पिछले दिनों जब टीवी पर देखा कि किस प्रकार से भारत की संसद में सांसदों को आलू प्याल की तरह से खरीदने का और बेचने का दौर चला तो उसी दिन इस ग़ज़ल ने जन्म लिया था । पूरी ग़ज़ल तो खैर काफी तीखी लिखा गई है जब मैंने बाबई के मुशायरे में इसको पढ़ा तो कुछ शुभचिंतक शायरों ने कहा कि इसको संवेदनशील स्थान पर मत पढ़ना । जैसे कि एक बार और किसी शेर पर किसी परिचित ने कहा था कि इसको मत पढ़ना । मगर मुझे लगता है कि जब राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं कि
''आज़ादी खादी के कुरते की एक बटन
आज़ादी टोपी एक नुकीली तनी हुई
फैशन वालों के लिये नया फैशन निकला
मोटर में बांधों तीन रंग वाला चिथड़ा''
तो क्या वे कवियों को एक संदेश नहीं दे रहे हैं कि जन के लिये समर्पित रहो ना कि किसी और के लिये । आज अगर कोई कवि तीन रंग वाला चिथड़ा लिख दे तो हंगामा ही मच जाये और लोग पत्थर लेकर पिल ही पडें । खैर तो जिस शेर पर मेर मित्र ने मना किया था वो एक दूसरी ग़ज़ल का ये शेर था जिस ग़ज़ल में केवल आ की मात्रा ही काफिया थी ।
तुम्हारे तीन रंगों को बिछायें या कि ओढ़ें हम
के वो कमबख़्त दर्जी इसकी नेकर भी नहीं सिलता
मेरा एक ही मानना है कि कविता मनरंजन से ज्यादा जनरंजन की चीज़ है । मनरंजन जहां तक सीमा हो वहां तक हों मगर उससे ज्यादा कविता को जनरंजन के लिये होना चाहिये । ग़ज़ल के बारें में लोग कहते हैं कि इसको नाज़ुक होना चाहिये इसमें नफासत होनी चाहिये वगैरह वगैरह । मगर मैं कहता हूं कि अगर ऐसा है तो फिर आज भी लोगों की जुबान पर वोही शेर क्यों चढ़ें हैं जो जैसे खुदी को कर बुलंद इतना के हर तकदीर .... जो कि जनरंजन के शेर थे । दुष्यंत की पूरी ग़ज़लें जनरंजन की ग़ज़लें हैं । हालंकि मैं दुष्यंत की ग़ज़लों से पूरी तरह से सहमत नहीं हूं पर फिर भी आज लोगों की ज़बान पर हैं तो वही हो गई है पीर पर्वत सी ... या फिर बाढ़ की संभावनाएं । तो इसके पीछे कारण ये ही है कि लोग अपने दर्द अपनी पीड़ायें ही सुनना पसंद करते हैं।और उसको ही याद भी रखते हैं । तो मेरा अनुरोध है कि मनरंजन के लिये लिखें पर जनरंजन का भी ध्यान रखें । आपनी ग़ज़ल में एक शेर ऐसा ज़ुरूर रखें जो कि वर्तमान व्यवस्था से विद्रोह करता हो । विशेषकर मैं वीनस केसरी, गौतम राजरिशी से अनुरोध करूंगा कि आप तो युवा हैं आपकी ग़ज़लों में तो वो तेवर वो आग होनी चाहिये कि अंदर तक हिला दे । अगली कक्षा में अपनी एक पूरी कविता प्रस्तुत करूंगा जो कि ऐसी ही है ।
खैर तो आज से हमको कक्षायें प्रारंभ करना है और ये कक्षायें अब प्रयास रहेगा कि नियमित हों । हां इस बार तरीका थोड़ा अलग होगा । पहले तो हर सप्ताह एक कक्षा होगी । और फिर समस्याओं पर चर्चा वे समस्याऐं जो कि आपकी ग़ज़लों के माध्यम से आती हैं और एक होगा तरही मुशायरा जो हर सप्ताह किसी एक मिसरे पर होगा । जैसे इस बार कि बहर है
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा
