दीपावली का त्यौहार भी सामने आ गया है । और इस बार तो तरहीं को लेकर काफी सारी रचनाएं मिली हैं । दीपावली को लेकर भारतीय जनमानस में एक विचित्र प्रकार का उत्साह और उमंग देखने को मिलता है । इस बार की तरही में काफी अच्छी रचनाएं मिली हैं । चूंकि 25 अक्टूबर अंतिम तिथि थी इस बार तरही को प्राप्त करने की अत: अब तरही को प्रारंभ करना ही चाहिये ।
इस बीच कवि सम्मेलनों की व्यस्ततता भी बनी हुई है । 23 को आई आई टी कानपुर के कार्यक्रम अंतराग्नि ( IIT KANPUR ANTRAGNI 2010) में काव्य पाठ और संचालन करने की एक अलग ही अनुभूति हुई । वे सब जो आने वाले कल को हमारा स्थान लेंगें उनके बीच में कविता पढ़ना बहुत अच्छा लगा । पहले तो ये लगा था कि न जाने ये लोग कविता सुनेंगें भी या नहीं लेकिन जिस प्रकार से जिस उत्साह से उन बच्चों ने कविता सुनी वो देख कर आनंद आ गया । कुल मिलाकर हम पांच ही कवियों की टीम थी डॉ राहत इन्दौरी, श्रीमती कीर्ती काले, श्री गुरू सक्सेना, श्री पवन जैन और पंकज सुबीर । और पांचों के हिस्से में था तीन घंटे का समय । क्योंकि अगला कार्यक्रम उसी मंच पर शुरू होना था । लेकिन बच्चों ने वन्स मोर कर कर के तीन घंटे को चार घंटे का करवा लिया और बड़ी मुश्किल से कार्यक्रम को समापन किया । कविता अपनी जगह तलाश लेती है । डॉ राहत इन्दौरी साहब की ग़ज़लों पर आने वाले कल के इंजीनियर जिस प्रकार से झूम रहे थे उसे देख कर लगा कि चिंता की कोई बात नहीं है, कविता का भविष्य सुरक्षित है । उस कार्यक्रम के बाद फिर अगले दिन सुब्ह रविकांत के घर पर एक छोटी सी काव्य गोष्ठी हुई जिसमें कंचन, रवि सहित स्थानीय कवियों ने भाग लिया ।
शुक्रवार 29 अक्टूबर को मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग के तीन दिवसीय महोत्सव में जो कि पीताम्बरा पीठ दतिया में हो रहा है उसमें काव्य पाठ के लिये जाना है वहां श्री विष्णु सक्सेना, श्री अरुण जैमिनी आदि हैं, हालांकि यहां जाने को लेकर कुछ संशय है सीहोर के कार्यक्रम के कारण । दतिया मां बगुलामुखी का एक जागृत पीठ है । तीस अक्टूबर को सीहोर मेरे ही शहर में कवि सम्मेलन है जिसमें डॉ कुमार विश्वास, श्रीमती सरिता शर्मा, धमचक मुल्तानी, श्री पवन जैन, शशिकांत शशि, व्यंजना शुक्ला, मोनिका हठीला, अशोक चौबे, सुरेंद्र सुकुमार तथा पंकज सुबीर का काव्य पाठ होना है । आप सब भी सादर आमंत्रित हैं ।
जलते रहें, दीपक सदा, क़ाइम रहे, ये रोशनी
तिलक जी ने एक और सलाह दी थी कि यदि हर रुक्न अपने आप में सम्पूर्ण हो तो और आनंद आएगा । मजे की बात ये है कि अधिकांश ग़ज़लों में शायरों ने यही किया है । रुक्न सम्पूर्ण का मतलब जैसा मिसरा ए तरह में है (जलते रहें 2212 ) रुक्न का कोई शब्द टूट कर अगले रुक्न में नहीं जा रहा है ।
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
आज की पहली ग़ज़ल शाहिद मिर्जा जी की है । और इसमें खास बात ये है कि इसमें केवल मतले ही मतले हैं । ये नये प्रकार का प्रयोग है । तथा दूसरी ग़ज़ल में भी यही प्रयोग किया गया है । तो मुझे लगा कि हमारी गंगा जमुनी संस्कृति को देखते हुए दीपावली के मुशायरे का आगाज़ शाहिद मिर्जा जी से ही करवाया जाए ।
बदला है क्या, कुछ भी नहीं, तुम भी वही, हम भी वही
फिर दरमियां क्यों फ़ासले, क्यों बन गई दीवार सी
रिश्तों की ये क्या डोर है, कैसी है ये जादूगरी
मुझमें कोई रहता भी है, बनकर मगर इक अजनबी
ठहरा है कब वक़्त एक सा, रुत हो कोई बदली सभी
अब धूप है, अब छांव है, अब तीरगी, अब रोशनी
मायूसियों की आंधियां, थक जाएंगी, थम जाएंगी
बुझने नहीं देना है ये उम्मीद का दीपक कभी
महफ़ूज़ रख, बेदाग़ रख, मैला न कर ताज़िन्दगी
मिलती नहीं इन्सान को किरदार की चादर नई
मज़िल है क्या, रस्ता है क्या, सीखा है जो मुझसे सभी
वो शख़्स ही करने लगा आकर मेरी अब रहबरी
समझा वही शाहिद मेरे अहसास भी, जज़्बात भी
थोड़ा बहुत पानी यहां आंखों में है जिस शख़्स की.
