तरही को लेकर पोस्ट एडवांस में ही लगानी पड़ रही हैं क्योंकि इधर तो दीपावली के त्यौहार की व्यस्तता है और उधर कवि सम्मेलनों का जोर । 29 और 30 को लगातार दो रातों को जागना है । पहले लग रहा था कि सीहोर के 30 के कार्यक्रम के चलते 29 का दतिया का कार्यक्रम छोड़ दूं लेकिन फिर राहत भाई की वो बात याद आई जो उन्होंने कानपुर में कही थी कि आजकल के लड़के तीन रातों तक लगातार कवि सम्मेलन में जाग कर ही थक जाते हैं मुझे देखो मैं तीस सालों से रातों को जाग रहा हूं । बस बात भा गई और दतिया जाने का मन बना लिया । एक अलग बात ये है कि वहां पर श्रंगार के गीत पढ़ने के लिये मुझे बुलवाया जा रहा है । मैंने कहा भी कि भई मैं तो ओज की बात करता हूं लेकिन वो नहीं माने । खैर जो कुछ है उसे ही समेट कर पढ़ने जा रहा हूं । वहां जाने के पीछे एक और कारण है और वो है उस भूमि पर जाना जहां पर तंत्र शास्त्र की दश महाविद्याओं में से एक मां बगुलामुखी ( पीताम्बरा ) का सिद्ध शक्ति पीठ है । उस भूमि पर जाकर काव्य पाठ करना अपने आप में विशिष्ट हैं । क्योंकि ऐसा माना जाता है कि मां बगुलामुखी वैदिक सरस्वती का ही रूप हैं । आप भी दर्शन कीजिये मां पीताम्बरा के ।
दतिया में बगुलामुखी शक्ति पीठ में विराजमान मां पीताम्बरा
कानपुर के कवि सम्मेलन के वीडियो तथा तस्वीरें भेजने का भार कुल मिलाकर रवि के मज़बूत ( …….? ) कंधों पर है । एक मजेदार किस्सा है उसे कभी विस्तार से कंचन की जुबानी सुनियेगा कि किस प्रकार मुझे ट्रेन पकड़वाने निकले रवि और कंचन एन कानपुर शहर के बीच में आकर स्टेशन का रास्ता भूल गये । उसे बाद घड़ी की सुइयां चल रहीं थीं ट्रेन का टाइम हो रहा था और रवि को स्टेशन नहीं मिल रहा था । विस्तार से किस्सा सुनाने की जिम्मेदारी कंचन पर ।
जलते रहें, दीपक सदा, क़ाइम रहे, ये रोश्ानी
तो चलिये आज के तीनों शाइरों से उनकी ग़ज़लें सुनते हैं । आज तीन शाइर श्री निर्मल सिद्धू, श्री संजय दानी और श्री विनोद कुमार पांडेय अपनी रचनाएं लेकर आ रहे हैं । हर बार तीन शाइरों को लेने के पीछे कारण ये है कि दीपावली के दिन तक मुशायरे का समापन हो जाये ।
निर्मल सिद्धू
निर्मल जी का नाम तरही के लिये नया नहीं है । वे नियमित रूप से तरही में आते रहते हैं और उम्दा ग़ज़लें सुनाते रहते हैं । टोरेंटों कनाडा में निवासरत हैं तथा मेरी जानकारी में वे फिलहाल अपना कोई ब्लाग नहीं चलाते हैं लेकिन उनकी रचनाएं सभी अंतरजालीय पत्रिकाओं में छपती हैं और खूब सराहना पाती हैं ।
सारा शहर दुल्हन बना ख़ुशियाँ उतारें आरती
चन्दा नहीं फिर भी लगे पुर-क़ैफ़ बिखरी चाँदनी
आओ कि हम देखें ज़रा क्या धूम मचती कू-ब-कू
आतिश चले लड़ियाँ सजें छंटने लगी सब तीरगी
ऐसा लगे हर सू ख़ुदाई नूर है फैला हुआ
मख़्मूर सब तन-मन हुआ खिलने लगी मन की कली
मिलते रहें दिल-दिल से तो चमका करे हर ज़िन्दगी
जलते रहें दीपक सदा क़ायम रहे ये रौशनी
मन का दिया रौशन हो जब जाते बिसर दुनिया के ग़म
बचता न कुछ भी शेष फिर बचती फ़कत दीवानगी
पैग़ाम देता है यही, त्योहार ये इक बार फिर
हम दोस्ती में डूब जायें भूल कर सब दुश्मनी
