शुक्रवार, 10 मार्च 2017

होली के रंगों में रँगा हुआ यह तरही मुशायरा आइए आज पाँच शायरों की ग़ज़लें सुनते हैं धर्मेन्द्र कुमार सिंह, दिगम्बर नासवा, गुरप्रीत सिंह, नकुल गौतम और जनाब शेख़ चिल्ली।

मित्रों होली तो उमगने का त्योहार है। अंदर से उमड़ जाए तो होली हो जाती है। इसमें कहीं कोई अलग से व्यवस्था करने की आवश्यकता नहीं होती है। जो हो जाए वो होली होती है। मौसम कुछ बेईमानी करने लगता है, कुछ अपने ही अंदर से शरारत उपजने लगती है और होली हो जाती है। होली असल में एक ऐसा त्योहार है जो हमारी बैटरी को रीचार्ज करता है। साल भर में एक बार अपनी बैटरी को रीचार्ज कर लो और उसके बाद साल भर गन्नाते रहो। कभी-कभी मुझे लगता है कि कितना बुरा किया है हमने जो होली को एक धर्म विशेष के साथ ही जोड़ दिया, जबकि इसमें धार्मिकता-वार्मिकता जैसा कुछ नहीं है, यह तो विशुद्ध आनंद का अवसर होता है। खैर…..

Holi

आओ रँग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में

इस बार तो ऐसा लग रहा है कि चुनौती की स्वीकार कर सभी ने बहुत मेहनत के साथ ग़ज़लें कही हैं। असल में कठिन कार्य करना ही तो हमें अपने आप को कसौटी पर कसने का अवसर देता है, सरल कार्य का क्या है वह तो हो ही जाता है। इसीलिए इस बार का मिसरा जान बूझ कर कुछ कठिन रखा था। कठिन था क़ा​फियाबंदी में। मगर लगता है कि लोगों ने उसे भी आसान बना दिया और सहजता के साथ अपनी ग़ज़लें कह डालीं। आज पाँच शायरों की ग़ज़लें सुनते हैं धर्मेन्द्र कुमार सिंह, दिगम्बर नासवा, गुरप्रीत सिंह, नकुल गौतम और जनाब शेख़ चिल्ली। शेख़ चिल्ली साहब अपनी पहचान नहीं उजागर करना चाह रहे हैं। कोई बात नहीं।

Holi-Celebration-In-Gujrat-Photos-2

dharmendra kuma (1)

धर्मेन्द्र कुमार सिंह

एक दूजे को रँग दें नये रंग में
तुम गुलाबी रँगो हम हरे रंग में

आओ ऐसे मिलें एक दूजे से हम
रंग जैसे मिले दूसरे रंग में

गाल पर प्राइमर ये गुलाबी कहे
अब तो रंग दो पिया प्रीत के रंग में

रंग ये चढ़ गया तो न उतरेगा फिर
आओ रँग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में

रंग फीके पड़ें जाति के धर्म के
ये ज़मीं खिल उठे प्रेम के रंग में

तितलियाँ भूल जाएँगी इसका पता
मत रँगो फूल को यूँ नये रंग में

एक झंडे में हँसते हैं भगवा, हरा
बात कुछ तो है इस तीसरे रंग में

सोचिए देश कैसा लगेगा, अगर
रँग दें सब को अगर एक से रंग में

मतले में कई बार रंग शब्द आकर जिस प्रकार से उसका सौंदर्य बढ़ा रहा है उसके कारण मतला ज़बरदस्त बन पड़ा है, गुलाबी और हरे रंग के प्रतीकों को उपयोग खूब हुआ है। एक दूसरे से मिलने के लिए अगले ही शेर में एक रंग के दूसरे रंग में रंगने का प्रयोग प्रेम से लेकर देश तक सबके लिए सामयिक बना है। गाल के गुलाबी प्राइमर के बाद पिया से अनुरोध के प्रीत के रंग में रँग दो वाह क्या बात है। अगले ही शेर में गिरह का शेर एक दावे के साथ आया है कि हमारे रंग में रँग जाओगे तो यह रंग फिर उतरने वाला नहीं है। एक झंडे में हँसते हैं भगवा हरा में सफेद रंग का महत्तव किस सुंदरता के साथ बखान किया गया है बिना उसका नाम लिए, यह ही कविता होती है। जब बिना नाम लिए कुछ कह दिया जाए और समझने वाले समझ भी जाएँ। और अंत का शेर एक प्रार्थना एक दुआ की तरह आता है। आमीन कहना तो बनता है। बहुत ही सुंदर गज़ल। वाह वाह वाह क्या बात है।

