मंगलवार, 7 जुलाई 2009

सभी गुरुओं और विद्वजनों को प्रणाम करते हुए आज गुरू पूर्णिमा के अवसर पर हम प्रारंभ करते हैं तरही मुशायरा -रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से ।

( नोट अब ये ब्‍लाग इंटरनेट एक्‍सप्‍लोरर में बिल्‍कुल नहीं खुल रहा है यदि आपके साथ भी ऐसा हो तो इसे मोजिला फायर फाक्‍स या गूगल क्रोम में खोलें । )

सभी गुरुओं को मेरी और से विनयां‍जलि पोस्‍ट पढ़ने से पहले इसे ज़रूर सुनें

AST00012

पर्वतों से भी ऊंचे होते हैं गुरू जिनकी तलहटी में हम सुमन बनकर खिलते हैं और उनके ज्ञान की सुवास को फैलाते हैं ।

गुरू पूर्णिमा का स्‍थान आजकल शिक्षक दिवस ने ले लिया है । मेरे विचार में वो सही भी हुआ क्‍योंकि आजकल गुरू रहे ही कहां हैं, आजकल तो शिक्षक ही हैं । जो ज्ञान दे वो गुरू होता है और जो शिक्षा दे वो शिक्षक होता है । पहले ये दोनों काम एक ही व्‍यक्ति करता था, शिक्षा भी वहीं देता था और ज्ञान भी वही देता था । इसीलिये तब एक ही दिन होता था गुरूपूर्णिमा का । किन्‍तु धीरे धीरे हुआ ये कि गुरू कम होते गये और शिक्षक बढ़ते गये ।और इसी कारण ये हुआ कि गुरू पूर्णिमा के अलग एक और दिन आ गया जिसे शिक्षक दिवस कहा गया । शिक्षा जो कि निर्धारित पुस्‍तकों में लिखे हुए कुछ पूर्व ये तय किये हुए पाठ हैं जिनको निर्धारित समय में निर्धारित तरीके से ही पढ़ाना है । ज्ञान, जिसमें कुछ निर्धारित नहीं है, जिसकी कोई सीमा नहीं है, जिसको कहीं किसी किताब ये पुस्‍तक में नहीं लिखा गया । वो असीम है, वो अनंत है, उसकी कोई सीमा नहीं होती । तो क्‍या एक बहुत अच्‍छा प्रवचनकार भी गुरू होगा ? मेरे विचार में नहीं हो सकता । एक प्रवचनकार जो कि रेशम के वस्‍त्र पहन कर, गले में सोने की मोटी मोटी मालाएं पहन कर हमें मोह माया से दूर रहने के प्रवचन दे रहा हो, वो किस प्रकार हमारा गुरू हो सकता है । उसकी तो स्‍वयं की ही कथनी और करनी में फर्क है । धर्म पर आधारित प्रवचनकारों को हमारे देश के प्राचीन इतिहास में कभी भी गुरू या संत का दर्जा नहीं दिया गया, उनका एक अलग नाम था कथा वाचक या प्रवचनकार । इनको हम शिक्षक की श्रेणी में ले सकते हैं । जिस प्रकार एक शिक्षक जो रसायन शास्‍त्र का बहुत अच्‍छा ज्ञाता है वो रसायन शास्‍त्र बहुत अच्‍छे से समझाता है उसी प्रकार ये प्रवचनकार भी किसी न किसी धर्मग्रंथ के बहुत अच्‍छे ज्ञाता हैं और इसी कारण ये उस विषय को बहुत अच्‍छे से समझाते हैं और उसी कारण ये भी शिक्षक हैं । शिक्षक के लिये आवश्‍यक नहीं होता कि वो जो कुछ कहे उस पर स्‍वयं भी अमल करे, किन्‍तु गुरू के लिये होता है । इसी कारण ये प्रवचनकार जो विषय विशेषज्ञ हैं ये भी यदि प्रवचन में ये कह रहे हैं कि मोह माया त्‍यागो, और स्‍वयं गले में सोने की मोटी सांकलें डाले हैं, तो भी ये दोषी नहीं हैं । क्‍योंकि ये तो आपको केवल वो बता रहे हैं जो कि किसी ग्रंथ में लिखा है । जिस प्रकार रसायन शास्‍त्र का शिक्षक पोटेशियम साइनाइड के जहरीलेपन का बताते समय उसे चाट कर नहीं बतायेगा, उसी प्रकार ये प्रवचनकार भी हैं । इसके विपरीत गुरू वो होता है जो कुछ कहने से पहले स्‍वयं उस पर अमल करता है । उसकी कथनी और करनी एक ही होती है । वो पुस्‍तकों से ज्ञान लेता है और उस ज्ञान पर आधारित अपनी ही एक धारा तैयार करता है । संत की परिभाषा और भी ऊपर है और वहां तक पहुंचना एक बहुत ही दुष्‍कर कार्य है । कुल मिलाकर बात ये कि शिक्षक वो होता है हमें पूर्व से बने हुए रास्‍तों पर चलने की शिक्षा प्रदान करता है, गुरू वो होता है जो हमें नये रास्‍ते स्‍वयं बनाने का ज्ञान देता है और संत वो होता है जो कि न तो पूर्व से बने रास्‍तों पर चलता है न ही नये बनाता है, वो तो चलता जाता है और उसके पद चिह्न ही आगे चलकर रास्‍ते बन जाते हैं ।

