इस बार के स्वतंत्रता दिवस को लेकर कुछ ऊहापोह थी । ऊहापोह ये कि क्या किया जाये । नारे लगा कर जय बोलने से यदि सब कुछ ठीक हो जाता हो तो मैं दिन भर रात भर नारे लगाने के लिये तैयार हूं । लेकिन फिर ये खयाल आया कि वे सब जो इस देश पर अपने आप को लुटा कर चले गये उनको यदि आज भी याद नहीं किया गया तो फिर देश पर कुर्बान होने के लिये कोई आगे ही क्यों आयेगा । विचार आया कि अब किस शायर की तरही आनी रह गई है । पता चला कि शाहिद भाई की ग़ज़ल अभी तक नहीं आई है । शाहिद भाई से निवेदन किया गया कि आप ही 15 अगस्त पर लिखें । 13 अगस्त तक जब कुछ नहीं मिला तो लगा कि अब तो सामान्य रूप से ही तीन ग़ज़लें लगा कर पन्द्रह अगस्त मना लिया जाये । लेकिन 14 की सुबह मेल बाक्स में शाहिद भाई की ये देशभक्ति के जज्बों से भरी हुई शानदार ग़ज़ल मिली तो ऐसा लगा कि मानो प्रकाश फैल गया हो । देश का आज जो कुछ भी हाल हो लेकिन सच ये है कि वे लोग जो अपने प्राणों का उत्सर्ग करके हमारे हाथों में आज़ादी की मशाल थमा कर चले गये उनका क़र्ज अभी भी हम पर बाकी है । आभारी हूं शाहिद भाई का कि उन्होंने मेरे निवेदन को स्वीकार कर ये रचना विशेष तौर पर आज की तरही के लिये लिखी ।
पिछली बार की तरही में तिलक जी ने क्रियाओं को बहुत ही सुंदर तरीके से काफिये में बांधा था । तजल्लियात भरे, रक्स ये दिखाएँ हैं, खबर कोई तो मिले, खैर हम मनाऍं हैं। इन दोनों मिसरों में देशज तरीके से काफिये दिखाएं और मनाएं को बिल्कुल ठीक प्रकार से बाधा गया है । जैसे रक्स ये दिखाएं हैं में दिखाने की क्रिया का अनवरत होता रहना दर्शाया जा रहा है और उसी प्रकार खैर हम मनाएं में खैर मनाने की प्रकिया का दोहराव हो रहा है । तो दोनों ही स्थानों पर देशज तरीके से क्रिया को काफिया बनाने का बहुत ही सुंदर उदाहरण पेश किया है तिलक जी ने । इसी पर शाहिद भाई ने एक शेर भी निकाला है है बोलचाल की भाषा में फ़र्क शब्दों का, ’बता रहे हैं’ कहें, या कहें ’बताएं हैं’ । मेरे विचार में शाहिद भाई के एक शेर ने काफी कुछ साफ कर दिया है कि किस प्रकार से क्रियाओं को काफिया बनाने का देशज तरीका होता है जो बहुधा उपयोग होता रहा है ।
वर्षा मंगल तरही मुशायरा
फ़लक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं
शाहिद भाई अपनी ग़ज़लों का चमत्कार पहले के तरही मुशायरों में भी दिखा चुके हैं और आज भी वे यही करने जा रहे हैं । शाहिद भाई मेरठ उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं और पत्रकारिता से जुड़े हैं । पहले में समझता था कि वे रेलवे में हैं क्योंकि जब भी उनका मोबाइल आता था तो पीछे से रेल कर आवाज़ हमेशा ही आती थी । उनकी इस बार