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दिगम्बर नासवा

अपने मन मोहने साँवले रंग में
श्याम रँग दो हमें साँवरे रंग में

में ही अग्नि हूँ जल पृथ्वी वायु पवन
आत्मा है अजर सब मेरे रंग में

ओढ़ कर फिर बसंती सा चोला चलो
आज धरती को रँग दें नए रंग में

थर-थराते लबों पर सुलगती हँसी
आओ रँग दें तुम्हें इश्क के रंग में

आसमानी दुपट्टा छलकते नयन
सब ही मदहोश हैं मद भरे रंग में

रंग भगवे में रँगता हूँ दाढ़ी तेरी
तुम भी चोटी को रँग दो हरे रंग में

जाम दो अब के दे दो ज़हर साकिया 
रँग चुके हैं यहाँ सब तेरे रंग में

मतला साँवले और साँवरे को बहुत ख़ूबसूरती के साथ प्रयोग करता है। और उसमें मन मोहने का उपयोग तो कृष्णमय कर देता है। और अगले ही शेर में धर्म से सीधे आध्यात्म की ओर ग़ज़ल बढ़ जाती है। प्रेम के कृष्ण से गीता के कृष्ण की ओर। पंच तत्वों को मात्रा के हिसाब से खूब बिठाया है। और अगला शेर एकदम देश, समाज और विश्व के कल्याण हेतु वसंती रंग का आह्वान करता हुआ आता है। बहुत खूब। गिरह का शेर विशुद्ध प्रेम का शेर, प्रेम की वह भावना जो अपने रंग में रँगने को आतुर है उसका बहुत खूब चित्रण किया गया है। रंग भगवे में रँगता हूँ दाढ़ी तेरी में रंगों के माध्यम से कितनी बड़ी बात कह दी गई है। आचार्य रामधारी सिंह दिनकर की याद आ गई, जिन्होंने कहीं लिखा था कि यह दोनों रंग ठीक से मिल जाएँ तो दुनिया पर राज करेंगे। और अंत का शेर भी अच्छा बना है सब रंग ही गए तो अब क्या फ़र्क पड़ता है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह क्या बात है।