मेरे जीवन में कई सारे शिक्षक आये और कुछ गुरू भी आये । पहले गुरू जिनका मैं आज स्‍मरण करना चाहता हूं वो थे स्‍वर्गीय श्री मुरलीधर जी जोशी । ये वास्‍तव में तो शिक्षक थे और मुझे पढ़ाते थे । लेकिन ये वास्‍तव में गुरू थे । वे बहुत ही अलग तरह के थे । ग़रीब होने के बाद भी एक विचित्र प्रकार के स्‍वाभिमान से ठसाठस । गाते बहुत अच्‍छा थे । उनकी आवाज़ में 'आंसू भरी हैं ये जीवन की राहें सुनने का एक अलग ही आनंद था । एक बार मैंने देखा कि उनकी शर्ट पर एक खटमल चल रहा है । मैंने कहा मास्‍साब हाथ सीधा करें मैं उसको मार देता हूं । वे मुस्‍कुराये और एक काग़ज फाड़ा उस पर उस छोटे से जीव को बिठाया और बाहर पेड़ों पर छोड़ दिया । मैंने कहा मास्‍साब ये क्‍यों किया तो बोले दया करने से अच्‍छा आनंद कोई नहीं हैं । उनसे बहुत कुछ सीखा । किन्‍तु असमय ही एक रात वे सोये तो उठे ही नहीं । मेरे अंदर करुणा का बीजारोपण करने वाले वही थे । मेरे पिता जो कि आज भी कर्म करते हैं रिटायरमेंट के लगभग बारह साल बाद भी, उनसे मैंने सीखा कि कर्म ही प्रधान है, उनसे एक बात और सीखी कि पैर उतने ही फैलाओ जितनी चादर हो । वे कभी भी कर्ज पर कोई चीज लेने की वकालत नहीं करते । फिर मेरी मां जिन्‍होंने मुझे स्थिर चित्‍त रहना सिखाया और प्रतिक्रिया देने के बजाय सहज रहने के गुण दिये । फिर काफी लोग मिले । जैसे श्री नारायण कासट जी जिन्‍होंने मुझे कविता के बारे में काफी ज्ञान दिया । श्री रमेश हठीला जी जिन्‍होंने गीत की रचना करना सिखाया और पुस्‍तकों से सीखा गया बहुत सारा ज्ञान जो उन रचनाकारों के कारण सीख पाया । जिनकी वे पुस्‍तकें थीं । रेणु जी, गुलशन नंदा जी, मन्‍‍टो जी, कमलेश्‍वर जी, रविन्‍द्र कालिया जी ये वो कहानीकार हैं जिन्‍होंने मुझे कहानी से परिचय करवाया, मैं एकलव्‍य की तरह इनसे बिना मिले ही इनके साहित्‍य को गुरू बना कर साधना करता रहा । लता मंगेशकर जी की आवाज़ को भी मैं अपना गुरू मानता हूं क्‍योंकि उसी आवाज़ ने मुझे बताया कि जीवन में सुरीला होना कितना ज़रूरी है ।  आज गुरू पूर्णिमा के अवसर पर सभी गुरुओं को मेरी विनयांजलि, मैं जहां भी आज हूं वहां कतई नहीं होता यदि ये सब नहीं होते । मुझे जो कुछ बनाया है वो मेरे गुरुओं ने बनाया है ।

