बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

शो मस्‍ट गो आन-

शायद आज पहली बार किसी अंग्रेजी के वाक्‍य को ब्‍लाग पोस्‍ट का शीर्षक बनाया है  । वो इसलिये कि इससे अच्‍छा कोई वाक्‍य मिल ही नहीं रहा था अपने आप को अभिव्‍यक्‍त करने के लिये । अज्ञेय ने कभी कहा था कि दुख आदमी को मांजता है, सो मैं भी ये कह सकता हूं कि इन दिनों मेरा मांजा जाना चल रहा है । आप सब लोगों की दुआएं मेल से और फोन से मिल रही हैं । जब इतने लोग किसी एक के लिये अच्‍छा सोच रहे हों तो ईश्‍वर को भी पिघलना तो पड़ता ही है । कितने नाम गिनाऊं जिन सबके संदेश मिल रहे हैं । कठिन समय ने ये तो बता ही दिया कि मैं अकेला नहीं हूं कई लोग मेरे साथ हैं । इतना नेह इतनी आत्‍मीयता, मन भर भर आ रहा है । ये सारे अनुभव अविस्‍मरणीय हैं । मुश्किलें तो अभी भी वैसी ही सामने हैं लेकिन उनसे जूझने की ऊर्जा आप सब के नेह ने दी है । और उसीके चलते सब के बाद भी ये कहने की हिम्‍मत कर पा रहा हूं कि शो मस्‍ट गो आन । और आप सब के लिये ये गीत

पिछले लगभग पन्‍द्रह बीस दिनों से एक ख़ामाशी सी हो रही है । त्‍यौहारों का समय सामने है और ऐसे में ख़मोशी का होना ठीक नहीं है । बस यही सोच कर अब कुछ फिर शुरू करने की बात दिमाग़ में आई और आज से ही दीपावली के तरही मुशायरे का आगाज़ करने की सोची । आगा़ज का मतलब ये कि कम से कम दीपावली के तरही मुशायरे का मिसरा ए तरह तो दे दिया जाये। जब सोचने बैठा तो सोच में एक बहर शिकायत करती हुई आ गई कि मेरा क्‍या क़सूर है जो मुझे आज तक कभी भी तरही में उपयोग नहीं किया गया । मुझे लगा बात तो सही है इसको अभी तक कभी उपयोग में तो नहीं लाया गया है । जबकि कायदे में तो ये ठीक पहली ही बहर है । ठीक पहली का मतलब ये कि सूची में ये सबसे पहली ही बहर है । आपने ठीक पहचाना ये बहरे रजज है ।

बहरे रजज़ के बारे में आपको ये तो पता ही होगा कि इसका स्‍थाई रुक्‍न 2212 है अर्थात मुस्‍तफएलुन । वहीं बहरे कामिल का स्‍थाई है 11212 अर्थात मुतफाएलुन  । सुनने में भले ही दोनों एक ही ध्‍वनि दे रहे हों लेकिन दोनों में अंतर है । अंतर ये है कि बहरे रजज़ के रुक्‍न में पहली मात्रा दीर्घ है जबकि कामिल में पहली मात्रा दीर्घ न होकर दो स्‍वतंत्र लघु हैं ।  ये फर्क ध्‍वनि में तो बहुत नहीं दिखाई देता लेकिन तकतीई में साफ दिखता है । तो इस बहर पर काम करते समय यही ध्‍यान रखना होता है ।

दीपावली के तरही मुशायरे के लिये बहरे रजज़ मुसमन सालिम  को चुना है । अर्थात 2212-2212-2212-2212 मुस्‍तफएलुन-मुस्‍तफएलुन-मुस्‍तफएलुन-मुस्‍तफएलुन । कुछ मित्रों का कहना है कि चूंकि ये बहर गाई जाने वाली बहरों में शामिल नहीं है इसलिये इस पर नये लोगों को लिखने में परेशानी आ सकती है । लेकिन मेरा कहना है कि नये लोग अब हैं कहां अब तो सब पुराने हो चुके हैं । तो अब तो मुश्किल काम होने ही चाहिये ।

जलते रहें,   दीपक सदा,    क़ाइम रहे,    ये रौशनी

मुस्‍तफएलुन-मुस्‍तफएलुन-मुस्‍तफएलुन-मुस्‍तफएलुन

मुस्‍ (2)

