धीरे-धीरे आकर ट्रेन पकड़ने वालों की ग़ज़लें अब प्राप्त हो रही हैं। चूँकि हमारे यहाँ रंगपंचमी तक या यूँ कहें कि शीतला सप्तमी तक होली का पर्व मनाया जाता है। शीतला सप्तमी पर होली पर पानी छिड़क कर उस आग का ठंडा किया जाता है। और उसके साथ ही होली पर्व का समापन हो जाता है। इसलिए हम भी शीतला सप्तमी तक तो होली मना ही सकते हैं।
"रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है”
आइए आज मनाते हैं बासी होली तिलक राज कपूर जी की सुंदर ग़ज़ल के साथ।
आइए आज मनाते हैं बासी होली तिलक राज कपूर जी की सुंदर ग़ज़ल के साथ।
तिलक राज कपूर
सोंधे सोंधे रिश्तों वाला हर जादू ख़तरे में है।
सम्बन्धों को मीठा करता हर पहलू ख़तरे में है।
फेर समय का कैसा है, जो था धांसू, ख़तरे में है
रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है।
रंग भरी पिचकारी लेकर बच्चे घर में ढूंढ रहे
अम्मी को तो रंग डाला है अब अब्बू ख़तरे में है।
दरवाज़े पर हुड़दंगी हुरियारों की है भीड़ जमा
बचने की कोशिश करनी है, कर ले तू ख़तरे में है।
मिष्ठान्नों पर रंगबिरंगी पैकिंग का जादू देखा
गुड़धानी, गुझिया, खुरमा वाला जादू ख़तरे में है।
मतले में ही बहुत सुंदरता से रिश्तों के धीरे-धीरे छीजते जाने की कहानी बहुत सुंदरता के साथ कही है तिलक जी ने। सचमुच जो कुछ हमारे संबंधों को मीठा करता था, वह सब कुछ अब ख़तरे में ही है। हुस्ने मतला में बहुत अच्छे से गिरह बाँधी गई है। अम्मी और अब्बू को रंग लगाने की बच्चों की कोशिश का प्रयोग अगले शेर में दिल को ख़ुश कर रहा है। और होली का पूरा चित्र खींच रहा है अगला शेर जिसमें होली के हुरियारों की पूरी भीड़ दरवाज़े पर जमा है और बचने वाला बचने की कोशिश में लगा हुआ है। अंतिम शेर में एक बार फिर होली के समाप्त होते रीति-रिवाजों की बात कही गई है। सचमुच अब ऐसा ही लगता है कि होली का जादू अब ख़तरे में ही है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।
सोंधे सोंधे रिश्तों वाला हर जादू ख़तरे में है।
सम्बन्धों को मीठा करता हर पहलू ख़तरे में है।
फेर समय का कैसा है, जो था धांसू, ख़तरे में है
रंग, अबीर, गुलाल, फाग, रसिया, टेसू ख़तरे में है।
रंग भरी पिचकारी लेकर बच्चे घर में ढूंढ रहे
अम्मी को तो रंग डाला है अब अब्बू ख़तरे में है।
दरवाज़े पर हुड़दंगी हुरियारों की है भीड़ जमा
बचने की कोशिश करनी है, कर ले तू ख़तरे में है।
मिष्ठान्नों पर रंगबिरंगी पैकिंग का जादू देखा
गुड़धानी, गुझिया, खुरमा वाला जादू ख़तरे में है।
मतले में ही बहुत सुंदरता से रिश्तों के धीरे-धीरे छीजते जाने की कहानी बहुत सुंदरता के साथ कही है तिलक जी ने। सचमुच जो कुछ हमारे संबंधों को मीठा करता था, वह सब कुछ अब ख़तरे में ही है। हुस्ने मतला में बहुत अच्छे से गिरह बाँधी गई है। अम्मी और अब्बू को रंग लगाने की बच्चों की कोशिश का प्रयोग अगले शेर में दिल को ख़ुश कर रहा है। और होली का पूरा चित्र खींच रहा है अगला शेर जिसमें होली के हुरियारों की पूरी भीड़ दरवाज़े पर जमा है और बचने वाला बचने की कोशिश में लगा हुआ है। अंतिम शेर में एक बार फिर होली के समाप्त होते रीति-रिवाजों की बात कही गई है। सचमुच अब ऐसा ही लगता है कि होली का जादू अब ख़तरे में ही है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।
आज तिलक जी की ग़ज़ल ने बासी होली का रंग जमा दिया है। आप भी दाद दीजिए और इंतज़ार कीजिए भभ्भड़ कवि भौंचक्के की ग़ज़ल का जो फिलहाल अपने उपन्यास "रूदादे-सफ़र" के प्रचार में लगे हुए हैं। https://www.amazon.in/dp/B0BXP1VZXM
सोंधे-सोंधे रिश्तों वाला हर जादू खतरे में है
जवाब देंहटाएंसम्बन्धों को मीठा करता हर पहलू खतरे में है.
आय-हाय, आय-हाय, ओह्होह.. कमाल कमाल कमाल !
आ० तिलकराज भाईजी, आपके मतले ने दिल को उद्वेलित कर दिया है. ऐसे सच्चे शे’र संवेदनाओं से लबालब भरे दिल से ही कहे जा सकते हैं. तिसपर हुस्ने-मतला जो कि गिरह का शे’र भी है गहराई से अपनी बात कहता हुआ सामने आया है.
हुजूर, देर आयद मगर गजब के दुरुस्त आयद ..
रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ
शुभातिशुभ
सौरभ
आप सभी की मोहब्बतें कुछ शेर निकलवा ही लेती हैं। आपका हार्दिक आभार सौरभ भाई।
हटाएंबहुत सुंदर गजल कही है आदरणीय तिलक राज जी ने। बहुत बहुत बधाई उन्हें
जवाब देंहटाएंआप सभी की मोहब्बतों का परिणाम है यह ग़ज़ल। आपका हार्दिक आभार धर्मेन्द्र भाई।
हटाएंखूबसूरत ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
हटाएंवाह वाह वाह क्या ही शानदार ग़ज़ल पेश की है आदरणीय तिलक राज जी ने, मज़ा आ गया। बहुत खूबसूरत मतले से ग़ज़ल शुरू हुई इस ग़ज़ल का हरेक शेर मन को छूता जाता है।
जवाब देंहटाएंरंग भरी पिचकारी लेकर बच्चे घर में ढूंढ रहे
अम्मी को तो रंग डाला है अब अब्बू ख़तरे में है।
वाह वाह क्या बात है जी।
गुरप्रीत जी आपका हार्दिक आभार।
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