पिछली तरही में द्विजेन्द्र द्विज जी ने हिंदी के काफियों का अनोखा प्रयोग करके सबको भौंचक्का ही कर दिया ( भभ्भड़ कवि भौंचक्के को भी क्योंकि वे भी हिंदी को लेकर काम कर रहे थे, सो उन्होंने अपनी भड़ास निर्मला दी के ब्लाग पर निकाली कमेंट के रूप में ) और पूरा मुशायरा लूट लाट कर अपने घर ले गये । द्विजेन्द्र जी की गिरह को शायद ऊपर वाले ने भी सुन लिया और कल हमारे शहर सहित पूरे मध्य प्रदेश में जमकर बरसात हुई । और ये सिलसिला अभी भी चल रहा है । हालांकि इस बार ऐसा लग रहा है कि बरसात किसी ठेकेदार ने सरकारी ठेके पर ले रखी हो । जहां पर दो इंच बरसने का ठेका लिया गया है वहां पर बादल और हवाएं मिलकर माहौल तो ऐसा बनाते हैं कि आज तो दो क्या चार इंच बरस जाएंगे लेकिन होता ये है कि आधा इंच भी नहीं बरसते हैं । सरकारी काम में भी तो ये ही होता है कि माहौल तो शत प्रतिशत का बनाया जाता है लेकिन काम दस प्रतिशत का भी नहीं होता है । राजीव गांधी ने कभी कहा था कि ऊपर से मदद एक रुपया चलती है और नीचे तक पन्द्रह पैसा पहुंचता है । लेकिन राजीव गांधी अब होते तो देखते कि ऊपर से मदद एक रुपया चलती है और अब तो ये हाल है कि नीचे तक आते आते तो माइनस हो जाता है । माइनस यूं कि अंतिम बाबू जिसे उस परियोजना में सौ रुपये खाने तय थे उसके लिये कुल पचास ही बचते हैं सो अब वो माइनस में हो जाता है । पिछले दिनों ऐसी ही एक केन्द्र सरकार की परियाजना का अध्ययन कर रहा था तो ज्ञात हुआ कि पूरा का पूरा पैसा सीधे सीधे खाया जा रहा है और योजना महात्मा गांधी के नाम पर है ।
इन दिनों पृथ्वी और मंगल के बीच के एस्टेराइड बेल्ट का अध्ययन भी कर रहा हूं । पता चला है कि ये जो पूरा का पूरा एस्टेराइड बेल्ट है ये पहले एक जीता जागता ग्रह था जो किसी पिंड की टक्कर से टूट कर टुकडे टुकड़े हो गया और पृथ्वी ता मंगल ग्रह के बीच एस्टेराइड की चट्टानों के रूप में बिखरा हुआ है । रोचक है ना । सोच सकते हैं कि कभी कोई ग्रह पृथ्वी के बहुत नजदीक भी हुआ करता था । शायद पृथ्वी का प्रेमी रहा होगा जिसने पृथ्वी की और आ रहे धूमकेतू को अपनी छाती पर झेल कर पृथ्वी को बचाया होगा ।
खैर चलिये आज का तरही मुशायरा प्रारंभ करते हैं ।
वर्षा मंगल तरही मुशायरा
फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं
राणा प्रताप सिंह
राणा प्रताप सिंह पहली बार तरही में आ रहे हैं । वैसे इनका नाम बहुत ही रोचक है । सिंह को हटा दो तो और रोचक हो जाता है । और ये भी ज्ञात होता है कि उस दौर के राणा प्रतात तलवार के धनी थे तो इस दौर के राणा प्रताप कलम के । आज पहली बार ये तरही में आये हैं तो ज़ोरदार तालियों के साथ स्वागत करें राणा प्रताप का । इनका कहना है कि
''पिछले एक महीने में जो कुछ सीखा है उसके आधार पर एक प्रयास किया है....चूँकि पहली बार किसी मुशायरे के लिए ग़ज़ल कही है इसलिए छोटी मोटी गलतियों को क्षमा करने का आग्रह भी कर रहा हूँ.''
