दीपावली का यह पर्व आप सबके जीवन में खुशियाँ लाए और आपकी सारी इच्छाएँ पूरी करे। वह सब कुछ जो आपने सोचा है वह सब कुछ आपको मिले। सबसे अच्छी शुभकामना यह कि आप सब रचते रहें, लिखते रहें और आपका लिखा हुआ सराहा जाता रहे। लेखक के लिए रचनाकार के लिए सबसे बड़ी दुआ तो यही हो सकती है। हाँ और एक दुआ इस परिवार के लिए भी, इस ब्लॉग के परिवार के लिए, हमारा यह प्रेम यह सद्भाव इसी प्रकार बना रहे। हम सबके बीच प्रेम का यह भाव बना रहे। कोई नहीं बिछड़े कोई नहीं दुखी हो। हम सब इसी प्रकार बरसों बरस तक प्रेम के यह दीपक जलाते रहें।
आइये आज हम छः रचनाकारों के साथ दीपावली का यह पर्व मनाते हैं आज अश्विनी रमेश जी, दिनेश कुमार, मंसूर अली हाशमी जी, डॉ. संजय दानी जी, राकेश खंडेलवाल जी, नुसरत मेहदी जी और लावण्या दीपक शाह जी के साथ दीपपर्व के दीप हम जलाते हैं।
अश्विनी रमेश
दिवाली के दिवे कुछ यूँ जले हैं
उजाले झिलमिलाने से लगे हैं
गिले शिकवे भुलाकर लोग अपने
खुशी से आज सब से ही मिले हैं
मिटा दे सब अंधेरे जो ज़हन के
उजाले यों दमक दिल के रहे हैं
दिवाली के जुनूँ में आज खोकर
पटाखे फुलझड़ी झर-झर झरे हैं
दिवारें नफरतों की तोड़ कर हम
उजाला प्यार का करने चले हैं
दिवाली इस कदर रोशन ये होवे
मिटे रंजिश इबादत कर रहे हैं
दिवाली बज़्म यों सजती रहेगी
हसीं अशआर के दीपक जले हैं
दीपावली के त्योहार की सारी भावनाएँ समेटे हुए बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है। दीपावली की एक-एक रस्म को शेर में पिरोते हुए बहुत ही भावनात्मक बातें कही गईं हैं। नफ़रतों को हटा का प्रेम का रंग चारों ओर बिखेरना यही तो हर पर्व का कार्य होता है। प्रेम और स्नेह के रंगों से रौशनी से हर तरफ नूर बिखर जाए यही कामना होती है। पटाखे फुलझड़ी का झर झर झरना, खुशी से लोगों का गले मिलना, रंजिशों का मिटना, यही तो हम सबकी कामना है। और हमारी कामना को शब्दों में ढाल दिया है अश्विनी जी ने बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
दिनेश कुमार
उजाले का लिए परचम खड़े हैं
हवा में जल रहे नन्हे दिये हैं
शराफ़त का नक़ाब ओढ़े हुये हैं
अधिकतर आदमी बगुले बने हैं
नफ़ा नुक़सान अक़्सर देखते हैं
उसूलों के भी अपने क़ाइदे हैं
लगी ठोकर तो उठ कर चल दिए हैं
हमारे ख़्वाब भी चिकने घड़े हैं
सफलता पाँव भी चूमेगी इक दिन
चुनौती के मुक़ाबिल हौसले हैं
ये सच है हम भी मेंढक हैं कुएं के
हमारी सोच के भी दायरे हैं
'प्रदूषण' के पटाखे मत चलाओ
ये सुन सुन कान के पर्दे हिले हैं
कहाँ मिटता है भीतर का अँधेरा
अगरचे हर तरफ़ दीपक जले हैं
उजाले का परचम लिए खड़े दीपकों को समर्पित यह ग़ज़ल बहुत ही सुंदर है। जिसमें हर अँधेरे को अपने तरीके से आईना दिखाने की कोशिश की गई है। नफा नुकसान देखने वाले उसूल हों, ठोकर पर चल देने वालो ख्वाब हों, या शराफत का नकाब हो। हर शेर अपने ही ढंग से अँधेरों को उजाले में लाने का प्रयास कर रहा है। सोच के दायरे वाला शेर भी बहुत सुंदर बना है जिसमें मेंढक होने के प्रतीक से बहुत अच्छे से कहा गया है। चुनौती के मुकाबल हौसलों को खड़े करने वाला शेर भी शानदार है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
मन्सूर अली हाश्मी जी
1
हमें अपने से वो क्यूँ लग रहे हैं
कोई सपना है या हम जगे हैं
है हिन्दू भी, मुसलमॉ, सिख इसाई
नगीने बन वतन में सब जड़े हैं
निराशा से उभर कर अब तो देखो
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं
ये काकुल भी तुम्हारे नैन भी तो
ये तुम से ही गिला क्यों कर रहे हैं ?
