मित्रो हमारा सफ़र अब दस साल पूरा करने जा रहा है। पता ही नहीं चला कि कब हम सबको साथ-साथ चलते हुए पूरे दस साल बीत भी गए। वर्ष 2007 में इस ब्लॉग की शुरुआत हुई थी। धीरे-धीरे आप सब मिलते गए और यह परिवार बड़ा होता गया।खैर दसवीं सालगिरह का जश्न तो हम आने वाले समय में जब तारीख के हिसाब से इस ब्लॉग के दस साल पूरे होंगे मनाएँगे ही अभी तो हम होली आरंभ करते हैं।
होली की शुरुआत के लिए ब्लॉग परिवार की महिला सदस्यों से अच्छा कोई नहीं हो सकता। आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस भी है और दूसरा यह भी कि होली के हुड़दंग से पूर्व ही हम इनकी ग़ज़लें सुन लें क्योंकि आपको तो पता है कि जब इस ब्लॉग पर होली का रंग चढ़ता है तो फिर उसके बाद कुछ और सूझता नहीं है। तो आइये आज से हम होली का अबीर गुलाल और रंग उड़ाना प्रारंभ करते हैं। शुभारंभ करते हैं आदरणीया नुसरत मेहदी जी की ग़ज़ल के साथ, इस संदेश के साथ कि यह वो देश है जहाँ होली के पर्व की शुरुआत नुसरत मेहदी जी की ग़ज़ल के साथ होती है, यह हमारी साझी संस्कृति का एक चित्र है। और उसके बाद रजनी नैयर मल्होत्रा जी की ग़ज़ल नुसरत जी के स्वर में स्वर मिलाने को तैयार है।
आओ रंग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में
इस बार के मिसरे और उसमें रदीफ काफिये के कॉम्बिनेशन को लेकर कई लोगों ने कठिनता की बात की। कहा कि इस पर लिखना असंभव है। मित्रों हमें दस वर्ष हो गए हैं यदि अब भी हम कठिन नहीं लिखेंगे तो फिर कब लिखेंगे। चुनौतियों को स्वीकार किए बिना कोई भी रचना साकार नहीं हो सकती। तो आइये प्रारंभ करते हैं मुशायरे को।
नुसरत मेहदी जी
मैंने लिक्खी ग़ज़ल जब तेरे रंग में
आ गए सब के सब क़ाफिये रंग में
"आओ रँग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में"
ऐसी होली कि ता आसमाँ रंग है
आग पानी हवा सब घुले रंग में
सुब्ह से रंग चूनर बदलती हुई
तू ही तू है मगर हर नए रंग में
जिस्म से रूह तक तर बतर कर गया
इश्क़ था इश्क़ है परद ए रंग में
सोच में हूँ कि रक़्स ए भँवर तो नहीं
बन रहे हैं जो ये दायरे रंग में
हम से सहरा मिज़ाजों को रँगना है गर
कुछ जुनूँ भी मिला, बावरे, रंग में
रंग चेहरे पे हों लाख 'नुसरत' मगर
मत डुबोना कभी आईने रंग में
वाह वाह वाह क्या बात है, इधर हम सब मिसरे के, रदीफ-क़ाफिया के कठिन होने पर बहस करते रहे और नुसरत जी ने उस्तादाना अंदाज़ में आकर अपनी ग़ज़ल इतनी सरलता के साथ कह दी कि ग़ालिब याद आ गए “बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे”। मतले में मिसरा सानी ऐसा कमाल का बाँधा गया है कि कठिन काफ़िये तक को लगाम लगा कर उसमें क़ाफ़िये के रूप में ही कस दिया गया है। कमाल। उसके बाद हुस्ने मतला में गिरह को इतनी ख़ूबसूरती के साथ बाँधा गया है कि उफ़। और अगले ही शेर में एकदम सूफ़ियाना अंदाज़ में इश्क़ को ईश्वर तक पहुँचा दिया है। मैंने कहीं पढ़ा था कि किसी ने नुसरत जी को हिन्दुस्तानी परवीन शाकिर कहा, तुलना तो मैं पसंद नहीं करता लेकिन नुसरत जी के शेरों में प्रेम बहुत पवित्र और समर्पित रूप में सामने आता है “तू ही तू है मगर हर नए रंग में” वाह प्रेम का इतना विस्तार कि वही हर जगह हो जाए। जिस्म से रूह तक तर बतर कर गया में होली और प्रेम के एकाकार होने का मानों शब्द चित्र ही खींच दिया गया है और उसके ठीक बाद मनोविज्ञान को टटोलता दायरे रंग में पड़ने का शेर, कमाल कमाल। लेकिन मकते के ठीक पहले के शेर पर क्या कहूँ ? शब्द ही नहीं है उसके बारे में कहने हेतु “हम से सहरा मिज़ाजों को रँगना है गर, कुछ जुनूँ भी मिला, बावरे, रंग में” उफ़ बावरे शब्द तो जैसे अटका लेता है, उलझा लेता है। और अंत में मकता कई-कई अर्थ प्रदान करता हुआ, एक गहरा संदेश अपने आप में समेटे हुए। वाह वाह वाह, इससे बेहतर और क्या आरंभ हो सकता था भला हमारे तरही मुशायरे का। सुंदर ग़ज़ल।
