शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

दीवारों से मिल कर रोना अच्‍छा लगता है हम भी पागल हो जायेंगें ऐसा लगता है

क़ैसर उल ज़ाफरी साहब की ये ग़ज़ल अब है । कुछ सालों पहले वे इंतकाल फरमा चुके हैं । मृत्‍यु से कुछ महीनों पहले ही वे सीहोर आये थे तब उन्‍हीं के मुंह से उनकी ये ग़ज़ल सुनने का सौभाग्‍य मिला था । हालंकि सच ये भी है कि वे ग़लती से एक कवि सम्‍मेलन में आ गये थे । ग़लती से इसलिये कि आज के कवि सम्‍मेलनों का जो हाल है वहां पर कैसर उल ज़ाफरी जैसे लोगों के लिये जगह ही कहां है वहां पर तो विदूषकों की ज़ुरूरत है । खैर जो भी हो मैं तो अपने आप को सौभाग्‍यशाली समझता हूं कि जिस ग़ज़ल को ( पंकज उदास ) सुनते सुनते मैं बड़ा हुआ उसको लिखने वाले शायर के मुंह से ही ये कलाम सुना । आज इसकी बात इसलिये कर रहा हूं कि ये ग़ज़ल भी खास है । अभी कुछ दिनों पहले गौतम ने एक सवाल उठाया था कि क्‍या 2222-2222-2222-2222 वज्‍न हो सकता है । तो ये ग़ज़ल पूरी तरह से वैसी तो नहीं है इसमें भी 2222-2222-2222-2 का वज्‍़न है । अर्थात मुफतएलातुन-मुफतएलातुन- मुफतएलातुन- फा  पूरी तरह से दीर्घ मात्राओं पर चलने वाली काफी बहरें हैं और उनको लेकर हम आगे बात तो करेंगें । पर आज इसका उदाहरण इसलिये दे रहा हूं कि हमने इस बार के तरही मुशायरे में जो बहर ली है वो भी पूरी तरह से दीर्घ की है । 22-22-22-22 फालुन-फालुन- फालुन- फालुन ।  और काफी लोगों को उसमें उलझन भी आ रही होगी कि कैसे काम किया जाये ।

चलिये अब चलते हैं कैसर उल ज़ाफरी साहब की ग़ज़ल पर । उसका एक शेर है दुनिया भर की यादें हमसे मिलने आती हैं

शाम ढले इस सूने घर में मेला लगता है  

अब मेरी उलझन इसीमें हुई बात तब की है जब मैं भी आप ही की तरह से ग़ज़ल की व्‍याकरण सीखने का प्रयास कर रहा था । उलझन ये थी कि  शाम ढले में   और   ये दोनों जो लघु हैं ये तो अलग अलग शब्‍दों में आ रहे हैं इनको मिला कर के एक दीर्घ कैसे बना सकते हैं । बात कैसर उल जाफरी जैसे चलते फिरते ग़ज़ल के विश्‍वविद्यालय की थी तो ग़लती होने का तो प्रश्‍न उठता ही नहीं था । खैर काफी मशक्‍कत करने पर ज्ञात हुआ कि सभी दीर्घ वाले प्रकरण में मात्राओं की गणना से काम चलाया जाता है । यदि कोई लघु मात्रा स्‍वतंत्र है और उसके बाद एक और स्‍वतंत्र लघु आ रहा है तो उन दोनों को एक दीर्घ मान लिया जाता है भले ही वे दोनों अलग अलग शब्‍दों में आ रही हों । ये मेरे लिये एक नया ही ज्ञान था । कई बार होता है न कि बहुत जि़यादह पढ़ने से भी नयी खिड़कियां खुलने लगती हैं तो मेरे लिये भी यही हुआ ।  

शा म ढ ले इस 2222

तो अब मेरे खयाल से तरही की बहर को लेकर उलझन दूर हुई होगी । कि वहां पर कैसे काम करना है समीर लाल जी ने इस पर कुछ (?????) शेर निकाल के अपनी ब्‍लाग पर लगा भी दिये हैं । उनमें से ही एक शेर है ।

