गुरुवार, 29 मई 2008

विनम्र व्‍यक्ति के चाहने वाले तो सचमुच ही बहुत होते हैं नीरज जी ने ये सिद्ध कर दिया अगले जिन कवि की बात मैं करूंगा वे भी इतने ही विनम्र हैं । नीरज जी पर जो टिप्‍पणियां मिली है उन पर कुछ बातें आज की जाएं ।

गज़ल की कक्षाएं प्रारंभ करने से पहले मैं मूड बना रहा हूं छात्र छात्राओं का कि वे गर्मी की छुट्टी का मूड त्‍याग दें और पढ़ने के मेड में आ जाएं । मेरी फेवरिट सूची में नीरज जी की बात मैं ने कल की थी उस पर काफी लोगों ने सकारात्‍मक प्रतिक्रिया दी है । नीरज जी ने सिद्ध कर दिया है कि अजातशत्रु होना आज भी असंभव नही है । देखिये कुछ टिप्‍पणियां और उन पर माड़साब का जवाब ।

बाल किशन कई बार आपकी क्लास मे आया पर फ़िर कड़ी पढ़ाई देखकर भाग खड़ा हुआ. फ़िर ऐसे ही इन सब के बारे मे नीरज भइया से बात हुई तो बहुत हौसला मिला. उनका कहा था कि " अच्छा लिखते रहने की कोशिश करते रहो और अच्छा लिखते रहो तो फ़िर ये व्याकरण और बहर वगेरह अपने आप ठीक हो सकती है."
ऐसे ही है हमरे नीरज भइया उर्फ़ "वड्डे वाप्पाजी"

माड़साब    बालकिशन जी पढ़ाई तो सोचने से ही कड़ी और आसान होती हे । आप आएं कक्षाएं पुन- प्रारंभ हो रहीं हैं और ये वड्डे पाप्‍पाजी तो वड्डा ही मजेदार नाम हेगा ।

कंचन सिंह चौहान neeraj ji ke is gun ki mai bhi murid hu.n jo mujhame nahi hai

माड़साब    कंचन आप चिन्‍ता न करें कक्षाएं प्रारंभ करने से पूर्व में सभी छात्रों के बारे में एक एक पोस्‍ट लगाऊंगा और हर किसी में कुछ न कुछ गुण तो होता ही है और ये अंग्रेजी में काहे बात कर रहीं हैं ।

नीरज गोस्वामी ग़ज़ल की कक्षाएं प्रारम्भ करने का शुक्रिया...इसका बहुत दिनों से इंतज़ार था. आप ने अपनी पहली ही क्लास में मुझे जो सम्मान दिया है उसका शायद मैं अधिकारी नहीं. मैं अपने मन की बात सीधे साधे शब्दों में कहने की कोशिश करता हूँ और आप या प्राण साहेब से प्रेरणा लेता हूँ. ये आप जैसे दक्ष लोगों की संगत का प्रताप है की मुझसे सही सही ग़ज़ल कहलवा देती है. आप से क्या छुपा है...मेरी कमजोरियों से भी आप बखूबी वाकिफ हैं..और आप ने समय समय पर मेरी ग़ज़लों को जो निखारा है उसके बारे में शब्दों में कुछ कहा नहीं जा सकता. आप ने मेरी जिस विनम्रता का जिक्र किया है दरअसल वो मेरी सच्चाई है...जो मुझे नहीं आता उसे मान ने में में मुझे कोई शर्म महसूस नहीं होती क्यों की जब तक आप अपने आप को शिष्य ही समझते रहेंगे तब तक आप सीखते रहेंगे, ऐसा मेरा मानना है. मुझे इस विधा की बदौलत आप जैसे बहुत सारे प्यारे लोगों के सम्पर्क में आने का अवसर मिला है जिसकी कभी कल्पना भी मैंने नहीं की थी. इसे मैं अपने लेखन की एकमात्र उपलब्धि मानता हूँ. आप सब का स्नेह मुझपर ऐसे ही बना रहे ये ही कामना है.
नीरज

माड़साब    नीरज जी बात सम्‍मान की नहीं हैं बात तो ये है कि इस दौर में जो कि साहित्‍य के लिये सबसे कठिन दौर है । उसमें कोई यदि कुछ कर रहा है तो उसे मानना होगा कि वो वास्‍तव में डीजे के सामने बैठ कर बांसुरी बजा रहा है और अभी भले ही डीजे के शोर में उसकी बांसुरी कोई नहीं सुन रहा हो पर हमें तो उसकी हौसला अफजाई इसलिये करनी है ताकि वो बांसुरी बजाता रहे थके नहीं । कल लोग जब शेार से थकेंगें तो डीजे को दोड़ कर वापस बांसुरी की ओर मुड़ेंगे तब तब हमें साहित्‍य को जिंदा रखना है नहीं रख पाए तो इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा ।

Kavi Kulwant बहुत अच्छा लगा आप के ब्लाग पर आकर और नीरज झि के बारे में पढ़ कर और साथ ही आप को जानकर...और आपके गज़ल महारत देखकर ..कभी समय मिले तो आपकी नजर चाहूंगा मेरी गजल पर..ताकि मै अपने आप को सुधार सकूं...

