बुधवार, 22 अक्तूबर 2008

आज बात करते हैं जुड़वां बहरों के बारे में और घोषित करते हैं दूसरे तरही मुशायरे की तारीख

mushaira

एम.पी.ई.बी. को हमारे शहर में म.प्र.विद्युत मंडल न कह कर मरा पड़ा विद्युत मंडल कहा जाता है । बिजली की स्थिति ये है कि कब आती है कब जाती है कुछ पता ही नहीं चलता है । ऐसे में क्‍या तो कम्‍प्‍यूटर चलायें और क्‍या ग़ज़ल की कक्षाये चलायें । खैर अब तो उम्‍मीद है कि कुछ समय के लिये बिजली आ गई है सो पहले ये काम ही कर लें कि ग़ज़ल की कक्षायें ही लगा लेते हैं ।

गाई जाने वाली बहरों को पहले तो केवल शायरातों ( महिलाओं) के लिये ही खास रखा जाता था किन्‍तु आजकल तो पुरुष भी अच्‍छा खासा नाजुक सा गा लेते हैं । सो अब गाई जाने वाली बहरों पर कई अच्‍छी ग़ज़लें लिखी जाने लगीं हैं । बहरे हजज एक ऐसी ही बहर है जिसमें कि कई सारी उप बहरें ऐसी हैं जो कि गाई जाने लायक बहरें हैं । बहरे हजज का सालिम रुक्‍न होता है 1222 मुफाईलुन । ये सालिम में भी गाई जाने वाली ही बहर होती है । मुसमन सालिम 1222-1222-1222-1222 पर तो खैर खूब गाया जाता है । काफी पुरानी धुन है इसकी और पहले के मुशायरों में शायरात इस धुन पर कुछ शेर ज़रूर पढ़तीं थीं । उसी धुन पर आज के कवि  कुमार विश्‍वास भी अपने सारे मुक्‍तक पढ़ते हैं । तो दरअस्‍ल में ये धुन तो बहुत पुरानी है जो लोग मुशायरों में जाते रहे हैं वो जानते होंगें कि हजज मुसमन सालिम को पढ़ने की धुन कितनी पुरानी है । समीर लाल जी की चिडि़या भी इसी धुन और बहर पर है । ( मेरी भी ये सबसे पसंदीदा बहर और धुन है मगर मैं इस पर ग़ज़ल ना लिखकर गीत लिखता हूं ) ।

हजज की एक और मुजाहिफ बहर है हजज मुसमन अखरब मकफूफ महजूफ  यें भी खूब गाई जाने वाली बहर है । झूम कर पढ़ने वाले शायर अक्‍सर इसका उपयोग खूब करते हैं । नीरज गोस्‍वामी जी ने भी इस पर कुछ अच्‍छी ग़ज़लें कहीं हैं । इसका वज्‍न है 221-1221-1221-122 या मफऊलु-मुफाईलु-मुफाईलु-फऊलुन ।  अब ये जो बहर है ये खूब गाई जाती है । पर कई बार ये अपनी जुड़वां बहर के साथ मिल जाती है । और इस प्रकार से कि पता ही नहीं चलता कब बहर बदल जाती है । हम एक शेर इस बहर का लेते हैं और दूसरा दूसरी का लेते हैं । गाने में भी इसलिये पता नहीं चलता कि दोनों की गाने की धुन भी एक ही है । मगर ये जो बहर है दूसरी वाली ये हजज  न होकर मुजारे  है । मुजारे एक मुरक्‍कब बहर है जबकि हजज मुफरद बहर है । मुजारे की जो बहर है उसका भी नाम कुछ वैसा ही है जैसा कि हजज का है बहरे मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ महजूफ । इसका वज्‍न है 221-2121-1221-212 या  मफऊलु-फाएलातु-मुफाईलु-फाएलुन । अब देखे तो पहला रुक्‍न तो दोनों में समान है पर दूसरा रुक्‍न जो कि हजज में 1221 था वो यहां पर 2121 हो गया है किन्‍तु मात्रायें उतनी ही हैं केवल पहली मात्रा दीर्घ हो गई है और दूसरी लघु । तीसरा रुक्‍न दोनों ही बहरों में समान है 1221 और चौथा रुक्‍न में एक बार फिर एक मात्रा का परिवर्तन है हजज में 122 है तो मुजारे में 212 है ।

