सोमवार, 20 मार्च 2017

आज शीतला सप्तमी पर होली की आग का ठंडा करके होली के त्योहार का समापन होता है, तो अपनी अत्यंत ठंडी ग़ज़ल लेकर आ रहे हैं भभ्भड़ कवि भौंचक्के।

मित्रों होली का मुशायरा बहुत ही अच्छा रहा। सबने ख़ूब कमाल की ग़ज़लें कहीं। और सबसे अच्छी बात तो यह रही कि क़फिये की परेशानी बताने वालों ने भी ग़ज़ब की ग़ज़लें कहीं। अब मुझे लगता है कि हम यहाँ पर और कठिन प्रयोग भी कर सकते हैं। आप सब जिस अपनेपन से आकर यहाँ पर महफ़िल सजाते हैं उसके लिए आप सबको लाखों लाख सलाम प्रणाम। असल में तो यह ब्लॉग है ही आप सबका, यह एक परिवार है जिसमें हम सब वार-त्योहार मिलते हैं एक साथ एकत्र होते हैं और ख़ुशियाँ मनाते हैं। अब अगला त्योहार ईद का आएगा जून में तो हम अगला त्योहार वही मनाएँगे। चूँकि हमें शिवना साहित्यिकी हेतु हर चौथे माह एक मुशायरा चाहिए ही तो हमें अब इस प्रकार से ही करना होगा। ईद इस बार जून के अंतिम सप्ताह में है तो हम पवित्र रमज़ान के माह में अपना मुशायरा प्रारंभ कर देंगे और ईद तक उसको जारी रखेंगे। जुलाई के अंक हेतु हमें ग़ज़लें प्राप्त हो जाएँगी।

आओ रँग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में

आज भभ्भड़ कवि अपनी ठंडी ग़ज़ल लेकर आ रहे हैं ताकि बहुत अच्छी और गर्मा गर्म ग़ज़लों से रचनाकारों ने जो होली की आग भड़का रखी है वह शीतला सप्तमी के दिन ठंडी हो जाए। कुछ शेर भभ्भड़ कवि ने घोर श्रंगार में लिख दिये हैं होली के अवसर का लाभ उठाते हुए, आप इस बात पर उनकी ख़ूब लानत-मलानत कर सकते हैं। मित्रों इस बार का जो क़ाफिया था वह ज़रा सी असावधानी से मिसरे से असंबद्ध हो सकता था और भर्ती के क़ाफिये में बदल सकता था। भभ्भड़ कवि ने केवल यह देखने की कोशिश की है कि वह कौन से क़ाफिये हैं जो बिना असंबद्ध हुए उपयोग किए जा सकते हैं और किस प्रकार से उपयोग किये जा सकते हैं। इस बार का रदीफ़ बहुअर्थी रदीफ़ था। रंग शब्द के कई अर्थ होते हैं। पहला तो वही रंग मतलब एक वस्तु जैसे ‘लाल रंग’, दूसरा रंग रंगने की क्रिया जैसे ‘मुझे रँग दे’, तीसरा रंग एक अवसर जैसे ‘आज रंग है’, चौथा रंग एटीट्यूड में होना, फुल फार्म में होना, प्रतिभा का पूरा प्रदर्शन जैसे यह कि ‘आज तो वह पूरे रंग में है’, पाँचवा रंग होता है असर, किसी का असर, जैसे ‘मैं हमेशा उसके रंग में रहा’। इसलिए इस बार सबसे ज़्यादा प्रयोग करने के अवसर थे, और रचनाकारों ने किए भी। भभ्भड़ कवि ने अलग-अलग क़ाफियों के साथ अलग-अलग प्रयोग करने की टुच्ची-सी कोशिश की है। बहुत सारे शेर कह डाले हैं, कौन रोकने वाला है, उस्ताद कहा करते थे कि बेटा बुरा ही करना है तो ख़ूब सारा करो, गुंजाइश रहेगी कि उस ख़ूब सारे बुरे में एकाध कुछ अच्छा भी हो जाए। कुल 32 क़ाफियों का उपयोग इस ग़ज़ल में किया गया है। जो क़ाफिये असंबद्ध होने के ख़तरे से भरे थे उनको छोड़ दिया गया है। तो आइये इतनी अच्छी ग़ज़लों के बाद यह कड़वा किमाम का पान भी खा लिया जाए। तो लीजिए प्रस्तुत है भभ्भड़ कवि भौंचक्के की ग़ज़ल।

