मित्रो कई बार ऐसा लगता है कि दस साल पहले जो परिवार इस ब्लॉग पर बना था, जुड़ा था, वह कहीं बिखर तो नहीं गया? लेकिन फिर एक मुशायरा होता है और सारा परिवार एक बार फिर से एकजुट हो जाता है। मुझे लगता है कि यह ब्लॉग अब हम सबके नास्टेल्जिया में जुड़ गया है। यह हम सबका वह चौपाल है जहाँ पर हम समय मिलते ही फिर फिर लौटना पसंद करते हैं। और कोई अवसर आते ही सूचनाएँ प्राप्त होना प्रारंभ हो जाती हैं कि क्या बात है इस बार मिसरा अभी तक नहीं दिया गया। इस ब्लॉग पर हमने यह परंपरा प्रारंभ की है कि यहाँ पर जो भी मिसरा दिया जाएगा वह किसी पूर्वरचित ग़ज़ल का न होकर एकदम नया होगा। कई बार इस नया देने के चक्कर में ही काफी देर हो जाती है मिसरा देने में। इस बार भी एक पूरी रात की मशक़्क़त के बाद यह मिसरा सुबह-सुबह मानों सपने में आया। बात चल रही थी इस बात की कि यह तरही मुशायरा अब हम सबकी आदत बन चुका है। जो लोग आते हैं वो आते ही हैं। और हाँ आपको ज्ञात ही होगा कि इस बीच दो पत्रिकाएँ शिवना साहित्यिकी तथा विभोम स्वर प्रारंभ की गईं हैं। आपमें से जिनके पते रिकार्ड में थे उनको पत्रिकाएँ भेजी जा रही हैं लेकिन जिनके पते नहीं है उनको नहीं भेज पा रहे हैं, अनुरोध है कि अपने डाक के पते प्रदान करने का कष्ट करें। और हाँ जिस प्रकार इस ब्लॉग के लिए आप ग़जलें भेजते हैं उसी प्रकार पत्रिकाओं के लिए भी ग़ज़लें भेजें।
आज रूप की चतुर्दशी है। कहीं कहीं इसको नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। आज सुबह जल्दी उठकर स्नान करने तथा विशेष रूप से उबटन लगाकर स्नान करने का बहुत महत्व है। तो आइये आज रूप की चतुर्दशी पर हम पाँच रचनाकारों की रूपवान रचनाएँ सुनते हैं। धर्मेंद्र कुमार सिंह, दिगम्बर नासवा, पूजा भाटिया, गुरप्रीत सिंह और संध्या राठौर प्रसाद के साथ मनाते हैं आज की यह रूप चतुर्दशी।
धर्मेन्द्र कुमार सिंह
एल ई डी की कतारें सामने हैं
बचे बस चंद मिट्टी के दिये हैं
दुआ सब ने चरागों के लिए की
फले क्यूँ रोशनी के झुनझुने हैं
उजाला शुद्ध हो तो श्वेत होगा
वगरना रंग हम पहचानते हैं
न अब तमशूल श्री को चुभ सकेगा
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं
करेंगे एक दिन वो भी उजाला
अभी केवल धुआँ जो दे रहे हैं
रखो श्रद्धा न देखो कुछ न सोचो
अँधेरे के ये सारे पैंतरे हैं
अँधेरा दूर होगा तब दिखेगा
सभी बदनाम सच इसमें छुपे हैं
एक बड़ी बात कह रहा हूँ और पूरी ज़िम्मेदारी के साथ कह रहा हूँ, आज इस ग़ज़ल ने दुष्यंत कुमार की याद दिला दी। वही तेवर, वही कटाक्ष, वही तंज़। इस ग़ज़ल के एक-एक शेर के अर्थ में जाइये और फिर सोचिए कि यह शेर कहाँ-कहाँ चोट कर रहा है। सलीक़ा यही होता है ग़ज़ल का जिसमें सब कुछ कह दिया जाए बिना कुछ कहे। दुआ सबने चरागों के लिए की में झुनझुनों का फलना रोंगटे खड़े कर देता है। और अगले ही शेर में उजाले के शुभ्र होने की बात और रंगों की पहचान में एक बार फिर गहरा कटाक्ष किया गया है। करेंग एक दिन वो भी उजाला में अभी केवल धुँआ देने का ग़ज़ब तंज़ है, ग़ज़ब मतलब सचमुच का ग़ज़ब। रखो श्रद्धा में कुछ न सोचो के रूप में एक बार फिर शायर ने अपनी आक्रामकता को बरकरार रखा है। क्या कमाल के शेर रचे गए हैं इस ग़ज़ल में। याद आते हैं प्रेमचंद भी –क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे? बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।
दिगंबर नासवा
तभी तो दीप घर घर में जले हैं
सजग सीमाओं पर प्रहरी खड़े हैं
जले इस बार दीपक उनकी खातिर
वतन के नाम पर जो मर मिटे हैं
सुबह उठ कर छुए हैं पाँव माँ के
मेरे तो लक्ष्मी पूजन हो चुके हैं
