मंगलवार, 31 अगस्त 2010

धीरे धीरे समापन की तरफ बढ़ रहे हैं हम । आज गुरुकुल की ही तीन शायरों की प्रस्‍तुतियां हैं, अभिनव शुक्‍ल, प्रकाश अर्श और वीनस केशरी को आज सुनिये ।

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जनम से कृष्‍ण के हर्षित दसों दिशाएं हैं

हौले हौले हम अपने मुकाम पर पहुंच रहे हैं । बरसात का मौसम तो अभी चल ही रहा है । लेकिन हां ये बात ज़ुरूर है कि इस बार हमारे इलाके में बरसात ठीक नहीं हुई है अभी तक । इस बार शहर से होकर बहने वाली नदी एक बार भी बह कर नहीं निकली है उससे  ही पता चलता है कि बरसात की स्थिति क्‍या है । खैर अभी तो भादों का माह शेष है । भादों के माह के बारे कहा जाता है कि इसमें खूब बिजली चमकती है । सावन में तो बिना गरज चमक के वर्षा होती है ।  अब तो त्‍यौहार भी खूब चल रहे हैं । परसों ही सातूड़ी तीज गई है और मैंने  सातू खाने का खूब आनंद उठाया है । हल षष्‍ठी है फिर जन्‍माष्‍टमी है और फिर तो त्‍यौहारों की झडी़ ही लगने वाली है । यहां से लेकर अब देव उठनी ग्‍यारस तक त्‍यौहार ही त्‍यौहार होने हैं । तो चलिये आज तीन शायरों की ग़ज़लें सुनते हैं और आनंद उठाते हैं । आज भी बीच बीच में मैं नहीं आऊंगा आप सुनिये और दाद दीजिये ।

फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं

वर्षा मंगल तरही मुशायरा

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अभिनव शुक्‍ल

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अभिनव की सक्रियता इन दिनों ब्‍लाग जगत में वो पहले वाली नहीं है । लेकिन हां ये पता है कि साहित्‍य सृजन में वो सक्रिय है । अभिनव ग़ज़ल की कक्षाओं से सबसे शुरुआत से ही जुड़ा हुआ है । नये चित्र को देखकर लगता है कि पिछले दिनों काया का विस्‍तार हो चुका है । आइये सुनते हैं अभिनव की ग़ज़ल ।

ग़ज़ल बनाय रहे आंय बांय सांय हैं ,
नए ज़माने की नूतन विभीषिकाएं हैं,

नरक की झेल रहे चाहे यातनाएं हैं,
हमारे लोगों के सपनों में अप्सराएं हैं,

महानगर की बड़ी कुछ ये मूर्खताएं हैं,
वो मल्टीप्लेक्स में भी पापकार्न खाएं हैं,

जो अपने दिल के निकट से नहीं गुज़रते हैं
वो गीत सारे गुरु फिस्स फिस्स टांय हैं,

ये प्यार, दोस्ती, विश्वास, त्याग, अपनापन,
ये शब्द, शब्द नहीं हैं, कड़ी दवाएं हैं,

ज़रा मैं देखूं तो किसने संदेस भेजा है,
''फलक पे झूम रही सांवली घटाएं हैं.''

हूं अच्‍छे शेर निकाले हैं लेकिन ये भी नज़र आ रहा है कि बहुत जल्‍दी में काम किया गया है । रंग-ए-अभिनव गिरह के शेर में दीख पड़ रहा है लेकिन बाकी के शेर अभी और काम तथा मेहनत मांग रहे हैं । नरक की झेल रहे चाहे यातनाएं हैं में भी बहुत सुंदर प्रयोग है ।

प्रकाश अर्श

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प्रकाश को इस बार की बहर काफी मुश्किल लग रही थी । मगर मुश्किल के हिसाब से ग़ज़ल बहुत ही सुंदर निकाल कर भेजी है ।  हां इस बार ये कमी रह गई कि प्रकाश ने जामुनी नारंगी हरी पीली रंग की लड़कियों पर कोई शेर नहीं निकाला ।

ये ज़िंदगी से मिलीं जो भी यातनाएँ हैं

गुरेज क्यूँ हों,लिखीं सब की पटकथाएँ हैं

चला था घर से मैं जब तो ये ज़ेब खाली थी

हूं जिस मुकाम पे सब माँ की ये दुआएँ हैं

समझता है तू ही साकी के मर्ज क्‍या है मेरा

तेरे ही पास मेरे ग़म की सब दवाएँ हैं

वो प्यास कैसी रही होगी जिसको सुनकर ये

''फलक पे झूम रहीं सांवलीं घटाएँ हैं''