आपको इस पर अपना मतला बनाना है और कम से कम पांच शेर निकालने हैं । बहर है रमल मुसमन महजूफ़ । रुक्न हैं फ़ाएलातुन-फ़ाएलातुन-फ़ाएलातुन-फ़ाएलुन या कि 2122-2122-2122-212 । ये पहली कक्षा है इसलिये बता रहा हूं कि क़ाफिया है आ की मात्रा और रदीफ है हो जाएगा । अब आपका मतला अपना होना चाहिये और कम से कम एक शेर ऐसा होना चाहिये जिसमें मिसरा सानी हो इतना मत चाहो उसे वो बेवफा ओ जायेगा ( इसको गिरह लगाना कहते हैं कि आपने एक शेंर में मिसरा सानी मूल रखा और मिसरा ऊला लिखा)। ग़ज़ल तो आप पहचान ही गये होंगे बशीर बद्र साहब की है । एक मनोरंजक तथ्य आपको बता दूं बशीर बद्र साहब को जिस शेर ने ख्याति दी उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाये वो ग़ज़ल वास्तव में उन्होंने तरही में लिखी थी ( ये बात उन्होंने मुझे ख़ुद चर्चा में बताई ) । किसी शायर की ग़ज़ल का मिसरा न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए तरही मुशायरे के लिये मिला था और उस पर उन्होंने उस पर अपनी ग़ज़ल बनाई कभी तो असमां से चांद उतरे ..... । और इस ग़ज़ल में एक शेर में उन्होंने मूल मिसरे न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाये पर गिरह बांधी थी उजाले अपनी यादों के .. उसके बाद जो कुछ हुआ वो इतिहास है । तरह पर लिखी ग़ज़लों को आप अपने नाम से पढ़ सकते हैं किन्तु पढ़ने से पूर्व बताना होता है कि किस शायर की किस ग़ज़ल पर आपने काम किया है । तो कक्षा का आग़ाज़ हम करते हैं तरही मुशायरे से । जल्द अपनी ग़ज़लें ( पांच शेर न निकाल पायें तो मतला और तीन शेर निकालें ) तैयार करें और भेजें ताकि आगे का कारोबार चल सके । ( कक्षायें पुन: प्रारंभ होने के लिये आभार व्यक्त करना हो तो मुझे नहीं इनको करें श्री समीर लाल जी,श्री नीरजी गोस्वामी जी वीनस केसरी, कंचन चौहान, इन लोगों ने कक्षायें प्रारंभ करने के लिये जो दबाव डाला उतना तो वाम दलों ने पांच सालों में मनमोहन सिंह पर भी नहीं डाला होगा )
आपका उत्साह आगे की कक्षाओं के लिये प्रेरणा बनगा
बहुत अच्छा काम कर रहे हैं आप वरना ग़ज़ल के बारे में राह दिखाने वाला कौन है यहां। अपनी पूरी ग़ज़ल तो पढ़वा देते संसद वाली। उसका इंतज़ार रहेगा
जवाब देंहटाएं"इन लोगों ने कक्षाएं प्रारम्भ करने के लिए जो दबाव डाला उतना तो वाम दलों ने पाँच सालों में मनमोहन सिंह पर भी नहीं डाला होगा...."
जवाब देंहटाएंपंकज जी ये सरासर ना इंसाफी है, आप ने हमारे आग्रह को दबाव की श्रेणी में डाल दिया... मैं श्रीवास्तव जी की बात से सहमत हूँ...या तो आप को अपना इतना शानदार शेर सुनाना नहीं चाहिए था और जब सुना ही दिया है तो पूरी ग़ज़ल सुनानी चाहिए...तिश्नगी बुझा नहीं सकते तो बढानी भी नहीं चाहिए थी...
नीरज
सर जी शुक्र है कक्षा शुरू हुई है....और आपकी बातें शिरोधार्य हैं.इधर उस "बीज’ वाले काफ़िये पे गज़ल पक गयी है.आप प्लीज प्लीज इसे देखे फिर शायद आपकी शिकायत थोड़ी सी कम हो....और जल्द ही लौटता हँ होमवर्क पूरा करके....
जवाब देंहटाएंऔर नीरज जी के साथ मेरी भी गुहार लगा लिजिये.हम सारे शिष्यों का आपकी इस गज़ल को पूरा सुनने का हक बनता है....अगले पोस्ट में शामिल करे इसे.
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंहर्ष का विषय है की आपने क्लास फ़िर से शुरू की....
पहला होमवर्क भी दे दिया
कोशिश करूगा की होमवर्क आपको पसंद आए
आशा करता हूँ की पत्रिका आपको समय से मिल गई होगी
आपका वीनस केसरी
बहुत बहुत आभार...आपने कक्षा फिर प्रारंभ की,..यानि हमारी शरारत फिर शुरु. :)
जवाब देंहटाएंसाधुवाद!!
