वैसे तो मैंने कहा था कि आने वाली दो पोस्टें लंबित रहेंगीं लेकिन अब हुआ ये है कि तरही को लेकर ग़ज़लें मिलनी प्रारंभ हो गईं हैं तो अब ऐसा लग रहा है कि तरही को लेकर काम चालू हो जाना चाहिये । इस बीच हमारे इलाके में अच्छी खासी बरसात हो चुकी है । इतनी कि एक बार तो बिजली को अपने से ठीक सौ मीटर की दूरी पर गिरते देखने का अनुभव भी हो चुका है । रात भर बूंदें यादों की तरह बरस रही हैं । और माहौल बन चुका है । तरही का भी माहौल बन चुका है । इस बार काफी ऐसे लोगों की भी ग़ज़लें आ रही हैं जो कि स्थापित हैं तथा बाकायदा माने हुए शायर हैं ।
पहले तो ये कि कई लोगों को कहना है कि इस बार की तरही कहर काफी मुश्किल है और साथ में रदीफ में जो बहुवचन आ रहा है वो भी परेशान कर रहा है क्योंकि हैं करना है । एक बारगी तो मुझे भी लगा कि सचमुच ही परेशानी वाला है । लेकिन सिद्धार्थ नगर की यात्रा के दौरान जब नुसरत दीदी को ये मिसरा बताया तो उन्होंने सिद्धार्थ नगर से भोपाल से वापस के दौरान ग़ज़ल पूरी भी कर दी । तिस पर भी ये कि मतला तो इतना अच्छा बना है कि अभी आप सब को सुनाने की इच्छा हो रही है । लेकिन तरही की मर्यादा के चलते अपनी इच्छा पर नियंत्रण रखना पड़ रहा है । फिर उसके बाद कई लोगों की ग़ज़लें और भी मिल गईं तथा बहुत अच्छी मिलीं तो लगा कि नहीं उतना मुश्किल भी नहीं है जितना कि सोचा जा रहा था । डॉ आज़म जी से जब मैंने कहा कि क़ाफिये तो लगभग सभी ग़ज़लों के एक से ही रहेंगें तो उन्होंने मुझे ऐसे ऐसे क़ाफिये सुनाये के सुन कर मैं भी दंग रह गया । आम क़ाफियों से हट कर ढेर सारे क़ाफिये । तो लगा कि नहीं इस बार का मिसरा, रदीफ, काफिया सब ही रवानगी में हैं और बहर तो अपने आप में है ही बहती हुई ।
कुछ लोगों ने जानना चाहा है कि क्या पूरी ग़ज़ल ही बरसात पर लिखनी है । वैसा तो कुछ नहीं है लेकिन यदि आप लिखना चाहें तो उसका भी स्वागत है । इन दिनों एक ही विषय पर पूरी ग़ज़ल कहने का रिवाज़ चल भी रहा है । तो यदि आप पूरी की पूरी ग़ज़ल ही वर्षा को समर्पित करना चाहते हैं तो वैसा भी कर सकते हैं । नहीं करना चाहें तो किसी भी एक शेर में वर्षा के मिसरे की गिरह बांध दें । जहां तक क़ाफियों का सवाल है तो क़ाफिये तो बहुत से हैं । उर्दू के साथ साथ यदि आप हिंदी में आएंगें तो कई बहुत ही सुंदर काफिये आपको मिलेंगें । हिंदी में तो शेर भी बहुत ही अच्छे बन रहे हैं । कुछ लोगों का कहना है कि दूसरे रुक्न में जो दो लघु का दोहराव हो रहा है वो कुछ परेशानी में डालने वाला है लेकिन सच तो यह है कि वही तो इस बहर का सौंदर्य है । वैसे गौतम ने एक ऐसा गीत ( वास्तव में ग़ज़ल ही है ) ढूंढ़ कर निकाला है जो न केवल इस बहर पर है बल्कि उसके क़ाफिये भी यही हैं जो हमारी तरही के मिसरे में हैं । तो यदि दिक्कत आ रही है तो इस गीत का सुन लें ।
फिल्म आज और कल का ये गीत ( ग़ज़ल) है । इसे रफी साहब ने बहुत ही मस्ती के साथ गाया है । 1963 में आई इस फिल्म में अशोक कुमार, सुनील दत्त और नंदा जैसे कलाकार थे । रवी जी का संगीत और साहिर साहब के बोल थे । ये वादियां ये फ़ज़ाएं बुला रहीं हैं तुम्हें, ये गीत तो मानो मदहोश करने वाला ही गीत था । इसके अलावा इसमें एक और गती बहुत ही सुंदर था जिसे रफी साहब और आशा जी दोनों ने ही गाया था । गीत था मुझे गले से लगा लो बहुत उदास हूं मैं, ये गीत भी हमारी इसी बहर पर है । बस फर्क ये है कि ये गीत ही है क्योंकि इसके अंतरों में तीन पंक्तियां हैं । ये गीत भी मानो दर्द की इन्तेहा का गीत है इसे भी इसलिये सुन लें कि ये भी तो हमारी बहर पर ही है ।
