शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

दीपावली का त्योहार सामने है, आइये दीपावली के इस त्योहार को तरही मुशायरे की रंगबिरंगी, झिलमिलाती ग़ज़लों से मनाएँ।

मित्रो बहुत समय हो जाता है आजकल ब्लॉग पर आए हुए। असल में व्यस्तता का क्रम इतना बढ़ रहा है कि चाहते हुए भी यहाँ आना नहीं हो पाता है। जैसा कि मैंने आपको पिछले आयोजन के समय बताया था कि मेरे लिए ब्लॉग राइटिंग का मतलब माइक्रोसाफ़्ट का विंडोज़ लाइव राइटर था। असल में यह साफ़्टवेयर इतना अच्छा था कि उससे ब्लॉगिंग आसान हो जाती थी। लेकिन पिछले साल पता नहीं किस कारण से गूगल ब्लॉगर ने उस साफ़्टवेयर के साथ सारे संबंध समाप्त कर दिए। मतलब यह कि विंडोज लाइव रायटर के द्वारा आप ब्लॉगर पर कुछ भी पोस्ट नहीं कर सकते। उसके बाद से ब्लॉगिंग का मेरा काम कुछ कम हो गया। इस बीच पता चला कि उसके स्‍थान पर एक नया साफ़्टवेयर आया है ओपन लाइव रायटर, लेकिन उसके बारे में भी यह कि वह विंडोज़ सेवन या उसके बाद की ऑपरेटिंग सिस्टम्स पर ही चलता है। मेरा पर्सनल कम्‍प्यूटर विंडोज़ एक्सपी पर चलता था इसलिए यह साफ़्टवेयर भी मेरे लिए पत्‍थर का अचार ही था। खैर अब अपने कम्‍प्यूटर को अपडेट कर दिया है तथा अब यह पोस्ट ओपन रायटर से ही लिख रहा हूँ। यह साफ़्टवेयर विंडोज़ लाइव रायटर के जैसा ही है, बल्कि कई सारे ऑप्‍शन्स उसकी तुलना में ज्‍़यादा बेहतर हैं। तो यह एक बड़ी बाधा जो मेरे और ब्लॉगिंग के बीच थी वह दूर हुई। और अब यह नई पोस्ट जो है यह नए साफ़्टवेयर पर लिखी जा रही है।

जो कुछ भी बीत जाता है वह हमेशा सुहाना लगता है। पुराने दिन, पुरानी यादें, पुराने काम, सब जैसे स्मृतियों के कोश में जमा हो जाते हैं। ब्लॉगिंग भी हमारे लिए अब शनैः शनैः उसी प्रकार होता जा रहा है। मुझे याद आता है कि लगभग दस साल पहले ब्लॉगिंग नाम का यह परिवार बना था। और हम सब इसमें जुड़ते चले गए थे। कितनी खुशियाँ, कितने हंगामे, कितने आयोजन हमने इस परिवार में किए। ऐसा लगता था मानो यह आभासी दुनिया है ही नहीं, सचमुच का एक परिवार ही है। भले ही ब्लॉगिंग की दुनिया आज उस प्रकार की नहीं रही, लेकिन वह रिश्ते जो बने थे वह आज भी कायम हैं। कई रिश्ते तो खून के रिश्तों की तरह मज़बूत हो गए हैं। आभासी दुनिया में ब्लॉगिंग ने जो रिश्ते बनाए उनको ख़त्म करने का काम किया फेसबुक ने, जहाँ रिश्तों से ज्‍़यादा इस बात की अहमियत हो गई कि उसने मेरी पोस्ट को लाइक किया या नहीं किया। उसने कमेंट किया या नहीं किया। कमेंट तो ब्लॉग पर भी होते थे, लेकिन वह सहज और सरल होते थे आत्मियता से भरे हुए होते थे। यहाँ पर कमेंट कारणवश होते हैं फेसबुक की दुनिया में।