चलो लिबास ये अपना उतार कर रख दें

छलक न जाएं कहीं जो भी भावनाएँ हैं

बदल रही हैं हवाएं भी शक्ल अब अपनी

वो जानती हैं निशाने पे सब दिशाएं हैं

हूं गिरह का शेर एक बार फिर अच्‍छा बंधा है । मतला भी अच्‍छा बांधा है । चला था घर से मैं जब तो ये जेब खाली थी ये शेर भी मन का शेर बन गया है । लेकिन हां कंचन जैसे लोगों को उम्‍मीद ये थी कि पिछली बार जामुनी लड़कियां थी तो इस बार नारंगी होंगीं ।

वीनस केशरी

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वीनस ने गिरह के चार शेर भेजे थे । चारों शेर अलग अलग मूड के थे । उनमें से मुझे सबसे अच्‍छा जो लगा उसे ही मैंने शामिल किया है । 

हमें जो अर्थ प्रजातंत्र के बताएं हैं,

उन्हीं के पुत्र विरासत में मुल्क पाएं हैं

अभी तो गाँव में, पानी चढ़ा है, कन्धों तक

अभी से केन्द्र में क्यों हो रही सभाएं हैं

भला-बुरा न समझते हम इतने हैं नादाँ

सही, सही है गलत को गलत बताएं हैं

मुझे सफर में कोई हमसफ़र नहीं दिखता

ये जब से रूठ गई, मुझसे सब दिशाएं हैं

ए कहकशाँ तेरे आँगन में कौन रोता है

फलक पे झूम रही साँवली घटाएं हैं

तरस रहे हैं, जिसे देखने को सब, ‘‘वीनस’’

“ये वो सहर तो नहीं” , जिसकी कामनाएं हैं

हूं क्रियाओं का सही प्रयोग किया गया है और बहुत ही अच्‍छा है । मतले के दोनो ही मिसरों में क्रियाओं का काफिया बना कर बहुत सटीक निर्वाह किया है । मगर हां गिरह का शेर बहुत ही उसतादाना रंग लिये है । और मकते में मिसरा सानी के प्रयोग ने मुझे भावुक कर दिया ।

चलिये आज तीनों का आनंद लीजिये और अगला अंक जो शायद समापन हो सकता है उसका इंतज़ार कीजिये ।

21 टिप्‍पणियां:

  1. तीनों शायरों की ग़ज़लों में कई शेर पसंद आये...
    अभिनव जी का टांय टांय फिस्स वाला शे'र गज़ब का बन पड़ा है| ग़ज़ल वाकई में एकदम अलग अंदाज की लगी|
    ___________________________________________
    अर्श जी के शेर
    .....माँ की दुवाएं
    चलो लिबास........
    बहुत पसंद आये
    ________________________________________
    वीनस जी का मतला और दूसरा शेर सोच उनकी प्रौढ़ सोच को दर्शाता है|
    और मकते में गुरु जी के उपन्यास का जिक्र कर मुशायरा सरे आम लूट लिया....
    ______________________________________________
    तीनों शायरों को तहे दिल से मुबारकबाद

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  2. आज तो ब्लॉग पर क्रष्णा के विभिन्न रूपों ने मन मोह लिया......
    regards

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  3. गुरुकुल के तीनो शायरों की प्रस्‍तुतियां लाजवाब रही...क्या कहने .., अभिनव शुक्‍ल जी , प्रकाश अर्श जी और वीनस केशरी जी को हार्दिक बधाई

    regards

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  4. # आचार्य जी, त्यौहारों के इस मौसम में ब्लॉग भी सुन्दर से सुन्दर बनता गया है. इस तरही ने बहुत कुछ दिया है.

    # अभिनव शुक्ल जी के ग़ज़ल का इंतज़ार था, सो आज पूरा हुआ.
    प्रभावशाली पंक्तिया कह गए.
    एक मिसरा ..."नए ज़माने की नूतन विभीषिकाएं हैं" क्या बात है...... दाद कबूले.

    # प्रकाश अर्श जी का मैं विशेष शुक्रिया अदा करता हूँ.
    क्यूँकि...

    चला था घर से मैं जब तो ये ज़ेब खाली थी
    हूं जिस मुकाम पे सब माँ की ये दुआएँ हैं
    इस शेर ने आज सुबह जो मुझे तोहफा दिया है वो बेशकीमती है.

