वे सारे शेर जिनको कि शुभचिंतक कहा करते हैं कि इनको कही मत पढ़ा करो ये तीखे हैं विवादास्पद हैं वगैरह वगैरह, उन सारे शेरों को अब ग़ज़ल की कक्षाओं में सुनाने का मन है । क्योंकि पिछले शेरों को लोगों ने काफी पसंद किया है । आज की कक्षा में संसद वाली पूरी ग़ज़ल भी सुनाना है । लोगों का काफी आग्रह है उसको सुनाने का । मगर आज की कक्षा में हम कुछ हट कर बातें करेंगें । उससे पहले कि हम सीधे बहरों की बात करने लगें हम पहले ग़ज़ल के कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु जान लें । पिछले दिनों से काफी छात्रो की ग़ज़ले इस्लाह के लिये आ रही हैं । और ग़ज़लों में जो सामान्य सा दोष आता दिखाई दे रहा है उसपर आज चर्चा करने की इच्छा है । हां इस बीच ये बता दूं कि कुछ ग़ज़लें तरही मुशायरे की आ गई हैं और माड़साब ने उनको सहेज लिया है । एक दो दिन में तरही मुशायरे का आयोजन किया जाएगा उसमें ग़ज़लों को प्रस्तुत किया जायेगा । नखलऊ की कंचन ने फोन पे पूछा है कि बहर क्या है कंचन हमारी कक्षा की सबसे ढिल्ली छात्रा है । जब सारी कापियां जमा हो जाती हैं तब नाक पोंछती हुई आती है और कहती है '' ए माड़साब नीक सी तो देर हुई है जमा कर लो कापी '' ।
खैर बहर की बात करने के पहले हम बात करते हैं । ग़ज़ल में आने वाले असहज और अवांछित तत्वों की । कविता की जो परिभाषा है उसमें ये भी कहा जाता है कि कविता को उस दीवार की तरह होना चाहिये जिसमें एक भी ईंट बेकार न हो । अर्थात एक भी ईंट हटाने पर अगर दीवार गिर जाये तो इसका मतलब ये है कि हर ईंट अपनी जगह उपयोगी है । अगर ऐसा हो रहा है कि किसी ईंट को खींचने पर कुछ नहीं हो रहा है तो उसका मतलब ये है कि एक गैरज़रूरी ईंट वहां हैं । कविता में भी ये ही होता है कविता में भी एक भी गैर जरूरी शब्द नहीं होना चाहिये अगर एक भी शब्द ऐसा है तो इसका मतलब है कि वो अवांछित है और वो पूरी पंक्ति को असहज बना देगा । ग़ज़ल की भाषा में इनको भर्ती का शब्द कहा जाता है । अक्सर होता है कि हम काफिया ऐसा ले लेते हैं जो कि परेशानी वाला होता है और फिर उसका ही निर्वहन करने के चक्कर में हम भर्ती के शब्द रखते हैं । अगर कविता में से किसी शब्द को निकालने पर ये हो रहा हो कि पूरी कविता पर असर पड़ रहा हो तो इसका मतलब ये है कि वो शब्द जरूरी है और उसकी उपयोगिता है । किन्तु अगर किसी शब्द को हटाने पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा हो तो इसका मतलब ये है कि वो शब्द भर्ती का है और जितनी जल्द हो उसे हटा दें । जैसे गौतम ने मतला बनाया
अभी जो कोंपलें फूटी हैं छोटे-छोटे बीजों पर
कहानी कल लिखेंगी ये समय की देहलीजों पर
मतला देख कर ही पता चल रहा है कि काफिया कठिन है और उस पर रदीफ की बाध्यता है । कई बार काफिया कठिन नहीं होता पर रदीफ के साथ उसका मेल परेशानी पैदा करता है । मतले में मिसरा सानी में ही गौतम को एक समझौता करना पड़ा और वो ये कि देहलीजों का दे खींच कर पढ़ना है ताकि वो दीर्घ का स्वर पैदा करे । वास्तविकता ये है कि दे....ह ली जों 2122 तो है ही नहीं ये तो देह 2 ली 2 जों 2 है पर मात्रा बिठाने के चक्कर में असहजता पैदा हो गई ।
भला है जोर कितना एक पतले धागे में देखो
टिकी है मेरी दुनिया माँ की सब बाँधी तबीजों पर
शेर में ताबीज को मात्रा के चक्कर में तबीज करना पड़ा । ये असहजता नहीं आनी चाहिये । कोई जरूरी नहीं है कि हम मुश्किल काफिये लें । उससे कहीं तय नहीं होता कि हम उस्ताद हैं । आप तो गालिब की सबसे लोकप्रिय ग़ज़ल दिले नादां तुझे हुआ क्या है आखिर इस दर्द की दवा क्या है को ही लें कितना आसान काफिया और उतना ही आसान रदीफ । अपने को मुश्किल काफिये में नहीं उलझायें । आज की कक्षा लम्बी हो गई है । अत: जिस ग़जल की फरमाइश है उसे कल सुनाता हूं । आज की पोस्ट के शीर्षक में भी माड़साब ने अपना एक शेर लगाया है
तीन रंगों का वो सपना कब का यारों मर चुका,
अब तमाशा ख़त्म्ा है अब तो उठो और घर चलो
बतायें कैसा लगा कल आकर सुनाता हूं अपनी पूरी ग़ज़ल ।
गुरू जी, संसद वाली गजल के अलावा मुखड़े में जो शेर लगाया है आपने वो गजल भी पूरी सुना दें तो मजा आ जाए। मतलब एक के साथ एक फ़्री। ईंट के उदाहरण से बात ठीक से समझ में आ गई। मेरे जैसे नौसिखियों के लिए गाँठ बाँध लेने जैसी बात है।
जवाब देंहटाएंयस सर, इट्स सो नाईस टु सी दी क्लासेस रनिंग बैक.