Gurpreet singh

गुरप्रीत सिंह

कोई जादू तो था सांवले रंग में
राधिका रँग गई श्याम के रंग में

क्या धरा लाल पीले हरे रंग में
आओ रँग दें तुम्हें इश्क के रंग में

थी इनायत बड़ी धूप के रंग में
रंग दिखने लगे बूंद बेरंग में

कौन सा रंग तूने  लगाया मूझे
दाग लेकिन पड़े कौन से  रंग में

कैनवस पर न  क्यों जी उठे जिंदगी
ब्रश चलाता है वो डूब के रंग में

चढ़ गया रंग जिन पे मुहब्बत का वो
जी गए रंग में मर गए रंग में

रंगे जाने के साथ अब महक भी उठूं
थोड़ी खुशबू सनम घोल दे रंग में

भंवरे परवाने दोनों को न्यौता मिला
पर गया एक ही दावते रंग में

कत्ल जब भी हुआ है मेरे ख्वाब का
अश्क बहने लगे सुर्ख से रंग में

मतला वहीं से शुरू हो रहा है जहाँ से इस बार अधिकांश ग़ज़लें प्रारंभ हो रही हैं। लेकिन उसी बात को कुछ अलग अंदाज़ से कहा गया है। उसके ठीक बाद हुस्ने मतला में कमाल की गिरह बाँधी गई, सचमुच इन सारे रंगों में होता क्या है, जो होता है वह तो इश्क़ के रंग में ही होता है। और उसके बाद बूंद में प्रकाश के सातों रंगों का इन्द्रधनुषी चित्र क्या कमाल का खींचा गया है। वाह क्या बात है। कौन सा रंग तूने लगाया शेर बहुत गहरे अर्थ लिए हुए है, सचमुच जो परिणाम होता है वह अक्सर वैसा नहीं होता जैसी क्रिया की गई थी, बहुत खूब। कैनवस पर रंगों का जी उठना और डूब के रंग में ब्रश चलाना वाह क्या बात है, अलग तरीके से कही गई बात। चढ़ गया रंग शेर में मिसरा सानी बहुत अच्छा बन पड़ा है, मुहब्बत यही तो होती है जिसमें आदमी जीता भी है और मर भी जाता है। रंग में खूशबू घोलने का शेर और सुर्ख से रंग में अश्क बहने का शेर भी सुंदर बना है। वाह वाह वाह क्या बात है कमाल की ग़ज़ल।

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नकुल गौतम

फ्रेम कर लें सजा कर लम्हे रंग में
खेलें होली चलो इक नए रंग में

हो गयी है पुरानी मुहब्बत मगर
हैं ये किस्से नये के नये रंग में

धूप सेंकें पहाड़ों की मुद्दत के बाद
कर लें माज़ी नया धूप के रंग में

उस पहाड़ी पे कैफ़े खुला है नया
चल मुहब्बत पियें चाय के रंग में

एक भँवरे ने बोसा लिया फूल का
झूम उठी डालियाँ मद भरे रंग में

प्रिज़्म शरमा न जाये तुझे देख कर
रंग मुझको दिखें सब तेरे रंग में

जब से बूढ़ी हुई, हो गयी तू खड़ूस
डेट पर ले चलूँ क्या तुझे रंग में

चल पकौड़े खिलाऊँ तुझे मॉल पर
औ' पुदीने की चटनी हरे रंग में

आज बच्चों ने ऐसे रँगा है मुझे
घोल कर हैं जवानी गए रंग में

हम गली पर टिकाये हुए थे नज़र
और बच्चे थे छत पर डटे रंग में

छोड़ बच्चे गये अपनी पिचकारियाँ
मेरा बचपन दिखाया मुझे रंग में

एक दिन के लिए छोड़ भी दो किचन
"आओ रँग दूँ तुम्हे इश्क़ के रंग में"

मतले में नास्टेल्जिक प्रयोग के साथ अच्छा चित्रण किया है। और पहाड़ी को लेकर जो दो कमाल के शेर बने हैं उनका तो कहना ही क्या है। पहले शेर में माज़ी को धूप सेंक कर नया करने का अनूठा प्रयोग किया गया है। ग़ज़ब। और अगले शेर में तो यह कमाल आगे बढ़ गया है पहाड़ी पर बने कैफे में मुहब्बत को चाय के रंग में पीना, वाह यह हुआ है कोई शेर। कमाल। यही वो प्रयोग हैं जो आज की ग़ज़ल को करने ही होंगे यदि हम इनको नये रंग देना चाहते हैं तो। ग़ज़ल में एकदम से रंग बदलता है और हजल के शेर आ जाते हैं, जो बहुत ही मासूमियत के साथ कहे गए हैं बुढ़ापे की खड़ूसियत को दूर करने हेतु डेट पर ले चलने का मासूम से प्रस्तव गुदगुदा देता है। और उसके बाद एक और मासूम सी इल्तिजा जिसमें शिमला के प्रसिद्ध मॉल पर पकौड़े खिलाने की चाह व्यक्त की गइ है। वाह क्या बात है। और अंतिम शेर तो उफ उफ टाइप बना है। कितनी मासूमियत के साथ निवेदन है। वाह वाह वाह क्या बात है सुंदर ग़ज़ल।