तग़ाफुल है,भरम या ख़ुद पसंदी ?
खड़े हैं आईने को तक रहे हैं
कही नेता कही रावण दहन है
विचारों के पुलिन्दे जल रहे हैं
जिये हम जिसकी ख़ातिर और मरे भी
वो पहलूए रकीबाँ में खड़े हैं
2
बहुत ज़ोरों से अब क्यूँ बज रहे हैं
नही लगता कि वो थोथे चने हैं ?
ये फिर 'यूपी' में कोई 'कैकेयी' है
कोई फिर राम क्या वन को चले हैं?
तमस्ख़ुर, तन्ज़ है और जुमलाबाज़ी
सियासत में सभी क्या मसख़रे है !
बड़ी अच्छी बहर दी इस दिवाली
पटाख़ों पर पटाख़े छुट रहे है !
मिली है 'हाश्मी' को दाल-रोटी
गधे है कि मिठाई खा रहे है।
दोनों ही ग़ज़लें मंसूर भाई ने अपने ही अंदाज़ में कही हैं। एक सीधी सादी ग़ज़ल और दूसरी तंज़ की ग़ज़ल। पहली ग़ज़ल में गिरह बहुत ही सकारात्मक तरीके से बाँधी गई है। उजाले के दरीचे खुलने का मतलब यही तो होता है कि आप निराशा से उभर कर सकारात्मक हो जाएँ। एक मिसरा तो ऐसा ग़ज़ब बना है कि बस, खड़े हैं आईने को तक रहे हैं, वाह वहा कमाल का मिसरा बना है। दूसरी ग़ज़ल का मतला ही खूब बन पड़ा है। ग़ज़ब। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
डा संजय दानी दुर्ग
फ़क़ीरी के सितम हम भी सहे हैं,
मुहब्बत की वक़ालत कर चुके हैं ।
अंधेरा अब अंधेरे में रहेगा ,
उजाले के दरीचे खुल रर्हे हैं ।
पहाड़ों को बुलाना मत घरों में ,
ज़मीनी धोखों से ही दिल भरे है ।
विदेशी चीज़ें अच्छी लगती हैं पर,
वतन के हाट रोने से लगे हैं ।
चलो दीवाली में अच्छा करें कुछ,
ग़रीबों की गली में बैठते हैं ।
चलो फिर गांव में ढूंढे ख़ुशी को,
सुकूं शहरों के बस चिकने घड़े हैं ।
दगाबाज़ी का बादल ख़ौफ़ में है,
मदद के दीप हम दोनों रखे हैं ।
वतन पे मरने वाले कब डरे हैं ।
अंधेरा अब अंधेरे में रहेगा, वाह यह होती है बात, यही तो वह बात है जिसके कारण काव्य में रस आता है। क्या खूब गिरह लगाई है मज़ा ही आ गया। वाह। पहाड़ और ज़मीन को प्रतीक बना कर बड़ी बात कहने का प्रयास अगले शेर में किया गया है। बहुत ही सुंदर। ग़जल का एक शेर सकारात्मक होता है और अगला नकारात्मकता पर प्रहार करता है। बहुत ही सुंदर। मकते में सेना को समर्पित मिसरा भी ख्ब है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।
नुसरत मेहदी जी
पंकज बहुत गड़बड़ हो गई तुमने मिसरा दिया मैंने सिर्फ वो पढ़ा और चलते फिरते शेर कह दिए ये पढ़ा ही नहीं कि तुमने क्या रदीफ़ क़ाफ़िया तय किये हैं।
हमारे ग़म में वो कब घुल रहे हैं
सुना है फिर कहीं मिलजुल रहे हैं
ये किन रंगों में मौसम खुल रहे हैं
ग़मों की धूप में हम धुल रहे हैं
अभी हैं बेख़बर सिम्तो से फिर भी
