शनिवार, 11 जुलाई 2009

रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से, ये पूरा तरही मुशायरा अब समर्पित है अग्रज कवि, मंच पर शालीन और निष्‍छल हास्‍य के हामी श्री ओम व्‍यास ओम को ।

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ओम जी को जाना था सो वो चले गये बावजूद हम सब की दुआओं और शुभकामनाओं के । कवि श्री संदीप शर्मा ने जैसा मुझे बताया था उस हिसाब से मन में कहीं न कहीं ये डर हमेशा ही लगा रहा पिछले एक माह में कि ओम जी हंसाते हंसाते रुला न जायें । और हुआ भी वही । बहुत सारी यादें हैं, बहुत सारी स्‍मृतियां हैं । यादें जो अच्‍छी होती हैं तो भी रुलाती हैं और बुरी होती हैं तो भी । कहीं किसी ब्‍लाग पर कमेंट में मैंने लिखा कि हम अब हंसने के अधिकारी ही नहीं रहें हैं । हम अपने जीवन में इतना कुछ गलत कर रहे हैं क‍ि अब हंसने जैसी निष्‍छल चीज पर हमारा कोई अधिकार ही नहीं रहा है । और इसीलिये जब ओम जी जैसा कोई आकर हमें हंसाता है तो उस ऊपर वाले को ऐसा लगता है कि ये तो उसके अधिकार क्षेत्र में दखल कर रहा है और बस । ओम जी ने मंचों पर कभी भी फूहड़ता और द्विअर्थी संवादों को सहारा नहीं लिया । उनकी कलावती लीलावती की कहानी में इतना सौम्‍य हास्‍य है कि उसके आगे लाफ्टर जैसे हजारों कार्यक्रम भी बौने दिखाई देते हैं । उनके जाने के बाद कई बार उनकी कलावती लीलावती का वीडियो देखता रहा । उनकी कलावती लीलावती को आज मंच के कई सारे कवि अपने नाम से पढ़ रहें हैं लेकिन दादा का अपना अलग ही अंदाज था कलावती लीलावती पढ़ने का । सीहोर के मंच पर एक बार एक कवि ने एक अत्‍यंत अशालीन चुटकुला पढ़ दिया जिस पर उसको काफी तालियां भी मिलीं  । मंच पर दादा माणिक वर्मा, सांड नरसिंहपुरी, पवन जैन, अशोक भाटी जैसे कवि बैठे थे । ओम जी ने मुझे पास बुलाया और कहा बिठा दूं इसको । मैंने कहा दादा आप संचालक है जो उचित लगे सो करो । ओम जी ने माइक पर ऐसी झाड़ लगाई उस कवि को और कहा ये श्रोता वही खाते हैं जो हम परोसते हैं, आपके पास कविता हो तो पढ़ो नहीं तो बैठ जाओ । और वो कवि बैठ गये । जनता ने तालियां बजा कर ओम जी के निर्णय पर मुहर लगा दी । ऐसे थे ओम जी । मेरी श्रद्धांजलि और इस बार का पूरा तरही मुशायरा ओम जी की स्‍मृतियों को समर्पित ।

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स्‍मृति शेष :- सीहोर का वो कवि सम्‍मेलन जिसका संचालन दादा ओम व्‍यास ने किया था

तरही मुशायरा इस बार का तरही मुशायरा कुछ लम्‍बा चलना है और ये भी कि इस बार काफी अच्‍छी ग़ज़लें मिली हैं और इन ग़ज़लों में बहुत कुछ ऐसा है जो मन को छू लेने वाला है ।

बहर :   इस बार हमने जो बहर ली थी वो बहुत ही आसान सी बहर थी । आसान लेकिन बहुत ही लोकप्रिय बहर है ये । कई अच्‍छी ग़ज़लें इस बहर पर लिखी गई हैं । मुनव्‍वर राना साहब की मशहूर ग़ज़ल का मशहूर शेर तो आपको याद ही होगा ।