तरही मुशायरा इस बार का काफी रोचक होना है । इस बार जो ग़ज़लें प्राप्‍त हुई हैं उनमें कुछ शेर तो बस ऐसे हैं कि मन को छूते हुए गुजर जाते हैं । इस बार का मिसरा था रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से  । कई लोगों ने मिसरे को खूब सराहा । हकीकत ये है कि बरसों पहले डायरी में अटकाया ये मिसरा जिस पर कभी मिसरे से आगे कुछ नहीं कर पाया उस पर लोगों ने इतनी सुंदर ग़ज़लें लिख दीं कि अपने पर शर्म आती है । कंचन ने आज फोन लगाया तो बड़ी अच्‍छी बात कही गुरूजी आवाज़ तो कोई सबको ही देता है रात भर लेकिन कवि उस आवाज़ को  पहचान लेता है और उसे शब्‍दों में ढाल देता है ।  कंचन ने मानों मिसरे को पूरा खोल कर रख दिया ।

एक दिन मोबाइल पर अचानक एक बहुत ही सुरीली आवाज़ सुनाई दी पहले तो मैं हलो से आगे ही कुछ नहीं कह पाया क्‍योंकि आवाज़ का सुरीलापन ही कुछ नहीं कहने दे रहा था । फिर आवाज़ ने अपना परिचय दिया मैं सुधा ढींगरा बोल रही हूं। हिंदी की जानी मानी कथाकार जिनकी कहानियां हिंदी की लगभग हर पुस्‍तक में मैंने तब पढ़ीं जब मैं लिखना सीख रहा था, एक क्षण को मैं स्‍तब्‍ध सा रहा ही कुछ बोल पाया । सुधा दीदी ने कहा कि  आप ने एक पंक्ति अपने ब्लाग पर डाली थी, मैं ग़ज़ल तो नहीं लिखती पर एक छंदमुक्त कविता पढ़ने के लिए भेज रही हूँ. वह पंक्ति मुझे बहुत पसंद आई और कुछ लिखा गया, पंजाब के चर्चित प्रेमियों पर ।

ये हमारा सौभाग्‍य है कि हिंदी की इतनी दिग्‍गज कथाकार डॉ. सुधा ओम ढींगरा जी की एक बहुत ही सुंदर कविता हमें आर्शिवाद के रूप में प्राप्‍त हुई है । आज गुरू पूर्णिमा के अवसर पर ये सुंदर कविता समर्पित है सभी गुरुजनों को । एक बात जिन दिनों में कहानी लिखना सीखने के दौर में था तब जिन लेखिकाओं की कहानियां मुझे खूब भाती थीं उनमें सुधा जी भी हैं, मालती जोशी जी, ममता कालिया जी, नूर जहीर दीदी और सुधा जी ।