ये क्यूँ निजाम की बदली हुई अदाएं हैं
समझ में आ रही मुझको मेरी जफ़ाएं हैं
डंटा रहेगा वो सरहद पे जान है जब तक
के उसके कुनबे की प्राचीन ये प्रथाएं है
निगाह उसने ही डाली है टूटे छप्पर पे
भुगत रहा जो हवाओं की ताड़नाएं हैं
तुम्हारे खेत चमकदार सोना उपजेंगे
''फलक पे झूम रही सांवली घटाएं है''
वाह वाह वाह अच्छे शेर निकाले हैं और काफियों के साथ बहुत ही सुंदर प्रयोग किये हैं । गिरह को भारतीय किसान के साथ बहुत संदर तरीके से बांधा गया है ।
डॉ. आज़म
डॉ आज़म तरही के लिये कोई नया नाम नहीं हैं । आप उन लोगों में से हैं जिनकी ग़ज़लों का तरही में इंतज़ार होता है । तथा इस बार डॉ आज़म भी हिंन्दी के काफिये ही लेकर आये हैं । वैसे एक बात इनके बारे में और बता दूं कि ये हिंदी के गीतों में ही दखल रखते हैं और हिंदी की ग़ज़लें भी ख़ूब कहते हैं । तो आज सुनते हैं डॉ आज़म से उनकी ग़ज़ल ।
हवा भी सर्द है और दिलनशीं फिज़ाएं हैं
''फ़लक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं''
हैं गीले गीले दिवस भीगती निशाएं हैं
मगर धधकती हुई सारी कामनाएं हैं
इसे कहें तो कहें मेहफिले सुख़न कैसे
यहां पे कूक नहीं सिर्फ काएं काएं हैं
ज़रा भी डर नहीं दुश्मन की दुश्मनी से मुझे
मुझे तो ख़ौफ़ है उनसे जो दाएं बाएं हैं
यक़ी, भरोसा, वफ़ा, प्यार किसमें ढूंढें अब
के डगमगाती हुईं सब की आस्थाएं हैं
मैं उनमें जाके यही सोचता रहा हूं कि ये
सियासी मंच हैं या धार्मिक सभाएं हैं
ये जिंदगी का सफ़र दोस्तों है अंधा सफ़र
कहीं हैं मील के पत्थर, न सूचनाएं हैं
है इसलिये मेरी खु़शहाल जिंदगी 'आज़म'
करम खु़दा का है मां बाप की दुआएं हैं
वाह वाह वाह बहुत ही सुंदर शेर कहे हैं । और एक बार फिर भभ्भड़ कवि भौंचक्के को भी भौंचक्का कर दिया है इस प्रकार के हिंदी काफियों का प्रयोग करके । बहुत ही सुंदर प्रयोग किये हैं । सभाएं और आस्थाएं तो खूब हैं । लेकिन दाएं बाएं का तो कहना ही क्या है ।
तो सुनते रहिये और दाद देते रहिये । और प्रतीक्षा कीजिये अगले दो शायरों की ।
@राणा प्रताप जी,
जवाब देंहटाएंआपकी ग़ज़ल पहली बात पढ़ और दिल खुश हो गया क्या ग़ज़ब की कलम चली है और जैसा की पंकज जी का कहना है की तरही मुशायरे में ग़ज़लों के बारिश के साथ साथ बाहर भी बादल अपनी मंशा जाहिर कर रहे है और झूम-झूम के बरस रहें है..
निगाह उसने ही डाली है टूटे छप्पर पे,
भुगत रहा जी हवाओं की ताड़नाएं हैं..
बेहतरीन!!!
बढ़िया प्रस्तुति के लिए बधाई हो
सुंदर ग़ज़ल की प्रस्तुति डॉ.आज़म जी बहुत बहुत बधाई..नये नये भाव लिए बहुत बेहतरीन शेर गढ़े है आपने बहुत ही अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंज़रा भी डर नही दुश्मन को दुश्मनी से मुझे
मुझे तो ख़ौफ़ हैं उनसे जो दाएं-बाएं हैं..
जमाने की सच्चाई भी कह डाली आज कल तो अपने से ही डर लगता है.....प्रस्तुति के लिए धन्यवाद..
वाह. बहुत ही अच्छी ग़ज़लें. राणा प्रताप सिंह जी ने गिरह बहुत अच्छी बाँधी है. डॉ. आज़म जी के 'दायें बाएं' का प्रयोग बहुत अच्छा है. एकदम अलग.
जवाब देंहटाएंवाह... वाह...वाह....!! बहुत खूब...!! करम खुदा का !!!
जवाब देंहटाएंदिल बाग़ बाग़ हो गया
एक बार फिर से पढ़ते हैं... फिर कुछ कहते हैं.
