जन्मदिन को लेकर जिस प्रकार सबकी शुभकामनाएं मिलीं उसने मन को स्वस्थ कर दिया । लगा कि कितने लोग तो हैं जो साथ खड़े हैं । सुबह जब आफिस पहुंचा तो बच्चों ने पूरा आफिस सजा रखा था । सो दिन की शुरूआत ही छोटे से आयोजन के साथ हुई । फिर दिन भर बजता रहा ' कितने दिन आंखें तरसेंगीं' ( मेरे मोबाइल की रिंग टोन ) और काल पे काल आते रहे । जन्मदिन की शुभकामनाएं आदमी को एक साल और संघर्ष करने की ताक़त प्रदान कर देती हैं । आदमी मुसीबतों से नहीं घबराता, वास्तव में तो वो मुसीबत के समय अकेला पड़ जाने से घबराता है । और दोस्तों का प्यार उसे ये दिलासा देता है कि वो अकेला नहीं है । खैर दिन भर फोन सुनने सुनाने में बीता और देर रात तक एक सुंदर सा केक और गुलदस्ता मिला । पता चला कि दिल्ली से आया है । भेजने वाले का नाम देखा तो लिखा था सीमा गुप्ता । छोटी बहन द्वारा भेजे गये बहुत सुंदर गुलदस्ते ने मन को गुलाबों सा ही खिला दिया । और देर रात घर पहुंच कर जो छोटा सा आयोजन हुआ उसमें परी और पंखुरी ने उस केक को काटा ।
जलते रहें, दीपक सदा, क़ाइम रहे, ये रोशनी
कुछ लोग कह रहे हैं कि कुछ मुश्किल मिसरा है इस बार का साथ ही बहर भी थोड़ी मुश्किल है । नुसरत दी ने ग़ज़ल तो भेज दी है साथ में एक मजेदार मेल भी किया है । पढ़ कर आनंद आ गया । निर्मला दी की ग़ज़ल का पहला ड्राफ्ट आ गया है । कुछ और भी आ गई हैं सो लग रहा है कि मिसरा उतनी मुश्किल नहीं है । तिस पर ये कि काफिया तो बहुत ही सरल हो गया है । केवल मतले में ईता को देखना है और उसके बाद सरपट गाड़ी दौडा़ना है । और हां एक अं की बिंदी का भी ध्यान रखना है कि वो कहीं किसी काफिये में आ न जाए । और हां ये भी ध्यान रखना है कि कामिल का रुक्न न आ जाए । जैसे यदि आपने लिख दिया नहीं हो कहीं तो क्या हुआ, नहीं में दो सेपरेट लघु हैं । न और हीं ( गिर कर लघु) इसलिये ये कामिल का रुक्न हो गया । बस इसकी भी सावधानी रखनी है कि कहीं ये न हो जाये । तो तीन सावधानी हो गईं पहली ईता दूसरी अं और तीसरी कामिल । यदि आप तीनों को बचा कर लिखेंगे तो दीपावली की व्यस्तता में मेरा कुछ काम कम हो जाएगा । जल्दी जल्दी लिखिये । जो लोग पिछली बार नहीं आये थे उनको बाकायदा क़ानूनी नोटिस दिया जा रहा है । कामिल और रजज का अंतर नीचे के दो उदाहरणों से स्पष्ट होगा जो दोनों ही जनाब बशीर बद्र साहब की दो मशहूर ग़ज़लें हैं । आप दोनों को गुनगुना कर देखें, दोनों की धुन एक सी है । यहां पर धुन पर लिखने वाले मात खा जाते हैं, तकतीई करने वाले जीत जाते हैं ।
बहरे कामिल पर ग़ज़ल : यूं ही बेसबब न फिरा करो ( अहमद हुसैन मुहम्मद हुसैन ने भी गाया है )
बहरे रजज पर ग़ज़ल : सोचा नहीं अच्छा बुरा ( जगजीत जी चित्रा जी ने भी गाया है )
