कक्षाएं प्रारंभ होने को हैं और उसके पहले मैं चाह रहा हूं कि नीरज गोस्वामी जी के बारे में कुछ बात करूं बात करने के पीछे कारण ये है कि पिछले दिनों उनकी कई सारी ग़ज़लें मुझे देखने का मौका मिला और हालंकि जैसा वे कहते हैं कि वे बहर के बारे में कुछ नहीं जानते लेकिन मुझे कभी भी ऐसा नहीं लगता कि ये ग़ज़लें किसी ऐसे शख्य ने लिखीं हैं जो कि बहरों के बारे में कुछ भी नहीं जानता है । हालंकि पिछले दिनों में कई सारे लोगों की ग़ज़लों को देखा किन्तु किसी न किसी शेर में कहीं न कहीं कोई कमी दिख ही जाती है । ऐसा नीरज जी के साथ ही मु झे देखने को मिला कि ग़ज़ल बहर के लिहाज से पूरी तरह से मुकम्मल होती है । वे कहते हैं कि वे तो केवल अपने अंदर की धुन पर ही ग़ज़ल लिखते हैं । लेकिन देखने में एसा लगता है कि ग़ज़ल बाकायदा मीटर पर कस के लिखी गई है । और उस कारण पूरी तरह से दोष रहित है । अब जैसे उनकी एक ताजा ग़ज़ल का ये मकता देखें
घर से चलो तो याद ये दिल में रहे नीरज
दिलकश हमेशा राह में मंज़र नहीं मिलते
2212 2212 2212 22 मुसतफएलुन-मुसतफएलुन-मुसतफएलुन-फएलुन
एक मुश्किल बहर पर ग़ज़ल लिखी है और सबसे बड़ी बात तो ये है कि विचारों में कहीं कमी नहीं आ रही है । जैसा कि कुछ छात्र कहते हैं कि जब वे व्याकरण को पकड़ते हैं तो विचार निकल भागते हैं और जब विचारों को पकड़ते हैं तो व्याकरण में सोलह सौ के हज़ार हो जाते हैं । अब ये तो नीरज जी से मैंने नहीं पूछा कि वे किस प्रकार लिखते हैं पर ये तो तय है कि उनकी ग़ज़लों में विचारों का और व्याकरण का संतुलन होता है । ये नहीं होता कि बहर साधने के चक्कर में शब्दों ने अर्थ खो दिया हो । कुछ बहुत बड़े बहर के जानकारों की भी आप ग़ज़लें सुनेंगें तो वहां पर आपको आनंद नहीं आएगा । उसके पीछे कारण ये है कि बहर को साधने के चक्कर में मोटे मोटे शब्द उठाकर रखे गए हैं और जिनके कारण व्याकरण तो सध गई है लेकिन ग़ज़ल नहीं सध पाई है ।
नीरज जी की एक विशेषता ये है कि उनका मकता हमेशा ही जानदार होता है जैसे ये
काश "नीरज" हो हमारा भी जिगर इतना बड़ा
जेब खाली हो मगर सत्कार की बातें करें
2122 2122 2122 212 फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलनु
दरअसल में यही एक बात है जो किसी को भी मुकम्म्ल बनाती है पहले तो ये कि आपकी ग़ज़ल में विचारों की समृद्धता हो और फिर ये भी ज़रूरी है कि व्याकरण को लेकर अशुद्धियां न हों । एक शेर और देखें
उठे सैलाब यादों का अगर मन में कभी तेरे
दबाना मत कि उसका आँख से झरना ज़रूरी है
1222 1222 1222 1222 मुफाईलुन-मुफाईलुन-मुफाईलुन-मुफाईलुन
1222 1222 1222 1222 मुफाईलुन-मुफाईलुन-मुफाईलुन-मुफाईलुन
मैंने ये उदाहरण इसलिये लिये क्योंकि ये सब अलग अलग बहरों पर हैं ।
एक बात जो नीरज जी को लिखने की ताकत दे रही है वो है विनम्रता क्योंकि सरस्वती मां का तो कहना है कि मैं फल उन्हीं पेड़ों पर दूंगी जिनको झुकने का गुण आता हो । विनम्रता किसी भी साहित्यकार का सबसे बड़ा गुण होना चाहिये और नीरज जी के मेल इतने विनम्रता से भरे होते हैं कि कभी कभी अपने आप पर ही संकोच होने लगता है ।
खैर कल बातें अपने एक और पसंदीदा कवि के बारे में ।
कई बार आपकी क्लास मे आया पर फ़िर कड़ी पढ़ाई देखकर भाग खड़ा हुआ.
जवाब देंहटाएंफ़िर ऐसे ही इन सब के बारे मे नीरज भइया से बात हुई तो बहुत हौसला मिला. उनका कहा था कि " अच्छा लिखते रहने की कोशिश करते रहो और अच्छा लिखते रहो तो फ़िर ये व्याकरण और बहर वगेरह अपने आप ठीक हो सकती है."