वाह वाह वाह क्या मतले निकाले हैं । ठहरा है कब वक्त एक सा और मायूसियों की आंधियां में तो बस आनंद लिया जा सकता है । आगाज़ ये है तो आगे क्या होगा । तो इस सुनहरे आगाज़ पर तालियां बजाइये ।
के. द. लियो 'Ktheleo' ( ले. कर्नल कुश शर्मा )
के द लियो ( ले. कर्नल कुश शर्मा) शायद यही नाम है इस गुमनाम शायर का । गुमनाम इसलिये कि आज तलक चित्र भी देखने को नहीं मिला है । सच है कई लोग गुमनाम रह कर ही काम करना चाहते हैं । इन्होंने भी केवल तीन मतले ही भेजे हैं ।
जीवन रहे, रोशन सदा, बढती रहे, ज़िंदादिली
तुमने कहा, मैंने सुना, बहने लगी, ये ज़िन्दगी
सपने सजें,खिलते रहें, गुलशन बने, वीरान भी
खिडकी खुले, सूरत दिखे, होती रहे, दीपावली
सबके लबों, पर है दुआ, फैले न फिर, से तीरगी
जलते रहें, दीपक सदा, काइम रहे, ये रोशनी,
हूं कम लिखा है लेकिन अच्छा लिखा है । शुद्ध रुक्नों और सम्पूर्ण रुक्नों का बहुत ही अच्छा प्रयोग किया गया है । अंतिम मतला अयोध्या मसले के व्यपाक परिप्रेक्ष्यों को अंतर्निहित किये है । वाह वाह वाह ।
प्रकाश पाखी
इनकी ग़ज़ल भी इसलिये खास है कि इन्होंने अलग अलग विषयों को बहुत ही अच्छे तरीके से बांधा है आपनी ग़ज़ल में । और कुछ शेर बहुत अच्छे निकाले हैं ।
दीपावली
जलते रहें दीपक सदा काईम रहे ये रोशनी
रजनी से गहरी निस्बतों में सुब्ह की हो ताजगी
भोपाल का न्याय
अब खद्दरें खामोश हैं,अब मरघटों सा मौन है
इक कत्ल है इन्साफ का, और लाश है भोपाल की
नौकरशाही
दफ्तर गया, चप्पल घिसे, अब तो कबीरा मान जा
अफसर करे ना काम, ज्यूँ अजगर करे ना चाकरी
अयोध्या निर्णय
सेंकीं सियासत ने सदा जिस आग पर हैं रोटियां
सब मिल बुझा दें जो इसे, हो देश में दीपावली
आर्थिक संकट,खेल और भारत
तूफ़ान में अविचल रहा, दिल्ली में ये अव्वल रहा
अब मेरे हिन्दुस्तान की तू देख पाखी बानगी
वाह वाह वाह बहुत ही शानदार शेर निकाले हैं । विशेष कर भोपाल गैस कांड पर तो अनोखा शेर है ( गैस कांड का प्रतयक्षदर्शी हूं मैं ) । ये अच्छी बात है कि अयोध्या मामले पर सकारात्मक नज़रिया आज की ग़ज़लों में आ रहा है । बस यही तो वो है जिसकी ज़रूरत है । बहुत अच्छी ग़ज़ल ।
और चलते चलते कानपुर के कवि सम्मेलन का एक समाचार ( वीडियो तथा फोटो तो रवि के रहमो करम पर हैं । )
सब से पहले आपको कवि सम्मेलन के सफल समापन के लिये बधाई और अगले कवि सम्मेलन के लिये ढेरों शुभकामनायें। कई बार हैरान होती हूँ कि इतनी व्यस्तताओं मे भी आप सब के लिये कैसे समय निकाल लेते है। दिवापली मुशायरे के शुभारंभी की सभी को बधाई
जवाब देंहटाएंप्रकाश पाखी जी की गज़ल पढ कर हैरान हूँ। यही समझ नही आ रहा कि किस शेर को कहूँ कि इसने दिल को नही छुआ। भोपाल गैस त्रास्दी वाला शेर तो वाकई कमाल का है लेकिन आखिरी दो शेर
सेंकी सियासत ने सदा----
और
तूफान मे अविचल रहा----
वाह जितनी तारीफ करेंकम है। इस लाजवाब गज़ल के लिये पाखी साहिब को बधाई। आपको इस आयोजन के लिये बधाई और शुभकामनायें। आशा है जल्दी उस कवि सम्मेलन का वीडिओ देखने को मिलेगा।
सेहोर के कार्यक्रम के बारे में सुन कर जी चाह रहा है की वहाँ पहुँच जाऊं लेकिन मजबूरी है.
जवाब देंहटाएंकानपुर का सम्मेलन अवश्य ही बहुत अच्छा रहा होगा.