की ग़ज़ल सिर्फ ग़ज़ल नहीं है बल्कि एक दस्तावेज़ है एक ऐसा दस्तावेज़ है जो आज लिखा जाना बहुत ज़रूरी है । आज जब हम आज़ादी का अर्थ कुछ और लगा चुके हैं । उस दौर में ये ग़ज़ल एक प्रश्न है जो हर उस दरवाज़े पर पहुंच रहा है जहां पर वे लोग बैठे हैं जिनको हमने उत्तर देने का जिम्मेदार बनाया था । बहुत कुछ नहीं लिखूंगा इस ग़ज़ल के बारे में बस आप सुनिये और गुनिये ।
सुनहरे हर्फ़ों से उनकी लिखी कथाएं हैं
वो जिनके सदके में आज़ाद ये फ़िज़ाएं हैं
हुए शहीद जो, बलिहारी उनके जज़्बों पर
वतन परस्तों के दिल की यही सदाएं हैं
उठा सवाल यहां जब भी राष्ट्र भक्ति का
हैं वीर नर सभी, नारी वीरांगनाएं हैं
समझ तो ये है समझ लें सबब ग़ुलामी का,
सबक़ लें उन से जो हम से हुई ख़ताएं हैं
मना रहा है ये मौसम भी जश्ने-आज़ादी
”फ़लक पे झूम रही सांवली घटाएं हैं”
वो जिन के अपने हुए हैं निसार सरहद पर
उन्हीं के हिस्से में आती यहां सज़ाएं हैं
ज़रूरतों की सलीबों को ढो रहे हैं हम
सुकून चैन नहीं ,सिर्फ़ वेदनाएं हैं
अता हैं बरकतें उनकों, जो कहते हैं शाहिद
”खुदा का शुक्र है, सब आपकी दुआएं हैं”
क्या कहूं और क्या न कहूं । क्या वाह वाह करने की औपचारिकता निभाना जरूरी है । ये ग़ज़ल वाह वाह की हर हद के बाहर की ग़ज़ल है । गिरह का शेर किस प्रकार राष्ट्रभक्ति के साथ गूंथा गया है । आप आनंद लेते रहिये इस पूरी ग़ज़ल का और इंतज़ार कीजिये अगले अंक का ।
बहुत बहुत शुक्रिया सुबीर जी ,आप की तरही तो रोज़ ब रोज़ कामयाबी की मंज़िलें तय कर रही है और आज तो बिल्कुल देश भक्ति से शराबोर है
जवाब देंहटाएंशाहिद साहब किसी एक शेर की तारीफ़ नामुम्किन है
इस मिसरे के साथ देश भक्ति से परिपूर्ण ग़ज़ल कहना आसान नहीं था हर शेर ख़ुद में मुकम्मिल और सार्थकता का प्रतीक है ,आज़ादी की ख़ुशी ,अपनों के छूट जाने का दुख ,अव्यवस्थाओं से उपजी व्यथा,
अपनी ग़लतियों का एहसास ,
ग़ज़ल का हर शेर अपने अंदर अर्थों की दुनिया समेटे हुए है
बहुत ख़ूब,
मुबारक हो
और
आप सब को अज़ादी की साल गिरह भी बहुत बहुत मुबारक हो
अग्रलिखित टिप्पणी का ये भाग -"आप सब को आज़ादी की साल गिरह भी बहुत बहुत मुबारक हो"
जवाब देंहटाएं१५ अगस्त के लिये है ,उसी दिन पढ़ा जाए
जी आचार्य जी, आपने बिलकुल सही कहा, शाहिद मिर्जा साहब की ये ग़ज़ल सिर्फ एक ग़ज़ल नहीं है जो जश्ने आज़ादी के मौके पर कही गयी है. ये हालात का खुला पन्ना है, एक महत्वपूर्ण प्रश्न है, आईना है.
जवाब देंहटाएंसबसे सुन्दर बात ये कि इस तरही में मौसमी ग़ज़ल के साथ साथ उच्च स्तर का कहन और आज आजाद मुल्क की भावना को जिस प्रकार पिरोया गया है, ये हम सभी पाठकों के लिए एक बेशकीमती उपहार है.
