बरसात हो गई है और अच्छी खासी हो गई है । कल तो दिन भर बरसात यूं होती रही कि पूरा दिन ही मेघों को समर्पित हो गया । इसी बीच बिजली भी आती जाती रही और बहुत कुछ होता रहा । खैर अब तो चारों तरफ हरियाली की चादर बिछ गई है और ऐसा लग रहा है कि धरती ने हरी हरी चूनर पहन ली है । देर रात को जब पानी बरसता है तो खिड़की पर बैठ कर उसको एक टक देखना कितना अच्छा लगता है ( शादी के पहले । शादी के बाद यदि आपने यूं करा तो आपका जीवन साथी आपको पागल घोषित कर सकता है ) । बरसात यदि न होती तो इन्सान के जीवन में कितना सूनापन होता कितना अधूरापन होता । जब मेघ घिर कर आते हैं और धरा पर छा जाते हैं तो ऐसा लगता है कि किसी चिरंतन प्रेम के हम भी साक्षी हो गये हैं । चिरंतन प्रेम जो मानव को प्रेम करना सिखाता है । धरा और गगन का प्रणय । कवि का मन मेघों के संग ही गाता है और गीत बन जाता है कविता बन जाती है ।
इस बार की बहर कुछ कठिन सी तो थी लेकिन उसके साथ कठिन था काफिया और रदीफ का निर्वाहन । लेकिन फिर भी बहुत अच्छे प्रयोग किये गये हैं । जैसा कि पूर्व में बताया था कि इस बहर में ज़रा चूके तो बहर हाथ से निकल जाती है । इसके जो बीच के दूसरे और तीसरे रुक्न हैं 1122 और 1212 इनमें सबसे ज्यादा फिसलने की संभावना है । दूसरे नंबर का फएलातुन कब आप मुफाएलुन कर बैठेंगे आपको पता भी नहीं चलेगा । और इसी प्रकार तीसरा मुफाएलुन आप कब फएलातुन कर देंगे आपको पता भी नहीं चलेगा । धुन पर ग़ज़ल लिखने वाले जहां पर मात खाते हैं ये वो ही जगह हैं । यदि आप तकतीई करके काम कर रहे हैं तो आप मात खा ही नहीं सकते हैं । ग़ज़ल को मीटर पर कसने का सबसे अच्छा तरीका है तकतीई । लेकिन ग़ज़ल लिखने का सबसे अच्छा तरीका है धुन । तो फिर ग़ज़ल लिखने का सही तरीका क्या है ? ग़ज़ल लिखने का सही तरीका ये है कि पहले आप गुनगुना कर धुन बनाकर या तहत में जैसे भी आपको सुविधाजनक लगे वैसे ग़ज़ल लिख लें और फिर उसके बाद जब ग़ज़ल पूरी हो जाये तो तकतीई पर कस कर मीटर को दुरुस्त कर लें । आप हाथ में इंच टेप लेकर यदि ग़ज़ल लिखेंगें तो विचार फुर्र हो जाएंगे, जो बचा रहेगा वो होगा शब्दों को कांट छांट कर बनाया गया एक ढांचा । वापस वही कि जब आप इस ग़ज़ल को पूरा लिख कर तकतीई करेंगें तो पाएंगे कि एक दो जगहों पर आपने रुक्नों की ऊपर वाली हेर फेर कर दी है । उसे ठीक कर लें ।
वर्षा मंगल तरही मुशायरा
फ़लक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं
अंकित सफ़र
( पद्मश्री डॉ बशीर बद्र साहब के साथ )
शरारतों में छिपी उम्र की अदाएं हैं.
तमाम रंग समेटे हुए दिशाएं हैं.
नज़र सभी से बचा कर मिलन की चाह लिए,
तेरे ख्याल दबे पाँव चल के आएं हैं.
लगा के धूनी इन्हें जोगियों ने साधा है,
ये पर्वतों में जो फैली हुईं गुफाएं हैं.