गुरू जी, होमवर्क हाजिर है-
जवाब देंहटाएंप्यार के दो बोल सुनकर वो तिरा हो जायेगा
फ़िर भी इन्सां है किसी दिन वो जुदा हो जायेगा
इश्क की नादानियों का सिलसिला मुझसे कहे
इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जायेगा
आग दिल में दे गया जो आज फ़िर है सामने
जीने मरने का नजर से फ़ैसला हो जायेगा
बोलना सच हो अगर पहले जरा ये सोचना
जो भी अपना है यहाँ नाआशना हो जायेगा
सर हथेली पे रखा है तुम पुकारो जिस घड़ी
जिंदगी का इस तरह से हक अदा हो जायेगा
गुरूजी होमवर्क के साथ हाजिर हूँ.जाने कैसी बन पड़ी है-
जवाब देंहटाएंमुख न खोलो गर जरा तो सब तेरा हो जायेगा
जो कहोगे सच यहाँ तो हादसा हो जायेगा
भेद की ये बात है यूँ उठ गया पर्दा अगर
तो सरे-बाजार कोई माजरा हो जायेगा
नेकदिल है वो भला है हुक्मरां पर है नया
इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जायेगा
इक जरा जो राय दें हम तो बनें गुस्ताख दिल
वो अगर दें धमकियाँ भी,मशवरा हो जायेगा
ये नियम बाजार का है जो न बदलेगा कभी
वो है सिक्का,जो कसौटी पर खरा हो जायेगा
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंग्रहकार्य के अनुरूप गज़ल लिखी है जैसी भी बन पडीं है आपके सामने प्रस्तुत है
मत मनाओ उसको इतना वो खफा हो जायेगा ।
रुठेगा शामोसहर ये कायदा हो जायेगा ॥
लिख बहर में पेश की तो इक गज़ल अच्छी लगी ।
सोचता था ये करिश्मा बारहा हो जयेगा ॥
तोड़ दूंगा जब हदों को आपके सम्मान की ।
तब कयामत आयेगी तब जलजला हो जायेगा ॥
इतनी गाली इतने जूते इतनी सारी बद्दुआ ।
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा ॥
आज मैने मय के प्याले हाशिये पर रख दिये ।
अपनी कुछ गज़लें सुना दो कुछ नशा हो जायेगा ॥
फ़िर मतों की थी ज़रूरत फ़िर बहायी रहमतें ।
चार पैसे दे के वो सबका खुदा हो जायेगा ॥
जब तिलावत की हमारे राम को अच्छा लगा ।
मत कहो तुम फ़िर से ऐसा फ़िर दंगा हो जायेगा ॥
आशा करता हूँ की पहला होमवर्क आपको पसंद आयेगा
आपका वीनस केशरी
abhi abhi kaksha ki taraf se gujari to paya ki room khula hua hai.... home work note kar liya... home par pahu.nche tab kare,n
जवाब देंहटाएंरात भर जग कर पढ़ेंगे तो भी क्या हो जायेगा,
जवाब देंहटाएंहाथ में आते ही पर्चा सब सफा हो जायेगा,
उनको है इस बात का पूरा भरोसा दोस्तों,
बाल काले कर के खरबूजा नया हो जायेगा,
तुम तो लड्डू देख कर पूरे गनेसी हो गए,
इतना न चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा,
आदमी हो या अजायबघर लकड़बग्घे मियां,
बम लगाकर सोचते हो सब हरा हो जायेगा.
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जवाब देंहटाएंअरे भगवान बड़ा टफ कंपटीसन हो गया है गुरू जी ये तो अबकि बार तो सारे के सारे सटूडेंटै एक से बढ़ कर एक लिखे पड़े हैं .... सब का होमवर्क बेमिसाल....! लीजिये रात में हम ने भी दिया जला के कुछ लिखा है..!
जवाब देंहटाएंजान बस जायेगी मेरी और क्या हो जायेगा,
इम्तिहाँ ले कर तुझे तो हौसला हो जायेगा।
रोज समझाया सभी को, ना खुदी समझे मगर,
इतना न चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा।
हर नफस रोशन किये है, जिंदगी को आज जो,
कल वो जायेगा तो स्यापा इक घना हो जायेगा।
इतना ज्यादा खुद को, उसमें ढालते जाते हो क्यो,
जबकि तुम भी जानते हो, गैर वो हो जाएगा।
कौन छोड़ेगा सड़क पर घूमना डर मौत से,
आज फोड़ो बम, शहर कल आम सा हो जाएगा।