पहले सुधा जी का परिचय डॉ. सुधा ओम ढींगरा,कवयित्री, कहानीकार, उपन्यासकार, पत्रकार, रंगमंच, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन कलाकार, समाज सेवी और हिन्दी के प्रचार-प्रसार की अनथक सिपाही।हिन्दी, उर्दू और पंजाबी की चर्चित पत्रकार हैं। जालन्धर रंगमंच, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन की कलाकार रही हैं। मेरा दावा है (अमेरिका के हिन्दी कवियों का काव्य संग्रह), तलाश पहचान की (काव्य संग्रह), माँ ने कहा था (काव्य कैसेट), परिक्रमा (पंजाबी से हिन्दी में अनुवादित उपन्यास), सफर यादों का (काव्य संग्रह प्रकाशनाधीन), वसूली (कहनी संग्रह प्रकाशनाधीन), और गंगा बहती रही (उपन्यास प्रकाशनाधीन), मेरा दावा है (भाग दो) -कार्य चल रहा है। काव्य सहयोग विश्वा तेरे - काव्य सुमन (सम्पादक गिरीश जौहरी), प्रवासी हस्ताक्षर (सम्पादक डॉ. अंजना संधीर), सात समन्दर पार से (सम्पादक डॉ. अंजना संधीर), पश्चिम की पुरवाई (सम्पादक डॉ. प्रेम जनमेजय, सत्यनारायण मौर्य ’बाबा’) पत्रकारिता : संवाददाता -प्रवासी टाइम्स (यू.के.) स्तंभ लेखिका - शेरे-ए-पंजाब (पंजाबी) विदेशी प्रतिनिधी - पंजाब केसरी, जगवाणी, हिन्द समाचार सम्मान : 21 सितम्बर, 1996 अमेरिका में हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं सामाजिक काय… के लिए वाशिंगटन डी.सी. में एम्बैसेडर नरेश चन्द्र से सम्मानित। हिन्दी साहित्य की सेवाओं के लिए नार्थ कैरोलाईना में नागरिक अभिनंदन। ’हैरिटेज सोसाइटी (नार्थ कैरोलाइना)’ द्वारा "प्रतिष्ठित कवियत्री, वर्ष 2005" से सम्मानित। सम्पर्क : ceddlt@yahoo.com

Sudha_Om_Dhingra

रात भर आवाज़ देता है
कोई उस पार से......

सुन सोहणी उसे
उठा माटी का घड़ा
तैर जाती है
चनाव के पानियों में
मिलने अपने महिवाल को
खड़ा है जो नदी के उस पार.....

सस्सी भटकती है थलों में
सूनी काली रातों में
छोड़ गया था पुन्नू सोती सस्सी को
पुन्नू पुन्नू है पुकारती
शायद सुन ले वह उसकी पुकार
खड़ा है जो मरू के उस पार......

फ़रहाद तोड़ता है पहाड़
नदी दूध की निकालने
शर्त प्यार की पूरी करने
तड़प रहा है मिलने शीरी से
पहुँच न पाया उस तक
खड़ी है जो पहाड़ों के उस पार......

साहिबा ने छोड़ा घर- बार
छोड़े भाई और परिवार
भाग निकली मिर्ज़ा संग
गीत में हेक जब लगाई उसने
खड़ा है जो झाड़ियों के उस पार......

हीर ने झाँझर की आवाज़ दबा
ओढ़नी से मुँह छुपा
चुपके से मिलने निकल पड़ी
मधुर स्वर राँझे का उभरा जब
खड़ा है दूर जो घरों के उस पार.........