लौटने में कम पड़ेगी उम्र की पूंजी हमें, आप तक आने में ही हमको ज़माने लग गये

मुनव्‍वर भाई ने जिन बहरों पर जियादह काम किया है उनमें ये बहर भी है ।

एक क़ैदी की तरह मेरी अना बेबस रही, ख्‍वाहिशें घेरे रहीं मकड़ी के जाले तरह

तो ये है बहरे रमल की एक मुजाहिफ बहर जिसमें चार रुक्‍न हैं । चार में से तीन रुक्‍न तो स्‍थायी रुक्‍न हैं । बहरे रमल यानि कि जिसका स्‍थाई रुक्‍न है फाएलातनु या 2122 । अब इस बहर में भी प्रारंभ्‍ा के तीन रुक्‍न तो बिना किसी मिलावट के हैं अर्थात कहीं कोई परिवर्तन नहीं हैं सालिम रुक्‍न हैं । किन्‍तु अंतिम रुक्‍न में से एक पूरा दीर्घ कम हो गया है और वो 2122 के स्‍थान पर केवल 212 ही रह गया है । चूंकि हम  जानते हैं कि जब भी किसी बहर के किसी रुक्‍न में कहीं कोई परिवर्तन होता है ( मात्राओं का कम या जियादह हो जाना) तो उस रुक्‍न का एक खास नाम हो जाता है । अब यहां पर इस बहर में 212 या  फाएलुन  रुक्‍न का नाम है महजूफ़ । जाहिर सी बात है कि इस मुजाहिफ बहर के नाम में अब ये शब्‍द भी आयेगा । तो ये हुई बहरे रमल मुसमन महजूफ़ । तोड़ कर कहें तो ये कि चूंकि स्‍थायी रुक्‍न है फाएलातुन  सो ये है बहरे रमल , चार रुक्‍न हैं इस कारण ये है मुसमन  और फाएलुन  भाइजान इसमें हैं सो ये मुजाहिफ बहर हो गई है जिसके नाम में  महजूफ़  भी शामिल होगा । आइये इस बहर पर मदन मोहन जी की कम्‍पोज़ की हुई, लता जी की गई हुई और नक्‍शलायलपुरी साहब की लिखी हुई ये शानदार ग़ज़ल सुनें । जो फिल्‍म दिल की राहें से है । अगले अंक में इस बहर पर सुनाने के लिये गीत या ग़ज़ल आप को सुझाना है । कई बार फ्लेश प्‍लेयर नहीं मिलने के कारण ये गाने का लिंक नहीं दिखता है ।

 

गीत यदि सुनाई नहीं दे रहा है तो सीधे इस लिंक पर जाकर सुन लें । http://www.archive.org/details/AapKiBatenKaren 

या  यहां से डाउनलोड करें ।

http://www.divshare.com/download/7880870-47c

आज हम तरही मुशायरे में दो शायरों को ले रहे हैं । मुशायरे का आगाज़ बहुत ही धमाकेदार हुआ है । आदरणीय सुधा ढींगरा जी की कविता ने समां बांध दिया है । कविता सचमुच ही ऐसी थी जिसे रात के सन्‍नाटे में सुन लो तो आंख से आंसू कब बहने लगेंगें पता ही नहीं चलेगा । सुधा जी का बड़प्‍पन है कि वे हमारे इस छोटे से आयोजन में शामिल हुईं और हमारा मान बढ़ाया । आशा है आगे भी उनका नेह हमें मिलता रहेगा । मेरे लिये भी सौभाग्‍य है कि सावन के माह में एक बड़ी बहन मिलीं ।

दिगम्‍बर नासवा : दिगम्‍बर की विशेषता उनकी वे छोटी छोटी प्रेम कविताएं हैं जो मन को छूती हुई गुजरती हैं । दिगम्‍बर नासवा दुबई में रहते हैं और उनकी कविताएं पढ़ कर ऐसा लगता है कि वहां रह कर वे अधिकांश समय प्रेम ही करते हैं । बहुत सुंदर प्रेम कविताएं लिखने वाले दिगम्‍बर तरही मुशायरे में ग़ज़ल का आग़ाज़ कर रहे हैं क्‍योंकि मुशायरे का धमाकेदार आगाज़ तो सुधा जी कविता से कर चुकी हैं । सुनिये दिगम्‍बर को । पहले यो फोटो देखें और जाने दिगम्‍बर की प्रेम कविताओं का राज ।

DN-Anita

रोज़ जो नीलाम होता है सरे बाज़ार से

हाँ वही नायाब गुंचा है तेरे गुलज़ार से

होंसला हो दिल में तो कश्ती उतारो लहर में

ये समुन्दर पार होता है नहीं पतवार से

अपनी यादों के उजाले छोड़ कर क्यों आ गए

रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से

जागते में सो रहा या सोये में जागा हूँ मैं

प्रेम का इकरार आया है निगाहे यार से

तू नहीं जाने दिगम्‍बर प्‍यार की भाषा अभी

आरजू, अरमान से,  अन्‍जान है तू प्यार से

वाह वाह वाह बहुत अच्‍छे शेर निकाले हैं जागते में सो रहा या सोये में जागा हूं मैं प्रेम का इकरार आया है निगाहे यार से, खूब कहा है विशेषकर मिसरा उला तो बहुत ही बेहतरीन है । जागते में सो रहा या सोये में जागा हूं मैं । समां बांध दिया बधाई हो ।