झुकी पलकें, दुपट्टा आसमानी
गुलाबी गाल सतरंगी हुए हैं
अमावस की हथेली से फिसल कर
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं
पटाखों से प्रदूषण हो रहा है
दीवाली पर ही क्यों जुमले बने हैं
सफाई में मिली इस बार दौलत
तेरी खुशबू से महके ख़त मिले हैं
दिगंबर ने इस बार मतला उलटबाँसी करके रचा है, एकबारगी तो लगा कि मिसरा सानी को उला होना चाहिए और उला को सानी। लेकिन एक दो बार पढ़ा तो लगा कि नहीं उस उलटने का भी अपना एक आनंद है, सौंदर्य है। यदि किसी प्रयोग करने से सौंदर्य बढ़ रहा हो तो वह प्रयोग जायज़ माना जाता है। मतला खूब बन पड़ा हे। इसलिए भी क्योंकि इसमें हमारे प्रहरियों को सलामी दी गई है। मतले के बाद पहला ही शेर एक बार फिर सीमाओं पर शहीद हो रहे हमारे उन सपूतों के नाम है जिनके कारण हम दीपावली मना रहे हैं। इस पूरे ब्लॉग परिवार की और से इस शेर की आवाज़ में आवाज़ मिलाते हुए हमारे शेरों को नमन। दो अनूठे प्रेम के शेर भी इस ग़ज़ल में हैं झुकी पलकें और सफाई में मिली इस बार दौलत, यह दोनों ही शेर प्रेम की महक से भरे हुए हैं। तेरी खुशबू से महके खत मिलना तो कमाल है। बहुत ही सुंदर। गिरह का शेर भी बहुत ही सुंदर तरीके से बाँधा गया है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।
पूजा भाटिया
हमें प्यारे वो सारे वसवसे हैं
हमारे नाम जिन में जुड़ गए हैं
हमारे अश्क तकिये पर बिछे हैं
मगर हम ख़ाब में तो हँस रहे हैं
उसे मिलने से लेकर अब तलक हम
उसी के और होते जा रहे हैं
कहाँ तक हम फिरें सब को संभाले
हमारे अपने भी कुछ मसअले हैं
कुछ इक दिन तो सहारा देंगे दिल को
ये ग़म पिछले ग़मों से कुछ नए हैं
ये माना शहर बिल्कुल ही नया है
मगर चेहरे सभी देखे हुए हैं
अजी हाँ प्यार है हमको तुम्हीं से
चलो जाने दो अब दस बज चुके हैं
ज़मीं पर हर तरफ़ बिखरे ये ज़र्रे
सितारे थे..अँधेरा ढो रहे हैं
ख़बर सुनते ही आने की तुम्हारे
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं
पूजा जी भी हमारे मुशायरों में आती रहती हैं। इस बार प्रेम और विरह के खूबसूरत शेर उन्होंने रचे हैं। बहुत ही अलग तरीक़े से ये शेर कहे गए हैं। सबसे पहले बात उसे शेर की जो ग़ज़ब ही है, विशेषकर उसका मिसरा सानी –चलो जाने दो अब दस बज चुके हैं। क्या बात है ग़ज़ल के फार्मेट पर एकदम पूरा पूरा उतरता हुआ मिसरा। ग़ज़ब। हमारे अश्क तकिये पर बिझे हैं और ख़ाब में हँसने वाला शेर भी खूब बना है। विरोधाभास पर लिखी गई हर रचना पढ़ने वाले को अलग आनंद देती है। कुछ इक दिन तो सहारा देंगे दिल को में एक बार फिर से मिसरा सानी कमाल बना है। एकदम कमाल। सितारों के अँधेरा ढोने में एक बार फिर से विरोधाभास को सौंदर्य बढ़ाने के लिए बहुत ही खूबसूरत तरीके से उपयोग किया गया है। उसे मिलने से लेकर में उसीके और होते जाना बहुत अच्छा प्रयोग बना है। और गिरह का शेर भी अंत में बहुत ही खूब बनाया गया है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कमाल के शेर, वाह वाह वाह ।
संध्या राठौर प्रसाद
उजालो के दरीचे खुल रहे हैं
दिये जो बुझ गए थे जल गए हैं
कमी ऐसी नहीं थी कोई उनमें
मगर फिर भी किसी को खल गए हैं
पुरानी शाख है बूढ़ा शज़र है
खिले हैं फूल जो, वो सब नए हैं
थी कैसी प्यास जो आँखों में ठहरी
जहाँ देखो वहीं दरिया बहे हैं
तुझे आवाज़ दी तुझको पुकारा
तिरी यादों के घर खंडहर किये हैं
यहाँ आया है क्या सैलाब कोई
ये किसके कैसे हैं घर जो ढहे हैं
