दोस्तो हमारे भारत में सबसे अच्छी बात यह है कि यहाँ पर हमारे पर्व, त्यौहार हमें अकेले या उदासी में घिरने ही नहीं देते। एक त्यौहार जाता है तो एक आ जाता है। शायद हमारे पूर्वजों ने इनका निर्धारण इस प्रकार किया था कि इंसान को एकाकीपन की एकरसता से दूर किया जाए। अब देखिए न होली का त्यौहार विदा लेकर गया है तो एक साथ दो पवित्र दिन आ गये हैं। इधर रमज़ान शुरू हो रहे हैं तो उधर नवरात्रि का पर्व भी। दोनों ही कठिन व्रतों के पर्व हैं। आराधना के, इबादत के पर्व हैं। इस बार रमज़ान मार्च में ही प्रारंभ हो गये हैं। अप्रैल के अंत में ईद होगी। बरसों पहले की याद है जब मेरी परीक्षाओं के समय में ईद आई थी। असल में इस्लाम तथा हिन्दू, दोनों धर्मों में चाँद के हिसाब से वर्ष का निर्धारण होता है। लेकिन चंद्रवर्ष होता है 354 दिनों का और सूर्य वर्ष होता है 365 दिनों का। हिन्दू धर्म में अधिक मास की व्यवस्था है जिससे सूर्य और चंद्र वर्ष में जो 11 दिनों का अंतर है उसे तीन वर्ष बाद बैलेंस कर दिया जाता है। हर तीन वर्ष (असल में 32 महीने 16 दिन बाद) बाद एक अधिक मास आ जाता है तीस दिनों का, जो पीछे हो रहे चंद्र कैलेंडर को एक बार फिर सूर्य कैलेंडर से सम कर देता है। इस्लामिक कैलेंडर में भी हज़रत मोहम्मद साहब के समय ऐसा ही होता था (ऐसा मैंने पवित्र क़ुरान की भूमिका में पढ़ा है) लेकिन बाद में इस्लाम में अधिक मास की व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। इसके कारण यह होता है कि चंद्र और सूर्य कैलेंडर का सम नहीं हो पाता और चंद्र कैलेंडर सूर्य कैलेंडर से 11 दिन पीछे हर वर्ष होता जाता है। लगभग 32 से 33 साल लगते हैं एक चक्र को पूरा होने में। मतलब यह कि अगर 1990 में मार्च-अप्रैल में पवित्र रमज़ान का महीना आया होगा, तो अब 2023 में मार्च अप्रैल में आ रहा है। हिन्दू धर्म में इसीलिए ऐसा होता है कि होली का पर्व पहले मार्च के तीसरे सप्ताह में आता है, अगले वर्ष दूसरे सप्ताह में, फिर पहले सप्ताह में आता है, इससे पहले कि यह चौथे वर्ष फरवरी में पहुँचे, एक अधिक मास आ जाता है और होली एक बार फिर मार्च के अंतिम सप्ताह में पहुँच जाती है। जैसे इस बार होली मार्च के प्रथम सप्ताह में है और इसी वर्ष अधिक मास, जिसे मलमास या पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं 18 जुलाई से 16 अगस्त तक रहेगा। इस कारण 2024 में होली एक बार फिर 25 मार्च मतलब अंतिम सप्ताह में पहुँच जायेगी। यदि इस्लाम में भी अधिक मास की यह व्यवस्था हो तो ईद भी इसी प्रकार सूर्य कैलेंडर के हिसाब से सम पर बनी रहे।
ईद पर तरही की परंपरा इस ब्लॉग पर रही है, तो आइए इस बार उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ईद के मुशायरे की तैयारी में लिए मिसरा घोषित किया जाये। इस बार बहुत प्रचलित बहर में यह मिसरा कहा गया है। बहरे-हज़ज मुसमन सालिम एक बहुत ही प्रचलित बहर है, जिस पर बहुत ग़ज़लें कही जाती हैं। यह एक बहुत मधुरता से गायी जाने वाली बहर है, जिसका तरन्नुम भी बहुत शानदार होता है। तो इस बार हम इसी बहर पर काम करेंगे।
हिलाले-ईद जलवागर हुआ हर घर मुनव्वर है
जैसा कि आपको बहर से ही पता चल रहा है कि 1222-1222-1222-1222 के वज़्न पर मिसरा है। इस बार मिसरे में रदीफ़ है “है” और क़ाफ़िया है “अर” की ध्वनि जैसे घर, डर, बाहर, अंदर, शायर, पत्थर, समंदर, मुक़द्दर, मुनव्वर, मतलब 2 के वज़्न पर जैसे “घर, डर”, 22 के वज़्न पर “बाहर, मंज़र”, 122 के वज़्न पर “समंदर, मुनव्वर” या 2122 के वज़्न पर “लाव-लश्कर” जैसे आप क़ाफ़िये ले सकते हैं।
पिछली बार कुछ लोगों ने कहा था कि बहर के साथ कुछ प्रसिद्ध गीत भी दिये जाएँ ताकि पहचानने में आसानी हो तो इस बार बार इस बहर के कुछ प्रसिद्ध गीत-
बहारों फू - ल बरसाओ - मेरा महबू - ब आया है
1222-1222-1222-1222
या फिर एक और गीत यह भी है-
ख़ुदा भी आ – समाँ से जब – ज़मीं पर दे - खता होगा
1222-1222-1222-1222
वाह वाह, शुक्रिया गुरु जी ग़ज़ल से जुड़ने का एक और अवसर देने के लिए। जिंदगी की भाग दौड़ में बहुत बहुत देर तक कुछ लिखा नहीं जाता। लेकिन इस मंच पर मुशायरे का ऐलान होता है तो अचानक से एक नई ऊर्जा और उत्साह मिलता है। मिलते हैं मुशायरे में सभी साथियों से।
जवाब देंहटाएंस्वागत है। ये तो ऐसी बहर है कि ग़ज़ल निकलवा ही लेगी।
जवाब देंहटाएंतिलक राज कपूर
सार्थक जानकारियाँ इस मंच की विशिष्टता हैं. भूमिका में कैलेंडर सम्बन्धी तथ्य रोचक ही नहीं ज्ञानवर्द्धक भी है.
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