गुरुवार, 2 सितंबर 2010

वर्षा ऋतु अब धीरे धीरे अपने उतार पर आ रही है और हम भी तरही के समापन की ओर बढ़ रहे हैं । आज दिगम्‍बार नासवा और सुलभ सतरंगी तथा अगले अंक में समापन ।

अब धीरे धीरे समापन की तरफ बढ़ रहा है ये मुशायरा । कितने ही रंग बिखेरने के बाद कितनी ही नई ग़ज़लों के सा‍थ श्रोताओं को रस विभोर करने के बाद । पीछे मुड़ के देखते हैं तो पाते हैं कि बहुत ही सुंदर सुंदर अशआर पिछले दिनों मुशायरे में सुनने को मिले हैं । लेकिन जैसा कि प्रकृति का नियम है कि जो कुछ भी शुरू होता है उसे कभी न कभी समाप्‍त भी होना होता है । यदि वो समाप्‍त नहीं होगा तो किसी नये के आरंभ की भूमिका कैसे बनेगी । और इसी भूमिका के गर्भ में छिपे होते हैं आने वाले समय के बीज । बीज जो पुष्पित होते हैं पल्‍लवित होते हैं नई पौध के रूप में । जैसे अब तरही मुशायरे में नई पौध की आवक दिखाई दे रही है । पुराने और परिचित नाम अब श्रोताओं में कभी कभार केवल टहलने और अपनी उपस्थिति दर्ज करने आते हैं । ठीक वैसे ही जैसे कभी कभी हम अपने छूटे हुए कॉलेज या स्‍कूल में टहलते हुए चले जाते हैं और टटोलते हैं उन दीवारों को, उन मेजों को कि कहीं से कोई कह दे कि अरे तुम तो वही हो ना । यही नियम है और इसी नियम का पालन हर किसी को करना होता है । नये की तलाश का नाम ही जीवन है । खैर आज का ये अंक और इसके बाद का समापन अंक आज भी दो शायर तथा समापन अंक में भी दो शायर ।  लेकिन उससे पहले............

एक दिन की देरी से जन्‍मदिन की शुभकामनाएं शार्दूला दीदी को  ( जन्‍मदिन 1 सितम्‍बर )

हालांकि विश्‍व के कुछ हिस्‍सों में तो इस समय भी 1 सितम्‍बर ही है ।

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फूलों का तारों का सबका कहना है, एक हज़ारों में मेरी बहना है

वर्षा मंगल तरही मुशायरा

फ़लक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं

rain an boy

दिगम्‍बर नासवा

DN-Anita

दिगम्‍बर की गिनती भी ग़ज़ल की कक्षाओं के सबसे प्रारंभिक विद्यार्थियों में होती है । वैसे मैं स्‍वयं दिगम्‍बर की छंद मुक्‍त कविताओं का प्रशंसक हूं । दिगम्‍बर ने इस बार दो छोटी छोटी अलग अलग ग़ज़लें भेजी हैं अलग अलग इसलिये क्‍योंकि दोनों का मूड अलग अलग है । एक ग़ज़ल प्रेम पर है तो दूसरी सामयिक है ।

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फलक पे झूम रही साँवलीं घटाएं हैं
ये काले मेघ नही आपकी अदाएं हैं

तू सोहनी है, के लैला, के हीर या शीरीं
तमाम लोग तेरे दर पे सर झुकाएं हैं

ये कायनात का जादू के है जमाल तेरा  
महक रही ये ज़मीं आसमाँ दिशाएं हैं

वो बेवफा जो मेरी ज़िंदगी को लूट गया
उसी के ख्वाब मुझे रात भर रुलाएं हैं

2

बिखर रहे ये नियम युग परंपराएं हैं
ये मीडिया का असर, पश्चिमी हवाएं हैं

कहीं पे बर्फ बिछी है कहीं बढ़ा पारा
बदल रही ये ज़मीं आसमाँ दिशाएं हैं

बढ़ा हुआ है प्रदूषण गिरे न राख कहीं  
फलक पे झूम रही साँवलीं घटाएं हैं

कहीं पे बाढ़, सुनामी कहीं पड़ा सूखा 
ये खौफनाक से मंज़र हमें डराएं हैं

अच्‍छे शेर निकाले हैं दोनो ही ग़ज़लों में और दोनों ही ग़ज़लें अपने अपने तरीके से अपनी भावनाओं को व्‍यक्‍त करने में पूरी तरह से सफल रहीं हैं । दोनों ही ग़जलों में जमीं आसमां दिशाएं वाला शेर बहुत ही अच्‍छा बन पड़ा है ।