ये मन्नतों का शजर है यहाँ अकीदे की,
हज़ार डोर में बाँधी हुई दुआएं हैं.
सुकूं की सांस मिली है ज़मीन को थोड़ी,
फलक पे झूम रही सांवली घटाएं हैं.
मैं पागलों सा जिन्हें ले के फिरता रहता था,
वो ख़्वाब रोज़ मुझे रात भर जगाएं हैं
प्रकृति को बहुत बढि़या तरीके से शेरों में बांधा है । लगा के धूनी इन्हें जोगियों ने साधा है, बहुत दूर तक जाता है । सीधे अर्थ को छोड़ कर जब हम प्रतीक पर जाते हैं तो ये आनंद का शेर बन जाता है । कभी कभी सोचता हूं कि बच्चे कितनी जल्दी बड़े हो जाते हैं और कितनी जल्दी इनकी सोच बड़ों के समान हो जाती है।
रविकांत पांडेय
( पद्मश्री डॉ बशीर बद्र साहब के साथ )
नजाकतों से भरी कुछ हसीं ख़तायें हैं
जमाने भर से जुदा हुस्न की अदायें हैं
मिले तो कैसे मिले राम को यहां गद्दी
हरेक घर में छिपी बैठी मंथरायें हैं
ये छू के आईं हैं उनको बता रहीं हैं ख़ुद
जो खुश्बुओं से भरी बह रहीं हवायें हैं
गली से उसकी नहीं आज तक कोई लौटा
जो जा रहे हो तो जाओ मेरी दुआयें हैं
नशे में चूर हो जैसे पिया से मिल गोरी
फलक पे झूम रही सांवली घटायें हैं
वफ़ा की राह में मिट जाना जिनकी फ़ितरत है
उन्हीं के नाम से रोशन यहां फ़िजायें हैं
वाह वाह वाह, पूरी ग़ज़ल एक तरफ और गली से उसकी वाला शेर एक तरफ । बहुत ही उम्दा शेर कहा है । ऐसा नहीं है कि बाकी की ग़ज़ल कमज़ोर है लेकिन कभी कभी होता है कि जब हासिले ग़ज़ल शेर बन जाता है तो बाकी के अच्छे शेर भी उसके सामने फीके हो जाते हैं ।
भभ्भड़ कवि भौंचक्के इन दिनों कुछ भौंचक्का करने वाला काम करने की तैयारी में जुटे हैं और उसके लिये उन्होंने बाकायदा एक वकील श्री नीरज गोस्वामी को नियुक्त कर दिया है इस घोषणा के साथ कि जो कुछ भी भला बुरा हो उसके लिये हमारा वकील ही जिम्मेदार होगा हम कतई नहीं ।
एक थोड़े से अलग मूड की कहानी हिंदी चेतना के ताजा अंक में प्रकाशित हुई है मौका मिले तो यहां जाकर अवश्य पढ़ें । कहानी का शीर्षक है राम जाने ।
कहानी राम जाने पढ़कर प्रसन्नता हुई.आप तो हमेश ही गज़ब का लिकह्ते हैं. आज के तरही में अंकित और रचिकान्त की गज़लें समा बाँध गईं. दोनों गज़लकारों को बधाई.
जवाब देंहटाएंअंकित जी बहुत सुंदर शेर कही आपने..विशेष रूप से अंतिम शेर तो और भी बेहतरीन बन पड़ा है.....
जवाब देंहटाएंरविकान्त जी सुंदर ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाई..
मुझे याद है जब अंकित मेरे यहाँ आया था वो मुझे निहायत भोला भाला सीधा सादा लगा, तब नहीं मालूम था के इस मासूम इंसान के दिल में इतने खूबसूरत अशआर भरे हुए हैं...अंकित को देख कर आप उसकी प्रतिभा का अंदाज़ा नहीं लगा सकते लेकिन उस से मिलने के बाद आपको ही उसकी सोच की गहराई का कुछ अंदाज़ा हो पाता है...उसकी इस ग़ज़ल के कुछ अशआरों ने मुझे चौंका दिया है , अब मुझे इस के लिए जल्द ही उसे एक बढ़िया सी पार्टी देनी पड़ेगी...