प्रकाश सिंह :  ये प्रकाश अर्श नहीं हैं बल्कि प्रकाश सिंह है । पहली बार मुशायरे में आ रहे हैं । इनके बारे में जानने की कोशिश की तथा  चित्र भी तलाशा किन्‍तु नहीं मिला । ये पाठशाला में अभी आये हैं तथा आते ही इन्‍होंने तरही में शामिल होने का शानदार प्रयास किया है । इनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली सो इनका एक मेल ही लगा रहा हूं जो इन्‍होंने मुझे भेजा था ।

मैंने ब्लॉग के बारे में दो तीन महीने पहले ही जानना शुरू किया था...कभी कभी कविता लिखने का प्रयास भी किया..छंद के बारे में बहुत कम जानकारी थी...जो भी भाव आते थे कागज पर रख देता था...कभी कभी मात्राओ और वज्न के बारे में जानने का प्रयास किया पर एक गणित का विद्यार्थी हिंदी में कम कुशल ही होता है...फिर गौतम राजरिशी जी के ब्लॉग पर बहुत सुदर छंद में गजले पढ़ी..वहीं आपके बारे में जानकारी मिली...सुबीर संवाद सेवा ब्लॉग पर गया तो दिल बैठ गया ...आपने २००७ में गजल की कक्षाएं शुरू की थी और में बहु पीछे छूट गया था...खेर मैंने हिम्मत नहीं हारी और पिछले एक माह से आपकी पुराणिक पोस्ट्स पढ़ी..बस मोटा मोटा समझ पाया कि रदीफ़ काफिया,मात्राएँ,वज्न,रुक्न,और बहर और मिसरा से शेर और फिर गजल बनती है.. दोनों हाथ सामने रखकर आपके दे दनादन छडिया खाने को को तैयार हूँ...आप कहेंगे तो उड़नतश्तरी को उठा कर मैदान के चार चक्कर लगालूँगा....और अगर आपका नाम डुबो रहा हूँ तो माफ़ कर दीजियेगा...


रात भर आवाज देता है कोई उस पार से
साथ दे अब और भी चाहा नहीं संसार से

आज जाने दे मुझे क्यूँ रोकता तकरार पे
प्रेम के दो बोल काफी क्या मिलेगा खार से

देख के उनको नजर भर प्यार का दरिया बहा
ज्यूँ घटाएं रातभर जल जल हुईं मल्हार से

आज आजादी कहाँ है ये कहाँ की बंदगी
आँख के आगे जफा तो जी रहे लाचार से

जीत के सारा जहाँ वो रो पड़ा था बाखुदा
हाथ खाली थे, सिकंदर जब गया संसार से

जाम थामे हाथ में साकी पिलाती बारहा
राज पाखी तू बता चढ़ता नशा क्यूँ हार से

बहुत बढि़या अंदाज और आगाज है प्रकाश जी, आपको उड़नतश्‍तरी को उठाकर मैदान के चक्‍कर लगाने की ज़रूरत बिल्‍कुल नहीं हैं । जीत के सारा वो रो पड़ा था बाखुदा, हाथ खाली थे सिकंदर जब गया संसार से  एक सिकंदर के साथ बहुत अच्‍छी गिरह बांधी है । आनंद आ गया । मुहावरे और कहावतों को किसी ग़ज़ल के शेर में लेना बहुत मुश्‍किल काम होता है । मेरे एक मित्र हैं रियाज मोहम्‍मद रियाज उनका मतला है  देश का हम क्‍या हाल सुनाएं, अंधे पीसें कुत्‍ते खाएं ।  उसी प्रकार की गिरह बांधी है आपने सिकंदर के साथ । बहुत अच्‍छा है । अब हमारे पास दो प्रकाश हैं एक प्रकाश अर्श और दूसरे प्रकाश सिंह ।

चलिये आनंद लीजिये दोनों ग़ज़लों का और मुझे इजाजत दीजिये । अगले अंक में मिलते हैं दो और शायरों से । जो लोग अभी भी ग़ज़लें भेजना चाहें भेज सकते हैं । अभी एडमीशन चालू हैं । और हां बहर पर फिल्‍मी ये गैर फिलमी गीत ग़ज़ल अवश्‍य सुझायें ।

