बुधवार, 8 अक्तूबर 2008

राकेश खण्‍डेलवाल जी के ये गीत आखिरकार अंधेरी रात का सूरज ही तो हैं

 

DSC00251 ''अंधेरी रात का सूरज'' ये नाम सुनने में कुछ अलग तरह की ध्वनि अवश्य देता है किन्तु ये कई कई अर्थों को समेटे हुए है । सूरज का वैसे तो सीधा संबंध दिवस से होता है पर यहां पर यदि रात और वो भी अंधेरी रात के संदर्भ में सूरज का उपयोग हो रहा है तो उसके पीछे भी एक गूढ़ अर्थ है। राकेश जी की कविताएँ हिन्दी गीत के स्वर्णिम काल की कविताएँ हैं, ऐसा लगता है मानो अतीत की धुंध में से कुछ आवाजें आ रहीं हैं, आवाजें जो सुनी हुई भी लगती हैं और परिचित भी लगती हैं, किन्तु अतीत की धुंध होने के कारण हम उनको चीन्ह नहीं पाते हैं । हमें लगता है कि अरे ! ये ध्वनियाँ तो पहले भी कहीं सुन चुके हैं, हम स्मृतियों के गलियारों में बैचेन होकर भटकने लगते हैं कि कहीं से तो कुछ सिरा मिले की ये आवाजें कहाँ से आ रहीं हैं । राकेश जी के गीत हमारी उंगली थाम कर ले जाते हैं हमें एक ऐसे स्वर्णिम संसार में जहाँ बच्चन जी हैं, नीरज जी हैं, सोम ठाकुर हैं, बालकवि बैरागी जी हैं और ऐसे ही कई दिग्गज गीतकार हैं । वे गीतकार जिन्होंने हिंदी कविता को और हिंदी के गीतों को जनमानस के अंदर इस तरह से पैठा दिया कि वे गीत, वे शब्द, वे विचार, वे भाव सब अमर हो गये । हम कसमसाते हैं और पूछते हैं अपने आप से कि क्या ये सब सचमुच ही अतीत हो गया ? क्या गीतों का स्वर्ण काल सचमुच बीत गया ? दोहराते हैं हम इन प्रश्नों को उस शून्य में, उस गहन अंधकार में, जहाँ से पुन: पुन: लौट कर आती है केवल हमारी ही आवाज, हमारा ही प्रश्न  और तब राकेश जी के गीत आते हैं, और कहते हैं हमसे, 'नहीं, गीत तो हिन्दी साहित्य का प्राण है वो कैसे समाप्त हो सकता है, कुछ बादलों के छा जाने का अर्थ ये नहीं होता कि उजाला सदैव के लिये समाप्त हो गया है ।'

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राकेश जी के गीत उस दौर के गीत नहीं है जब हिंदी साहित्य में गीतों के आकाश पर एक नहीं कई कई सूरज जगमगा रहे थे । राकेश जी के गीत उस दौर के गीत हैं जब गीतों के आकाश पर शून्य है, अंधकार है। और उस पर भी सबसे बड़ी बात ये है कि राकेश जी के गीत पूरी आभा लिये हुए हैं, वही आभा जो किसी भी बड़े गीतकार के गीतों में होती है । राकेश जी के गीत उस दौर के गीत हैं जब गीतों को समाप्त हुआ मान लिया जा रहा है। उस देश में जहां गीतों के साथ परम्परा जुड़ी हैं, जहाँ जीवन के हर पड़ाव पर गीत हैं, जन्मते समय, विवाह के समय और अंतिम विदा के समय भी । हम गीतों को अपने आप से अलग करने का सोच भी नहीं सकते, पर ऐसा हो तो रहा है । धीरे धीरे एक अंधकार हमारे साहित्य की सभी परम्पराओं को लील रहा है । वे परम्पराएँ जो दुनिया भर में श्रेष्ठ मानी गईं । हमारे छंद शास्त्र से अपना व्याकरण बनाने वाले आज हमें कविता सिखा रहे हैं, और हम सीखने के लिये कतार में लगे भी हुए हैं, अपने गौरवशाली अतीत को विस्मृत करते हुए । तब उस समय में राकेश जी के गीत आते हैं और उन गीतों को सुन कर हमें ज्ञात होता है कि ''तमसो मा ज्‍योतिर्गमय'' का अर्थ क्या होता है । ये गीत हिंदी गीतों के स्वर्णिम दिनों के गीत नहीं हैं, ये तो अंधकार में आए हैं, उस अंधकार में जब कहीं कोई सूरज नहीं, कोई चंद्रमा नहीं, कोई तारा भी नहीं । उस दौर में आए हुए ये गीत आखिरकार अंधेरी रात का सूरज ही तो हैं । और इसीलिये इस संग्रह का नाम अंधेरी रात का सूरज नहीं होता तो क्या होता । ये गीत लिखने के लिये नहीं लिखे गये हैं, ये तो आत्मा के गीत हैं, जिनको सुनने के लिये कान नहीं आत्मा ही चाहिये।