जो भी इनकी पीठ खुजाये
उसकी पीठ खुजाती जनता

अब इसमें देखा जाये तो हो ये रहा है कि पीठ खुजाये  में   और खु  ये दोनों अलग अलग शब्‍दों में आ रहे हैं फिर भी मिल कर एक दीर्घ हो रहे हैं । इसलिये बहर में माना जायेगा ।

नर नारी में भेद बता कर
लोगों को भिड़वाती जनता

इसमें भी भेद बता  में हो ये गया है कि   और   दोनों को एक ही दीर्घ माना जा रहा है । माड़साब अपनी जनता वाली ग़ज़ल को यहां पर लगा रहे हैं ताकि विद्यार्थियों को आसानी हो सके

गूंगी बहरी अन्‍धी जनता

कायर और निकम्‍मी जनता

सबके पीछे है चल देती

इसकी, उसकी, सबकी जनता

दस दस रुपये में ले लो जी

ठेला भर के सस्‍ती जनता

जीवन भर लटकी रहती है

चमगादड़ सी उल्‍टी जनता

सावन भादों अगहन फागुन

है नंगी की नंगी जनता

कौन बड़ा डाकू है सबसे

वोटों से है चुनती जनता

डेमोक्रेसी का मतलब है

जिसकी लाठी उसकी जनता

चलिये मिलते हैं अगली कक्षा में । कक्षा शब्‍द का उपयोग इसलिये कर रहा हूं कि ये कक्षा ही है । हम तरही मुशायरे के माध्‍यम से बहरों को और उनके बारे में जो रहस्‍य हैं उनको जानने का प्रयास करेंगें । मैं पहले ही कह चुका हूं कि जो लोग नये आऐ हैं वे पिछले पाठों को पढ़ लें ताकि उनको असहज नहीं लगे । तो ठीक है मिलते हैं । जैराम जी की ।

14 टिप्‍पणियां:

  1. ye achchha kiya guruvar ki kuchh idea diya apni gazal laga kar varna kuchh ban hi nahi raha tha...ab bhi dekhiye kya hota hai..?

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  2. काफ़ी राहत महसूस हो रही है ये जानकर कि दो स्वतंत्र लघु भी दीर्घ हो जाते हैं। वरना दीर्घ मात्राओं में लिखने में कई बार मुश्किल आती है। माड़साब की गजल मस्त है। समीर जी ने ३० शेर लिख डाले तो एक बचकाना प्रश्न ऊठ रहा है दिमाग में। एक गजल में अधिकतम कितने शेर हो सकते हैं? इसका भी कोई नियम है या लिखनेवाले पर निर्भर करता है?

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  3. बड़ा सुकून मिला माड़स्साब आपको पढ़कर. बस सिखलाते चलिये..देर से सही, हम हाजरी लगाते रहेंगे..अभी यूँ ही अस्पताल में बैठा ऊँघ रहा था और आपको पढ़ा..बड़ी जबरदस्त खबर ली है आपने जनता की अपनी गजल में. बस, ऐसे ही निकल पड़ा कि


    वोट यहाँ पर सस्ते मिलते
    पउवे में है बिकती जनता!!

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  4. गुरु जी प्रणाम
    आपकी इस पोस्ट से बहुत बड़ा ज्ञान मिला एक नई जानकारी मिली
    (मगर मुझे लगा है की २ अलग अलग लघु को १ दीर्घ मानना वास्तव में जुगाड़ है)

    इसलिए कोशिश करूंगा की जुगाड़ लगाये बिना ग़ज़ल पूरी कर सकूं
    कैसर साहब की इस गजल से मेरा बहुत लगाव है
    मै जब भी यमुना जी के पुल को पार करता हूँ बरबस कैसर जी का ये शेर जुबान पर आ जाता है
    ------------------------------------------------------------
    कितने दिनों के प्यासे होंगे यारों सोंचो तो
    शबनम का कतरा भी जिनको दरिया लगता है
    ------------------------------------------------------------
    आज भी आपकी पोस्ट पर ये मुखडा देख कर पोस्ट पड़ते पड़ते कैसर साहब की ये ग़ज़ल सुनता रहा

    एक बात और कहना चाहता हूँ की शायद समीर जी को इस बात का पहले से ज्ञान था तभी तो अपने शेरो में उन्होंने दो लघु लिखे और सोंचा की जानकार लोग तो ख़ुद ही इसको दीर्घ मानेगे :D