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कुछ देरी से जन्‍मदिन की शुभकामनाएं ( जन्‍मदिन 31 अगस्‍त )

सुलभ जायसवाल 'सतरंगी'

सुलभ से हम सभी परिचित हैं सुलभ की ग़ज़लें  पूर्व के मुशायरों में भी आपने सुनी हैं । पेशे से साफ्टवेयर इंजीनियर सुलभ अभी बहर सीखने की प्रारंभिक अवस्‍था में है । लेकिन सच यही है कि सब कभी न कभी प्रारंभिक अवस्‍था में होते हैं । सीखने की लगन होना सबसे ज़रूरी है बाकी तो बाद की चीजें हैं । सुलभ का जन्‍मदिन 31 अगस्‍त को कुछ दिन पहले ही गया है सो कुछ देरी के साथ जन्‍मदिन की शुभकामनाएं ।

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महकते गेसू हवा में जो वो उड़ाएं हैं
हमारा होश उड़ाने की सब अदाएं हैं

यकीं न हो तो सुनो कृष्‍ण द्रोपदी की कथा
ये राखियों की पुरानी परम्पराएं हैं

ये स्‍वर है, गीत है, कविता है, राग है क्‍या है  
मगन सी हो के जिसे गा रहीं दिशाएं हैं

सजन के गाँव से आई बदरिया भीगी हुई 
उसी को छू के ठुमकने लगीं हवाएं हैं

'सुलभ' बनाएं चलो नाव हम भी कागज़ की
फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं

सजन के गांव से आई बदरिया भीगी हुई, ये मिसरा आनंद का मिसरा है । ये पूरा का पूरा शब्‍द चित्र बनाने वाला मिसरा है । मकते में गिरह  भी जबरदस्‍त तरीके से बांधी गई है । जनमदिन की खुशी में बहुत ही सुंदर ग़ज़ल बन गई है ये । सभी शेर सुंदर हैं मगर सजन के गांव की बदरिया का क्‍या कहना ।

चलिये आनंद लीजिये इन दोनों शायरों की रचनाओं का और प्रतीक्षा कीजिये अगले समापन अंक की जिसमें दो नये शायरों की ग़ज़लों के साथ हम तरही का समापन करेंगें । 

30 टिप्‍पणियां:

  1. अहा! आनन्द आ गया!! वाह!

    श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये.

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  2. बहुत बढ़िया.
    दिगंबर जी की दोनों ग़ज़लें अच्छी लगीं.
    "तू सोहनी है..", "बिखर रहे ये नियम..", "कहीं पे वर्फ.." अच्छे लगे.
    दूसरी गजल में गिरह का शेर पहली बार पढ़ने पर समझ नहीं आया. फिर पाया दोष मेरी समझ का ही था.

    सुलभ जी का "..कृष्ण द्रौपदी..", "सजन के गांव से.." वाले शेर खास तौर पर अच्छे लगे. मकता तो बेहद अच्छा लगा. "सुलभ बनाएँ चलो हम भी नाव कागज़ की; फलक पे झूम रही सांवली घटायें हैं." बहुत अच्छे.

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  3. वाह...आज का मुशायरा इसलिए भी खास है कि आज मेरे दो खास मित्रों की ग़ज़ल प्रस्तुत है....बहुत दिनों से पढ़ता आ रहा हूँ ग़ज़ल ही नही दिगंबर जी की छन्द मुक्त और सुलभ जी की हास्य कविता भी असरदार होती है.....मैने तो बहुत बड़ा फ़ैन हूँ..

    आज की प्रस्तुति भी बेहतरीन..बरसते बादल के साथ साथ सामयिक अनुभव और बचपन की यादें जैसे कागज की नाव..इत्यादि सुंदर भाव से सजी रचनाएँ है....

    दिगंबर जी और सुलभ जी को मुशायरे में बेहतरीन प्रस्तुति के साथ साथ जन्मदिन की भी हार्दिक बधाई....