संध्या जी का चित्र भी उपलब्ध नहीं हो पाया और ना ही उनके बारे में कोई जानकारी मिल पाई। लेकिन इस ब्लॉग की परंपरा है कि जो आता है उसका स्वागत है। बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है संध्या जी ने। मतले में ही गिरह को बाँधा है और बहुत ही सुंदर तरीके से बाँधा है। दियों के जलने से उजाले के दरीचों के खुलने की बात बहुत सुंदर तरीक़े से कही है। उसके बाद अगला ही शेर बहुत खूब है जिसमें जीवन की एक कड़वी सच्चाई को सामने लाया गया है। पुरानी शाख है बूढ़ा शजर है में नए फूलों के खिलने से एक प्रकार की सकारात्मक सोच सामने आ रही है। प्यास और दरिया वाले शेर में विरोधाभास को कमाल तरीक़े से उपयोग में लाया गया है। उसमें भी दो शब्द ठहरी और बहे का एक ही द्श्य में प्रयोग खूब किया है। प्यास का ठहरना और दरिया का बहना दो अलग बातें एक साथ होना बहुत सुंदर बन पड़ा है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही है संध्या जी ने । वाह वाह वाह ।
गुरप्रीत सिंह
अँधेरे के ये पल कुछ ही बचे हैं
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं
हवा बहती गज़ल कहती है देखो
शजर आ कर वजद में झूमते हैं
खिलौने से पराये जैसे बच्चा
वो ऐसे दिल से मेरे खेलते हैं
न चमकाओ हकीकत का ये शीशा
मेरे ख्वाबों के बच्चे सो रहे हैं
अभी कुछ रोज़ पहले दिल है टूटा
अभी ताज़ा ही हम शायर बने हैं
गुरप्रीत का भी चित्र उपलब्ध नहीं हो पाया है। लेकिन एक बात बताना चाहूँगा कि गुरप्रीत ने इस ब्लॉग के प्रारंभिक अध्यायों को पढ़कर ग़ज़ल के बारे में जानकारी प्राप्त की है। पाँच-छह माह पूर्व ईमेल के उत्तर में गुरप्रीत को मैंने इस ब्लॉग के बारे में बताया था और इस ग़ज़ल को पढ़कर लग रहा है कि गुरप्रीत में बहुत संभावनाएँ हैं। मतले में ही बहुत सुंदर ढंग से गिरह को बाँधा है। पहले बात उस शेर की जो बहुत सुंदर बना है। अंतिम शेर जिसमें दिल टूटने की बात को ताज़ा शायर बनने से जोड़ा गया है बहुत सुंदर है। न चमकाओ हक़ीक़त का ये शीशा में ख़्वाबों के बच्चों के जाग जाने का भय बहुत खूब है। तुलनात्मक तरीके से बहुत अच्छा प्रयोग किया है ख्वाब और हक़ीक़त का। गुरप्रीत का यह हमारे मुशायरे में पहला ही प्रयास है और ग़ज़ल को पढ़कर यह संभावना तो जाग ही रही है कि हमें गुरप्रीत की बहुत सुंदर ग़ज़लें आने वाले समय में पढ़ने को मिलनी हैं। बहुत सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।
तो यह हैं आज के हमारे पाँच शायर जिन्होंने कमाल की रचनाएँ पेश की हैं। और दाद देने के आपके काम को बहुत बढ़ा दिया है। रूपवान ग़ज़लों के सौंदर्य में आज की यह रूप चतुर्दशी दिपदिपा रही है। कल दीपावली पर हम कुछ और ग़ज़लों के साथ मनाएँगे दीपपर्व तब तक आप दाद देते रहिए इन पाँचों रचनाकारों को।
बेहतरीन गजलियात सभी गजलदां को बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंआभार दानी जी
हटाएंचरागों की दुआओं में झुनझुने का फलना और फिर उजाला शुद्ध होगा श्वेत होगा ... क्या गज़ब के शेरो से धर्मेन्द्र जी ने अपनी ग़ज़ल को संवारा है ... अँधेरे के पैंतरों को बाखूबी लिख कर ग़ज़ल को नई ऊंचाहियों पे रख दिया है ... क्या बात देवेन्द्र जी आपकी गजलों के प्रयोग दांतों तले ऊँगली दबाने को मजबूर कर देता है .... बहुत बधाई इस ग़ज़ल के लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नास्वा जी
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंगुरु जी का बहुत बहुत आभार. पहली बार अपने लिखे पर आप की टिप्पणी पा कर धन्य हो गया. और ये जान कर भी कि आप ने मुझे पेह्चान लिया,कि आप की नज़र में मेरी कोई पेहचान है. इस मंच से मैने बहुत कुछ सीखा है.और आगे भी सीखता रहूंगा.लेकिन अगर पहले की तरह हर महीने ये आयोजन हो तो मज़ा आ जाये.