तरही मुशायरे का इससे अच्‍छा आगाज़ कुछ नहीं हो सकता था । सुधा जी हिंदी की जिस प्रकार सेवा कर रहीं हैं वो अद्भुत हैं । उनके कार्यों को देखकर लगता है कि हां हिंदी की लड़ाई हम हारेंगें नहीं आखिर जीत हमारी ही होगी । आनंद लीजिये इस बहुत ही सुंदर कविता का । सभी गुरुजनों को पुन: पुन: प्रणाम ।

18 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. गुरुदेव प्रणाम...पंजाब की पहचान बन चुके इन प्रेमियों के माध्यम से सुधा जी ने उत्कृष्ट काव्य रचना की है...पढ़ते वक्त कविता की धारा में डूब जाने का मन करता है...
    आपने शिक्षक और गुरु की जो व्याख्या की है वो अद्भुत है...ऐसा विशलेषण ओशो की वाणी में ही सुना है...
    तरही मुशायरे का बेताबी से इतन्तेज़ार है...मिसरा बेहद खूबसूरत है...देखें हमारे नए उभरते शायरों ने क्या कहा है...मैं भी कोशिश करता हूँ अगर कुछ बन पड़ा तो एक आध दिन में भेजता हूँ...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  3. शिक्षक और गुरु का अंतर सही बताया गुरु जी...! और इतनी प्रतिष्ठित रचनाकार के साथ तरही का आगाज़...! उत्तम.... अति उत्तम..!

    जवाब देंहटाएं
  4. सुधा ओम धींगरा जी की इतनी मधुर प्यार के सब प्रतीकों को समर्पित कविता दिल के बहुत ही करीब से गुज़र जाती है ...........
    बहुत ही लाजवाब और खूबसूरत रचना.............

    गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मेरा भी प्रणाम, चरण स्पर्श सब गुरु जानो को..........

    जवाब देंहटाएं
  5. इस पावन अवसर पर सभी गुरुतुल्य जनों को नमन.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  6. सुबीर जी,
    आप ने मेरी कविता से तरही मुशायरा प्रारंभ किया, आभारी हूँ. सम्मान जो आपने दिया हक़दार नहीं हूँ, मालती दी, ममता दी और ज़हीर दी से तो मैंने लिखना सीखा है. एक तरह से वे मेरी गुरु हैं. गुरु पूर्णिमा पर मैं उन्हें प्रणाम करती हूँ पर उनके समानांतर नहीं खड़ी हो सकती. साहित्य सागर में वर्षों से डुबकियाँ लगा कर अभी भी घोघे , सिप्पियाँ ही मेरे हाथ लगे हैं-हीरे- जवाहरात कब मिलते हैं-या इस जन्म में मिल भी पाएँगे, नहीं कह सकती. आप की भावनायों की कद्र करती हूँ ,पर मैं तो स्वयं साहित्य सागर में तैरना सीख रही हूँ, पार कब उतरूंगी नहीं जानती. हिंदी साहित्य की विद्दार्थी हूँ और विद्दार्थी ही रहना चाहती हूँ.
    मेरी शुभ कामनाएँ आप के साथ हैं..
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  7. AAPNE TARAHEE MUSHAYRA KAA AAGAAZ
    HINDI KEE LOKPRIY KATHAKAR AUR
    KAVYITRI SUDHA OM DHINGRA KEE
    MUN MEIN UTAR JAANE WAALEE KAVITA
    SE KARKE EK ANOKHA HEE UDAHARAN
    HUM SAB KE SAMNE PRASTUT KIYAA HAI.
    SUDHAJEE AUR AAP DONO HEE BADHAAEE
    KE PAATR HAIN.

    जवाब देंहटाएं
  8. guru ki vastvikta ko aapne bhut sundar aurshi dhag se nirupit kiya hai .
    dhnywad

    जवाब देंहटाएं
  9. गुरु जी प्रणाम
    शिक्षक दिवस मनाते मानते आज का प्रबुद्ध वर्ग गुरु पूर्णिमा को भूल सा चूका है और ये भी बिलकुल सच है की आज गुरु का मिलना एक कठिन तपस्या के फल सा है जो हर किसी को सरल प्राप्तय नहीं है
    इस विषय में मैं तो अपने आपको बहुत भाग्शाली मानता हूँ :)