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भभ्भड़ कवि ‘भौंचक्के’

जिसको देखो वही है तेरे रंग में
कुछ तो है इस तेरे साँवले रंग में

इक दुपट्टा है बरसों से लहरा रहा
सारी यादें रँगी हैं हरे रंग में

दिल की अर्ज़ी पे भी ग़ौर फ़रमाइये
कह रहा है रँगो भी मेरे रंग में

रंग डाला था होली पे उसने कभी
आज तक हम हैं भीगे हुए रंग में

बस इसी डर से बोसे नहीं ले सके 
दाग़ पड़ जाएँगे चाँद-से रंग में

तुम भी रँगरेज़ी देखो हमारी ज़रा
"आओ रँग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में"

जिस्म से रूह तक रंग चढ़ जाएगा
थोड़ा गहरे तो कुछ डूबिये रंग में

थक गया है सफ़ेदी को ढोते हुए
अब रँगो चाँद को दूसरे रंग में

आज रोको लबों की न आवारगी
बाद मुद्दत के आए हैं ये रंग में

ख़ूब बचते रहे रंग से अब तलक
सोलहवाँ जब लगा, आ गिरे रंग में

हम दिवानों की होली तो बस यूँ मनी
उनको देखा किये भीगते रंग में

इक दिवाना कहीं रोज़ बढ़ जाएगा
रोज़ निकलोगे गर यूँ नए रंग में

दिल को मासूम बच्चा न समझो, सुनो
तुमने देखा कहाँ है इसे रंग में

दोस्ती का जो करते थे दावा बहुत
एक सच जो कहा, आ गए रंग में

रिंद प्यासे हैं तब तक ही ख़ामोश हैं
थोड़ी मिल जाए तो आएँगे रंग में

उसके रँग में रँगे लौट आए हैं घर
घर से निकले थे रँगने उसे रंग में

उफ़ ! लबों की ये सुर्ख़ी, ये काजल ग़ज़ब !
आज रँगने चले हो किसे रंग में

शर्म से जो लरजते थे दिन में वही
रात को अपने असली दिखे रंग में

मन में कोंपल-सी फूटी प्रथम प्रेम की
कच्चे-कच्चे सुआपंखिये रंग में

वस्ल की शब बरसती रही चाँदनी
हम नहाते रहे दूधिये रंग में

तब समझना कि तुमको मुहब्बत हुई
मन जो रँगने लगे जोगिए रंग में

ज़ाफ़रान एक चुटकी है शायद मिली
इस तेरे चाँदनी से धुले रंग में

ज़िंदगी ने थी पहनाई वर्दी हरी
मौत ने रँग दिया गेरुए रंग में

आसमाँ, फूल, तितली, धनक, चाँदनी
है हर इक शै रँगी आपके रंग में

फिर कोई दूसरा रंग भाया नहीं
उम्र भर हम उसीके रहे रंग में

वस्ल की रात उसका वो कहना ये, उफ़ !
'आज रंग डालो अपने मुझे रंग में'

हैं कभी वो ख़फ़ा, तो कभी मेहरबाँ
हमने देखा नहीं तीसरे रंग में

आपका वक़्त है, कौन रोके भला
आप रँग डालें चाहे जिसे रंग में

कल की शब हाय महफ़िल में हम ही न थे
सुन रहे हैं के कल आप थे रंग में

रूह पर वस्ल का रँग चढ़े, हाँ मगर
जिस्म भी धीरे-धीरे घुले रंग में

है 'सुबीर' उम्र का भी तक़ाज़ा यही
ख़ुश्बुए इश्क़ भी अब मिले रंग में

तो मित्रों यह है भभ्भड़ कवि भौंचक्के की ग़ज़ल। दाद खाज खुजली जो कुछ भी आपको देना है आप उसके लिए स्वतंत्र हैं। सड़े अंडे, टमाटर आदि जो कुछ आपको देना है वह आप कोरियर भी भेज सकते हैं। भभ्भड़ कवि पूरे मन से उन सबको स्वीकार करेंगे। तो अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों। होली के मुशायरे का इसी के साथ समापन घोषित किया जाता है। भभ्भड़ कवि ने पूरे बत्तीस लोटे पानी डाल कर उस आग को बुझाया है जिसे आप लोगों ने मेहनत से सुलगाया था। तो मिलते हैं अगले मुशायरे में।