उड़ानों पर परिंदे तुल रहे हैं
नहीं टूटा तअल्लुक़, ठीक,लेकिन
ग़लत कुछ फ़ैसले बिलकुल रहे हैं
अँधेरे छुप गए गोशो में जाके
"उजालों के दरीचे खुल रहे हैं "
असासा हैं ये तहजीबों के रिश्ते
दिलों के दरमियां ये पुल रहे हैं
मुक़द्दर है चराग़ों का ये 'नुसरत'
कि अपनी ज़ात में खुद घुल रहे हैं
नुसरत दी के कहने में एक अलग ही अंदाज़ होता है। इस बार जैसा कि उन्होंने लिखा कि वे रदीफ और काफिया क्या है यह नहीं देख पाईं औ र ग़ज़ल कह दी। लेकिन इस ग़फ़लत से हमें एक अलग प्रकार की सुंदर ग़ज़ल मिल गई। मतला ही ऐसा ग़ज़ब बना है कि अश अश करने को जी चाह रहा है। ग़ज़ब। सिम्तों से बेखबर परिंदों का उड़ानों पर होना क्या कमाल है। यही तो जोश होता है। नहीं टूटा तअल्लुक क्या कमाल का शेर है, जीवन की कड़वी सच्चाई को बयाँ करता शेर, ग़लत फैसलों की ओर इशारा करता हुआ शेर। वाह। अँधेरे छुप गए गोशों में जाकर मिसरे से क्या खूब गिरह बाँधी गई है। वाह। मकते में मानों हर उस शख्स की बात कह दी गई है जो अँधेरों से लड़ रहा है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात है वाह वाह वाह ।
1
सिमट कर रातरानी की गली से
तुहिन पाथेय अपना है सजाता
अचानक याद आया गीत, बिसरा
मदिर स्वर एक झरना गुनगुनाता
बनाने लग गई प्राची दिशा में
नई कुछ बूटियां राँगोलियों की
हुई आतुर गगन को नापने को
सजी है पंक्तपाखी टोलियों की
क्षितिज करवट बदलने लग गया है
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं
चली हैं पनघटों की और कलसी
बिखरते पैंजनी के स्वर हवा में
मचलती हैं तरंगे अब करेंगी
धनक के रंग से कुछ मीठी बातें
लगी श्रृंगार करने मेघपरियां
सुनहरी, ओढनी की कर किनारे
सजाने लग गई है पालकी को
लिवाय साथ रवि को जा कहारी
नदी तट गूंजती है शंख की ध्वनि
उजाले ले दरीचे खुल रहे हैं
हुआ है अवतरण सुबहो बनारस
महाकालेश्वरं में आरती का
जगी अंगड़ाइयाँ ले वर्तिकाये
मधुर स्वर मन्त्र के उच्चारती आ
सजी तन मन पखारे आंजुरि में
पिरोई पाँखुरी में आस्थाएं अर्चनाये
जगाने प्राण प्रतिमा में प्रतिष्ठित
चली गंगाजली अभिषेक करने
विभासी हो ललित गूंजे हवा में
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं
2
शरद ऋतु रख रही पग षोडसी में
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं
उतारा ताक से स्वेटर हवा ने
लगे खुलने रजाई के पुलंदे
सजी छत आंगनों में अल्पनाएं
जहां कल बैठते थे आ परिंदे
किया दीवार ने श्रृंगार अपने
नए से हो गए हैं द्वार, परदे
नए परिधान में सब आसमय है
श्री आ कोई वांछित आज वर दे
दिए सजने लगे बन कर कतारें
