वर्ष बीत जाता है और पता ही नहीं चलता है, समय की रफ़्तार कुछ तेज़ हो गई है शायद। दीपावली का त्योहार एक बार फिर सामने आ गया है। वर्ष बीत जाने का संकेत देते हुए। महापर्व इसलिए भी इसे कहा जाता है क्योंकि यह त्योहार महापर्व कहलाने योग्य भी है। पाँच दिन का त्योहार और पाँच ही क्यों, सही मायने में तो यह उससे भी लम्बे समय तक चलता है। कई जगहों पर तो कार्तिक पूर्णिमा तक दीपावली का त्योहारा जारी रहता है। धनतेरस से प्रारंभ होकर वैसे भाई दूज तक चलने वाला होता है यह त्योहार। मुझे याद पड़ता है कि इस ब्लॉग की जब मैंने शुरूआत की थी, तो सबसे पहले दीपावली पर एक मुशायरे का आयोजन किया था। वह हालाँकि तरही मुशायरा नहीं था लेकिन उसमें सबने अपनी-अपनी कविताएँ प्रस्तुत की थीं। उसके बाद से सिलसिला चलता रहा। हर बार ऐसा लगता है कि कम लोग आएँगे, कम रचनाएँ आएँगीं लेकिन लोग दौड़ते-दौड़ते भी गाड़ी पकड़ ही लेते हैं और आ जाते हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ है और सम्मानजनक संख्या में रचनाएँ आ गई हैं। ब्लॉगिंग के इस सिमटते-सिकुड़ते समय में सम्मानजनक होना ही बहुत बड़ी बात है।
इस बार का मिसरा देखने में आसान था लेकिन जो देखने में आसान होता है वही कठिन होता है, यह भी सच बात है। छोटी बहर में पूरी बात का निर्वाह करना ज़रा कठिन होता है। लेकिन बहुत ही अच्छे से निर्वाह किया गया है। आज हम तीन शायरों के साथ मुशायरे को प्रारंभ करते हैं। तीनों गुणी शायर हैं। इनमें से एक हमारे मुशायरे में पहली बार आ रहे हैं। सौरभ पाण्डेय जी, गिरीश पंकज जी और डॉ. कुमार प्रजापति के साथ आज हम धनतेरस मनाने जा रहे हैं।
सौरभ पाण्डेय
इन आँखों में जो सपने रह गये हैं
बहुत ज़िद्दी, मगर ग़मख़ोर-से हैं
अमावस को कहेंगे आप भी क्या
अगर सम्मान में दीपक जले हैं
अँधेरों से भरी धारावियों में
कहें किससे ये मौसम दीप के हैं
सड़क पर शोर से कब है शिकायत,
चढ़ी नज़रें मुखर आवाज़ पे हैं !
प्रजातंत्री-गणित के सूत्र सारे
अमीरों के बनाये क़ायदे हैं
उन्हें शुभ-शुभ कहा चिडिया ने फिर से
तभी बन्दर यहाँ के चिढ़ भरे हैं
उमस बेसाख़्ता हो, बंद कमरे --
कई लोगों को फिर भी जँच रहे हैं
करेगा कौन मन की बात, अम्मा !