हजज 221 1221 1221 122
मुजारे 221 2121 1221 212

उदाहरण : मेरे ही काम का है न दुनिया के काम का

उदाहरण :- इकबाल भी इकबाल से आगाह नहीं है

अब ये आपको पता करके बताना है कि कौन सा मिसरा कौन सी बहर का है ।

बहरे हजज और मुजारे में फर्क केवल दो ही रुक्‍नों में हो रहा है और वो भी मात्राओं के स्‍थान परिवर्तन का ही हो रहा है अत: पता ही नहीं चलता कि कुछ ग़लती हो गई । पर तकतीई करने पर पता चल जाता है ।

बहरे हजज की ये जो ऊपर दो उप बहरें बताई हैं ये गाने वाली बहरें हैं । हजज की गाने वाली एक और बहर है हजज मुसमन अशतर  जिसका वज्‍न है 212-1222-212-1222  या कि फाएलुन- मुफाईलुन-फाएलुन-मुफाईलनु ।  ये भी खूब गाई जाने वाली बहर है । इस पर भी खींच कर गाई जाने वाली धुन में कई शायर देर तक पढ़ते हैं ।

चलिये अब ये तो हो गई कक्षायें । अब बात करते हैं तरही मुशायरे की, माह अक्‍टूबर का तरही मुशायरा सोमवार 27 अकटूबर को आयोजित होने जा रहा है । ये दीपावली स्‍पेशल है अत: जिन लोगों ने जनता वाली ग़ज़ल भेज दी है वे दीवाली पर भी एक मिसरा और एक शेर या एक मुक्‍तक भेज दें । जिन लोगों ने अभी तक ग़ज़ल नहीं भेजी है वे तुरंत अपनी ग़ज़ल भेजें, या जो लोग पूर्व में भेज चुके हैं किन्‍तु कुछ और परिवर्तन करके नई ग़ज़ल भेजना चाहते हैं वे भी अपनी ग़ज़ल भेज दें । मिसरा 19 सितम्‍बर की कक्षा में दिया गया था । माडंसाब ने तय किया है कि हर माह एक ही तरही मुशायरा होगा । एक माह में दो करने में गुणवत्‍ता का अभाव नजर आ रहा था । माडंसाब का आग्रह है कि यद‍ि संभव हो तो अपनी ग़ज़ल के साथ अपना एक सुंदर सा चित्र कवि वाली वेशभूषा में भेज दें दीपावली का मुशायरा माड़साब धूमधाम से आयोजित करना चाहते हैं । और अपना परिचय अवश्‍य भेजें ताकि हर प्रस्‍तुति के साथ कम से कम कवि का परिचय भी दिया जा सके । परिचय में नाम व्‍यवसाय निवास स्‍थान दूरभाष नम्‍बर आदि में से जो जानकारी आप देना चाहते हैं दे दें ।

12 टिप्‍पणियां:

  1. चलिये, विद्युत मंडल ने इतनी कृपा तो की कि आप दिखे.

    बाकी क्लास अटेंड कर ली. सोमवार का इन्तजार है.

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  2. गुरु जी प्रणाम

    बहर निकली है

    इकबाल ही इकबाल से आगाह नही है
    221, 1221, 1221, 122 (हजज)

    मेरे ही काम का है न दुनिया के काम का
    221, 2121, 1221, 212 (मुजारे)


    क्लास में जो जानकारी मिली है ठीक से समझ लिया है
    आपके कहानुसार दीपावली की गजल और फोटो व परिचय मेल कर रहा हूँ

    आपका वीनस केसरी

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  3. सर एकदम कनफ़्युजिया गये हैं...फिर से पढ़ना पड़ेगा.मुझे ये तो मालुम है कि लता जी का वो विख्यात गाना "मिलती है जिंदगी में मुहब्बत कभी-कभी.." और गालिब का "कब से हूँ क्या बताऊँ जहाने खराब में.." जगजीत सिंह का गाया "ठुकराओ अब कि प्यार करो मैं नशे में हूँ..." इसी जुड़वें बहर पर है.
    लेकिन गुरू जी आपको मुरक्क्ब बहरों पे थोड़ा विस्तार से बताना पड़ेगा...