उजाले के दरीचे खुल रहे है
लगी सजने मिठाई थालियों में
बनी गुझिया पकौड़ी पापड़ी भी
प्लेटों में है चमचम, खीरमोहन
इमरती और संग में मनभरी भी
इकठ्र आज रिश्तेदार होकर
मनाने दीप का उत्सव मिले है
हुआ हर्षित मयूरा नाचता मन
अगिनती फूल आँगन में खिले है
श्री के साथ गणपति सामने है
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं
पटाखे फुलझड़ी चलने लगे हैं
गगन में खींचती रेखा हवाई
गली घर द्वार आँगन बाखरें सब
दिए की ज्योति से हैं जगमगाई
मधुर शुभकामना सबके अधर पर
ग़ज़ल में ढल रही है गुनगुनाकर
प्रखरता सौंपता रवि आज अपनी
दिये की वर्तिका को मुस्कुराकर
धरा झूमी हुई मंगल मनाती
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं
अब राकेश जी के गीतों पर कोई क्या टिप्पणी करे। टिप्पणी करे या ठगा सा रहे। दीपावली का त्योहार मानो गीतों में साकारा हो उठा है। सारे प्रतीक सारे बिम्ब एक एक करके मानो किसी द्श्य की तरह सामने आ रहे हैं। ऐसा लगता है मानों राकेश जी ने ब्लॉग की दहलीज़ पर एक सुंदर सी राँगोली बना दी है शब्दों से। जिसे बस ठगा रह कर देखा ही जा सकता है। दूसरा गीत तो मानों दीपावली को थीम साँग है। एक एक पंक्ति दीपमाला सी सजी है। क्या बात है वाह वाह वाह।
लावण्या दीपक शाह जी
तू जलना धीरे-धीरे दीप मेरे
तझे है रात भर ऐसे ही जलना
है आया पर्व दीपों का अनूठा
अमावस से है तुझको आज लड़ना
मनाते हैं सभी खुशियाँ घरों में
उमंगों से है महका-महका आंगन
हर इक घर में सदा हो शुभ औ मंगल
ये व्रत लक्ष्मी का फिर आया है पावन
कृपा सब रहे ओ माँ ये तेरी
यही बिनती है तुझसे आज मेरी
तेरे आशीष से ही बस कटेगी
अमावस की निशा है ये घनेरी
उमंगों के कई दीपक जले हैं
उजालों के दरीचे खुल रहे हैं
गुणी पिता की गुणी बिटिया। ज्योति कलश छलके जैसा अमर ज्योति गीत लिखने वाले अमर गीतकार की बिटिया। दीपक को प्रतीक बनाकर बहुत ही सुंदर गीत रचा है। कामना और भावना से भरा हुआ गीत, जो भारतीय परंपरा है कि सबके लिए हम शुभ की कामना करते हैं, सबके घरों में खुशी हो यही प्रार्थना करते हैं। यह गीत भी उसी प्रकार के भावों से भरा हुआ है। बहुत ही सुंदर गीत क्या बात है, वाह वाह वाह ।
तो यह हैं आज के सारे रचनाकार। अभी कुछ रचनाकार बाद में गाड़ी पकड़ेंगे ऐसा लग रहा है। यदि आते हैं तो हम बासी दीपावली उनके साथ ही मनाएँगे। तिलक जी, नीरज जी जैसे कुछ वरिष्ठ भी शायद अभी गाड़ी पकड़ने की तैयार में हैं। आप सबको दीवाली मंगलमय हो। हँसते रहें झिलमिलाते रहें। शुभ दीपावली।
वाह! एक बार फिर एक से बढ़ कर एक ग़ज़लें और गीत.
