इस बार तरही मुशायरा कुछ धीमी गति से चल रहा है । उसके पीछे कारण ये है कि इस बार वर्षा मंगल तरही है और इस बार मानसून भी धीमी गति से चल रहा है । मेरे शहर में तो ऐसा लग ही नहीं रहा है कि ये वर्षा ऋतू चल रही है । वही सड़ी हुई गर्मी है और वही सब कुछ है । कभी कभी बरसात हो भी जाती है तो ऐसा लगता है कि ये बरसात नहीं है बल्कि बरसात के नाम पर कुछ तो भी है । इधर हमारा स्वर्णिम प्रदेश जिसका अब अपना अलग एक राज्य गान है ( पूरे देश में शायद ये ही होगा जहां अपना एक राज्य गान होगा ।) जिसमें स्वर्णिम मध्यप्रदेश का बार बार जिक्र आता है । तो इस स्वर्णिम मध्य प्रदेश में बिजली है नहीं सड़कें हैं नहीं पानी है नहीं । हैरत तो तक होती है कि कहा जाता है कि बिजली की कमी है मगर जब सोमवार को पूरे प्रदेश में लगभग दस स्थानों पर बिजली को लेकर हंगामा किया गया, उग्र जनता ने तोड़ फोड़ की तो मंगलवार पूरे दिन बिजली ऐसे रही जैसे यें तो कभी जाती ही नहीं थी । बुधवार को फिर वही हालत हो गई । जो भी हो लगभग 6 साल बाद हमने एक पूरा ऐसा दिन देखा जिसमें बिजली गई ही नहीं ।
हालांकि पोस्ट लिखे जाने के दौरान ही कुछ झमाझम बारिश का दौर प्रारंभ हो गया है । मगर अभी तो ऊंट में मुंह में जीरा की हालत है ।
वर्षा मंगल तरही मुशायरा
( सभी प्राप्त ग़ज़लों को बहर में लाने के लिये एक दो आवश्यक संशोधन किये जाते हैं । क्योंकि इस बहर में अक्सर लोग दूसरे रुक्न में 1122 के स्थान पर 2121 या तीसरे में 1212 के स्थान पर 2121 करने का धोखा खा जाते हैं क्योंकि धुन में कोई फर्क नहीं पड़ता मात्राएं समान होने के कारण । )
फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं
खैर हमकों सियासत से क्या । हमें तो अपना तरही मुशायरा आगे बढ़ाना है । इस बार काफी ग़ज़लें मिली हैं तथा उनमें से सब ऐसी हैं जिनमें कई कई शेर हासिले ग़ज़ल बने हुए हैं । आज के अंक में हम दो पूर्व परिचित शायरों को ले रहे हैं । ये दोनों ही शायर होली के हंगामाखेज तरही में धूमधमाल मचा चुके हैं तथा तरही के नियमित शायर हैं । दोनों ही अपनी अलग कहन से बात को कहते हैं । आज आ रहे हैं गिरीश पंकज जी तथा जोगेश्वर गर्ग जी ।
गिरीश पंकज
गिरीश जी संपादक हैं सद्भावना दर्पण के तथा रायपुर. छत्तीसगढ़ में निवास करते हैं । पूर्व में भी तरही में अपना ज़ोरदार रंग जमा चुके हैं । आज तो वे सोच के आये हैं कि किसी भी दूसरे शायर के लिये एक भी काफिया छोड़ना ही नहीं है । और सभी काफियों का खूब इस्तेमाल किया है उन्होंने ।
बड़ी ही शोख तेरी मस्त ये अदाएं हैं
इसी में डूब के महकी हुई हवाएं हैं
न जाने कितने दिन के बाद भींगा मौसम है
हरी-हरी-सी लगी बाग़ की लताएँ हैं
तुम्हारा प्यार बरसता अषाढ़ बनकर के
हरेक बूँद में जैसे तेरी सदाएं हैं
मचल रहा है मेरा दिल किसी से मिलने को
फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएँ हैं
तुम्हारे प्यार में पागल हुआ है दिल मेरा
मेरी दिवानगी की अब कई कथाएँ हैं
न जाओ दूर, करो तुम न ऐसी बतियाँ भी
विरह की बात मुझे हर घड़ी रुलाएं हैं
तुम्हारे पास है दौलत फरेब की लेकिन
हमारे पास बुजुर्गों की बस दुआएं हैं
तेरी वफ़ा को नज़र ना लगे ज़माने की
यहाँ तो नाच रही हर तरफ ज़फाएं हैं
तुम्हारा साथ मिला इसलिए लगा पंकज
हमेशा दूर रही मुझसे हर बलाएँ हैं
वाह वाह वाह पंकज जी क्या शेर निकाले हैं । हमारे पास बुजुर्गों की बस दुआएं हों या फिर गिरह का शेर हो बड़ा ही जबरदस्त कहा है । मजा आ गया । गिरह के शेर को खूब बांधा गया है ।