हमदम बनें, मिल कर चलें, सपने बुनें, नग़्मे लिखें
जीवन डगर पे रोज़ हम छेड़ें नई इक रागिनी
माना चमन में हर तरफ़ माहौल है बिगड़ा हुआ
फिर भी ख़ुदा पे रख यक़ीं दिखलायेगा जादूगरी
बाहों में बाहें डाल कर, दुख-दर्द सारे भूल कर
परिवार संग निर्मल मेरे तू युं मना दीपावली
हूं बहुत ही उम्दा शेर इस बार भी निकाले हैं और अपने मन की कहूं तो खुदा की जादूगरी दिखलाने वाला शेर मन को भा गया । हालांकि सारे शेर जबरदस्त हैं मगर इस शेर की तो बात ही कुछ और है ।
विनोद कुमार पांडेय
पिछले कुछ समय से विनोद जी भी मुशायरे में नियमित आ रहे हैं । और अपनी बहुत अच्छी ग़ज़लों से लुभा रहे है । मेरी जानकारी के अनुसार वे नुक्कड़ नाम के एक सामुहिक ब्लाग के सदस्य हैं तथा स्वयं का मुस्कुराते पल ब्लाग है, उनकी रचनाएं भी कई अंतरजालीय पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं ।
मत पूछ मेरे हाल को बेहाल सी है जिंदगी
मैं बन गया हूँ,आजकल अपने शहर में अजनबी
जो वाहवाही कर रहे थे, आज हमसे हैं खफा
एक बार सच क्या कह दिया, ऐसी मची है,खलबली
वो दौर थी,जब दोस्ती में जान भी कुर्बान थी
अब जान लेने की नई तरकीब भी है दोस्ती
हम तो वफ़ा करते रहे, सब भूल कर उसके करम
था क्या पता हमको कभी भारी पड़ेगी दिल्लगी
चट्टान को भी चीर कर जिसने बनाया रास्ता
क्या हो गया है आज क्यों, सूखी पड़ी है वो नदी
ठगने लगे हैं लोग अब इंसानियत के नाम पर
भगवान भी हैरान है,क्या चीज़ है यह आदमी
कल रात ही एक और ने भी हार मानी भूख से
पाए गये आँसू ज़मीं पे रो पड़ा था चाँद भी
आनंदमय हो दीप का,त्यौहार पूरे देश को
जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रोशनी
हूं बहुत अच्छे शेर निकाले गये हैं । चट्टान को भी चीर कर जिसने बनाया रास्ता में कई कई अर्थ छिपे हैं और कई कई अर्थ बहुत ही आनंद दायक हैं । उधर भगवान की हैरानियत वाला शेर भी बहुत प्रभावशाली है । वाह वाह वाह ।
डॉ. संजय दानी
संजय दानी जी संभवत: मुशायरे में प्रथम बार ही आ रहे हैं । आप एक कान नाक गला सर्जन हैं ,छत्तीसगढ के दुर्ग शहर में 20 सालों से प्रेक्टिस कर रहे हैं । पिछले 10 सालों से ग़ज़लों की दुनिया में अपनी भागीदारी दर्ज़ करा रहे हैं, दो किताबें ( मेरी ग़ज़ल -मेरी हमशक्ल {2007 में} और खुदा खैर करे {2009} छप चुकी हैं। 3री किताब चश्मे-बद्दूर प्रेस में है। आप अपना ब्लाग ग़ज़ल के नाम चलाते हैं ।
जलते रहें दीपक सदा क़ाइम रहे ये रौशनी,
दिल के मुहल्ले में बुझा दो अब चराग़े दुश्मनी।
इस मुल्क की ख़ातिर सिपाही मर रहे हैं इक तरफ़,
दूजी तरफ़ ज़ुल्मी सियासत है दलाली में फ़ंसी।
मैं इश्क़ के जंगल में बैठा हूं अकेला सदियों से,
पर हुस्न के चौपाल में महफ़िल हवस की है सजी।
तेरी मुहब्बत में मुझे दरवेशी का कासा मिला,
उस कासे के रुख़सार पर लिख दी गई आवारगी।
दिल एक हरजाई नदी में डूब कर नासाज़ है,
तन की ख़ुमारी मिट गई पर सर की इज़्ज़त ना बची।
परदेश से तुम लौट आना ज़ल्द मां कहती है ये,
पर मेरी तहज़ीबे शिकम की, पैसों से है दोस्ती।
कश्ती मुहब्बत की मेरी मजबूत थी, जिसकी वफ़ा,