    (आज मेरा जन्मदिन है, और माँ से मैं शायद कुछ ऐसा ही कहना चाहूँगा)

    # इसमें कोई शंका नहीं है कि अपने प्रिय वीनस इस बरसात में पूरे उफान पर हैं.

    अभी तो गाँव में, पानी चढ़ा है, कन्धों तक
    अभी से केन्द्र में क्यों हो रही सभाएं हैं

    तरस रहे हैं, जिसे देखने को सब, ‘‘वीनस’’
    “ये वो सहर तो नहीं” , जिसकी कामनाएं हैं


    मुशायरा लूट लिया आपने. जियों वीनस जियो.

    - सुलभ

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  5. अर्श जी, आपका संपर्क मेरे फोनबुक में नहीं है !
    तीव्र इच्छा हो रही आप को शुक्रिया बोलूं!!

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  6. पंकज जी ,नमस्कार,
    वैसे तो सभी ग़ज़लें अच्छी हैं लेकिन अर्श जी का ये शेर कि
    बदल रही हैं हवाएं...........
    मुझे बहुत अच्छा लगा
    और
    वीनस की ख़ूबसूरत मतले से शुरू की गई ग़ज़ल
    बेहद ख़ूबसूरत मक़ते पर ख़त्म हुई, आम आदमी के दुखों से परिचित है ये ग़ज़ल
    आप को और सभी कवियों को बधाई

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  7. वाह. आनंद आ गया.
    अभिनव जी का शेर "..सपनो में अप्सराएँ हैं" बेहद पसंद आया.

    अर्श भाई की गज़ल, क्या बात है. "चला था घर से...", "चलो लिबास ये..", "बदल रही हैं हवाएं.." और मतला खास तौर पर पसंद आये.

    वीनस भाई की गज़ल भी लाजवाब है. "अभी तो पानी चढा है, कंधों तक.." की तो जितनी तारीफ़ करूँ कम है. गिरह का शेर भी बहुत ही अच्छा है. मकता भी लाजवाब है.

    तीनों गुरु भाइयों को बहुत बहुत बधाई.

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  8. अभी पता चला कि सुलभ का आज जन्‍मदिन है पूर्व में पता होता तो आज सुलभ की ही ग़ज़ल लगती । सुलभ को जन्‍मदिन की शुभकामनाएं ।

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  9. आदरणीय सुलभ जी को जन्‍मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं
    regards

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  10. तीनों शायरों की शायरी ने दिल लुभा लिया।

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  11. आज तो तीनो गुरुभाइयों ने कमाल किया है .... बहुत जो लाजवाब और ग़ज़ब के शेर बने हैं .... अभिनव, प्रकाश और वीनस तीनो ही आजकल ज़्यादा नही आते ब्लॉग जगत में .... पर साहित्य जगत में तीनो ही सक्रिय हैं ... ये आज की गज़ाल देख कर ल्ग रा है .... ये मुशायरा अपनी उँचाइयों को छू रहा है .... इसमे गुरुदेव आपका योगदान सबसे अधिक है .... आपका बहुत बहुत आभार इस बात के लिए .....

    SULABH JI KO JANAM DIN BAHUT BAHUT MUBARAK ...

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  12. "होनहार बिरवान के होत चीकने पात..."अगर किसी को ये लोकोक्ति समझ न आती हो तो उसे आज आपकी ये पोस्ट पढ़ लेनी चाहिए ...तीनो युवा ग़ज़लकारो ने साबित कर दिया है के वो होनहार हैं...
    अभिनव ने अपने नाम को सार्थक करते हुए अभिनव ढंग से गिरह बाँधी है...वाह...गिरह बंदी में प्रकाश ने भी नाम के अनुसार अर्श छू लिया है...भाई वाह...और विलक्षण प्रतिभा के धनी वीनस ने ये वो सेहर तो नहीं मिसरे में बाँध कर हम सब का दिल जीत लिया है...
    मेरी बात जो मैंने शुरू में ही कही थी अक्षरश: सच निकल रही है..."ये तरही मुशायरा ब्लॉग जगत का एक यादगार मुशायरा होगा..."

    नीरज

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  13. Vinus Kesari ji ki ghazal bahut achchi lagi.
    prajatantra wala sher bahut sunder. Gaanv mein paani wla toh bahut hee prabhaav shaali! E kah kashan wla aur yeh vo sahar nahin wale dono sher bhee naazuk.

    Arsh ji ke bhee kuchh sher sunder. Chalo libaas yeh mujhe bahut hee sunder jaan pada!

