बशीर बद्र जी का मशहूर शेर 'उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाये' ये शेर वास्तव में उन्होंने तरही में लिखा था । और मूल मिसरे न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाये पर गिरह बांधी थी । मगर आज इस शेर को बशीर बद्र के नाम से ही जाना जाता है । मुझे भी पिछले कुछ दिनों से लग रहा है कि ये ठीक नहीं है । किसी भी शायर की जमीन पर काम करना । इसलिये आगे से हम तरही के स्थान पर समस्या पूर्ती का काम प्रारंभ करेंगें । इसको कविता की वर्क शाप भी कहा जाता है । मिसरा किसी शायर का नहीं होगा । बस यूं ही हवा में से एक वाक्य पकड़ कर उसको मिसरा बना लेंगें और उस पर काम करेंगें । वैसे नीरज जी के पास भी एक दिलचस्प प्रयोग है जो शीघ्र ही वे अपने ब्लाग पर लगाने वाले हैं । वो एक बिल्कुल ही अलग तरह का प्रयोग है । यदि वो लोकप्रिय होता है तो हम उस पर भी काम कर सकते हैं ।
चलिये आज हम दो शायरों को लेते हैं तरही मुशायरे में । ये दोनों ही शायर उर्जावान हैं और बहुत अच्छा लिख रहे हैं । जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि तरही में जस का तस प्रस्तुत करने का रिवाज है सो ये ग़ज़लें अपने मूल रूप में प्रस्तुत हैं ।
गौतम राजरिशी
गौतम के बारे में मेरा ये मानना है कि वो एक भावुक मगर प्रेक्टिकल इन्सान है । ये एक नई परिभाषा है । वैसे होता ये है कि जो भावुक होता है वो प्रेक्टिकल नहीं होता । लेकिन गौतम ने एक नई प्रजाति मानव की ईजाद की है जो भावुक होने के साथ प्रेक्टिकल भी है । चूंकि कई जगहों पर व्यक्तित्व विकास और सकारात्मक सोच को लेकर व्यख्यान देने जाता हूं इसलिये लोगों पर नजर रखना एक आदत सी है । गौतम के बारे में जितना जाना है वो ये कि गौतम संवेदनशील इंसान है जो दिल से सोच कर दिमाग से अमल करता है । दरअसल में मानव की दो प्रकार की प्रजातियां होती हैं एक वो जो दिल से सोचती हैं ये भावुक प्रजाति होती है । दूसरी वो जो दिमाग से सोचती है ये यथार्थवादी प्रजाति होती है । पहली प्रजाति अब लुप्तप्राय है किन्तु गौतम ने उसी प्रजाति में दूसरी प्रजाति का डीएनए मिलाकर एक नयी प्रजाति बनाई है जो दिल से सोचती है तथा दिमागं से स्वीकृति लेकर अमल करती है । मोबाइल पर जितना जाना है उससे ये तो कह सकता हूं कि गौतम के जो भी मित्र होंगें वे बहुत खुशकिस्मत होंगें कि उनको बहुत अच्छा मित्र मिला है । ये ग़ज़ल गौतम ने उस माहौल में रची है जहां बारूद और धुंआ है । शायद इसीलिये कहते हैं कि प्रेम हर स्थान पर अपनी जगह तलाश लेता है ।
और ये रही ग़ज़ल
बस गयी रगों में दीवारो-दर की खामोशी
चीरती-सी जाती है अब ये घर की खामोशी
सुब्ह के निबटने पर और शाम ढ़लने तक
कितनी जानलेवा है दोपहर की खामोशी
चल रही थी जब मेरे घर के जलने की तफ़्तीश
देखने के काबिल थी इस नगर की खामोशी
काट ली हैं तुम ने तो टहनियाँ सभी लेकिन
सुन सको जो कहती है क्या शजर की खामोशी
