इन दिनों कॉलेज के एग्ज़ाम चल रहे हैं तो उसके कारण वहां की व्यस्तता ने थका दिया है । खैर 14 अगस्त को परीक्षाएं खत्म हो जाएंगीं और उसके बाद थोड़ी राहत मिलेगी । इतनी सावधानी के बाद भी आज एक छात्र का मोबाइल परीक्षा कक्ष के बाहर से गुम हो गया । बहुत कहा है छात्रों को कि भई अपने मोबाइल घर छोड़ के आओ लेकिन सुनता कौन है । खैर । इसी बीच कल एक सुखद अनुभूति हुई जब उपन्यास ' ये वो सहर तो नहीं...' की प्रथम प्रति हाथ में आ गई । बहुत ही सुंदर आवरण बनाया गया है, उपन्यास की भावना को पकड़ते हुए कार्य किया गया है । उपन्यास को हाथ में लेकर सोचता रहा कि क्या ये सचमुच मेरा ही है, क्या मैंने ही लिखा है । फिर याद आ गई वो बात कि देनहार कोई और है भेजते है दिन रैन लोग भरम हम पर करें ताते नीचे नैन । खैर आप सबकी दुआएं रंग लाईं हैं कि उपन्यास को पहले ज्ञानपीठ का नवलेखन पुरस्कार मिला और आज वो प्रकाशित होकर हाथ में आ भी गया । ये भी सुखद संयोग है कि 1857 के जिसे ऐतिहासिक घटनाक्रम को लेकर ये कथा लिखी है वो घटना जिस तारीख को घटी थी उसी तारीख को उपन्यास मेरे हाथ में आया ।
फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं
वर्षा मंगल तरही मुशायरा
आज का तरही मुशायरा कुछ ख़ास है खास इसलिये है क्योंकि आज एक युगल जोड़ी आ रही है । युगल जोड़ी जो लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, सलीम जावेद, जय वीरू, वाली ही तर्ज पर बनाई गई है । दोनों ही ग़ज़ल को अलग तरीके से कहने में महारत हासिल कर चुके हैं । और सबसे अच्छी बात तो ये है कि दोनों ही ग़ज़ल को नये अंदाज़ से संवारने का कार्य कर रहे हैं । दोनों ही मेरे फेवरेट हैं । सो आज इन दोनों को ही लिया जाये ।
राही ग्वालियरी जी ( तिलकराज जी )
तिलक राज जी की ग़ज़लें हमेशा ही एक नया अंदाज़ लिये होती हैं । वे काफियों का बहुत ही सुंदर तरीके से उपयोग करते हैं । मुझे हमेशा उनकी तरही का इंतज़ार इसलिये रहता है कि इन्होंने उन्हीं काफियों को कि प्रकार से बांधा होगा जो बहुत आम से हैं । शायर की यही विशेषता होती है कि वो आम शब्दों को ख़ास बनाने का हुनर जानता है । और फिर तिलकराज जी तो अपने हुनर में उस्ताद हैं ।
तजल्लियात भरे, रक्स ये दिखाएँ हैं
''फलक पे झूम रहीं सॉंवली घटाऍं हैं।''
करार दिल को नहीं भीड़ में तुम्हारे बिन
यूँ खुशनुमा है शह्र, शबनमी फि़ज़ाऍं हैं।
तमाम शह्र बहुत ही सुकून से सोया
किसी फ़कीर के दिल से उठी दुआऍं हैं।
मेरा ज़मीर खड़ा है मेरी हिफ़ाज़त में
मेरे खिलाफ़ हुकूमत तेरी जफ़ाऍं हैं।
हमारी बात ज़माने को सच लगे कैसे
हमारे पास कहॉं आप सी अदाऍं हैं।
बहुत दिनों से कोई ख़त नहीं मिला उसका
खबर कोई तो मिले, खैर हम मनाऍं हैं।
फि़र उसके बाद न 'राही' मिला मगर अबतक
जे़ह्न में गूँजती वो आखि़री सदाऍं हैं।