जवाब देंहटाएंगुरु जी मेरी इस गज़ल ने ज़रूर कुछ छोटी और बड़ी खामियां रही होंगी. जिसके बारे में बाद में आपसे जानना चाहूंगा.लेकिन फिलहाल तो आपने जो हमारी तरीफ कर दी है उसके लुत्फ जी भर के ले रहे है. यकीन मानिये पचासों बार अपने लिखे पर आपके दिए गए कॉमेंट पढ़ चुका हूँ. और सभी शायरों को बेहतरीन गजलें पेश करने के लिए बहुत बहुत बधाई
अजी हाँ प्यार है तुमसे ... इस गज़ब के शेर पर पूजा जी के लिए जितनी तालियाँ बजाओं कम हैं ... ऊपर से फिर विरह के शेर मानों ग़ज़ल की खूबसूरती बढ़ा रहे हैं ... गिरह शेर भी कमाल का है ... नए अंदाज की ग़ज़ल के साथ पूजा जी को बधाई है इस ग़ज़ल की ... दीपावली की बहुत शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय नासवा जी से पूरी तरह सहमत हूँ। बहुत बहुत बधाई पूजा जी को।
हटाएंसंध्या जी का स्वागत है इस मुशायरे में ... धमाकेदार ग़ज़ल से आगाज़ है उनका और सच में हजार वाट के बल्ब जला दिए हैं उन्होंने ... मतले के साथ जो समां बाँधा है फिर पुरानी शाख पे नए फूलों के खिलने वाला शेर तो गज़ब है ... छूता है दिल को ... आँखों में ठहरी हुयी प्यास का मंज़र लाजवाब है ... बहुत बहुत बधाई संध्या जी को ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय नासवा जी से पूरी तरह सहमत हूँ। बहुत बहुत बधाई संध्या जी को।
हटाएंThanks Digambar ji and Sajjan ji Kudos for awesome gazals to you both!
हटाएंगुरप्रीत जी ने पांच शेरों में ही लाख पते की बातें कह दी हैं ... स्वागत है उनका भी इस गुरुकुल में .... मतले का शेर गिरह के साथ बखूबी बाँधा है ...न चमकाओ हकीकर के ... ये शेर बहुत ही सादगी से अपनी बात को कहता हुआ नयी ऊंचाई पे ले जा रहा है इस ग़ज़ल को ... ऐसा तो कहीं भी नहीं लगा की ये ग़ज़ल सीख रहे हैं ... और फिर आखरी शेर क्या बात गुरप्रीत जी सुभान अल्ला ... बहुत बहुत शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय दिगम्बर नासवा जी
हटाएंएल ई डी की कतारें सामने हैं
जवाब देंहटाएंबचे बस चंद मिट्टी के दिये हैं
रखो श्रद्धा न देखो कुछ न सोचो
अँधेरे के ये सारे पैंतरे हैं
अँधेरा दूर होगा तब दिखेगा
सभी बदनाम सच इसमें छुपे हैं
धर्मेंद्र जी ,वहत झूब ।
दिगम्बर नासवा जी:
तभी तो दीप घर घर में जले हैं
सजग सीमाओं पर प्रहरी खड़े हैं
जले इस बार दीपक उनकी खातिर
वतन के नाम पर जो मर मिटे हैं
सुबह उठ कर छुए हैं पाँव माँ के
मेरे तो लक्ष्मी पूजन हो चुके हैं
सफाई में मिली इस बार दौलत
तेरी खुशबू से महके ख़त मिले हैं
..बहत खूब ।
आभार अश्विनी जी
हटाएंआभार अश्विनी जी
हटाएं
जवाब देंहटाएंहमारे अश्क तकिये पर बिछे हैं
मगर हम ख़ाब में तो हँस रहे ह
कुछ इक दिन तो सहारा देंगे दिल को
ये ग़म पिछले ग़मों से कुछ नए हैं
ये माना शहर बिल्कुल ही नया है