छोड़ दे ये चुप्पी, ये रूठना जरा अब तो
हो गयी है परबत-सी बित्ते भर की खामोशी
देखना वो उन का चुपचाप दूर से हम को
दिल में शोर करती है उस नजर की खामोशी
जब से दोस्तों के उतरे नकाब चेहरे से
क्यूं लगी है भाने अब दर-ब-दर की खामोशी
पड़ गयी है आदत अब साथ तेरे चलने की
बिन तेरे कटे कैसे ये सफर की खामोशी
और अब दूसरे शायर की बात करें
वीनस केसरी
वीनस को मैंने जितना जाना है उससे ये कह सकता हूं कि एक फिल्म आई थी जुदाई जिसमें कि परेश रावल के सर पर प्रश्नवाचक चिन्ह हुआ करता था । क्योंकि परेश के पास काफी प्रश्न होते थे । मुझे यदि वीनस से मिलना हो तो मैं सबसे पहले एक प्रश्नवाचक चिन्ह वीनस पर भी लगा दूं । बात हंसी की नहीं है लेकिन सच यही है कि प्रश्न होना आदमी के जिन्दा होने का सुबूत होता है । हमने प्रश्न ही तो बंद कर दिये हैं । हम नेताओं से नहीं पूछते कि ऐसा क्यों । हम अपने बच्चों से नहीं पूछते कि कल कहां थे । हम अफसरों से नहीं पूछते कि सड़कें और नहरें कहां गईं हैं । हम अपने चुने हुए जनप्रतिनिधियों से नहीं पूछते कि महोंदय जो वादे आपने किये थे उनका क्या । हम पत्रकारों से नहीं पूछते कि महोदय ये जो कल शहर का एक गुंडा जिला बदर हुआ है उसका समाचार पेपरों में क्यों नहीं छपा । हम किसी से कुछ नहीं पूछते, जबकि हकीकत ये है कि प्रश्नों से इन सबको डर लगता है । क्योंकि उनके पास उत्तर नहीं हैं । जिस दिन हम प्रश्न पूछना फिर से प्रारंभ कर देंगें उस दिन बदलाव आयेगा । खैर वीनस एक अच्छा हस्ताक्षर है । ये भी अमिताभ की तरह छोरा गंगा किनारे वाला है । इलाहाबाद निवास है । और पुस्तकों के बीच रहते हैं । उत्सुकता बहुत है वीनस में और शायद इसी कारण निराश भी जल्दी होते हैं । बहर की कक्षा को प्रारंभ करने के लिये माड़साब को सबसे जियादह मेल वीनस के ही मिलते हैं । और ये भी कि वीनस की ग़ज़लों में बहर के दोष लगभग नहीं के बराबर होते हैं ।
चलिये सुनिये ग़ज़ल
देख लबकुशाई हैरां है मेरे घर की खामोशी
रंग लायेगी मेरे मोतबर के खामोशी
कह रही थी कल मुझसे रहगुजर की खामोशी
कितनी जानलेवा है दोपहर की खामोशी
खुश खफा मोहब्बत गम नाज़ नखरे अपनापन
कितने हुनर समेटे है हमसफ़र की खामोशी
इन निगाहों को पढ़ कर कुछ तो समझे होंगे वो
टूटती नहीं क्यों उनकी नजर के खामोशी
तो आनंद लीजिये ग़ज़लों का ।
दोनों शायरों ने कमाल किया है और आपके वर्कशॉप के ख्यालात का मैं समर्थन करता हूँ...शायद वही ज्यादा उचित होगा.
जवाब देंहटाएंसीखते चल रहे हैं सबसे.
अच्छा लगा जानकर कि आप समस्यापूर्ति शुरु करनेवाले हैं। इसी की एक प्रजाति कहें, कभी-कभी देखने को मिल जाती है जिसमे एक चित्र दिया गया होता है और उसपर लिखना होता है। जैसे कुछ दिनों पहले एक चित्र था जिसमें एक लड़की शून्य में देख रही है, आसपास पेड़ हैं जिअनमें पत्ते नहीं हैं, इस पर कविता लिखनी थी। मैंने लिखा था-"प्रिय की मधुर याद थी वरना कौन सहारा इस निर्जन में"....