24 टिप्‍पणियां:

  1. पंकज भाई ओम दादा क्या गए लगता है जैसे कविता का सारा सावन सूना कर गए.एक बार इन्दौर में एक कविसम्मेलन में एक स्थानीय कवि ने श्री आसकरण अटल की रचना पढ़ दी.सुरेन्द्र शर्मा भी थे वे उस स्थानीय महान कवि को रोक कर बोले भाया ऐसा कहर तो मत ढा.ये तो बड़ी सॉफ़्ट सिखावन दे दी उन्होंने अपनी वरिष्ठता के तक़ाज़े से लेकिन हमारा महान कवि उधार की कविता बंद करने का नाम ही न ले.ओम व्यास भी उठे और बोले अब आप इस मंच पर बहुत पोटे (गोबर का मालवीकरण) मुझे ये काव्य ओटला(मंच)अब गोमूत्र से लीपना पड़ेगा.ये थी ओम दादा की दबंगता....मन तो बहुत द थका थका सा हो गया है लेकिन एक दिवंगत कवि के लिये जिस तरह का प्रेम और सम्मान उसके न रहने के बाद उमड़ा है काश वह उसके जीत जी उमड़ जाया करे तो शायद हम अपने काव्य हस्तक्षरों को दीर्घ-आयु दे सकें.

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  3. जोधपुर के कवि सम्मेलनों में ओम जी को कई बार सुना.. विश्वास नहीं हो रहा कि वो चले गये..

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  4. Vyakti bhale hi chala jata hai, par uski yaden rah jati hain..bahut sundar likha apne.

    Is bar blog par meri nai photo dekhen.

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  5. किसी के खाली किये जगह की भरपाई तो कभी भी किसी भी हाल में नहीं हो सकती....पर यह सोचकर संतोष और हर्ष किया जा सकता है की नश्वर इस संसार से भले ये महँ हस्तियां चली गयीं पर जितना समय इन्हें विधाता ने दिया था उसमे इन्होने अपने नाम और पहचान को अमर बना लिया....समय इनके शरीर को मिटा सकता है परन्तु इनके किये को नहीं.....

    दिगंबर जी और प्रकाश सिंह जी ने तो सचमुच समां बाँध दिया....लाजवाब गजल है.....नाकाबिले तारीफ....इन्हें ढेरों शुभकामनायें.

    लताजी की आवाज और गजल ने तो मुग्ध कर लिया....बहुत बहुत आभार सुनवाने के लिए.

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  6. गुरूजी, प्रणाम! आज जाकर फ़्री हो पाया हूं। अचानक एक जरूरी काम आ गया था। इस बार तो बहुत आनंद आ रहा है मुशायरे में। सभी रंग में हैं।....ओम जी के चले जाने से मन आहत है...बहर पर गीत/गज़ल सुझाने का आपका हुक्म हुआ है सो मुझे लगता है ये उदाहरण ठीक होने चाहिये-
    १. हमको किसके गम ने मारा ये कहानी फ़िर सही
    किसने तोड़ा दिल हमारा ये कहानी फ़िर सही
    दिल के लुटने का सबब पूछो न सबके सामने
    नाम आएगा तुम्हारा ये कहानी फ़िर सही
    २. होशवालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है
    इश्क कीजै फ़िर समझिये जिंदगी क्या चीज है
    ३. आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे
    दिल की ऐ धड़कन ठहर जा मिल गई मंजिल मुझे

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  7. एक बात और, ये बहर हिंदी के सीताछंद (र त म य र ) से मिलता जुलता है। उदाहरण-

    जन्म बीता जात मीता अंत रीता बावरे
    राम सीता राम सीता राम सीता गावरे(भानु कवि)

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  8. ओम जी नहीं रहे, सहज विश्वास करना कठिन है किन्तु प्रभु का फैसला-ऐसे में इस तरह के समर्पण ही सच्ची श्रृद्धांजलि होंगे उस महान आत्मा को, जिसे जमाना याद रखेगा.

    बहुत उम्दा गज़लें: दिगम्बर जी और प्रकाश जी की.

    बधाई.

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  9. ओम जी के जाने का दर्द सब को है पर ईश्वर की इच्छा के आगे कुछ नही होता.......... प्रकाश जी की ग़ज़ल लाजवाब है........... और आपने सच पहचाना........ मेरी प्रेम रस की रचनाओं की प्रेरणा यही हैं

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  10. व्यास जी की दिवंगत आत्मा को मेरा नमन!