तफ (2)

ए (1)

लुन (2)

जल

ते

हें

दी

पक

दा

क़ा

इम

हे

ये

रौ

नी

क़ाफिया - ई की मात्रा ( अजनबी, जिंदगी, चांदनी, आदमी ) रदीफ़ – अनुपस्थित ( गैर मुरद्दफ) 

काफिये को लेकर ध्‍यान दें कि उसमें अं की बिंदी नहीं हो । अर्थात नहीं, कहीं, ज़मीं  आदि नहीं लेने हैं । केवल और केवल ई की मात्रा को ही लेना है । एक ध्‍यान देना है कि मतले में ईता का दोष आ सकता है सो उसका ध्‍यान रखें । अर्थात मतले के दोनों काफियों में से कोई एक काफिया ऐसा हो जिसमें  ई  की मात्रा को हटाने के बाद शब्‍द अर्थहीन हो जाता हो । जैसे रौशनी  में से   की मात्रा हटाने के बाद रौशन  बचता है वो अपने आप में एक शब्‍द है जो अर्थहीन नहीं है । यदि आप रोशनी को एक काफिया बनाते हैं मतले में तो दूसरा काफिया आपको ऐसा रखना होगा जिसमें   की मात्रा हटाने के बाद शब्‍द अर्थहीन हो जाए   जैसे अजनबी । अजनबी में से ई को हटाने पर अजनब बचता है जो कोई अर्थ नहीं रखता । यहां पर  ई  हर्फे रवी है । ऐसा माना जाता है कि जो अतिरिक्‍त मात्रा है जो कि हर्फे रवी बन रही है उसको हटा कर ध्‍वनि  देखी जाती है कि अब काफिया क्‍या बच रहा है । यदि हर्फे रवी हटने के बाद काफिया अर्थहीन हो जाये तो उसका मतलब ये है कि हर्फे रवी अलग से जोड़ी गयी मात्रा न होकर उस शब्‍द का अभिन्‍न अंग है जिसको हटाया नहीं जा सकता है । तथा उस शब्‍द की पूरी ध्‍वनि ही लेनी है । ये छोटी ईता  ( ईता-ए-ख़फी) है । बड़ी ईता ( ईता-ए-जली) वो है जिसमें दोष साफ दिख जाता है जैसे दानिशमंद और दौलतमंद  को यदि मतले में काफिया बनाते हैं तो जो मंद है वो हटने के बाद दौलत और दानिश शब्‍द बच रहे हैं जो दोनों ही अर्थवान हैं । और चूंकि ये साफ दिख रहा है इसलिये इसे ईता-ए-जली बड़ा दोष कहते हैं । रौशनी  और  आदमी  ( रौशन+ई=रौशनी, आदम+ई=आदमी)  का दोष साफ दीख नहीं रहा है इसलिये उसे छोटी ईता ईता-ए-ख़फी कहते हैं । ( हालांकि कुछ लोग आदमी  की ई हटाने पर बचे आदम को अर्थहीन मान कर उसे उपयोग कर लेते हैं । )  ध्‍यान रखें कि ईता का ध्‍यान केवल और केवल मतले में ही रखना होता है तथा मतले में भी  किसी एक मिसरे में काफिया ( दोनों में नहीं) ऐसा हो जिसमें हर्फे रवी हटने के बाद शब्‍द बेकार( बिना अर्थ का) हो जा रहा हो। उस्‍ताद ने एक बार बहुत पहले ईता की व्‍याख्‍या की थी जो कुछ इस प्रकार थी उनका कहना था कि यदि हर्फे रवी मुख्‍य शब्‍द का बहुत अभिन्‍न अंग ( दो जिस्‍म एक जान) नहीं है तो वो रदीफ का हिस्‍सा बन जाएगा और उस स्थिति में काफिये का संतुलन गड़बड़ा जाएगा । ( वैसे उस्‍ताद का कहना था कि गैर मुरद्दफ स्थिति में ईता पर ध्‍यान देने की ज़रूरत नहीं होती, और इस बार का हमारा मिसरा गैर मुरद्दफ ही है ) ।