को देख कर तेरी नदी की बेवफ़ाई डर गई।
जबसे चराग़ों की ज़मानत मेरे हक़ में आई हैं,
तब से हवाओं की अदालत में खड़ी है बेबसी।
अब रिश्तेदारी तौल कर दानी निभाये जाते हैं,
बाज़ारे दिल ने शहर में ना जाने कितनी है गली।
इसे कहते हैं आते ही महफिल को लूट लेना । जबसे चरागों की जमानत मेरे हक़ में आई है में उस्तादाना रंग दिखाई दे रहा है । संजय जी ने शब्दों को दोनों रुक्नों में विस्तार देने के प्रयोग किये हैं । इस प्रकार के प्रयोगों से पढ़ते समय काफी सावधानी रखनी पड़ती है । मैं इश्क के जंगल में वाला मिसरा इसी प्रकार का मिसरा है । बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।
चलिये अब तीनों शाइरों की शानदार ग़ज़लों का आनंद लीजिये और मुझे इजाज़त दीजिये । हो सकता है अब तरही का अगला अंक कुछ विलम्ब से आये । अगले अंक में मिलते हैं तीन और शाइरों के साथ ( इंशाअल्लाह ) ।
teeno shayar kamal k hai. vinod pandey ki baat karoo to, is naye shayar me achchhi sambhavanaen dikh rahi hai, isliye (sabko to anant shubhkamanayn) vinod ko alag-se shubhkamanaye.....
जवाब देंहटाएंपंकज जी, बहुत अच्छा कलाम देखने को मिल रहा है
जवाब देंहटाएंऔर इसके लिए सबसे पहले मुबारकबाद के हक़दार आप हैं
आज की महफ़िल में माशा अल्लाह निर्मल सिद्धू जी, संजय दानी जी और विनोद कुमार पांडेय की ग़ज़लें बहुत उम्दा रहीं...
और हां-
वो दौर था, जब दोस्ती में जान भी क़ुरबान थी
अब जान लेने की नई तरक़ीब भी है दोस्ती
विनोद कुमार पांडेय जी का ये कमाल का शेर है...
वाह वाह वाह...
चाहे जितनी दाद दें इस शेर पर...वो कम ही रह जाएगी.
निर्मल सिद्धू जी तो मझे हुये गज़लकार हैं।
जवाब देंहटाएंमख्मूर सब तन मन हुया----
माना चमन का-----
सकारात्मक सोच के साथ अच्छा सन्देश देते अशआर बहुत अच्छे लगे। सिद्धू जी को बधाई।मुझे लगता है इनका ब्लाग है या राईटर्स गिल्ड नाम से कोई ब्लाग है बहुत दिन हो गये देखे हुये।
विनोद जी का तो क्या कहना चुपके से उस्ताद बन गये। ये हास्य और कटाक्ष भी बहुत अच्छा लिखते हैं।--
वो दौर थी जब ----
चट्टान को भी-----
हम तो वफा करते --
बहुत अच्छे शेर निकाले हैं विनोद जी को बधाई।
अभी एक दो दिन पहलझी संजयदानी जी को पढा था शायद हिन्दयुग्म या वटवृक्ष पर बहुत अच्छी गज़लेँ थी
इस मुलक की खातिर----
तेरी मुहब्बत मे मुझे---
जब चरागों की जमानत---
वाह वाह बहुत खूब।तीनो ने बहुत अच्छी गज़लें लिखी है । बधाई।
गुरुदेव दतिया के श्रृंगार क़ि रेकार्डिंग जरूर लगाइयेगा ... आपका ये अंदाज़ भी लाजवाब होगा ...
जवाब देंहटाएंअब तरही क़ि तरफ .... निर्मल जी ने सही नब्ज़ पकड़ी है दीपावली के त्यौहार क़ि जब वो कहते हैं .... पैगाम देता है यही ... सच में हमारे त्यौहार अमन, चैन, दोस्ती और प्रेम का सन्देश देते हैं ....
विनोद जी ने तो आज के हालात पर जैसे कड़ा प्रहार किया है ... हर शेर में ज़माने का चलन नज़र आ रहा है ... कुछ न कुछ बोल रहा है हर शेर ... व्यंग लिखने में तो विनोद जी वैसे ही माहिर हैं .... ये ग़ज़ल भी उसी अंदाज में बहुत कमाल है ....