खैर जो हो सो हो लेकिन हमें तो अपनी परंपरा कायम रखते हुए दीपावली के मुशायरे का आयोजन करना है। इस बार सोचा है कि आसान सी बहर हो और आसान सा मिसरा हो। कम समय है तो यह इसलिए जिससे सब लोग समय पर काम कर सकें। तो बहुत सोचने के बाद एक छोटी सी बहुत ज़्यादा प्रयोग में आने वाली बहर को चुना है। बहरे हज़ज मुसद्दस महज़ूफ़ अल आख़िर जिसका वज़न है 1222-1222-122 मतलब मुफाएलुन-मुफाएलुन-फऊलुन(ललालाला-ललालाला-ललाला)। बहुत ही कॉमन बहर है। बहुत अच्छी ग़ज़लें इस पर बनती हैं। जगजीत सिंह साहब की गाई हुई नवाज़ देवबंदी जी की ग़ज़ल है –तिरे बारे में जब सोचा नहीं था, मैं तनहा था मगर इतना नहीं था। तिरे बारे (मुफाएलुन), में जब सोचा(मुफाएलुन), नहीं था (फऊलुन)। बहुत सीधी और सरल सी बहर है, छोटी बहर है। तो आइए इसी पर इस बार काम किया जाए। मिसरा कुछ यूँ है

उजाले के दरीचे खुल रहे हैं

मुफाएलुन-मुफाएलुन-फऊलुन
आसानी को और बढ़ाते हुए हम यह करते हैं कि हम “रहे” में “ए” की मात्रा को क़ाफ़िया बनाते हैँ और “हैं” को रदीफ़ बनाते हैं। इससे ग़ज़ल कहने में आसानी होगी। अभी तो दीपावली में करीब पन्द्रह दिन हैं, तब तक तो इस आसान बहर और आसाना रदीफ़ क़ाफ़िया पर आप जैसे गुणी लोग ग़ज़ल कह ही सकते हैं।

और अंत में एक छोटा सा आमंत्रण आप सबके लिए यदि आप आएँगे तो अच्छा लगेगा । पर केन्द्रित कार्यक्रम आयोजित किए तथा अब उसी क्रम में "मन्तव्य-भोपाल" द्वारा "अकाल में उत्सव" उपन्यास पर केन्द्रित पुस्तक चर्चा का अयोजन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता देश के शीर्ष व्यंग्यकार पद्मश्री डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी करेंगे, विशेष वक्ता के रूप में सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार, आलोचक तथा दूसरी परंपरा के संपादक डॉ. सुशील सिद्धार्थ  उपन्यास पर अपना वक्तव्य प्रदान करेंगे। उपन्यास पर प्रारंभिक वक्तव्य श्री राजेश मिश्रा  देंगे। कार्यक्रम का संचालन श्री समीर यादव करेंगे। कार्यक्रम भोपाल के पॉलीटेक्‍निक चौराहा स्थित "हिन्दी भवन" के "महादेवी वर्मा सभागार" में 16 अक्टूबर रविवार शाम 5.30 बजे आयोजित किया जाएगा। आप आएँगे तो आपके इस मित्र को अच्छा लगेगा, आशा है आप आएँगे।

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23 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह सर. बहुत अच्छा लगा इतने समय बाद आपकी पोस्ट पढ़ने मिली. मास्साब मैने आपको बहुत ई मेल किए. पर आपने जवाब नही दिया. कृपया मुझे भी इस मुशायरे में हिस्सा लेने की इजाज़त दें. धन्यवाद

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  2. मैं लिखने ही वाला था आपको कि इस बार दिवाली के मुशायरे के लिए ग़ज़ल मिसरा निश्चित नहीं हुआ । अभी पोस्ट पढ़कर खुशी हुई जिसमें अच्छी जानकारी भी शेयर की गयी है

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  3. और कुछ हो न हो होली दिवाली भी जुड़े रहेंगे तो लगेगा पूरा साल मिलते रहे हैं ...
    सबसे पहले तो अकाल में उत्सव पुस्तक चर्चा की अग्रिम शुभकामनायें ... हमें कई बार लगता है बहुत कुछ छूट जाता है विदेश में रहते हुए ... पर आज के सोशल माध्यम कुछ हद तक इस कमी को पूरा कर देते हैं ... अपना परिवार आज भी ऐसे ही बना हुआ है इसका श्रेय आपकी जोड़े रखने की क्षमता को जाता है ... आशा है सब यूँ ही साथ साथ रहेंगे ... तरही मिसरा दिवाली के रंग में ही रंगा हुआ है ... उम्मीद है मजा आने वाला है ...

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  4. गुरूजी,

    इस दीपावली भी आपसे मेहनत करवाने में कोई कसार नहीं छोड़ेंगे....वाकई इन्तजार रहता है तरही का।

    दीपोत्सव की अग्रिम शुभकामनायें परिवार के सभी सदस्यों को...

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  5. गुरूजी,

    इस दीपावली भी आपसे मेहनत करवाने में कोई कसार नहीं छोड़ेंगे....वाकई इन्तजार रहता है तरही का।

    दीपोत्सव की अग्रिम शुभकामनायें परिवार के सभी सदस्यों को...

