इधर माड़साब ने घोषणा की कि अब ग़ज़ल की कक्षायें पुन: प्रारंभ होने जा रहीं हैं और उधर कक्षा के सबसे होशियार ( शरारत में ) बच्चे ने छुट्टी के लिये आवेदन भी दे दिया । मज़े की बात ये है कि माड़साब को कक्षायें पुन: प्रारंभ करने के लिये इसी बच्चे ने मेलिया मेलिया के ( मेल कर कर के ) परेशान कर दिया था । यहां तक कि 24 अगस्त की माड़साब की मेल जो कि तात्कालिक निराशा के परिणाम से लिखा गई थी उसको भी मेलिया के ब्लाग पे से हटवा दिया । और माड़सब जब कुछ मूड में आये और कक्षायें प्रारंभ करने की घोषण की तो पता चला कि बच्चे ने खुद ही छुट्टी की अर्जी पेल दी । माड़साब वैसे तो आज से ही कक्षायें प्रारंभ करने जा रहे थे मगर लगता है कि अब कुछ और दिन टालना होगा क्योंकि कक्षा में उड़नतश्तरी का न होना वैसा ही है कि पकवानों और व्यंजनों से भरी थाली में कोने पर चटनी नहीं रखी हो । पकवान खाते खाते उंगली से चटनी को चाटना और अगर मिर्ची तेज हो तो सी सी करके आनंद लेना उसका मजा ही अलग है । हमारे यहां पर तो बुजुर्ग लोग सबसे पहले थाली आते ही कहते हैं '' ए मोड़ा ( लड़के) नीक सी चटनी तो ला ''। बताओ भला बिना चटनी के भी खाना खाया जाता है । हमारे यहां जब पंगत लगती है तो दाल बाफले की पंगत में सबको इंतजार होता है चटनी परोसने वाले का । उसी प्रकार से हम सब ब्लागियों को इंतजार रहता है कि कब उड़नतश्तरी हम सब की थालियों में अपनी टिप्पणी रूपी चटनी परोसते हुए निकल जाएगी। हम सारे व्यंजन छोड़कर उस चटनी के ही स्वाद में लग जाते हैं । समीर जी मैं ये कहना चाहता हूं कि पढ़ने के लिये समय निकालना अच्छी बात है पर यदि समय प्रबंधन कर लिया जाये तो दोनो ही काम किये जा सकते हैं । अर्थात ब्लागिंग भी की जा सकती है और अध्ययन भी किया जा सकता है । एक बात और अवकाश लेने में और विदा लेने में अंतर होता है । अवकाश वास्तव में रीचार्जर की तरह होते हैं जिनको लगा कर हम अपने को पुन: चार्ज कर लेते हैं । किन्तु साहित्य का क्षेत्र ऐसा है जहां पर अवकाश की गुंजाइश ही नहीं होती है । उसके पीछे दो कारण हैं पहला तो ये कि मेरे गुरूजी कहा करते थे कि लिखने की आदत एक बार लग जाये तो उसको छोड़ो मत क्योंकि छोड़ दिया तो अंतराल के बाद पुन: प्रारंभ करने में काफी समय लग जाता है । दूसरा ये कि साहित्य ही एक ऐसी विधा है जिसमें एक जीवन भी कम लगता है और ऐसा लगता है कि कितना कुछ तो करना हे अभी । तो समीर जी सबकी ओर से और मेरी और से भी ये निवेदन कि समय प्रबंधन करें । जब हमारा परिवार बढ़ता है तो समय प्रबंधन करना ही होता है । क्योंकि सबको समय देना होता है । और परिवार में एक दो बर्तन तो खड़कते ही हैं उनके खड़कने से अगर घर की बहू बार बार मैके जाने की धमकी देगी तो घर के लोगों का क्या होगा क्योंकि लहसुन की चटनी जितनी अच्छी ये बहू बनाती है उतनी तो कोई भी नहीं बनाता क्या ससुर जी भूखे सोयेंगें । तो पुर्नविचार करें जब इमरान खान सन्यास लेकर वापस आ गया था और अपनी टीम को वर्ल्ड कप जिता गया तो हम क्या हैं । देखिये इत्ते दिन बाद अब तो माड़साब ने भी एक मुक्तक आपके लिये लिख दिया है कम अ स कम इस मुक्तक की तो लाज रखिये ।
हमें आवाज़ देकर के चले हो तुम कहां साहिब,
चलो हम साथ चलते हैं चले हो तुम जहां साहिब,
यहां तनहाई सूनापन अकेलापन बहुत होगा,
करेगा कौन मेहफिल को हमारी अब जवां साहिब
आपका ही पंकज सुबीर
उड़न तश्तरी के उड़ने का हुआ है क्या असर देखो
जवाब देंहटाएंचरागें लेके ढूँढे हर गली औ हर शहर देखो
गजल की रूह व्याकुल है रदीफ़ो काफ़िया हैरां
गुरू मायूस बैठे हैं हुई है नम नजर देखो
सही कहा! आज से ही सभी पोस्टों में टिप्पणियों की कमी अखरने लगी है।
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha...