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शेख़ चिल्ली

इंटरनेट पर घूमते हुए होली की बातें पढ़ते हुए आपके ब्लॉग तक पहुंचा। देखा की तरही का मिसरा दिया गया है।
तो कुछ मिसरे हमारे भी हो गए। अगर अपनी पहचान बताना ज़ुरूरी न हो तो मेरी भी एक ग़ज़ल देखिये। अगर ठीक लगे तो औरों को भी पढ़वाईए। मेरी पहचान यह है कि मैं अपने हिसाब से एक शायर हूँ। इसे आप शेख़ चिल्ली का ख़्वाब मान लीजिये, जो दिन में देखता हूँ।

लोग सब कंस होने लगे रंग में
खेलें होली कहाँ कृष्ण के रंग में

आज मथुरा भी बिज़नस का गढ़ हो चला
राजनीति बनारस करे रंग में

तोड़ कर मटकियों से चुरायेंगे क्या
दूध-घी यूरिया के बुरे रंग में

घोर कलयुग है आया, कसम राम जी
कैसे कैसे रसायन घुले रंग में

बांसुरी भी पुरानी हुई अब तेरी
राधिका भी तो डी. जे. सुने रंग में

कृष्ण बोले सुदामा से घबराओ मत
जो भी है सब रँगा है मेरे रंग में

आओ अब इक गिरह भी लगा लें ज़रा
"आओ रँग दूँ तुम्हे इश्क़ के रंग में"

शेख़ चिल्ली ये बातें बुरी हैं मगर
क्या हकीकत नहीं है मेरे रंग में?

अपनी पहचान का छिपा कर शेख़ चिल्ली साहब ग़ज़ल लाए हैं। ख़ैर इस ब्लॉग मंच पर तो सबका खुले दिल से स्वागत होता है। मतला ही बहुत अच्छे से बनाया गया है। सचमुच कंसों के दौर में कृष्ण वाली होली भला कैसे खेली जाए। शेख़ चिल्ली साहब शायद उत्तर प्रदेश से हैं तभी तो अगले शेर में दो प्रमुख धार्मिक नगरों की व्यथा को इतनी बख़ूबी व्यक्त किया है। और उसके बाद यूरिया से बने हुए दूध और मटकियों को तोड़ने की कहानी, यह शेर बहुत ही अच्छा बना है।  अगले शेर में जो टुकड़ा आनंद दे रहा है वह है कसम राम जी, मिसरे में टुकड़े यदि ठीक लग जाएँ तो इसी प्रकार आनंद देते हैं। बाँसुरी और डीजे के बीच समय के परिवर्तन की पड़ताल करता अगला ही शेर खूब कटाक्ष करता है समय पर। गिरह का शेर बिल्कुल ही नए तरीके से बाँधा गया है। प्रयोगधर्मी होना ही साहित्यकार को जिंदा रखता है। और मकते का शेर बहुत मासूमियत से एक तल्ख़ सवाल करता है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात है, वाह वाह वाह।

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वाह वाह क्या बात है, आज तो पाँचों ही शायरों ने जलवा खींच दिया है। एक से बढ़कर एक शेर कहे हैं। अलग-अलग अंदाज़ में अपने-अपने तरीक़े से। आप लोगों के पास दिल खोलकर दाद देने के अलावा और अब चारा ही क्या है। तो दीजिए दाद ग़ज़ल की इस नई पीढ़ी को। और करते रहिए इंतज़ार।

51 टिप्‍पणियां:

  1. आहा ... आज तो मजा आ गया ... कितने मंझे हुए शायरों को पढने का सौभाग्य मिल रहा है ...
    धर्मेन्द्र जी ने तो मतले के शेर में ही गुलाबी और हरे की शुरुआत कर दी ... फिर प्रीत के रंग, इश्क के रंग और प्रेम के रंग .... कितने ही गुदगुदाने वाले शेर निकले हैं उनकी कलम से ... एक झंडे में रंगते हैं भगवा हरा ... कितनी जबरदस्त बात कह दी ... काश हर कोई एक ही तीसरे रंग में रँग सके ... और आखरी शेर में ये कल्पना साकार करने का स्वप्न ... बहुत लाजवाब ग़ज़ल है जिंदाबाद धर्मेन्द्र जी ...