(इस वक़्त तो यहाँ भी घनघोर काली घटाएं बरस रही है)
ख़ुशी हुई की इंद्र के ठेकेदार कम ही सही काम तो कर रहे हैं...महल के ख़्वाब दिखा कर छोटी सी कोठरी तो बनवा दे रहे हैं...ठाठ बाठ न सही सर छुपाने को जगह ही सही...जो मिल रहा है फ्री में मिल रहा है...मस्त रहिये...दान की बछिया के दांत नहीं गिने जाते...
जवाब देंहटाएंइस बार की तरही में चौंकाने वाले शेर आयें हैं जिन्हें पढ़ कर लगता है की आज की ग़ज़ल अब तक अनजान रही बुलंदियों को छूने की कोशिश कर रही है...नयी नयी उपमाएं और काफिये गज़ब ढा रहे हैं. वाह...वा..से काम नहीं चल पा रहा...बार बार तालियाँ बजानी पड़ रही हैं...राणा जी के प्रथाएं और डा.आज़म साहब के कांएं कांएं , दाएं बाएं , सूचनाएँ काफियों से रचे शेरों ने कमाल कर डाला है...अद्भुत ग़ज़लें कही है दोनों शायरों ने...दोनों को मेरा सर झुका कर अभिवादन...(टोपी हटा के)
नीरज
राणा प्रताप जी का बहुत बहुत स्वागत है इस तरही में ... हिंदी के काफिये का प्रयोग वाकई तरही को ऊँचाई पर ले जाने के लिए तैयार है ... वाकई जो मिसरा लगाया है लगाया है इन्होने गिरह में वो कमाल का है बधाई इन्हें ....
जवाब देंहटाएंआज़म साब को आदाब पहले तो .. इनकी शख्सियत के मुताबिक़ इनकी गज़लें होती है कोमल ,मृदुल, नाज़ुक , मुहब्बत से सराबोर ... काएं काएं , वाला काफिया वाकई खूबसूरती से लगाया है इन्होने ... वाकई तरही में आज़म साब का इंतज़ार रहता है इनकी ग़ज़ल को पढ़ने के लिए .. बहुत बहुत बधाई .. आज हमारे यहाँ भी खूब बारिश हो रही है तैयार बैठा था मगर जा ना सका ऑफिस ... सोचा घर पर ही पकोड़े और कॉफ़ी की मजा ली जाए ...
ऊपर से खुबसूरत ग़ज़लों ने और मजा दुगना कर दिया
अर्श
वाह राणा जी ने तो पहले प्रयास मे ही बता दिया है कि आने वाला कल उनका है जब गज़ल के नाम पर उनका नाम पहले आयेगा। बहुत सुन्दर शेर है।---
जवाब देंहटाएंनिगाह उसने ----
डंटा रहेगा वो ----
आजम जी की गज़ल के तो पहले ही खूब चर्चे रहते हैं उनके बारे मे मेरा कुछ कहना सूरज को दीप दिखाना है। उनके ये शेर कामल के हैं---
यकीं भरोसा वफा प्यार-----
ये ज़िन्दगी का सफर है ----- लाजवाब मुशायरा है। दोनो गुनी जनो को बहुत बहुत बधाई।
राणा प्रताप सिंह जी के गिरह खूब पसंद आये.
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका.
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डा. आजम साहब के बारे कुछ नहीं कहूँगा... उनको सुनने के लिए हम इंतज़ार करते रहते हैं !! ये आप उस्ताद जनों की मेहरबानी है कि आप हमारे बीच हैं, दाएं बाएं हैं.
तरही जिंदाबाद!!
@pankaj subirji.....
जवाब देंहटाएंतराने खूब हसीं आपने सुनाए है,
कि मेघराज उमड़ते-घुमड़ते आये है.
राणा प्रताप जी आप तो कुनबे की प्रथाओं का पालन कीजिये और खूब कीजिये, शुरुआत अच्छी है।
जवाब देंहटाएंडॉ. आजम साहब, कौओं की सभा में कोयल छुप के बैठ भले ही जाये लेकिन कॉंय-कॉंय पर उसका कोई नियंत्रण नहीं हो सकता, और जब दॉंये बॉंये वालों से डर लगने लगे तो उपर वाले को याद करें जो अन्दर बैठा है। रहा सवाल सियासी मंच और धार्मिक सभाओं का तो दोनों ऐ दूसरे की पर्याय बन चुकी हैं। करम खुदा का और मॉं बाप की दुआएँ तो सभी पर है जो महसूस करते हैं वो खुशहाल हैं बाकी ग़मों को ही रोते रहते हैं।
हर शेर मुकम्मल बात कहता हुआ, किस की बात की जाये और किसे छोड़ा जाये।
खूबसूरत शेरों से सजी दोनो ही गज़लें बेहतरीन हैं।
जवाब देंहटाएंवाह ! वाह !! वाह !!!