    तरही मुशायरे को उनके नाम समर्पित करके एक सच्ची श्रधांजली दी है।

    आज के दोनों शायर लाजवाब ग़ज़ल कह रहे हैं...दिग्म्बर जी के इन शेरों पे करोड़ों वाह-वाह "हौंसला हो दिल में..." और "जागते में सो रहा.."।

    प्रकाश जी की हौसलाअफ़जाईयों का मुरीद हूँ। सिकंदर वाला शेर तो वाकई जबरदस्त है।

    ये मेरी भी सर्वाधिक पसंदीदा बहर है गुरूदेव।
    इस बहर पे कुछ खास गीत जो मैं कई-कई बार सुनना चाहूँगा, वो हैं:-
    1. आपकी आँखों में कुछ उलझे हुये से राज हैं
    आपसे भी खूबसूरत आपके अंदाज हैं
    २. अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं
    सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं
    3. चुपके-चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
    4. सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा
    5. दर्दे-दिल दर्दे जिगर दिल में जगाया आपने
    ...और भी हैं कुछ पसंदीदा, याद आते ही बतता हूँ।

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  11. ये तरही मुशायरा एक यादगार मुशायरा होने वाला है ये सुधा जी के आगाज़ करने से ही अंदाजा हो गया था...और ये अंदाजा कितना सही था इसका प्रमाण पहली ही दो ग़ज़लों ने दे दिया...दिगंबर जी को पढना हमेशा एक सूकून दे जाता है...वो बहुत मासूमियत से अपनी बात कहते हैं :
    अपनी यादों के उजाले छोड़ कर क्यूँ आ गए
    रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से
    बहुत खूबसूरत शेर कहा है उन्होंने...बहुत बहुत बधाई...
    अर्श जी के सीखने की ललक उनकी ग़ज़ल से साफ़ झलकती है...बिना व्याकरण के पूरे ज्ञान के क्या शेर कहें हैं उन्होंने वाह...
    देख के उनको नज़र भर प्यार का दरिया बहा
    ज्यूँ घटायें रात भर जल जल हुईं मल्हार से
    बहुत खूब कहा है...वाह...मेरी और से ढेरों बधाईयाँ अर्श जी को भी और आप को भी क्यूँ की सारा आयोजन आप हैं तभी तो हो पा रहा है..

    आज मेरी बहिन "लता हया" जो शायरा और कवयेत्री हैं और हिन्दुस्तान के अलावा देश के बाहर भी अपना कलाम सुना आयीं हैं और जिसने ओम जी के साथ बहुत से कवि सम्मेलनों और मुशायरों में शिरकत की है मेरे घर आयी हुईं है पूरी दोपहर वो ओम व्यास जी और ओम प्रकाश आदित्य जी के किस्से अनवरत सुनाती रही...उसकी बातों से लगा की ये लोग साधारण इंसान नहीं थे देवदूत थे...जो हमें हँसाने का प्रयास करते करते चले गए...

    नीरज

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  12. गुरु देव को सादर प्रणाम,
    मंच के कुबेर को खो देने का जो दुःख है वो लफ्जों में बयान कर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है, प्रभु उनके निश्छल आत्मा को शांति दे ... और उनके घर वालों को इस सदमे से उबार पाने के लिए शक्ति ....नमन इस दिवंगत आत्मा को .... आपने इस तरही को ब्यास जी के नाम कर हमें भी किर्तार्थ किया है गुरु देव...

    जिस बहार की बात आप कर रहे है हमारी बाते अक्सर होती रहती है ... बहरे रमल मुसमान महजूफ की बात है अगर कही जाये तो गायकी में इस बह'र की जीतनी पकड़ है उतनी शायद ही किसी और की ,,,, ऊपर आप गुरु भाई रवि और गौतम जी के उदहारण से सभी जान ही गए होंगे...
    गुरु भाई गौतम ने जो आखिरी गाने की बात की है वो मेरा फ़िल्मी संगीत में सबसे पसंदीदा गाना है .... जब भी कॉलेज के स्टेज पे गाने जाता ये सोंग तो जरुर ही गाना पङता मैं इसी गाने से मशहूर हुआ था अपने म.बी.ए के दौरान .... ये कहानी फिर कभी....
    इस कड़ी में एक और मेरा पसंदीदा ग़ज़ल है जिन्हें मैं अपने ग़ज़ल गायकी में गुरु मानता हूँ उस्ताद गुलाम अली साहिब... की दिलकश आवाज़ में ...
    राज की बातें लिखी और ख़त खुला रहने दिया ....
    कभी फुर्सत मिले तो आप भी गुरु देव इस ग़ज़ल को जरुर सुने ....

