ऐसा लगता है कि मेरी परेशानियों के दिन अभी और लम्बे समय तक चलना चाह रहे हैं । पिछले कुछ समय से परेशानियों ने कुछ इस तरह से घेरा हुआ है कि बस उस पर शनिवार की घटना ने तो पूरे दिन और रविवार को भी मन को विचलित किये रखा ऐसा लगा कि अब बस सब कुछ खत्म ही होने वाला है पर जाने किसकी दुआओं के असर से बच गया । दोपहर का समय था लगभग चार बजे के आसपास मैं भोपाल सै लौट रहा था अपनी मारुती वैन लेकर के । रास्ते में हाईवे बनाने वालों ने सड़क को तो ऊंचा कर दिया पर किनारों को नहीं भरा जिससे के सड़क और ज़मीन के बीच में करीब डेढ़ फुट का फासला है और वो भी एकदम सीधा । मतलब कहीं आपने ग़लती से भी गाड़ी को सड़क नीचे उतारा तो सीधी सी बात है कि आपकी गाड़ी का पलटना तय है । गाड़ी धड़ से नीचे गिरेगी और अगर गति में है तो पलटना तो तय है । मैं चला जा रहा था कि अचानक एक गाय जो कि उस तरफ मुंह करके खड़ी थी जाने किस वजह से उलट कर भागी और उसके बचाने के चक्कर में मैं भूल ही गया कि सड़क और जमीन में डेढ़ फुट का अंतर है और बात की बात में गाड़ी सड़क को छोड़कर जमीन पर आकर धड़ाक से गिरी । गिरते ही संतुलन चला गया और दूसरा तीसरा और चौथा पहिया भी जमीन पर आ गिरा और उसके बाद गाड़ी स्पीड में लहराती हुई एक पुलिया की ओर बढ़ चली कुछ देर तक तो मैंने उसको नियंत्रण में लेने का प्रयास किया मगर जब बात नहीं बनी तो हार कर सोच लिया कि अब तो पुलिया से टकराना है और उसके बाद जो होना है वो होगा ही । अचानक पुलिया के कुछ दूर पर गाड़ी जोर का झटका खाकर रुक गई । हाथ में थोड़ी सी चोट लगी और कुछ नहीं । मैं हैरत में भरा गाड़ी से उतरा तो ज्ञात हुआ कि एक मिट्टी का टीला रास्ते में आ गया था जिससे टकरा कर गाड़ी रुक गई थी । और उसमें फंस गई थी । मिट्टी होने के कारण गाड़ी को ज़रा सा भी नुकसान नहीं हुआ और ना ही मुझे । कुछ देर तक तो मैं हैरान सा खड़ा सोचता रहा कि क्या है ये सब । ये किसकी दुआओं का फल है जो मिट्टी के टीले के रूप में सामने आ गया है । समय का एक पल ही तो बीच में बाकी रहा गया था जब गाड़ी को उस पुलिया से टकराना था । और उसी पल में वो टीला जीवन और मृत्यु के बीच आकर खड़ा हो गया कि नहीं अभी नहीं अभी तो बहुत काम बाकी हैं । एक और ऐसा सच देखने को मिला जिसके जिक्र के बगैर ये बात अधूरी ही रहा जाएगी । थोड़ी ही दूर पर कुछ मजदूर और ड्रायवर खड़े थे जब उन्होंने देखा तो दौड़ते हुए आए और कुशलक्षेम पूछने लगे । मैंने कहा कि कोई चोट नहीं है बस गाड़ी फंस गई है तो उनमें से एक ड्रायविंग सीट पर बैठ गया और बाकियों ने धकेलते हुए बात की बात में गाड़ी को लाकर सड़क पर खड़ा कर दिया । जब मैंने पैसे देने चाहे तो सबने हाथ जोड़ दिये कहने लगे कि बाबूजी आपको ईश्वर ने बचा लिया वही हमारे लिये बहुत है । और जो हमने किया वो तो करना ही था । मैं अभिभूत रहा गया आज भी ऐसी मानवता बाकी है । नानी सच कहती हैं कि कुछ अच्छे लोगों के कारण ही पृथ्वी टिकी है अन्यथा तो कभी भी खत्म हो जाएगी । खैर दुर्घटना की मानसिकता को मानवीयता ने दूर कर दिया और मैं उनको सलाम करता हुआ वापस आ गया ।