जवाब देंहटाएंजहां तक गुरूभाईयों गौतम और वीनस की बात है तो आपके विश्लेषण पर भला किसे ऐतराज हो सकता है? इनके कलम से बखूबी इनका परिचय मिलता है और एक कवि के लिये इससे ज्यादा संतोषप्रद बात और क्या होगी? दोनों तरही गज़लें पसंद आईं।
नीरज गोस्वामी
जवाब देंहटाएंतरही मुशायरे के लिए आपने जो मिसरा दिया था मुझे वो आसान नहीं लगा और इसी लिए मैं पतली गली से निकल लिया...अपनी ये सोच है...जहाँ लगे की दाल गलने वाली नहीं है पंगा मत लो...आप इसे अवसरवादी, आलसी, निकम्मा कुछ भी कह सकते हैं लेकिन सच्चाई बताना अपना फ़र्ज़ था सो बता दी...आज गौतम और वीनस की ग़ज़लें पढ़ कर लगा की मेरा निर्णय सही था...ये मिसरा ऐसे ही ऊर्जा वान युवकों के लिए था जिनमें कुछ भी कर गुजरने का ज़ज्बा है...गौतम जी ने बेहतरीन शेर कहे हैं और वीनस ने चार शेरों में ही समां बांध दिया है...गौतम जी और वीनस जी के बारे में कहे आपके शब्द आनंद दाई लगे...ये दोनों युवा विलक्षण प्रतिभा वाले हैं इसमें कोई शक नहीं...कोई भी गुरु ऐसे शिष्यों पर गर्व कर सकता है...
गुरु देव को सादर प्रणाम,
जवाब देंहटाएंतरही में वाकई मिशरा मुश्किल था मगर इन दो गुरु भईयों के कलम से निकले शे'रों ने तो ये साबित कर दिया के कुछ भी मुश्किल नहीं है...जहां तक गौतम भी की बात है तो आपका कहना पूरी तरह से सत्य है कुछ एक बार मेरी बात उनसे हुई है .. बहोत ही संजीदा इन्सान है और हसमुख भी.... उनके इस शे'र पे क्या खून स्तब्ध हूँ और चुप रहने में ही भलाई समझता हूँ ...
छोड़ दे ये चुप्पी अब रूठना अब तो ..
हो गयी है पर्वत सी बित्ते भर की खामोशी ...
कितनी भऊकता से उन्होंने लिखा है ये शे'र ... और पर्वत को नतमस्तक कर दिया.... खूब दिल खोल के दाद ... और तालियाँ...
जहां तक भाई वीनस का सवाल है तो आपने भी सही कहा है के सवाल तो होने ही चाहिए हम में ही गलती है के नहीं पूछते .. सवाल पूछने से गलतियां कम होने की संभावना होती है...
और उनके इस शे'र पे मैं क्या कहूँ....
खुश खफा मोहब्बत गम नाज़ नखरे अपनापन..
कितने हुनर समेटे है हमसफ़र की खामोशी...
इस शे'र पे उनको दिल्ली लिख दी मैंने....
बहोत ही शानदार प्रस्तुती है दोनों गुरु भाईयों की ...आपको भी सादर प्रणाम...