और संजय जी ने तो पहले शेर में ही कमाल कर दिया लूट लिया आज का दिन .... परदेस से तुम लौट कर ... इस शेर ने बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया ... कभी कभी लगता है ये सच ही है ....
एक बार फिर सिद्ध हो रहा है कि शायर के हाथ टेढ़ी खीर भी दे दो वो सीधी कर देता है। ये बह्र जो लग रही थी कि गेयता के अभाव में कहनी मुश्किल रहेगी कैसे ठुमक-ठुमक कर चल रही है सधे हुए (अश्आर नहीं कहूँगा) शेरों के साथ।
जवाब देंहटाएंकितने अलग अलग रंग लिये हैं अब तक आयी सभी ग़ज़लें।
सभी बधाई के पात्र हैं, नवागुंतक स्वागत के साथ।
महफिल सजाने के लिये अश्अार की तरही चली,
शायर चले, ग़ज़़लें चलीं, महका चमन, महकी गली।
आनन्द आ गया. बहुत उम्दा....
जवाब देंहटाएंनिर्मल जी हमारे शहर के हैं, उनका ब्लॉग:
http://hwgnirmalsidhu.blogspot.com/
है.
निर्मल जी एवं संजय जी खूब महफ़िल जमा दिया आप लोगों नें..एक से बढ़ कर सुंदर शेर...ये दीवाली मुशायरा बहुत ही खास होने जा रहा है शुरुआत से ही बढ़िया शेर पढ़ने को मिल रहें हैं...निर्मल जी एवं संजय जी को ढेर सारी बधाइयाँ....रहा मैं वो तो आप सब के आशीर्वाद से अभिभूत हूँ, खास कर पंकज जी जिन्होने इतनी बढ़िया मुशायरा आयोजित की. पंकज जी का बहुत बहुत आभार और प्रणाम भी....
जवाब देंहटाएंडा॰ संजय दानी जी, विनोद कुमार पांडेय जी, निर्मल सिद्ध जी, शाहिद मिर्ज़ा, कुश शर्मा, प्रकाश पारखी जी आप सभी को बधाई व शुभकामनायें दीपाली के अवसर पर. सुबीर जी, और तमाम मंचासीन साहित्यकारों को भी दिली मुबारकबाद!!!!
जवाब देंहटाएंजलते रहें दीपक सभी, दीपावली, दीपावली
रौशन हुई महफ़िल है अब, हरसू मिली पाकीज़गी
पढ़ कर हुई है दंग क्यों, हर शेर को देवी यहाँ
रंगीन है दीपावली, है धूम भी मची हुई
आल्फाज़ कम क्यों पड़ रहे, गुमसुम है क्यों अब मौन भी
है सोच में भी खलबली, हिम्मत कहाँ जाने चली
ये शाइरी क्या चीज़ है? लगती मुझे आवारगी
दीवानगी दीवानगी दीवानगी दीवानगी !
देवी नागरानी
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जवाब देंहटाएंकुछ लोग छोड़ खुदा को, करते हैं यार की बंदगी,
जवाब देंहटाएंकुछ दोस्ती की सूद में ,ले जाते हैं यार की ज़िन्दगी.
पंकज जी काफी अच्छा लगा इन सभी के शेर पढ़ कर ..
तीनों प्रस्तुतियाँ बेहतरीन. पंकज जी को विषेष बधाई इन रत्नों को सामने लाने के लिये
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया और कामयाबी की ओर रवां दवां मुशायरा
जवाब देंहटाएंतीनों ही शायर मुबारकबाद के हक़दार हैं
निर्मल जी का
पैग़ाम देता है............
हम्दम बनें.............
और पांडे जी का
ठगने लगे हैं..........
चट्टान को भी.............
संजय जी का
इस मुल्क की ख़ातिर........
बहुत उम्दा अश’आर हैं
अच्छी ग़ज़लें.
जवाब देंहटाएंनिर्मल जी का "जादूगरी" वाला शेर बहुत अच्छा लगा..
विनोद पांडे जी का "चट्टान को भी चीर.." और "इक बार सच क्या कह दिया.." शेर खास तौर पर पसंद आये.
संजय जी का मतला और "चरागों की जमानत.." वाला शेर तो बहुत ही अच्छा है.