हम इसे समझ लें, सहेज लें तब इसकी इज्ज़त कायम है.
शाहिद जी के इन आठों अशआर पर मैं खड़े होकर तालियाँ बजा रहा हूँ.
सुनहरे हर्फों से उनकी लिखी कथाएँ हैं. तरही जिंदाबाद.
जय हिंद!!
आदरणीय पंकज जी, आदाब
जवाब देंहटाएंयहां अपनी ही ग़ज़ल या अश’आर के बारे में मेरा कुछ कहना शायद मुनासिब न होगा...
अलबत्ता ब्लॉग देखा, तो दिल खुशी से झूम उठा, और जाना कि पोस्ट को सजाने का हुनर क्या होता है. कमाल ये है कि इतने कम वक़्त में आपने टाइटिल से लेकर हर शेर की भावनाओं को प्रदर्शित करते चित्र जोड़े हैं, बस देखते ही बनते हैं.....
वो एक शायर ने कहा है न-
आज पहली बार उसने गुनगुनाए मेरे शेर
आज पहली बार अपनी शायरी अच्छी अच्छी लगी
.........आपके इस फ़न को सलाम.
वाह! गज़ब का कलाम है!वाह!
जवाब देंहटाएंशाहिद जी ने तो बस कमाल कर दिया है. शब्द नहीं हैं कुछ भी कहने के लिए. लाजवाब.
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई.
शहीद भाई आपको इस ख़ाकसार का फर्शी सलाम मालूम हो...जनाब ने टोपी हटा कर सर झुकाने को मजबूर कर दिया है आज...भाई आप की ग़ज़लें हमेशा ही सबसे जुदा और कामयाब होती हैं लेकिन आज की तरही ने तो बस कमाल ही कर दिया है...आप की कलम चूमने को जी चाहता है...किस शेर के बारे में क्या कहूँ समझ नहीं पा रहा हूँ...रब से दुआ करता हूँ के आप हमेशा ऐसे ही नायाब ढंग से लिखते रहें और हम पढ़ पढ़ कर बस खुश हो तालियाँ पीटते रहें...आमीन...
जवाब देंहटाएंगुरुदेव का प्रस्तुतीकरण तो सोने पर सुहागा है जनाब...
नीरज
प्रणाम गुरु देव ,बात प्रस्तुतीकरण की करूँ कि ग़ज़ल की, समझ नहीं पा रहा मगर दोनों ही आज हमेशा की तरह बेमिशाल ... ब्लॉग तो फब ही रहा है मगर आज की ग़ज़ल ने तरही को जिस मुकाम पर ला खडा किया है ... सच में सलाम है उस लेखनी को ... मिर्ज़ा साब सच कहूँ तो आज पहली दफा आपको देख भी रहा हूँ आपकी तस्वीर ... पहले आपकी ग़ज़लों से वाकिफ़ था , सच में इस ग़ज़ल के बारे में कहते कहते शब्द कम हो जायेंगे ... तमाम अशआर मुकम्मल है और जिस तरह से देश को समर्पित हैं वाकई आप ग़ज़लगो में माहिर फ़नकार हैं !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई आपको ...