14 टिप्‍पणियां:

  1. तालियाँ तालियाँ तालियाँ ... आज तो बस बजाते रहो बजाते रहो ... वाह वाह करते रहो ...
    यहाँ तो मुश्किल से सात नहीं बन पा रहे थे ... और कहाँ ये बत्तीस ... लगता है सारे दांत टूट गए हमारे तो ... इब दुबारा खेलनी पड़ेगी होली की तरही ... हर तरह का सुन्दर प्रयोग ... कहीं हास्य, कहीं प्रेम कहीं इश्क की गहराई ... कहीं खुशबू की ऊंचाई ... इस गज़ब की नायाब ग़ज़ल का आनंद अप्रतिम है ... इस समापन में भी इतना ही मज़ा है जितना शुरुआत का था ... किसी एक शेर को लिख के दूसरों शेरोका मजा कम नहीं करना चाहता ...
    सभी को एक बार पुनः होली की बधाई और आपको इस लाजवाब और आयजन की शेरोन बधाई और शुभकामनायें ...

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  2. " ख़ूब 'बत्तीसा' ज़चगी के बाद* मिला
    'तरही' तर हुई भौचक्के रंग में।"

    (*तरही की रचनाएं डिलिवर हो जाने के बाद

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-03-2017) को

    चक्का योगी का चले-; चर्चामंच 2608
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. कमबख्त भभ्भड़ का भेजा स्केन करवाओ रे पता तो चले कौनसे रंग का है , कहाँ से निकलते हैं ऐसे शेर ? ग़ज़ब कर दिया ज़ालिम ने.:-
    बस इसी डर से। ..
    थक गया है सफेदी को ....
    खूब बचते रहे ....
    दिल को मासूम बच्चा ...
    शर्म से जो लरजते ....
    ज़िन्दगी ने थी पहनाई....
    है कभी वो खफा ...

    वाह उस्ताद वाह !!! भभ्भड़ जी की जय हो।
    सौ सुनार की एक लुहार की ....कर दिया सबको धराशाही !!!

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  5. रंग डाला था होली पे उसने कभी
    आज तक हम हैं भीगे हुए रंग में

    जिस्म से रूह तक रंग चढ़ जाएगा
    थोड़ा गहरे तो कुछ डूबिये रंग में
    आज रोको लबों की न आवारगी
    बाद मुद्दत के आए हैं ये रंग में

    इक दिवाना कहीं रोज़ बढ़ जाएगा
    रोज़ निकलोगे गर यूँ नए रंग में

    दोस्ती का जो करते थे दावा बहुत
    एक सच जो कहा, आ गए रंग मे

    उसके रँग में रँगे लौट आए हैं घर
    घर से निकले थे रँगने उसे रंग में

    उफ़ ! लबों की ये सुर्ख़ी, ये काजल ग़ज़ब !
    आज रँगने चले हो किसे रंग में

    शर्म से जो लरजते थे दिन में वही
    रात को अपने असली दिखे रंग में

    वस्ल की रात उसका वो कहना ये, उफ़ !
    'आज रंग डालो अपने मुझे रंग में

    रूह पर वस्ल का रँग चढ़े, हाँ मगर
    जिस्म भी धीरे-धीरे घुले रंग में

    है 'सुबीर' उम्र का भी तक़ाज़ा यही
    ख़ुश्बुए इश्क़ भी अब मिले रंग में

    वाह हम तो रंग गये रोमानियत के रंग में
    कोई शेर ऐसा नहीं था जो छोड़ा जाये ,फिर भी कुछ शेर दे दिए । ज़ोरदार ।

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  6. हर रंग है इस शायरी में. किस शेर की बात करुं, सारे गहरे रँगें है शिल्प के रंगे में.ससम्मान बधाई