जवाब देंहटाएंअश्विनी रमेश जी की ग़ज़ल पसंद आई. "दीवाली बज़्म यूं सजती रहेगी/हसीं अशआर के दीपक जले हैं".. बिलकुल ठीक कहा. ये ब्लॉग हसीं अशआर के जगमगा रहा है..
दिनेश जी: बढ़िया मतला, "अधिकतर आदमी बगुले बने हैं..", "असूलों के भी अपने कायदे हैं." "हमारे खाब भी चिकने घड़े हैं", वाह.. सभी शेर असरदार. दिली दाद.
मंसूर जी की गजलें हमेशा खूबसूरत और मजेदार होतीं हैं. दोनों ग़ज़लें बहुत पसंद आईं. दाद कबूल करें.
डा. संजय जी: वाह क्या खूब ग़ज़ल कही है. "पहाड़ों को बुलाना मत घरों में..", "गरीबों की गली में बैठते हैं.."बहुत खूबसूरत और असर दार शेर हैं... सभी शेर बहुत पसंद आये. मुबारकबाद.
नुसरत जी की ग़ज़ल हमेशा गहराई लिए होती है. "उड़ानों पर परिंदे तुल रहे हैं.", "ग़मों की धुप में हम..", "गलत कुछ फैसले बिलकुल रहे हैं..".. सभी शेर एक से बढ़ कर एक. गिरह भी बहुत खूब है. बहुत बहुत बधाई और दाद.
राकेश जी वाकइ "गीतों के राजकुमार" हैं. हर गीत में रवानी, नए अलंकार, नए भाव.. जितनी भी तारीफ़ की जाए कम होगी. राकेश जी को बहुत बहुत बधाई एवं दाद.
लावण्या जी का गीत भी बेहद पसंद आया... दिली मुबारकबाद एवं बधाई.
शुक्रिया राजीव भरोल जी।
हटाएं'लिखे मूसा,ख़ुदा बांचे' सुना था
तुझे भी 'हाश्मी' कोई पढ़े है !
शुक्रिया राजीव जी ,
हटाएंआपकी टिपण्णी के लिए बहत खूब । ऐसी समग्रतापूर्ण और सधी टिपण्णी के लिए।
सभी के प्रति ह्रदय से आभार!पंकज ने त्रुटि को भी सम्मान दिला दिया,उन्हें विशेष स्नेह!बहुत अलग रंगों ग़ज़लें हुई हैं सबकी, सबको बधाई। दीपोत्सव की सभी को मंगल कामनाएं!! नुसरत मेहदी
हटाएंआज दीपावली है और शब्दों की फुलझरियाँ जगर-मगर हुई हैं. एक साथ चार ग़ज़लें और तीन गीत ! सरस भोर की ऐसी सुघड़ी में कौन न भाव-विभोर हो जाए !
जवाब देंहटाएंमंच आज तुष्टिदाता है. हम सुतृप्त हैं..
सभी रचनाकारों के प्रति सादर नमन और अशेष शुभकामनाएँ.
-सौरभ, नैनी, इलाहाबाद
वाह वाह बहुत ही अच्छी रचनायें मिली हैं सभी कि दिवाली के इस अवसर पर. सभी को मेरी ओर से दिवाली कि शुभ कामनाये
जवाब देंहटाएंआज तो समा ही बाध गया .... इतने दिग्गज औए साथ में ग़ज़ल, गीत और गज़ब की अभिव्यक्तियाँ हैं ... लग रहा है दीपों की माला जगमगा रही है ...
जवाब देंहटाएंअश्विनी जी के सभी शेर सरल, सकारात्कम ऊर्जा का प्रवाह कर रहे हैं ...