    कहानी के प्रति मेरी रूचि कहानी पढने तक ही सीमित है कभी कुछ लिखने का न प्रयास किया और न कभी इच्छा हुई आपके द्वारा बताये गए कहानीकारों में कमलेश्वर और मंटो को पढने का सौभाग्य मिल चुका है और भी बहुत से कहानीकारों को पढ़ा है, मुझे मोहन राकेश की लेखनी ने बहुत प्रभावित किया आपके रहस्यवाद की जितनी तारीफ करूं कम है
    सुधा ओम धींगरा जी का परिचय आपके द्वारा ही हो रहा है आपकी कविता विशेष पसंद आई,
    आपके द्वारा दिया गए मिश्रा की सुगंध पूरी कविता में बिखरी हुई है
    सुधा जी का मुशायरे में शिरकत करना बहुत हर्ष का विषय है

    नीरज जी से विशेष आग्रह है की गजल तरही मुशायरे में जरूर भेजें ...

    मुशायरे की अगली कड़ी के इंतज़ार में ......

    वीनस केसरी

    जवाब देंहटाएं
  10. तरही मुशायरे का प्रयोग बड़ा अच्छा है। सुधा जी की कविता मन को छू जाती है। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  11. गुरु देव को साक्षात् दंडवत प्रणाम,
    सबसे पहले तो गुरु पूर्णिमा पे आपका सादर चरण स्पर्श .. और इस मुक़द्दस मौके पे आपको बहोत बहोत बधाई.. अगर सच में कहूँ तो गुरु पूर्णिमा क्या होती है और किसे कहते है ये बात इस साल ही मैं जान पाया हूँ पहले जैसा के आपने कहा है के शिक्षक दिवस ही मनाता था और वहीँ तक सिमित था हलाकि ये बात जानने के बाद सभी को ताज्जुब होगा मगर जो सही है वो सही है और मैं खुशनसीब हूँ के मुझे आपका आर्शीवाद मिला रहा है और आपका शागिर्द बन पाने के लायक हो पाया अगर ऐसा भी है तो सिर्फ आपके मेहनत का ही फल है नहीं तो इस तो इस सुखी मिटटी को कौन गढ़ता.. आपके चरणों में रहना चाहता हूँ गुरु देव... और हाँ आज मैं ये खुलासा करता हूँ के आप की आवाज़ बहोत सुरीली है कल जिस तरह से आपने वो शे'र सुनाये मैं तो हतप्रभ हो गया था... पुरे सुर में आप रहते है ये सारी चीजे कैसे कर पाते है गुरु देव .... इसे कहते है बहुमुखिप्रतिभा... सच में .... चुकी अभी अभी मैं साहित्य जगत से मुखातिब हुआ हूँ और वो भी आपके ही जरिये , तो सुधा जी से मिल के और उनके बारे में जानकार बहोत अच्छा लगा और तरही की आगाज़ इंतनी बड़ी हस्ती से कराकर आपने सभी शिरकत करने वालों को एक आशर्वाद एक रूप में दिया है ...
    एक बार फिर से सादर चरण स्पर्श ....


    अर्श

    जवाब देंहटाएं
  12. आदरणीय सुधा जी ,

    मैंने कल ही आपकी कविता पढ़ ली थी .. पंजाब के प्रेम कवियों पर इतनी सुन्दर प्रस्तुती मैंने आज तक नहीं पढ़ी .... बस जैसे ही कमेन्ट देने गया .... मेरा लैपटॉप क्रेश हो गया ...अब ऑफिस के पीसी से मेल कर रहा हूँ.

    सुधा जी आपको पढना अपने आप में एक सुखद अनुभूति है ...मैं आपको और आपकी लेखनी को नमन करता हूँ..........

    प्रणाम

    विजय

    जवाब देंहटाएं
  13. aadarniy pankaj ji ko bhi mera pranaam itni sundar prastuthi ke liye...

    naman..