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  4. वो बेवफा जो मेरी जिंदगी को लूट गया
    उसी के ख्वाब मुझे रात भर रुलाएं हैं||
    बेहतरीन
    और दूसरी ग़ज़ल में गिरह का शेर भी बड़े सलीके से बांधा है| लाजवाब
    दिगंबर जी को बधाई|
    ______________________________________
    दूसरी ग़ज़ल में "बदरिया" और "नाव" सब पर भारी है|
    सुलभ जी को बधाई
    ____________________________________
    गुरु जी और सभी जनों को जन्माष्टमी की ढेरों शुभकामनाएं|

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  5. sसब से पहले शर्दुला जी और सुलभ को जन्म दिन कीखार्दिक शुभकामनायें।
    दिगम्बर नासवा जी की कलम तो हमेशा ही दिल को छू जाते है---
    तू सोहनी के ----
    ये कमाल का ---- { ये नास्वा जी की कलम के कमाल का जादू भी है}
    दूसरे गज़ल का हर शेर प्रकृति के बढ रहे प्रकोप और प्रदूशण को ले कर उनकी चिन्ता बता रहा है। सभी शेर उमदा हैं।
    सुलभ के भी सभी शेर बहुत अच्छे लगे---
    यकीं न हो तो ---
    सजन के गाँव से------
    बहुत बढिया रहा ये मुशायरा भी। बहुत बहुत बधाई।

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  6. शर्दुला जी और सुलभ को जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें।

    मुशायरे का ये अन्दाज़ भी बेहद खास रहा।


    फ़लक पे झूम रही साँवली घटायें हैं
    रंग मेरे गोविन्द का चुरा लाई हैं

    रश्मियाँ श्याम के कुण्डल से जब निकलती हैं
    गोया आकाश मे बिजलियाँ चमकती हैं


    श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाये.

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  7. सुलभ जी पढा जाये…………माफ़ी चाहती हूँ गलत टाईप जो गया।

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  8. ये कायनात का जादू के है ज़माल तेरा
    महक रही ये ज़मीं, आसमां, दिशाएं हैं
    ****
    कहीं पे बर्फ बिछी है कहीं बढ़ा पारा
    बदल रही ये ज़मीं, आसमां, दिशाएं हैं

    वाह...ज़मीं, आसमां, दिशाएं का प्रयोग दो अलग अलग ढंग से करना दिगंबर जी के विलक्षण ग़ज़ल लेखन की कला को दर्शाता है...बेहतरीन अशआर कहें हैं उन्होंने...उन्हें पढना हमेशा ही मन भावन लगता है..

    सजन के गाँव से आई बदरिया भीगी हुई
    उसी को छू के ठुमकने लगीं हवाएं हैं

    सुलभ ने तो बोलती ही बंद कर दी हमारी अब क्या कहें इस शेर पर...तारीफ़ के लिए मुफीद लफ्ज़ ढूंढ ढूंढ कर परेशां हुए जा रहे हैं लेकिन लफ्ज़ बने हों तो मिलें...लाजवाब कर दिया भाई...वाह...वाह...वाह...

    पिछले ढेढ़ महीने से इस मुशायरे ने जो आनंद की झड़ी लगाये रखी है वो अब समाप्ति पर है सोच कर ही मन दुखी हो रहा है...लेकिन विधि के विधान के समक्ष क्या कर सकते हैं...भविष्य में शायद इस से भी कोई उम्दा चीज़ छुपी है ये ही सोच कर मन को समझा रहे हैं...

    नीरज

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  9. सोचा नहीं था इतना सुन्दर तोहफा मुझे आचार्य जी से मिलेगा!! (उम्मीद से दुगुना)
    हम तो धन्य हैं ऐसे गुरूजी को पाकर (बाल्य काल की शिक्षा के उपरान्त तक़रीबन २० वर्षों बाद मुझे इतने अच्छे आचार्य जी मिले हैं)
    अब तो उनसे मिलने की बेकरारी है कब उनका मुंह मीठा करूँ.

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  10. आदरणीया शार्दूला दीदी जी,
    आप को जन्म दिन की बहुत बहुत शुभकामनायें... !!


    आज एक और ख़ुशी साथ साथ नसीब होगी सोचा नहीं था...
    दिगंबर जी मेरे सदाबहार मित्र हैं, बड़े भाई समान हैं. उनके साथ तरही में आना किसी तोहफे से कम नहीं है.

    ये कायनात का जादू के है जमाल तेरा
    महक रही ये ज़मीं आसमाँ दिशाएं हैं
    ......वाह !
    उसी के ख्वाब मुझे रात भर रुलाएं हैं .....ओह बहुत दर्द है.

    ये मीडिया का असर, पश्चिमी हवाएं हैं ....मेरे मन की बात कही आपने.

    और गिरह तो आपने ख़ास तरीके से बाँधी है.

    तरही जिंदाबाद!!

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  11. वाह मज़ा आगया.... दोनों की ही रचनाएँ बहुत खूबसूरत है........ आपके माध्यम से ही पता चला की हमारे प्रिय मित्र सुलभ का जन्म दिन था और हमें पता भी नहीं चल पाया... चलिए देर से ही सही, उनको जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं!

    और साथ ही साथ श्री कृष्ण जन्माष्ठमी की सभी साथियों को बहुत-बहुत बधाई.