    गुरु भाई दिगम्बर जी के प्यार के बारे में आपने सबकुछ तो लिख ही दी है और उनके सच में वो छोटे छोटे प्यार पे कविता कमाल की होती है ... कितनी मह्सुसियत होती है उसमे... तरही में भी प्यार में डूब के लिखी ग़ज़ल भी खूब भाई ....

    सच कहूँ तो गुरु देव आपने इस तरही में जिस हमनाम से मिलवाया है सच में अचंभित करदेने वाला है एक बारी तो मैं दर ही गया के कहीं गुरु देव ने किसी और की ग़ज़ल मेरे नाम पे गलती से तो नहीं लगा दी मगर आपने सब कुछ साफ़ कर दिया है ... इस नए हमनाम गुरु भाई का बहोत बहोत स्वागत है ग़ज़ल के कक्षा में .... और आते ही शिरकत ये तो साहसिक कारनामा है .... सच में सिकंदर वाला शे'र निशब्द कर देने वाला है ...
    गुरु देव आपसे एक इल्तजा है अगर आप माने तो और मेरे हम नाम शाईर भाई भी माने तो .. के आब जब वो कक्षा में आ गए है तो उनको आप एक तख्खालुस क्यूँ ना दे दें ....

    दोनों शईरों को बहोत बहोत बधाई आपको सादर प्रणाम गुरु देव...

    आपका
    अर्श

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  13. देखा गुरु देव खा गए ना नीरज जी धोखा .... अब तो आपको कुछ करना ही होगा... मेरे हम नाम भाई के लिए....
    क्युनके लोग उन्हें अर्श समझ रहे हैं...


    अर्श

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  14. OM JEE KAA IS DUNIYA SE JAANAA EK
    BADEE KSHATI HAI HINDI KAVITA KE
    LIYE.ISHWAR UNKEE AATMA KO SHANTI
    PRADAN KARE.
    DIGAMBAR NAASWA AUR PRAKASH SINGH DONO KEE TARAHEE
    GAZALEN PADHEE HAIN MAINE.ACHCHHEE
    KAUSHISH HAI.PRAKASH SINGH JEE KE
    EK SHER MEIN " SAQEE" KO STREE LING
    MEIN LIKHA GAYAA HAI." Saqee "
    pulling hai.
    Tarahee mushaira kee
    kamyaabee par janaab subeer pankaj
    jee ko dheron shubh kamnayen.

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  15. गुरु जी प्रणाम
    ओ़म जी ने तो बैकुंठ का वास ग्रहण कर लिया, हम उनको नमन ही कर सकते हैं, धन्यवाद जो आपने प्रस्तुत मुशायरा ओ़म जी को समर्पित किया
    ओ़म जी की "माँ" शीर्षक कविता से मुझे बेहद लगाव है और हमेशा रहेगा इस कविता को ओ़म जी इस प्रकार सुनाते, दिल दिमाग सब अभीभूत जाता था

    2122, 2122, 2122, 212
    इस बहर पर मेरी पसंद की कुछ गजल है .................

    १, तू नहीं तो जिन्दगी में और क्या रह जायेगा
    दूर तक तन्हाइयों का सिलसिला रह जायेगा

    २.आज हम बिछडे हैं तो कितने रंगीले हो गए
    मेरी आँखें सुर्ख तेरे हाँथ पीले हो गए

    ३, राज की बात लिखी ख़त खुला रहने दिया
    जाने क्यों रुसवाइयों का सिलसिला रहने दिया

    दिगंबर जी की गजल तो खूबसूरत है ही साथ ही चौकाया है प्रकाश सिंह "पाखी" ने, आपकी गजल का सिकंदर वाला शेर तो बहुत ही सुन्दर बन पड़ा है साथ ही साथ पूरी गजल बहर में लगी
    (वास्तव में है या नहीं ये तो आप ही बताएँगे :-)

    @अर्श भाई,
    आपके हमनाम इन प्रकाश भाई का उपनाम "पाखी" है और ये बात मुझे "पाखी" के ब्लॉगर प्रोफाइल से पता चली है
    जब गुरु जी ने बताया की प्रयास करने के बाद भी इनका ब्लॉगर प्रोफाइल नहीं मिला तो मैंने सोचा कुछ प्रयास मैं भी करू
    गूगल बाबा की शरण में पहुच गया, प्रकाश सिंह, prakash singh, prakash singh pakhee, प्रकाश सिंह पाखी,"प्रकाश पाखी" को सर्च किया और अंत में "पखाश पाखी" के सर्च में तब सफलता मिली जब कंचन जी के ब्लॉग पर इस नाम से कमेन्ट मिला, बस फिर क्या था कमेन्ट से प्रोफाइल, और फिर आपके ब्लॉग पर पहुच गया