तरही की बहुत ही अच्छी शुरुआत हुई है.सभी ग़ज़लें बहुत ही अच्छी हैं.
शाहिद जी के सभी शेर अच्छे लगे.गुमनाम गज़ल भी अच्छी लगी.. गिरह वाला शेर काफी अच्छा बन पाया है. प्रकाश पाखी जी की गज़ल भी क्या कहने.. 'अजगर करे ना चाकरी' वाला शेर और 'भोपाल' वाले शेर खास तौर पर पसंद आये.
पंकज जी ,
जवाब देंहटाएंतरही मुशायरे की शुरूआत ही ज़बर्दस्त हो गई पहले तो आप मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं ,
मह्फ़ूज़ रख ,बेदाग़ रख मैला न कर ताज़िंदगी
मिलती नहीं इंसान को किरदार की चादर नई
बहुत ख़ूब !एक ऐसी सीख देता हुआ शेर जो इंसान की ज़िंदगी की सब से क़ीमती धरोहर की हिफ़ाज़त करेगा
और आख़री शेर ....
बहुत उम्दा शायरी !पानी शब्द के २ अर्थ निकालें तो दोनों तरह से शेर अपनी ख़ूबसूरती बनाए रखता है
सब के लबों पर है दुआ फैले न फिर से तीरगी
जवाब देंहटाएंजलते रहें..................
बहुत ख़ूब!
प्रकाश पाखी जी की ग़ज़ल भी बहुत उम्दा है ,ख़ास तौर पर भोपाल का न्याय और अयोध्या निर्णय वाले शेर ,उम्दा शायरी के दर्शन होते हैं प्रकाश जी की ग़ज़ल में
सभी शायरों और पंकज जी को शुभकामनाएं
अरे वाह, दीपावली की शुभकामनाओ से सुसज्जित चित्र और झिलमिल करते दीपक के मनमोहक मंजर से होश आये तो कुछ कहा जाए. कवि सम्मेलन के सफल आयोजन की हार्दिक बधाई. तीनो गजले एक से एक.....
जवाब देंहटाएंregards
नाचीज़ के कलाम से मुशायरे का आग़ाज़ करने के लिए शुक्रिया पंकज जी...
जवाब देंहटाएंसेंकीं सियासत ने सदा जिस आग पर हैं रोटियां
सब मिल बुझा दें जो इसे हो देश में दीपावली...
प्रकाश जी का ये शेर बेशकीमती मश्वरा है...
इसी तरह
के.द. लियो साहब की-
सबके लबों पर हैं दुआ फैले न फिर से तीरगी
गिरह भी अच्छी हुई है...
इस आयोजन के लिए बधाई.
शाहिद भाई कहाँ हो? आपकी गज़ल पढ़ कर आपको गले लगाने का दिल कर रहा है...क्या शुरुआत की है इस तरही की...सुभान अल्लाह...हर शेर इतना खूबसूरत है के पढते वक्त बार बार ठिठकने को मजबूर करता है...कसम से हम तो कुर्बान हो गए आपकी शायरी पर...
जवाब देंहटाएंअनजान साहब ने इतने अच्छे शेर कह कर अनजान ही बने रहने की जिद क्यूँ पाल रखी है ये बात समझ में नहीं आई...भाई बेहतरीन शायर हो खुल कर सामने आओ...
पाखी जी ने जो किया है वो सिर्फ कमाल ही कहा जा सकता है...इतने अलग अलग मुद्दों पर इतने जबरदस्त तरीके से शेर कहना कितना मुश्किल होता है ये बताने की जरूरत नहीं...ये काम उस्ताद ही कर सकते हैं...इसलिए उस्ताद प्रकाश पाखी को बंदे का सलाम...
गुरुदेव आपतो विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं...मैं बार बार कहता आया हूँ और फिर अपनी उसी बात को दोहरा रहा हूँ के आप के साथ जो हो रहा है वो तो सिर्फ शुरुआत है...आगे आगे देखिये आप कहाँ पहुँचते हैं...अभी तो आपने उड़ान भरी है...आसमान पर पहुँचने दीजिए फिर कमाल देखिये...इस दुनिया पर एक दिन आपकी प्रतिभा का परचम फहरने वाला है.