सभी टीवी, मुबाइल में लगे हैं
जला इस ओर दीपक तो उधर भी
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं
नयी फुनगी दिखी है फिर तने पर
बया की चोंच में तिनके दिखे हैं
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल। सौरभ जी की कहन में एक अलग बात होती है। उनकी ग़ज़लें कुछ अलग तरह की ध्वनियों से भरी होती हैं। यह बात अलग है कि उनका मन गीतों में ज़्यादा रमता है। मतले से ही जो कमाल शुरू किया है वह पूरी ग़ज़ल में बरकरार रहता है। सड़क पर शोर से कब है शिकायत, चढ़ी नज़रें मुखर आवाज पे हैं, बहुत ही गूढ़ बात को बहुत सरलता और तरलता के साथ कह दिया है। आवाज़ पर नज़रें होना गहरे संकेत दे रहा है। प्रजातंत्री गणित के क़ायदे वाला शेर भी एक बार फिर कई-कई अँधेरे कोनों की ओर इशारा कर रहा है। बहुत खूब शेर। नयी फुनगी का तने पर दिखना और बया की चोंच में तिनके नज़र आना शायद यही तो असली दीपावली होती है। गिरह का शेर भी खूब बना है। बहुत ही उम्दा ग़ज़ल, अलग ढंग और अलग रंग की ग़ज़ल। वाह वाह वाह ।
गिरीश पंकज
हमारे हाथ में नन्हें दिये हैं
अँधेरे खुदकशी करने लगे हैं
उजाले ने खुशी की तान छेड़ी
अँधेरे पढ़ रहे अब मर्सिये हैं
मनाए ख़ैर अब पसरा अँधेरा
मसीहा दीप ले कर चल पड़े हैं
अँधेरा बाँटते हैं जो जगत को
न जाने कैसी मिट्टी से बने हैं
चलो हम दीप उस घर भी जलाएँ
जहाँ रोते हुए बच्चे खड़े हैं
अँधेरा भाग जाएगा यहाँ से
''उजाले के दरीचे खुल रहे हैं ''
बुझाना दीप है आसान 'पंकज'
जलाएँ जो, वही इन्साँ बड़े हैं
गिरीश पंकज जी न केवल गुणी शायर है बल्कि बहुत अच्छे व्यंग्यकार भी हैं। व्यंग्यकार के रूप में उनकी ख्याति ने उनके शायर को छुपा रखा है। लेकिन जब-जब वह शायर सामने आता है तो कमाल की ग़ज़लें हमें मिलती हैं। यह एक मुसलसल ग़ज़ल है, एक ही विचार और एक ही विषय को साधती हुई ग़ज़ल। मतले से शुरू करके बहुत सुंदर शेर गिरीश जी ने कहे हैं। सकारात्मक विचार पूरी गज़ल़ में हैं। अँधेरे और उजाले के बीच के समर में उजालों का हामी ही कविता हमेशा होती है। मसीहा का दीप लेकर चल पड़ने वाला शेर हमारी सारी सकारात्मकता को एक दिशा प्रदान करने वाला शेर है। अँधेरा हर युग में होता है और उससे लड़ने वाला भी हमें हर युग में मिलता है। अँधेरा बाँटते हैं जो जगत को में दीप की मिट्टी की चर्चा शेर को नई ऊँचाई प्रदान करती है। गिरह का शेर भी बहुत ही सुंदर लगा है। वाह वाह वाह।
डॉ ' कुमार' प्रजापति
लगी है चोट दिल पे रो चुके हैं
कहाँ अब आँख में आँसू बचे हैं
किसी ने आपको समझा दिया है
भरोसा कीजिए हम आपके हैं
सभी मिट्टी में मिल जायेंगे इक दिन
सभी इन्सान मिट्टी के बने हैं
तमन्ना थी कि उनसे बात करते
ये हालत है कि बस चुप-चुप खड़े हैं
अभी उम्मीद है आने की उसके
अभी रौशन सितारों के दिये हैं
अँधेरे का कलेजा फट रहा है
'उजाले के दरीचे खुल रहे हैं'
'कुमार' उसको सुनाने की है चाहत
ग़ज़ल के शेर जो हमने कहे हैं
राउलकेला ओडिशा के कुमार जी ने बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है। पहली बार उनकी आमद हुई है लेकिन लग नहीं रहा है कि हम उनको पहली बार पढ़ रहे हैं, सुन रहे हैं। क्या कमाल की ग़ज़ल कही है उन्होंने। ग़ज़ब का मतला, और उस पर मिसरा सानी तो कमाल-कमाल है। और ठीक उसके बाद का शेर उफ़्फ़…. मिसरा सानी –भरोसा कीजिए, तो चौंका दे रहा है। मिट्टी में मिल जाने की बात कहने वाला शेर दर्शन और सूफ़ी रंग को लिए हुए है और खूब बना है। गिरह के पहले के दोनो शेर भी कमाल कर रहे हैं। अभी उम्मीद है आने की उसके में मिसरा सानी खूब बना है। कुमार जी को मिसरा सानी गढ़ना खूब आता है, यह एक ही ग़ज़ल से पता चला रहा है। मिसरा सानी किसी भी शायर के लिए सबसे कठिन स्वप्न होता है। गिरह और मकते का शेर दोनों ही उसी रंग में हैं जिस पर पूरी ग़ज़ल है। पहली आमद कमाल आमद, वाह वाह वाह।
तो यह हैं हमारे आज के ओपनिंग खिलाड़ी जो कमाल का प्रदर्शन कर रहे हैं। आप बस इस प्रदर्शन को देखिए और मेरी तरह वाह वाह करिए। आगे हम कल और कुछ शायरों को सुनेंगे। तब तक बजाते रहिए तालियाँ और आनंद लीजिए आज की तीनों ग़ज़लों का। आप सभी को धनतेरस की शुभकामनाएँ। शुभ-शुभ।
वाह वाह ... मुशायरे का आग़ाज़ धमाकेदार हुआ है ... सौरभ जी बहुत दिनों बाद पढ़ना हुआ आपको और एक बार फिर आपकी कलम के क़ायल हो गए ... अमावस के सम्मान में दीपक जलाने वाली बात बहुत कमाल लगी ... करेगा लॉन माँ की बात ... हाथ के हालात पे सही चुटकी ली है ... और गिरह का शेर तो तालियाँ बजाने का माँ करता है ... सौरभ जी ने दिशा दे दी है मुशायरे को 👏👏👏
जवाब देंहटाएंकृपया करेगा लॉन माँ को करेगा कौन मन पढ़ें और हाथ को आज पढ़ें ... माँ को मन पढ़ें ... गूगल के ग़ुलाम हैं हम और ठीक से नहीं देखते पहले ...