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  12. "है योमे अष्टमी दिल पर खुशी सी छाई है
    किशन के जन्म की सब को बहुत बधाई है"

    आदरणीया शार्दूला जी को जन्म दिन की बहुत बहुत शुभकामनायें.

    दिगंबर जी और सुलभ जी, दोनो ही लोगो की रचनाएँ बहुत खूबसूरत है मुबारक हो.

    सुलभ जी को जनम दिन बहुत बहुत मुबारक हो.

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  13. @ शाह नवाज जी,
    आप इस मंच पर आयें... आपका तहे दिल से शुक्रिया!!
    आगे भी आते रहिएगा. यहाँ हर मौसम में रस बरसता है.

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  14. पहले पहल तो श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत बधाई... शार्दूला जी को जन्म दिन की बहुत बहुत शुभकामनायें ... GURUDEV KO BAHUT BAUT BADHAAI IS SAFAL AAYOJAN KE LIYE ... SULABH JI KO BAHUT BAHUT BADHAAI JANAM DIN KE LIYE AUR ITNE LAJAWAAB SHER KAHNE KE LIYE .... SACH MEIN DIL KO CHOOTE HAIN ....

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  15. दिगम्बर नासवा जी की दोनों ही ग़ज़लें बहुत प्यारी हैं. अपना अलग अंदाज़ लिए हैं.
    हर शेर पसंद आया.
    सुलभ जी की ग़ज़ल मन को छू गई ..विशेषतः कृष्ण द्रोपदी और सजन के गाँव से आई बदरिया
    शेर बहुत सुन्दर बन पड़े हैं.

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  16. सबसे पहले तो शार्दूला दीदी को प्रणाम और उनके जन्म दिन पर ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं !
    सच तो यह भी है की दिगंबर जी की छंद मुक्त कवितावों का मैं भी प्रशंसक हूँ ! दोनों ही ग़ज़ल बढ़िया है ये कायनात का जादू .... अभी तक गुन रहा हूँ......
    प्रिय भाई सतरंगी को जन्म दिन की फिर से बधाई और ढेरो प्यार .... ye स्वर है ......सजन के ....... और मक्ता कमाल का है ...... सुलभ बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है ... ! बहुत पसंद आयी ग़ज़ल आज ... अगले अंक में आपका भी इंतज़ार करूँगा ... :)


    आपका
    अर्श

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  17. Badhayi badhayi badhayi
    ayr shubhkamnayein Digambar ji aur sulabh ji
    aapki Ghazalon pe kya sadka karoon ???
    Bahut hi nageenedari se sshabd shilpi bankar tarasha hai..
    Yoon tarasha hai usko shilpi ne
    Jaan si pad gayi shilaaon mein

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  18. क्या समापन अंक में भभ्भर कवि भी माइक सभालेंगे या समापन के बाद ? हम तो अगिला सीट(मंच के नजदीक वाला) अपने लिए छेक कर रक्खे हैं.

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  19. शर्दुला जी और सुलभ को जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें।
    आदरणीय दिगंबर जी की दोनों ग़ज़लें एक से एक बन पड़ी है ये कायनात का जादू के है ज़माल तेरा वाह क्या कहने....
    .....सुलभ जी की ग़ज़ल का ये शेर बस कमाल है...सजन के गाँव से आई बदरिया भीगी हुई
    उसी को छू के ठुमकने लगीं हवाएं हैं

    regards

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  20. दोनों गज़लें लाजवाब ...सुन्दर अभिव्यक्ति

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  21. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  22. दिगंबर जी के दोनों ही रंग अपनी छटा बिखेर रहे हैं लेकिन दूसरा रंग मुझे ज़्यादा पसंद आया ख़ास तौर पर पहला और तीसरा शेर
    दिगंबर जी बधाई स्वीकार करें

    ये स्वर है ,गीत है,.............
    बहुत सुंदर शेर है सुलभ जी
    और मक़ता तो बचपन की याद दिला गया
    बहुत मासूम शेर,बधाई

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  23. आदरणीय शार्दूला जी और सुलभ जी को जन्मदिन की शुभकामनाएं (देरी के लिए माफ़ी)
    दिगम्बर जी, को पढना हमेशा अच्छा रहा है, इस बार दो अलग मिजाज़ समेटे हुए ग़ज़लें...........अहा

    बिखर रहे ये नियम युग परंपराएं हैं
    ये मीडिया का असर, पश्चिमी हवाएं हैं
    सीधी सच्ची बात.............................. अच्छे शेर कहें हैं.