ईता को लेकर पिछली पोस्ट पर जबरदस्त बहस हुई । आब और गुलाब ने सबको उलझा दिया । उस पर बात करने से पहले चलिये आज ईता की कुछ और बात करते हैं । उससे भी पहले चलिये बात करते हैं शब्दों की । शब्दों के कई प्रकार होते हैं और इन प्रकारों से ही बनते हैं ईता दोष । जैसा की हमने पहले भी देखा है कि उर्दू में मात्राओं को भी हर्फ माना जाता है । देवनागरी में मात्राएं अक्षर का ही हिस्सा होती हैं । उससे अलग नहीं की जा सकती हैं । इसी आधार पर उर्दू में ईता का दोष बनता है । खैर पहले बात शब्दों की ।
मूल शब्द - वह शब्द जो मूल रूप में होता है तथा जो किसी शब्द के किसी मात्रा या किसी दूसरे शब्द के साथ संयुक्त होने से नहीं बना है उसे मूल शब्द कहते हैं । इनको हम अंग्रेजी में मदर वर्ड या मातृ शब्द कह सकते हैं । ये अक्षरों तथा मात्राओं के संयोजन से बनते हैं । तथा शुद्ध रूप में होते हैं । कम, चल, उठ, पढ़, गुल, जैसे कई कई शब्द हैं जो मातृ शब्द हैं । ये वे शब्द हैं जो कि नये शब्दों को जन्म देते हैं । जब हमने पिछले पोस्ट में ईता की बात की थी तो दरअसल में जो एक मिसरे में विशुद्ध शब्द रखने को कहा था वो ये ही शब्द है । इनको प्राथमिक शब्द भी कह सकते हैं । कई बार हम केवल प्राथमिक शब्दों को ही मतले में काफिया बनाते हैं जैसे चल रहे हैं और जल रहे हैं । यहां पर चल और जल दोनों ही प्राथमिक शब्द हैं और ल अक्षर की ध्वनि हमारा काफिया है तथा रहे हैं रदीफ ।
मूल शब्द के साथ मात्राओं का संयुक्त होना - क्रिया के हिसाब से हम मूल शब्दों के साथ मात्राओं को संयुक्त कर देते हैं । जैसे कम और ई मिलकर बने कमी जैसे उठ तथा आ मिलकर बने उठा, जैसे पढ़ तथा ओ मिलकर बना पढ़ो, और जैसे चल तथा ए मिलकर बना चले । ये अब मूल शब्द नहीं हैं तथा ये मात्रा का प्रयोग करके बनाये गये द्वितीयक शब्द हैं । ईता का दोष इनमें से किसी भी समान मात्रा वाले काफियों को मतले में दोनों मिसरों में उपयोग करने पर आ जाएगा । जैसे आपने पहले मिसरे में कहा पढ़ो तो सही और चलो तो सही, तो ईता आ जाएगा, क्योंकि तो सही रदीफ में चलो और पढ़ो की ओ की मात्रा भी मिल कर रदीफ को ओ तो सही कर रही है । क्योंकि ओ की मात्रा को हटा कर देखा जाएगा कि अब काफियाबंदी हो रही है या नहीं । चूंकि चल और पढ़ में तुक नहीं है सो ईता आ जायेगा । लेकिन यदि आपने कहा चलो तो सही और मिलो तो सही तो ईता नहीं आयेगा क्योंकि ओ की मात्रा हटने के बाद चल और मिल बच रहे हैं जिनमें ल अक्षर काफिया बंदी कर रहा है । आप पूछेंगे कि ल क्यों रदीफ में शामिल नहीं हो रहा तो महोदय ल अक्षर प्राथमिक शब्दों चल और मिल का हिस्सा है जो उनके साथ ही रहेगा । हां चलो और मिलो को मतले में काफिया बनाने पर आप ये ज़ुरूर बंध जाएंगे कि अब आगे आपको खिलो, टलो, आदि ही लेने हैं क्योंकि अब आपकी काफियाबंदी ल अक्षर से हो रही है और आपका रदीफ ओ तो सही हो गया है, अगर आपने मतले में खिलो, चलो लेकर नीचे किसी शेर में कहो तो सही कर दिया तो भयानक ईता-ए-जली हो जाएगी( बड़ी ईता) ।