पूर्व में मैंने काफी बार ये कहा है कि ईता का दोष लिपि से होता है इसलिये देवनागरी में ये नहीं होता, लेकिन उर्दू लिपि में साफ दिखता है । इसीलिये देवनागरी में या हिंदी में ग़ज़ल कहने वालों को इससे मुक्‍त रखा गया है । लेकिन एक बार गौतम ने बहुत पते की बात कही कि यदि हम किसी विधा पर काम कर रहे हैं तो उसके पूरे नियमों का पालन करें । बस यही सोच कर आज ईता को लेकर ये बातें कहीं । चलिये अब एक प्रश्‍न का उत्‍तर दीजिये क्‍या किसी मतले में गुलाब और आब  ये दोनों काफिये लिये जा सकते हैं । यदि हां तो क्‍यों और नहीं तो क्‍यों ।

तिलक जी ने एक बहुमूल्‍य सुझाव दिया था कि सब लोग पूरी ग़ज़ल में एक शेर ऐसा निकालें जिसमें मात्राएं शुद्ध रूप में हों । शुद्ध रूप का अर्थ कि कोई दीर्घ गिरा कर लघु नहीं की गई हो । जैसा इस बार के मिसरा ए तरह में भी किया गया है । वहां सारी मात्राएं शुद्ध रूप में हैं । और उस शुद्ध शेर को मतले के ठीक बाद लगाना चाहिये । जिससे बहर का ठीक अनुमान लग सके । तो तिलक जी का सुझाव सर माथे पर तथा सभी लोग इसका ध्‍यान में रखें कि ग़ज़ल में एक शुद्ध शेर हो जिसमें सभी मात्राएं अपने शुद्ध रूप में ही हों ।

तरही की ग़ज़लें हर हाल में 20 अक्‍टूबर तक भेज दें ताकि हम जल्‍दी से मुशायरा प्रारंभ कर दीपावली को समापन कर सकें ।

और उदाहरण तो आप ही लोगों को बताने हैं कि इस बहर पर कौन से गीत या ग़ज़लें प्रसिद्ध हैं । हां एक प्रश्‍न ज़ुरूर पूछना हैं मुझे और वो ये कि क्‍या बशीर बद्र साहब की मशहूर ग़ज़ल कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से, ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फासले से मिला करो  क्‍या हमारी इसी बहर पर है अथवा नहीं । हां तो कैसे नहीं तो क्‍यों  ।

42 टिप्‍पणियां:

  1. आनंद ही आनंद। मेरे लिये यह बह्र भी नयी रहेगी मज़ा आयेगा। तरही तो मेरे लिये ऐसी होती जैसे बच्‍चे के लिये आईसक्रीम (ये आशय कदापि नहीं कि सरल होती है)। कहीं दूर घंटी बजी तो वही भाव जागते हैं जो देर से टकटकी लगाये इकन्‍नी हाथ में पकड़े बच्‍चे के होते हैं जो कुल्‍फ़ी वाले का इंतज़ार कर रहा होता है बावज़ूद इसके कि कुल्‍फ़ी वाला रोज़ समय से आता है।
    आपने मेरे एक प्रस्‍ताव को स्‍वीकार कर स्‍थान दिया। हृदय से आभारी हूँ। इससे पाठशाला में भी आनंद आयेगा।

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  2. sसब से पहले तो बधाई कि ेआप मुश्किलों से जूझने की शक्ति और आत्मविश्वास रखते हैं। लेकिन आज तो बहुत कठिन काम दे दिया। खैर आपकी 'निम्मो दी' हूँ भला पीछे हट सकती हूँ। फिर आती हूँ
    बहुत खुशी हुयी और बहुत बहुत आशीर्वाद।

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  3. गुरु जी प्रणाम,

    आपका लौटना
    तरही के लिए मिसरा मिलना
    बहु प्रतीक्षित इता दोष की जानकारी मिलना
    और ढेर सारा होमवर्क :)

    दिल दिमाग सब आनंदमय हो गया


    रजज मेरी दूसरी प्रिय बहर है(पहले स्थान पर रमल है )

    रजज पर मेरे दो शेर
    २२१२, २२१२
    इतनी शिकायत बाप रे
    जीने की आफत बाप रे
    हम भी मरें तुम भी मरो
    ऐसी मुहब्बत बाप रे

    और बहरे रजज़ मुसमन सालिम पर मेरे दो शेर

    जो हो रहे हैं देश में बदलाव व्यापक देखिये
    शीशे के घर में लार रहे लोहे के फाटक देखिये
    जिसके सहारे जीत ली हारी हुई बाज़ी सभी
    उस सत्य के बदले हुए प्रारूप भ्रामक देखिये