कई लोग कहते हैं कि आदरणीय राहत इन्दौरी जी का अधिकतम काम इसी बहर में है । दरअसल में इस बहर की विशेषता ही ये है कि आपको यदि ये पसंद आ गई तो फिर आप घूम घूम कर इसी पर लिखते हैं । जैसे साहिर साहब ने एक ही फिल्म में दो गीत इसी बहर पर लिख दिये । ये बहर दिमाग़ में इस प्रकार से सेट हो जाती है कि आप फिर कई कई ग़ज़ले इसी पर लिख डालते हैं । तो चलिये लिख डालिये इससे पहले कि बरसात का ये सुहाना मौसम बीत जाये ।
लटेरी का मुशायरा : लटेरी में मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी के मुशायरे में जाना हुआ । मुझे लगता है कि पिछले कवि सम्मेलन की जो गांव में हुआ था उसकी पूरी रपट नहीं दे पाया हूं । खैर आज तो लटेरी की बात । हाल का कार्यक्रम था और हाल पूरा का पूरा भरा हुआ था । मंच पर दिग्गज नाम भी थे और स्थानीय शायर भी थे । कार्यक्रम प्रारंभ होते ही सभी शायरों की हालत खराब । कारण , कारण ये कि श्रोता किसी बिगड़ैल घोड़े की तरह किसी भी शायर को सवारी नहीं करने दे रहे थे । जो आ रहा उसी को हूट करके वापस मंच पर पहुंचा देते थे । जैसा कि होता है कि हर जगह पहले स्थानीय शायर पढ़ते हैं और फिर उसके बाद आमंत्रित शायर । जो हूट हो रहे थे वे सारे स्थानीय ही थे । मगर उनको देख कर आमंत्रितों का पसीना छूट रहा था । एक बार तो ये भी हुआ कि हूट करता हुआ एक श्रोता आया और शायर का हाथ पकड़ कर उसको वापस मंच पर बैठा गया । मगर स्थानीय शायर भी ऐसे ऐसे कलेजे के थे कि बावजूद पूरी हूटिंग के वे डट कर पढ रहे थे । किसी को कुछ नहीं सुना रहा था कि वे क्या पढ़ रहे हैं लेकिन पढ़ फिर भी रहे थे । मैंने अनुमान लगाया कि इस प्रकार के श्रोता या तो हास्य से मानते हैं या देशभक्ति से । बस वही टोटका चला दिया और अपनी बारी आने पर देशभक्ति के छंद मुक्तक पेल दिये । ताली वाह वाह फिर से पढि़ये बटोर कर अपने राम वापस मंच पर अपनी इज्जत के साथ आ गये । हालांकि बाद में आमंत्रित शायरों को खूब मन से सुना गया । लेकिन स्थानीय को उसी प्रकार हूटिंग के साथ सुना गया । बाद में पता चला कि स्थानीय का वे यही हाल करते हैं । मुशायरा खत्म होने तक भारी बरसात भी शुरू हो गई थी । हम लोग बाहर अपनी गाड़ी में बैठने आये तो कड़कड़ा कर हमसे पचास से सौ मीटर की दूरी पर बिजली गिरी । हम सब स्तम्भित रह गये । उफ क्या धमाका था और क्या चमक थी उसमें । केवल पचास मीटर की दूरी ने हमको बचा दिया । वरना तो हम भी पेड़ के नीचे ही खड़े थे । खैर ये भी अपनी ही तरह का अनुभव था । ( मुझे याद आ गया व्यंग्य सम्राट जनाब मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी साहब के अद्भुत उपन्यास खोया पानी में वर्णित धीरज गंज का पहला और आखिरी मुशायरा । इसको पढ़कर मैं जीवन में सबसे ज्यादा हंसा और आज भी हंसता हूं । विशेष कर उन पंक्तियों पर कि मुशायरों के इतिहास में ये पहला मुशायरा था जो श्रोताओं ने लूट लिया था । )
ग़ज़ल का सफर पर नई पोस्ट लगा दी है आप लोगों की बहुत शिकायत थी उसको लेकर । इस बार जुजबंदी करके रुक्न बनाने की तकनीक वहां पर बताई है । तथा दो रुक्न बनाना भी बताया है । इस बारे पांच मात्रिक रुक्न बनाये हैं अगली बार सात मात्रिक रुक्न बनाएंगें ।
तो जल्दी से तरही भेजिये और इंतजार कीजिये बरसाती ग़ज़लों से भरे तरही मुशायरे का ।
सावन की रिमझिम फुहारों ने मन मोह लिया.....