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  2. गुरप्रीत जी के मतले ने ही होली को पावन बना दिया कृष्ण राधा के संग ...
    अगले ही शेर में जीवन का महत्त्व बता दिया ... सच है प्रीत के रंग में रंगने के बाद दूजे रंग की क्या बात की जाय ... ये भी सच है की जिसपे मुहब्बत का रंग चढ़ जाए उसपे कोई रंग नहीं चढ़ता ... गज़ब का शेर है ... भँवरे और परवाने एक ही दावत में ... क्या सोच है इस शेर में ... बहुत खूब ... जलावाब ग़ज़ल ...

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दिगम्बर नासवा जी

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  3. नकुल जी की ग़ज़ल तो सच में कमाल कर रही है ... भाषा की सीमाओं को लांघते हुए आज की ग़ज़ल शायद यही है ... हर शेर काबिले तारीफ़ है ... होली के लम्हों को फ्रेम करने की चाह ... फिर पुरानी मुहब्बत और नयी होली का रंग .. किस्से तो नए बनने ही हैं ... पहाड़ी पे कैफे वाला शेर और प्रिज्म वाला शेर बहुत ही अलग अंदाज़ का है ... जिंदाबाद नकुल जी ... डेट पर ले जाने वाला शेर और गिरह का आखरी शेर तो जान है आज के मुशायरे की ... तालियाँ तालियाँ तालियाँ ...

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  4. शेख जी ने तो सच में शायराना अंदाज में गज़ब क शेर कहे हैं आज के माहोल, राजनीति और समाज पर ... गहरा कटाक्ष हैं उनका हर शेर ... जियो शेख साहब .... मतले से ही साफ़ है और सच है कंस के रंग में रँग रहे हैं सब ...फिर मथुरा, बनारस, यूरिया, रसायन ... गज़ब के शेर हैं सभी ... फिर एक शेर में कृष्ण सुदामा को ढाढस बंधाते हुए दिख रहे हैं ... और आखरी शेर में जो लिखा है ... शैख़ जी आपके बाते बिलकुल बुरी नहीं हैं ... हकीकत ही हैं ... जय हो जय हो जय हो ... शेख जी जिंदाबाद ....

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  5. आज हम तरही में एक और सीढ़ी चढ़ कर कुछ और नज़ारे ले रहे हैं।

    धर्मेन्द्र जी ने मतले में मुहब्बत के रंगों का ज़िक्र किया है। बहुत ही रोमांटिक मतला हुआ है, और अगला शेर् भी।
    गिरह के साथ मुहब्बत का रंग कभी न उतरने की तसल्ली दी गयी है। क्या कहने

    आदरणीय दिगम्बर sir के मतले से ग़ज़ल श्याम के रंग में रंग जाती है। होली पर कृष्णमय होती यह ग़ज़ल अगले शेर् में आत्मा और पञ्च तत्वों के रंगों की बात करती है।
    बहुत आध्यात्मिक शेर् हुआ है। आसमानी दुपट्टे में कल्पना करते हुए ही पाठक रोमांटिक हुआ जाता है। इसे हम राधा का दुपट्टा भी देख सकते है, जो कान्हा के साथ सभी ग्वालों को मदभरे रंग में रंग देती है। क्या कहने।

    गुरप्रीत जी की ग़ज़ल भी होली के अनुरूप राधे कृष्ण के रंग में रंगे मतले से शुरूअ होती है।
    अगला ही शेर् गिरह में इश्क़ को सब रंगों से श्रेष्ठ दर्शाता है। क्या बात है।
    इससे अगला शेर् बहुत उम्दा शेर् हुआ है। हम जो प्लान करते हैं, वैसा न होकर कुछ अलग होता है। क्या बात है।
    भई वाह। बहुत खूब।


    शेख़ चिल्ली जी की हलचल आजकल कुछ वेबसाइट्स पर देख रहा हूँ। बहुत कमाल के शायर मालूम होते हैं।
    इस तरही में इन्होंने नया रंग दिखाया संजीदा ग़ज़ल कह कर।
    आज के दौर को आइना दिखाती हुई ग़ज़ल।
    भई वाह।


    सादर
    नकुल

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  6. धर्मेंद्र जी को जब से पहली बार पढा है तभी से मै उनकी लेखनी का कायल हूँ और इस गज़ल में भी उन्होंने बाखूबी अपना रंग बिखेरा है अपना जलवा बिखेरा है.