    कुछ चर्चित शेर के उदहारण के साथ लौट कर आता हूँ

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  4. तिलक जी आपका सुझाव तो इतना अच्‍छा लगा है कि अगला मुशायरा जो दीपावली के बाद होगा वो शुद्ध मात्राओं के साथ ही होगा । भले ही शेर कम निकाले जाएं लेकिन शुद्ध मात्राओं के साथ हों । मेरे ख़याल से वो भी एक अच्‍छा और रोचक प्रयोग होगा ।

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  5. पंकज जी,प्रणाम

    सच हैं, दुख में आदमी सच के बहुत करीब से गुजरता है और जीवन के वास्तविक रूप का पता चलता है...और जिंदगी ऐसी ही है..सुख में तो आदमी खो जाता है...

    दूसरी बात तरही मुशायरे की खुशी तो इतनी होती है की बयाँ ही नही कर पाता हूँ, इस बहाने आप सब से बहुत कुछ सीखता हूँ...इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद,रही बात प्रश्नों की तो मैं तो अभी ग़ज़ल सीख रहा हूँ सो प्रश्नों का उत्तर दे पाना बस में नही हाँ प्रयास ज़रूर कर सकता हूँ..

    प्रणाम स्वीकारें..

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  6. आपको वापस पूरी रंगत में देखना सुखद है. तरही के लिए अनेक शुभकामनाएँ.

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  7. Aacharya ji, in dino raanchi daure par hun. Aapka utsaah dekh prasann hun. Tarhi Post par jald hi lautta hun.

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  8. एक प्रश्‍न आपने उठाया कि मत्‍ले के शेर में गुलाब और आब काफि़ये लिये जा सकते हैं या नहीं। कठिन प्रश्‍न पैदा कर दिया आपने पीएचडी लेवल का।
    मैं नहीं ले पाऊँगा और उसका कारण गुलाब में अलिफ़-वस्‍ल की स्थिति है। वस्‍तुत: गुलाब उर्दू से आया है और इसमें उर्दू व्‍याकरण के अनुसार गुल और आब का अलिफ़ वस्‍ल है। बोलचाल में 'गुलाब' विशुद्ध शब्‍द के रूप में भी प्रचलन में भले ही है लेकिन व्‍याकरण की दृष्टि से यह गुल+आब ही है और ऐसी स्थिति में आब रदीफ़ हो जायेगा। हॉं अगर गुलाब को विशुद्ध शब्‍द माना जाना अनुमत्‍य है तो गुलाब और आब को काफि़या बनाया जा सकता है।
    वर्तमान समझ के अनुसार तो मैं गुलाब और आब को हमकाफि़या नहीं मान सकता। हॉं गुलाब के साथ किताब, खराब आदि लेने में कोई दोष नहीं दिखता क्‍योंकि उस स्थिति में गुलाब में आब बढ़ा हुआ अंश रहेगा और बाकी विशुद्ध शब्‍द।
    यह तो मैं समझना चाहूँगा जिससे अवसर आने पर इसपर अवि‍वादित रूप से कह सकूँ।

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  9. इस बार मैं कबूतर बन गया, बिना पूरी पोस्‍ट पढ़े दूसरी टिप्‍पणी भी दे दी जबकि इसके पहले पोस्‍ट पूरी पढ़ लेनी चाहिये थी।
    इस बार तो आप ग़ज़ल का सफ़र यहीं ले आये। मुझे इता दोष तक तो पता था महर्षि जी के नोट्स से लेकिन इता के दोनों रूप आज समझ में आये।
    हृदय से आभारी हूँ इस विशिष्‍ट जानकारी के लिये।

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  10. गुरूजी,
    प्रणाम.
    आपकी सब व्यक्तिगत परेशानियाँ शीघ्र ही दूर हो जायेंगी. यह मेरा विश्वास है.

    बह्र मुश्किल है. पता नहीं कर पाऊँगा या नहीं.