    Abhinav ji hamesha alag sa likhte hain. unka makhta bhala laga, magar yeh pakka hai ki jab vi apne andaaz mein ghazal sunayenge to poori hee behtareeb lagegi. Sabko badhayee.
    Laptop almost shutdown karne waali thee par Veenus ji ki ghazal padh ke unhein daad diye bina raha nahin gaya. shabaash!
    Sorry Roman ke liye...
    sadar...

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  14. Oh! Forgot to wish Sulabh ji... Many happy returns of the day Sulabh Satrangi ji... ekdum satrangi si rahe aapki duniya :)
    sadar

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  15. आदरणीय पंकज जी, आदाब
    पोस्ट को सजाने का हुनर इस ब्लॉग की सबसे बड़ी विशेषता बन चुकी है...जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं
    आज की तरह में शामिल तीनों ही शायरों ने अपनी प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन किया है, जिसके लिए उनकी जितनी भी सराहना की जाए कम है..
    वैसे इसमें कोई शक नहीं, कि तीनों में..
    जनाब प्रकाश ’अर्श’ जी अपने नाम के अनुकूल
    प्रकाश की गति से चलते नज़र आएं हैं.

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  16. गुरु जी प्रणाम,

    सबसे पहले आपको व पूरे ब्लोग जगत को जन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनाएं और फ़िर सुलभ जी को जन्मदिन की ढेरों बधाई

    क्या खूबसूरत ब्लोग को सजाया है देख कर मज़ा आ गया
    और पोस्ट को पढ्ना शुरु किया तो शुरुआत हुई अभिनव जी की गज़ल के अभिनव प्रयोग से

    गज़ल बनाय रहे.. "बनाय" शब्द ने ही रोक लिया कि पहले यहां तो पूरा मज़ा ले लो बच्वा आगे फ़िर बढ्ना :)

    आजकल कड्वी दवाओं से ही गुज़र बसर हो रही है इस लिये वो शेर भी पसन्द आया;)
    और जो सकारात्मक गिरह लगाई है वो शेर तो बहुत बहुत पसन्द आया



    अर्श भाई तो छा गये है,

    इनकी खासियत है कि कभी नकारात्मक बात नहीं लिखते, शुरु के दो शेर क्या ही ऊर्ज़ा लिये हुए है कि दिल खुश हो गया

    और इस गज़ल में मुझे जो सबसे खास शेर लगा वो है गिरह वाला

    वो प्यास कैसी रही होगे जिसको सुनकर ये........

    वाह वाह, वाह वाह

    एक बारगी मुझे मेरी प्रिय गज़ल का एक शेर याद आ गया

    कितने दिनों के प्यासे होनें यारों सोचो तो
    शबनम का कतरा भी जिनको दरिया लगता है

    अन्तिम दो शेर भी पसन्द आए

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  17. गुरु जी, मेरी गज़ल आपको पसन्द आई, लिखना सफ़ल हुआ

    चारों में से जो गिरह वाला शेर आपने पसन्द किया व गज़ल के लिये चुना है, वो ही सबसे पहले लिखा था, मगर बडा रोने धोने वाला लगा था इसलिये फ़िर तीन और लिखे, नकारात्मकता के बात छोड दें तो मुझे भी यही सबसे ज्यादा पसन्द है.

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    गज़ल को पसन्द करने व हौसलाअफ़्ज़ाई के लिये मै सभी का तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूं

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  18. सबसे पहले सुलभ जी को जन्मदिन की बहुत -बहुत बधाई. मेरी शुभ कामनाएँ सुलभ आप के साथ हैं.
    अभिनव, प्रकाश और वीनस तीनों की गज़लों ने रौनक लगा दी. ब्लाग पर बाल गोपाल आँखें झपक रहे हैं और मैं आप तीनों की ग़ज़लें पढ़ कर आँखें झपक रही हूँ. कितना बढ़िया लिखते हो..काश! मैं भी ऐसा लिख पाऊँ.
    अभिनव आप की ग़ज़ल बहुत पसन्द आई विशेषतः अप्सराएँ और कड़ी दवाएँ वाला शेर.
    प्रकाश आप तो बहुत ही बढ़िया लिखते हैं. जेब ख़ाली, वो प्यास, चलो लिबास शेर मन को बहुत भाए.
    वीनस आप की तो पूरी ग़ज़ल ने मन को बाँध लिया.