जवाब देंहटाएंसही फार्म रहे है सब लोग . सभी ब्लोगिये उड़न तश्तरी को मिस कर रहे हैं वी मिस यु समीर भाई
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने। समीर जी का जाना मतलब टिप्पणियों का कम होना ।
जवाब देंहटाएंउम्मीद करते है कि समीर जी जल्द ही अपनी उड़न तश्तरी लेकर वापिस ब्लॉगिंग परिवार मे वापस आ जाए ।
सही फरमाया आपने, पर मुझे लगता है इतना प्यार छोड़कर किसी का जाना आसान नहीं है। समीर जी को लौटना ही पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंपंकज जी गुहार हमने भी लगाई थी लेकिन उन्होंने मुस्कुराकर कहा की हे बालक सब्र करो हमें टस से मस होने में वक्त लगता है....इसलिए हमें उम्मीद है की जल्द ही वे लौट आयेंगे...क्यूँ की.... ब्लॉग्गिंग एक लत है...आदत है...व्यसन है....अमल है...कहते हैं "अमल दास की अमल तलब को अमली ही पहचाने रे...अमल बिना क्यूँ अमली तडपे ये सूफी क्या जाने रे...."
जवाब देंहटाएंनीरज
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंअब आपकी इस पोस्ट के बारे में क्या टिपियायें कुछ समझ नही आ रहा
अभी अभी समीर जी के ब्लॉग से लौटा हूँ ८० से ज्यादा टिप्पडी हुई मगर समीर जी की कोई प्रतिक्रिया ही नही है
आपका वीनस केसरी
अरे देखिये तो समीर भाई का दिल भी पसीज ही गया है ;-)
जवाब देंहटाएं~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
हिन्दी ब्लोग जगत के तमाम साथियोँ से मेरा नम्र अनुरोध इतना ही है कि समीर भाई की भलमनसाहत और सदाशय को अन्यथा ना लेँ
- अगर वे आग्रह करते हैँ कि
" आप भी टीप्पणी कीजिये "
तो वह सच्चे मन से कही बात है - दूसरा कोई लाभ उन्हेँ कैसे हुआ ? जिँदादील और खुशमिजाज
सरल मना समीर भाई
हितैषी हैँ !
हिन्दी भाषाके और
इस हिन्दी जगत के !
ये बात १०० फीसदी सच्ची है
ये मेरा कहना है -
पँकज भाई,
आपने बहुत प्यारी पोस्ट लिखी !
-लावण्या
वाकई ! अपनापन के धनी है समीर !
जवाब देंहटाएंबादल तो घिरते रहते हैं फिर घिर कर के छँट जाते हैं
जवाब देंहटाएंऊब भरे लम्हे व्याकुल तो करते हैं पर कट जाते हैं
आप कहां पर भ्रमित हो गये ? बात छुपी थी बस बातों में
जंग चढ़ा जो है उतार लें फिर वापिस हम झट आते हैं
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंअभी अभी समीर जी के ब्लॉग से लौटा हूँ
बड़ी मस्त कर देने वाली पोस्ट पढने को मिली
समीर जी तो लौट आए है
आपसे ये पूछना था की क्लास कब से शुरू कर रहे है
आपका वीनस केसरी