हमारी बात ज़माने को सच लगे कैसे हमारे पास कहां आप सी अदाएं हैं । मार डाला, इस एक शेर ने तो मानों चलत मुसाफिर लूट लियो रे पिंजरे वाली मुनिया कर दिया है । राही जी की ग़ज़ल में क्रियाओं को बिलकुल सही तरीके से क़ाफिया बनाया गया है , नये लिखने वाले लोग मनाएं और दिखाएं का प्रयोग ध्यान से देखें कि किस प्रकार से इन क्रियाओं को काफिया बनाया गया है । मकता भी बहुत ही सुंदर कहा है । आनंद ही आ गया ।
नीरज गोस्वामी जी
नीरज जी ने मुझे मेरे उस्ताद द्वारा कही गई एक बात के सच होने का एहसास कराया है । वे कहते थे कि जो अच्छा इंसान नहीं है वो अच्छा शायर भी नहीं हो सकता । खुशमिज़ाज और सभी से हंस कर मिलने वाला व्यक्ति ही जिंदगी से भरे हुए शेर कह सकता है । नीरज जी ने मुझे अपने उस्ताद की बात के सच होने का एहसास करवाया है । बहुत अच्छे और जिंदगी से भरे शेर पढ़ने हों तो उनके ब्लाग पर जाइये । पिछले साल उपन्यास लिखते समय जब मैं नैराश्य में चला गया था तब उन्होंने ही मुझे वहां से बाहर निकाला था ।
गुलों को चूम के जब से चली हवाएँ हैं
गयीं, जहॉं भी, वहॉं खुशनुमा फि़ज़ाऍं हैं
भुला ग़मों को चलो आज मिल के रक्स करें
''फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएँ हैं''
सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का
शरीफ शख्स को मिलती सदा सज़ाएँ हैं
तड़प हिरास घुटन बेकसी अकेलापन
अगर वो साथ है, तो दूर ये बलाएँ हैं
रकीब हो, के हो कातिल, के कोई अपना हो
हमारे पास सभी के लिए दुआएँ हैं
वही जो सुन के, पलट के भी देखता ही नहीं
उसी के वास्ते इस दिल की सब सदाएँ हैं
पलक झपकते गिरेंगे ज़मीं पे वो" नीरज"
बगैर नींव के जो आशियाँ बनाएँ हैं
वाह वाह वाह क्या शेर निकाले हैं । मतला बहुत ही सुंदर कहा है । और गिरह का शेर भी बहुत ही सुंदर तरीके से बांधा गया है। तड़प हिरास घुटन बेकसी अकेलापन अगर वो साथ हैं तो दूर सब बलाएं हैं । ये शेर कई मायनों में सुनने में आनंद दे रहा है । पहले तो मिसरा उला में जिस प्रकार से बिना कोई भर्ती का शब्द लगाये बिना बात को पूरा कर दिया गया है और उसके बाद मिसरा सानी में उसको निभा भी दिया गया है वो शिल्पगत प्रयोग की एक मिसाल है । बहुत ही सुंदर ग़ज़ल ।
तरही को नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है आज नीरज जी और तिलकराज जी ने । तो आज आनंद लीजिये इन दोनों का और फिर प्रतीक्षा कीजिये अगली जोड़ी का ।
दोनों उस्ताद शायर आज मौजूद हैं..तब आनन्द तो आना ही था...सो आया.
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन!
मेरा ज़मीर खड़ा है मेरी हिफ़ाज़त में
जवाब देंहटाएंमेरे ख़िलाफ़ हुकूमत तेरी जफ़ाएं हैं
वाह !
बहुत ख़ूब!
ख़ूबसूरत ग़ज़ल नीरज जी,
तड़प ,हेरास, घुटन ,बेकसी अकेलापन
अगर वो साथ है तो दूर ये बलाएं हैं
बहुत उम्दा!
रक़ीब हो कि हो क़ातिल कि कोई अपना हो
हमारे पास सभी के लिये दुआएं हैं
इसी जज़्बे की ज़रूरत है जो कम होता जा रहा है
दोनों उस्ताद कवि बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें
और सुबीर जी धन्यवाद
बेहतरीन ..आज की ग़ज़ल पोस्ट तो बेहतरीन और हो भी ना क्यों जब ग़ज़ल के ऐसे-ऐसे महान शक्स की ग़ज़लें पेश हुई हो.