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  19. प्रणाम गुरु देव,
    पिछली पोस्ट से ही उलझन में हूँ आपकी परेशानी को कि आप परेशान हैं ... तरही अपने उफान पर है और आपकी ग़ज़ल की बाट जोह रहा हूँ मैं भी ,.. तमाम लोगों का शुक्रिया जिन्होंने अपना प्यार और आशीर्वाद दिया मुझे इस ग़ज़ल को पसंद कर मगर सच कहूँ तो मुझे खुद ही यह ग़ज़ल ज्यादा पसंद .... :)
    गुरु भाई अभिनव हमेशा की तरह इस बार भी अच्छा लिखे हैं ...भाई अभिनव का मैं मुरीद सबसे ज्यादा इस वजह से हूँ कि वो ग़ज़ल में प्रयोग करते रहते हैं और सफल भी होते हैं ... गिरह भी बढ़िया लगाई है !
    वीनस ने अछे शे'र कहे हैं ... शार्दूला दीदी जिस तरह से इसकी तारीफ की हैं सच कहूँ तो रश्क कर रहा हूँ :) :)
    प्रिय सतरंगी को जन्म दिन की ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं....

    magar kuchh logon ki anupastthi khal rahi hai .....

    आपका
    अर्श

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  20. गुरु जी इस बार मुंबई में बरसात ने कई पिछले पुराने रिकॉर्ड तोड़-फोड़ दिए हैं, अभी तक अनुमान के हिसाब से 3000mm तो बरस ही चुका है.
    अर्श भाई परेशान मत हो, मैं आ गया हूँ..........................
    अभिनव जी को काफी दिनों बाद सुन रहा हूँ, गिरह अच्छी लगाई है,
    ज़रा मैं देखूं तो किसने संदेस भेजा है,
    ''फलक पे झूम रही सांवली घटाएं हैं.''
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    अर्श भाई तो कहते ही रहे कि बहर बहुत ज्यादा कठिन है, नहीं लिखा जा रहा और ये देखिये क्या खूबसूरत ग़ज़ल कही है. वाकई अब रंग दिखने लगा है उन दिनों का जिन्होंने काफी दिनों तक आपको सोचने पे मजबूर किया था, हर शेर में एक अलग रंग, एक नया मिजाज़ एक अलग एहसास है, हर लफ्ज़ बहुत बारीकी से पिरोया है.
    मतला ही जानदार है मियां, इससे आगे बढूँ तो अगला शेर "माँ की दुआएं" अच्छा कहा है, बात बहुत पुरानी है, कई बार कही जा चुकी है मगर एक अलग ढंग से उसे कहा गया है, जो सुन्दर है.
    गिरह तो जबरदस्त लगाई है...........वो प्यास कैसी रही होगी जिसको सुनकर ये....वाह वाह, तड़प को बहुत अच्छे से पिरोया है और उस पे गिरह में बाँधा है.
    मज़ा आ गया, अर्श भाई, आज एक नए अर्श को पढने का मज़ा लिया.............शाहिद जी की बात दोहराऊं तो प्रकाश की गति से चल रहे हो.
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    वीनस भाई,
    ये भी बहुत बहाने बनाते रहे, मगर जब सामने आये तो एक शानदार ग़ज़ल के साथ.
    पूरी ग़ज़ल सहेजने लायक है, मतला और उससे अगला शेर तो क्या खूब चोट कर रहे हैं.
    "भला-बुरा न समझते हम इतने हैं नादाँ", नए अंदाज़ में बात कही है.
    गिरह भी जबरदस्त लगाई है, हर किसी का अपना एक लफ्ज़ होता है जिससे वो कहलता रहता है, वो उसे अलग अलग तरीके से पिरोता है, सजाता है..........जैसे गुलज़ार साहब का "चाँद", वैसे मेरे ख्याल से वीनस का "कहकशाँ".

    तरस रहे हैं, जिसे देखने को सब, ‘‘वीनस’’

    “ये वो सहर तो नहीं” , जिसकी कामनाएं हैं
    मक्ता के बारे में कुछ कहने के लिए शब्द नहीं है, वाह वाह वाह

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  21. बड़े दिनों बाद गुरूकुल के सितारों को देखकर हर्षित हूं, वर्ना तो हमलोगों को लगने लगा था कि जैसे हम बेदखल हो गये थे इस जमीन से जिस पर हमारा हक हुआ करता था... :-)

    अर्श की लेखनी का चमत्कार अब तो और जल देता है। गुमशुदा वीनस का पता कहीं तो मिला....और अभिनव भाई को इतने दिनों बाद पढ़ना अच्छा लगा।

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