रजनी नैयर मल्होत्रा
राधिका रँग गयी श्याम के रंग में
तुम भी रँग जाओ ऐसे मेरे रंग में
मैं तेरे रंग में तू मेरे रंग में
दोनो खो जाएँ हम मदभरे रंग में
क्या रखा लाल पीले हरे रंग में
आओ रँग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में
चढ़ गया है नशा सबपे फागुन का यूँ
हर कोई झूमता है नये रंग में
पीत पट का वसन और अधर लाल हैं
साँवरे जँच रहे साँवले रंग में
कह रहा मुझसे ये मेरा मन बावरा
मैं भी घुल जाऊँ केसर घुले रंग में
है लिबास अपना मौसम बदलने लगा
अब धरा दिख रही है हरे रंग में
रजनी जी ने भी कठिन क़ाफ़िया को बहुत अच्छे से निभाया है और बहुत ही ख़ूबसूरत शेर कहे हैं। असल में होता क्या है कि यदि हम चढ़ाई को पहले से ही कठिन मान कर चलते हैं तो वह सचमुच कठिन हो जाती है। राधिका और श्याम के मतले के साथ ग़ज़ल एकदम ठीक सुर में शुरू होती है। और उसके बाद दो दो हुस्ने मतला आए हैं, दोनों अलग-अलग रंग में रँगे हुए हैं। मैं तेरे रंग में तू मेरे रंग में के ठीक बाद जो मिसरा सानी आता है वह प्रेम की ऊँचाइयों को छू लेता है। और फिर उसके बाद ही दूसरे हुस्ने मतला में गिरह को बहुत कमाल के साथ बाँध दिया गया है, क्या रखा लाल पीले हरे रंग में के बाद यह कहना कि आओ रँग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में, कमाल की गिरह बाँधी है। पीत पट का वसन और अधर लाल हैं में कृष्ण की छवि एकदम सामने आ जाती है। कहा रहा मुझसे ये मेरा मन बावरा में केसर घुले रंग में घुल जाने की इच्छा प्रेम को एक बार फिर से पूरी तरह से अभिव्यक्ति दे देती है। और अंत का शेर मौसमों के प्रतीक के द्वारा प्रेम के अगले रूप की बात करता है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है। वाह वाह वाह क्या बात है, ख़ूबसूरत ग़ज़ल।
तो आनंद लीजिए होली की इन सुंदर ग़ज़लों का और माहौल बनाईए अपनी दाद और वाह वाह से। हम आने वाले दिनों में होली की धमाल एक्सप्रेस में सवार होने जा रहे हैं, तैयार रहिए।
यहॉं अभी शुरुआत भी नहीं हुई और दो ख़ूबसूरत ग़ज़ल पोस्ट भी हो गयीं। वाह। पढ़कर हौसला पस्त है। होश में आऊँ तो लैपटॉप पर विस्तृत टिप्पणी के साथ आता हूँ।
जवाब देंहटाएंनुसरत जी ने इस मुशायरे का जिस तरह से आगाज़ किया है वो कमाल है। उनकी ग़ज़लें हमेशा दिलकश और नए सन्देश लिए होती हैं. हमारे देश की सबसे लाजवाब शायराओं में से एक नुसरत जी के लिए तारीफ़ के सभी अलफ़ाज़ बौने साबित होते हैं :
जवाब देंहटाएंसुबह से रंग चूनर बदलती हुई
तू ही तू है मगर हर नए रंग में
हमसे सहरा मिज़ाजों को रंगना है गर
कुछ जुनूँ भी मिला ,बावरे, रंग में
अहह हा क्या कहें शेरों पर -सुभानअल्लाह !!!
रजनी जी की ग़ज़ल बहुत खूबसूरत बन पड़ी है , काफियों को रदीफ़ के साथ बहुत हुनर के साथ गूंथा गया है तभी तो ऐसे बाकमाल शेर हुए हैं :-
मैं तेरे रंग में तू मेरे रंग में
दोनों खो जाएँ हम मदभरे रंग में
पीत पट का वसन और अधर लाल हैं
सांवरे जँच रहे साँवले रंग में
ढेरों दाद !!!
नीरज
जवाब देंहटाएंशानदार शुरुआत। आनन्द गया। बधाई दोनों को.