नीरज
कवि सम्मेलन के लिये बधाइयाँ।
जवाब देंहटाएंतीनों ही शायर की गज़लें लाजवाब रहीं ……………आगाज़ बहुत ही बढिया रहा।
यहाँ एक मतला निकालने में जान पर बन गई थी और शाहिद जी ने गज़ल ही मतलो पर बना दी... ? वाह भाई वाह और ऐसे मतले जो एक से बढ़ कर एक हैं। किसी के लिये कुछ कहा नही जा सकता।
जवाब देंहटाएंके द लिओ नाम थोड़ा खींचता है यूँ भी मुझे। के फॉर कंचन और लिओ मेरा ज़ोडिएक साइन है। तो मैं भी कभी छद्मनाम से लिखना चाहूँ तो ये नाम चुरा सकती हूँ। हा हा हा। वैसे द लिओ जी पहले बहर में नही लिखते थे और अब जब अभी ही इसमें लिखने की शुरुआत की है तो उस तरह से अच्छी प्रगति है।
प्रकाश जी ने अलग अलग सामाजिक विषय चुन कर अच्छा लिखा है।
"अफसर करे ना काम ज्यूँ अजगर करें ना चाकरी"
लोकोक्ति को ले कर ये अच्छा प्रयोग है।
और आपसे मिलना...गोष्ठी तो जो थी वो थी। मगर ये हक़ीकत है कि आप से मिलने के बाद जो कुछ मिलता है (उस ऊर्जा को क्या नाम दूँ, समझ नही पा रही) वो कुछ दिनो तक संचालित करता है। गूँगे के गुड़ सी अलग अनुभूति...! कोई साथ आने वाला होता तो आ ही गई होती ३१ के कवि सम्मेलन में।
दीपावली के मौसम के शुभारंभ की शुभकामनाएं
झिलमिलाते दीपों और दीपावली की शुभकामनाओ से सजे मंच ने मन एसा मोह लिया कि हम आनंद मे डूब गये.
जवाब देंहटाएंकानपुर के सफल आयोजन की बधाई! सिहोर कार्यक्रम के बारे मे सुन बहुत उत्साहित हुं. इतने सुंदर मुशायरे के आग़ाज के लिये आचार्य जी को अनेक शुभकामनाए.
दिवाली मुशायरे के शुरूवात मे शाहिद मिर्जा साहब का नाम देख प्रसन्नता हुई, फिर उनके हर ईक शेर पे सर झुकता चला गया. मह्फ़ूज़ रख ,बेदाग़ रख मैला न कर ताज़िंदगी.....
क्या कहुं मैं... बहुत खास लगे.
के.द.लियो साहब की भावनाओ को सलाम करता हुं. आज के अशआर बहुत पसंद आये
जवाब देंहटाएंगिरह के शेर... सबके लबों पर है दुआ...!!
पाखी जी इस दफा पुरे रंग मे है...
हर शेर गहरे छाप छोड़ता हुआ.... भोपाल वाले शेर पर खड़े होके देर तक तालियां !!
pahli hee ghazal ...ghazal baqaydaa matla ...aur har matla behad umda ...uske baad gumnaam shayar ke teen matle aur bhi zabardast lage ...prakash jee ka alag alag muddon ko apni ghazal me utarna achha laga ....main bhi har maheene isme bhaag lena chahta hun..par kis tarah lun samajh nahi aa raha ...
जवाब देंहटाएंकवि सम्मेलन की सफलता की ढेरों बधाई गुरुदेव ... आपकी बुलंद आवाज़ में समा तो बँध ही गया होगा .... आने वाले सम्मेलन की भी शुभकामनाएँ ...
जवाब देंहटाएंतरही की बहुत ही धमाके दार शुरुआत हुई है ...
शाहिद जी का शेर ... मायूसियों की आँधियाँ ... बहुत ही सकारात्मक सोच बतलाता है ... आने वाले उज्वल समय को दस्तक देता है ...
लियो जी ने तो तीन शेरों में ही ख़ज़ाना परोस दिया है ... सपने सजे, खिलते रहें ... तो जैसे हर दिल की आवाज़ है ...
और पाख़ी जी ने तो कमाल ही कर दिया है ... इतने अलग अलग पहलुओं को छुवा है एक ही ग़ज़ल में ... उनका अयोध्या वाला शेर तो दिल लूट गया ...
बहुत ही लाजवाब शुरुआत है .... लगता है मज़ा आने वाला है आगे भी ...
प्रणाम गुरु जी,
जवाब देंहटाएंकानपुर में कवि सम्मलेन-मुशायेरे के सफल आयोजन के लिए बधाई, आप जहाँ रहेंगे वहां सफलता के ना होने का सवाल ही नहीं उठता.
रविकांत जी के घर पर हुई गोष्ठी को सुना और आनंद आ गया.
तरही का इंतज़ार आखिर ख़त्म हुआ, ब्लॉग जगमगा उठा है, ख़ुशी के रंगों से.
@ शहीद मिर्ज़ा जी,
आपने, एक अद्भुत प्रयोग किया है, सभी के सभी मतले.
हर शेर खूबसूरत है और इस शेर के बारे में कुछ कहूं तो क्या.ये सोच में हूँ. वाह-वा
"महफ़ूज़ रख, बेदाग़ रख, मैला न कर ताज़िन्दगी
मिलती नहीं इन्सान को किरदार की चादर नई"
@ लिओ उर्फ़ गुमनाम शायर,
ये मतला तो बहुत खूब बना है,
"जीवन रहे, रोशन सदा, बढती रहे, ज़िंदादिली
तुमने कहा, मैंने सुना, बहने लगी, ये ज़िन्दगी"
गिरह भी बहुत अच्छी लगाई है.
@ प्रकाश पाखी जी,
गिरह बहुत सुन्दर बाँधी है...........वाह-वा
भोपाल गैस त्रासदी पे लिखा ये शेर "अब खद्दरें खामोश हैं,अब मरघटों सा मौन है.." भी बेहद उम्दा है.