    आओ ऐसे मिलें एक दूजे से हम
    रंग जैसे मिले दूसरे रंग में
    वाह वाह क्या शेअर है

    तितलियाँ भूल जाएँगी इसका पता
    मत रँगो फूल को यूँ नये रंग में

    एक झंडे में हँसते हैं भगवा, हरा
    बात कुछ तो है इस तीसरे रंग में

    ये शेअर भी बहुत ज्यादा पसंद आए.

    जवाब देंहटाएं
  7. दिगम्बर जी ने बहुत शानदार गज़ल कही है. इनको शायद आसमानी दुपट्टे से कुछ ज्यादा ही लगाव है.दिवाली की तरही में भी इन्होने आसमानी दुपट्टे पर एक शेअर कहा था और इस बार भी नही चुके...हूँ...कुछ तो बात है..


    अपने मन मोहने साँवले रंग में
    श्याम रँग दो हमें साँवरे रंग में
    सांवले और सांवरे वाह वाह क्या बात है.

    मैं ही अग्नि हूँ जल पृथ्वी वायु पवन
    आत्मा है अजर सब मेरे रंग में

    रंग भगवे में रँगता हूँ दाढ़ी तेरी
    तुम भी चोटी को रँग दो हरे रंग में

    जाम दो अब के दे दो ज़हर साकिया
    रँग चुके हैं यहाँ सब तेरे रंग में

    बहुत पसंद आए ये शेअर

    जवाब देंहटाएं
  8. नकुल जी ने इस गज़ल में कुछ ऐसे शेर कहे हैं कि मैं उनका फैन हो गया हूँ..मतले से शानदार शुरुआत की है.


    फ्रेम कर लें सजा कर लम्हे रंग में
    खेलें होली चलो इक नए रंग में

    उस पहाड़ी पे कैफ़े खुला है नया
    चल मुहब्बत पियें चाय के रंग में

    प्रिज़्म शरमा न जाये तुझे देख कर
    रंग मुझको दिखें सब तेरे रंग में

    चल पकौड़े खिलाऊँ तुझे मॉल पर
    औ' पुदीने की चटनी हरे रंग में

    एक दिन के लिए छोड़ भी दो किचन
    "आओ रँग दूँ तुम्हे इश्क़ के रंग में"

    क्या शानदार शेअर है सभी के सभी

    जवाब देंहटाएं
  9. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  10. शेख चिल्जी ली की गज़ल भी कमाल की है.बहुत अच्छे शेर निकाले हैं सभी.दूध और रंगों में मिलावट वाले शेअर बहुत पसंद आए. और क्या कमाल की गिरह वाह वाह

    आज मथुरा भी बिज़नस का गढ़ हो चला
    राजनीति बनारस करे रंग में

    तोड़ कर मटकियों से चुरायेंगे क्या
    दूध-घी यूरिया के बुरे रंग में

    घोर कलयुग है आया, कसम राम जी
    कैसे कैसे रसायन घुले रंग में

    आओ अब इक गिरह भी लगा लें ज़रा
    "आओ रँग दूँ तुम्हे इश्क़ के रंग में"