अब आपको ये समझ में आ गया होगा कि ईता का दोष केवल मतले में क्यों देखा जाता है, क्योंकि मतला आपके काफिये तथा रदीफ को निर्धारित करने वाला वो शेर होता है जिसमें आप अपने आने वाले शेरों के लिये नियम तय कर देते हैं । अब आप पूछेंगे कि यदि मतले में हमने कुछ यूं कहा शायरी है सच मानो तथा जिंदगी है सच मानो तो ईता दोष आया कि नहीं । नहीं आयेगा, इसलिये नहीं आयेगा कि मतले में काफिया का निर्धारण करने वाले शब्द शाइरी तथा जिंदगी हैं । तथा जब मात्रा ई को हटा कर रदीफ का हिस्सा बनाया जाएगा तो ये भी देखा जाएगा कि किसी शब्द में ऐसा तो नहीं हो रहा है कि मात्रा के हटने पर शब्द निरर्थक हो रहा है । यदि ऐसा हो रहा है तो फिर मात्रा नहीं हटेगी तथा वो ही काफिये की ध्वनि होगी । जैसे यहां पर जिंदगी में ई की मात्रा हटाने पर जिंदग बच रहा है जो किसी काम का नहीं है निरर्थक है, इसलिये जिंदगी की ई नहीं हटाया जा सकता । इस हालत में ई रदीफ के पाले में न जाकर काफिया ही बनी रहेगी । लेकिन आपने कहा शाइरी है सच मानो तथा आशिक़ी है सच मानो तो गड़ बड़ हो गई । ई की मात्रा पाला बदल कर जाएगी क्योंकि उसको मजबूती से पकड़ने वाला मूल शब्द नहीं है ( मैं तो भूल चली काफिये का देश, रदीफ का घर प्यारा लगे)। अब बचे हुए शाइर तथा आशिक़ की तुक मिला कर देखी जाएगी आप खुद ही मिला कर देख लें । क्या आप किसी मतले में शाइर तो नहीं तथा आशिक़ तो नहीं लिख सकते हैं ? नहीं ना, क्योंकि शाइर और आशिक़ समान तुक वाले शब्द नहीं है। तो आ गई न छोटी ईता ( ईता ए खफी ) ।
चलिये आज के लिये इतना ही । अगले अंक में हम आगे वाले शब्दों की बात करेंगे । अभी तीन प्रकार के शब्द और बचे हैं । जब आगे के शब्दों पर आएंगे तब हम आब और गुलाब का मसला हल करेंगे ।
चलिये तो आज फिर बताइये कि आदरणीय गुलजार साहब की ग़ज़ल शाम से आंख में नमी सी है, आज फिर आपकी कमी सी है में ईता आ रहा है या नहीं । हां तो क्यों और नहीं तो क्यों नहीं । इसी ग़ज़ल का एक शेर है वक़्त रहता नहीं कहीं टिककर, इसकी आदत भी आदमी सी है ।
और ये कि एक और मशहूर शेर है मुहब्बतों का सलीक़ा सिखा दिया मैंने, तेरे बग़ैर भी जीकर दिखा दिया मैंने इसमें ईता आया कि नहीं ? इसमेंआगे के शेर का एक मिसरा सानी है ग़ज़ल के नाम पे क्या क्या सुना दिया मैंने । इसमें ईता आया कि नहीं । हां तो क्यों और नहीं तो क्यों नहीं । आया तो कौन सा आया खफी या जली ।
गुरुदेव सबसे पहले तो जनम दिन की बहुत बहुत बधाई ... आज की कक्षा लाजवाब ... बहुत कुछ है इसमें जानने वाला .... कुछ कुछ समझ आ रहा है .... पर अभी आपके सवालों का जवाब देने लाएक नही सीख पाया .... दुबारा आना पड़ेगा ... जानने और समझने के लिए ...