जवाब देंहटाएंलगा के धूनी...
ये मन्नतों का शजर...
जैसे शेर हमेशा साथ रहने वाले हैं...वाह अंकित वाह...दिल बाग बाग हो गया आज तुम्हारी ग़ज़ल पढ़ कर...गुरूजी ने सच कहा बच्चे कितनी जल्दी बड़े हो जाते हैं , पता ही नहीं चलता...शाबाश होनहार बच्चे लिखते रहो...
रवि से कभी मिला नहीं लेकिन उसकी प्रतिभा का हमेशा से कायल रहा हूँ. उनके पास भाव और शब्द का भण्डार है जिसे वे बहुत ख़ूबसूरती से अपनी रचनाओ में पिरोते हैं ...इस बार भी उसने कमाल किया है...बिना उस्तादी हासिल किये ऐसे शेर कहना नामुमकिन है...
मिले तो कैसे मिले शेर में मंथरा का काफिया गज़ब ढा रहा है...अछूता है...
गली से उसकी...कमाल का शेर है...
किसी ने सच ही कहा है प्रतिभा उम्र की मोहताज़ नहीं होती...ये बात इन दोनों युवाओं ने सिद्ध कर दी है...दोनों खूब लिखते जाएँ और नाम कमायें ये ही दुआ करता हूँ...आनंद ला दिया आज दोनों ने...वाह वा...
नीरज
गज़लकारों को बधाई!
जवाब देंहटाएंवाह. बहुत ही खूब ग़ज़लें.
जवाब देंहटाएंअंकित की बाँधी गिरह बहुत ही अच्छी लगी.रविकांत जी का 'मन्थराएँ' वाला काफिया क्या बात है. बहुत ही अच्छा लिखा है.सभी अशआर अच्छे लगे.
दोनों गुरूभाईयों ने कमाल के शेर गढ़े हैं...अहा, आज की ये एकदम फुरसत वाली सुबह बन गयी हमारी।
जवाब देंहटाएंअंकित का मतला बहुत प्यारा लगा। जाने किसकी शरार की बात कर रहा है लड़का। और फिर "लगा के धूनी इन्हें जोगियों ने साधा है" वाले मिस्रे पे वाह-वाह और फिर से वाह-वाह। आखिरी शेर वैसे तनिक और मेहनत मांग रह था। पहले मिस्रे का "फिरता" पे आकर खत्म हो जाना कुछ अटपटा सा लग रहा है। चौथे शेर को पढ़कर यहां कश्न्मीर के एक प्रसिद्ध पीर की मजार में बांधे गये धागों की याद हो आयी...जहां कभी वर्षों पहले हमने भी एक धागा बांधा था।
रवि भाई को बड़े दिनों बाद पढ़ने का मौका मिला है। जाने कहां गुम हो रखा है इन दिनों। उसके मिथक वाले शेर हमेश लाजवाब होते हैं। यहां भी मंथरायें वाला काफ़िया हैरान कर गया। और "गली से उसकी नहीं आज तक कोई लौटा" वाला शेर वाकई बहुत खूबसूरत बन पड़ा है।
दोनों गुरूभाईयों को ढ़ेर-ढ़ेर बधाई इन लाजवाब अशआर बुनने पर।
...फुरसत में हूं एकदम से तो अभी अभी "रामजाने" भी पढ़ गया। मालती और शर्मा आंटी के जरिये खोते रिश्तों को जिस तरह से उभारा है आपने वो गज़ब है। लेकिन कहानी की सबसे खास बात जो लगी मुझे वो "सिलसिला" फिल्म का जगह-जगह बिम्ब के तौर पर आना। चाहे वो उसके रिलीज के साल को लेकर हो या फिर नीचे पान की दुकान वाला जुमला या फिर ये कहां आ गये है की धुन या फिर नीले आसमान को कब तक सुलवाती रहेगी का मजेदार प्रश्न...बेमिसाल गुरूदेव!
dono ghazalon mey naya rang hai.badhai...iss silsile ke liye.