जवाब देंहटाएंगुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंराणा जी का जोरदार आगाज हुआ है सुस्वागतम और बहुत बहुत बधाई
आज़म जी की गजल बहुत पसंद आई
खास कर काफियाबंदी तो कमाल धमाल बेमिसाल है
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंराणा जी का जोरदार आगाज हुआ है सुस्वागतम और बहुत बहुत बधाई
आज़म जी की गजल बहुत पसंद आई
खास कर काफियाबंदी तो कमाल धमाल बेमिसाल है
आज़म जी की ग़ज़ल पर क्या कहूँ...
जवाब देंहटाएंवाह..वाह ....
आज़म जी ने भावाभिव्यक्ति के लिए शब्दों का चुनाव इस बखूबी से किया है कि एक -एक शे'र उजला सा अभी-अभी सीप से निकला मोती लग रहा है....
हैं गीले -गीले दिवस भीगती निशाएँ हैं ..
और
मुझे तो खौफ है उनसे जो दाएँ बाएँ हैं
और
कहीं हैं मील के पत्थर, ना सूचनाएँ हैं
बहुत खूब और बहुत -बहुत बधाई.
राणा प्रताप सिंह की ग़ज़ल भी बहुत अच्छी लगी...
जवाब देंहटाएंनिगाह उसने ही डाली है टूटे छप्पर पर..
और
उसके कुनबे की प्राचीन ये प्रथाएं हैं
वाह ..बधाई.
गुरु जी
जवाब देंहटाएंमेरा ये कमेंट पब्लिश कर दीजये कुछ समस्या आ रही है यहाँ।
सादर
कंचन
राण जी का आगाज़ ही बहुत अच्छा है आगे तो फिर शायद बहुत बुलंदियाँ मिलनी है इन्हे। शेर एक बार क्लिक ज़रूर कर रहे हैं।
शुभकामनाए.....
डॉ० आज़म यूँ भी चमत्कारिक लिखते हैं।
गीले निशा दिवस और धधकती कामनाएं...क्या बात है ..
जिंदगी के अंधे सफर मे बिना मील के पत्थर के चलने क्या खूब दर्शन बताया है...!
सुंदर अति सुंदर
@ राना जी,
जवाब देंहटाएंपहली कोशिश ही दमदार है, आपने बहुत अच्छा आघज़ किया है.
गिरह अच्छी लगाई है.
@ आज़म साहेब,
हर शेर महक रहा है, पूरी ग़ज़ल खुशनुमा है.
दिल खुश हो गया.
"यहं पे कूक नहीं सिर्फ काएं काएं हैं".....................वाह वाह
"मुझे तो खौफ़ है उनसे जो दायें बाएं हैं."........................वाह वाह वाह
"सियासी मंच है या धार्मिक सभाएं हैं"......................वाह वाह वाह वाह
आज़म साहेब आपको बहुत बहुत बधाई.
लाजवाब शेर कहें हैं आपने.
दोनों तरही तो पहले ही पढ़ ली थी...कुछ कहने की फुरसत अब जुटा पा रहा हूं।
जवाब देंहटाएंराणा साब का स्वागत है। कुनबे की प्रथाएं वाले शेर ने मुझे मेरे कुमाऊं रेजिमेंट की याद दिला कर सीना चौड़ा कर दिया। राणा साब को इस शेर पर एक कड़क सैल्युट। झुंझला रहा हूं कि ये शेर मैंने क्यों नहीं बुना?
...और आजम साब के काफ़ियों से सचमुच हतप्रभ हो रखा हूं। मुझे तो खौफ़ है उनसे जो दांयें बायें हैं वाले मिस्रे पर ढ़ेरों तालियां उनको।
निर्मला जी के नये पोस्ट पर आपकी भी तरही पढ़ आया। अप्सराएं वाला शेर वहीं बुना गया था पोस्ट पढ़ने के बाद या पहले से रचा हुआ था?
आशा है, अब आप स्वस्थ हैं?