जवाब देंहटाएंजन्म दिवस की पुनः एक बार बधाई एवं शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंआज की पोस्ट से काफी प्रश्नों के उत्तर मिलने का अधार बन जायेगा। फिर लौटता हूँ रात को।
जवाब देंहटाएंप्रणाम गुरु जी,
जवाब देंहटाएंकेक तो बहुत सुन्दर है..........पंखू सोच रही है मेरे हिस्से में कितना आएगा, लेकिन वो इतनी चुपचाप क्यों बैठी है.
जगजीत सिंह साहेब की गाई हुई ग़ज़ल में इता का दोष नहीं है है क्योंकि इसमें काफिये नमी, कमी और आदमी हैं. अगर इनको तोडा जाए तो ये नमी (नम और ई), कमी (कम और ई) और आदमी (आदम और ई) में टूटेंगे, और तीनो ही अर्थ रखते है.
मेरे ख्याल से "म" शब्द से मिलान हो रहा है.
"मुहब्बतों का सलीका................" में भी इता का दोष नहीं है, क्योंकि दिखा (दिख और आ) में टूटेगा और दिख कोई शब्द नहीं है.
गुरूजी,
जवाब देंहटाएंहोमेवर्क की कोशिश:
१.
गुलज़ार जी की गज़ल के मतले में ईता दोष नहीं है. जैसा की आपने समझाया, ई की मात्र हटाने से 'कम' और 'नम' बाकी बचते हैं, दोनों को ई की मात्र बढ़ा कर 'कमी' और 'नमी' बनाया है लेकिन चूंकि 'कम' और 'नम' समान काफिये हैं, ईता दोष नहीं हुआ. हाँ सभी काफियों में 'मी' होना चाहिए, आदमी काफिया "आदम + ई" हुआ अतः ठीक है.
वैसे भी गुलज़ार साहब की गज़ल और गलती?
२.
'..सलीका सिखा दिया मैंने' और '..जीकर दिखा दिया मैंने' में भी इता दोष नहीं है क्योंकि 'सिखा = सिख + आ' में सिख एक स्वतंत्र शब्द नहीं है अतः 'आ' की मात्र रदीफ में नहीं जुड सकती. हाँ काफिया अब 'ख+आ' होगा...क्या सुना दिया मैंने' में 'सुना' काफिये के कारण काफिये में दोष आ गया.
मुझे यह नहीं मालूम की इसे ईता दोष कहेंगे या नहीं. मेरी समझ के अनुसार ईता दोष तो सिर्फ मतले में होता है.
मैं आक़्ज तीन दिन बाद आयी हूँ चँडीगढ गयी थी आते ही पता चला कि आपका जन्मदिन था और मेरा केक खाने का अवसर हाथ से गया। आपको जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई, शुभकामनायें आशीर्वाद। भगवान आपकी सब मुश्किलें दूर कर के खुशियाँ दे,बस यही विनती है। बाद मे आती हूँ। आशीर्वाद।-- निम्मो दी।
जवाब देंहटाएंगुरु जी प्रणाम,
जवाब देंहटाएंबड्डे सेली-बरेशन की फोटू चोखी है :)
आज की पोस्ट नें सारे संशय दूर कर दिए
इता दोष पर जो कुछ थोड़ा बहुत इधर उधर से पढ़ा था वो भी सत्यापित हो गया
अब होमवर्क -
शाम से आंख में नमी सी है,
आज फिर आपकी कमी सी है
इता दोष से मुक्त है
वक़्त रहता नहीं कहीं टिककर,
इसकी आदत भी आदमी सी है ।
यह भी सही है
मुहब्बतों का सलीक़ा सिखा दिया मैंने,
तेरे बग़ैर भी जीकर दिखा दिया मैंने
यह भी इता दोष से मुक्त है परन्तु पहले मिसरे में "मुहब्बतों" शब्द बहुत खटक रहा है
(गूगल सर्च करने पर यह बहुत जगह लिखा दिख रहा है, पता नहीं यह शब्द सही है या नहीं ! ?)