जवाब देंहटाएंregards
ये बह्र कठिन तो है लेकिन इतनी भी नहीं कि ग़ज़ल कही न जा सके। पहले जब मैं कोशिश कर रहा था कठिन लग रहा था, मगर फिर जब 'कभी कहा न किसी से तेरे फ़साने को, न जाने कैसे खबर लग गई जंमाने को' याद आया तो ऐसा लगा कि इस बह्र पर मैं पहले भी एक ग़ज़ल कह चुका हूँ। याद किया तो खरगोन की एक तरही याद आई जिसमें मिसरा-ए-तरही था 'तमाम शह्र के रस्ते सजा दिये जायें', बस फिर सब कुछ दौड़ने लगा, देखते-देखते 15 शेर बन गये, नीरज भाई से बात करी तो बड़ी बेरहमी से उन्होंने 8 शेर कत्ल कर दिये, अब बिचारे आठों शेर कोने में पड़े कराह रहे हैं कि किस कातिल से सलाह ले बैठे।
जवाब देंहटाएंफिर भी एक बात तय है कि ये बह्र नहीं आसॉं....
इस बह्र में पंकज भाई ने अब तक जो सिखाया है वो सब ध्यान रखना पड़ेगा।
लीजिये गुरूदेव, हम तो अभी कुछ और अपेक्षा कर रहे थे इस ब्लौग पर...वैसे अपनी तरही भेज देने के बाद तो उत्कंठा यूं हावी हो रही है कि कब शुरू हो ये मुशायरा।
जवाब देंहटाएंअमिताभ बच्चन के एक गीत की पंक्तियां मुझे बहुत पसंद है और इस तरही को लिखते समय मैं उसी पंक्तियों की धुन पर गुनगुना कर लिख रहा था। वो पंक्तियां हैं:-
"नशा शराब में होता तो नाचती बोतल....नशे में कौन नहीं है मुझे बताओ जरा"
रफ़ी साब को तो बचपन से पूजता आया हूँ मैं। ये दो विडियो देकर बड़ा उपकार किया गुरूदेव आपने। उनका एक और गीत जो मुझे बहुत पसंद है और इसी बहर पे है:- "न तू जमीं के लिये है न आस्मां के लिये/तेरा वजूद है अब सिर्फ दास्तां के लिये"।
खोया-पानी के उस मुशायरे की याद दिला कर फिर-फिर ठहाका लगाने को विवश कर दिया आपने।
ठनके{हमारी मैथिली में बिजली गिरने को ठनका कहते हैं} का इतना नजदीकी अनुभव कितना रोमांचकारी होता है, समझता हूं। पहाड़ों पे कई बार ऐसे करीबी अनुभव हुये हैं। सबलोगों के कान तो कम से कम अगले दिन तक बज रहे होंगे एक अजीब सी गूंज से...
पंकज जी, इस मुशायरे का बड़ी बेसब्री से इन्तज़ार कर रही हूं, उम्मीद है सुन्दर गज़लें पढने को मिलेंगीं. बारिश की तस्वीरों ने मुशायरे के मूड के मुताबिक माहौल तो बना ही दिया है.
जवाब देंहटाएंमेरे जैसे अधपके शायर के लिए ये कहना मुश्किल है के ये बहर आसान है....इसलिए मैंने शुरू के आठ दस दिन डर के मारे तो इस बारे में सोचा ही नहीं फिर एक दिन यूँ ही अचानक एक शेर कहा कुछ ठीक ठाक सा लगा तो दूसरा...रात रात भर करवटें बदलते हुए तीसरा...लेकिन सच में वो लोग महान हैं जो ऐसी बहर पर आसानी से शेर कह लेते हैं...डा.आज़म और तिलक राज जी इसी श्रेणी में आते हैं...तिलक जी ने दनदनाते हुए सोलह शेर से सजी ग़ज़ल भेज दी और सारे शेर भी ऐसे जैसे आप पर टूट पड़ने और चीरफाड़ करने को बेताब हों...डरते डरते उनसे गुज़ारिश की के जनाब पढने वालों का हौसला मत परखो पांच सात शेरों वाली ग़ज़ल ही भेजो....उन्होंने ने मेरी बात मुंह बिचकाते हुए पता नहीं क्यूँ मान ली...