    प्रकाश "पाखी" का ब्लॉग
    प्रकाश "पाखी" की प्रोफाइल

    (अब अधिकारिक रूप से तो पाखी ही बता सकते हैं की मैं सही हूँ या गलत)

    वीनस केसरी

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  17. अर्शजी ये सच है की मैं धोखा खा गया...लेकिन जब धोखा इतना हसीं हो तो खाने में क्या ऐतराज़ है...इसमें आपके साथ साथ आपके हम नाम अर्श जी की भी तारीफ हो गयी है...एक पंथ दो काज...
    नीरज

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  18. आदरणीय गुरुदेव,
    पहले तो मैं आपका आभारी हूँ कि आपने मुशायरा श्री ओमव्यास जी को समर्पित किया है.इस तरह मेरी पहली कोशिश कविता और हास्य के सिरमौर को समर्पित हुई है.एक तो ब्रोड बेन्ड ख़राब चल रहा है ऊपर से बहुत दिनों से बाहर था.इसलिए पता ही नहीं चला कि मुशायरे में मेरी रचना भी शामिल हुई है.अखबार में आदरणीय ओमजी के निधन की खबर वज्रपात सी लगी. इसलिए तरही मुशायरे में पहली बार अपनी रचना देखने की कोई ज्यादा ख़ुशी नहीं महसूस कर पा रहा हूँ.

    गुरुदेव मैं सोच रहा था कि आप शायद मेरी गजल को कुछ सुझावों के साथ लौटा देंगे..कमियां दूर करने के लिए
    पर आपने तो इसे शामिल ही कर लिया.आपका आर्शीवाद है सो दोनों हाथों से लूँगा.पर मुझे लगता है कि न्यू एडमिशन होने के कारन ही आपने शिष्य को बख्श दिया है..वर्ना आपकी सजा तो ...???
    ''हौसला हो दिल में तो कश्ती उतारो लहर में ..''दिगंबर जी आपके इस मिसरे पर न्योच्छावर होने को जी चाहता है.आपकी तो पूरी गजल ही खूब सूरत है.
    रंजना जी की तारीफ़ का शुक्रिया अदा करता हूँ.समीर जी आभार मैंने तो सोच लिया था कि उड़न तश्तरी तो उठा के चार चक्कर लगाने की बात गुरदेव ने सारvjanik करदी है तो आपकी डांट जरूर पड़ेगी.गौतम जी आपका तो फेन हूँ...और आपसे बहुत कुछ सीखता हूँ.
    नीरज जी आपने मुझे प्रकाश अर्श समझ कर मेरा मान ही बढाया है.आशा करता हूँ स्नेह भी वैसा ही देंगे. और प्रिय भाई अर्श हमनाम और आपका भाई होने पर mujhe garv है.पर लिखने में मुझे आपसे बहुत कुछ सीखना होगा.

    और सबसे अधिक आभारी तो में परम आदरणीय प्राण साहब का हूँ जिन्होंने मेरी सीखने की अदम्य इच्छा को देखते हुए पहली रचना पर मुझे सीख का मोती दिया.मैंने पहले ही अनुरोध किया था कि मैं भाषा का विद्यार्थी नहीं रहा हूँ इसलिए कमियां रहीं है.भविष्य में ऐसी गलती न दोहराने का प्रयास करूंगा.
    और वीनस भाई...आपका तो लाखों बार शुक्रिया...मैं पिछले कई दिनों से ब्लॉग पर नहीं जा सका तो आपने मुझे khojbeen कर सबके सामने रैगिंग के लिए खडा कर दिया.अब सीनियर मेरी क्लास लेंगे तो आप ही बचाना.
    आदरणीय गुरुदेव और उनके समग्र गुरुकुल सदस्यों का शुक्रिया..!
    प्रकाश सिंह 'paakhi'

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  19. ओम जी के हमारे बीच ना होने का अफ़सोस सदा रहेगा ...शायद ईश्वर को यही मंजूर था ....
    रोज जो नीलाम होता है सारे बाज़ार से
    हाँ वही गुँछा है तेरे गुलज़ार से
    दिगंबर जी की कविता बहुत सुंदर लगी...