गजब की प्रस्तुतियां! अब इस से अधिक मेरा कथन सूरज को चिराग साबित होगा!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़लें...पढ़कर आनंद आ गया। ये सिलसिला जारी रखिएगा। सभी शायरों और आपके प्रति हृदय से आभार।
जवाब देंहटाएंअाचार्य जी, अापने तो घर बैठे मां पीताम्बरा के दर्शन करा दिये. बहुत बहुत शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंआगामी सभी व्यस्त कार्यक्रमों मे अापकी उपस्थिति शानदार हो, यही कामना है.
तरही मुशायरे पर कुछ कहना मुश्किल है. फिलवक्त तो मै आनंद के सागर मे डूब उतर रहा हुं.
निर्मल जी, विनोद जी अौर डा. दानी जी ने क्या खूब शाईरी कही है.
तीनो ही प्रयास बहुत अच्छे थे। (मेरा जो सधा कदम आयेगा, उससे तो ये सब ठुमकते हुए कदम बहुत अच्छे हैं हा हा हा)
जवाब देंहटाएंऔर गुरू जी उस प्रकरण पर तो वहीं बात हो गई थी कि आप को लिखना है। उस पर आपके वन लाईनर हास्य के तड़के के आस्वाद के लिये मैं बहुत बेचैन हूँ....!!
बस ये कि रविकांत की कूल पर्सनॉलिटी पर वारी जावाँ मै तो....!!
निर्मल सिद्धू जी की जादूगरी का कोई जवाब नहीं.
जवाब देंहटाएं"माना चमन में हर तरफ़ माहौल है बिगड़ा हुआ
फिर भी ख़ुदा पे रख यक़ीं दिखलायेगा जादूगरी"
विनोद कुमार पाण्डेय जी, बहुत अच्छा मतला लिखा है.
इस शेर के क्या कहने,
"वो दौर थी,जब दोस्ती में जान भी कुर्बान थी
अब जान लेने की नई तरकीब भी है दोस्ती"
"चट्टान को भी चीर..........'' और "ठगने लगे हैं लोग अब........." भी बहुत अच्छे बने हैं.
डॉ. संजय दानी जी, वाह-वा क्या कमल का शेर कहा है,
"जबसे चराग़ों की ज़मानत मेरे हक़ में आई हैं,
तब से हवाओं की अदालत में खड़ी है बेबसी"
तीनो ही ग़ज़लें जबरदस्त हैं. तीनो शायरों को ढेरो बधाइयाँ.
सर्वप्रथम पंकज कि का धन्यवाद जिन्होनें मुझे यहां छपने का मौक़ा दिया। मैं निर्मल जी और पा्ंडेय जी का भी शुक्रगुज़ार हूं कि आज मेरी क़िस्मत उन जैसे नामी गिरामी लोगों के साथ छपने की थी जिससे उनके हिस्से की कुछ तारीफ़ मेरी झोली में भी आ गिरी। अंत में सभी टिप्पणीकारों को मेरा शत शत सलाम।
जवाब देंहटाएंभाई श्री निर्मल सिद्धू जी,
जवाब देंहटाएंभाई श्री संजय दानी जी
और भाई श्री विनोद कुमार पांडेय की
रचनाये बहुत उम्दा लगीं
यात्रा पर हूँ
इसलिए आज बस इत्ती - सी कमेन्ट
को ही बड़ी मान कर
दीपावली पर शुभकामना
व अमन का संदेशा
अपनाया जाए
इतना कहते हुए आज्ञा
स स्नेह
- लावण्या
गुरु जी प्रणाम,
जवाब देंहटाएंयह पोस्ट पढ़ कर जब तारीख और समय देखा तो अनुमान लगा रहा हूँ इस समय आप दतिया के कार्यक्रम में होंगे
अपनी शुभकामनाएं प्रेषित कर रहा हूँ
सीहोर का कार्यक्रम भी धुआधार ही होगा :)
तरही भी तो धुँआधार शुरुआत पा चुकी है
कानपुर का किस्सा भी खूब पढवा दिया आपने,
सिहोर से लौटते समय का अपना टैक्सी का सफर याद आ गया
हा हा हा
संजय जी, विनोद जी, निर्मल जी
तीनों गज़ल बहुत पसंद आई
एक खास बात जो तीनों गज़ल में सामान रूप से पसंद आई वो है ८-९ शेर की गज़ल
अक्सर ऐसा होता है की अधिक शेर गज़ल में झोल पैदा कर देते है मगर बहुत मज़ा आया और अच्छा लगा की तीनों गज़ल के सभी शेर अच्छे बन पड़े है