हटाएंगुरुवर,
जवाब देंहटाएंसमस्त गुरुकुल को दीपोत्सव का हार्दिक अभिनन्दन, शुभकामनायें....
सौरभ जी : प्रजातंत्री गणित बिलकुल अनूठा बिम्ब है...बहुत ही सुन्दर गजल कही है....
गिरीश जी : के साथ काठमांडू में बिताया हुआ एक एक लम्हा जिवंत हो उठा, बहुत ही जाहिं तबियत के साहित्यसेवी...
अँधेरे को ललकारती हुई गजल अपनी चमक दमक के साथ... चलो हम दिप उस घर भी जलाये / जहां बच्चे रट खड़े हैं.... वाह कितना सुन्दर कहन है।
डॉ कुमार प्रजापति : सूफ़ियत मिजाज का शी'र बहुत हु खूब " सभी मिटटी में मिल जाएंगे एक दिन / सभी ई सां मिट्टी बने हैं ।
देखियेगा, प्लेटफार्म पर दौड़ रहें हैं ट्रेन पकड़ में आती है या नहीं... कोशिश जरू जारी है...
त्यौहारी माहौल को बनाती हुई पहली कड़ी...
गुरुवर,
जवाब देंहटाएंसमस्त गुरुकुल को दीपोत्सव का हार्दिक अभिनन्दन, शुभकामनायें....
सौरभ जी : प्रजातंत्री गणित बिलकुल अनूठा बिम्ब है...बहुत ही सुन्दर गजल कही है....
गिरीश जी : के साथ काठमांडू में बिताया हुआ एक एक लम्हा जिवंत हो उठा, बहुत ही जाहिं तबियत के साहित्यसेवी...
अँधेरे को ललकारती हुई गजल अपनी चमक दमक के साथ... चलो हम दिप उस घर भी जलाये / जहां बच्चे रट खड़े हैं.... वाह कितना सुन्दर कहन है।
डॉ कुमार प्रजापति : सूफ़ियत मिजाज का शी'र बहुत हु खूब " सभी मिटटी में मिल जाएंगे एक दिन / सभी ई सां मिट्टी बने हैं ।
देखियेगा, प्लेटफार्म पर दौड़ रहें हैं ट्रेन पकड़ में आती है या नहीं... कोशिश जरू जारी है...
त्यौहारी माहौल को बनाती हुई पहली कड़ी...
गिरीश जी की मूसलाधार ग़ज़ल का मतला हाई इतना ग़ज़ब है की दिवाली का पूरा निचोड़ निकल आता है ...अंधेरे का मर्सिया पढ़ना और रोते हुए बच्चों के बीच दीपक जलाने ख़्वाहिश नए आयाम दे रहें है ग़ज़ल को ... गिरीश जी को बहुत शुभकामनाएँ इस ज़बरदस्त ग़ज़ल पर ...
