मंगलवार, 26 फ़रवरी 2008

अब किस जन्‍म में मिलोगे मुझे और मिलोगे तो मैं किस प्रकार पहचान पाऊंगा तुमको कि तुम ही वो हो -


मैं नहीं जानता कि पिछले साल की 25 और 26 फरवरी के बीच की वो रात को क्‍या हुआ था जो कि एक जिन्‍दादिल इन्‍सान ने खुदकुशी जैसा काम कर लिया । रात 4 बजे जब उनके भतीजे का फोन आया कि चच्‍चा ने खुदकुशी कर ली हैं तो एकबारगी तो विश्‍वास ही नहीं हुआ कि ये खबर सच भी हो सकती है । सुकव‍ि मोहन राय और खुदकुशी, मगर सच वही था जो कहा जा रहा था । मेरी हर एक सफलता पर मन से प्रसन्‍न होने वाला वो इन्‍सान जाने किस असफलता पर इतना मायूस हुआ कि खुद को पंखे से लटका बैठा । अभी हाल में ही तो उनकी दूसरी पुस्‍तक झील का पानी का प्रकाशन किया था मैंने उससे पहले गुलमोहर के तले का प्रकाशन किया गया था । हर बाद एक नई उर्जा से सराबोर नज़र आते थे । अच्‍छी खासी नौकरी थी और एक माह बाद ही रिटायर होना था । टीस एक तो ये थी ही कि संतान नहीं थी दोनो पती पत्‍नी नदी किनारे के अपने मकान में अकेले रहते थे ।
हालंकि झील का पानी में उनकी कविता
कोई गीत नहीं है उपजता कुछ छूट रहा है
वो नेह का ताज महल तो अब टूट रहा है
जो ना कभी झुका था आगे कहीं किसी के
मोहन समय के हाथों वो टूट रहा है
पढ़कर मुझे लगा था कि वे निराश हैं और गलत दिशा में सोच रहे हैं । मगर ये किसे पता था कि इतना ग़लत सोच रहे हैं ।
हर शनिवार को हमारी बैठक होना तय सी बात थी। वे तीन बजे आ जाते थे और फिर हम रात आठ बजे तक बैठ कर चर्चा करते रहते थे । चर्चा साहित्‍य की फिलमों की और जाने किस किस की । और हां इस बीच उनके पसंद के गीत ठाड़े रहियो ओ बांके यार, पिया तोसे नेना लागे रे, चलते चलते बजाना अनिवार्य सी बात थी । हमारी उम्र में बीस साल का अंतर था पर मुझे कभी नहीं लगा कि ऐसा है । आज उनको गए हुए एक साल हो गया है । वे मौसम की कविताएं और गीत लिखते थे और झूम के गाते भी थ्‍ज्ञे उनको । अब कौन लिखेगा मौसम पर कविताएं, बसंत बागों में बगरा पड़ा है नहीं जानता कि मौसम का चितेरा कवि तो जा चुका है । जो चुका है जो गाता था सयानों सपनों को बहलाने लगी अंगना की बेरी गदराने लगी ।
चच्‍चा मैं नहीं जानता कि अब तुमको किस जन्‍म में मिलूंगा और मिलूंगा तो कैसे पहचान पाऊंगा कि तुम ही हो । सब तुमको याद करते हैं चच्‍चा तुमने ये अन्‍याय क्‍यों किया ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. पंकज जी
    बहुत भावपूर्ण लेखन.ज़िंदगी में कब कैसे कोई इतना कमज़ोर हो जाता है की उसे मृत्यु में ही उसे मंजिल दिखाई देने लगती है? अकेलेपन का एहसास या जो चाहा वो न मिल पाने का दुःख....कुछ भी कहना मुश्किल है. किसी की मानसिक अवस्था का पता हम व्यक्ति के बाहरी आचार व्यवार से नहीं लगा पाते कभी कभी तो स्वयं हमें भी पता नहीं होता की हम क्या और क्यों करने जा रहे हैं.... इश्वर दिवंगत की आत्मा को शान्ति प्रदान करे.
    नीरज

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  2. चच्‍चा मैं नहीं जानता कि अब तुमको किस जन्‍म में मिलूंगा और मिलूंगा तो कैसे पहचान पाऊंगा कि तुम ही हो । सब तुमको याद करते हैं चच्‍चा तुमने ये अन्‍याय क्‍यों किया

    चाहते हुए भी आँसू रुक नही सके....! वो चाहे आपको पहचाने या ना पहचाने....आप चाहे उनको पहचाने या ना पहचाने..मग़र रूहे एक दूसरे को पहचान लेती है.... और जैसे पिछले जनम के बिछड़े इस जनम में मिले वैसे इस जनम के बिछड़ै अगले जनम में मिल ही जाएंगे ....फिर चाहे रिश्ते का कोई भी नाम रख लिया जाए.....!

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  3. आपके मनोभाव मैं बखूबी समझ सकता हूँ...क्यों किया कैसे किया..यह अब कुछ मायने नहीं रखता..बस, यह याद रखिये कि उनके बताये मार्ग पर प्रशस्त होते रहें...उनके सपने पूरे करें..वही चच्चा को अच्ची श्रृद्धांजली होगी..बाकी तो होनी के आगे सब मजबूर हैं क्या हम..क्या आप!!

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  4. कभि सुना था-
    सिवाए खाक के बाकी असर निसां से न थे
    ज़मीं से दब गए जो दबते आसमां से न थे

    परमात्मा शांति दे।

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  6. मोहन राय जी को मेरी और से भी श्रद्धांजलि. आपसे जब फ़ोन पर बात हुयी तो मुझको महसूस ओ गया था की वे आपके कितने निकट थे. ये पोस्ट पढ़ कर इस आभास को और भी बल मिला है. वैसे जो मित्र हर जन्मदिन पर सबसे पहले शुभकामनाएं देता हो उसकी कमी साल दर साल रहती है और उस पर भी जब वो एक बहुत अच्छा आदमी हो तो फिर स्मृतियाँ मन के पटल पर निरंतर अंकित होती रहती हैं.

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