मगर चेहरे सभी देखे हुए है
बहत खूब पूजा भाटिया जी।
जवाब देंहटाएंकमी ऐसी नहीं थी कोई उनमें
मगर फिर भी किसी को खल गए हैं
थी कैसी प्यास जो आँखों में ठहरी
जहाँ देखो वहीं दरिया बहे हैं
यहाँ आया है क्या सैलाब कोई
ये किसके कैसे हैं घर जो ढहे हैं
.बहत खूब संध्या जी।
खिलौने से पराये जैसे बच्चा
वो ऐसे दिल से मेरे खेलते हैं
न चमकाओ हकीकत का ये शीशा
मेरे ख्वाबों के बच्चे सो रहे हैं
अभी कुछ रोज़ पहले दिल है टूटा
अभी ताज़ा ही हम शायर बने हैं
बहत खूब गुरप्रीत जी।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अश्विनी रमेश जी
हटाएंThanks Ashwiniji for appreciation!
हटाएंUnfortunately I donot have hindi typing on blogger site as of now so forced to write in English, but shall write in Hindi from next time on
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआजकी ग़ज़लों ने वाकई मोह लिया है.
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र भाई के किसी एक शेर को उद्धृत करना ठीक नहींं है और उनके बारे में पंकज भाई ने जो कहा है, ठीक ही कहा है. लेकिन ’करेंगे एक दिन वो भी उजाला ..’ से जो आश्वस्ति निस्सृत हो रही है वह आमजन के प्रति ग़ज़लकार के अदम्य विश्वास का सूचक है. यही विश्वास किसी देश और समाज की पूँजी हुआ करती है.
हार्दिक बधाई धर्मेन्द्र भाई.
दिगम्बरजी की आत्मीय प्रस्तुतियों से मन खिल जाता है. सहज शब्दों में भावों का पिरोया जाना आपके कहे की विशेषता है. ’सफाई में मिले हैं..’ सटीक उदाहरण है.
हार्दिक बधाइयाँ दिगम्बर भाई जी.
पूजाी की ग़ज़लों से हम मुग्ध होते रहे हैं. इस बार भी आपने एक उम्दा ग़ज़ल से नवाज़ा है.
अजी हाँ प्यार है हमको तुम्हीं से.. इस शेर के लिए जितनी बार वाह-वाह कीजाय कम होगी.
हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीया.
इस बार नये सदस्यों के तौर पर संध्याजी और गुरप्रीतजी का स्वागत है.
’कमी ऐसी नही थी कोई उनमें..’ वाह-वाह ! संध्या जी ने वाकई बहुत कछ कह दिया !
’न चमकाओ हक़ीक़त का ये शीशा..’ और ’अभी कुछ रोज़ पहले..’ ये दो शेर आपके उज्ज्वल भविष्य का ऐलान कर रहे हैं.
आप दोनोंकी ग़ज़लों से मंच निस्संदेह समृद्ध हुआ है. हार्दिक शुभकामनाएँ..
दीपावली में सबके साथ होना अच्छा लगता है. सभी आत्मीयजनों के प्रति अशेष शुभकामनाएँ और हार्दिक बधाइयाँ
सादर
-सौरभ, नैनी, इलाहाबाद
आभार सौरभ जी
हटाएंतह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ आदरणीय सौरभ जी
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ जी.आपकी प्रतिकिया बहुत मायने रखती है.
हटाएंThank you Saurabh ji
हटाएंवैसे तो मैं इस मंच पर मौजूद बड़े शायरों के अशआर पर टिप्पणी करने लायक नहीं हूँ.. पर कुछ ऐसे अशआर आज पढ़े कि खुद को दाद देने से रोक नहीं पाया.