    होम वर्क की कोशिश:
    १.
    गुलाब और आब काफिये लिए जा सकते हैं क्यों की काफिया "आब" हुआ अर्थात "आ" की मात्र और "ब". पहले काफिये में गुल+आब में "गुल" जो की एक अर्थपूर्ण शब्द है, आब में मिल रहा है. दूसरा काफिया "आब" एक अपने आप में विशुद्ध शब्द है. आ की मात्र और ब हटाने से "अ" बचा जिसका कोई अर्थ नहीं है.
    अत: ये काफिये ईता दोष से मुक्त हैं.

    २.
    बशीर बद्र जी की गज़ल "कोई हाथ भी ना मिलाएगा.." की बहर बह्र-कामिल लग रही है.
    "ये नए मिजाज़ का शह्र है यहाँ फासले से मिला करो(११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२"

    पहली दो मात्राएँ दो लघु हैं..ना की एक दीर्घ.दूसरे रुक्न में भी ऐसा ही है.
    कोशिश की है. गलत भी हो सकता है.


    -राजीव

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  11. गुरु जी प्रणाम,

    मैं आया तो था की उदाहरण वाले होमवर्क को पूरा कर लिया जाए मगर काफिया बंदी पर तिलक जी का कमेन्ट पढ़ कर बहुत उलझ गया

    मैंने जो थोड़ा बहुत इस विषय में पढ़ा है वह यहाँ लिख रहा हूँ

    जी यह सही है की गुलाब, गुल और आब शब्द का योजित रूप है जो मिल कर बनाता है - गुलाब
    मगर इसे आब के साथ काफिया बंदी करने में मुझे कोई दोष नहीं दिख रहा है
    बस मुझे यह ध्यान रखना होगा की आगे काफिया बंदी में हर्फे रवी "आब" शब्द रहे
    फिर आगे मैं केवल ब शब्द को हर्फे रवि नहीं ले सकता
    आगे के काफिया में मुझे बस आब शब्द को निभाना होगा जो बहुत से हैं जैसे
    किताब
    खराब
    शराब
    ख़्वाब
    रुआब
    नकाब
    हिसाब
    जवाब आदि
    और हाँ "कसाब" भी :)
    ----------------------------------
    यदि आपने शब्द आब की जगह शराब के बारे में पूछा होता तो वहाँ
    गुल + आब = गुलाब
    शर + आब = शराब

    गुल और शर में कोई तुकबंदी नहीं है और दोनों शब्द सार्थक भी हैं
    गुलाब और शराब में ईता-ए-ख़फी दोष आ जाता इसलिए उसे नहीं ले सकते थे

    हालांकि मैंने यह भी देखा है शायर अक्सर छोटी इता (ईता-ए-ख़फी) को नज़र अंदाज़ कर देते हैं और खूब शेर लिखते हैं :)
    ----------------------------------
    मेरे अनुसार गुलाब और आब शब्द की काफिया बंदी मतले में भी की जा सकती है |

    उर्दू में कोई और नियम भी हो तो मैं उसके बारे में कुछ नहीं कर सकता

    जवाब देंहटाएं
  12. शुद्ध रूप की गज़ल लिखने में परेशानी तो बहुत होगी मगर मज़ा भी बहुत आएगा

    बशीर बद्र जी की मशहूर गज़ल के बारे में राजीव जी बता ही चुके है
    और मैं भी उनसे सहमत हूँ की यह गज़ल रजज पर नहीं बल्कि बह्र-कामिल पर लिखी गई है
    -----------------------------------

    जलते रहें, दीपक सदा, क़ाइम रहे, ये रौशनी

    बहुत प्यारा मिसरा है इस बार मैं इसे मतले पर इस्तेमाल करूँगा, बहुत प्यारा मतला निकलेगा

    रदीफ है नहीं :), बह,र आसान है :):) और काफिया भी केवल मात्रा है :):):)
    काफिया का क्षेत्र बहुत विस्तृत होगा इसलिए गज़ल भी अलग अलग भाव की पढ़ने को मिलेगी

    जवाब देंहटाएं
  13. मेरे सबसे पहले कमेन्ट में टंकण त्रुटि है

    शीशे के घर में लार रहे लोहे के फाटक देखिये

    मिसरे को

    शीशे के घर में लग रहे लोहे के फाटक देखिये

    पढ़ा जाए

    असुविधा के लिए खेद है

    जवाब देंहटाएं
  14. well said show must gone, and it is going on with flying colours...good luck.

