नफरत और प्रेम का सिलसिला सदियों से ही चला आ रहा है और उसके साथ ही चला आ रहा है युद्ध और शांति का चलन । हम किसी से अचानक ही नफरत करने लगते हैं और फिर अचानक ही हक किसी को प्रेम करने लगते हैं । मैं पहले तो काफी हैरत में रहता था कि आखिर क्या है जो किसी को किसी से जोड़ देता है और किसी को किसी से तोड़ देता है । क्यों ऐसा होता है कि किसी को देखे बिना आपका दिन ही पूरा नहीं होता है और किसी को देख कर आपका दिन ही खराब हो जाता है । व्यक्ति तो वही है जो आपके लिये ऐसा है कि आप उसको देख कर ही दिन सार्थक मानते हैं और वो ही किसी और के लिये ऐसा हो सकता है कि उसे देख कर उसका दिन खराब हो जाए । जिन महात्मा गांधी को कई लोग भगवान मानते थे उन्हीं से कोई व्यक्ति इतना चिढ़ता था कि उनकी हत्या ही कर डाली । तो ये कौन सी बात है और कौन सी मनोस्थिति है जो हमें ऐसा करने पर मजबूर कर देती है । तो बात वही है कि प्रेम ही वो स्थिति है जो हमें किसी से जोड़ देती है और प्रेम का ना होना ही वो स्थिति है जो हमें किसी से अलग करती है ।
ग़ज़ल ने हमेशा ही प्रेम की बात की हे और हमेशा ही ये कहा है कि प्रेम हमेशा ही नफरतों पर भारी पड़ता है । ग़ज़ल एक नाज़ुक सा ऐहसास है ग़ज़ल फूलों की पंखुरी है जो कि आत्मा को छूती हुई गुज़र जाती है । और इसीलिये ही ऐसा होता है कि आप ग़ज़ल के शेरों को लम्बे समय तक याद रखते हैं क्योंकि वो आपकी आत्मा में बस जाते हैं । आपको लग रहा होगा कि मैं आज ये कहां कि बात लेकर बैठ गया । दरअस्ल में इन दिनों ग़ज़ल में जो शब्द आ रहे हैं वे ग़ज़ल के सौंदर्य को खत्म कर रहे हैं । हालंकि मैं ये नहीं कहता कि ग़ज़ल के कोई अलग से शब्द हैं जो कि ग़ज़ल में उपयोग किये जाते हैं और उनके अलावा नहीं आने चाहिये । मगर बात ये है कि आपकी ग़ज़ल हमेशा समकालीन बनी रहे तो ही तो बात है । साहित्य तो वही होता है जो कि हमेशा ही समकालीन रहता है । अगर आपको बताना पड़े कि ये कविता को लिखने के लिये उस समय परिस्थितियां क्या थीं तो आपकी कविता समकालीन कविता नहीं है । जैसे एक कविता है ''हम कौन थे क्या हो गए हैं और क्या होंगें अभी '' ये कविता हर दौर में समकालीन ही रहेगी क्योंकि ये बात हर दौर में सही होगी कि हम कौन थे क्या हो गए हैं और कया होंगें अभी ।
हम जो भी लिखें वो इस तरह का हो कि उसमें अपने समय की गूंज हो और साथ ही वो आने वाले समय में भी अपनी सार्थकता को नहीं खो पाए । ग़ज़ल आज की सबसे लोकप्रिय विधा है और उसके पीछे कारण ये है कि ये विधा सवतंत्रता देती है विचारों को व्यक्त करने की । हिन्दी का छंद शास्त्र जो आज कुछ कम लोकप्रिय है तो उसके पीछे भी कारण्ा यही है कि उसमें विचारों से ज्यादा व्याकरण पर जोर होता है । फिर भी राकेश खंडेलवाल जी जैसे लोग हैं जो छंद शास्त्र के संकट के दौर में भी छंद का परचम पूरी मजबूती के साथ उठाए हुए हैं और उसको आसमान में लहरा भी रहे हैं । मैं काफी दिनों से अनुपस्थित चल रहा था और लौटने की मानसिकता नहीं बना पा रहा था । अब साहस करके लौट रहा हूं ।साहस करके इसलिये कह रहा हूं कि साहस सचमुच ही करना पड़ रहा है । और एक बात और भी है वो ये है कि जिस समय पर मैं ब्लागिंग के लिये बैठता हू वो समय बिजली कटौती की भेंट था अब कुछ दिनों से उस समय पर लाइट नहीं जा रही है सो आशा है कि अब नियमित रूप से हम मिलेंगें । आमीन
सुबीर जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सही तथा सुलझे हुए विचार हैं आपके। पढ़कर अच्छा लगा। सोच इतनी ही सुलझी हुई होनी चाहिए। बधाई स्वीकारं।
चलिये, आप आये बहार आई.
जवाब देंहटाएंअब संटी निकालिये और तैयार हो जाईये क्लास लगाने के लिये. :)
वापसी पर स्वागत है.
सुबीर जी
जवाब देंहटाएंएक एक लफ्ज़ सोने की तरह खरा और सच्चा है आपका...कोशिश करेंगे की आप की कही बात का पालन किया जाए, दिल से.
नीरज