जवाब देंहटाएंधर्मेंद्र जी कि सारी गज़ल ही कमाल कि है पर
"दुआ सब ने चरागो के लिए कि
फले क्यों रौशनी के झुनझुने हैं"
"करेंगे एक दिन वो भी उजाला
अभी केवल धुआँ जो दे रहे हैं"
"रखो श्रध्धा न देखो कुछ न सोचो
अँधेरे के ये सारे पैंतरे हैं"
ये अशआर खास तौर पर पसंद आए
और इसी तरह दिगम्बर नासवा जी के
"अमावस कि हथेली से फिसल कर
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं"
"सफाई में मिली इस बार दौलत
तेरी खुशबू से महके ख़त मिले हैं"
और पूजा जी के
"हमारे अश्क तकिये पर बिछे हैं
मगर हम ख्वाब में तो हँस रहे हैं"
"उसे मिलने से लेकर अब तलक हम
उसी के और होती जा रहे हैं"
"कुछ इक दिन तो सहारा देंगे दिल को
ये गम पिछले गमों से कुछ नए हैं"
और संध्या जी के
"पुरानी शाख है बूढ़ा शज़र है
खिले हैं फूल जो वो सब नये हैं"
"ये कैसी प्यास थी आँखों में ठहरी
जहाँ देखो वहीं दरिया बहे है."
सारे के सारे बहुत ही बेमिसाल अशआर हैं.
मुझे यकीन है कि आप सब कि संगत और गुरु जी के मार्ग दर्शन से मैं भी कभी ना कभी आप लोगों जैस ही अच्छ लिख पाऊँगा
आभार गुरप्रीत जी
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया गुरप्रीत जी
हटाएंThanks Gurpreet ji
हटाएंदिवाली के दीपक जो रौशन हुए हैं
जवाब देंहटाएंअलग रंग शब्दों में ढल से गए हैं
उत्तम शेरों से नवाज़ा है आपने-संध्या जी, पूजा जी, एवं गुरप्रीत सिंह जी ..दाद के साथ ...
शुक्रिया devi nangrani ji
हटाएंभाई धर्मेनद्र् कुमार, कमाल किया है मत्ले से आखिरी शेर तक, हर काफि़या अपनी पूरी ताकत के साथ शेर को बॉंधे हुए है। बहुत प्रभावी ग़ज़ल हुई। भाई दिगंबर नासवा जी बहुत खूबसूरत भावनायें व्यक्त करते शेर आपने कहे लेकिन आखिरी शेर तो शायद सबने कभी न कभी महसूस किया होगा और अमावस की हथेली से फिसलकर के रूप में क्या खूबसूरत कल्पना है। पूजा भाटिया जी की मुहब्ब्त की चाशनी में डूबी ग़ज़ल के आखिरी शेर ने एक बहुत पुरानी, 80 के दशक की, तरही याद करा दी जिसका तरही मिसरा था 'तमााम शह्र के रस्ते सजा दिये जायें' और मेरा मिसरा-ए-ऊला था 'वो आ रहे हैं सभी ग़म भुला दिये जायें' । संध्या जी को पहली बार पढ़ने का अवसर मिला है। सीधे सीधे अपनी बात कही है आपने हर शेर में। आशा है भविष्य की तरही में आमद होती रहेगी। गुरुप्रीत जी को भी पहली बार पढ़ने को मिला, अच्छे नाजु़क शेर कहे हैं। न चमकाओं हक़ीक़त का ये शीशा विशेष प्रभाव लिये है।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति।
बहुत आभार तिलक राज जी ...
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय तिलक राज जी
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय तिलक राज़ जी
हटाएंThank you Tilak ji
हटाएंतम सहूल, अमावस से फिसल केकर , दस बज चुकने तक , बूढा शजर और पराये खिलौने
जवाब देंहटाएंअद्भुत बिम्ब
पांचो शायरों को बधाई
इसीलिए तो आपको नमन करता हूँ। सच है कि मैंने शे’र कहा तो "श्री को तमशूल चुभने" का बिम्ब "कालेधन" को दर्शाने के लिए और "उजाले के दरीचे खुलने" का बिम्ब "सिस्टम में हो रहे बदलावों को" दिखाने के लिए। आप को बिम्ब अच्छा लगा इसके लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी
हटाएंराकेश जी की परखी दृष्टि को नमन है ...
हटाएंAwesome gazals from awesome shayars...... There could be a better platform for learning gazals. Thank you guruji.