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राकेश जी के गीतों के बारे में लिखने के लिये मैं विनम्रता के साथ स्वीकार करता हूं कि मेरे शब्दकोश की निर्धनता साफ दिखाई देने लगती है । फिर भी ये एक प्रकाशक की हैसियत से मैं ये जरूर कहना चाहूंगा कि शिवना प्रकाशन की परम्परा रही है साहित्य की उन विधाओं का पोषण करना जिन पर संकट है । राकेश जी का साहित्य भी वही तो कर रहा है, साहित्य की उस विधा को बचाने की कोशिश जो लुप्त होने की कगार पर है । इस मायने में देखा जाये तो राकेश जी और शिवना का ये संगम वास्तव में गंगा और यमुना का ही संगम है । राकेश जी के काव्य संग्रह का प्रकाशन शिवना प्रकाशन के लिये भी एक महत्वपूर्ण पड़ाव है । ये शिवना के सात समुंदर पार जाने का प्रयास है आशा है राकेश जी का ये संग्रह उनके गीतों की ही तरह पाठकों के मानस पटल पर अंकित हो जायेगा । राकेश जी को शुभकामनाएँ ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. राकेश जी के बारे में जो कुछ भी आपने लिखा है वो बिल्‍कुल सही है । राकेश जी समचुच ही नीरज जी और बैरागी जी की परम्‍परा के गीतकार है और उस शैली के गीतकार है जो शैली आज विलुप्‍त प्राय है ।

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  2. राकेश जी को निकट से जानने और उन के साथ कविता पाठ करने का सौभाग्य रहा है । अक्सर उन की अनूठी उपमाएं और बिम्बों का चयन चकित कर देता है ।
    कभी कभी आश्चर्य होता है कि इतने अद्बुभुद गीतों का रचेता अभी तक लगभग गुमनामी के अंधेरे में कैसे रहा ? बिना किसी संकोच के कह सकता हूँ कि राकेश जी न केवल अमेरिका के बल्कि विश्व के किसी भी कोने से चुने गये सर्वश्रेष्ठ कवियों में से है ।
    आशा है उन का यह संग्रह उन्हें ऐसे असंख्य काव्य प्रेमियों से परिचित करायेगा जो अब तक उन की कविता की अमृत धारा से वंचित हैं ।
    समस्त शुभकामनाओं के साथ ..

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  3. राकेश जी शब्दों को पहले आत्मतप में तपाते हैं, फिर नये-नये सांचों में ढाल देते हैं। कभी मेघदूत जैसे लगते हैं, पत्रों को पंजीकरण कराते हैं; कभी मन की आवाज बन दस्तावेज लिख जाते हैं!
    उनकी इस पुस्तक का बेसब्री से इंतजार है ।
    आशा करती हूँ कि सुबीर जी आप री-प्रिन्ट कराते-कराते थक जायें, पर इनकी माँग हमेशा बनी रहे! हार्दिक शुभकमनाओं सहित,
    शार्दुला

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  4. राकेश जी के कविता संग्रह का इंतज़ार रहेगा

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  5. बहुत अच्छा आलेख है गुरूदेव। पुस्तक का मूल्य एवं डाक-व्यय संबंधी जानकारी भी उपब्ध करायें। हमारे लिये एक प्रति सुरक्षित की जाए।

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  6. ...गुरू जी आने वाले "डी-डे" की हार्दिक शुभकामनायें...

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  7. बेशक...
    अद्भुत गीतकार हैं राकेश जी..
    संवेदी रचनाशीलता के साक्षात प्रतीक..
    सुबीर जी आपको और उनको ढेरों बधाई..

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