जवाब देंहटाएंनासवा जी, और तिवारी जी, हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंप्रजापति जी का स्वागत है इस गुरुकुल में ... सामवेदनशील मटके के साथ दिल को छूने वाले शेर कहे हैं उन्होंने ... मिट्टी के दिए वाला शेर तो कमाल का है ...और गिरह तो कमाल बांधी है ... अंधेरों से ही उजालों के रास्ते खुल रहे हैं
जवाब देंहटाएंसुबीर जी, आपके प्रोत्साहन से कभी-कभी लिखने की कोशिश करता हूँ. आभार. पांडेय जी और प्रजापतिजी ने कमाल कर दिया। शुभ धनतेरस, शुभ दिवाली
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंतीनों सम्माननीय गजलकारों को उनकी बेहतरीन गजलों के लिए धन्यवादव बधाई । साथ ही आप सबको दीप पर्व की शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंतीनों सम्माननीय गजलकारों को उनकी बेहतरीन गजलों के लिए धन्यवादव बधाई । साथ ही आप सबको दीप पर्व की शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंसुबीर-संवाद-सेवा परिवार के सभी गुनीजनो जो दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंमुशायरे की शुरुआत धमाकेदार हुई है. तीनो गजलें दमदार हैं. सौरभ पण्डे जी, गिरीश पंकज जी और डा. कुमार प्रजापति जी को ढेरों दाद.
सौरभ जी की ग़ज़ल का मतला बहुत पसंद आया...टीवी मोबाइल वाला शेर सामयिक एवं सटीक. बया की चोंच में तिनके दिखे है. क्या बात है. दिली मुबारकबाद.
गिरीश जी: अँधेरे ख़ुदकुशी करने लगे हैं. वाह. गिरह प्रभावशाली है मक्ता तो गजब है... बुझाना दीप है आसान पंकज..जलाएं जो वही इंसा बड़े हैं. दाद कबूल करें.
डा.प्रजापति जी: मतला तो इतना बढ़िया है की क्या कहें. बहुत खूबसूरत. कहाँ अब आँख में आंसू बचे हैं.... भरोसा कीजिए हम आपके हैं बहुत सुंदर शेर है. सभी इंसान मिटटी के बने हैं... चुप चुप खड़े हैं, बहुत खूब. मक्ता भी ज़ोरदार. दिली मुबारकबाद.
आप सबों को ग़ज़ल पसंद आयी. शुक्रिया धन्यवाद. आपकी सराहना लिखने की प्रेरणा देगी.
जवाब देंहटाएंभाई गिरीश जी को अशेष धन्यवाद आप सबों से मिलाने हेतु.
सबसे पहले तो मैं भाई पंकज सुबीर को बधाई देता हूँ इस खूबसूरत शुरुआत के लिये। प्रस्तुत ग़ज़लों पर बड़ी आत्मीयता से अपनी बात रखते हुए कहन के विभिन्न पक्षों पर चर्चा आरंभ की है। और यह चर्चा ही है जो पूर्व में प्रस्तुत तरही आयोजनों में भाग लेने वालों को वह दिशा देती रही है जो उन्हें ग़ज़ल विधा में बहुत आगे तक ले आयी है और तथा आगे भी ले जायेगी।
जवाब देंहटाएंसौरभ भाई मत्ले के तत्काल बाद के शेर में अमावस के सम्मान में दीपक की बात से आपने झकझोर दिया और उसके बाद आखिरी शेर में नयी फुनगी तक पहुँचते पहुँचते आस-पास बिखरे प्रश्नों को जिस तरह से छुआ वह प्रशंसनीय है।
गिरीश पंकज जी मत्ले में नन्हे से दिये से अंधियार की हार की बात कहते हुए मक्ते के शेर में एक ऐसी बात कह गये जो मानसिक अंधियार में डूबों को सोचने पर मजबूर करता है।
डॉ कुमार को पहली बार पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ है लेकिन कहन की दृष्टि से हर शेर की पुख़्तगी कह रही है कि शेर कहना इनके लिये उतना ही सहज व सरल है जितना ऑंखों देखी का तत्समय वर्णन।
बेहद खूबसूरत ग़ज़लों से शुरुआत हुई है।
वाह, वाह और वाह।
आदरणीय गिरीश जी और आदरणीय कुमार प्रजापति की ग़ज़लों के लिए हार्दिक बधाइयाँ. गिरीश जी की ग़ज़लों से वाकिफ़ रहा हूँ, कुमार जी की ग़ज़लों को सुनना विशेष रहा.
जवाब देंहटाएंमेरी ग़ज़लों पर आप सुधीजनों की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..
-सौरभ, नैनी, इलाहाबाद
दीपावली के शुभागमन पर सुन्दर गजल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंतीनों गजलें बेहतरीन हैं ..