दिनेश जी का प्रदूषण वाला शेर भी कमाल का है ... शायद यही तरही की खासियत है की मैंने भी इसी भाव को प्रतिध्वनित किया और दिनेश जी ने भी ...
संजय जी और नुसरत दी के कमाल के शेर सच्चाई बयान कर रहे हैं ... हर शेर नए अंदाज के हैं .... मज़ा आ गया ...राकेश जी और लावण्या जी के गीत तो इन फुलझड़ियों के बीच अनार का मज़ा दे रहे हैं ... इतनी विविधता है की नयी दिशाएँ खुल रही हैं जैसे ...
और मंसूर अली जी के शेरों के तो क्या कहने दोनों गजलें अलग अंदाज की ... गहरा सन्देश और तल्ख़ बात कहते हुए हैं ...
सभी को बहुत बहुत बधाई ... सभी को दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें ...
शुक्रिया दिगम्बर नास्वा जी,
हटाएं"गवारा तल्ख़ बातों को किया है
खड़ी बातें उतरती कब गले है !"
दिगम्बर नासवा जी,
हटाएंआपका बहत शुक्रिया ।आपकी टिप्पणी गागर में सागर है।
मांसूर अली जी ... नमन है ... कमाल का शेर है ये भी
हटाएंरमेश जी ने अपनी गजल के माध्यम से बहुत से संदेश दिये हैं ,उनकी सोच और कहन को नमन ! पूरी गजल सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करती चलती है ! रमेश जी को ढेरों बधाई !
जवाब देंहटाएंनीरज जी,
हटाएंआपकी खासियत है हर व्यक्ति को प्रेरित करना ।मुझे आपकी टिपण्णी में जितना रस आता है वो पोस्ट पर भी नहीं आता ।बहत शुक्रिया।
दिनेश जी की गजल का हर शेर पुख़्ता और ताजगी लिये हुये है! कुऐं के मेंढक वाली बात तो कमाल की कही है ! ऐसे प्रयोग ही गजल को ज़िंदा रखे हुये हैं ! बधाई दिनेश जी !
जवाब देंहटाएंमंसूर साहब को पढना हमेशा हीनएक गजब का अनुभव होता है ! जिस बला की सादगी से वो गहरी बात करते है वो कमाल है और ऐसे कमाल वो लगातार करते आये हैं ! निहायत सलीक़े से पिरोये हुये बेमिसाल लफ़्ज उनकी गजलें को नई ऊँचाइयों प्रदान करते हैं ! जब वो तंज करने की ठान लेते हैं तो फिर उनके मुक़ाबले कोई नहीं टिकती ! अदम गोंडवी साहब जैसा फक्कड़ पन उनकी गजलें में झलकता है ! वो हर महफिल की शान हैं ! मैं उन्हें सलाम करता हूँ !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नीरज जी, मगर आप अतिश्योक्ति नही कर रहे है ! मैं तो महज़ तबअ-आज़माई कर लेता हूँ।
हटाएं"चने के झाड़ पर तो न चढ़ाए
अभी तो तिफ़्ले मकतब ही हुए है !"
नीरज जी की बात से सहमत हूँ मैं भी ...
हटाएंचलो दीवाली में अच्छा करें कुछ,
जवाब देंहटाएंग़रीबों की गली में बैठते हैं ।
संजय जी इस ब्लॉग परिवार के पुराने सदस्य हैं उनकी गजलें का इंतज़ार रहता है ! इस बार की तरही में भी हर बार की तरह उन्होंने धमाके दार गजल कही है ! हर शेर ख़ूबसूरती से तराशा हुआ है ! मेरी दिली दाद !