बहुत अच्छे शेर कहें हैं, चाहे वो "सेंकीं सियासत ने सदा....." हो या फिर "दफ्तर गया, चप्पल घिसे, .........".
मज़ा आ गया.
यकीनन मेरे लिये इससे बड़ा,सौभाग्य नहीं हो सकता था,कि इस मंच पर मुशायरे के आगाज़ में ही मेरी मामूली शब्द रचना जो अपने आप में एक अधूरा सा प्रयास है, को जगह मिली।
जवाब देंहटाएंपरम स्नेही सुबीर जी इतने सह्रय हैं कि उन्होंने मेरे आधे अधूरे प्रयास को इतने सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया।आपका तहे-दिल से आभार,सुबीर जी!
जहां तक मेरी गुमनामी और परिचय का प्रश्न है,शायद यह कई पाठकों को सालता है,तो मैं अपने बारे में इतना ही कहना चाहुंगा,कि मेरा वास्त्विक नाम ले. कर्नल कुश शर्मा है,और भारतीय सेना में सेवारत हूं। रहा चित्र का सवाल,वो बेमानी है क्योंकि नूर तो उपर वाले का है बाकी, सारे बिम्ब बस बेनूर है!
सभी सुधीजनो का शुक्रिया मेरे शब्दों की तारीफ़ कर के आपने इन्हें ’कलाम’ बना दिया!
एसे ही स्नेह बनाये रखें! कृप्या मेरे प्रयासों को एक नज़र देखने के लिये यहां पधारें!
"सच में" www.sachmein.blogspot.com
http://sachmein.blogspot.com/
_Ktheleo
तरही की शुरुआत और शाहिद भाई के मत्ले, उसपर के द लियो साहब के तीन शेर और फिर प्रकाश पाखी जी की ग़़ज़ल के अशआर। एक बेहतरीन शुरुआत।
जवाब देंहटाएंइस बह्र में मुझे तो यही खूबसूरती दिखी कि रुक्न-ब-रुक्न वाक्यॉंश मॉंगती है, और इससे शेर ठुमकते हुए निकलते हैं।
के द लियो साहब ने अब नाम का राज़ खोलना चाहिये, काफी समय से इनकी टिप्पणियॉं देखने में आ रही हैं, धीर गंभीर होती हैं, आज अशआर भी देखने को मिले। नाम से लगता है कि इनकी राशि लियो है और नाम 'के' से शुरू होता है। नाम से नफ़़ासत पसंद लगते हैं जैसे सिकन्दर द ग्रेट।
गर क़त्ल है इंसाफ़ का तो लाश है भोपाल की।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शे'र।
ख़ूबसूरत आग़ाज़ के सिपहसालारों को सलाम , अन्जाम तक ले जाने की ज़िम्मेदारी अब बाक़ी सिपाहियों की है।
दोबारा आयी हूँ मुझे लग रहा था कि साईड बार देखते देखते कुछ रह गया है देखने से बहुत शर्मिन्दा हूँ कि शाहिद मिर्ज़ा जी की गज़ल तो रह गयी। उमीद करती हूँ कि शाहिद जी इस नालायक को जक़्रूर माफ कर देंगे। शायद छोटे भाई का गुस्सा भी सहन करना पडे ब्लाग की इतनी सुन्दर सजावट की और मैने एक शब्द भी नही कहा। आज सब को मेरी नालायकी का पता चल ही गया। चलो बच्चे बूढे सब बराबर होते हसिं इस लिये क्षमा चाहती हूँ। असल मे साईड बार मे दिवाली की जगमगाहट मे सब कुछ भूल गयी।
जवाब देंहटाएंशाहिद जी की गज़लों की तो मुझे सदा ही प्रतीक्षा रहती है फिर भला उनकी गज़ल पर कुछ न कहूँ कैसे हो सकता है? सुबह की गयी लाईट अभी आयी है अब इतमिनान से उनकी गज़ल पढी---
मतला वाह क्या बात कही।
ठहरा है कब वक्त्----
मायूसिओं की आँधियाँ----
ये शेर प्रेरण सा देता हुया लाजवाब
महफूज़ रख बेदाग रख मैला न कर ताज़िन्दगी
मिलती नही इन्सान को किरदार की चादर नई
वाह जीवन के सच को कहता ये शेर दिल को छू गया। शाहिद जी को इस गज़ल के लिये बहुत बहुत बधाई
ले़ कर्नल कुश जी को शायद पहली बार पढ रही हूँ। देश के इन रक्षकों को पढ कर मन मे एक जोश सा आता है-- वाह हमारे रक्षक सलाम है इन सब को
मतला इनकी ज़िन्दादिली का सबूत दे रहा है।दोनो शेर भी लाजवाब हैं। कामना करती हूँ कि देश के इन सिपहसलारों की हिम्मत यूँ हे बनी रहे और भगवान इनको हमेशा हर खुशी और लम्बी आयु दे। आशा है आगे भी कुश जी की गज़लें पढने को मिलेंगी। एक बार फिर से क्षमा माँग कर सब को दीपावली की अग्रिम शुभकामनायें देती हूँ।
इस ब्लॉग पर तरही आते ही ऐसा लगता है जैसे त्योहारों का मौसम आगया ... छटा देखते ही बन रही है दीपावली की .. गुरु जी आपको कवी सम्मेलनों की शुभकामनाएं ...और आगाज़ भी इस तरह की अपनी ग़ज़ल के बारे में सोच रहा हूँ वो किस स्तर पर खरी उतरेगी....वाकई एक मतला लिखने में पसीने छुट गए थे मेरे और यहाँ पसंदीदा शाईर ब्लॉग के जनाब शाहिद जी ने पूरी ग़ज़ल को मतले की चाशनी में डूबा रखी है ... सारे ही अश'आर कमाल के खास कर चादर वाला शे'र ... कर्नल साब की कोशिश को भी पसंद कर रहा हूँ ... बात पाखी भाई की है तो इनके ग़ज़ल का तेवर अपने रंग रूप में है ... अब ये ग़ज़ल के शे'रों को अलग अलग विषय पर लिख रहे हैं जिस से पता चल रहा है की नज़रें दूर तक फ़ैल रही हैं ग़ज़लों के लिए और इसका दायरा भी .... सारे ही विषय कमाल के हैं ... बधाई सभी को मेरे तरफ से तरही के लिए जिसको खुबसूरत आगाज़ दी गई है ........
