1
वो कोई भी हो रात सजन वो दीवाली बन जायेगी।
जिस रात नयन के दीवट में , भावों का तेल भरा होगा,
आँसू की लौ दिप -दिप कर के, सारी रजनी दमकाएगी,
तुम दीप मालिका बन कर के जब लौटोगे इस मावस में,
वो कोई भी हो रात सजन वो दीवाली बन जायेगी।
आँखों के आगे तुम होगे, तन-मन में इक सिहरन होगी,
मेरी उस पल की गतिविधियाँ, क्या फूलझड़ी से कम होगी?
तेरी बाहों में आने को, इकदम बढ़ कर रुक जाऊँगी,
मै दीपशिखा बन कर साजन बस मचल मचल रह जाऊँगी।
वाणी तो बोल न पाएगी , आँखें वाणी बन जाएगी।
वो कोई भी हो रात सजन वो दीवाली बन जायेगी।
तुम एक राम बन कर आओ, मैं पूर्ण अयोध्या बन जाऊँ,
तुम अगर अमावस रात बनो, मै दीपमालिका बन जाऊँ,
तुमको आँखौं से देखूँ मै, मेरा श्री पूजन हो जाये,
हर अश्रु आचमन हो जाये, हर भाव समर्पण हो जाये।
लेकिन तुम बिन पूनम भी तो मावस काली बन जायेगी!
वो कोई भी हो रात सजन वो दीवाली बन जायेगी।
2
वो आ भी सकता है , थोड़ी सी रात बाकी है।
अपने हाथों की लकीरों में ढूढ़ती हूँ जिसे
, वो भला कौन है, किसकी तलाश बाकी है,
रात होने को है दीयों में तेल भरती हूँ
, तमन्ना तुझको अभी किसकी आस बाकी है।
किया जितनी भी बार ऐतबार है सच्चा
, हुए उतनी ही बार अपनी नज़र में झूठे,
न जाने कितने गलासों को चख के देखा है
, हुए है हर दफा अपने ही होंठ फिर जूठे।
मगर सूखे हुए, पपड़ी पड़े इन होठों को,
न जाने चाहिये कया अब भी प्यास बाकी है?
गिरे हैं इस क़दर उठने को जी नही करता
, बहुत हताश कर रही हैं मेरी साँसे मुझे,
बहुत थकी हूँ कि चलने को जी नही करता
, मगर तलाश मेरी रुकने नही देती मुझे,
गुज़र चुका है सभी कुछ भला , बुरा क्या क्या?
बड़ी हूँ ढीठ कि अब भी तलाश बाकी है।
सितारे सो चुके है साथ मेरे चल के मगर
, मैं अब भी चाँद की आहट पे कान रखे हूँ।
वो धीमे कदमों से आ के मुझे चौंकायेगा
, सम्हलना है मुझे धड़कन का ध्यान रखे हूँ।
बढ़ा दो लौ -ए-शमा की ज़रा सी और उमर,
वो आ भी सकता है, थोड़ी सी रात बाकी है।
गुरुदेव,
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट पर बहन कंचन की इन दो सुन्दर गीत रचनाओं पर पहली टिप्पणी मैं कर रहा हूँ..वह भी तीन साल बाद!....
वो आ भी सकता है थोड़ी सी रात बाकी है,बड़ी हूँ ढीठ कि अब भी तलाश बाकी है,न चाहिए कया अब भी प्यास बाकी है,
वाह,क्या कहना..
वो कोई भी हो रात सजन वो दीवाली बन जाएगी....
बेहद खूब सूरत.