आज से ग़ज़ल की कक्षाएं प्रारंभ होनी थीं पर शनिवार का अनुभव आप लोगों के साथ बांटना था । उसके पीछे क्या कारण है वो अब बताता हूं । दरअस्ल में जब रविवार को मैंने सोचा की वो मिट्टी का टीला वास्तव में क्या था तो मुझे पता चला कि वो वास्तव में माता पिता और परिवार की दुआएं थीं और आप सब मित्रों की शुभकामनाएं थीं जो मुझे मृत्यु के मुख से खींच लाईं । धन्यवाद देकर आपके स्नेह को छोटा नहीं कर सकता । पर हां बात वही है कि आप सब का प्रेम है जो मुझे संकट के इस दौर में संबल दे रहा है ।
जिस पर ईश्वर की असीम कृपा हो वह हर मुसीबत से बाहर आ जाते हैं .संकट टल गया यही बहुत बड़ी बात है दुआये तो असर करती ही हैं आप स्वस्थ रहे और हमारी कक्षा लेते रहे यही दुआ है :)
जवाब देंहटाएंसुबीर जी,
जवाब देंहटाएंआदमी तो हमेशा ही दो छोरों..(खुशी या मुसीबत के हो) के बीच होता है...
आप मान कर चलिये की आप मुसीबत के अन्तिम छोर पर हैं और यह घटना जीवन की अन्तिम बुरी घटना है... आगे सब मंगल ही मंगल हो ऐसी कामन है.
Ishwar yu.n hiaapko har bal se bachate rahe.n
जवाब देंहटाएंहमारी दुआयें आपके साथ हैं.आप स्वस्थ रहें.ईश्वर आपके साथ है.
जवाब देंहटाएं"जाको रखे साइयां...."
जवाब देंहटाएंसुबीर जी कहते हें इश्वर जिनसे प्यार करता है उन्ही के इम्तिहान लेता है. आप निश्चिंत रहें आप को कुछ नहीं होगा...आप हम सब के प्रिये हें और इश्वर इस बात को अच्छी तरह से जानता है...वो कुछ ऐसा हरगिज़ नहीं करेगा जिस से उस पर की गयी आस्था को आंच आए...
बीती बात बिसार के आगे की सुध ले...का जाप करते हुए प्रसन्न मन से लग जाईये उसी काम में जो आप को संतोष दे.
नीरज
हर क्षण है बोझिल पीड़ा से, हर धड़कन आंसू की सहचर
जवाब देंहटाएंफिर भी मन को तो गाना है बस एक उसी का वॄन्दावन
सुबह की पहली अंगड़ाई, ले साथ शूल नूतन आई
दिन की पादानों ने रह रह चाहे प्राणों को दंश दिये
सन्ध्याकी झोली में सिमटे पतझड़ के फूल और कीकर
बस नीलकंठ बन करतुमने जीवन के इतने अंश जिये
उमड़ी है काली सघन घटा, चंदा तारों का नहीं पता
पर तुम्हें आस्था की दुल्हन का करना होगा आराधन
यद्यपि वह शास्त्र प्रणेता जो, लेता है सघन परीक्षायें
वह कभी कभी अपना संचित विश्वास डुलाने लगती हैं
पर विदित हमेशा सूर्य उगा है चीर तिमिर की धुंध घनी
तो नई चेतना पुन: मित्र ! प्राणों में छाने लगती है
जो पीर हुई इतिहास आज फिर उसके पॄष्ठ न खोलें हम
फिर से गज़लों की मेघपरी की पायल की छेड़ो छन छन
हमारी दुआयें सदैव आपके साथ हैं. आप दिर्घायु हों और सदा स्वस्थय एवं मुस्कराते रहें, यही कामना है.
जवाब देंहटाएंअनेकों शुभकामनाओं के साथ-
सुबीर साहब;
जवाब देंहटाएंमां बाप और चाहने वाले की दुआयें आपके साथ हमेशा हैं.
अब लिखना शुरू कर दीजिये. हमने आपको बहुत मिस किया है.