ऐसे ही है हमरे नीरज भइया उर्फ़ "वड्डे वाप्पाजी"
neeraj ji ke is gun ki mai bhi murid hu.n jo mujhame nahi hai
जवाब देंहटाएंपंकज जी
जवाब देंहटाएंग़ज़ल की कक्षाएं प्रारम्भ करने का शुक्रिया...इसका बहुत दिनों से इंतज़ार था. आप ने अपनी पहली ही क्लास में मुझे जो सम्मान दिया है उसका शायद मैं अधिकारी नहीं. मैं अपने मन की बात सीधे साधे शब्दों में कहने की कोशिश करता हूँ और आप या प्राण साहेब से प्रेरणा लेता हूँ. ये आप जैसे दक्ष लोगों की संगत का प्रताप है की मुझसे सही सही ग़ज़ल कहलवा देती है. आप से क्या छुपा है...मेरी कमजोरियों से भी आप बखूबी वाकिफ हैं..और आप ने समय समय पर मेरी ग़ज़लों को जो निखारा है उसके बारे में शब्दों में कुछ कहा नहीं जा सकता. आप ने मेरी जिस विनम्रता का जिक्र किया है दरअसल वो मेरी सच्चाई है...जो मुझे नहीं आता उसे मान ने में में मुझे कोई शर्म महसूस नहीं होती क्यों की जब तक आप अपने आप को शिष्य ही समझते रहेंगे तब तक आप सीखते रहेंगे, ऐसा मेरा मानना है. मुझे इस विधा की बदौलत आप जैसे बहुत सारे प्यारे लोगों के सम्पर्क में आने का अवसर मिला है जिसकी कभी कल्पना भी मैंने नहीं की थी. इसे मैं अपने लेखन की एकमात्र उपलब्धि मानता हूँ. आप सब का स्नेह मुझपर ऐसे ही बना रहे ये ही कामना है.
नीरज
बहुत अच्छा लगा आप के ब्लाग पर आकर और नीरज झि के बारे में पढ़ कर और साथ ही आप को जानकर...और आपके गज़ल महारत देखकर ..कभी समय मिले तो आपकी नजर चाहूंगा मेरी गजल पर..ताकि मै अपने आप को सुधार सकूं...
जवाब देंहटाएंपंकज जी,
जवाब देंहटाएंआपने बिल्कुल सही कहा. विनम्रता ही है जो नीरज भैया को महान बनती है. इतनी अच्छी गजलें लगातार लिख लेना बहुत कठिन बात है. लेकिन लगता है जैसे नीरज भैया बड़ी आसानी से लिख लेते होंगे.
नीरज भैया को जानना मैं अपनी एक उपलब्धि मानता हूँ.
नीरज जी से एक कुछ देर की मुलाकात हुई बम्बई में एक कवि सम्मेलन में. बहुत बेहतरीन और उम्दा इन्सान लगे. उनकी लेखनी के तो हम शुरु से ही कायल है. व्याकरण का तो पता नहीं किन्तु भाव बहुत भाते हैं. अब तो व्याकरण पर भी आपकी मोहर लग गई है यानि मुझे भी अंदर ही अंदर व्याकरण पहचानना आता होगा , कम से कम दूसरों की गजल में. :) हा हा क्या कहना है आपका माडस्साब.
जवाब देंहटाएंकुछ उम्मीद सी बँधती दिख रही है कि शायद कभी प्रतिभा निखर आये.
Yes Sir. I am in complete agreement with your observation.
जवाब देंहटाएंपंकज भाई, इस सर्व-प्रिय ब्लॉग पर नीरज जी के विषय में आप की क़लम से कुछ अनमोल शब्दों को पढ़ कर बहुत ख़ुशी हुई। मेरा नीरज जी से कभी
जवाब देंहटाएंसाक्षात या फ़ोन द्वारा तो बात नहीं हुई लेकिन समय समय पर ई-मेल द्वारा संपर्क होता रहा है - ग़ज़ब का इन्सान है। आप कुछ ही कह लें मगर उनकी विनम्रता की थाह को आंकना आसान नहीं है। दूसरे, चाहे कितनी ही अच्छी ग़ज़ल लिखी हो, उसमें कमी ना रहे और परिपूर्णता लाने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। पंकज जी जैसे उस्ताद और दीगर उस्तादों से राब्ता कायम रखते हैं। अगर देखें तो दिन ब दिन उनकी ग़ज़ल में जो निखार आ रहा है,इसमें शक की गुंजाईश ना के बराबर है।
पंकज जी ने ऊपर उनके 'रमल' और 'रजज़' की ग़ज़लों के मक़तों का ज़िक्र किया है, वाक़ई क़ाबिले तारीफ़ हैं।
हां, पंकज जी यह पाठशाला का कार्य-भार जो आपने उठाया है, यह हिन्दी भाषियों के लिए नायाब है। ख़ास कर बह'र सिखाने पर आप को उबूर है।
उर्दू में तो ख़ास कर बहर और दीगर बारीकियों के बारे में कुछ अच्छे साईट हैं, लेकिन हिन्दी में 'महरिष' जी और 'प्राण शर्मा' जीके अलावा कुछ नज़र नहीं आया। लेकिन 'बहर' के मुआमले में बहुत ज़्यादा नहीं मिला। 'मतले' के क़ाफ़ियों के बारे में 'महरिष' का लेख अनमोल है। क्षमा करना कि दूसरों लोगों का इश्तहार आपकी दीवार पर लगा रहा हूं।
शुभकामनाओं सहित
महावीर शर्मा