जवाब देंहटाएंअर्श
मै भी आपको गुरु जी कहना चाहूंगी . जैसा की कंचन दीदी आपको कहती है.........गुरु जी ! ये मेरा सौभाग्य होता यदि मै उस दिन २३ अक्टूबर को कंचन दीदी के घर में आपके दर्शन कर पाती, कारण कि आपके वहां आने के करीब ४० मिनट पहले मै वही थी , मिलने गयी थी कंचन दीदी से ....अफ़सोस है . आशा करती हूँ जल्दी ही ये सौभाग्य मिल सकेगा...
जवाब देंहटाएंऔर आपको दीपावली की अनगिन शुभकामनायें .....आपका आशीर्वाद चाहती हूँ.......
एक से बढ़ कर एक शेर|तीनों शायरों को पहले से पढ़ता आ रहा हूँ बेहतरीन शायरी मुशायरे का बेहतरीन आगाज़...इतना सुंदर शुरुआत है तो आगे क्या होगा...अब तो बस इंतजार है....सभी शायरों को बधाई और पंकज जी आपको भी बधाई खूब मंच की शोभा बढ़ा रहे हैं| प्रणाम
जवाब देंहटाएंतरही मुशायरे का आगाज़ - शाहिद भाई की बेहतरीन ग़ज़ल से शुभारम्भ हुआ दीपावली अब जगमगाएगी इस बात पर पक्का विश्वास हुआ !
जवाब देंहटाएंदीपावली के पावन उत्सव की बधाई शाहिद भाई और आपकी रचनाओं के लिए मुबारकबाद -
ब्लॉग उत्सव के अनुरूप सुन्दर बना है और आपकी रचनाओं को जन मानस तक पहुंचाने का
कार्य आपको सफलता और संतोष देता रहे ये मंगल कामना है
नये शायर " लियो " जी ने
बढ़िया रचना प्रस्तुत की है - बधाई !
पाखी भाई के सारे शेर बढ़िया लगे
उन्हें भी बधाई
और यहां पधारे हर श्रोता को
दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं
स स्नेह, सादर,
- लावण्या
.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गजलें पढवाने का आभार।
.
वाह वाह!!
जवाब देंहटाएंआनन्द आ गया...जब आगाज़ ऐसा है तो आगे तो..गज़ब गज़ब की उम्मीदें हैं..देख सुन पढ़ कर हमें भी उत्साह आ रहा है मास्साब...
सोच रहे हैं कि कलम जरा अजमा ही ली जाये..कम से कम इन धुरंधर गज़लकारों के बीच उपस्थिति तो दर्ज करा ही लें... :)
ब्लॉग दीपावली में इस मुशायरे का आयोजन कर आपने बहुत बेहतरीन कार्य किया है ...मेरी ओर ढेरों बधाई और धन्यवाद स्वीकार करे ...
जवाब देंहटाएंमुशायरे की शुरुआत शाहिद साहब की ग़ज़ल से.... सोने पर सुहागा जैसी बात है . उन्हें पढ़ना तो हमेशा से ही बहुत पसंद है मुझे .हर एक शेर कमाल का है लेकिन रिश्तों की डोर और मायूसियों की आंधी का जवाब नहीं ....बहुत बहुत बधाई !
कुश साहब ने भी कम शब्दों में वज़नदार प्रस्तुति दी है आपको भी हार्दिक बधाई !
प्रकाश पाखी साहब ...आपको पढ़ने का अनुभव भी बहुत अच्छा रहा . इतनी ज्वलंत समस्याओं पर केन्द्रित आपकी यह ग़ज़ल कामल कर गई ...नौकर शाही और अयोध्या मामले प् कहे गए आपके शेर बहुत उम्दा है ...बधाई स्वीकारे !