क्या बेहतरीन आगाज़ हुआ है तरही का
जवाब देंहटाएंइस काफ़िये पर जहाँ इक मतला कहना कठिन हुआ जाता है आज पहले ही दिन कुल 5 मतले पढ़कर दिल बाग़ बाग़ हो गया।
।आग पानी हवा सब घुले रंग में....
क्या शेर् हुआ है। मज़ा आ गया
मैं तेरे रंग में, तू मेरे रंग में
वाह वाह वाह
दोनों गज़लें बहुत उम्दा
क्या कहने
सादर
नकुल
कमाल है जी कमाल है...मुशायरे की पहली गज़ल का पहला ही शेअर क्या कमाल है...और उसके बाद के सारे अशआर...मज़ा ही आ गया पढ़ कर..
जवाब देंहटाएंमैने लिक्खी गज़ल जब तेरे रंग में
आ गए सब के सब काफिऐ रंग मे ॥
सुबह से रंग चूनर बदलती हुई
तू ही तू है मगर हर नए रंग में ॥
सोच में हूँ के रक्स ए भँवर तो नही
बन रहे हैं जो ये दायरे रंग में ॥
हम से सहरा मिजाजों को रँगना है गर
कुछ जुनूं भी मिला बावरे रंग मे ॥
रंग चेहरे पे हों लाख नुसरत मगर
मत डुबोना कभी आईने रंग में ॥
वाह वाह क्या बात है
रजनी जी कि गज़ल भी बहुत कमाल है..
जवाब देंहटाएंएक संयोग यह हुआ कि मेरी गज़ल के दो मिसरे बिल्कुल उनकी गज़ल के साथ मिल रहे हैं...बहुत बढ़िया गज़ल कही है..
मै तेरे रंग में तू मेरे रंग में
दोनों खो जाएँ हम मदभरे रंग में ॥
पीत पट का वसन और अधर लाल हैं
सांवरे जँच रहे सांवले रंग में ॥
है लिबास अपना मौसम बदलने लगा
अब धरा दिख रही है हरे रंग में ॥
बहुत ही खूबसूरत शेअर
भाई पंकज ने मिसरा कुह ऐसा दिया
जवाब देंहटाएंआ गए ख़ुद ब ख़ुद काफ़िए रंग में
आदरणीया नुसरत मेहदी जी और रजनी नैय्यर मल्होत्रा जी की ख़ूबसूरत ग़ज़लों के साथ तरही के शानदार आग़ाज़ पर आपको हार्दिक बधाई| शाइरात को ढेरों दाद!
नुस्रारत मेहदी जी का मतला और मक्ता बहुत खूब है ! रजनी नैयर जी ने तो दिए हुए मिसरे अनुसार पूरी ग़ज़ल में रंग बिखेर कर रख दिए हैं !
जवाब देंहटाएंकृपया ऊपर नुस्रारत को नुसरत पढ़ें !
हटाएंभाई पंकज ने मिसरा कुछ ऐसा दिया
जवाब देंहटाएंआ गये ख़ुद ब ख़ुद क़ाफ़िये रंग में
सोचती हूँ ये रक्से-----
जवाब देंहटाएंबन रहे हैं जो ये दायरे रंग में
और
मत डुबोना कभी आईऒने रंग में
यह बात कहने के लिये जितने अनुभव की आवश्यकता है वह नुसरतजी की गज़ल में साफ़ झलकता हैं.
और रजनीजी का यह स्पर्श--
कह रहा है है मुझस एये मन वावरा
मैं भी घुल जाऊं केसर घुले रंग में
बहुत ही सादगी से कही गयी गहरी बात. दोनों शायराओं के हार्दिक बधाई.
पंकज भईया को बहुत बहुत आभार | आज के दिन हम महिलाओं की रचना को लगाकर हमें 8 मार्च का अनुभव कराया |इस सम्मान के लिए धन्यवाद पंकज भईया को ...
जवाब देंहटाएंसाथ ही सभी साथियों को नमन
पंकज भईया को बहुत बहुत आभार | आज के दिन हम महिलाओं की रचना को लगाकर हमें 8 मार्च का अनुभव कराया |इस सम्मान के लिए धन्यवाद पंकज भईया को ...