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  6. गज़ल के वास्ते तरही मिली है
    सुबह कचनार के जैसी खिली है
    बधाई हो, ये उत्सव मन रहे हैं
    उजाले के दरीचे खुल रहे हैं

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  7. जिसका मुझे था इन्तज़ार..... हा हा हा हा हा ग़ज़ल तो गुरुजी की डाँट पडेगी तब ही कहेंगे। पर दीवाली होली पर इस ब्लॉग पर आना ऐसा लगता है जैसे बचपन मे गाँव जाया करते थे त्योहार पूरे परिवार के साथ मनाने।
    बहुत खुश हूँ। सबसे मिलना
    विलना गप्पें वप्पे हो।

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    1. गोलगप्पों की कतारें लग रही हैं
      और पारुल आज गुझिया तल रही है
      और कुछ शिकवे शिकायत हो रहे हैं
      उजालों के दरीचे खुल रहे हैं

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    2. जी बिलकुल, दिवाली होली पर इस ब्लॉग पर आना.... जैसे बचपन मे गाँव जाया करते थे परिवार के साथ त्योहार मनाने।

      हटाएं
  8. जिसका मुझे था इन्तज़ार..... हा हा हा हा हा ग़ज़ल तो गुरुजी की डाँट पडेगी तब ही कहेंगे। पर दीवाली होली पर इस ब्लॉग पर आना ऐसा लगता है जैसे बचपन मे गाँव जाया करते थे त्योहार पूरे परिवार के साथ मनाने।
    बहुत खुश हूँ। सबसे मिलना
    विलना गप्पें वप्पे हो।

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  9. Blog kya band hua Ghazal kehne ki jaise aadat hi chhoot si gayi...Aap ne fir se ummiid jagayi hai dekhte hain soye zehan men ghazal karvat badalti hai ya nahi :)
    Blog bhale n raha ho lekin us se jude log aaj bhi ek hi parivar ke saday jaise hain.

    Akaal me utsav ne jo itihaas racha hai uski misaal milna mushkil hai...aap isi tarah satat sahitya seva karte hue utrottar kaamyabi ki nayi nayi bulandiyoon ko chhoote rahen ...Amin.

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  10. स्‍वागत है। इस बार भरमार रहनी है, तैयार रहें, आपका काम बढ़ने वाला है।

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  11. यक़ीनन बह्र आसान है।
    और जब चीज़ें आसान दिखती हैं तो अपेक्षाएं बढ़ती हैं, जिन पर खरा उतरना आसान नहीं होता।

    जैसे कि द्विज sir कहते हैं...

    आसान कहना इतना आसान भी नहीं।

    बहरहाल पूरी कोशिश रहेगी कुछ नया कहने की।
    नही पढ़ने का लुत्फ़ तो ज़रूर लेंगे

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  12. यक़ीनन बह्र आसान है।
    और जब चीज़ें आसान दिखती हैं तो अपेक्षाएं बढ़ती हैं, जिन पर खरा उतरना आसान नहीं होता।

    जैसे कि द्विज sir कहते हैं...

    आसान कहना इतना आसान भी नहीं।

    बहरहाल पूरी कोशिश रहेगी कुछ नया कहने की।
    नही पढ़ने का लुत्फ़ तो ज़रूर लेंगे

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  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  14. उजालो के दरीचे खुल रहे है
    दिये जो बुझ गए थे जल गए है

    कमी ऐसी नहीं थी कोई उसमे
    मगर फिर भी किसी को खल गए है

    पुरानी शाख है बूढ़ा शज़र है
    खिले है फूल जो वो सब नए है

    थी कैसी प्यास जो आँखों में ठहरी
    जहाँ देखो वहीँ दरिया बहे है

    तुझे आवाज़ दी तुझको पुकारा
    तिरी यादों के घर खंडहर किये है

    यहाँ आया है क्या सैलाब कोई
    ये किसके कैसे है घर जो ढहे है

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  15. कमाल का मिसरा है।

    ग़ज़ल कहने की उमंग जगाने के लिए आभार!

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  16. कमाल का मिसरा है।

    ग़ज़ल कहने की उमंग जगाने के लिए आभार!

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  17. एक ही ब्लॉग के लिए ग़ज़ल लिखते हैं हम तो, फिर दीवाली पे तो ज़रूर ख्यालों को घर आना होगा!

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  18. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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