सोमवार, 26 जुलाई 2010

फलक पे झम रहीं सांवली घटाएं हैं । आज सुनिये अर्चना तिवारी और निर्मल सिद्धू की ग़ज़लें । और हां इधर तो रात भर से बरसात हो रही है, आज भींगते हुए आफिस आने और ये पोस्‍ट लिखने का आनंद उठाया ।

अंतत: बरसात भी आ ही गई । कल रात भर गुलज़ार साहब की नज्‍़मों में आने वाली बरसात की तरह ही पानी बरसता रहा । कल दिन भर भी पानी बरसा था लेकिन वो सावन के सेवरों की तरह बरसता रहा । सावन के सेवरों के बारे में मालवांचल के लोग जानते हैं । जब पानी बहुत ही हलकी फुहारों की तरह गिरता है तो उसको सावन के सेवरे कहा जाता है । कल गुरू पूर्णिमा थी, सो दिन भर व्‍यस्‍तता रही । बड़े भैया जो कि महामंडलेश्‍वर की उपाधि से विभूषित हैं तथा भागवत पर प्रवचन देते हैं उनके शिष्‍य गणों का दिन भर आना जाना लगा रहा । उन सबके भोजन की व्‍यवस्‍था करना आदि में ही दिन बीत गया । बीच बीच में कुछ फोन तथा लोग आकर मुझे भी गुरू पूर्णिमा का एहसास करा जाते थे । देर शाम जाकर श्री रमेश हठीला जी के हाथों छानी गई शुद्ध घी की नुक्‍ती का आनंद लिया । रात भर पानी बरसता रहा और सुब्‍ह भी भीगी हुई थी । उसी भीगी हुई सुब्‍ह में भीगते हुए आफिस आना तथा ये पोस्‍ट लिखना हुआ । भीगते हुए इसलिये क्‍योंकि आम भारतीय घरों में पहली बरसात के समय न तो रेन कोट मिलता है और न छाता । अब आज उसकी तलाश की जायेगी कि वो है भी या नहीं और है तो पहनने योग्‍य है या नहीं । आज से तो सावन भी लग गया है । हमारे यहां पर तो सावन के सोमवार का विशेष महत्‍व है आज सुब्‍ह से ही मंदिरों में लाइनें लगीं हैं । तरह तरह से श्रंगार किया गया है शिवलिंगों का । बेलपत्र, धतूरे के फूल, आक के फूल और  न जाने क्‍या क्‍या । तो आइये आज सावन के इस पहले सोमवार पर बम भोले कहते हुए आनंद लेते हैं दो और ग़ज़लों का ।

 

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वर्षा मंगल तरही मुशायरा

फलक पे झूम रही सांवली घटाएं हैं

 

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अर्चना तिवारी

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घुटन है, पीर है, कुंठा है, यातनाएं हैं

मुहब्बतें हैं कहाँ, अब तो वासनाएं हैं

जमाना जब भी कोई धुन बजाने लगता है

थिरकने लगतीं उसी ताल पर फिजाएं हैं

नजर लगाने की खातिर हैं नेकियाँ आईं

उतारने को नजर आ गईं बलाएं हैं

पराग बाँट रही हैं, परोपकारी हैं

कली कली के दिलों में बसी वफाएं हैं

जमीन अब भी है प्यासी किसी हिरन की तरह

फलक पे झूम रहीं सांवली घटाएं हैं

उड़न खटोले की मानिंद उड़ रहे बादल

बरस भी जाएं हर इक लब पे यह दुआएं हैं

मचल मचल के चले जब कभी यहाँ पुरवा

गुमान होता है जैसे तेरी सदाएं हैं

ये बिजलियों की चमक के भी क्या नजारे हैं

पहन के हार चली जैसे दस दिशाएं हैं

पड़े जो बूँद तो सोंधी महक धरा से उठे

हसीन रुत की निराली यही अदाएं हैं

वाह वाह क्‍या शेर निकाले हैं । कोई एक शेर छांटने का मन ही नहीं हो रहा है । उड़न खटोले का प्रतीक बहुत ही सुंदर तरीके से निभाया गया है । बूंद से सौंधी महक का उठना वाह क्‍या सिमरी है ।  मतला बहुत ही अच्‍छा बन गया है । आज के दौर को पूरी तरह से व्‍यक्‍त करता हुआ ।

 

NirmalSiddhu

निर्मल सिद्धू

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फ़लक पे झूम रही सांवली घटायें हैं