ग़ज़ल के नाम पे क्या क्या सुना दिया मैंने ।
अब (सिखा)(दिखा) के बाद (लिखा) की तुक बन रही है "सूना" शब्द ले लेने पर इस मिसरे में तो भयानक ईता-ए-जली हो रही है :)( बड़ी ईता) ।
अंकित भाई के कमेन्ट पर कुछ कहना चाहता हूँ
अंकित नें कहा -"मुहब्बतों का सलीका................" में भी इता का दोष नहीं है, क्योंकि दिखा (दिख और आ) में टूटेगा और दिख कोई शब्द नहीं है.
आपने कहा दिख कोई शब्द नहीं है, मेरी समझ में अगर मतले में दिखा और सिखा शब्द काफिया में हैं तो पहले हम ई की मात्रा हटा कर समतुकांतता देख कर इसे दोष रहित कह सकते हैं जो की इसमें हो रहा है (ख) शब्द समतुकांत है अगर ऐसा न होता तो इसके बाद हम एक शब्द के अर्थपूर्ण और दूसरे के अर्थ हीन हो सकने की बात करते
परन्तु अगर हम इसकी बात करते भी हैं तो
एक और बात कहना है की (दिख) शब्द अर्थहीन नहीं, मूल शब्द है
उदाहरण -
१- उसे दिख रहा होगा |
२- वो तो सब को दिख रहा है| आदि
जबकि (सिखा) में से (आ) की मात्रा हटाने पर (सिख) शब्द बचता है जो सीखने के भाव में अर्थ हीन है
मूल शब्द (सीख) है
तो घुमा-फिरा के इस हिसाब से भी यह इता दोष से मुक्त ही होगा :)
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवीनस भाई,
जवाब देंहटाएंगुरु जी ने पिछले पोस्ट में कहा था की ईता का ध्यान केवल मतले में ही रखा जाता है.
'गज़ल के नाम पे क्या क्या सुना दिया मैंने' में काफिये का दोष तो है क्योंकि काफिये में 'खा' की तुक होनी थी लेकिन क्या इसे ईता का दोष कहना उचित है?
@ राजीव जी यह बात मैंने गुरु जी की पोस्ट पर से ही कॉपी करके लिखा है
जवाब देंहटाएंबस शब्द को बदल दिया है आप ध्यान दें,
गुरु जी ने पोस्ट में लिखा है -
अगर आपने मतले में (खिलो तो सही), (चलो तो सही) लेकर नीचे किसी शेर में (कहो तो सही) कर दिया तो भयानक ईता-ए-जली हो जाएगी( बड़ी ईता) ।
मैंने लिखा है -
अब (सिखा)(दिखा) के बाद (लिखा) की तुक बन रही है "सूना" शब्द ले लेने पर इस मिसरे में तो भयानक ईता-ए-जली हो रही है :)( बड़ी ईता) ।
इस बात में ही आपकी शंका का जवाब भी छुपा था, इस लिए मैंने गुरु जी की स्टाईल को कॉपी कर लिया था की शायद आपका ध्यान चला जाए ;)
वीनस भाई,
जवाब देंहटाएंपिछले पोस्ट में गुरूजी ने ईता-ए-खफी और ईता-ए-जली के बारे में जब समझाया था तो यही लगा था की यह केवल मलते में ही होता है. यह भी कहा है की ईता का दोष केवल मतले में ही देखना होता है.
लेकिन आज के पोस्ट से लग रहा है की काफिये का दोष भी ईता का दोष कहा जा सकता है.
अब इस उदाहरण में मतले में कोई ईता दोष नहीं है. दिखा और सिखा उचित काफिये हैं. लेकिन नीचे के शेर में काफिया गलत है. खा की तुक नहीं बन रही.