वाह वाह
जवाब देंहटाएंक्या ख़ूब, तीनों ही ग़ज़लें लाजवाब हैं
धमाकेदार शुरूआत की बधाई,इस बार लगता है एक से बढ़कर एक ग़ज़ल पढ़ने को मिलने वाली है, कोई बात नहीं हम भी तैयार हैं।
कवि सम्मेलन की सफलता की बढाई भी स्वीकार हो, कवितायें सुनने और पढ़ने को मन लालायित है।
इस काव्य संध्या पर तो वन्स मोर बनता है।
जवाब देंहटाएंगुरुदेव प्रणाम,
जवाब देंहटाएंमुशायरे में गजल देर से भेजी थी और अपने लिखे से खुश भी नहीं था..पर जैसी उम्मीद थी वही हुआ आपके हाथ लगते ही शेर सुधर गए.. आपका शुक्रिया कैसे करू...आशीर्वाद बना रहे...हाँ बड़े भाई बहनों ने कुछ ज्यादा आशीर्वाद दे दिया है..सो मन खुश हो गया..पर शाहिद मिर्जा साहब जैसे उस्ताद से मुशायरे के आगाज से आनंद आ गया है...बदला है क्या कुछ भी नहीं तुम भी वही हम भी वही...में जादूगरी नजर आती है..ठहरा है कब वक्त एक सा.. किरदार की चादर नई और मकते थोडा बहुत पानी यहाँ आँखों में है जिस शख्श के ...पर हजारों दाद कर्नल साहब के तीनों शेर फौजी का दम ख़म रखे हुए है...तुमने कहा मैंने सुना बहती रहे ये जिन्दगी...वाह,वाह ,वाह!
@निर्मला दी,
बड़ी बहन होने से कुछ ज्यदा तारीफ करने का शुक्रिया...
राजीव भारोल साहब और आदरणीय इस्मत जैदी जी का शुक्रिया...
शाहिद मिर्जा साहब का आभार...
आदरणीय नीरज भाई आप की 'खिचाई' का शुक्रिया...उस्ताद कहकर आगे कहा उतारने का इरादा है:)
कंचन जी आपका शुक्रिया..आपको और सभी सभी गुरुभाई बहनों को दीपावली की शुभ कामनाए !
सुलभ भाई स्पेशल सलाम!दिगंबर नासवा जी आतिश जी धन्यवाद...
तिलक राज कपूर साहब से तो हमेशा से कुछ सीखता रहा हूँ...संजय जी का आभार!
अर्श भाई की बातों से मनोबल बढ़ता है..
लावण्या दी का हार्दिक आभार..दीपावली की शुभकामनाए...!
रानी विशाल जी ..आपका शुक्रिया...
@गुरुदेव,
आई आई टी के मुशायरे की विडियो उपलब्ध कराएं...आपको और इन्दौरी साहब को सुनने की बड़ी फरमाइशें आ रही है..
दीपावली की शुभकामनाएं!
प्रकाश पाखी !
गुरु जी प्रणाम,
जवाब देंहटाएंतरही मुशायरा प्रारम्भ हो गया और क्या जोरदार आगाज़ है
परम आनन्द अनुभूति :)
आने में बहुत देर हो गई इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
ब्लॉग की अनुपम साज सज्जा के लिए अब हर बार नए शब्द खोज पाना मेरे लिए नामुमकिन हो गया है इस लिए यह ही कहूँगा की
इसके बारे में जैसा हम सोच सकते हैं उससे बढ़िया आप कर देते हैं
लाजवाब
पहले ही शाहिद जी, कुश जी और पाखी जी के लिए सभी नें इतना कुछ कहा है, यह पढ़ कर भी बहुत आनंद आया अब जब कुछ कहने की बारी है तो जो शेर बहुत बहुत बहुत पसंद आये उन्हें ही कोट कर रहा हूँ
शाहिद जी -
बदला है क्या, कुछ भी नहीं, तुम भी वही, हम भी वही
फिर दरमियां क्यों फ़ासले, क्यों बन गई दीवार सी
महफ़ूज़ रख, बेदाग़ रख, मैला न कर ताज़िन्दगी
मिलती नहीं इन्सान को किरदार की चादर नई
समझा वही शाहिद मेरे अहसास भी, जज़्बात भी
थोड़ा बहुत पानी यहां आंखों में है जिस शख़्स की.
महफूज़ रख,,,... शेर नें तो चौंका ही दिया बार बार पढता रहा.. बहुत सुन्दर, अद्धुत
कुश जी -
जीवन रहे, रोशन सदा, बढती रहे, ज़िंदादिली
तुमने कहा, मैंने सुना, बहने लगी, ये ज़िन्दगी
मिसरा सानी तो वास्तव में इतना बहता हुआ है की जज़्बात को भिगो गया
बहने लगी, ये ज़िन्दगी ... वाह वा ...