कि गीत प्यार के मौसम ने गुनगुनायें हैं

ज़मीं पे मोर है अंबर पे है धनक की छटा

हरेक सिम्‍त रंगीली हुई फ़िज़ायें हैं

फुहारें छूट रहीं वादियों में हर दिल की

जवां दिलों में मुहब्बत ने घर बनायें हैं

किसी ने जिक्र कहीं उनका है छेड़ा शायद

मचल के आने लगीं मदभरी हवायें हैं

लगीं हैं अब तो फडकने सी बिजलियां  दिल में

वो मेरे सामने पर्दा हटाके आये हैं

सुरूर छाने लगा प्यार की चढी मस्ती

शराब आंखों में निर्मल, वो भर के लाये हैं

वाह वाह वाह अच्‍छे शेर कहे हैं । बरसात के समग्र प्रभाव को व्‍यक्‍त करता हुआ एक शेर फुहारें छूट रही वादियों में हर दिल की । उम्‍दा शेर कहे हैं । चलिये आनंद उठाइये इन दोनों ग़ज़लों का । दोनों ही आपके जाने पहचाने शायर हैं पिछली तीन चार तरही से हमारे साथ जुड़ हैं तथा हर बार अपना प्रभाव छोड़ कर गये हैं । आज इस सावनी माहौल में भी इनकी ग़ज़लें आनंद को दूना कर रही हैं । आनदं लीजिये और दाद  दीजिये । 

21 टिप्‍पणियां:

  1. एक से बढ़ कर एक.......उड़न खटोले की तरह उड़ रहे हैं बदल बरस भी जाए हर एक के लब पे दुआए हैं क्या बात है.......
    ये सावन की फुहारे....बेहद खुबसूरत समा बांधती हैं...
    regards

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  2. अर्चना जी की ग़ज़ल में अनुभवी शाइरा वाली बात है। बहुत अच्‍छी है। आपका कहना सही है कि मत्‍ला बेहद खूबसूरत है।
    सिद्धू जी काफि़ये में तकनीकि रूप से गड़बड़ा गये वरना ग़ज़ल दमदार है। अच्‍छे अशआर हैं।

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  3. वाह...तरही मुशायरा वो भी सावन के मौसम में...क्या गज़लें निकल कर आ रही हैं....उडन खटोले के मानिंद उड रहे बादल....क्या खूबसूरत खयाल हैं। इस बार तो मिस हो गया अगली बार प्रयास करूंगा।

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  4. आचार्य जी को गुरु पूर्णिमा पर चरण स्पर्श!.
    -
    अर्चना जी के शेरों ने बहुत प्रभावित किया,
    पहन के हार चली जैसे सब दिशाएँ....
    बेहतरीन मतले के साथ ग़ज़ल बहुत सुन्दर कही है.

    निर्मल सिद्धू जी ने ग़ज़ल में जिस प्रकार घटाओं का जिक्र किया, हरेक सिम्त रंगीली हुई फिजायें है,,,, आनंद आया.

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  5. dono gazalo ke har ek sher achchhe lage. dekhiye.... ab to barish bhi jhamaa-jham hone lagi hai. iss mushayare kaa asar bhi ho shayad. badhai....a

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  6. दिलकश बयां हैं, दोनों गज़लों में!वाह!

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  7. एक से बढकर एक गज़ल हैं……………हर शेर लाजवाब है…………आभार्।

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  8. अर्चना जी की ग़ज़ल मतले से मकते तक बेहद खूबसूरत है...एक एक शेर अपनी अलग दास्ताँ कह रहा है...बेहतरीन ग़ज़ल कही है उन्होंने...उनके कुछ शेर तो जाता रहे हैं के वो इस फेन की कितनी बड़ी उस्ताद हैं...मसलन...
    घुटन है पीर है...
    नज़र लगाने की खातिर....
    पराग बाँट रही...
    उड़न खटोले की मानिंद....
    पड़े जो बूँद तो...

    मेरी दिली दाद उन तक पहुंचा दें...

    निर्मल साहब की ग़ज़ल बिलकुल अलग रंग की है और बरसात के इस मौसम को और भी खुशगवार बना रही है...उनके ये शेर कमाल के हैं...मेरी दाद उनतक पहुंचा दीजियेगा..
    ज़मीं पे मोर है...
    लगीं हैं अब तो...
    सुरूर छाने लगा...

    इस बार की बरसात याद रहेगी...आसमान से टपकी पानी के बूंदों के साथ साथ आपके ब्लॉग पर हो रही अशआर की फुहारों ने माहौल एक दम रंगीन बना दिया है...आपका शुक्रिया...