    regards

    जवाब देंहटाएं
  15. आदरणीय गुरु जी सादर प्रणाम
    आपकी जो भी परेशानियाँ है, ईश्वर से प्रार्थना है सब दूर हो जाएँ|
    बहुप्रतीक्षित ईता के दोष के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा
    अगर गुलाब गुल+आब है तो मतले में गुलाब और आब नहीं लिए जा सकते है, यहाँ पर ईता -ए-खफी का दोष आ जायेगा क्योंकि 'आब' रदीफ़ की तरह इस्तेमाल हो रहा है|

    शुद्ध मात्राओं में शेर कहना बहुत रोचक रहेगा|

    जैसा कि पहले ही लोग बता चुके है कि बशीर बद्र साहब की ग़ज़ल बहरे कामिल पर ही है|


    बहरे रज़ज़ के कुछ उदहारण ढूंढने का प्रयास किया है|

    १. जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ

    २. तू हुस्न है मैं इश्क हूँ तू मुझमे है मैं तुझमे हूँ

    ३. ये दिल ये पागल दिल मेरा क्यूँ बुझ गया आवारगी

    ४. हम बेवफा हरगिज़ न थे पर हम वफ़ा कर ना सके( इस पर संशय है कि यह बहरे कामिल है या बहरे रज़ज़}

    जवाब देंहटाएं
  16. आपको यूँ पूरे कान्ति के साथ लिखता देख खुशी हुई सुबीर भैया. बहुत अच्छी जानकारी भरी पोस्ट है. मिसरा भी खूब है, देखें काम समय देता है या नहीं लिखने का...
    शुभाशीष, शार्दुला दीदी

    जवाब देंहटाएं
  17. सकारात्मक सोच और आशा के साथ इंसान सब कठिनाइयों पर विजय पाता है .... और आपकी सोच और दृष्टिकोण इतना सकारत्मक है की आप हर कठिनाई को जल्दी ही पार कर लेंगे ...
    आपकी पोस्ट देख कर बहुत अच्छा लगा ... तरही की नई शुरुआत होने वाली है .... मज़ा आ जाएगा .... वैसे हम जैसे सीखने वालों के लिए आज की पोस्ट संभाल कर रखने वाली है ... आपकी और तिलक राज जी की टिप्पणियों से भी बहुत कुछ मिल जाता है ....

    जवाब देंहटाएं
  18. सकारात्मक सोच और आशा के साथ इंसान सब कठिनाइयों पर विजय पाता है .... और आपकी सोच और दृष्टिकोण इतना सकारत्मक है की आप हर कठिनाई को जल्दी ही पार कर लेंगे ...
    आपकी पोस्ट देख कर बहुत अच्छा लगा ... तरही की नई शुरुआत होने वाली है .... मज़ा आ जाएगा .... वैसे हम जैसे सीखने वालों के लिए आज की पोस्ट संभाल कर रखने वाली है ... आपकी और तिलक राज जी की टिप्पणियों से भी बहुत कुछ मिल जाता है ....

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  19. सकारात्मक सोच और आशा के साथ इंसान सब कठिनाइयों पर विजय पाता है .... और आपकी सोच और दृष्टिकोण इतना सकारत्मक है की आप हर कठिनाई को जल्दी ही पार कर लेंगे ...
    आपकी पोस्ट देख कर बहुत अच्छा लगा ... तरही की नई शुरुआत होने वाली है .... मज़ा आ जाएगा .... वैसे हम जैसे सीखने वालों के लिए आज की पोस्ट संभाल कर रखने वाली है ... आपकी और तिलक राज जी की टिप्पणियों से भी बहुत कुछ मिल जाता है ....

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  20. हे भगवान, ये मात्राबाजी इतना मुश्किल काम है !!! (हम्म...मेरे लिये तो कार्टूनिंग ही भली)

    जवाब देंहटाएं
  21. काजल लगा के आपने हमसे ये कह दिया
    कार्टून से जटिल है मात्रा-ओ-काफि़या।
    कार्टून इक बनाके दिखाओ हमें अभी
    हमने तुम्‍हारी बात पर चैलेंज ले लिया।
    काजल कुमार जी हमने तो सिद्ध कर दिया कि ये मात्राबाजी सरल है अब आप सिद्ध कीजिये कि कार्टूनबाजी सरल है। एैसे उल्‍टे चैलेंज लेने वाले कम मिलेंगे जो अपने काम को सरल बताते हों।

    जवाब देंहटाएं
  22. गुरुदेव आपका ख़म ठोक कर फिर से अखाड़े में उतरना भला लगा...अब दुश्मनों की खैर नहीं...कामयाबी का सेहरा आपके ही सर बंधेगा...इसमें देर सबेर हो सकती है...टेंशन लेने का नहीं क्यूंकि टेंशन लेना किसी समस्या का हल नहीं होता...

