
    - लावण्या

    जवाब देंहटाएं
  7. वीनस और रविकांत--दोनों की ग़ज़लें बहुत पसंद आई.आप दोनों के कुछ शे'र याद रहेंगे--
    वीनस--
    जितने के सब तरीके सीख कर मैं जब लड़ा
    जिंदगी ने फिर सबक सिखला दिया है हार से
    सरहदों से बाँट कर ....
    और प्यार का एक टुकड़ा....
    बहुत खूब..
    रविकांत--
    मैं अनाहत नाद सा सुनता हूँ उस मौन को
    रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से
    जो सहारा तू न दे ....
    और भक्त को रोका गया...
    बहुत भाए..
    और अच्छा लिखते रहें आप दोनों --शुभकामनाएँ!

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  8. प्रणाम गुरुदेव
    इस मुशायरे के बारे में क्या कहू ............. लाजवाब एक से बढ़ के एक नयी नयी सोच की शेर पढने को मिल रहे हैं और छोटी छोटी इंटर ब्लोगेर बातें रवि जी और वीनस जी की मजा दे रहीं हैं............ दोनों ही कमाल का लिखते हैं............. युवा वर्ग में भी ग़ज़ल के प्रति इतना समर्पण है ये देख कर मन प्रसन्न हो जाता है...............

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  9. गुरूजी,
    प्रणाम!जैसे-जैसे इस बार का मुशायरा आगे बढ़ रहा है और जियादह आनंद आ रहा है। साथ ही अपने अनाड़ीपन का बोध भी हो रहा है। कितना अच्छा लिखा है सबने। वीनस ने बहुत सुंदर गिरह बांधी है और जीतने के सब तरीके.....वाला शेर भी दमदार है।...गुरूदेव, इस मुशायरे की थोड़ी विस्तृत रिपोर्ट दीजिये ना। तरन्नुम में गाई आपकी गज़ल सुनने का बड़ा मन हो रहा है।

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  10. मैं अनाहत नाद सा सुनता हूँ उके मौन को
    रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से
    ...
    भक्त को रोका गया जब जन्म के आधार पर
    लौटता था देवता भी मंदिरों के द्वार से

    दोनों शे'र पसंद आये ..
    तरही पर पढ़ा गया अब तक का मेरा सबसे पसंदीदा शेर !

    God bless
    RC

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  11. गौतम भाई की तरह हम सभी सुनना चाहेंगे उस मुशायरे में गाई आपकी गज़ल की रिकॉर्डिंग ...! वीनस जी और रविकांत जी दोनो ने ही क्या शेर दिये हैं मुशायरे को वीनस जी के तीसरा छठा और आखिरी शेर के क्या कहने और रविकांत जी की गज़लो में बेहतर शेर चुनना कम से कम मेरे वश की तो बात नही है....!

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  12. गुरु जी प्रणाम
    {और कभी कभी अपने ब्लॉग पर कोई ऐसी पोस्ट लगा देते हैं जो किसी को समझ में नहीं आती :)}

    आपने हमेशा की तरह बिलकुल सही कहा
    आपने जब ये लिखा और मैंने इसका कारण जानना चाह तो पता चला है की जब जब मैंने लेख लिखने की या कोई विचार प्रकट करने की कोशिश की है ये गडबडी हुई है :)
    इसलिए कोशिश है की आगे से लेख कम से कम लिखूं

    पाठको को गजल पसंद आई इसके लिए हार्दिक धन्यवाद
    अर्श, गौतम जी, नीरज जी, पाखी, सुधा जी रवि भाई और कंचन जी को विशेष धन्यवाद की आपने मुझे प्रोत्साहित किया

    रवि भाई के ब्लॉग पर जो बात मैंने कही थी, उसमे मुझे भी यही लगा था की बात बहर में रह कर कही गई है फिर भी पढने में कुछ अटकाव आ रहा था इस लिए मैंने जिक्र किया था
    मेरा और कोई आशय नहीं था
    फिर भी आपने इतनी खूबसूरती से समझाया इसके लिए हार्दिक धन्यवाद

    आपका वीनस केसरी

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  13. वाह-वाह मज़ा आ गया, वीनस जी और रविकांत जी दोनों को पहले बधाइयाँ.
    वीनस जी का शेर "प्यार एक टुकडा.........." और "आपकी सोहबत....." और "जीतने के सब.." बेहतरीन बन पड़े हैं. वीनस जी आगे इससे भी बेहतर लिखे मेरी शुभकामनायें सदेव आपके साथ हैं.
    रविकांत जी का शेर "मैं अनाहत......" शेर तो लाजवाब है साथ ही अन्य शेर भी बेजोड़ हैं.

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