अर्श
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी। शाहिद भाई आपकी तरही ग़ज़ल और आज का पृष्ठ संयोजन एक अलग ही प्रभाव पैदा कर रहा है। बहुत दिनों के बाद आज हैट पहनने को मजबूर हो गया और बाकायदा खड़े होकर सैल्यूट के साथ उतारा। आपने जो कहा और उसे जिसे तरह से प्रस्तुत किया गया उसके लिये कहने को और क्या रह जाता है। मत्ले से चलकर गिरह के शेर से होते हुए ग़ज़ल जिस तरह मक्ते तक पहुँची है वह अपने आप में मक्तब है।
जवाब देंहटाएंबैनर के शेर में स्वर्गीय दुष्यन्त कुमार ने जो प्रश्न खड़ा किया था वह आपके शेर 'जरूरतों की सलीबों को ढो रहे हैं हम...' तक मौज़ू रहते हुए हालात को जिस तरह से पेश कर रहा है वह अपने आप में बहुत बड़ा प्रश्न खड़ा करता है।
देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत गज़ल्……………नमन है।
जवाब देंहटाएंवन्दे मातरम्।
जय हिन्द्।
एक एक अशआर कामयाब और बलंद हैं ... हमेशा की तरह ... दिल से आदाब के सिवा क्या कहूँ
जवाब देंहटाएंदिल करता है बार बार पढूं और गोते लगाऊं अशआरों के इस समंदर मे ... शुक्रिया आप का
जय हिंद !
शाहिद जी ने सही कहा ब्लाग खोलते ही जश्ने आज़ादी का रंग उत्सव मन मे खुशी की लहर भर गया और उपर से शाहिद जी की देश भक्ति पर आज़ादी पर लिखी गज़ल। कमाल का जज़्वा है शाइद जी का। उनकी कलम और उनके जज़्वे को सलाम। हर उत्सव को मनाने का ढंग और उत्साह कोई सुबीर से सीखे। बहुत बहुत आशीर्वाद और शुभकामनायें। स्वतन्त्रता दिवस की सभी को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सामयिक!
जवाब देंहटाएंस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
सबको आज़ादी मुबारक.
जवाब देंहटाएं'kkfgn HkkbZ vktknh ds bl ekSds ij vkidh xtysa dkfcys
जवाब देंहटाएंrkjhQ yxhs A lknj oUns ekrje A mEehn djsa fd vxyh o"kZxkkaB
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समझ तो ये है समझ लें सबब ग़ुलामी का,
जवाब देंहटाएंसबक़ लें उन से जो हम से हुई ख़ताएं हैं
मना रहा है ये मौसम भी जश्ने-आज़ादी
”फ़लक पे झूम रही सांवली घटाएं हैं”
इस ’तरह’ पर ऐसी देशभक्ति से ओत-प्रोत गज़ल..मन की घटाएं भी खुशी से झूम उठीं. बहुत बहुत आभार. आप सबको स्वाधीनता दिवस की अनेक शुभकामनाएं.
संजय गोटिया जी की टिप्पणी पढ़ने में कठिनाई हुई हो तो वि यूँ थी:
जवाब देंहटाएंशाहिद भाई आजादी के इस मौके पर आपकी गजलें काबिले तारीफ लगी। सादर वन्दे मातरम उम्मीद करें कि अगली वर्षगाँठ तक मुल्क के हालात में तब्दीली आयेगी।
शाहिद साब की इस ग़ज़ल पर...इस मुसलसल ग़ज़ल पर जितनी भी दाद दूँ कम होगी। खास कर गिरह की करामत तो इतना अचंभित करता है कि उफ़्फ़्फ़...
जवाब देंहटाएंतरही के बहाने शाहिद साब का दीदार भी हो गया। अपनी ग़ज़लों की तरह ही वो शानदार व्यक्तित्व के मालिक लगे।
pataa nahi kament post bhee huaa hai yaa nahi :(
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामना
जवाब देंहटाएंजय माँ जय जय भारती !!
- वन्दे मातरम् !