    आपने जो शुरू में गीत लगाया है वो सही नहीं है...असली दोस्त या शुभेच्छु कभी अहसान नहीं करते...

    अब बात तरही की तो गुरुदेव आपने ये समझिये मेरी तो नवरात्री, दशहरा, दिवाली सब हलकान कर दी...क्यूँ के बंदा तो
    अब इसी मुश्किल बहर और काफिये में ही उलझा रहेगा...हमारी खोपड़ी तिलक जी की तरह उपजाऊ नहीं है...बंजर है, जिसमें घास का एक तिनका भी बड़ी मुश्किल से उगता है और आपने पूरी गन्ने की फसल उगाने का फरमान जारी कर दिया है...बहुत ना इंसाफी है ठाकुर...वो भी उत्सव के दिनों में...

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  23. गुरु जी प्रणाम,
    मैंने तो सोचा था चर्चा आगे बढ़ी होगी
    मगर यहाँ तो सब खामोश हैं

    आपसे फोन पर बात होने पर आपने एक बात कही थी की उर्दू की लिखावट में मात्रा की गिनती अलग से होती है जैसे "रोटी" शब्द २ हर्फ़ नहीं बल्कि ४ हर्फ़ है
    तब से मैं सोच रहा हूँ की फिर तो गुलाब के साथ भी यही होगा
    अब दिक्कत यह है की मुझे नहीं पता उर्दू में गुलाब कैसे लिखा जाता है
    मगर एक बात और भी सोची की अगर गुलाब को उर्दू में "गुलाब" नहीं लिखते वरन गुल+आब लिखते हैं तो फिर उसका अर्थ क्या निकालते हैं ?

    "फूलों का जल"
    या फिर
    गुलाब के फूल का संबोधन

    मुझे लग रहा है की हिंदी में तो गुलाब "ही" कहते हैं इसलिए हिंदी में तो यह काफियाबंदी १०० प्रतिशत उचित है

    मगर उर्दू ...
    ...ये आपने कहाँ फसां दिया गुरुदेव

    जवाब देंहटाएं
  24. वीनस परेशान है कि कहॉं गुलाबों में उलझ गये। भाई मैनें तो पहले ही कहा कि यह पीएचडी लेवल का प्रश्‍न खड़ा हो गया है, रिसर्च करनी पड़ेगी।
    जो बढ़ा हुआ अंश देखने की बात है वह शब्‍द का रूप परिवर्तन के संबंध में है जैसे दिखाना, लजाना, मुस्‍कराना इनमें ना बढ़ा हुआ अंश है जबकि गुलाब हिन्‍दी में तो ठीक है लेकिन उर्दू में गुल में आब बढ़ा ह़आ है और अलिफ़ वस्‍ल से गुलाब हो रहा है। आब स्‍वतंत्र रूप से शाब्दिक अर्थ रखता है तो दोनों पंक्तियों में आब और आब तो रदीफ़ हो जायेंगे।
    अगर बढ़े हुए अंश अलग कर रदीफ़ बनते हों तो वो काफि़या नहीं बन सकते।

    ये मेरा सोचना है अधिकृत स्रोत से प्राप्‍त ज्ञान नहीं, इसलिये अभी और सोचने की जरूरत है।

    जवाब देंहटाएं
  25. आदरनीय सुबीर जी,
    मुझे जमात में शामिल करने के लिये आपका शत शत धन्यवाद।

    आपकी परेशानी जल्दी खुद परेशान हो जायें ऐसी कामना करता हूं।

    मैं अब तक जो दिल में आता था लिखा करता था।पता नहीं कैसे लोग पंसद भी करते रहते थे। आपके mail से इस पोस्ट को पढा। उम्मीद है कि अब कुछ नियमों में बंधकर कोशिश करुगां। जानकारी अनमोल है! इस विषय पर पूरी जानकारी कैसे मिले?