आपका
अर्श
कई लोगों ने जानना चाहा कि वो जो पोस्ट कल लगी थी उसका क्या हुआ । दरअस्ल में उस पोस्ट में पता नहीं क्या तकनीकी खराबी आ गयी थी कि वो दोपहर बाद खुलना ही बंद हो गयी । तथा उसको डिलिट करना पड़ा क्योंकि वो ब्लाग को ही ब्लाक कर रही थी । ज्ञात हुआ कि कोई फोटो या लिंक उसे करप्ट कर रहा है सो आज उस पोस्ट को बिना किसी फोटो तथा बिना किसी लिंक के लगाया । वैसे कल ओरिजनल पोस्ट पर नीरज जी की एक ये टिप्पणी आ चुकी थी ।
जवाब देंहटाएंनीरज
तरही मुशायरे के लिए आपने जो मिसरा दिया था मुझे वो आसान नहीं लगा और इसी लिए मैं पतली गली से निकल लिया...अपनी ये सोच है...जहाँ लगे की दाल गलने वाली नहीं है पंगा मत लो...आप इसे अवसरवादी, आलसी, निकम्मा कुछ भी कह सकते हैं लेकिन सच्चाई बताना अपना फ़र्ज़ था सो बता दी...आज गौतम और वीनस की ग़ज़लें पढ़ कर लगा की मेरा निर्णय सही था...ये मिसरा ऐसे ही ऊर्जा वान युवकों के लिए था जिनमें कुछ भी कर गुजरने का ज़ज्बा है...गौतम जी ने बेहतरीन शेर कहे हैं और वीनस ने चार शेरों में ही समां बांध दिया है...गौतम जी और वीनस जी के बारे में कहे आपके शब्द आनंद दाई लगे...ये दोनों युवा विलक्षण प्रतिभा वाले हैं इसमें कोई शक नहीं...कोई भी गुरु ऐसे शिष्यों पर गर्व कर सकता है...
टिपण्णी देने के बाद आपके मुक्त छंद पढता हूँ और प्रकाश बादल जी को धन्यवाद देता हूँ क्यूँ की आपसे संकोची व्यक्ति से कुछ निकलवाना कितनी टेडी खीर है मैं जानता हूँ...उसके बाद इंतज़ार रहेगा ये राज़ जानने का की आप अपनी ग़ज़लें छुपा के क्यूँ रखते हैं....
परी और पंखुरी की फोटो अद्भुत है अब उनसे से मिलने की इच्छा तीव्र से तीव्रतर होती जा रही है...
नीरज
छोड़ दे ये चुप्पी, ये रूठना ज़रा अब तो
जवाब देंहटाएंहो गई है परवत सी, बित्ते भर की खामोशी
क्या बात है....!
कोरी भावुकता और कोरी व्यवहारिकता जिंदगी में सामंजस्य बैठाने में मुश्किल पैदा कर देती है शायद। ऐसे में जिनके पास सामंजस्य है,वे ही उत्तम व्यक्तित्व के स्वामी कहे जा सकते हैं।
और भाग्यशाली होने का जो मीटर आज आपने दिया उस पर मैं बिलकुल फिट हूँ..! ईश्चर को धन्यवाद जिसने ऐसे लोगो से मिलाया
वीनस जी ने भी बहुत अच्छा लिखा। वीनस जी के विषय में जो आप ने बताया वैसा ही मैं अर्श के विषय में सोचती हूँ। इससे यही समझा जा सकता है कि ये युवा पीढ़ी बहुत आगे जाने वाली है।
दोनों ग़ज़लें और चारों कमैंट पढ़ कर आनंदित हूं . आप भी अपनी ग़ज़ल डाल दिया करें तो आनंद चार से गुणा हो सकता है. बाकि आप की मर्जी...
जवाब देंहटाएंव्यक्तित्व परिचय और ग़ज़ल दोनों ही बहुत सुन्दर और रोचक लगे...
जवाब देंहटाएंदोनों ही जोरदार ग़ज़लें......और भी अच्छा लगा दोनों के बारे में जान कर..........गौतम जी से तो में मिला हूँ.....वो वाकई एक आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक हैं.............वीनुस जी ग़ज़लें उनका चेहरा बयान करती है..........खूबसूरत लग रहा है आज आपका ब्लॉग भी........गुलाबी छटा बिखेरे ......... प्रेम में डूबा हुवा
जवाब देंहटाएं..तो आज आपका एक और रूप पता चला।शख्सियत पढ़ने का। आपकी बहुरानी भी मुझे कुछ ऐसा ही कहती है। सोचता हूँ, काश कि आप जो यहाँ होते तो कितनी आसानी होती मेरे लिये आम कश्मिरियों के भेष में छुपे दुश्मनों को पहचानने में...