शाहिद जी बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ी आपने देश के महान लोगों को नमन करती एक लाज़वाब ग़ज़ल ..ग़ज़ल कल ही पढ़ ली थी पर कमेंट नही दे पाया आजा फिर आया हूँ..दरअसल आपकी ग़ज़ल ही इतनी बढ़िया लगी....शुभकामनाएँ....और स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंab tak jitni gazlen aai un sab me behtreen...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन हर शेर अनमोल है| कई बार पढ़ चुका हूँ दिल ही नहीं भरता है|शहीद जी को बहुत बहुत बधाई| गुरु जी और सभी लोगो को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये|
जवाब देंहटाएंदेश-प्रेम के जज्बे से भरपूर ..ग़ज़ल रूह को छूती हुई ...लेख लिखने वाले , ग़ज़ल रचने वाले , सजाने वाले सबको आजादी का दिन बहुत बहुत मुबारक हो ।
जवाब देंहटाएंइस ब्लॉग पर आज़ादी की सालगिरह का उत्सव देख प्रसन्नता हुई।
जवाब देंहटाएंसुबह से मन में ये विचार चल रहा था कि हम जिन्होने स्वतंत्र भारत में जन्म लिया, वो शायद गुलामी का मतलब जान ही नही पा रहे। बाबूजी की याद आई जिन्होने आज़ादी को आते और गुलामी को जाते खुद देखा होगा तो समझ सकते थे इसकी कीमत।
तभी तो १५ अगस्त और २६ जनवरी को सुबह से पारंपरिक पर्व सा महौल होता था उनके समय में। मात्र टी०वी देख के नही...! पक्का खाना बनता था। देशभक्ति के कुछ गीत होते थे शाम को..!
फिर ये भी कि उनके समय तक राष्ट्र की हर क्षति और उपलब्धि हमारी व्यक्तिगत होती थी। माँ बताती है कि नेहरू जी की मृत्यु की खबर पाते ही चूल्हे की आग ठंढी कर दी गई थी। चूल्हा नही जला था किसी के घर। (क्या आज हम रिश्तेदारों की मौत पर भी ऐसा करते है ?) इंदिरा जी की हत्या पर तो खैर महौल ही दूसरा था। मगर ये परंपरा राजीव जी की हत्या तक चली।
टी०वी० पर नारायण दत्त तिवारी की कथित संतान और सच्ची या झूठी कुछ वीडिओ क्लिप्स देख कर याद आ जाता है कि ८४ के चुनाव में रात १० बजे जब इनके विजयी होने की उद्घोषणा हुई थी, तो उसी समय दुकान खुलवा कर पेड़े लाये थे बाबूजी।
राष्ट्र के प्रजातंत्र की खुशगँवार बहाली के लिये ये खुशी मनाई जाती थी।
ऐसा होता था क्योंकि वो लोग उसे हृदय से महसूस करते थे। हमने कुछ खोया नही। इसलिये हमारे पास कुछ पाने की वो भावुक खुशी का अहसास भी नही रह गया शायद...!!
ईश्वर से विनती कि हमारी इस उपेक्षा के बावजूद वे हमारे राष्ट्र का गौरव बनाये रखें...!
सभी को शुभकामनाएं..!
और अब शाहिद जी की गज़ल की बात...!
जवाब देंहटाएंउनका ये शेर
समझ तो ये है, समझ लें सबब गुलामी का,
सबक़ लें उनसे जो हमसे हुई खताएं हैं
शायद इसी शेर ने सुबह से आते भाव को ऊपर की टिप्पणी में बदलने का काम किया....!
पूरी ग़ज़ल बेहतरीन...
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स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ !
गुरु जी प्रणाम,
जवाब देंहटाएंगज़ल और प्रस्तुति के लिये कुछ शब्द चुन कर लाया हूं शायद मनोभाव का कुछ अन्श प्रदर्शित हो सके,...
अद्धुत
बेहतरीन
मुकम्मिल
भाव पूर्ण
सार्थक
अनमोल
आखों को रोशनी और रूह को ठंढक देती गज़ल और प्रस्तुति।
शाहिद जी के जज़्बे को सलाम .... इस लाजवाब, बेहतरीन ग़ज़ल को सलाम ..... हर शेर सच में एक दस्तावेज़ है ... आज़ादी की कहानी कह रहा है .... इस लाजवाब चित्रण और प्रस्तुति पर गुरुदेव आपको भी बधाई .....