जवाब देंहटाएंवैसे दोनों शायर की रचनाओं के पहले से परिचित हूँ बेमिशाल ग़ज़ल होती है....
नीरज जी और तिलकराज जी बहुत बहुत बधाई
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब. आनंद आ गया.
जवाब देंहटाएंतिलक जी और नीरज जी की गज़लों का तो पहले दिन से ही इंतज़ार था.
बेहतरीन ग़ज़लें.
तिलक जी का शेर 'हमारी बात ज़माने को सच लगे कैसे..' और नीरज जी का शेर 'सबूत लाख करो पेश बेगुनाही का..' बहुत पसंद आये. दिमाग में गूँज रहे हैं.
बहुत बधाई एवं धन्यवाद.
गुरू जी,
जवाब देंहटाएंआज जो बारिश हुई है उसे साँवली घटाओं की कसम बस ऐसे ही झूमकर बरसे।
श्री नीरज जी और तिलकराज जी के लिये कुछ भी लिखना/कहना मैं अपनी नासमझी ही कहूंगा सिर्फ गुनगुनाने की कोशिश कर रहा हूँ वो भी भीगने के आनन्द के साथ।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सबसे पहले भारतीय ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार प्राप्त उपन्यास ‘’ये वो सहर तो नहीं’’ के प्रकाशित होने पर आपको लाख लाख बधाईयाँ . आपकी ख़ुशी का अंदाजा मै लगा सकती हूँ, और आपकी इस ख़ुशी में हम अभी आपके साथ शामिल है.
जवाब देंहटाएंएक दो दिन में ही भारतीय ज्ञानपीठ से पुस्तक मंगवा कर जरुर पढूंगी. एक बार फिर से हार्दिक बधाई और शुभकामनाये.
Regards
seema
आदरणीय नीरज जी और तिलकराज जी की गजले बेहद दिलकश लगी. आभार
जवाब देंहटाएंregards
सब से पहले उपन्यास " ये वो सहर तो नहीं" के प्रकाशन की ढेरों बधाइयाँ...इसके छपने की जितनी ख़ुशी मुझे हुई है शायद आपको भी नहीं हुई होगी...छपने के बाद कोई भी पुस्तक लेखक की नहीं रह जाती , पाठक की हो जाती है...इसलिए अपनी पुस्तक के प्रकशन पर भला हमें ख़ुशी क्यूँ न होगी...? आप लिखते रहें छपते रहें और हमें खुश करते रहें...
जवाब देंहटाएंअपने बारे में तो क्या कहूँ...जो कुछ है सब आपका दिया ही तो है...तेरा तुझको अर्पण...वाला भाव है...कभी मुझे एक मिसरा लिखने में भी पसीने आते थे और अब एक ग़ज़ल कहने की हिम्मत कर लेता हूँ , ये हौसला आपका ही दिया हुआ है...ये ग़ज़ल अब अच्छी है या बुरी है...जैसी है ,आपकी है.
तिलक जी के बारे में जितना कहूँ कम होगा वो न केवल ग़ज़ल लेखन कला के महारथी हैं बल्कि एक बेहतरीन दिलखुश इंसान भी हैं...ब्लॉग जगत से जो उपलब्धियां मुझे हासिल हुईं, उनमें बहुत अहम् स्थान पर है मेरा तिलक जी जैसे इंसान से राबता होना...हम आपस में एक दूसरे को मेल लिख लिख कर इतने पास आ गए हैं के लगता ही नहीं कभी दूर थे...उनकी ग़ज़लों का मैं क्यूँ फैन हूँ ये बात आप उनकी इस तरही ग़ज़ल को पढ़ कर समझ ही सकते हैं...ऐसे बेहतरीन शेर कहने के लिए क्या क्या पापड बेलने पड़ते हैं ये कोई हम से पूछे...