हटाएंधर्मेन्द्र कुमार सिंह:
जवाब देंहटाएंरखो श्रद्धा न देखो कुछ न सोचो
अँधेरे के ये सारे पैंतरे हैं
अँधेरा दूर होगा तब दिखेगा
सभी बदनाम सच इसमें छुपे हैं
बहुत ही ख़ूब ।
"अंधेरे में ये क्या-क्या ढूंद डाला
यक़ीनन मन में भी दीपक जले है।"
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब मंसूर अली साहब
हटाएंदिगंबर नासवा:
जवाब देंहटाएंसुंदर ग़ज़ल, ग़ज़ल को सार्थक करते नाज़ुक ख़्याल।
झुकी पलकें, दुपट्टा आसमानी
गुलाबी गाल सतरंगी हुए हैं
पटाखों से प्रदूषण हो रहा है
दीवाली पर ही क्यों जुमले बने हैं
सफाई में मिली इस बार दौलत
तेरी खुशबू से महके ख़त मिले हैं
”पटाख़ों बीच लहराते दुपट्टे
'झड़ी फूलों'के जैसे लग रहे है।"
सलाम है मान्सूर साहब को ...
हटाएंपूजा भाटिया:
जवाब देंहटाएंदर्दो-ग़म, मसाइल,रोमांस और इंतिज़ार.....ग़ज़ल के सारे रंगो का समावेश है, अशआर में, वाह!
अजी हाँ प्यार है हमको तुम्हीं से
चलो जाने दो अब दस बज चुके हैं
"ज़िकर इसमें है 'दिन' या 'रात्री' का ?
इस हैरानी में 'बारह बज गये' है !"
संध्या राठौर प्रसाद
जवाब देंहटाएंपुरानी शाख है बूढ़ा शज़र है
खिले हैं फूल जो, वो सब नए हैं।
" है 'संध्या' तो सहर होगी यक़ीनन
खिले फूलों ने संदेशे दिये है।"
Shukriya Hashmi Sir. An awesome sher ! Khubsurat makta - I wish I could write so beautiful as well!
हटाएंगुरप्रीत सिंह:
जवाब देंहटाएंअभी कुछ रोज़ पहले दिल है टूटा
अभी ताज़ा ही हम शायर बने हैं।
नये शायर का स्वागत है।
" गुरु से प्रीत है जिनको वो आए
उजाले के दरीचे खुल रहे है।"
बहुत बहुत शुक्रिया जनाब मँसूर अली जी
हटाएंवाह क्या कहने. कमल के ग़ज़लें आइ हैं..
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र जी का अपना अलग अंदाज़ है. एकदम हट के मतला और फिर 'करेंगे एक दिन वो भी उजाला..", "फलें क्यों रोशनी के झुनझुने हैं.." बहुत उम्दा शेर. बहुत बहुत बधाई.
दिगंबर जी: बहुत बढ़िया मतला..और सच्चाई के करीब . "सुबह उठ कर छुए हैं पाँव मा के.." हासिले ग़ज़ल शेर है. "गुलाब सतरंगी हुए हैं.." वाह.. और मक्ता तो तो बस कमाल है. दिली दाद कबूल करें.
पूजा जी को पहली बार पढ़ रहा हूँ. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है. बहुत सुंदर मतला. सभी शेर जैसे मोती पिरोये हों. दिली मुबारक बाद.
संध्या जी ने बहुत खूबसूरत मतला कहा है. "मगर फिर भी किसी को खल गए हैं.." वाह. "खिले हैं फूल जो..", "जहाँ देखो वहीँ दरिया बहे हैं.." वाह. सभी शेर असरदार.
गुरप्रीत जी ने छोटी ग़ज़ल कही है लेकिन खूब कही है. सुन्दर मतला और "न चमकाओ हकीकत का ये शीशा.. मेरे खाबों के बच्चे सो रहे हैं" क्या बात है. बधाई.
पांचो शायरों में कमाल की ग़ज़लें कहीं हैं. बहुत बहुत बधाई.
बहुत शुक्रिया राजीव जी
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया राजीव जी
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया राजीव जी
हटाएंThank you Rajiv ji
हटाएंआदरणीय नासवा जी ने बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल से मंच को नवाजा है। अमावस की हथेली से फिसलने वाला शे’र तो कमाल कर रहा है। कई कई अर्थों को एक साथ ध्वनित कर रहा है। बहुत बहुत बधाई आदरणीय नासवा जी को।
जवाब देंहटाएंधर्मेंद्र जी आपका आभारी हूँ
हटाएंगुरप्रीत जी ने "न चमकाओ हकीकत का ये शीशा......" कहकर इस तरही में चार चाँद लगा दिये हैं। उनसे भविष्य में ढेर सारे ख़ूबसूरत अश’आर की अपेक्षा रहेगी। बहुत बहुत बधाई गुरप्रीत जी को इस शानदार ग़ज़ल के लिए।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया धर्मेन्द्र जी. आप सब का बहुत प्यार मिला. आप कि अपेक्षाओं पर खरा उतरने की कोशिश रहेगी
हटाएंधर्मेन्द्र जी ज़िंदाबाद अहाहा क्या गजल कही है वाह वाह, हर शेर नपातुला और गहरी चोट करता हुआ ! किस शेर की तारीफ़ करूँ और किसे छोड़ूँ ? इसलिये इस खूबसूरत मुकम्मल गजल के लिये दिली दाद कबूलें !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नीरज जी
हटाएंदेश की रक्षा में अपना सब कुछ क़ुर्बान करने वाले हमारे फ़ौजियों को सलाम करते हुए आपके दोनो शेर बेजोड हैं ! मॉं के पॉंव छूकर लक्ष्मी पूजन की बात भावविभोर कर गयी ! गिरह भी कमाल की लगाई है ! आपकी शान में तालियों और भरपूर तालियॉं बजा रहा हूँ !