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  7. ये शीतला सप्तमी है या ज्वाला सप्तमी! क्या शेर निकल कर आए हैं, वाह वाह वाह। समुद्र मंथन में एक के बाद एक शानदार गिफ्टस के बाद आयी मोहिनी सी ग़ज़ल। बहुत कमाल की ग़ज़ल और लुक भभ्भड़ जी का। जिन्दगी ने थी पहनाई.... क्या कहे कोई इस शेर के लिए ? निशब्द।
    देखी जी देखी खूब रंगरेजी है। तीसरे रंग का शेर खूब। वाह श्रृंगार,घोर श्रृंगार,पूर्ण श्रृंगार सभी शेर नफ़ासत के साथ हैं।,सभी खूब कमाल, वाह। और फिर मक्ता वाह वाह वाह।

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  8. एक से बढ़कर एक शेरों से सजी बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल हर शेर अपने रंग में
    भव्य आयोजन सुंदर संचालन और मुशायरे के ख़ूबसूरत अंजाम के लिए हार्दिक बधाई

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  9. वाह वाह भब्बड़ जी ने तो कमाल कर दिया। हम तो पूरी तरह रँग गए हैं उनके रंग में. शायद ही कोई काफिया छोड़ा हो उन्होंने.. और शेअर तो एक से एक कातिलाना कहे हैं..
    जय हो गुरु जी

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  10. वाह क्या कहने इस बत्तीसी के ! खूबसूरत ग़जल मेले का गज़ब खूबसूरत समापन . कभी हास्य कभी तथ्य ,कभी दैहिक तो कभी प्लेटोनिक प्रेम ! क्या कुछ नही है इसमें ? रस और रंग से सरावोर ! मुदित है मन और चकित भी ------इतने भाव , इतने विचार और उन्हें चित्रित करते सटीक शब्द ! बहुत बहुत बधाई .

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  11. सप्तमी सरगमें घोलते चंग में
    आये भकभौ गज़ल ले नये रंग में
    पढ़ के श्रंगार के शेर मन ये हुआ
    बाँह में भर भिगो लूं उसे रंग में
    इश्क् के रंग में मन रंगे न रंगे
    हम तो अब रंग चुके आपके रंग में

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  12. भाई मुशायरा हो तो ऐसा और समापन हो तो ऐसी ग़ज़ल से। क्या ग़ज़ल है, सारे रंग एक ही ग़ज़ल में। असली होली की असली ग़ज़ल तो यही है, जिसमें सारे रंग पाठकों को लगा दिये गये हैं एक भी रंग छोड़ा नहीं गया है। मतला कई अर्थ समेटे है जो कृष्ण प्रेम पर तो है ही मगर कई और अर्थ भी इसमें ध्वनित हो रहे हैं। इसी तरह मतले के बाद पहला शे’र प्रेम पर भी है, प्रकृति पर भी है। उसके बाद के चार शे’र प्रेम के विभिन्न रूपों को दर्शा रहे हैं। उसके बाद "जिस्म से रूह तक रंग चढ़ जायेगा...." प्रेम से लेकर आधायत्म तक कई कई अर्थ दे रहा है। इसके बाद एक से एक शे’र प्रेम पर हुये हैं। बहुत बहुत बधाई भकभौं जी को इस ग़ज़ल के लिए।

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  13. इस पोस्‍ट का मेल ''आज की ग़ज़ल'' बॉक्‍स में चला गया और मैं चूक गया। देर आयद-दुरस्‍त आयद। हाजिर हूँ।
    मत्‍ले में श्‍याम के रंग से प्रारंभ होकर धानी चुनरी के रंग से होती हुई दिल की अर्जी पर गौर फरमाने का अनुरोध और फिर कभी डले रंग से आज तक भीगे रहने का अहसास। वाह्ह।
    अरे भाई पान खाकर अच्‍छी तरह मुँह धोकर जमकर बोसा लें, कौन रोक रहा है, कोई दाग-वाग की चिन्‍ता न करें। बिन्‍दास।
    रँगरेजी के कमाल की चुनौती लिये खूबसूरत गिरह और फिर सूफियाना अंदाज़।
    तरह-तरह के रंग में डूबे शेर, शेर-दर-शेर, वाह्ह लाजवाब, क्‍या कहने।
    काफि़यों को नये रंग देते हुए
    शेर देखे, नये से नये रंग में।

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