पाखी भाई -
तुसी छा गए मालको
बिलकुल ऐसी ही गज़ल मुझे जाती तौर पर पसंद है, लिखना भी और पढ़ना भी
सामाजिक सरोकार को पिरो कर लिखी गई कोई भी बात ज्यादा देर तक याद रहती है
ऐसा मेरा मानना है
और इस गज़ल के हर शेर में एक अलग समाज के दर्द को निचोड़ा गया है
चाहे वो भोपाल का त्रासदी झेला हुआ समाज है या फिर अयोध्या फैसले के दौरान किसी अनहोनी की आशंका से सिहरा हुआ समाज
अब खद्दरें खामोश हैं,अब मरघटों सा मौन है
इक कत्ल है इन्साफ का, और लाश है भोपाल की
सेंकीं सियासत ने सदा जिस आग पर हैं रोटियां
सब मिल बुझा दें जो इसे, हो देश में दीपावली
बहुत खूब
बहुत बहुत खूब
पंकज सुबीर जी:-
जवाब देंहटाएंभाई पंकज जी को सब से पहले साधुवाद देना होगा आज के भौतिक वादी और स्वयं केंद्रित युग में भी साहित्यिक यज्ञ के आयोजन के लिए|
शाहिद जी:-
भाई शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद' जी की ग़ज़ल को पढ़ रहा था जब मैं, तो कहीं न कहीं अंतर्मन में बस सिर्फ़ और सिर्फ़ एक यही धुन गूंजायमान हो रही थी - मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन........
लगातार एक वज्ञ पर इतनी तन्मयता से इतना सटीक और सधा हुआ कम ही पढ़ने को मिलता है| हर शेर को मतला बनाना यानि हुस्न-ए-मतला का इतना सुंदर प्रयोग भी कम मौकों पर ही देखने को मिलता है| भाई शाहिद जी आपकी धारदार लेखनी को सलाम|
कर्नल साब:
कर्नल साब के साहित्य के प्रति समर्पण के लिए शत शत अभिनन्दन| शेर भले ही तीन ही कहे हैं, परन्तु नोट करने की बात ये है कि कहीं भी लफ्ज़ / हर्फ को गिराया नहीं गया है| सकते का भी दूर दूर तक नामोनिशान नहीं दिख रहा| कम शब्दों में सार गर्भित बातें कहने के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिएगा कर्नल साब| और जैसा कि आप के बारे में कहा गया है, अगर संभव हो तो अपने दर्शन ज़रूर दीजिएगा|
प्रकाश पाख़ी जी :
आपकी ग़ज़ल की खास बात ये लगी कि आपने हर शेर को विवेचित कर दिया है; जिससे कि सामान्य पाठक को भी आपका अभिप्राय समझने में आसानी रहती है| आपकी यह सूझ पते वाली बात है| कबीर जी की साखी 'अजगर करें न चाकरी' को पाख़ी भाई ने अपनी ग़ज़ल में वर्तमान संदर्भों के साथ बहुत ही खूबसूरती के साथ पेश किया है| अलावा इसके आपका अयोध्या वाला शेर भी जबरदस्त दाद पाने का हकदार है| बहुत बहुत बधाई प्रकाश भाई पाख़ी जी|
पंकज सुबीर जी:-
जवाब देंहटाएंभाई पंकज जी को सब से पहले साधुवाद देना होगा आज के भौतिक वादी और स्वयं केंद्रित युग में भी साहित्यिक यज्ञ के आयोजन के लिए|
शाहिद जी:-
भाई शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद' जी की ग़ज़ल को पढ़ रहा था जब मैं, तो कहीं न कहीं अंतर्मन में बस सिर्फ़ और सिर्फ़ एक यही धुन गूंजायमान हो रही थी - मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन........
लगातार एक वज्ञ पर इतनी तन्मयता से इतना सटीक और सधा हुआ कम ही पढ़ने को मिलता है| हर शेर को मतला बनाना यानि हुस्न-ए-मतला का इतना सुंदर प्रयोग भी कम मौकों पर ही देखने को मिलता है| भाई शाहिद जी आपकी धारदार लेखनी को सलाम|
कर्नल साब:
कर्नल साब के साहित्य के प्रति समर्पण के लिए शत शत अभिनन्दन| शेर भले ही तीन ही कहे हैं, परन्तु नोट करने की बात ये है कि कहीं भी लफ्ज़ / हर्फ को गिराया नहीं गया है| सकते का भी दूर दूर तक नामोनिशान नहीं दिख रहा| कम शब्दों में सार गर्भित बातें कहने के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिएगा कर्नल साब| और जैसा कि आप के बारे में कहा गया है, अगर संभव हो तो अपने दर्शन ज़रूर दीजिएगा|
प्रकाश पाख़ी जी :
आपकी ग़ज़ल की खास बात ये लगी कि आपने हर शेर को विवेचित कर दिया है; जिससे कि सामान्य पाठक को भी आपका अभिप्राय समझने में आसानी रहती है| आपकी यह सूझ पते वाली बात है| कबीर जी की साखी 'अजगर करें न चाकरी' को पाख़ी भाई ने अपनी ग़ज़ल में वर्तमान संदर्भों के साथ बहुत ही खूबसूरती के साथ पेश किया है| अलावा इसके आपका अयोध्या वाला शेर भी जबरदस्त दाद पाने का हकदार है| बहुत बहुत बधाई प्रकाश भाई पाख़ी जी|