जवाब देंहटाएंतरही मुशायरा जल्द शुरू हो और एक बार शुरू हुए बाद रुके नहीं ये कामना है...क्यूँ के दो-चार दिन के अंतराल से अगर आपकी इसकी किश्तें पोस्ट करेंगे तो मज़ा नहीं आएगा...रोज एक पोस्ट आये और भिगो जाए तो आनंद आ जाये...बाकि मुशायरे का चलाना तो आपके रहमो करम हैं... जैसा पेश करेंगे मंज़ूर होगा...
आपने गीत ही नहीं सुनवाये हमको हमारा बचपन लौटा दिया है...वाह...
नीरज
इस मुशायरे का बेसब्री से इंतज़ार है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रिपोर्ट रही मुशायरे की...भेजते हैं तरही के लिए कुछ एक दिन में. :)
जवाब देंहटाएंगुरु जी ब्लॉग की फुहारें तो मन मोह रहीं हैं पर हमारा उत्तर प्रदेश तो अभी भी तरस रहा है...ऐसे में आप जानते ही होंगे की ग़ज़ल का मूड कैसे बन सकता है..ब्लॉग की रिमझिम में ही बैठ कर कुछ शेर बने हैं..वैसे तो आज आपने कई फ़िल्मी गीत इस बहर के लगाए हैं..मैंने तो निदा फाजली साहब की ग़ज़ल "कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता... " को गुनगुना कर लिखा है
जवाब देंहटाएंगुरूजी,
जवाब देंहटाएंप्रणाम.
तरही का इंतज़ार है.
वो बिजली हो सकता हैं आपको प्रणाम करने आई हो..
तिलक राज कपूर जी की प्रस्तुति का अंदाज़ बयां कुछ और है. बहुत मुतासिर रही हूँ हमेशा, जाना चाहती थी कौन नीरज है जो इस्लाह के मामले में दक्ष है..पर नीरज गोस्वामी कि मेल से सब खुलासा हो गया..मुझे भी मार्गदर्शक मिल गया अब...लिखना तो एक सफ़र है, किसी पड़ाव पर कभी कभी किसुधर कि गुंजाइश पड़ ही जाती है...
जवाब देंहटाएंअब इंतज़ार है पड़ने का और इस सिलसिले को आगे बदने का. सुबीर जी तरही ग़ज़ल का सिलसिला हमेशा जारी रखियेगा...येः एक गुज़ारिश है. कुछ लिखने का मूड बन जाता है..
आदरणीय, आपका बहुत पुराना और शान्त प्रशंसक हूँ। अभी मैंने आपके दिए लिंक ‘गजलों का सफ़र’ पर जाने की कोशिश की तो पता चला कि उस विद्यापीठ के द्वार केवल आमन्त्रित पाठकों के लिए खुलते हैं। हम अनाहूत थे इसलिए दरवाजा ही नहीं खुला। मेरा टिकट भेंज दीजिए गुरुदेव।
जवाब देंहटाएंहम जैसे नौसीखियों के लिए तो बहुत कठिन है फिर भी प्रयास करेंगे....धन्यवाद सुबीर जी
जवाब देंहटाएंगज़लो की कक्षा पर आराम से जाऊँगी जब दिमाग में कुछ भी खरपतवार नही होगा।
जवाब देंहटाएंफिलहाल ये कि मिसरा हमें भी कठिन लग रहा था, मगर जब लिखा तो लिख गया आसानी से। शायद सब के साथ यही हो। देखने में डरा रहा है पास आने पर सुलभ है, जब हम जैसे बैक बेंचर लिख सकते हैं तब सब तो अगड़े स्टूडेंट हैं।
गज़लो की कक्षा पर आराम से जाऊँगी जब दिमाग में कुछ भी खरपतवार नही होगा।
जवाब देंहटाएंफिलहाल ये कि मिसरा हमें भी कठिन लग रहा था, मगर जब लिखा तो लिख गया आसानी से। शायद सब के साथ यही हो। देखने में डरा रहा है पास आने पर सुलभ है, जब हम जैसे बैक बेंचर लिख सकते हैं तब सब तो अगड़े स्टूडेंट हैं।
प्रणाम गुरु जी,
जवाब देंहटाएंइस बहर पे वसीम बरेलवी साहेब कि लिखी और जगजीत साहेब द्वारा गाई ग़ज़ल
"मिली हवाओं में उड़ने की वो सजा यारों." भी है.