बहुत बहुत बधाई
@ निर्मल जी -
जवाब देंहटाएंआपके इस शेर की तो जितनी तारीफ़ करू कम है
माना चमन में हर तरफ़ माहौल है बिगड़ा हुआ
फिर भी ख़ुदा पे रख यक़ीं दिखलायेगा जादूगरी
दूसरा मिसरा (खास कर "जादूगरी" काफियाबंदी) इतना जोरदार बन पड़ा है की क्या कहूँ
बस बार बार पढ़े जा रहा हूँ
आपने, ऊपर वाले पर अटूट विशवास, श्रद्धा और "सच का बोलबाला झूठे का मुह काला" का जोरदार समर्थन करता जानदार शेर लिखा है
बहुत बहुत बधाई
@ विनोद जी -
बहुत बेहतरीन व्यंग और झकझोर देने वाले शेर समेटे आपकी गज़ल बहुत पसंद आई
एक शेर कोट करना चाहता था दुविधा में फंस कर तीन को कोट कर रहा हूँ
जो वाहवाही कर रहे थे, आज हमसे हैं खफा
एक बार सच क्या कह दिया, ऐसी मची है,खलबली
चट्टान को भी चीर कर जिसने बनाया रास्ता
क्या हो गया है आज क्यों, सूखी पड़ी है वो नदी
ठगने लगे हैं लोग अब इंसानियत के नाम पर
भगवान भी हैरान है,क्या चीज़ है यह आदमी
@ संजय जी -
ये दो शेर लाजवाब हैं
उस्तादाना जलवे बिखेरते शेर को मेरा सलाम
इस मुल्क की ख़ातिर सिपाही मर रहे हैं इक तरफ़,
दूजी तरफ़ ज़ुल्मी सियासत है दलाली में फ़ंसी।
जबसे चराग़ों की ज़मानत मेरे हक़ में आई हैं,
तब से हवाओं की अदालत में खड़ी है बेबसी।
--------------------------------
गुरु जी
वो दौर थी,जब दोस्ती में जान भी कुर्बान थी
इस मिसरे में "वो दौर थी", को "वो दौर था" कर दें
और
बाज़ारे दिल ने शहर में ना जाने कितनी है गली।
इस मिसरे में
"बाज़ारे दिल ने", को "बाज़ारे दिल के"
कर दें
अभी तक टाईपिंग की त्रुटि की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिलाया इसलिए कह दिया :)
- आपका वीनस
निर्मल सिद्धू जी:
जवाब देंहटाएंनिर्मल सिद्धू जी को शायद मैं पहली बार पढ़ रहा हूँ| सच ये दुनिया कितनी बड़ी है और हम हैं कि अपनी अपनी दुनिया में ही मस्त रहते हैं| निर्मल भाई के बयानों का अंदाज दिलकश है|
"हम दोस्ती में डूब जाएँ, भूल कर सब दुश्मनी"
"फिर भी खुदा पे रख यकीँ, दिखलायगा जादूगरी"
ये मिसरे बहुत ही दिलकश लगे| खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई निर्मल जी|
विनोद जी:
खलबली, दिल्लगी और सूखी नदी वाले मिसरे कमाल के हैं| "पाए गये आँसू ज़मीं पे, रो पड़ा था चाँद भी" भूख से हारे इंसान की हालत पर रोते चाँद की बात शायद पहली बार की है किसी शायर ने वो भी खास कर इस अंदाज में| बहुत बहुत शुभकामनाएँ विनोद जी|
डा. संजय दानी जी:
संजय जी को पढ़ने का सब से पहले मौका मिला था रचनाकार में| भाई दिल में तीर की तरह सीधे उतर जाने वाले मिसरों के साथ ग़ज़ल कहने के शैदाई हैं आप|
राजनीतिक दलाली और सरहद पर के सिपाहियों पर बहुत ही सशक्त टिप्पणी की है आपने| माँ की छटपटाहट और बेटे की तहज़ीबे शिकम को भी बहुत ही सकारात्मक रूप से वर्णित किया है आपने संजय भाई| अक्सर इस मसले पर कई सारे लोग सिक्के के एक पहलू को ही ले बैठते हैं, आपने दूसरे पहलू को छू कर बहुत ही सराहनीय कार्य किया है| दिल दिमाग़ को सोचने पर विवश करती ग़ज़ल पेश करने के लिए बधाई स्वीकार करें डाक्टर साब|