    इस बार लिखते समय यकीनन आशंकित रहूंगा कि कहीं ,दोषपूर्ण तो नहीं लिख रहा हूं। पर आशान्वित भी हूं कि शायद ज्यादा आनंद भी आयेगा !

    @दिगम्बर जी,
    मित्र तुरंत Control "P" दबाईये और इस पोस्ट को PDF form में save कर लीजिये। मैने तो कर डाला है।

    जवाब देंहटाएं
  26. कपूर सर मैं तो सरेंडर कर ही चुका हूं मत्राओं के आगे, अब कार्टूनिंग के आग भी कर रहा हूं :) हिन्दी कविता तो इस छंदवाद से छूट कर "नई कविता" हो गई थी आशा है उर्दू में भी ऐसा ही कुछ ज़रूर हुआ होगा...

    जवाब देंहटाएं
  27. तिलक जी,
    मैंने कहीं पढ़ा था कि 'नाम' और 'बदनाम' उचित काफिये हैं.. यदि ये दो उचित हैं तो 'गुलाब' और 'आब' क्यों नहीं? क्या इसलिए की अलिफ़ वस्ल की स्थिति में बात अलग होती है? कृप्या प्रकाश डालें..

    जवाब देंहटाएं
  28. आपके ब्लाग में दिल लगाकर विचरण शायद पहली बार कर रहां हूं। ब्लाग का कलेवर ख़ूबसूरत है। साथ ही तरही मिसरा से लोगों में ग़ज़ल की दीवानगी को परवाज़ देना एक क़ाबिले तारीफ़ सेवा है अदब की। इसके लिये आप मुबारक बाद के साथ धन्यवाद के भी मुस्तहक़ हैं। आपके द्वारा तरही में मै भी लिखने की कोशिश करूंगा। क्य ग़ज़ल लिख कर आपको ई-मेल द्वारा भेजना है।

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  29. मित्र सुलभ के जरिये आपके ब्लॉग तक पहुंचा. यहाँ आकर अच्छा लगा.
    आगे भी आता रहूँगा.

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  30. गुरु जी प्रणाम,
    आपको जन्मदिन की बहुत बहुत बहुत बहुत शुभकामनाएं




    - आपका वीनस केशरी

    ट्रीट ट्रीट ट्रीट :)

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  31. गुरु जी जन्म दिन की असंख्य शुभकामनाएं| ईश्वर करे यह दिन बार बार आये|

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  32. आदरणीय भाई जी को इस पावन दिन पर जन्मदिन की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाये. आपके आशीर्वाद के लिए आभारी हूँ.
    regards

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  33. GURUDEV,
    HAPPY B'DAY!MANY HAPPY RETURNS OF THE DAY!WISHING YOU JOY AND HAPPINESS IN YOUR LIFE.

    PAKHI

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  34. गुरु देव को सादर प्रणाम,
    जन्म दिन विशेष पे बहुत बहुत बधाइयां और शुभकामनाएं ....


    अर्श

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  35. गुरूजी, जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई.

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  36. सुबीर जी जन्मदिन मुबारक .....

    शुभकामनाएं .....!!

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  37. bi lated
    गुरूजी, जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई.

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  38. प्रणाम गुरु जी,
    मेरे ख्याल से गुलाब और आब काफिये नहीं लिए जा सकते हैं. क्योंकि गुलाब शब्द गुल और आब से मिल के बन रहा है.
    दूसरे काफिये में आब से पहले क्या शब्द आएगा ये भी इस बात का निर्धारण कर सकता है.
    ऐसा मैं सोच रहा हूँ............

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  39. आज फुर्सत में पोस्ट पढ़ रहा हूँ. बहुत दिलचस्प और उपयोगी चर्चाएँ चल रही है.


    मेरे समझ से गुलाब और आब उचित काफिये हैं. 1. दोनो स्वतंत्र शब्द हैं 2. ध्वनि के हिसाब से '...लाब' और '...आब' सही है. 3. उर्दू मात्राओं के हिसाब से भी आब = अलिफ में अलिफ की मात्रा और बे है, गुलाब में भी लाम में अलिफ की मात्रा और बे है.

    अाखरी में बशीर साहब के शेर, हमारे तरही का रुक्न नही है. इसमें दो अलग लघु हैं ये कामिल है.

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