जवाब देंहटाएंवीनस जी को इस "कितने हुनर समेटे है.." वाले नायब शेर पर सैकड़ों बधाई...
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंकल रात भी यही पोस्ट दूसरे टाइटल के साथ देख चूका हूँ मैं रात १० बजे के बाद ही नेट यूज कर पाता हूँ इस लिए पोस्ट पढ़ नहीं पाया था
आज स्पस्ट हुआ की आपने क्यों पोस्ट को डिलीट कर दी थी
पोस्ट पढने के बाद शर्म से गडा जा रहा हूँ सबसे पहले तो इस वजह से की जो गजल मैंने भेजी थी उसे लिखने की मेरी औकात ही नहीं है मैं तो २१२२ या २२१२ पर ही ठीक ठाक गजल लिख लूं तो खैरियत है यही बात मैंने आप से भी कही थी ये चार शेर भी इस लिए निकाल कर भेज दिए की कम से कम मुशायरे में सबसे नीचे ही सही नाम तो आ जायेगा इस अदने का,
और यहाँ आ कर देखा तो न हँसते बन रहा है न रोते
गुरु जी आपसे निवेदन है की समस्या पूर्ती को जल्दी से जल्दी शुरू करिए मगर हाँथ जोड़ कर प्रार्थना है की तरही को मत बंद करिए और मैं तो कहना चाहता हूँ की इसे एक निश्चित तारीख को रखा करिए जैसे महीने के तीन सप्ताह गजल लिखा जाये और चौथे सप्ताह तरही मुशायरा हो
मैं किसी और का नहीं कहता मगर तरही मुशायरे की समाप्ति पर मुझे बहुत दुःख होगा एक बार फिर से निवेदन है की इसे अनवरत जारी रखिये
गौतम जी से मिलने का सौभाग्य तो प्राप्त नहीं हुआ है न ही आज तक बात हो पी है मगर उनकी tippadi यत्र तत्र सर्वत्र पढने को मिलती है उससे मैं यही अनुमान लगा पाया हूँ की आप को साहित्य की अच्छी जानकारी है और पोस्ट से उनके लेखनी पर मजबूत पकड़ का कायल तो मैं बहुत पहलेसे से हूँ
पहले लबकुशाई का मतलब भी गजल के साथ भेजना चाहता था फिर अपनी सोंच पर ही हंसी आ गई और याद आया की गजल मैं गुरु जी के पास भेज रहा हूँ तरही के लिए न की ब्लॉग पर खुद पोस्ट कर रहा हूँ मगर यहाँ पढ़ कर लगा की आम पाठक को परेशनी हो सकती है और मतले का ही आनंद जाता रहेगा गुरु जी गुजारिश है की लबकुशाई का अर्थ भी पोस्ट में लगा दीजिये
इतना लिखने के बाद भी लग रह है कुछ छूट रहा है
आपका वीनस केसरी
ऐसे लेखन के लिये गुरु जी के साथ दोनोँ शिष्योँ को भी ढेरोँ बधाईयाँ -
जवाब देंहटाएंपँकज भाई, आपके ब्लोग पर, "अमिताभ का हिन्दी ब्लोग " लिन्क देखकर
हमेशा मुस्कुराती हूँ :)
काश !
वे अँग्रेज़ी के साथ
श्रध्धेय बच्चन जी की तरह
"हिन्दी " को अपना लेँ और हिन्दी ब्लोगीँग भी करेँ
तो कितना अच्छा हो !
- लावण्या
गौतम राजरिशी शानदार हैं। वे गद्य भी लिखते हैं कविता की प्रवाह में। दोनों शायरों की गजलें पढ़कर मजा आ गया।
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