मित्रों इस बार का तरही मुशायरा बहुत ही आनंद में बीता है। एक से बढ़ कर एक ग़ज़लें सामने आईं हैं। इन ग़ज़लों में कई तरह के रंग खिले और होली का एक पूरा माहौल इन ग़ज़लों में बन गया। अब हम धीरे धीरे समापन तक आ गए हैं। समापन हमेशा ही एक प्रकार का ख़ालीपन मन के अंदर पैदा करता है। मगर अभी तो एक अंक और आएगा जिसमें भकभौ आएँगे।
आओ रँग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में
आइये आज होली के तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं। समापन के ठीक पहले सुनते हैं पारुल सिंह जी, राकेश खण्डेलवाल जी और तिलकराज कपूर जी को। और अंत में भभ्भड़ कवि को समापन करना है ऐसा हम मान कर चल ही रहे हैं। तो इसके बाद अब कोई ग़ज़ल नहीं भेजिए क्योंकि बस अगली पोस्ट अंतिम होगी जिसमें समापन होगा।
पारुल सिंह
शाम ढलने लगी लाल-से रंग में
जैसे आँचल किसी का उड़े रंग में
मैँ ग़ज़ल घोल लाई सजन चाँद में
आओ रँग दूँ तुम्हें इश्क़ के रंग में
चाँद ने बाहों में भर के पूछा मुझे
शर्म से गाल क्यूँ रँग गए रंग में
फागुनी रात ने चाँद से ये कहा
और मस्ती मिला, बावरे, रंग में
झम झमा झम झमकती फिरे ज़िंदगी
हो गई है धनक आपके रंग में
हैं ज़रा सा ख़फ़ा अब मना लो हमें
ये मिलन फिर सजे इक नए रंग में
शर्त है बात हक़ की ज़ुबाँ पर न हो
ढल गई है वफ़ा कौन से रंग में
दिल मिले साथ दिल के गले से लगा
केसरी घुल गया है हरे रंग में
बस गए धूप बन के नज़र में पिया
वस्ल ही वस्ल है अब खिले रंग में
शाम ढलने लगी लाल-से रंग में मतले में ही प्रकृति का बहुत सुंदर चित्र खींचा गया है। और उसके बाद गिरह का शेर भी हल्की सी तब्दीली के साथ बहुत ही सुंदर बना है। ग़ज़ल का चाँद में घोलना और उसके सजन का रँगना वाह क्या प्रतीक हैं। और अगले ही शेर में चाँद का बाहों में भरना भी और पूछना भी कि गाल क्यूँ रँग गए हैं, क्या बात है सुंदर। अगले शेर में एक बार फिर से चाँद है जिसे रात कह रही है कि और मस्ती मिला बावरे, वाह क्या बात है बहुत ही सुंदर शेर है। और किसी के प्रेम में ज़िंदगी का धनक बन जाना और झमकते फिरना ग़ज़ब है। झमकना ही तो प्रेम का सबसे पहला लक्षण होता है। हक़ की बात करने से मना किया जाता है तो उसमें वफ़ा सचमुच नहीं होती है। प्रेम में तो सब कुछ हक़ के दायरे में आ जाता है। और जब पिया धूप बन कर नज़र में बस जाएँ तो हर क्षण वस्ल का ही होता है और वह भी धूप के खिले रंग में। वाह वाह क्या बात है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल।
तिलकराज कपूर
भांग को घोटते घोटते रंग में
क्या न क्या कह गये अधचढ़े रंग में।
टोलियों में चले मनचले रंग में
अजनबी भी मिले तो रंगे रंग में।
साल भर मेक-अप से पुते रंग में
कुछ मिटे रंग से, कुछ मिले रंग में।
रोग मधुमेह जबसे लगा मित्रवर
अब मिठाई न कोई चले रंग में।
एक उत्सव सराबोर है रंग से
फायदा मत उठा मुँहजले रंग में।
रंग इन पर चढ़ेगा न दूजा कोई
गोपियाँ हैं रँगी श्याम के रंग में।