    बहुत कमाल के अशआर सभी के सभी

    जवाब देंहटाएं
  11. भाई धर्मेन्‍द्र कुमार ने तरही मिसरा बहुत खूबसूरती से बॉंधा है। रंग फीके पड़ें की भावना, तितलियों का पता भूलना, झेडे का तीसरा रंग और सबका एक रंग में रंगना- वाह्ह। वाह्ह।
    दिगम्‍बर भाई का एक ही शब्‍द के प्रचलित रूपों सॉंवले और सॉंवरे रंग के माध्‍यम से मत्‍ला बॉंधना, दूसरे शेर में आघ्‍यात्मिक पक्ष, तीसरे शेर में क्रॉंति का प्रतीक बसंती चोला, गिरह के शेर में प्रणय वेला और आसमानी दुपट्टा; क्‍या बात है। रंग भगवे में के शेर का गंगा जमुनी रूप। वाह्ह वाह्ह।
    होली के अवसर पर कृष्‍ण-राधा का जि़क्र न हो यह हो ही नहीं सकता। भाई गुरप्रीत के मत्‍ले से दूसरे शेर में बहुत खूबसूरती से गिरह लगाई गई है। तीसरे शेर में पानी की बूँद से इन्‍द्रधनुषी प्रभाव और बाद के भी सभी शेर बहुत खूबसूरती से बॉंधे गये हैं। ग़ज़ल को दिया गया समय स्‍पष्‍ट है। वाह्ह, वाह्ह।
    नकुल की ग़ज़ल में खा़स बात यह है कि पूरी ग़ज़ल दो स्‍पष्‍ट रंगों में है। रदीफ़ तो रंग में है ही लेकिन शायर की कहन में एक ही ज़मीन में एकाधिक रंग होना एक अलग ही प्रभाव छोड़ता है। वाह्ह, वाह्ह।
    शेख चिल्‍ली भाई, कमाल का मत्‍ला है। यथार्थ है, कड़वा सच है। पॉाच शेर के यथार्थ से एकाएक करवट बदल कर अध्‍यात्‍म का रंग, गिरह की सहजता के बाद आखिरी शेर का जवाब यह कि ''जी हॉं', यही हकीकत है आपके रंग में। वाह्ह, वाह्ह।

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    उत्तर
    1. तिलक राज की की कलाम से प्रशंसा पास के बहुत गौरान्वित महसूस कर रहा हूँ ... आभार है उनका ...

      हटाएं
    2. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय तिलकराज जी

      हटाएं
  12. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-03-2017) को
    "आओजम कर खेलें होली" (चर्चा अंक-2604)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

    जवाब देंहटाएं
  13. भाई धर्मेन्द्र कुमार जी भाई दिगम्बर नासवा जी गुरप्रीत जी और नकुल जी की खूबसूरत ग़ज़लों के हर शेर में रंगों का कमाल अपने भरपूर धमाल में दिलो-दिमाग पर जादू बिखेर रहा है| शेख चिल्ली साहब के तो कहने ही क्या ! उनका रंग महाकवि भभ्भड़ भौचक्के के ख़ूबसूरत रंगों की याद दिला रहा है यह मेरा अनुमान है| बहुत ही उम्दा रंग बरस रहे हैं|

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  14. सभी शायरों को उम्दा कलाम के लिए तहे दिल से ढेरों दाद|

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  15. मैं कल व्यस्त होने की वजह से टिप्पणी नहीं कर सका। धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी, दिगम्बर नासवा जी , गुरप्रीत सिंह जी, नकुल गौतम जी, शेख चिल्ली जी , सबने अपनी अपनी तरह से बहुत खूब ग़ज़लें पेश की हैं ।

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  16. धरमेंन्द्र की ग़ज़ल में
    तितलियाँ भूल जायेंगी ------------------------
    सोचिये देश--

    बहुत ख़ूबसूरत.

    जवाब देंहटाएं
  17. दिगम्बरजी की ग़ज़ल में एक जगह मुझे व्यवधान दृष्टिगोचर हुआ
    मैं ही अग्नि हूँ जल पृथ्वी वायु पवन – ----
    यहाँ पुनरावृत्ति है | मेरे अनुमान से यह टंकण की असावधानी से हो सकता है

    मैं ही हूँ अग्नि, जल, पृथ्वी, नभ औ’ पवन


    शेष सभी शेर जानदार हैं. साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका कहना बिलकुल ... दुरुस्त व्यवधान तो है ... वायु पवन एक ही हैं ... आपने इस पंक्ति को आकार दे दिया ... आभार राकेश जी ...

      हटाएं
  18. मतले में सांवरे और श्याम का जोड़ ख़ूबसूरत है साथ ही थी इनायत बड़ी धुप के रंग में –लाजबाव्

    जवाब देंहटाएं
  19. नकुल के हर शेर में नै सोच और नए प्रतीक दिखे.