    जवाब देंहटाएं
  14. प्रणाम गुरु जी,
    तरही मुशायेरे का आगाज़ इतने पवन दिन और साहित्य की इतनी बड़ी हस्ती से हुआ है, तो इसका महत्त्व अपने आप में बहुत बढ़ गया है.

    जवाब देंहटाएं
  15. हम तो धन्य हैं गुरूदेव...जाने पिछले जन्म के किन पुण्यों का प्रताप है कि इस जन्म में आप जैसा गुरू मिला है।

    तरही की शुरूआत वाकई इससे बेहतर नहीं हो सकती थी। सुधा जी को पढ़ा है मैंने- खूब पढ़ा है।
    अहा...

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत सुन्दर कविता. इस कविता नें उस कैनवास को उजागर किया है जिसपर न जाने कितनी प्रेम कहानियां लिखी गयी हैं. सुधाजी की लेखनी एक के बाद एक ऐसी सुन्दर कविताएं हमको पढ़वाती रहे यही शुभकामना है.

    गुरुवर इस आयोजन के लिए आपको अनेक धन्यवाद्. आपने जो बातें कही हैं वे पढ़कर बहुत अच्छा लगा.

    जवाब देंहटाएं
  17. तमाम दुआओं और प्रार्थानओं के बाद व्यास जी का गुजर जान, हिंदी-साहित्य कुछ और खाली सा हो गया।

    जवाब देंहटाएं
  18. रात भर आवाज़ देता है कोई उस पार से .........

    इस पंक्ति को आगे बढाती हुई
    इस नज़्म .........
    नायाब नज़्म
    को बांचना जितना सरल और सुखद है
    इसे आंकना उतना ही कठिन और जटिल है

    डॉ० सुधा ओम ढींगरा ने इस नज़्म में अपने शैल्पिक कौशल
    के साथ साथ शब्द चयन और भाषाई सौन्दर्य को पूरी चमक-दमक
    सहित प्रस्तुत कर के सदैव की भान्ति
    एक बार पुनः प्रमाणित कर दिया है कि वे और उनका साहित्यिक
    अनुभव गज़ब का है ।

    यद्यपि अधिक ख्याति उनकी कथाकार के रूप में है ..लेकिन
    मेरे भीतर का पाठक कहता है कि काव्य पर भी उनका अधिकार
    उतना ही है जितना कि शिखर पर विराजमान हमारे चन्द बड़े और
    नामी कवि-शायरों का है ।

    सोहनी-महिवाल, हीर-राँझा, सस्सी-पुन्नू और मिर्ज़ा-साहिबा
    पर कितना कुछ लिखा और पढ़ा गया है परन्तु जिस एंगल से
    इन महान प्रेमियों को आदरणीय सुधाजी ने देखा है,
    वह ये दर्शाता है कि सम्वेदना का सागर जब स्वयं के भीतर से
    उमड़ता है तो वह बनावटी और ओढे हुए आडम्बरी दर्द के
    सारे साहिल लाँघ कर घर-घर पहुँच जाता है ...और इतिहास में
    एक किवदंती के रूप में दर्ज़ हो जाता है

    मैं किसी खास शब्द अथवा पंक्ति का ज़िक्र नहीं करना चाहता ।
    इसके दो कारण हैं ...पहला तो ये कि हर शब्द , हर पंक्ति अपनेआप
    में ख़ास है कोई खास पंक्ति खास नहीं है । दूसरा ये कि टिपण्णी
    को अधिक विस्तारना नहीं चाहता वरना बात बहुत दूर तक जायेगी ।
    कुल मिला के मैं अपने तहे-दिल से सुधाजी को तो मुबारकबाद
    देता ही हूँ, सुबीर जी को भी हार्दिक अभिनन्दन प्रेषित करता हूँ
    जिनके मध्यम से यह अद्भुत, अनुपम, अभिनव और अद्वितीय नज़्म
    पढने को मिली ...

    बधाई !
    बहुत बहुत बधाई !

    -अलबेला खत्री

    जवाब देंहटाएं

परिवार