इसे गलत काफिया कहा जाना चाहिए ना की ईता दोष.
अब गुरूजी ही सपष्ट करें.
मैंने ये कहा है कि ईता के दोष का ध्यान मतले में रखना है । लेकिन ये नहीं कहा कि ये दोष मतले में ही बनता है । मतले के आधार पर नीचे के शेरों में बन जाता है । दोष मतले का ही है । क्योंकि आपने मतले में सिखा और दिखा कह दिया है । इसलिये आपने स्थाई धवनि खा को काफिया बना लिया है । दूसरी बात ये कि कई लोगों ने दिखा और सिखा के आ की मात्रा को तोड़ने की कोशिश की है । जब पीछे का अक्षर समान ध्वनि का है (ख) तो इसकी आवश्यकता ही नहीं । क्योंकि अब तो काफिया खा ही होगा । ईता दोष का ध्यान मतले में रखना है ये सही है लेकिन मतले के कारण दोष नीचे के शेरों में आ सकता है । जैसा हो रहा है ।
जवाब देंहटाएंसमझ आ गया गुरु जी.
जवाब देंहटाएंप्रणाम गुरु देव,
जवाब देंहटाएंजन्म दिन की फिर से ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ! आज दो कदम और बढ़ कर ईता के बारे में विस्तार से जानना और अच्छा लगा...
सिर्फ दो मिनट की देरी और वीनस ने बाजी मार ली , जो टिपण्णी मैं करने वाला था देखा तो वो हुबहू वही लिखा था सच कहूँ तो अच्छा लगा और फिर हमारी लम्बी गुफ्तगू इस ईता पर ... बधाई वीनस ....
गुरु जी की दूसरी टिपण्णी से बात और साफ़ हो रही है जो जरुरी भी था !
अर्श
पंकज जी, देर से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ....सबसे पहले जन्मदिन की हार्दिक बधाई....साथ ही साथ इता के बारे में इतनी बढ़िया जानकारी मिली उसके लिए धन्यवाद....मैं भी तरही के तैयारी मे लगा हूँ.. उम्मीद करता हूँ इस बार थोड़ा और बेहतर कर सकूँ..बाकी आप सब का स्नेह.....धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजय गुरुदेव...आप जिसके साथ हों उसे कोई दोष नहीं होगा...इता तो है ही किस खेत की मूली :-)
जवाब देंहटाएंआपने बहुत मूल्यवान जानकारी दि है जो अमूनन किताबों में आसानी से नहीं मिलती...आपका शुक्रिया...
तरही पर काम शुरू नहीं किया है...एक बार शुरू कर दिया तो समझिए हो गया...अगर गाडी कहीं रुकेगी तो आप हैं ही ...
गुरु जी सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंजैसे जैसे परतें खुलती जा रही है ज्ञान में अभूतपूर्व बृद्धि होती जा रही है..इस कक्षा में और ऊपर के डिस्कशन से मामला एकदम साफ़ हो गया| तरही की तैयारी चल रही है, जल्दी ही ग़ज़ल भेजता हूँ|
बहरे रजज मुसमन सालिम पर एक और बहुत मशहूर ग़ज़ल है, जिसे जगजीत सिंह साहब ने अपनी मखमली आवाज़ दी है.
जवाब देंहटाएं"कल चौंदहवी की रात थी, शब भर रहा चर्चा तेरा."
वाह पूरा ब्लॉग जगमगा रहा है...इतनी अच्छी अच्छी तस्वीरें आप कहाँ से ले कर आते हैं?
जवाब देंहटाएंक्या मिलते और पत्ते की क़ाफ़िया ईता दोष के अंतर्गत आएगी ।
जवाब देंहटाएंक्या मिलते और पत्ते की क़ाफ़िया ईता दोष के अंतर्गत आएगी ।
जवाब देंहटाएंशानदार । कितनी अद्भुत तरीके से पूर्ण अनुशासन के साथ चर्चा की गई है।ऐसा अब कहीं नहीं देखने को मिलता है
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