गौतम भैय्या आपने ग़ज़ल भी भेज दी, लगता है जिस दिन आपसे बात हुई थी उसी दिन शाम तक आपने पूरी ग़ज़ल लिख दी होगी.
गुरु जी अभी तो आपके पिछले कार्यक्रम की कड़ी बाकी है मगर लटेरी में जो हुआ सुन के ही उससे रोमांच हो रहा है ऊपर से बिजली से मुलाक़ात, uffff............ गौतम भैय्या सही कहा पहाड़ों में तो बिजलियों से मुलाक़ात होती रहती है.
गुरु जी आपने इन दो खूबसूरत गीतों की याद दिला के काम आसान कर दिया अब इन्हें सुनने के बाद ग़ज़ल भेजता हूँ.
इतने दिग्गजों के बीच अपनी ग़ज़ल कहना ..... बहुत डर लग रहा है गुरुदेव .... पर जो कुछ भी सीखा है उसी अनुसार ग़ज़ल कहूँगा ... बस अब इंतज़ार है ज्ञान वृधि का सबकी ग़ज़लें पढ़ कर .......
जवाब देंहटाएंगुरु जी प्रणाम,
जवाब देंहटाएंतरही गजल लिखने में दिक्कत आ रही है मगर लिख लूंगा ये विश्वास है
बरखा रानी इधर भी आयें तो कुछ मूड बने, १ हफ्ते से बादल छाए हैं मगर बरसात अभी भी शुरू नहीं हुई है
लाटरी मुशायरे की रपट और विस्तार मांग रही हैं
अभी तो पिछले मुशायरे की बात ही अधूरी है वहाँ क्या हुआ था ?
आदरणीया नुसरत जी की गजल और उनकी पोस्ट का बेसब्री से इंतज़ार है
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जवाब देंहटाएंबस मूड ही नहीं बन पा रहा बस इसी अधर में लटका हुआ हूँ ! कुछ लोगों को अब पहली कतार में बैठना होगा , जो इस बार ग़ज़ल पहले भेज चुके ! :) :),
जवाब देंहटाएंये वादियाँ ये फिजाएँ .... ये गीत मुझे बहुत पसंद है , लाटरी मुशायरे के बारे में और जानने की इक्षा हो रही है ! यही कहूँगा के हांफते हांफते मैं भी फिनिशिंग लाइन छू ही लूँगा आखिर तक !
मुशायरे का गर्मजोशी से स्वागत है !
अर्श
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जवाब देंहटाएंमेरे लिये तो बहुत मुश्किल है। आपने अपने चेले इतने साध दिये हैं कि वो मुझ पहली जमात के बच्चे से भी ीअपने जैसी गज़ल चाहते हैं मगर लिख नही पाती । देखती हूँ-- शायद--। बहुत बहुत आशीर्वाद।
जवाब देंहटाएंगुरुदेव खोपोली के फलक पे तो पिछले महीने भर से सांवली घटायें झूम रही हैं लेकिन आपके ब्लॉग आकाश पर अभी भी पुरानी पोस्ट का सूरज चमक रहा है...यहाँ घटायें कब छायेंगीं याने तरही मुशायरा कब शुरू होगा?
जवाब देंहटाएंनीरज
इससे पहले दो बार आया, और जल्दी जल्दी पोस्ट पढ़ कर चला गया, अत्यधिक व्यस्तता और अनुकूल मिजाज़ नहीं बन पाने के कारण इस बार ग़ज़ल भी कह नहीं पा रहा हूँ. इमेल किया है आचार्य जी आपको.
जवाब देंहटाएंऔर हाँ, ऊपर हमारे एक वरिष्ठ मित्र हैं सिद्धार्थ जी, हिंदी सेवी और सुन्दर व्यक्तित्व वाले ब्लोगर हैं, वे गुरुकुल में आयेंगे मुझे बहुत ख़ुशी होगी.
सभी साथियों को प्रणाम! झूम के!!
इंतिहा हो गयी....इंतज़ार की...आह...
जवाब देंहटाएंनीरज