जवाब देंहटाएंहैप्पी हिन्दी डे.
गुरु देव
जवाब देंहटाएंबच्चों को टाफी देकर देकर टरका रहे हैं, एक शेर सुना कर कह रहें जाओ बेटे घर जाओ...नहीं जायेंगे यहीं डटे रहेंगे जब तक पूरी ग़ज़ल नहीं सुना देते...ओस कि बूंदों से प्यास नहीं न बुझाईये...
आप के दिए होम वर्क पर पूरा काम हो नहीं पाया समय और नेट दोनों ने हाथ खींच रखा है...बड़ी मुश्किल से एक आध मिनट को चलता है और फ़िर गोल...बहुत काम बाकि है तरही ग़ज़ल का...एक आध शेर हुआ है सुनिए और हमारे कान मरोडिये ..
आदमी को आदमी सा मान देना ठीक है
सर झुका मिलते रहे तो वो खुदा हो जाएगा
दोस्त से हमको मिला वो,भर गया मत सोचिये
जख्म को थोड़ा कुरेदो फ़िर हरा हो जाएगा
नीरज
बहुत अच्छी लगी शायरी !! इसे देखकर वो लाइने याद आ गयी की !!
जवाब देंहटाएंआजादी क्या तीन थके हुये रंगो का नाम है
जिसे एक पहिया ढोता है ।
या इसका कोई और भी मतलब होता है।
बहुत अच्छे.... आप की बात का अदाज़ क्या कहना
जवाब देंहटाएंलेकिन मास्टर जी ये भी कोई बात है, कि हम अपने खेत की लउकी घूस में दे कर जो चीज पूछे उसको अइसे किलास में सब के सामने बता देते हैं.... औ हमाई नाक का ना इतना मजाक न उड़ाया करिये हमाई अम्मा ने हमाए गले में अब बिक्स इनहेलर बाँध दिया है हमेसा सूँघते रहते हैं तो अब पिराबलम नही होती... एक बात अउर कक्षा में होमवर्क वाली कापी धर आये हैं....!
...कान पकड़ता हूँ गुरूजी,ये गल्ती दुबारा ना होने दूंगा.वैसे बात तो लगभग हम आपके मेलवे से समझ गये थे,किन्तु अब ये "क्रिस्टल किलियर" हो गया.तनिक सकपकाये से हम सोचे कि क्या करें,तो तरही वाले होमवर्क पर चार और शेर पका लाये हैं.लगे हाथों भेड़ देता हूँ-
जवाब देंहटाएंसोचना क्या ये तो तेरे जेब की सरकार है
जो भी चाहे,जो भी तू ने कह दिया,हो जायेगा
यूँ निगाहों ही निगाहों में न हमको छेड़ तू
भोला-भाला मन हमारा मनचला हो जायेगा
भीड़ में यूँ भीड़ बनकर गर चलेगा उम्र भर
बढ़ न पायेगा कभी तू,गुमशुदा हो जायेगा
तेरी आँखों में छुपा है दर्द का सैलाब जो
एक दिन ये इस जहाँ का तजकिरा हो जायेगा
....चरण-स्पर्श!
गुरु जी प्रणाम,
जवाब देंहटाएंएक दुविधा सामने आ रही है अभी बैठे बैठे आपकी पिछली क्लास बांच रहा था ६ फरवरी २००८ की क्लास में गया तो एक जगह उलझ गया
वहां पर आपने रजज का वजन भी २२१२ लिखा है और कामिल का भी २२१२ लिखा है जहाँ तक आपके बताये मुझे जानकारी है रजज का वजन २२१२ होता है तो कामिल का वजन क्या होगा ?
और एक जानकारी चाहता हूँ
क्या २२१, २२१, २२१, २२१ वजन की बहर हो सकती है ?
आपका वीनस केशरी
बैठे हैं पीछे वाली बैन्च पर...सुन रहे हैं और कल फित आयेंगे पूरी गज़ल सुनने.
जवाब देंहटाएंआभार.
गुरूदेव,गज़ल तो सुना दिजिये.इम्तहा हो गयी इंतजार की....
जवाब देंहटाएंएक हमारा भी शक था कि ऐसी बहर हो सकती है जिसमें सारे दीर्घ हो-२२२२ २२२२ २२२२ २२२२ ऐसा कुछ और इसके अन्य काम्बिनेशन?