    नीरज

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  9. सबसे पहले तो गुरुदेव नमन है हमारा गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष में .... आपको .. इस तहरी को ... और समस्त मनिशियों को जिनका लिखा पढ़ कर बहुत कुछ सीखने को मिलता है ....
    अर्चना जी ने बहुत कमाल के शेर दिए हैं ... मुझे तो ख़ास कर .. ज़मीन अब भी है प्यासी ... इस शेर ने बहुत प्रभावित किया है .... जहाँ तक निर्मल जी की बात है ... उन्होने तो हर शेर में जैसे सावन और बारिश की बूँदों को उतार दया

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  10. dono ghazlen behtareen h ...
    shayron ko shukriya..
    mushayra yu hi parwan chadta rahe ,yehi kamna h...ameen.

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  11. बहुत बढ़िया ..अब बारिश के मुशायरे में और रंगत आ गई जब तक ठीक से बरसात ना हो बारिश मुशायरे का आनंद ही नही आता मिसिरा ही कुछ ऐसा है....आज भी ग़ज़ल की लाजवाब प्रस्तुति...अर्चना जी और सिद्धू जी आप सब को धन्यवाद

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  12. बहुत बढ़िया ..अब बारिश के मुशायरे में और रंगत आ गई जब तक ठीक से बरसात ना हो बारिश मुशायरे का आनंद ही नही आता मिसिरा ही कुछ ऐसा है....आज भी ग़ज़ल की लाजवाब प्रस्तुति...अर्चना जी और सिद्धू जी आप सब को धन्यवाद

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  13. अर्चना जी की ग़ज़ल का पहला शे'र ही कहर बरपा रहा है इससे आगे निकल ही नहीं पा रहा ... क्या खुबसूरत शे'र कहे हैं... वाह .. सारे ही मुकम्मल हैं ... बधाई..
    सिद्धू जी हमेशा की तरह बढ़िया शे'र लेकर आये हैं ... फुहारें .. वाह क्या गज़ब का शे'र ... बहुत बहुत बधाई इन दोनों को ...

    अर्श

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  14. शामिल होने में देर हो गई..मेरा ऑफिस ठीक किया जा रहा था और कंम्प्यूटर पर काम नहीं कर सकती थी.
    चित्रा जी के साथ जो हुआ उसका दुःख है..कंचन मेरी प्यारी बहना को जन्मदिन की देर से ढेर सारी बधाई पर हमारे यहाँ कहा जाता है ख़ुशी का कोई दिन नहीं होता जब चाहे मना लो. ऐसी ख़ुशी तो रोज़ मनाई जाती है.
    कंचन और मेजर साहब की ग़ज़लें बहुत भाईं.
    मुझे ग़ज़ल का व्याकरण नहीं मालूम पर जो ग़ज़ल मन को भा जाती है मेरे लिए वह बढ़िया होती है.....
    कंचन की ग़ज़ल की पंक्तियाँ ---
    बगूले रेत के उड़तें हैं तट पे गंगा के
    है मन उदास की बच्चे पियासे जाए हैं
    और गौतम के शे'र -
    भटकती फिरती है ..
    उठी थी हूक कोई...
    वह क्या बात है...
    महफिल जमा दी..
    बधाई

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  15. अर्चना और निर्मल जी की ग़ज़लें बहुत पसन्द आईं.
    अर्चना जी के शेयरों की पंक्तियाँ --
    कली -कली के दिलों में बसी वफाएं हैं
    उड़न खटोले की मानिंद उड़ रहे बादल
    बहुत अच्छी लगीं..
    अर्चना और निर्मल जी को बधाई.

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  16. सुधा दी का आशीर्वाद संभाल लिया है।

    अर्चना जी का मतला बहुत भला लगा और सिद्धू जी का पहला शेर जमीं पे मोर है सतरंगी छटा बिखेर रहा है।

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  17. सुधा दी का आशीर्वाद संभाल लिया है।

    अर्चना जी का मतला बहुत भला लगा और सिद्धू जी का पहला शेर जमीं पे मोर है सतरंगी छटा बिखेर रहा है।

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  18. दोनों ही गज़लें बहुत अच्छी हैं. अर्चना जी और निर्मल जी तो बधाई और बहुत बहुत धन्यवाद.

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  19. are vaah......irshaad.....irshaad aage bhi kahiye.....are mujhe to tippani karni thi.....nahin karta jaao....is gazal par bhoot kee tippani nahin janchegi....

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  20. @ अर्चना जी,
    मतला अन्दर तक झकझोर दे रहा है, गिरह भी अच्छी लगाई है, हिरन का प्रयोग अच्छा किया है वाह वाह
    "उड़न खटोले की मानिंद........", शेर भी खूब बना है.

    @ निर्मल सिद्धू जी,
    "ज़मीन पे मोर है.." अच्छा शेर है, उम्दा शेर हैं.

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