अगली कड़ी का बेताबी से इंतज़ार है...और हाँ भभ्भड़ कवि " दिलवाले " जी का क्या हुआ अब तक कहीं नज़र नहीं आये...???
नीरज
वाह! दोनों कलाम,एक से बढ कर एक कमाल की जादूगरी है लफ़्ज़ों के साथ!
जवाब देंहटाएं"ये वो सहर तो नहीं" अभी पढ़ी तो नहीं लेकिन टाईटल के साथ आवरण चित्र बहुत कुछ बोलता हुआ है। लेखन सशक्त माध्यम है अभिव्यक्ति का और प्रकाशन लोगों तक पहुँचने का। बात जिनके लिये कही गयी है अगर उन तक नहीं पहुँची तो अधूरी रह जाती है। आपकी खुशी का अंदाज़ तो इसी से हो जाता है कि आपकी बात पहुँचेगी और ज्ञानपीठ प्रकाशन जैसे सशक्त माध्यम से पहुँचेगी। बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंये लक्ष्मीकॉंत जी, प्यारेलाले से, पहले ही आकर टिप्पणी दे गये और प्यारेलाल के बारे में वो सब कह गये जो प्यारेलाल लक्ष्मीकॉंत जी के बारे में कहता।
आगर मालवा में मेरे एक सहकर्मी थे गीतकार मनहर परदेसी, उन्होने एक गीत में कहा था कि 'कवि हूँ, कविता से प्यार किया करता हूँ, घड़ता हूँ शब्दों की मूरत, भावों की छैनी से श्रंगार किया किया करता हूँ'। बस यही नीरज भाई साहब की शाइरी है। शब्दों का सटीक भावानुरूप चयन। जिस तरह एक मूर्तिकार मूर्ति को रूप देते-देते छैनी बदलता जाता है, उसी तरह ये पहले एक ढॉंचा बनाकर उसे निरंतर तराशते हैं। परिणाम सामने है। बधाई एक उम्दा ग़ज़ल के लिये।
एक उम्दा ग़ज़ल जब सुनूँ मैं कहीं,
मुझको लगता है नीरज की आवाज़ है।
चंद मोती समंदर की गहराई से
चुन के उँचे गगन की ये परवाज़ है।
यूँ मिले तो नहीं आमने सामने,
पर तेरी दोस्ती पर हमें नाज़ है।
राग इंसानियत के समेटे हुए,
मुस्कुराता हुआ ये कोई साज़ है।
tilak ji aur neeraj ki jodi salamat rahe. kya dilfareb dastaan bayaan karte hain har sher mein..
जवाब देंहटाएंकरे कमाल है नीरज की और तिलक की कलम
सजाके शब्द सुमन से ये महफिलें सजाएं हैं.
पंकज जी आपको मेरी ढेर सारी बधाई इस शायराना उन्वान
ये वो सहर तो नहीं..उपन्यास के लिए.कबूल हो.
देवी नागरानी
उपन्यास का ले-आउट जब दो दिन पहले मिला था, एक अनूठी ख़ुशी हुई कि अब आचार्य जी के उपन्यास को पढने का समय करीब आ गया है.
जवाब देंहटाएंबस ये सहर (सफ़र) चलता रहे.
ग़ज़ल क़ी मत पूछिये हमसे, हम अभी शैशव अवस्था में हैं. दोनों आदरणीय उस्तादों ने आज महफ़िल में जिस प्रकार राग छेरा है... भरपूर आनंद आया.
मेरे खिलाफ़ हुकूमत तेरी जफ़ाएं हैं... क्या अंदाज है.
तिलक सर ने ही हमें पहले पहल दुरुस्त ग़ज़ल कहने के लिए प्रेरित किया था. बहुत शुक्रिया !!
हमारे पास सभी के लिए दुआएं हैं... नीरज सर तो हर दिल आजिज़ हैं हमसब के बीच.
हमारा ग़ज़ल प्रेम भी तो आपको देख सुन पढ़ कर बढ़ा है.
तरही जिंदाबाद!!
पंकज जी, आदाब
जवाब देंहटाएंसबसे पहले पुस्तक के प्रकाशन की बधाई...