    उस पहाडी पे कैफे और चल पकौड़े---

    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  20. शेखचिल्लीजी का हर शेर अपना नया ही रंग दिखा रहा है

    जवाब देंहटाएं
  21. वाह खुबसूरत ग़ज़लों की झड़ी लग गई है.
    धर्मेन्द्र जी को मैं कैबर पढ़ चुका हूँ और हमेशा उनकी लेखनी से प्रभावित भी रहता हूँ. ये गज़ल भी शानदार बानी हुई है.
    रंग फीके पड़े जाती के धर्म के.....

    बहुत ही उम्दा कहाँ है. बह्दै स्वीकार करें.
    दिगंबर नासवा जी को भी इन्टरनेट पर पढता आ रहा हूँ.
    भगवे रंग में दाढ़ी और हरे रंग में चोटी को रँगने वाला भाव बहुत पसंद आया.
    गुरप्रीत साहब भी मतले से ही प्रभाव छोड़ते आ रहे हैं. मेरी बधाई है आपको भी.
    इसी प्रकार नकुल जी के पहाड़ी वाले शेर बहुत अच्छे लगे.

    शेख चिल्ली साहब तो कमल ही कर गए इस बार. आप ने तरही रंग दी नए रंग में...

    जवाब देंहटाएं
  22. कृपया चतुर्थ पंक्ति को इस प्रकार पढ़ें:
    बहुत ही उम्दा कहन है. बधाई स्वीकार करें.

    जवाब देंहटाएं
  23. इसी प्रकार अंतिम पंक्ति के कमल शब्द को कमाल पढ़ें.

    जवाब देंहटाएं
  24. गाल पर प्राइमर ये गुलाबी कहे
    अब तो रंग दो पिया प्रीत के रंग में
    धर्मेन्द्र जी ज़िंदाबाद !! इस अनूठी गजल के लिये ढेरमढेर दाद कबूलें !!
    में ही अग्नि हूँ जल पृथ्वी वायु पवन
    आत्मा है अजर सब मेरे रंग में
    जियो दिगंबर भाई जियो ! इस उस्तादाना गजल के लिये आपकी लेखनी को नमन !!
    चढ़ गया रंग जिन पे मुहब्बत का वो
    जी गए रंग में मर गए रंग में
    गुरप्रीत जी बल्ले बल्ले - मार सुट्या बाउजी - कमाल कर दित्ता - वाह जी वाह - दिल खुश कर दित्ता- ज्यूंदे रवो !!






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  25. धूप सेंकें पहाड़ों की मुद्दत के बाद
    कर लें माज़ी नया धूप के रंग में
    नकुल जियो ! आपके उस्ताद को नमन जिन्होंने हीरे को तराश कर इतना चमकदार बना दिया है ! पूरी गजल बेजोड है !! इतने कम समय में जो मुक़ाम आपने हासिल किया उसकी जितनी तारीफ़ की जाय कम है !!
    घोर कलयुग है आया क़सम राम जी
    कैसे कैसे रसायन घुले रंग में
    ये शेर ही नहीं पूरी गजल किसी शेखचिल्ली की नहीं उस्ताद की गजल लगती है ! आप का परिचय नहीं मिल सका लेकिन क़सम से - जो भी हो तुम खुदा की क़सम लाजवाब हो !!!

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  26. शुक्रिया sir
    आप का आशीर्वाद बना रहे


    सादर
    नकुल

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  27. आदरणीय दिगम्बर जी ने बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है। बहुत बहुत बधाई उन्हें इस शानदार ग़ज़ल के लिए।

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  28. आदरणीय गुरप्रीत जी ने बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है। "चढ़ गया रंग जिनपे मुहब्बत का वो...." शेर इस ग़ज़ल को नई ऊँचाई दे रहा है। बहुत बहुत बधाई आदरणीय गुरप्रीत जी को।

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  29. नकुल जी का आखिरी शे’र गजब का हुआ है। गजब की गिरह लगाई है उन्होंने। नए प्रतीकों से सजी इस ग़ज़ल के लिए उन्हें बहुत बहुत बधाई।

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  30. शेख चिल्ली का तो अलग ही रंग है। इस अलग रंग के लिए उन्हें साधुवाद।

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