बहुत बहुत शुक्रिया नीरज गोस्वामी जी हौसला अफजाई के लिए ।
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया नीरज गोस्वामी जी हौसला अफजाई के लिए ।
हटाएंहमारे ग़म में वो कब घुल रहे हैं
जवाब देंहटाएंसुना है फिर कहीं मिलजुल रहे हैं
इंसानी फ़ितरत को इससे बेहतर बयॉं नहीं किया जा सकता! नुसरत जी की गजलें पुख़्ता होती हैं और इसी वजह से वो देश की नामी गरामी शायरा कहलाती हैं ! उनकी ग़ज़लों पर क्या कहूँ बस पढ कर दाद दिये जा रहा हूँ !
राकेश जी इस परिवार के वरिष्ठ सदस्य हैं विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं उनकी सोच और लेखनी को नमन करता हूँ ! वो हमेशा ही अद्भुत गीतों की रचना करते आये हैं ! लेखन के स्तर में निरंतर उच्चका बनाये रखना उन्हीं के बस की बात है ! दिवाली पर रचा ये गीत भी संग्रहणीय है !
जवाब देंहटाएंभाईजी, इतनी ज्यादा खिन्चाई मत करो. वैसे मैने पंकजजी को लिखा था कि जहां गोस्वामीजी, कपूर साहब, हाशमीजी, नुसरतजी, दानी, द्विज जैसे शायर मौजूद हों, मेरा तो हौसला भी नहीं होता गज़लों की गली की ओर देखने का. आपकी खबर तो जनवरी २०१७ में बम्बई में ही ली जायेगी.
हटाएंलावण्या दी के दीपक को प्रतीक मान कर रचे इस गीत पर क्या कहूँ उन्हें प्रणाम करता हूँ और दुआ करता हूँ कि वो हमें अपने गीतों से सालों साल भाव विभोर करती रहें !
जवाब देंहटाएंसभी के प्रति ह्रदय से आभार!पंकज ने त्रुटि को भी सम्मान दिला दिया,उन्हें विशेष स्नेह!बहुत अलग रंगों की ग़ज़लें हुई हैं सबकी, सबको बधाई। दीपोत्सव की सभी को मंगल कामनाएं!!
जवाब देंहटाएंअश्विनी रमेश जी की ग़ज़ल ने दीपोत्सव के खूबसूरत नज़ारे प्रस्तुत करते हुए सकारात्मक सोच के रंगबिरंगे दीपक प्रस्तुत किये हैं। वाह।
जवाब देंहटाएंदिनेश कुमार जी ने उजाले का परचल लिये खड़े नन्हे दीपको से बात आरंभ करते हुए पैने कटाक्ष भी किये, हौसला भी बॅंधाया और प्रदूषण जैसा विषय छूते हुए जिस तरह अंदर के अंधकार की बात खूबसूरती से प्रस्तुत की है। वाह।
मंसूर अली हाशमी जी ने अपने अनुभव से हर तरह के शेर प्रस्तुत किये हैं हमेशा की तरह। पैनी दृष्टि और स्पष्टवादिता दोनों ग़ज़ल में स्पष्ट हैं। वाह।
डॉ. संजय दानी जी का गिरह का शेर वास्तव में सीधे सीधे अंधेरे को उसकी औकात दिखा रहा है। वाह।
नुसरत मेहदी जी ने रदीफ़ बदल दिया लेकिन शेर इतने प्रभावशाली कहे कि ग़ज़ल के रदीफ़-काफि़या पर ध्यान जाता ही नहीं है। यूँ भी लंबे रदीफ़ के साथ निर्वाह कठिन होते हुए भी उसे बहुत खूबसूरती से निबाहा है। वाह।
राकेश खंडेलवाल जी के गीत बस पढ़ने और आनंद लेने के हैं। शब्द चयन से गीत की गुँथन बॉंधे रखती है। वाह।
लावण्या दीपक शाह जी ने गीत के माध्यम से दीपोत्सव की समग्र परिकल्पना बड़ी खूबसूरती से प्रस्तुत की है। वाह।
आज की प्रस्तुत तो सप्तक हो गयी। वाह-वाह।
धन्यवाद आदरणीय
हटाएंबहत शुक्रिया जनाब तिलकराज कपूर जी।
हटाएंआदरणीय तिलकजी, आपका स्नेह है जो आशीष बन कर सदा साथ रहता है और कलम को प्रेरणा देता है.
हटाएंबहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय अश्विनी जी ने। उन्हें बहुत बहुत बधाई इस शानदार ग़ज़ल के लिए।
जवाब देंहटाएंबहत शुक्रिया धर्मेंद्र जी।
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हटाएंदिनेश जी ने उजाले का परचम.......... से शुरुआत करके एक से बढ़कर एक शे’र कहे हैं। किस को छोड़ें किस को कोट करे। बहुत बहुत बधाई उन्हें इस इस शानदार ग़ज़ल के लिए।
जवाब देंहटाएंमंसूर साहब ने हर बार की तरह अपने अलग अंदाज़ में दो शानदार ग़ज़लों से मंच को नवाजा है और इस दीपावली की तरही में चार चाँद लगा दिये हैं। बहुत बहुत बधाई मंसूर साहब को।
जवाब देंहटाएंहमने तो इर्द-गिर्द पे कुछ कह दिया है बस
हटाएंसज्जनता है ये आपकी जो दाद दिये है ।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंआदरणीय दानी जी ने अँधेरा अब अँधेरे में रहेगा...... जैसा शे’र कहकर मुशायरे को नई ऊँचाइयाँ प्रदान की हैं। बहुत बहुत बधाई उन्हें इस शानदार ग़ज़ल के लिए।
जवाब देंहटाएंआदरणीया नुसरत जी ने अलग ही काफ़िया लिया है और इस तंग काफ़िये में भी बेहद शानदार अश’आर कहे हैं। एक एक शे’र ग़ज़ल में नगीने की तरह जड़ा है। ढेरों दाद उन्हें इस शानदार ग़ज़ल के लिए।
जवाब देंहटाएंआदरणीय राकेश जी पर जो कहा जाय सो कम है। उनके बिम्बों और प्रतीकोंं को समय धीरे धीरे पढ़ेगा और जब पूरा पढ़ लेगा तो उन्हें गीत सम्राट की उपाधि से विभूषित करेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। हमेशा की तरह बहुत बहुत बधाई उन्हें मंच को इन सुन्दर गीतों से नवाजने के लिए।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंसज्जन जी, अंधों में काना राजा वाली बात है न . गज़लों की प्रतियोगिता में मैने तो केवल पैबन्द लगाने जैसा काम किया है. आपका बड़प्पन है
हटाएंआदरणीया लावण्या जी ने थोड़े में ही सबकुछ कहकर गागर में सागर भर दिया है। उन्हें इस सुमधुर गीत के लिए बारंबार बधाई।
जवाब देंहटाएंअश्विनीजी का ज़ेहन के अंधेरे ंइटाना, दिनेश का सोच के दायरे बताना और दानीजी का गरीबों की गली में बैठना- बेहद खूबसूरती से कही हुई बातें.
जवाब देंहटाएंनुसरतजी और हाशमी के विषय में अगर कोई एक शेर हो तो कहा जाये.
लावण्यजी का सन्देशात्मक गीत उनके सौष्ठव लेखन का प्रतीक है.
बहत शुक्रिया1 जी।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपंकज जी सबसे पहले आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंअश्विनी रमेश जी
दिनेश कुमार जी
मंसूर अली हाशमी जी
डा. संजय दानी जी
राकेश खण्डेलवाल जी
नुसरत मेहदी साहिबा
लावण्या दीपक शाह साहिबा
आपके उम्दा कलाम को पढ़कर दिल बाग़ बाग़ हो गया। सभी को मुबारकबाद
Bahut hi khubsurat gazale - uff - sabhi ek se badhkar ek. sabhi shayaro ko mubarakbaad!
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