आपको दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (29-10-2016) के चर्चा मंच "हर्ष का त्यौहार है दीपावली" {चर्चा अंक- 2510} पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंदीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सबसे पहले तो सभी मित्रों को ज्योतिपर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ। तीनों रचनाकारों ने शानदार शुरुआत की है। आदरणीय सौरभ जी ने पहली ही गेंद पर दस रन जड़ दिये हैं। अमावस के सम्मान में दीप जलने का बिम्ब बिल्कुल नया है, इसके लिए उन्हें बहुत बहुत बधाई। उसके बाद सड़क पर शोर वाला शे’र गजब हुआ है। सचमुच आवाज़ से बुराई को कोई दिक्कत नहीं जब तक आवाज़ स्पष्ट रूप से उसके ख़िलाफ़ न हो। उमस बेसाख़्ता....., करेगा कौन.... और गिरह का शे’र भी शानदार हुआ है। बहुत बहुत बधाई सौरभ जी को।
जवाब देंहटाएंआदरणीय गिरीश पंकज जी ने मत्ले से ही बेहद शानदार शुरुआत की है। हर शे’र शानदार हुआ है। चलो हम दीप उस घर ......., गिरह के शे’र और आखिरी शे’र ने मिलकर इसे मुकम्मल ग़ज़ल बना दिया है। बहुत बहुत बधाई गिरीश जी को।
हटाएंआदरणीय प्रजापति जी पहली बार आ रहे हैं मगर उनकी ग़ज़ल पढ़कर लगता है वो हमेशा से इसी ब्लॉग का हिस्सा रहे हैं। एक एक शे’र पर सौ सौ बार दिली दाद।
हटाएंवाह। तीनों ही ग़ज़लें एक से बढ़कर एक हैं। बधाई सुंदर आगाज़ के लिए।
जवाब देंहटाएंआज सुबह सुबह ही देखा कि सुबीर संवाद सेवा पर घमासान शुरुआत की है पटाखों और बमों ने. सौरभजी, गिरीशजी और प्रजापतिजी की सुन्दर गज़लें रंगबिरंगी फुलझड़ियों की तरह दीप्तिमान हैं. केवल एक या दो शेर चुन पाना असम्भव है. पूरीए तरह से प्रभाविक गज़लें. तीनों को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंअमावस को कहेंगे आप भी क्या
जवाब देंहटाएंअगर सम्मान में दीपक जले हैं
सौरभ जी की ग़ज़ल के ये शेर खासतौर पर असरदार लगे:
प्रजातंत्री-गणित के सूत्र सारे
अमीरों के बनाये क़ायदे हैं
करेगा कौन मन की बात, अम्मा !
सभी टीवी, मुबाइल में लगे हैं
गिरीश पंकज जी की मुसलसल ग़ज़ल के तमाम शेर ही यों तो असरदार और वज़नदार है ,लेकिन ये खासतौर पर असरदार हैं
उजाले ने खुशी की तान छेड़ी
अँधेरे पढ़ रहे अब मर्सिये हैं
अँधेरा बाँटते हैं जो जगत को
न जाने कैसी मिट्टी से बने हैं
चलो हम दीप उस घर भी जलाएँ
जहाँ रोते हुए बच्चे खड़े हैं
बुझाना दीप है आसान 'पंकज'
जलाएँ जो, वही इन्साँ बड़े हैं
कुमार प्रजापति जी ने भी पहली बार बढ़िया ग़ज़ल कही है ।
प्रजापति जी के ये शेर असरदार लगे:
लगी है चोट दिल पे रो चुके हैं
कहाँ अब आँख में आँसू बचे हैं
किसी ने आपको समझा दिया है
भरोसा कीजिए हम आपके हैं
सभी मिट्टी में मिल जायेंगे इक दिन
सभी इन्सान मिट्टी के बने हैं
तमन्ना थी कि उनसे बात करते
ये हालत है कि बस चुप-चुप खड़े हैं
ब्लॉग जगत में अपनी पहचान बना चुके इस पारंपरिक मुशायरे की इससे बेहतर शुरूआत नहीं हो सकती ! तीन शायर और तीन गजलें एक से बढ कर एक - वाह वाह वाह !!!
जवाब देंहटाएंभाई सौरभ जी ने जिस अंदाज़ से मतला कहा है और फिर उसके बाद लगातार बेमिसाल शेर कहें हैं उससे अंदाज़ा हो गया है कि इस बार भी ये तरही मुशायरा नई ऊँचाइयों छूने वाला है ! अमावस के सम्मान में दियों के जलने की बात पहली बार पढने सुने में आई है ! सौरभ जी विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं ये बात वो अपनी रचना से सिद्ध करते आये हैं और इस बार भी कर रहे हैं - बेजोड गजल! वाह
जवाब देंहटाएंभाई गिरीश जी की मुसलसल गजल की जितनी तारीफ़ की जाये कम होगी ! हर शेर में अंधेरे उजाले को नये अंदाज़ में प्रस्तुत करना उनके हुनर की ऊँचाइयों को दर्शाता है - अंधेरे के मर्सिया पढने वाले मिसरे पर ढेरों तालियों -लाजवाब गजल !