जवाब देंहटाएंसमझ तो ये है समझ लें सबब ग़ुलामी का,
जवाब देंहटाएंसबक़ लें उन से जो हम से हुई ख़ताएं हैं
मना रहा है ये मौसम भी जश्ने-आज़ादी
”फ़लक पे झूम रही सांवली घटाएं हैं”
लाजवाब के सिवा क्या कहूँ !!!!!
गुरु जी और सभी लोगो को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये|
पढ़ा और गुना... और वाकई जैसा अपने लिखा है सुबीर भैया, प्रकाश फैल गया ... खूबसूरत और उजला सा. मुसलसल ग़ज़ल वैसे भी मुझे प्रिय है क्योंकि ये कविताओं, गीतों सी भली लगती है मन को.
जवाब देंहटाएं"सुनहरे हर्फों से .. " --- खूबसूरत शेर
"समझ तो ये है समझ लें सबब गुलामी का
सबक लें उनसे जो हमसे हुईं खताएं हैं" ---- ये कितनी महत्त्व पूर्ण बात कितने आसान लफ्जों में बांधी है शाहिद साहब ने! वाह वाह! इसे कहते हैं महारत!
"अता हैं बरकतें ... " --- पाकीज़ा ख्याल!
पूरी ग़ज़ल बहुत खूबसूरत!
आप दोनों का आभार !
===============
अब धीरे धीरे कुछ दिनों में तरही की दूसरी गज़लें भी पढूंगी, शुरुआत प्यारेलाल से करती हूँ :)
उन्हीं के हिस्से में आती यहाँ सज़ाएँ हैं
जवाब देंहटाएंऔर
समझ तो ये है समझ लें सबब ग़ुलामी का,
सबक़ लें उन से जो हम से हुई ख़ताएं हैं
बहुत ख़ूब
सारी ग़ज़ल ही ख़ूबसूरत है.
लेकिन ये दोनों शेर तो बस कमाल के ही हैं
भाई शाहिद मिर्ज़ा को और आपको बहुत बहुत बधाई
शाहिद मिर्जा साहब जी के ब्लॉग से होती हुई यहाँ चली आई ....
जवाब देंहटाएंऔर यहाँ आकर जो जश्ने आजादी का माहौल देखा तो दिल बाग़-बाग़ हो गया ......
सुबीर जी होली हो या आज़ादी आप हर पर्व जी जान से मनाते हैं ...
बहुत खुशी होती है एक सच्चे देशभक्त को देख कर ....
और तिस पर ये शाहिद जी की ग़ज़ल ...एक-एक शे'र देश की दास्तां बयां करता हुआ ...
अब मैं तो हैट या टोपी पहनती नहीं जो शान में उतार कर नमन करूँ .....
तो मेरी ओर से ......
जय हिंद ....!!
प्रणाम गुरु जी,
जवाब देंहटाएंशहीद मिर्ज़ा साहेब की ग़ज़ल तो हमेश की तरह कमाल है,
मतला तो ग़ज़ब है और उसका मिसरा-ए-सनी तो क्या कहने...
गिरह बहुत अच्छी बाँधी है, ज़रूरतों की सलीबो ......वाला शेर तो बहुत कुछ कह रहा है.
पूरी ग़ज़ल लाजवाब है.
इतनी बढ़िया ग़ज़ल पढ़वाने के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंगोस्वामी जी और तिलक जी को बधाई. मैंने उनकी ग़ज़लें रात को पढ़ ली थीं और सोचा था कि सुबह टिप्पणी लिखूंगी पर सुबह उठते ही
मेरा अकाउंट हैक हो गया था और कई दिनों के संघर्ष के बाद मुझे वापिस मिला है.
देर से लिख रही हूँ ..ग़ज़लें बहुत बढ़िया थीं बधाई.
वाकई वाह वाह की हद से पार है शाहिद मिर्जा जी की यह गजल..... बधाई...
जवाब देंहटाएं