माड़साब    ज़रूर कुलवंत जी । मैं अपने को विशेषज्ञ तो नहीं मानता लेकिन ये मानता हूं कि जितना आता है उसकेा जब तक दुसरों के साथ नहीं बांटूंगा तब तक मां सरस्‍वती मुझे और नहीं देंगीं । और नीरज जी जैसे लोग ही तो हैं जो मेरे काम को सार्थक कर रहे हैं।

Shiv Kumar Mishra आपने बिल्कुल सही कहा. विनम्रता ही है जो नीरज भैया को महान बनती है. इतनी अच्छी गजलें लगातार लिख लेना बहुत कठिन बात है. लेकिन लगता है जैसे नीरज भैया बड़ी आसानी से लिख लेते होंगे.
नीरज भैया को जानना मैं अपनी एक उपलब्धि मानता हूँ.

माड़साब    सही है शिव जी नीरज जी जैसे लोगों को हम भले ही अब विलुप्‍त श्रेणी में रखते हो कि ऐसे विनम्र लोग अब ईश्‍वर ने बनाने बंद कर दिये पर सच ये ही है अब भी ऐसे लोग हैं । और कहा ये ही जाता है कि इन लोगों के कारण ही अभी लोगों का एक दूसरे पर विश्‍वास बना हुआ है ।

Udan Tashtari नीरज जी से एक कुछ देर की मुलाकात हुई बम्बई में एक कवि सम्मेलन में. बहुत बेहतरीन और उम्दा इन्सान लगे. उनकी लेखनी के तो हम शुरु से ही कायल है. व्याकरण का तो पता नहीं किन्तु भाव बहुत भाते हैं. अब तो व्याकरण पर भी आपकी मोहर लग गई है यानि मुझे भी अंदर ही अंदर व्याकरण पहचानना आता होगा , कम से कम दूसरों की गजल में. :) हा हा क्या कहना है आपका माडस्साब. कुछ उम्मीद सी बँधती दिख रही है कि शायद कभी प्रतिभा निखर आये.

माड़साब    समीर जी हम भारतीय लोगों की विशेषता है कि अचार हमें दूसरों के घर का ही पसंद आता है । आप के साथ भी ये ही है कि आप दूसरों की ग़ज़लें तो देख लेते हैं पर अपनी बिना देखे ही प्रकाशित कर देंते हैं ।

अभिनव Yes Sir. I am in complete agreement with your observation.

माड़साब    काहे भैया अभिनव ये अंग्रेजी में काहे बतियाय रहे हो हमें अंग्रेजी फंग्रेजी नहीं ना आती है । और आप हैं कहां भाई इतरा दिन से कौनो खोज खबर ही नहीं ना ली । अभीन तो कक्षाएं शुरु होबे का रहीस उका पेहरे हम अपने फेवरिट की सूची बनाय रहे तो आपका भी लम्‍बर आवे का है फिकिर नाहीं ना करो । और हाजिरी तो कक्षा में लगाओ भैया गर्मी की छुट्टी है तो क्‍या ।

महावीरपंकज भाई, इस सर्व-प्रिय ब्लॉग पर नीरज जी के विषय में आप की क़लम से कुछ अनमोल शब्दों को पढ़ कर बहुत ख़ुशी हुई। मेरा नीरज जी से कभी
साक्षात या फ़ोन द्वारा तो बात नहीं हुई लेकिन समय समय पर ई-मेल द्वारा संपर्क होता रहा है - ग़ज़ब का इन्सान है। आप कुछ ही कह लें मगर उनकी विनम्रता की थाह को आंकना आसान नहीं है। दूसरे, चाहे कितनी ही अच्छी ग़ज़ल लिखी हो, उसमें कमी ना रहे और परिपूर्णता लाने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। पंकज जी जैसे उस्ताद और दीगर उस्तादों से राब्ता कायम रखते हैं। अगर देखें तो दिन ब दिन उनकी ग़ज़ल में जो निखार आ रहा है,इसमें शक की गुंजाईश ना के बराबर है।
पंकज जी ने ऊपर उनके 'रमल' और 'रजज़' की ग़ज़लों के मक़तों का ज़िक्र किया है, वाक़ई क़ाबिले तारीफ़ हैं।
हां, पंकज जी यह पाठशाला का कार्य-भार जो आपने उठाया है, यह हिन्दी भाषियों के लिए नायाब है। ख़ास कर बह'र सिखाने पर आप को उबूर है।
उर्दू में तो ख़ास कर बहर और दीगर बारीकियों के बारे में कुछ अच्छे साईट हैं, लेकिन हिन्दी में 'महरिष' जी और 'प्राण शर्मा' जीके अलावा कुछ नज़र नहीं आया। लेकिन 'बहर' के मुआमले में बहुत ज़्यादा नहीं मिला। 'मतले' के क़ाफ़ियों के बारे में 'महरिष' का लेख अनमोल है। क्षमा करना कि दूसरों लोगों का इश्तहार आपकी दीवार पर लगा रहा हूं। शुभकामनाओं सहित महावीर शर्मा

माड़साब    महावीर जी इश्‍तेहार जैसी तो कोई बात ही नहीं है हम सब ही साहित्‍य नाम की जिस नाव पर सवार हैं वो डूब जाने के अंदेशे में है ऐसे में चाहें महर्षि जी हो ये प्राण जी हों हम सब ही तो उस नाव को बचाने में जुटे हैं तो ऐसे मैं किसी को किसी से कुछ भी अलगाव नहीं रखना चाहिये हम सब एक ही हैा और रही बात नीरज जी की तो उनकी विनम्रता तो सचमुच अथाह है ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस बार जब भी कक्षाएं आरंभ होंगी जरुर आऊंगा.
    जानता हूँ सबसे फिस्सड्डी छात्र मैं ही रहूंगा पर एक कोशिश जरुर करूँगा.
    सूचना के इंतजार मे.
    बालकिशन.

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  2. मजेदार टिप्पणी विमर्श.

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