नीरज जी और तिलक राज के लेखन और इनके व्यक्तित्व को लेकर आपने बहुत सही कहा है...
दोनों की शायरी में हमेशा की तरह नाम ए अनुकूल मैयार क़ायम रहा गया है...
बधाई.
सभी शेर एक से बढकर एक हैं किसी एक की तारीफ़ दूसरे से नाइंसाफ़ी होगी………………अति सुंदर्।
जवाब देंहटाएंकहने लायक तो कहाँ कुछ छूटा है.....
जवाब देंहटाएंबस पढ़कर आनंद रस में आकंठ डूबना है...
बरसात के स्निग्ध बौछारों से कम आनंददाई नहीं ये रचनाये......
आपको भी बहुत बहुत बधाइयाँ...उपन्यास पढने का सौभाग्य हमें नहीं मिलेगा ???
गुरु जी पुरस्कार एवं प्रकाशन के लिए ढेरो बधाईया
जवाब देंहटाएंदोनों ही उस्ताद शायरों की गज़ले बेहतरीन है
तमाम शह्र बहुत सुकून से सोया......
हमरी बात ज़माने को सच लगे कैसे......
.......जेहन में गूंजती वो आखिरी सदाए है||
___________________________________
भुला गमो को चलो आज मिल के रक्स करे....
कितनी बेहतरीन सोच के साथ गिरह को बांधा है
सबूत लाख करो पेश.......
और इस शेर ने तो फ्रीज़ कर दिया है
तड़प हिरस घुटन.........
दिल चुरा लिया इन आशार ने|
सुबह से पाँचवीं बार आयी हूँ मगर इस जोडी पर कुछ कहने के लिये शब्द नही मिले\ मिलें भी कैसे इतनी लाजवाब गज़लों पर मेरा कुछ कहना सूरज को दीप दिखाना है। बस निशब्द ही रहूँगी दोनो को बहुत बहुत बधाई । अगर फिर भी कुछ कहना पडे तो दोनो गज़लें पूरी की पूरी कोट कर दूँगी। आभार।
जवाब देंहटाएंwaah !
जवाब देंहटाएंkyaa jodee hai !
आज फिर बहुत दिनों बाद मेल देख पाया हूँ
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो आपको पुस्तक के प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई.
बहुत ही माअनीख़ेज़ आवरण है. पुस्तक भी ज़रूर पढ़ँगा.
अब बात करें वर्षा मंगल मुशायरे की. युगल जोड़ी ने तो ग़ज़ब ढाया है.
राही साहब ख़ूबसूरत ग़ज़ल के ये शेर :
मेरा ज़मीर खड़ा है मेरी हिफ़ाज़त में...
और
हमारे पास कहाँ आप-सी अदाएँ हैं...
तो हासिले ग़ज़ल हैं ही, मक़्ता भी बहुत बेचैन कर गया और एकदम ज़बानज़द भी हो गया.
किसी को भी नैराश्य से निकाल लेना नीरज भाई साहब के बायें हाथ का खेल है. उनका यह जादू मुझ पर भी चल चुका है. और जो भी इस बात का सबूत चाहे नीरज भाई साहब को एक फोन करके देख ले. उनसे बात कर लेने के बाद आपकी मन:स्थिति उन्हें फोन करने से पहले वाली नहीं रह जाती. दिलो-दिमाग में निश्चल-से उनके ठहाके गूँजने लगते हैं।
इसी लिए:
भुला ग़मों को चलो आज मिल के रक्स करें
फ़लक पे झूम रहीं सावली घटाएँ हैं
तड़प हिरास घुटन... वाला शेर
और
वही जो सुन के पलट के भी देखता ही नहीं
उसी के वास्ते इस दिल की सब सदाएँ हैं....
वाह वाह... वाह वाह... वाह वाह.
आज फिर बहुत दिनों बाद मेल देख पाया हूँ
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो आपको पुस्तक के प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई.
बहुत ही माअनीख़ेज़ आवरण है. पुस्तक भी ज़रूर पढ़ँगा.