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  20. @ नीरज जी
    छमा याचना के साथ आपका ध्यान इस और दिलाना चाहता हूँ की, आपने प्रकाश के नाम पर इतना हसीन धोका खाया की अभी भी उसमे डूबे हैं :)
    हमारे पुराने प्रकाश जो "अर्श" के नाम से लिखते है उनके हमनाम प्रकाश जिनकी गजल गुरु जी ने मुशायरे में पोस्ट की है "पाखी" के नाम से लिखते है उनका भी उपनाम अर्श नहीं है वो तो केवल हमारे पुराने प्रकाश साहब का है .......

    @ पाखी
    हमारी क्या मजाल जो हम आपको बचा पाए, हम तो खुद घबराए रहते है की कब गुरु जी की शंटी ना पड़ जाये
    मुझे तो एक ही तरीका पता है गुरु जी की डांट से बचने का और वो उपाय सरल भी है और वो उपाय है की आप गलती मत करो और गुरु जी की डांट से बचे रहो :)
    इस विषय में हमसे कोई आशा मत रखना :)

    वीनस केसरी

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  21. ओम जी क० हमारी प्रार्थनाए नही बचा सकीं...! ये बात ऐसी बात है जो कभी कभी बहुत कष्ट देती है।

    दिगम्बर जी और प्रकाश जी दोनो की ही गज़ले उत्तम..! दिगम्बर जी का कश्ती वाला और प्रकाश जी का सिकंदर वाला शेर अद्भुत है। बहुत पीछे प्रवेश लेने के बावज़ूद प्रकाश जी का जो लय सामंजस्य है, वो हृदय से प्रशंसनीय है और साक़ी पुल्लिंग होता है ये तो उनके बहाने हमें भी पता चला...! वरना हम भी स्त्रीलिंग ही समझते थे...!

    और मजे की बात ये देखिये..जिस कंचन के ब्लॉग से प्रकाश जी तक पहुँचा गया वो कंचन खुद भी कन्फ्यूज़ थी कि ये है कौन न्यू कमर....??? असल में इन्हे तो हम अभिव्यक्ति के ही नाम से जानते हैं....! अब आप अपने हस्ताक्षर का प्रयोग बढ़ा दें प्रकाश जी....! :) :)

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  22. ओम भाई चले गए. गजेन्द्र सोलंकी जी ने फ़ोन करके यह दुखद समाचार दिया था. सुबीर भाई ओम व्यास जी मुझे बहन नहीं भाई बुलाते थे, सुधा भाई...मुझे भाई कहने वाला चला गया. इस दर्द को सहना तो पड़ेगा ही.
    दिगम्बर जी और प्रकाश जी की गज़लें बहुत अच्छी लगी. दिगम्बर जी का ''हौंसला हो दिल में ..और प्रकाश जी का सिकंदर वाला शेर वाकई बहुत उम्दा है. सुबीर जी आप की यह पंक्ति ''रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से'' लेखन प्रक्रिया को उकसाती है.
    बहुत --बहुत बधाई!

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  23. प्रणाम गुरु जी,
    काफी दिनों बाद टिपण्णी कर रहा हूँ, वक़्त नहीं मिल पा रहा था.
    ओ़म जी को समर्पित ये तरही मुशयेरा उनके लिए हम सबकी साहित्यिक श्रधाजिंली है. एक बार ओ़म जी का आगमन पंतनगर(उत्तराखंड) में हुआ था वहीँ उन्हें सुना था और मंत्र मुग्धा हो गया था.
    अब बात तरही ग़ज़लों की...........
    दिगम्बर जी ने खूबसूरत ग़ज़ल कही है, मतला कितना हसीं है. प्रकाश सिंह जी का आघज़ा ही इतना जोरदार है मज़ा आ गया. आगे उनसे बहुत उमीदें जुड़ गई हैं.

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  24. गुरु जी, यूँ समझिये की मैं आज पुरानी रेकॉर्डिंग देख रहा हूँ.
    बहुत मजा आ रहा है अब तो.

    मुझे अफ़सोस है की मैं आपके संवाद सेवा ब्लॉग से कैसे अनभिज्ञ रहा. क्या करता मेरी जिंदगी भी अगस्त २००९ के बाद से ही स्थिर हुई है.
    अब नियमित रूप से आना होगा.

    सभी प्रतिभागियों को उनके उम्दा कलाम के लिए बधाई.

    बहुत शुक्रिया आप का इस शानदार तरही मुशायरे के आयोजन के लिए.

    -सुलभ

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