    कुछ शेर निकाले है मगर बड़े ही बकवास शेर है कहन तो कही दिख ही नही रही सो बड़ा निराश हूँ
    आपकी गजज़ पढ़ कर अच्छा लगा और यकीन हुआ की इस बहार को कठिन हमने ख़ुद बना रक्खा है

    वीनस केसरी

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  5. ....ये बड़ी दुविधा दूर हुई आज गुरू जी. वैसे मैने होमवर्क पूरा कर लिया है और आपको मेल कर दिया है.
    उपर जो आपने कवि-सम्मेलन पर विदुषकों का जिक्र किया है,बहुत बजा फ़रमाया है....हर शनिवार की रात को साढ़े नौ बजे से ई-टिवी पर महफिले-मुशायरा यकिनन देखता हूँ और देखता हूँ इन मुशायरों की दशा तो बड़ा क्षोभ होता है....खास कर कई दफा वसीन बरेलवी,मुन्नवर राना,राहत इंदौरी जैसे फ़नकारों को इन विदुषकों के साथ मंच पर बैठे देखना...
    खैर,....मगर गुरू जी इस दिर्घ वाली बहर का नाम क्या होगा?

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  6. गुरूजी,
    लीजिये आपके सुझाव के अनुसार मैंने भी हाजरी लगानी शुरू कर दी |

    अभी सारे पाठ पूरे-पूरे नहीं पढ़े हैं ... फिलहाल बस बहर पर गौर कर रही हूँ ... के कहाँ दीर्घ आता है और कहाँ लघु | बहरों के नाम और प्रकारों पर इसके बाद आऊंगी |
    दो अलग अलग लघु मिलकर एक दीर्घ हो सकते हैं ये बात जान कर अच्छा लगा | मेरे ख़याल से ये ठीक bhi है |
    -RC

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  7. नमस्कार गुरु जी,
    मैं अंकित हूँ, मैंने कल पहली बार आपका ब्लॉग पड़ा और मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. मैं भी ग़ज़ल लिखता हूँ मगर मैं पहले ध्वनी के सहारे लिखता था मगर जब उन्हें आपके द्वारा बताये गए मीटर पे रखा तब पता लगा की वो सही नही हैं.
    अभी तक मैंने आपकी ज्यादा कक्षाएं नै पड़ी है और मैं एक साल लेट हूँ, इसलिए थोड़ा वक्त लगेगा मगर आपकी शागिर्दी में आना चाहता हूँ.
    मैं अपना लिखा हुआ एक मतला और एक शेर आप को पेश करता हूँ, जहा पे गलती हो बताइयेगा.

    समेटो रौशनी अभी चिराग बुझने के लिए.
    उजाले आफताब के खड़े उलझने के लिए.
    मुकम्मल तुम करो अभी यहीं पे लड़ के हार को,
    हमारे हौसले जवाब हैं, समझने के लिए.

    १२२२-१२१२-१२१२-२२१२
    ललालाला-ललालला-ललालला-लालालला

    - अंकित "सफर"
    http://ankitsafar.blogspot.com/

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  8. ..."नया ग्यानोदय" के इस महिने में भारतीय ग्यानपीठ द्वारा उद्‍घोषना में आपके नये कहानी-संकलन के बारे में जाना,"ईस्ट इंडिया कंपनी"....मन पुलकित हो उठा पढ़ कर.कब तक आ जायेगी ये किताब सर.
    और इक अनुरोध है कि टिप्पणीयों में उठाये गये सवालों के जवाब को सार्वजनिक करें,तो हम सब का ग्यानवर्धन हो.

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  9. वाह भाईजान
    क्या खूब जानकारी दी है आपने
    साधुवाद

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  10. waah

    behtareen post

    and the ghazal on Janta was a well put harsh reality
    thanks for posting

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  11. Bahut achi gazal ke saath kai yaadein taazi ho gayi
    bahut badiya prayaas hua ja raha hai is manch par gazal ko lekar.

    Is Manch par aana accha lagta hai, nahin bahut accha lagta hai.
    Diwali ki shubhkamnaon sahit
    Devi Nangrani

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