जवाब देंहटाएंअंकित के शेरों ने बहुत प्रभावित किया. बहुत सुन्दर ग़ज़ल और भाव हैं.
जवाब देंहटाएंरविकांत जी ने हमेशा की तरह अपने ख़ास अंदाज वाले शेर रक्खे हैं.
आचार्य जी के महीनी निर्देश और मौसमी कथन के क्या कहने. लाजवाब मुशायरा. कहानी पढ़कर लौटता हूँ.
दोनों ग़ज़लें बहुत अच्छी लगीं। दोनों ने अच्छे काफि़ये लिये हैं और स्पष्ट भाव भी सोच में भी परिपक्वता दिख रही है। अंकित और रवि की उम्र में हमें तो ग़ज़ल का ग़ भी नहीं आता था, ये तो कुछ शरारती तत्वों ने बाद में उकसा उकसा कर ग़ज़ल जैसा कुछ कहने की लत लगा दी।
जवाब देंहटाएंरवि के मत्ले की पहली पंक्ति में ग़ल्ती से हंसी टंकित हो गया है यह हसीं रहा होगा। ठीक करना जरूरी है वरना बाहरी ताकतों को बहुत एतराज़ होगा।
सोवती हूँ कि जो सब कहें वो मैं ना कहूँ। मगर आज जो सब कह रहे हैं, वही मेरे मन में भी चल रहा है।
जवाब देंहटाएंहलके फुलके अंदाज़ में बात करने वाला यें अंकित कभी आज्ञाकारी अनुज और कभी खिंचाई कर लेने वाला लाडला ही लगा। मगर अभी कुछ दिन पहले जब मैने फोन पर बात करते हुए किसी घटना का ज़िक्र करते हुए कहा " जिंदगी का बड़ा अलग सा अनुभव रहा मेरा ये।" तो उसने बड़े फिलॉसफिक वे में कहा " अलग अनुभवों का नाम ही जिंदगी है दीदी।" मैं एक क्षण को अचंभित हो गई ये अचानक ऐसे कैसे बोलने लगा।
और आज ये गुफाएं वाला शेर...! वाक़ई मुझे ला कि ये शेर मेरा क्यों नही है। जैसे लगा किसी स्त्री के मन से बोल रहा है।
रवि जी का नाम आते ही सोच लेती हूँ कि कुछ अच्छा ही पढ़ने को मिलेगा।
मंथराएं वाला शेर अच्छा बना है मगर उससे भी अच्छी गली वाले शेर की सादाबयानी है....!!
कहानी आराम से पढ़ूँगी।
बहुत ही खूबसूरत और शानदार गज़लें हैं।
जवाब देंहटाएंबच्चे कितनी जल्दी बड़े हो जाते हैं ... इस बात पे खामोश हो गया था पढ़ते पढ़ते ... अंकित ने अछे शे'र कहे हैं , क्षमा चाहूँगा मगर उससे पहले ही ये शे'र सुन चुका था और तब भी ये उसी मौज में थे सारे शे'र .. वाकई गुफाओं वाला शे'र हट के है और दूर तलक ले जाने वाला है .. मगर जिस मिसरे से उसने गिरह लगाई है उसपे खड़े होकर तालियाँ ...
जवाब देंहटाएंरवि भाई हमेशा की तरह अछे शे'र कहे हैं .. मंथराएँ वाले शे'र में इस काफिया ने चौका दिया ... रवि भाई ने भी गिरह खूब लगाई है ... दोनों गुरु भाइयों को बधाई तरही को उफान पर ले जाने और खूब गोते लगवाने के लिए ... भभ्भड़ कवि का इंतज़ार करूँगा ... मुझे भी खबर मिल रही है उनके बारे में के वो कुछ खास करने वाले हैं .. घर जा कर राम जाने को आत्मसात करूँगा ... पूरी तरह से इत्मीनान से ...और तशल्ली वख्श ...काम होगा ...