टेसुओं से लदी डालियाँ कह रहीं
आईये, खेलिये, डूबिये रंग में।
सीख शाला से बच्चों ने हमसे कहा
खेलिये न रसायन भरे रंग में।
कुछ मुहब्बत मिलाकर गुलालों में हम
''आओ रंग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में।''
तिलकराज जी ने होली के रंगों में रँगी यह ग़ज़ल कही है बहुत ही सुंदर ग़ज़ल। मतले में एक बारीक सी बात है, जिन लोगों ने भाँगा घोंटने वालों को देखा है वे इस बारीकी को समझेंगे कि उस समय घोंटने वाला अलग ही रंग में होता है, उस रंग को बहुत अच्छे से उठाया है मतले में। और साल भर जो मेकअप से पुतते हैं उनके लिए होली के क्या मायने भला ? उनकी तो साल भर ही होली होती है। मधुमेह का रोग अगले शेर में एक दुखती रग पर हाथ रख रहा है। गोपियों पर उद्धव ने बहुत रंग चढ़ाने की कोशिश की थी लेकिन हार गए थे और कह दिया था कि रंग इन पर चढ़ेगा न दूजा कोई। टेसुओं से लदी डालियाँ सचमुच ही आमंत्रण देती हैँ कि होली आ गई है और होली होनी चाहिए। और अंत में मुहब्बत को गुलालों में मिला कर किसी को अपने इश्क़ के रंग में रँगने का आमंत्रण बहुत ही सुंदर। क्या बात है वाह वाह वाह।
राकेश खण्डेलवाल
पन्चमी आ गई सतरँगे रंग में
आओ रंग दें तुम्हें इश्क के रंग में
राह तकते हुये नैन थकने लगे
आयें भकभौ लिये फ़लसफ़े रंग में
आस! होली पे अब रहनुमाई रँगे
एक शफ़्फ़ाक से दूधिये रंग में
आई गज़लों की तहज़ीब हमको नहीं
फ़िर भी गज़लें कहें डूब के रंग में
रंग इक जो चढ़े फिर न उतरे कभी
तरही आयेगी हर पल नये रंग में
राकेश जी बहुत कम ग़ज़लें कहते हैं। इस बार भभ्भड़ कवि भौंचक्के को निमंत्रित करने हेतु उन्होंने भी ग़ज़ल कह ही दी है। और जब राकेश जी का निमंत्रण है तो भकभौ को आना ही होगा। रंग की पंचमी जो इधर मालवा अंचल में होती है वह सचमुच ही सतरँगे रंग् की होती है। और अगले ही शेर में भकभौ को पीले चावल देने राकेश जी सीधे वाशिंगटन डीसी से आ गए हैं। भकभौ पर अब दबाव बन चुका है पूरा। अगले शेर में देश की राजनीति को श्वेत रंग से रँगे जाने की एक ऐसी कामना जो हर देशवासी के मन में है। आमीन। इतनी अच्छी ग़ज़ल कहने वाले को ग़ज़ल की तहज़ीब नहीं आती यह कहना ही ग़लत है। और अंत में हमारे इस तरही मुशायरे की लिए एक प्रार्थना है कि यह होता रहे यूँ ही निरंतर। बहुत ही सुंदर कामना और बहुत ही सुंदर ग़ज़ल। क्या बात है वाह वाह वाह।
तो मित्रो यह हैं आज के तीनों रचनाकार और आपका वही काम कि आपको दाद देना है खुलकर। क्योंकि आपकी दाद ही भकभौं के लिए हौसला बढ़ाने का काम करेगी।
मैँ ग़ज़ल घोल लाई सजन चाँद में
जवाब देंहटाएंआओ रँग दूँ तुम्हें इश्क़ के रंग में
चाँद ने बाहों में भर के पूछा मुझे
शर्म से गाल क्यूँ रँग गए रंग में
बस गए धूप बन के नज़र में पिया
वस्ल ही वस्ल है अब खिले रंग में
वाह ,पारुल जी ने बहत खूब शेर कहे हैं।
रंग इन पर चढ़ेगा न दूजा कोई
जवाब देंहटाएंगोपियाँ हैं रँगी श्याम के रंग में।
टेसुओं से लदी डालियाँ कह रहीं