अब बात करें वर्षा मंगल मुशायरे की. युगल जोड़ी ने तो ग़ज़ब ढाया है.
राही साहब ख़ूबसूरत ग़ज़ल के ये शेर :
मेरा ज़मीर खड़ा है मेरी हिफ़ाज़त में...
और
हमारे पास कहाँ आप-सी अदाएँ हैं...
तो हासिले ग़ज़ल हैं ही, मक़्ता भी बहुत बेचैन कर गया और एकदम ज़बानज़द भी हो गया.
किसी को भी नैराश्य से निकाल लेना नीरज भाई साहब के बायें हाथ का खेल है. उनका यह जादू मुझ पर भी चल चुका है. और जो भी इस बात का सबूत चाहे नीरज भाई साहब को एक फोन करके देख ले. उनसे बात कर लेने के बाद आपकी मन:स्थिति उन्हें फोन करने से पहले वाली नहीं रह जाती. दिलो-दिमाग में निश्चल-से उनके ठहाके गूँजने लगते हैं।
इसी लिए:
भुला ग़मों को चलो आज मिल के रक्स करें
फ़लक पे झूम रहीं सावली घटाएँ हैं
तड़प हिरास घुटन... वाला शेर
और
वही जो सुन के पलट के भी देखता ही नहीं
उसी के वास्ते इस दिल की सब सदाएँ हैं....
वाह वाह... वाह वाह... वाह वाह.
कायदे से कहूँ तो अब कुछ बचा ही नहीं कहने को इन दोनों महारथियों के लिए... जैसा के बड़े भाई आदरणीय द्विज जी ने कहा के जबानजद वाली होती है दोनों ही सुख्ननगो के साथ ... वाह मजा आगया सच में ...
जवाब देंहटाएंअर्श
तिलक जी और नीरज जी, मेरा सलाम भी कबूल करें
जवाब देंहटाएंगज़ल पढ्ने के बाद से अब तक शब्दों में दिल का हाल बयान करने मेन असमर्थ हूं
आशा करता हूं आप मेरे दिल का हाल समझेंगे
दोनों अद्भुत तरही का फिर से लुत्फ़ उठाने आया तो देखा कि मेरी टिप्पणी गुम है। कहाँ गयी मेरी टिप्पणी?
जवाब देंहटाएंगुरूदेव की जय हो। "ये वो सहर नहीं" मुझे यकीन है कि सफलता के नये आयाम छुयेगा, "ईस्ट इंडिया कंपनी" से भी ज्यादा।
ये वो सहर तो नही के प्रकाशन की ढेरों बधाई ....
जवाब देंहटाएंदेरी से आने की क्षमा चाहता हूँ ..... पर दोनो उस्तादों को पढ़ कर जितना आनंद आ रहा है वो बयान नही कर पा रहा ... बहुत कुछ सीख भी रहा हूँ दोनो की उस्तादी से ..... और तरही तो रोज़ रोज़ जवान हो रही है ....
प्रणाम गुरु जी,
जवाब देंहटाएं"ये वो सहर तो नहीं" के प्रकाशन के लिए ढेरों बधाइयाँ. जिसका बेसब्री से इंतज़ार था वो मुराद पूरी हो गयी, अब इसे जल्द पढता हूँ. शुक्रिया अर्श भाई का.
ये जुगलबंदी और ये जोड़ी कमाल है, बेमिसाल है और धमाल है.
@ तिलक जी,
मतला जान ले रहा है, वाह वाह वाह और गिरह तो जबरदस्त है
"मेरा ज़मीर खड़ा है................" बब्बर शेर.
किस किस शेर की तारीफ करूं पूरी ग़ज़ल ही अद्भुत है, "हमारी बात ज़माने को.............", "बहुत दिनों से कोई........", और मक्ता बस वाह वाह ही कह रहा हूँ.
@ नीरज जी,
"रकीब हो, के ................." एकदम सचबयानी
"वही जो सुन के........" अहा कितना खूबसूरत शेर कहा है, मज़ा आ गया.
बधाइयों का एक ढेर मेरी तरफ से भी स्वीकार करें.