जवाब देंहटाएंसाथ ही सभी साथियों को नमन
Waah Kamal ki ghazlen.. Detailed comment later.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पंकज,
जवाब देंहटाएंमैं हमेशा बहुत उपकृत होती हूँ जब पंकज मेरी रचना में से वह सब, जो कुछ कठिन होता है उसे बड़ी सरलता और सुंदरता से बाहर निकाल लाते हैं । इस ब्लॉग के आदरणीय सदस्य तो सभी स्वयं ही कवि शायर और बहुत विद्वान् हैं इसलिए यहाँ कुछ लिखने का आनंद ही कुछ और है। यह मिसरा मुझे पसंद भी बहुत आया। मन से शेर निकले।
होली के तरही मिसरे पर मुशायरे के प्रारंभ में मेरी ग़ज़ल को स्थान देने के लिए मैं आभारी हूँ पंकज ।
सबने ग़ज़ल पसंद की इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
रजनी नैयर मल्होत्रा जी की ग़ज़ल होली के माहौल और मिज़ाज से हम आहंग हुई है पूरी तरह , बहुत बहुत बधाई उन्हें।
आज् की तारीख़ और मुशायरे की शुरुआत ! वो भी ऐसी दो ग़ज़लों से जिनके शेरों के आयाम सोच को कितना विस्तार देते हुए हैं. अनुभव और उत्साह से लबरेज़ दो ग़ज़लें !
जवाब देंहटाएंआदरणीया नुसरत जी और रजनी जी को हार्दिक शुभकामनाएँ और अशेष बधाइयाँ ..
होली की धमाकेदार शुरुआत हो गयी और हम चूक गए एक दिन से ... खैर ...
जवाब देंहटाएंनुसरत दी की ग़ज़ल ने तो माहोल को सरोबर कर दिया है ... पहले ही शेर में सभी काफिये रंग दिए प्रेम और होली के रंग में ... बहुत खूब ... भूल कर सब गिले शिकवे ... वाह सब रंगे गए इस रंग में तो ... सुबह से रंग चूनर बदलती हुयी ... मासूम प्रेम की हद्दों को पार करता हुआ शेर ... अब क्या क्या और किस किस शेर को लिखो ... हर शेर में दिल से दाद निकलती है ... सुभान अल्ला ... धमाल शुरू हो गया है ... बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल पर ....
श्याम के रंग में रंगती हुयी रजनी जी की लाजवाब ग़ज़ल ... श्याम रंग में रँग कर दूजा रंग चढ़े न कोई ... लाजवाब मतला ... मदभरे रंग में रंगने के बाद फिर होश कहाँ रहता है ... और फिर जब इश्क का रंग मिल जाता है तो लाल पीला हरा ... कोई रंग चढ़ भी नहीं पता है ... कमाल के शेर हैं रजनी जी के ... प्रेम, मदहोशी और मस्ती भरे शेर इस होली का रंग और भी गाढ़ा कर रहे हैं ... बहुत बधाई रजनी जी ...
शब्द का टोटाहै दोनों ही ग़ज़लों के विषय में कुछ भी कहने के लिए .बस गूंगे के गुड की भांतिआनंद ले रही हूँ .बहुत बहुत शुक्रिया इतने सुंदर काव्य -रस की प्रस्तुति के लिए .साथ ही ढेर सारी बधाइयाँ
जवाब देंहटाएंसुमित्रा
बड़ी ही ख़ूबसूरत ग़ज़लें कही हैं दोनों ही शायराओं ने। आदरणीया नुसरत जी ने काफ़िये को काफ़िया बनाकर शानदार शुरुआत की है। पूरी की पूरी ही ग़ज़ल प्रेम के रंगों में सराबोर है। किस शे’र की तारीफ़ करें किसको छोड़ें। बहुत बहुत बधाई आदरणीया नुसरत जी को इस शानदार ग़ज़ल के लिए।
जवाब देंहटाएंआदरणीया रजनी जी ने श्याम और राधिका के अमर प्रेम से शुरुआत की है और एक के बाद एक शानदार अश’आर से मंच को नवाज़ा है। उन्हें ढेरों दाद इस शानदार ग़ज़ल के लिए।
दोनों ग़ज़लों की खूबसूरती देखने लायक है. शयराओंको मेर्री हार्दिक बधाइयाँ.
जवाब देंहटाएंनुसरत मेहदी जी:
जवाब देंहटाएं"मैंने लिक्खी ग़ज़ल जब तेरे रंग में
आ गए सब के सब क़ाफिये रंग में"
मतला और सभी शेर ख़ूब हुए है।
('काफिये' के सबब रंग जो तंग थे
तुमने थामी क़लम आ गये रंग में।)
होली तरही की पहली ग़ज़ल का पहला ही शेर वाक़ई प्रेरक रहा......
रंग निखर गया, महफिल में ख़ूब रंगीनीयां बिखर रही है।
रजनी नैयर मल्होत्रा:
जवाब देंहटाएं'इश्क़' और 'रंग' में ही डूबे हुए है तमाम शेर...........तरही मिसरे को सार्थक करते हुए। इस त्यौहार पर जो मन:स्थिति होती है उसका सचित्र और वास्तविक चित्रण करती सुंदर और सफल रचना, बधाई।
फिर से धन्यवाद आप सभी सुधि मित्रों को
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