आईये, खेलिये, डूबिये रंग में।
कुछ मुहब्बत मिलाकर गुलालों में हम
''आओ रंग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में।''
वाह ,तिलकराज कपूर जी ने बहत गहरे शेर कहे हैं।
पन्चमी आ गई सतरँगे रंग में
जवाब देंहटाएंआओ रंग दें तुम्हें इश्क के रंग में
राह तकते हुये नैन थकने लगे
आयें भकभौ लिये फ़लसफ़े रंग में
आई गज़लों की तहज़ीब हमको नहीं
फ़िर भी गज़लें कहें डूब के रंग में
वाह ,राकेश जी ने बहत खूब।
शाम के समय आकाश का परिदृश्य हमेशा से मनमोहक रहा है उसे लहराते फहराते ऑंचल से मत्ले के शेर में जोड़ते हुए अगले ही शेर में ग़ज़ल चॉंद में घोलकर इश्क़ के रंग में रंगने की कल्पना; वाह्ह।
जवाब देंहटाएंतीसरे और चौथे शेर में चॉंद का रिश्ता आगे और स्पष्ट करते हुए फ़ागुनी रात की चॉंद से और मस्ती मिलाने की कल्पना। वाह्ह।
आखिरी शेर तक एक विषय-वस्तु ज्यूँ निरंतर बँधती जा रही है और धूप के खिेल-खिले रंग में वस्ल ही वस्ल।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल।
राकेश भाई साहब तो लगता है ग़ज़ल को पंचमी के लिये संजोये हुए थे। इस ग़ज़ल में तीसरे शेर की आस तो जन-जन की आस है। वाह्ह।
तो अब भभ्भड़ कवि भौचक्के के स्वागत के लिये पलक पॉंवड़े बिछै हैं समापन के लिये।
बधाई पारुल जी,सात्विक प्रेम में डूबी ग़जल हैआपकी. आपके शेर पढ़ कर लगता है जैसे यात्रा से संतृप्त राही मंजिल की मुंडेर से टेक लगा कर बैठ सांझ को निहार रही हो.और निहारते निहारते उसमें चाँद तारों का रंग भी धुल गया हो.
जवाब देंहटाएंबस गए धूप बन......... बहुत गहरे असर वाला शेर है
आदरणीय तिलक राज जी तो सदाबहार है.हल्के व्यंग्य, हास्य के साथ गहरी संवेदना समेटे है आप की ग़ज़ल. साल भर मेकअप....एक उत्सव सरोबार है....का रंग तो रंग इन पर चढेगा न दूजा..... आध्यात्मिक रंग लिए. वाह
जवाब देंहटाएंआदरणीय राकेश जी ने शेर के माध्यम से रंग पंचमी का अछ्छा स्वागत किया है.आस होली पे.....बडी सुन्दर कामना. बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंपारुल को एक सुन्दर ग़ज़ल के प्रस्तुतीकरण पर बधाई
जवाब देंहटाएंचाँद चेहरा हथेली में छुपने लगा
लाज घुलने लगी मेन्ह्दिये रंग में
चाँद की लिख कहानी वो बहला दिए
हम ने सोचा समोसा बने रंग में
आदरनीय तिलकजी की चौथी ग़ज़ल पर कोई हैरत नहीं है. मुझे विदित है एक तरही पर वे पूरा दीवान लिख सकते हैं और वह ही जोरदार और पुर असर ढंग से. सादर नमन.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है पारुल जी ने। पूरी ग़ज़ल प्रेम रस में सनी है। बहुत बहुत बधाई आदरणीया पारुल जी को।
जवाब देंहटाएंआदरणीय तिलकराज जी ने मज़ाहिया अंदाज में एक शानदार ग़ज़ल कही है। उनकी प्रतिभा को नमन। बहुत बहुत बधाई उन्हें इस ग़ज़ल के लिए।
जवाब देंहटाएंआदरणीय राकेश जी की जितनी तारीफ़ की जाए कम है। बहुत बहुत बधाई उन्हें एक बार फिर।
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