    सुलभ जी, तो जन्मदिन के साथ साथ एक अच्छी ग़ज़ल लाये हैं.
    राकी की परम्परा को अच्छे से पिरोया है, "सजन के गाँव से आई बदरिया भीगी हुई", अरे वाह..................क्या खूब कहा है, और मकते में गिरह भी अच्छे से बाँधी है."'सुलभ' बनाएं चलो नाव हम भी कागज़ की...."

    इसबार का तरही मुशायेरा एक अलग मिसाल बना चुका है पिछलों से, और ये एक रीत है कि अगला जो भी आएगा वो पहले से बेहतर ही होगा,
    अगला अंक इस तरही मुशायेरे का आखिरी अंक होगा.....क्या भौचक्के जी अगले अंक में झमाझम बरसात की तरह अपने शेरों के साथ आयेंगे और पढने वालों, सुनने वालों को अपने जादूमई रंग दिखायेंगे??????????
    इंतज़ार है, बेसब्री से इंतज़ार है.....क्योंकि जहाँ इतना कर लिया थोडा और सही...............

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  24. बर्थ-डे गर्ल और बर्थ-डे ब्वाय...दोनों से ही फोन पर बात हो गयी थी उनके खास दिनों पर।

    दिगम्बर जी की कोई रचना बड़े दिनों बाद पढ़ पा रहा हूं। जाने कितने दिनों से उनके ब्लौग की तरफ जाना हुआ नहीं तो यहीं पर उनका लिखा कुछ देखकर संतुष्टि मिली। तरही के दोनों अलग-अलग रंगों को खूब निभाया है उन्होंने।

    ...और सुलभ की लेखनी दिनो-दिन परिष्कृत होता देखकर हर्ष होता है। god bless you BOY!

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  25. गुरु जी प्रणाम,

    सबसे पहले शार्दूला जी को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई

    दिगंबर जी की दोनो गज़ल पसंद आई, आदतन कहें या फितरतन मगर मुझे दूसरी गजल ज्यादा पसंद आई
    मतला खूब पसंद आया
    गिरह तो बहुत हट कर लगाई गई है जो खूब खूब पसंद आई

    @ सुलभ जी,

    ये स्वर है गीत है कविता है राग है क्या है ?

    इस शेर को लिखना मैं चाहता था लिख आपने डाला
    कई घंटे खपाया था इस शेर को लिखने के लिए मगर लिख न सका, बहुत सुन्दर, बहुत खूब

    ठुमकने शब्द की चंचलता पूरे शेर को आनन्दमय बना रहा है यह शेर भी बहुत पसंद आया

    मकता भी प्रिय लगा

    गुरु जी आपने शुरुआत में भभ्भड जी को ले कर जो सूचना दी थी उसके लिए लोग बेचैन हो रहे है

    अगले अंक की प्रतीक्षा है

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  26. सुबीरजी, तरही मुशाईरा शानदार रहा, समापन कड़ी का इंतज़ार रहेगा. आज की दोनों बल्कि तीनो गज़ले उम्दा रही.
    निम्न अशआर ख़ास पसंद आये. दिगंबर नास्वा और सुलभ को बहुत बधाई इस प्रतिष्ठित मंच पर अपना सिक्का ज़माने के लिए.

    बिखर रहे ये नियम युग परम्पराएं है
    ये मीडिया का असर पश्चिमी हवाएं है.
    -दिगंबर नास्वा
    =============
    ये स्वर है, गीत है, कविता है,राग है क्या है,
    मगन सी हो के जिसे गा रही दिशाएं है.
    -सुलभ

    --mansoorali hashmi

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  27. दोनों गज़लें लाजवाब है.आदरणीय शार्दूला जी और सुलभ जी को जन्मदिन की शुभकामनाएं

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  28. सुबीर भैया और आप सब, आप सब को शुभकामनाओं के लिए हृदय से धन्यवाद!
    *************
    इस बार व्यस्तताओं का कुछ यूँ हुजूम लगा कि तरही अभी तक ठीक से देख नहीं पाई. यहाँ तक कि अभी तक नीरज जी की ग़ज़ल नहीं पढ़ी है, जो मेरे लिए किसी भी तरही की हाईलाईट होती है ... सो अब धीरे धीरे इस तरही को पढूंगी समय समय पर.
    आज की पेशकश में नसावा जी की मीडिया वाला शेर बहुत सुन्दर लगा.
    सुलभ जी का, परम्पराएं ...वाला, ये स्वर है... वाला और नाव कागज़ की वाला...ये तीनों शेर प्रभावशाली लगे.
    बधाई आप दोनों को!
    सादर शार्दुला

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