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  4. he bhagavaan fir se home work...?????

    guru ji dipawali par to ladkiyo.n ki chhutti kar dijiye...! amma bahut kaam karvaati hai tyauharo par...:) :)

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  5. नमस्कार गुरु जी,
    तकतई करने पर ये परिणाम आया है

    १- मेरे ही काम का है न दुनिया के काम का.
    २२१-२१२१-१२२१-२१२ (मुजारे)

    २- इकबाल ही इकबाल से आगाह नही है
    २२१-१२२१-१२२१-१२२ (हजज)

    आपका अनुज
    अंकित सफर

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  6. गुरू जी अंकित जी और वीनस जी ने तक्तई कर ही दी है.एक दुसरा शक कुलबुला रहा था.होमवर्क का जो शेर बना रहा हूँ,तो ये शक उभरा है.दीर्घ मीटर वाली गज़लों में दो आजाद लघु को मिला कर एक दीर्घ गिनने का जो प्रावधान आपने बताया है...तो क्या हम ये स्वतंत्रता भी ले सकते हैं कि किसी दीर्घ को पहले गिरा कर लघु बना लिया जाये फिर साथ में एक लघु रख कर--दोनों को एक दीर्घ गिना जाये जैसे कि " इस शहर में मेरा घर भी है" २२-२२-२२-२२ वाले इस मीटर में "शहर’ का ’र’ और "में" को गिराकर लघु बनाते हुये,क्या दोनों को एक दीर्घ गिना जा सकता है कि नहीं?
    मैंने कई गज़लों (कुछ बड़े शायरों की भी) में ऐसा घटित होते देखा है?

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  7. दीप मल्लिका दीपावली - आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं

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  8. अच्छा अब समझ में आया के ब्लॉग पर इतनी बहतरीन ग़ज़लों के पसमंज़र आख़िर है कौन. तो आप हैं जी. ये आपके शागिर्द श्रीमंत समीरलाल बड़े छुपे रुस्तम. मेरे पार्टनर होकर मुझे ही नहीं बतलाते थे के उस्ताद जी कहाँ पाए जाते हैं ? नीरज जी भी आपकी इस्लाह की तारीफ़ किया करते हैं जी. ठीक करते हैं. हमको भी शागिर्दी में ले लीजिये ना, कुछ ना कुछ काम तो आ ही जाएँगे. बहरहाल दीपावली की बहुत बहुत मुबारकबादियाँ आपको.

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  9. अच्छा अब समझ में आया के ब्लॉग पर इतनी बहतरीन ग़ज़लों के पसमंज़र आख़िर है कौन. तो आप हैं जी. ये आपके शागिर्द श्रीमंत समीरलाल बड़े छुपे रुस्तम. मेरे पार्टनर होकर मुझे ही नहीं बतलाते थे के उस्ताद जी कहाँ पाए जाते हैं ? नीरज जी भी आपकी इस्लाह की तारीफ़ किया करते हैं जी. ठीक करते हैं. हमको भी शागिर्दी में ले लीजिये ना, कुछ ना कुछ काम तो आ ही जाएँगे. बहरहाल दीपावली की बहुत बहुत मुबारकबादियाँ आपको.

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  10. दीवाली की हार्दिक बधाई गुरू जी.लगता है इस मरे-पड़े विद्युत-मंडल का कुछ करना पड़ेगा.अब तो आँखें पथरा गईं मुशायरे की प्रतिक्षा में

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  11. आप से आनुमति लेने के बाद मैं आपके पुराने ब्लॉग पर बहर सिखाने के लिए पढ़ रहा था मगर कुछ खास समाज नही पाया ,आपसे अपनी दुबिधा सही करना चाहता हूँ ,
    जैसे ......
    दुनिया नीर की बदली है तो नीरज गुरूजी है ...
    हमें सिखला रहे लेखन सुलभ धीरज गुरूजी है...

    इसमे बहर के लिए आपने जैसे शब्दों को तोडा है ... वो केसे तोड़ते है ........
    ललालाला, ललालाला ,ललालाला ,ललालाला

    के लिए कृपया मेरे शंका का समाधान करे सदा आभारी रहूँगा या इसी तरह आप अनुमति दे तो मैं आपको कॉल करू कृपया अपने हिसाब से मुझे टाइम देदें ..

    इंतजार में

    अर्श

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  12. गुरु जी प्रणाम
    यह जान कर खुशी हुई की आप हिन्दी युग्म पर फ़िर से लौट रहें है
    आशा करता हूँ की आपके शिष्य इस बार किसी तरह की उद्दंता नही करेगे और आप सदैव यह ज्ञान बाटते रहेंगे
    तरही मुशायरे के इंतज़ार में
    आपका वीनस केसरी

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