अर्श
दोनों ही ग़ज़ले बेहतरीन है. दोनों ही शायरों को बधाई
जवाब देंहटाएंवाह-वाह अंकित और रवि ने तो कमाल कर दिया.
जवाब देंहटाएंअंकित का शे'र --
लगा के धूनी इन्हें जोगियों ने साधा है
ये पर्वतों में जो फैली हुई गुफाएं हैं
क्या बात कही है...ये पंक्तियाँ उम्र भर याद रहेंगी.
और रवि आप तो हमेशा ही कमाल का लिखते हैं --
मिले तो कैसे मिले राम को यहाँ गद्दी
हरेक घर में छिपी बैठी मन्थराएँ हैं
बहुत खूब रवि..
दोनों को बहुत -बहुत बधाई.
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंदो दिन से नई पोस्ट का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था, और इंतज़ार का सुखद परिणाम प्राप्त हुआ
अंकित भाई और रवि भाई की गजल पढ़ कर मज़ा आ गया |
@ अंकित भाई - ये मन्नतों का शज़र है .........
वाह वाह
वाह वा.......
दिल खुश हो गया
@ रवि भाई - मंथराएं काफिया चौंका रहा है और वही इस शेर को खास बना रहा है, मज़ा आ गया
अब फिर से इंतज़ार .....:)
वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और कसी हुयी ग़ज़लें ! इसे कहते हैं ग़ज़ल ! आनंद आ गया ! धन्यवाद सुबीरजी ! कहानी बाद में पढूंगा.
:)
जवाब देंहटाएं:):)
जवाब देंहटाएंरवि भाई
जवाब देंहटाएंमतला बहुत नजाकत से कहा है, वाह वाह
उसके बाद वाला शेर, अहा आनंद आ गया
"मिले तो कैसे मिले राम को यहां गद्दी
हरेक घर में छिपी बैठी मंथरायें हैं "
आप के पास ज्ञान और कहन का जो अकूत भण्डार है, ये उसकी एक झलक है, बहुत अच्छे से बात कही है, शेर पुरानी कथा की बात तो कह ही रहा है साथ एक सन्देश भी दे रहा है, प्रतीकों के रूप में.
इस शेर के बारे में क्या कहा जाये, मेरा सलाम आपको
"गली से उसकी नहीं आज तक कोई लौटा
जो जा रहे हो तो जाओ मेरी दुआयें हैं "
आखिरी शेर भी खूब बना है,
वफ़ा की राह में मिट जाना जिनकी फ़ितरत है
उन्हीं के नाम से रोशन यहां फ़िजायें हैं
पूरी ग़ज़ल खुशनुमा है, बहुत बहुत बधाई आपको.
ितने छोटे से प्यारे से बच्चे से इतनी उमदा गज़ल की कल्पना भी नही कर सकते मगर जब उस से बात करो तो लगता है कि वो अभी से बडा हो गया है। देख रही हूँ आने वाले समय मे जब भी गज़ल की बात होगी तो अंकित का नाम पहले आयेगा । उसकी पूरी गज़ल कमाल की है
जवाब देंहटाएंनज़र बचा के----
लगा के धूनी---- वाह शाबाश अंकित बहुत बहुत आशीर्वाद।
और रवी तो पहले ही उस्ताद हैं
मिले तो तो कैसे----- वाह
वफा की राह मे-----
दोनो की गज़लें लाजवाब हैं बधाई।
शरारतों में छिपी .... क्या ग़ज़ब कर दिया है आँकित जी ने ... शुरुआत इतनी कमाल है और उसके बाद तो हर शेर पर वाह वह ही निकल रहा है ....
जवाब देंहटाएंरवि जी ने भी ग़ज़ब ढा दिया है ... राम को गद्दी से लेकर ....... प्राकृति को बहुत ही मासूम अंदाज़ से बाँधा शायरी में ......