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया नीरज जी ...
हटाएंऊपर वाली टिप्पणी दिगंबर जी के लिये थी
जवाब देंहटाएंपूजा जी की गजल की तारीफ़ किन लफ़्ज़ों में करूँ ? उन्होंने तो कमाल के चौंका देने वाले शेर कहें हैं - नयी कहन और नयी सोच को सलाम ! चलो जाने दो अब दस बज चुके हैं जैसा मिसरा तो चुरा के ले जाने योग्य है ! जियो !
जवाब देंहटाएंसंध्या जी को पहली बार पढने का मौक़ा मिला ! उन्होंने अपनी सोच और अदायगी से बहुत प्रभावित किया ! बूढ़े शजर पर नये फूल की बात वाह वाह वाह ! बेहतरीन गजल !
जवाब देंहटाएंThanks Neeraj ji
हटाएंन चमकाओ हक़ीक़त का ये शीशा
जवाब देंहटाएंमेरे ख़्वाबों के बच्चे सो रहे हैं
लाजवाब ! वाह वाह वाह
गुरप्रीत जी को पहली बार पढा और मजा आ गया ! शानदार गजल कही है उन्होंने ! ढेरों दाद !
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नीरज गोस्वामी जी.
हटाएंAap sabhi sudhijanon ko deepawali ki ram ram. Pankaj ji portal pr meri gazal ko sthaan dene ka tahedil se shukriya. Aap sabhi gazal pasand karne walon ka shukriya. Mashkoor huun...mamnoon huin...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआज पहली बार मोबाइल में टिप्पणी का ऑप्शन आया है।
जवाब देंहटाएंसभी को बधाई।
धर्मेंद्र कुमार सिंह जी
दिगम्बर नासवा जी
पूजा भाटिया जी
गुरप्रीत सिंह जी
संध्या राठौर प्रसाद जी
आपके कलाम ने दिल को छू लिया।
Thanks Shahid ji
हटाएंआज पहली बार मोबाइल में टिप्पणी का ऑप्शन आया है।
जवाब देंहटाएंसभी को बधाई।
धर्मेंद्र कुमार सिंह जी
दिगम्बर नासवा जी
पूजा भाटिया जी
गुरप्रीत सिंह जी
संध्या राठौर प्रसाद जी
आपके कलाम ने दिल को छू लिया।
पहले पहल आप सभी को दीपावली की शुभकामनाये। चूँकि गुजरात प्रदेश से हूँ और नववर्ष का आगमन हुआ है - आप सभी को नूतन वर्ष अभिनन्दन है।
जवाब देंहटाएंयूँ तो नयी सदस्या हूँ मगर गुरूजी आपके ब्लॉग को जब जब समय मिले पढ़ती हूँ। आपके ही ब्लॉग पढ़कर ग़ज़ल लिखना सीखा है। लिखना बस छोड़ ही दिया था मगर आज आपने और सभी मित्रो ने जो सराहना की है भावविभोर हूँ। बस फिर से हिम्मत बंधी है - उम्मीद जगी है। आप सभी का प्रोत्साहन बहुत मायने रखता है मेरे लिए।
बस आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन युहीं मिलता रहे तो शायद मेरी ग़ज़ल के आसमानो में " उजालो के दरीचे खुल रहेंगे "।
एक से एक शायर मौजूद है यहाँ - बहुत उम्दा कलाम है सभी के। मैं समझ ही नहीं पा रही हूँ क्या लिखूँ , कैसे लिखूँ ? मेरे पास अल्फ़ाज़ ही नहीं है - I am so overwhelmed. Thank you Guruji . Thanks one and all.