जवाब देंहटाएंभरोसा कीजिये हम आपके हैं जैसे मिसरे से आग़ाज़ करने वाले भाई कुमार पर आँखें बंद करके भरोसा किया जा सकता है ! ये जनाब अब तक थे कहॉं ? सहज सरल भाषा में कही उनकी गजल उनके बेहतरीन शायर होने का ऐलान करती है ! मेरी तमन्ना है कि मैं उनका लिखा और पढ़ीं लेकिन कहॉं कैसे ये नहीं जानता ! उनकी इस खूबसूरत मुकम्मल गजल के लिये ढेरों दाद!
जवाब देंहटाएंदिवाली के उज्जवल पर्व में ग़ज़ल के आग़ाज़ एक बेहद मुन्नासिब व सुंदर प्रयास है जिसके लिए सुबीर जी को बधाई व सभी को पर्व की शुभकामनाएँ ।।।।
जवाब देंहटाएंग़ज़ल की परवाज़ आसमान चूने लगी है,,,, तीन ग़ज़लें अपने आबोताब से सजी हुई हैं, बधाई बधाई बधाई.....
कुमार प्रजापति जी...सभी मिट्टी के ...
गिरीश पंकज जी ,,,।वाह के सिवा कुछ और नहीं कहा जा सकता...चलो हम दीप .. जहाँ रोते हुए बच्चे खड़े हैं.. बेहतरीन शेर...के लिए दाद
सौरभ जी ।.... शब शब गढ़कर बनी है ग़ज़ल .. न आँखों .. मटके के साथ हुमक़दम सभी शेर उजालों से भरपूर है
१२२२ १२२२ १२२
किया आग़ाज़ है इतना है मधुर ये
लगा जाने क्यों ये मन गुनगुनाने
ढेरों बधाई
किया आग़ाज़ है इतना मधुर ये
जवाब देंहटाएंलगा जाने है क्यों मन गुनगुनाने
आदरणीय सुधीजनो !
जवाब देंहटाएंमेरे प्रयास को मिला आपका मुखर अनुमोदन मुझे न केवल उत्साहित कर रहा है, बल्कि रचनाकर्म के प्रति सतत सचेष्ट रहने के लिए भी सुप्रेरित कर रहा है.
आप सभी के प्रति सादर धन्यवाद तथा आप सभी को दीपावली की अनेकानेक शुभकामनाएँ
शुभ-शुभ
-सौरभ, नैनी, इलाहाबाद
सौरभ पाण्डेय:
जवाब देंहटाएंनये अन्दाज़ के अशआर कहे है।
सड़क पर शोर से कब है शिकायत,
चढ़ी नज़रें मुखर आवाज़ पे हैं !
बहुत ख़ूब।
( सड़क के शौर से बस ये शिकायत
नही क्यों कान के पर्दे फटे है!)
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गिरीश पंकज:
"उजाले ने खुशी की तान छेड़ी
अँधेरे पढ़ रहे अब मर्सिये हैं।”
उम्दा ग़ज़ल कही है।
(उजाले की दियो की बात कर के
ग़ज़ल को रौशनी से भर दिये है)
निभाया ख़ूब है मतला ता मक्ता
ग़ज़ल को भी नज़म सी बुन दिये है)
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Kumar prajapati:
अँधेरे का कलेजा फट रहा है
'उजाले के दरीचे खुल रहे हैं'
तरही मिसरे को ख़ूब बांधा है, ख़ास पसंद आया।
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तमन्ना थी कि उनसे बात करते
ये हालत है कि बस चुप-चुप खड़े हैं.
प्रोत्साहन ! स्वरूप पेश है़.......
(शराफत की भी हद होती है साहब
'इलु' {ILU}कहने में क्यों झिजके हुए है!)
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसौरभ पांडेय जी
गिरीश पंकज जी
डा. कुमार प्रजापति जी को बेहतरीन कलाम के लिए बधाई।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसौरभ पांडेय जी
गिरीश पंकज जी
डा. कुमार प्रजापति जी को बेहतरीन कलाम के लिए बधाई।