जोगेश्वर जी के बारे में काफी चौंकाने वाली सूचनाएं मेरे पास हैं । मुझे भी ये बात आज ही पता चली है कि ये राजस्थान के तीन बार रह चुके पूर्व विधायक हैं और साथ में ही राजस्थान सरकार के पूर्व मंत्री भी हैं । तरही में मुशायरों में पहले भी आपने खूब रंग जमाया है और इस बार की कमाल की ग़ज़ल लेकर आ रहे हैं । वैसे जोगेश्वर जी आप एक अनुकरणीय उदाहरण हैं आज के दौर की सियासत में रहते हुए ग़ज़ल जैसी तहजीब वाली विधा को साधना बहुत मुश्किल काम है, और आप ये काम सफलता पूर्वक कर रहे हैं, बधाई हो आपको । सियासत में आप जैसे लोग आ जाएं तो शायद सियासी लोगों की भाषा भी सुधर जाये ।
मेरे करीब जो ठहरी हुयी हवाएं हैं
हलक़ में यार के अटकी हुयी सदायें हैं
तेरी ज़फ़ा हो वो मुझ पर के फिर वफायें हैं
मेरी निगाह में वो सब तेरी अदाएं हैं
तमाम रंग तेरे जिस्म की परछाई हैं
तुझे ही छू के ये महकी हुयी फिजायें हैं
तेरे करीब तो शोले भी बर्फ के गोले
तेरे बगैर ये चन्दन भी ज्यों चिताएं हैं
तुम्हारी ज़ुल्फ़ बिखर जाय जैसे चेहरे पर
फलक पे झूम रही सांवली घटायें हैं
बुरा नहीं है ये "जोगेश्वर" इतना यारों
सुने भले कई किस्से हैं कई कथाएँ हैं
अहा अहा अहा क्या कहाहै जोगेश्वर जी । आपका नाम ये जोगेश्वर सही ही रखा गया है आपका एक एक शेर प्रेम जोग की दास्तां कह रहा है । तमाम रंग तेरे जिस्म की परछांई हैं । बहुत ही अच्छा काम किया है । वाह वाह वाह । अपने भारी भरकम नाम को बहुत संतुलन के साथ मकते में बांधा है जिसे सही तरीके से पढ़ने वाला ही निभा सकता है ।
तो चलिये आज के लिये इतना ही । आनंद लेते रहिये इन दोनों शायरों का । भभ्भड़ कवि भौंचक्के इस बार कुछ बहुत ही विचित्र करने पर आमादा हैं । ऐसा जो विचित्र किन्तु सत्य टाइप का हो । इंतजार करते रहिये ।
दोनों ही बेहतरीन गजलो के साथ ये रिमझिम फुहारे किसका मन नही मोह लेंगी.....
जवाब देंहटाएंregards
आज भी मुशायरे की प्रस्तुति कमाल की रही..बरसात के हल्के हल्के बूँदों के साथ गिरीश जी और गर्ग जी की ग़ज़लें धमाल कर रही है..बहुत सुंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंगिरीश चाचा जी को मैं बहुत पहले से पढ़ता आ रहा हूँ एक अलग ही अनुभूति होती है उनकी रचनाओं में आज भी बेहतरीन बुजुर्गों को दुआएँ तो लाज़वाब बनी हैं....बढ़िया ग़ज़ल प्रस्तुति के लिए गिरीश जी को बधाई.....
जोगेश्वर गर्ग जी क्या बात कही एक एक बढ़कर एक शेर पढ़े आपने, बारिश की कहानी खूब रही..सुंदर ग़ज़ल के लिए आभार
जवाब देंहटाएंदोनों ग़ज़लें अच्छी हैं लेकिन गिरीश जी का
जवाब देंहटाएंतुम्हारे पास है दौलत फ़रेब की लेकिन
हमारे पास बुज़ुर्गों की बस दुआएं हैं
हासिले ग़ज़ल शेर है ,वाह!
बहुत ख़ूब!
रिमझिम फुहारों मे इतनी अच्छी गज़लें वाह आनन्द आ गया पंकज गिरीश जी की गज़ल दिल को छू गयी
जवाब देंहटाएंतुम्हारे पास है दौलत-----
तेरी वफा को नज़र न -----\दोनो शेर कमाल के हैं
तेरे करीब तो शोले----
तेरी जफा हो वो ----
योगेशवर जी के ये शेर दिल को छू गये । बहुत बडिया चल रहा है मुशायरा। पंकज जी और योगेशवर जी को बधाई। अपने छोटे भाई को ऐसी खूबसूरत गज़लें पढ वाने के लिये शुक्रिया और आशीर्वाद।
बेह्द खूबसूरत गज़ल हैं दोनो ही………………पढकर आनंद आ गया।
जवाब देंहटाएंpran ji ne sundar sujhav diya. dhanyvaad. theek kah rahe hain aap.
जवाब देंहटाएंगुरुदेव सीहोर में बारिश हो न हो लेकिन आपके ब्लॉग और हमारी खोपोली में झमाझम हो रही है...तरही मुशायरे में बरसने वाले अशआर पढने वालों को अपने साथ भिगो रहे हैं...गिरीश जी की ग़ज़ल उनके मतले में प्रयुक्त शब्दों की तरह शोख मस्त और महकी हुई है...और गर्ग साहब का कलाम हमेशा की तरह बेमिसाल है...आपने सच कहा उन जैसे संवेदन शील नेता अगर हमारे देश में दस बीस और हो जाएँ तो देश की सूरत बदल जाए...इन दोनों बेमिसाल ग़ज़लकारों को मेरा सलाम...
जवाब देंहटाएंनीरज
Bhai bonda boni ka maza aa gaya hai manch par sheron ki barish...!!
जवाब देंहटाएंshabnam shabnam!!
Pranji ke sujhav hum sabhi ke liye margdarshak bae hain...Bahut bahut dhanyawaad Pran ji.
khade hain nagfani sahra mein bina jal ke
Bahar mein kyon gulon ko mili sazayein hain
दो और तरही से अब मुशायरे अपने उफ़ान पर है। गिरिश जी और जोगेश्वर जी को बधाई बेहतरीन ग़ज़लों पर। जोगेश्वर जी का परिचय तो चकित करता है। नीरज जी की बातों से सहमत हूं मुल्क को वाकई ऐसे नेताओं की जरूरत है।
जवाब देंहटाएंप्राण साब का आशिर्वाद रूपी संशोधन हम सब छात्रों के लिये अनमोल है।
...और गुरूदेव आप, अपना ख्याल रखें!
वाह.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी ग़ज़लें.
पंकज जी की गज़ल का 'बुजुर्गों की बस दुआएँ.." वाला शेर और जोगेश्वर जी की गज़ल का मतला विशेष तौर पर अच्छा लगा.
वाह, दोनों ही ग़ज़लें बहुत ख़ूबसूरत शेरों से सजी हुई हैं। मज़ा आ गया,बधाई हो।
जवाब देंहटाएंबहुत भारी मन के साथ अपने ब्लाग पर टिप्पणियों का माडरेशन फिर से प्रारंभ कर रहा हूं । ये मैं नहीं चाहता था लेकिन क्या करूं अब ऐसा लग रहा है कि ये आवश्यक हो गया है । दरअसल मुझे जानने वाले जानते हैं कि मैं सीधी राह पर चलने वाला मुसाफिर हूं तथा मुझे वही राह पसंद है । सभी टिप्पणीकर्ताओं से क्षमा के साथ अब माडरेशन फिर से लगा रहा हूं ।
जवाब देंहटाएंनये तरही मुशायरे के लिए सुबीर जी को धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंतरही की दोनों ग़ज़लें अच्छी लगीं और उस पर प्रान सर के सुझाव बहुत कुछ समझा गये। अच्छा हो कि प्रत्येक ग़ज़ल के नीचे ऐसे ही उस्ताद शायरों की टिप्पणी भी दी जाय।
ये माडरेशन वाली बात समझ में नहीं आयी. संदर्भ क्या है जो माडरेशन लगाने की आवश्यकता पड़ गई।
प्रणाम गुरु जी,
जवाब देंहटाएंयहाँ तो मानसून ज़ोर पे है, रोज़ बारिश है, बीते दो दिन से लगातार बारिश है, मौसम सुहावना बना हुआ है आगे अगर ऐसा ही चला तो डरावना ना हो जाये.
गिरीश पंकज जी, का शेर "तुम्हारे पास है दौलत..............." लाजवाब है, जोगेश्वर जी का शेर "तमाम रंग तेरे............" बहुत खूबसूरत ख्याल समेटे हुए है.
"प्राण" साहब का आभार ! ऐसी ही पैनी नज़र गडाए रखिये हम सब पर. मुझे डर था कि "परछाई" को "परछाइयां" कर दिया तो बहर से बाहर हो जाउंगा.
जवाब देंहटाएंगिरिशजी का कोई मुकाबला नहीं. उन्हें बहुत बहुत बधाइयां !
संवेदनशीलता की सब जगह जरूरत है मगर राजनीति में कुछ ज्यादा ही जरूरत है. कटु-सत्य यह है कि जिस चीज की ज्यादा जरूरत होती है वही चीज बाज़ार से नदारद हो जाती है. संवेदनशीलता के साथ भी यही हो रहा है.
सभी टिप्पणीकारों का शुक्रिया !
वाह! वाह और वाह!
जवाब देंहटाएंगिरीश पंकज जी और जोगेश्वर गर्ग जी, दोनो ही अपने फन मे माहिर हैं. दोनो ही लोगो की गज़ले शानदार है बधाई हो........
जवाब देंहटाएंपंकज जी और जोगेश्वर जी .... दोनो ने ही कमाल के शेर प्रस्तुत किए हैं .... बुजुर्गों के पास बस दुआएँ ... कमाल का शेर है गिरीश पंकज जी का ... और जोगेश्वर जी के तो क्या कहने ... जैसा आपने कहा प्रेम जोग के ही शेर हैं सब ....
जवाब देंहटाएं